Saturday, November 23, 2024
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लॉकडाउन पर Confuse राहुल गाँधी: पहले जिनके लिए दी PM मोदी को ‘गाली’ अब उन्हीं पर बजा रहे ‘ताली’

2021 में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान अब राज्यों पर जिम्मेदारियाँ बढ़ गई। दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी संक्रमण बढ़ने के कारण कॉन्ग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

भारतीय राजनीति में अक्सर यह कहा जाता है कि सत्ता से दूर रहने वाली कॉन्ग्रेस, सत्ता में रहने वाली कॉन्ग्रेस से अधिक खतरनाक होती है। 2014 में सत्ता से दूर होने के बाद कई बार कॉन्ग्रेस का यह व्यवहार देखा गया है। पुलवामा में हुए इस्लामिक आतंकी हमले के बाद कॉन्ग्रेस बार-बार यह प्रश्न पूछती रही कि ‘इस हमले से किसे लाभ हुआ?’ वास्तव में कॉन्ग्रेस अप्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार को लेकर इस मुद्दे पर अविश्वास उत्पन्न करने का प्रयास करती रही है। हाल ही में चीन के साथ भारत के संघर्ष पर भी कॉन्ग्रेस ने लगातार मोदी सरकार को निशाने पर लिया और यह माँग की कि केंद्र सरकार इस संघर्ष में भारत की स्थिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। हालाँकि, 10 सालों तक सत्ता में रहने वाली कॉन्ग्रेस यह बखूबी जानती है कि रणनीतिक मुद्दों पर कोई भी रिपोर्ट इतनी आसानी से सार्वजनिक नहीं की जा सकती है।

अब जबकि भारत कोरोना वायरस संक्रमण से लगातार लड़ रहा है तब भी कॉन्ग्रेस एक प्रोपेगंडा के तहत देश में अस्थिरता और केंद्र सरकार के प्रति आम जनता में अविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रही है। 2020 में जब भारत में Covid-19 महामारी ने दस्तक दी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री मोदी के इस लॉकडाउन के निर्णय की सबसे अधिक आलोचना किसी ने की थी तो वह कॉन्ग्रेस ही थी जो मार्च 2021 के अंत तक भारत में किए गए लॉकडाउन को एक मूर्खतापूर्ण निर्णय बताती रही। कॉन्ग्रेस ने विमुद्रीकरण (नोटबंदी), वस्तु एवं सेवा कर (GST) और लॉकडाउन को मोदी सरकार के तीन सबसे असफल फैसले बताए। कॉन्ग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि बिना किसी प्लानिंग के किए गए लॉकडाउन ने करोड़ों जिंदगियाँ बर्बाद कर दी।

कॉन्ग्रेस के द्वारा लॉकडाउन के विरोध में किए गए ट्वीट

लेकिन 2021 में परिस्थितियाँ अलग हैं। लॉकडाउन की धुर विरोधी रही कॉन्ग्रेस अचानक से लॉकडाउन की वकालत करना शुरू कर देती है। कॉन्ग्रेस कहती है कि संक्रमण रोकने का एक मात्र उपाय लॉकडाउन ही है। कॉन्ग्रेस के नेता पी. चिदंबरम कहते हैं कि केंद्र सरकार ने अपने हाथों में शक्तियाँ होते हुए भी सारा भार राज्यों पर डाल दिया है। हालाँकि, 2020 में माँग यह की जा रही थी कि राज्यों को निर्णय लेने के और अधिक अधिकार मिलने चाहिए।

कॉन्ग्रेस अब करने लगी लॉकडाउन का समर्थन

2021 में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान अब राज्यों पर जिम्मेदारियाँ बढ़ गई। दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी संक्रमण बढ़ने के कारण कॉन्ग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कॉन्ग्रेस की अगुआई वाला एक इकोसिस्टम संगठित रूप से मोदी सरकार द्वारा एक नेशनल लॉकडाउन न लगाने के निर्णय के खिलाफ खड़ा हो गया।

ब्लूमबर्ग क्विंट ने एक लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय में लिखा कि पिछले साल लॉकडाउन का निर्णय करने वाले पीएम मोदी ने इस साल आलोचना से बचने के लिए लॉकडाउन को प्राथमिकता नहीं दी और इसमें पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार का बड़ा योगदान है।

ब्लूमबर्ग क्विंट का लेख जिसमें लॉकडाउन के मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना की गई है
ब्लूमबर्ग के लेख का एक हिस्सा

द टेलीग्राफ ने भी राहुल गाँधी का बयान छापते हुए कहा कि मोदी की असफलताओं ने भारत को एक और लॉकडाउन की तरफ धकेल दिया है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र और राज्य के तौर पर यह कह चुके हैं कि लॉकडाउन एकमात्र अंतिम विकल्प होना चाहिए।

द टेलीग्राफ में प्रकाशित लेख

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी जो कि पीएम मोदी के सबसे बड़े विरोधी हैं, वो भी लॉकडाउन पर पलटी मार रहे हैं। मार्च 2021 तक राहुल गाँधी भी लॉकडाउन को भारत की सबसे बड़ी त्रासदी और मोदी सरकार का सबसे खराब निर्णय बताते रहे। उन्होंने लॉकडाउन 2020 के विषय में यहाँ तक कहा कि इस लॉकडाउन ने सिद्ध कर दिया कि अज्ञानता से खतरनाक कुछ है तो वह है अहंकार। राहुल गाँधी ने भी वही राग अलापा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को नोटबंदी, GST और लॉकडाउन ने ही बर्बाद किया है।

