Wednesday, November 20, 2024
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असहिष्णुता? ‘हेट क्राइम’ की दर्जन भर घटनाएँ, जो फर्ज़ी साबित हुईं – लक्ष्य था हिंदुओं को बुरा दिखाना

हाल-फिलहाल में ऐसी कई फर्ज़ी ‘हेट क्राइम’ की घटनाएँ रिपोर्ट हुईं और उन्हें ठीक-ठाक मीडिया कवरेज भी दिया गया। क्यों? इस पर चर्चा बाद में, फिलहाल, इतनी मीडिया हाइप के बाद भी उसमें से अधिकांश ‘हेट क्राइम’ की घटनाएँ फर्ज़ी साबित हुई। हालाँकि, ऐसे ताबड़तोड़ मीडिया कवरेज ने ‘डरा हुआ शांतिप्रिय’ वाले नैरेटिव को बिल्डअप करने में बड़ी भूमिका निभाई जबकि हिन्दुओं के साथ घटित वास्तविक ‘हेट क्राइम’ की घटनाओं का इस पूरे मीडिया गिरोह द्वारा जमकर अनदेखी की गई।

यहाँ ऐसे ही कुछ ‘हेट क्राइम की लिस्ट’ है जो बाद में पूरी तरह झूठी निकली

1. गुरुग्राम हेट क्राइम (मई 2019)

“मुस्लिम युवक बरक़त अली की गुरुग्राम के सदर बाजार में कुछ हिन्दुओं ने की पिटाई” की खबर सोशल मीडिया के साथ मुख्यधारा की मीडिया में भी तेजी से वायरल हुई। जैसे ही बीजेपी के नवनिर्वाचित सांसद गौतम गंभीर ने इस घटना को ‘हेट क्राइम’ की संज्ञा और ‘सेक्युलरिज़्म’ का पाठ पढ़ाते हुए ट्वीट किया, इस मामले ने और भी जोर पकड़ लिया।

कई मुख्यधारा के मीडिया चैनलों और पूरे मीडिया गिरोह ने इस घटना को मुस्लिम विरोधी ‘हेट क्राइम’ के रूप में रिपोर्ट किया था। सोशल मीडिया पर, इस घटना को कई प्रभावशाली लोगों द्वारा समुदाय विशेष के खिलाफ बढ़ती ‘असहिष्णुता’ और हिंसा के मामले के रूप में परोसा गया था।

इस मामले में, कथित पीड़ित, बरकत अली ने दावा किया कि उसकी पिटाई करने वाले लोगों के एक समूह ने उसकी ‘टोपी’ निकाल दी थी और दावा किया था कि उसे ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए कहा गया था। हालाँकि, पुलिस ने इस मामले के तथ्यों की छानबीन के बाद कहा कि यह ‘हेट क्राइम’ नहीं था। गुरुग्राम पुलिस ने यह भी कहा था कि यह घटना, शराब पीकर एक मामूली विवाद का था।

हालाँकि, पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी। पीड़ित द्वारा दिए गए बयान में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने के लिए उसे मजबूर नहीं किया गया था और ना ही उसे सूअर का मांस खिलाने की धमकी दी गई थी। पुलिस ने यह भी कहा था कि सीसीटीवी फुटेज से यह देखा जा सकता है कि पूरी घटना महज एक मिनट के भीतर खत्म हो गई थी। पुलिस ने कहा था कि कुछ ‘असामाजिक तत्व’ घटना को सांप्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश कर रहे हैं।

पुलिस ने यह भी कहा कि पूरी घटना को सांप्रदायिक स्पिन देने के लिए बरकत अली को शायद समझाया गया होगा। सीसीटीवी फुटेज से यह भी पता चला कि किसी ने भी जानबूझकर उसकी टोपी नहीं निकाली थी और यह गलती से गिर गया था। एक मिनट के भीतर ही पूरी बात खत्म हो गई थी।

