Thursday, May 2, 2024
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कुरान की आयतें करती हैं सीमित परिवार की पैरवी: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी ने बताया इस्लाम को परिवार नियोजन का समर्थक

किताब में इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान और हदीस के हवाले से बताया गया है कि कैसे इस्लाम दुनिया के पहले ऐसे कुछ धर्मों में से एक है जिसने छोटे परिवार की वकालत की।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एसवाई कुरैशी अपनी नई किताब ‘द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ (The Population Myth: Islam, Family Planning and Politics in India) में धार्मिक आधार पर भारत की आबादी और जनसांख्यिकी का विश्लेषण किया है। वह अपनी इस किताब में इस मिथक को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं कि इस्लाम में परिवार नियोजन (Family Planning) की मनाही है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की इस किताब में विश्लेषण किया गया है कि कैसे मजहब के इन मिथकों का इस्तेमाल कर बहुसंख्यक समुदाय को डराया जाता रहा है। एसवाई कुरैशी अपनी किताब में ‘तथ्यों’ के आधार पर इन मिथकों को तोड़ने और यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे परिवार नियोजन सभी समुदायों के हित में है।

एसवाई कुरैशी ने टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स को इंटरव्यू देते हुए कहा कि इस किताब में इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान और हदीस के हवाले से बताया गया है कि कैसे इस्लाम दुनिया के पहले ऐसे कुछ धर्मों में से एक है जिसने छोटे परिवार की वकालत की, इसलिए ज्यादातर इस्लामिक देशों में जनसंख्या नीतियाँ लागू हैं।

‘इस्लाम है परिवार नियोजन के विचार का अग्रणी’

कुरैशी ने समाचार पत्र ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को दिए इंटरव्यू में कहा कि यह मिथक है कि इस्लाम परिवार नियोजन के विचार के खिलाफ है। उन्होंने दावा किया कि वास्तव में इस्लाम परिवार नियोजन की अवधारणा का अग्रणी है। उन्होंने कहा कि 25 साल पहले उनका भी मानना था कि इस्लाम परिवार नियोजन के खिलाफ है, लेकिन जब उन्होंने इस विषय का अध्ययन किया तो पाया कि कुरान में तो इसका ठीक उल्टा है। 

‘कुरान की आयत में परिवार नियोजन का जिक्र’

अपनी किताब में एसवाई कुरैशी ने कहा है कि इस्लाम न केवल परिवार नियोजन का समर्थक है, बल्कि इस्लाम परिवार नियोजन की विचारधारा का प्रणेता भी रहा है। वो कहते हैं, “यह आश्चर्यजनक और उल्लेखनीय है कि 1,400 साल पहले, जब दुनिया पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव नहीं था, कुरान नियोजित परिवारों के बारे में बात कर रहा था। उदाहरण के लिए, कुरान में एक आयत कहती है: ‘युवा पुरुषों को तब शादी करनी चाहिए जब आप इसका खर्च वहन कर सको, जब आप अपने परिवार की परवरिश कर सको।’ एक व्यक्ति पैगंबर से स्पष्टीकरण माँगता है और पूछता है: ‘मैं एक गरीब आदमी हूँ लेकिन मेरी यौन इच्छाएँ हैं तो मुझे क्या करना चाहिए?’ पैगंबर कुरान के शब्दों को दोहराते हैं और उसे उपवास की कोशिश करने के लिए कहते हैं जो यौन इच्छा को दबाता है। कुरान की ये दो आयतें हैं, जो मेरे अनुसार परिवार नियोजन के विचार की पैरवी करती हैं।

‘मुस्लिम समुदाय में सबसे कम बहुविवाह’