लॉकडाउन के विरोध में राहुल गाँधी द्वारा किए गए कुछ ट्वीट

मार्च 2021 के बाद अब राहुल गाँधी भी बदल जाते हैं। मई आते-आते अब कॉन्ग्रेस के युवराज कहते हैं कि भारत सरकार यह समझ नहीं पा रही है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने का एकमात्र उपाय है, लॉकडाउन। उन्होंने यह आरोप तक लगा दिया कि मोदी सरकार ने इस वायरस के इस स्टेज तक पहुँचने में सक्रिय रूप से सहायता की है और अब इसे रोकने का कोई दूसरा उपाय (लॉकडाउन के अलावा) नहीं है।

अब राहुल गाँधी ने भी लॉकडाउन का समर्थन शुरू कर दिया

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि 2021 में राज्य स्तर पर कोरोना वायरस के खिलाफ रणनीतियों का निर्माण किया जा रहा है। देश के कई राज्य और जिले पहले से ही लॉकडाउन में हैं और कई राज्यों ने आंशिक रूप से लॉकडाउन लगाया हुआ है। दैनिक भास्कर के इस लॉकडाउन मैप में आसानी से देखा जा सकता है कि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने लॉकडाउन लगा रखा है। पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और नागालैंड ने भी दैनिक भास्कर की खबर प्रकाशित होने के बाद लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी।

देश का लॉकडाउन मैप (फोटो : दैनिक भास्कर)

यह सभी को ज्ञात है कि 2020 में भारत के लिए कोरोना वायरस का संक्रमण बिल्कुल नया था। हमारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इस संक्रमण के हिसाब से बिल्कुल भी तैयार नहीं थीं। पीपीई किट तो दूर की बात है, भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग भी नहीं करता था। संक्रमण की टेस्टिंग के कोई साधन नहीं थे। उस समय भारत के लिए आवश्यक हो गया था कि संक्रमण की रफ्तार को किसी भी कीमत पर कम किया जाए और भारत को इस महामारी के हिसाब से तैयार किया जाए।

अब 2021 में परिस्थितियाँ अलग हैं। आज भारत में इस महामारी से लड़ने के सभी आधारभूत संसाधन उपलब्ध हैं। टेस्टिंग की कोई कमी नहीं है। आवश्यकता है कि राज्य टेस्टिंग बढ़ाकर, संक्रमित मरीजों को ट्रेस करने की रणनीति अपनाएं और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने का प्रयास करें। 2021 में हमारे पास अनुभवी स्वास्थ्यकर्मी हैं और टीकाकरण भी प्रारंभ हो चुका है।

इतना सब होने के बाद ऐसा क्या है जिसने कॉन्ग्रेस को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वकालत करने के लिए मजबूर कर दिया है? किस कारण कॉन्ग्रेस और उसके युवराज राहुल गाँधी लगातार मोदी सरकार पर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाने का दबाव बना रहे हैं? फिलहाल इसका एक ही कारण समझ आ रहा है, गैर-भाजपा शासित राज्यों में संक्रमण पर राज्य सरकारों की असफलता से ध्यान हटाकर केंद्र सरकार पर इसका दोष मढ़ना और अर्थव्यवस्था में गिरावट पर भी केंद्र सरकार को ही दोष देना।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी ने लॉकडाउन की वकालत तब शुरू की है जबकि कई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए भारत की विश्व भर में सबसे बेहतर विकास दर का आकलन किया है।

6 अप्रैल 2021 को बिजनेस टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए आकलन किया है कि विश्व में सबसे बेहतर जीडीपी वृद्धि दर भारत की होगी और भारत इकलौता ऐसा देश होगा जिसकी वृद्धि दर दो अंकों में रहने की संभावना है। IMF ने भारत की वृद्धि दर का आकलन 12.5% किया है। मार्च के अंत में विश्व बैंक ने भी वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 4.7% बढ़ाकर 10.1% किया था।

इससे पहले जनवरी में विश्व बैंक ने ही भारत की जीडीपी वृद्धि दर के 5.4% रहने का अनुमान लगाया था। हालाँकि, विश्व बैंक ने आगामी संकटों को ध्यान में रखते हुए भी वृद्धि दर की एक रेंज निश्चित की थी जो 7.5-12.5 फीसदी अनुमानित है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 7.5% की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। इसके अलावा वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्टस (WESP) ने भारत के लिए 10.1% वृद्धि दर और मूडी ने 9.3% वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। हालाँकि इन संस्थाओं ने जिस प्रकार का अनुमान भारत की विकास दर को लेकर प्रस्तुत किया है, उससे यह साफ है कि सबसे बुरी स्थिति में भी भारत आर्थिक विकास दर के मामले में विश्व के कई देशों से बेहतर स्थिति में होगा।

भारत एक विकासशील देश है और उसके सामने एक बड़ी जनसंख्या को संभालने का बोझ है। ऐसे में एक बड़ी चुनौती है कोरोना वायरस संक्रमण को रोकते हुए आर्थिक विकास को बनाए रखना लेकिन कॉन्ग्रेस को संभवतः यह प्रयास पसंद नहीं आए। बार-बार बदलने वाली कॉन्ग्रेस को देखकर तो कम से कम यही लगता है।  

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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