2. गुरुग्राम सड़क पर झड़प की घटना (मई 2019)

रोड रेज की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में, गुरुग्राम में एक डॉ. नारुल को भीड़ द्वारा पीटा गया जब वह इफ्तार के लिए दूध खरीदने गए थे। हालाँकि, टाइम्स समूह की वेबसाइट IndiaTimes.com ने अपनी रिपोर्ट में थोड़ा सा ट्विस्ट देकर इसे सांप्रदायिक एंगल देने के लिए रोड रेज को ‘हेट क्राइम’ घोषित करने का फैसला कर लिया।

डॉ. नारुल अपनी बलेनो कार से दूध खरीदने के लिए रात करीब 8 बजे अर्डी सिटी गए थे जहाँ दो लोग अपनी फॉर्च्यूनर कार से उतरकर उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं। डॉ. नारुल का कहना था कि जब उन्होंने उन्हें बताया कि वे सड़क के गलत साइड से आ रहे हैं, तो दोनों ने कुछ अन्य लोगों को फोन किया, जिन्होंने उनके साथ मारपीट की, यह घटना, स्पष्ट रूप से रोड रेज का मामला प्रतीत हो रहा है।

उन्होंने उल्लेख किया कि जब उन्हें पीटा जा रहा था, तो उन्होंने किसी को यह कहते सुना कि वह (डॉ. नारुल) एक मुस्लिम हैं और इसलिए उन्हें (कथित तौर पर पिटाई करने वाले पुरुष) को छोड़ देना चाहिए क्योंकि इस घटना से सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं।

टाइम्स की एक अन्य वेबसाइट इंडियाटाइम्स ने इस कहानी को एक सांप्रदायिक एंगल देकर पुन: पेश किया। हेडलाइन में लिखा, “मुस्लिमों को छोड़ देना चाहिए” चिल्लाते हुए भीड़ ने डॉ. नारुल की पिटाई की”, जबकि वास्तव में, वे उस समय भाग गए जब उन्हें एहसास हुआ कि वे जिस व्यक्ति की पिटाई कर रहे थे, वह मुस्लिम था। हालाँकि, इस पर ऑपइंडिया की रिपोर्ट के बाद, इंडियाटाइम्स ने बाद में अपना शीर्षक बदल दिया।

3. दिल्ली मदरसा टीचर की घटना (जून 2019)

21 जून को एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दावा किया गया था कि ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से इनकार करने के बाद उसे एक कार द्वारा कथित रूप से धक्का दे दिया गया था, इसके बाद एक और विवाद छिड़ गया था। मोहम्मद मोमिन नामक एक मदरसा शिक्षक ने आरोप लगाया था कि दिल्ली के रोहिणी सेक्टर में हिंदू धार्मिक नारे लगाने से इनकार करने के कारण उसके साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार किया गया और फिर वे कार से भाग गए।

हालाँकि, चश्मदीदों ने मोमिन के आरोपों को गलत बताया। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “घटना के कुछ चश्मदीदों द्वारा दिए गए बयान पीड़ित द्वारा किए गए दावों की पुष्टि नहीं करते हैं लेकिन जाँच जारी है”। अपराध स्थल के आस-पास के सीसीटीवी फुटेज भी आरोपों को साबित नहीं कर पाए हैं।

इस घटना के बाद भी, ‘लिबरल-सेक्युलर’ मीडिया गिरोह ने मदरसा शिक्षक पर हमला करने के लिए हिंदुओं पर हमला करना शुरू कर दिया था। सेक्युलर मीडिया ने मोमिन में एक नया शिकार ढूँढ लिया था, जिसका इस्तेमाल वे आगे चलकर ‘मुस्लिम पीड़ितों’ के बारे में एक झूठी कहानी गढ़ने के लिए करने वाले थे।

4. आपराधिक घटना को दिया सांप्रदायिक मोड़, (जून 2017)

