प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हमारे लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day)’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। इसके बाद से ही लिबरल गिरोह का क्रंदन चालू है। बलिदानियों को सम्मान देना उन्हें रास नहीं आ रहा है। हमारे लोगों को जो संघर्ष करना पड़ा, इसे वो याद नहीं करना चाहते।
खुद को स्टैंड-अप कॉमेडियन बताने वाले अतुल खत्री ने लिखा, “लोल.. क्या? भला कौन विभाजन की त्रासदी को याद करना चाहता है?”
हालाँकि, इस तरह की बात लिखने वाले वो अकेले नहीं थे। अर्पिता चटर्जी नाम की ‘पूर्व पत्रकार’ ने लिखा, “इस आदमी की ध्रुवीकरण की क्षमता असाधारण है। इन्होंने ‘स्वतंत्रता दिवस’ को भी नहीं छोड़ा।”
जैसा कि अपेक्षित है, काफी सारे ऐसे पाकिस्तानी भी हैं जो इस फैसले से खुश नहीं हैं। इसे समझा जा सकता है, क्योंकि इसी दिन वो अपना स्वतंत्रता दिवस भी मनाते हैं। शायद इसीलिए भारत के ‘सेक्युलर’ ब्रिगेड के लोग भी इस निर्णय से नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं। क्योंकि भारत के कथित ‘सेकुलरिज्म’ की नींव ही हिन्दुओं के नरसंहार, हिन्दू महिलाओं के बलात्कार और हमारे मंदिरों को ध्वस्त करने पर आधारित है।
शायद इसीलिए अब तक कॉन्ग्रेस होना इतिहास चलाती रही है, अपने नैरेटिव के हिसाब से। शायद इसीलिए सारी चीजों को महात्मा गाँधी व जवाहरलाल नेहरू के इर्दगिर्द घुमाया गया। सारी अच्छी चीजों के लिए उन्हें। जो बुरी चीजें हुईं, उन्हें या तो भुला दिया गया या फिर उन्हें अच्छा बना कर पेश किया गया। आज भी ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके पूर्वजों ने विभाजन का दंश झेला है। जिनके परिवार ने इस त्रासदी झेली है।
जहाँ एक तरफ ये लोग कहते हैं कि भारतीय मुस्लिमों का विभाजन से कोई लेनादेना नहीं, वहीं दूसरी तरफ ये भी कहते हैं कि विभाजन की त्रासदी को याद करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इनके हिसाब से दुनिया भर के मुस्लिम पीड़ित ही हैं, भले ही एक बड़े हिस्से पर सैकड़ों वर्षों तक इस्लामी शासन रहा हो। आज भी कई भारतीयों के पूर्वजों की संपत्ति पाकिस्तान-बांग्लादेश में किसी और के कब्जे में हैं, शायद तभी ‘अखंड भारत’ की बातें होती हैं।
भारत-पाकिस्तान विभाजन और इसके बाद हुए दंगों में 20 लाख से भी अधिक लोग मारे गए थे। महिलाओं का बलात्कार हुआ था, बच्चों तक को नहीं बख्शा गया था। किसी सिख महिला ने अपनी इज्जत बचाने के लिए गुरुद्वारे में ही आत्महत्या कर ली थी तो कहीं शरणार्थियों से भरी पूरी ट्रेन में ही नरसंहार हुआ था। जिस देश में राजनेता स्वतंत्रता का जश्न मना रहे थे, वहीं दूसरी तरफ अराजकता का माहौल बना हुआ था।