दूसरे ‘मिथक’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह मिथक है कि भारत में बहुविवाह की प्रथा व्याप्त है। 1975 में सरकार द्वारा की गई बहुविवाह पर अध्ययन से पता चलता है कि भारत में सभी समुदायों में बहुपत्नी हैं और मुस्लिम में सबसे कम बहुविवाह हैं। इस्लाम केवल इस शर्त पर बहुविवाह की अनुमति देता है कि महिला अनाथ है जो खुद का गुजारा करने में असमर्थ है और यदि आप उसे अपनी पहली पत्नी के बराबर मान सकते हैं। लोगों ने इसे अनुमति के रूप में माना है जो कि सही नहीं है। कुरैशी के अनुसार, एक जनसांख्यिकी के रूप में मैं कह सकता हूँ कि हमारे लिंग अनुपात को ध्यान में रखते हुए भारत में बहुविवाह प्रथा संभव नहीं है। अगर एक आदमी दो बार शादी करता है, तो किसी दूसरे आदमी को अकेला रहना चाहिए।

‘मुस्लिम समुदाय तेजी से परिवार नियोजन को अपना रहे हैं’

उन्होंने कहा कि तीसरा मिथक यह है कि मुस्लिमों द्वारा हिंदू आबादी से आगे निकलने के लिए कई बच्चे पैदा करने की एक संगठित साजिश है। जबकि मैंने कई दक्षिणपंथी राजनेताओं ने सार्वजनिक भाषणों में कहा है कि हिंदू पुरुषों के कई बच्चे होने चाहिए। इसलिए अगर कोई संगठित साजिश है तो वह दक्षिणपंथी हिंदुओं की है। मैंने लिखा है कि मुस्लिमों के लिए हिंदुओं से आगे निकलना सांख्यिकीय रूप से कैसे असंभव है। 

कुरैशी ने दलील दी, “दशकों से भारतीयों को यह दुष्प्रचार घुट्टी की तरह घोल कर पिलाया गया कि मुस्लिम ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं ताकि हिंदुओं पर बढ़त बना सकें, और इसी तरह से मुस्लिम राजनीति सत्ता पर कब्जा करने की सोच रहे हैं।”

उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा, “दक्षिणपंथियों का आरोप है कि मुस्लिमों की संख्या एक संगठित साजिश के रूप में तेजी से बढ़ रहा है। मैं मानता हूँ कि मुस्लिम जन्म दर उच्चतम है और पिछले 70 वर्षों में जनसांख्यिकी बदल गई है। 84% हिंदू 79.8% पर आ गए हैं और मुस्लिम 9.8% से 14% हो गए हैं। लेकिन मुस्लिम समुदाय तेजी से परिवार नियोजन को अपना रहे हैं और वे जन्म दर में हिंदुओं से आगे नहीं निकलेंगे। 60 वर्षों के बाद, मुस्लिम आबादी में 4.2% की वृद्धि हुई; प्रक्षेपण यह है कि 2100 में, मुस्लिम आबादी का 18% हो जाएगा। मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं को पछाड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर दिनेश सिंह, जो एक विशेषज्ञ हैं, ने डेटा का अध्ययन किया और कहा कि वे कभी भी हिंदुओं से आगे नहीं निकल सकते हैं।”

फर्जी है ‘हिन्दू खतरे में है’ का नारा

इसके साथ ही उन्होंने ‘हिंदू खतरे में है’ के नारे को फर्जी बताया। उन्होंने कहा, ‘हम पाँच हमारे पच्चीस’ या ‘हम चार हमारे चालीस’ जैसी असभ्य नारेबाजी की जा रही है। मैं उन्हें चैलेंज देता हूँ कि वो मेरे सामने एक ऐसा मुस्लिम युवक ले आए, जिसकी चार बीबी और 25 बच्चे हों- 1.3 बिलियन की आबादी में से कोई एक भी हो।

पीएम मोदी के कोरोना से संक्रमित होने की कर चुके हैं दुआ

गौरतलब है कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी वैसे तो अपनी सेकुलर छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन पिछले दिनों सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए उनकी कुंठा दिखाई पड़ी। उन्होंने ट्विटर पर अप्रत्यक्ष रूप से पीएम के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की कामना की। जब इसके लिए आलोचना शुरू हुई तो उन्होंने ट्वीट डिलीट कर माफी मॉंग ली। उनका कहना था कि ऐसा गलत बटन दबने के कारण हुआ था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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