यह घटना राजस्थान के नागौर जिले की है, जहाँ लोगो के एक समूह ने अपने चेहरे छुपाते हुए कुछ लोगों को कैमरे पर गाली-गलौज करते हुए और एक महिला को प्लास्टिक के पाइप से पीटते हुए, उसे जबरन धार्मिक नारे लगाने के लिए दबाव डालते हुए रिकॉर्ड किया। यह स्पष्ट नहीं था कि इस घटना को किसने रिकॉर्ड किया था, लेकिन वीडियो में साफ दिखाई दे रहा था कि लोग महिला को ‘अल्लाह’ और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए मजबूर कर रहे थे।

इस घटना में भी, मीडिया गिरोह के लोगों ने ‘अल्लाह’ वाले हिस्से को आसानी से अनदेखा कर दिया और पूरी घटना को सांप्रदायिक स्पिन देने के लिए केवल ‘जय श्री राम’ भाग पर ध्यान केंद्रित किया। जबकि, यह घटना पूरी तरह से आपराधिक थी और सांप्रदायिक स्पिन के बिना भी अपने आप में काफी भयावह थी।

5. जुनैद की घटना (जून 2017)

22 जून को 17 वर्षीय जुनैद दिल्ली में ईद की खरीदारी के बाद अपने भाइयों के साथ घर लौट रहा था। कथित रूप से उसे बल्लभगढ़ और मथुरा स्टेशनों के बीच दिल्ली-मथुरा पैसेंजर ट्रेन में आपसी झड़प में चाकू मार दिया गया था।

यह लड़ाई सीट पर बैठने को लेकर शुरू हुई थी और बाद में इस घटना में धार्मिक एंगल को भी इस लड़ाई का हिस्सा बना दिया गया था, लेकिन अधिकांश मीडिया रिपोर्टों ने इस मामले को ‘बीफ’ से संबंधित लिंचिंग के रूप में उजागर किया। इस मामले में पुलिस जाँच में पता चला था कि न तो शिकायतकर्ता और न ही आरोपित ने गोमांस के बारे में बात की थी।

जबकि, कई मीडिया हाउस ने दावा किया था कि जुनैद को इस संदेह के कारण मारा गया था कि वह ‘गोमांस’ ले जा रहा था। फिर क्या था देश का तथाकथित लिबरल और अभिजात्य वर्ग ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक बवाल काट दिया था।

उच्च न्यायालय ने 28 मार्च 2018 को अपने आदेश में पुष्टि की कि लड़ाई सीट विवाद को लेकर शुरू हुई थी और अपराध का कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं था। फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि लड़ाई सीटों और “जाति” के झगड़े पर शुरू हुई थी। उच्च न्यायालय के अनुसार, हिंसा के कारण के रूप में गोमांस या मजहबी दृष्टिकोण का कोई उल्लेख नहीं है।

6. तिहाड़ जेल की झूठी हेट क्राइम (अप्रैल 2019)

अप्रैल में तिहाड़ जेल में एक मुस्लिम कैदी, नब्बीर ने दावा किया था कि जेल अधीक्षक द्वारा उसकी पीठ पर ’ओम’ चिन्ह लगा दिया गया था। उसने यह भी दावा किया था कि अधिकारियों ने उसे नवरात्रि के दौरान उपवास करने के लिए मजबूर किया था और इसके लिए उसे पीटा गया था। उसने ये आरोप मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ऋचा परिहार के सामने लगाए थे जिन्होंने पूरे मामले की जाँच के आदेश दिए थे।

जबकि, जाँच में यह बात स्पष्ट हो गई कि वास्तव में, नब्बीर अपने किसी सहयोगी द्वारा सिखाया-पढ़ाया गया था। नब्बीर ने जेल अधीक्षक को फँसाने और जेल अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए ये झूठे दावे किए थे।

07. मेरठ लॉ कॉलेज की छात्रा का झूठा दावा, मुस्लिम होने के कारण किया गया परेशान (अप्रैल 2019)

ट्विटर पर एक लॉ स्टूडेंट, उमाम खानम ने अपने साथी छात्रों और अपने फैकल्टी के सदस्यों के ख़िलाफ़ परेशान किए जाने संबंधी गंभीर आरोप लगाए थे। अपने ट्वीट्स में खानम ने दावा किया था कि परेशान करने वाले छात्र शराब के नशे में थे और छात्रों ने उसे बीजेपी की टोपी पहनने के लिए मजबूर किया। खानम ने कहा कि उसे इसलिए परेशान किया गया क्योंकि उसने वो टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। साथ ही, खानम ने वहाँ मौजूद पुरुष अध्यापकों पर भी इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करने के झूठे आरोप लगाए थे।

इस मामले की जाँच करने पर चिंतित नेटिजन्स ने पाया कि उनके ट्वीट थ्रेड में जिन पुरुष अध्यापकों का उल्लेख किया गया है, वह मेरठ के दीवान लॉ कॉलेज के विभागाध्यक्ष थे। इसके बाद जब H.O.D अम्बुज शर्मा से संपर्क किया तो पता चला कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। H.O.D शर्मा ने पुष्टि की कि खानम वास्तव में कॉलेज की छात्रा हैं और वह ख़ुद इस ट्रिप पर जाने वाले शिक्षकों में से एक था। उन्होंने यह भी दावा किया कि खानम के आरोप बेबुनियाद हैं। उसका सच से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।

08. दिल्ली मालवीय नगर की घटना (अक्टूबर 2018)

मीडिया ने बताया कि मोहम्मद अजीम नाम के 8 साल के मदरसा छात्र को कथित तौर पर कुछ युवाओं ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। यह मामला दिल्ली के मालवीय नगर इलाके के बेगमपुर का था। JNU छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद ने नदीम खान के फेसबुक विडियो का लिंक ट्वीट करते हुए लिखा, ‘भारत में मुस्लिमों के साथ हेट क्राइम बढ़ रहे हैं। एक हैरान कर देने वाली घटना के तहत साढ़े सात साल के बच्चे अजीम को दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर में लिंच किया गया।’ शेहला ने अपने ट्वीट में पीएम नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा।

लेकिन खुद अजीम के पिता ने बताया था कि यह मामला दो गुटों के बच्चों के बीच झगड़े का है, जिसमें उनके बेटे को मैदान में खड़ी बाइक पर फेंका गया और अंदरूनी चोट से उसकी जान चली गई। उन्होंने कहा- “यह सांप्रदायिक झड़प नहीं थी। मेरे बेटे की मौत दुर्घटनावश हुई। कृपया इस मामले का राजनीतिकरण न करें।” देश भर में ‘डरा हुआ मुस्लिम’ नाम का प्रपंच रचने वाले स्वघोषित एक्टिविस्ट्स ने जब इसे ‘लिंचिंग’ और ‘हेट क्राइम’ साबित करने का प्रयास किया तो ऑपइंडिया ने मालवीय नगर पुलिस स्टेशन से जानकारी में पाया कि यह हेट क्राइम का मामला था ही नहीं।

09. मणिपुर में गाय चोरी के आरोप में मदरसा के हेडमास्टर की हत्या (नवंबर 2015)

मणिपुर के पूर्वी इंफाल जिले के केइराओ गांव में 55 साल के मोहम्मद हसमद अली का शव उनके घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर बरामद किया गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, गाय का बछड़ा चुराने के आरोप में स्कूल के हेडमास्टर हसमद अली की हत्या की गई। जबकि हसमद अली के बड़े बेटे का कहना था कि यह जमीन विवाद के कारण की गई हत्या थी और यह आरोप दूसरे धर्म पर थोप दिया ताकि वो खुद बच सके।

हेडमास्टर के बेटे ने आरोप लगाते हुए यह भी स्पष्ट बताया था कि उसके पड़ोसी मुहम्मद अमु और उसके भाई के साथ जमीन विवाद के चलते यह हत्या की गई थी। इसके बाद गाँव वालों ने मुहम्मद अमु के घर को भी आग के हवाले कर दिया था।

10: जय श्री राम: फर्जी हेट क्राइम, तेलंगाना (जून 2019)

भूतपूर्व AIMIM के नेता, जो कि अब मजलिस बचाव तहरीक के नेता हैं, ने ट्विटर पर एक ट्वीट शेयर करते हुए कहा था कि तेलंगाना के करीमनगर में एक मुस्लिम युवक ‘जय श्री राम’ ना बोलने के कारण पीटा गया। यह ट्वीट अन्य सोशल मीडिया यूज़र्स ने भी शेयर किया था।

हालाँकि, करीमनगर पुलिस कमिश्नर ने एक वीडियो शेयर करते हुए स्पष्ट किया था कि यह मुस्लिम युवक आपसी विवाद के कारण पीटा गया था ना कि ‘जय श्री राम’ ना बोलने की वजह से। उन्होंने यह भी बताया कि एक टीनएजर युवती से छेड़खानी करने के कारण उस पर पहले से ही FIR भी दर्ज है। इस मुस्लिम युवक के पिता ने भी स्वयं बाद में मीडिया को बताया कि उनके बेटे को उसकी गलती की वजह से पीटा गया, ना कि किसी साम्प्रदायिक वजह से।

11. रानाघाट, कोलकाता नन बलात्कार (मार्च 2015)

मार्च 14, 2015 को बांग्लादेशी अपराधियों के एक गिरोह ने कोलकाता के नदिया जिले में रानाघाट स्थित जीसस एंड मेरी कॉन्वेंट पर हमला कर वहाँ लूटपाट की थी और इसका विरोध करने पर 71 साल की एक नन के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। इस घटना में बांग्लादेश के एक गिरोह का हाथ था जो अवैध तरीके से भारत में रह रहा था। इस केस में मोहम्मद सलीम शेख़ को उसके अन्य 5 साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन इस पूरे प्रकरण में मेनस्ट्रीम मीडिया ने बलात्कार को किनारे रखकर इसके लिए आरएसएस और हिंदुत्व के विचारकों को जिम्मदार बताया था।

12. बरुन कश्यप काण्ड (2016)

मुंबई के रहने वाले फिल्म एग्जीक्यूटिव बरूण कश्यप के साथ अगस्त 2016 के दौरान मुंबई में गोरक्षकों द्वारा दुर्व्यवहार का बेहद हास्यास्पद मामला सामने आया था। बरुन एक प्रोडक्शन हाउस में क्रिएटिव डायरेक्टर हैं। बरूण ने आरोप लगाया था कि एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने उसके चमड़े के बैग को देखकर यह कहते हुए उसके साथ अभद्रता की थी कि उसका बैग गाय के चमड़े से बना है।

बरूण ने इस ‘चमड़ा बैग प्रकरण’ की जानकारी तब फेसबुक के जरिए दी थी। वरूण ने मुंबई के डीएन नगर में इस मामले में 19 अगस्त को एक एफआईआर भी दर्ज कराई थी। लेकिन तुरंत इस प्रकरण की सच्चाई सामने निकलकर आई। दरअसल, वरूण कश्यप ने पुलिस के सामने कबूल किया कि वह हिंदुओं से नफरत करता है, इसीलिए उसने सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिश की थी। पुलिस ने बताया कि बरुन जानबूझकर पीड़ित बना था और गौरक्षकों की हिंसा का शिकार होने का नाटक कर वह न सिर्फ मुंबई में बल्कि पूरे देश में सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने की कोशिश कर रहा था।

इस बीच सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स ने बरुन की इस झूठी स्टोरी से जमकर उपद्रव मचाया। बरुन कश्यप को 4 अक्टूबर 2016 को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस पर IPC की धारा 153A (समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और 182B ( झूठी एफआईआर दर्ज कराने) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

पहली बार मौका है, दूसरा संयोग है, तीसरा एक पैटर्न है और जब एक दर्जन बार हो तो क्या मतलब है?

जैसा कि स्पष्ट है, यहाँ एक निश्चित पैटर्न उभर रहा है। ये उनमें से केवल दर्जन भर घटनाएँ हैं। ‘हेट-ट्रैकर’ के माध्यम से नकली ‘हेट क्राइम’ के निर्माण के लिए ये फेक घटानएँ पूरी तरह समर्पित हैं, जो डाटा और फैक्ट को तोड़ मरोड़कर, ट्वीस्ट देकर लोगों को ठगती है और मुस्लिमों को बारहमासी पीड़ित और हिंदुओं को निर्दयी हमलावरों के रूप में चित्रित करने के लिए ऐसी घटनाओं में तमाम तरह की हेरफेर की जाती है।

वास्तविकता, हालाँकि, काफी अलग है। हमने 2016 से मुस्लिमों द्वारा किए गए हिंदुओं के खिलाफ 50 हेट क्राइम की एक सूची प्रकाशित की, जिसमें से एक या दो को छोड़कर, ऊपर वर्णित फर्ज़ी ‘हेट क्राइम’ का बहुत थोड़ा हिस्सा भी पत्रकारिता के इस गिरोह ने रिपोर्ट नहीं किया, क्योंकि यह इनके नैरेटिव को शूट नहीं करता।

इसलिए, किसी को आश्चर्य होता है कि यहाँ एंडगेम क्या है? पहला, निश्चित रूप से, सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के कार्यान्वयन को देखने की इच्छा हो सकती है, जो स्वाभाविक रूप से हिंदुओं को अपराधी और समुदाय विशेष को हर बार पीड़ित ही मानता है। कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ‘हेट क्राइम’ के लिए एक नया कानून बनाने का भी वादा किया था।

दूसरी संभावना कहीं अधिक भयावह है। मुख्यधारा के मीडिया का उद्देश्य वस्तुनिष्ठ सत्य को रिपोर्ट करना नहीं है, इसका प्राथमिक उद्देश्य उन घटनाओं से ध्यान हटाना है, जो यह फर्ज़ी नैरेटिव सेट करने वाली शक्तियाँ नहीं चाहतीं कि जनता इन पर ध्यान केंद्रित करे। इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यधारा का मीडिया इन फर्ज़ी हेट क्राइम की कहानियों को हिंदुओं के खिलाफ होने वाले वास्तविक घृणित अपराधों से ध्यान हटाने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ और किसी भी आलोचना से अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ वर्गों की विषाक्त मान्यताओं को ढालने के उद्देश्य से कर रहा है।

इन संभावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। नकली ‘हेट क्राइम’ की कहानियों में हालिया स्पाइक यौन अपराधों और मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ किए गए हेट क्राइम के साथ मेल खाता है। इस प्रकार, यह प्रतीत होता है कि इन वास्तविक घटनाओं की खबरों को दबाने के लिए नकली हेट क्राइम की फर्ज़ी कहानियों का आविष्कार किया जाता है।

इसमें राजनीतिक मंशा भी शामिल है। लेकिन यह तथ्य है कि फर्ज़ी हेट क्राइम की घटनाएँ हिंदुओं के खिलाफ की गई हेट क्राइम की श्रृंखला से अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं, यह पैटर्न वास्तव में गहरी चिंता का विषय है।

CM आदित्यनाथ योगी का आदेश, 9 बजे तक दफ़्तर पहुँच जाएँ वरना नपेंगे अफसर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश सरकार के सभी अधिकारियों को सुबह नौ बजे तक कार्यालय पहुँचने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री का सख़्त आदेश है कि प्रदेश के सभी कार्यालयों में इस नियम का कड़ाई से पालन किया जाए। इस जानकारी को ट्विटर पर शेयर किया गया है, इसमें साफ़तौर पर लिखा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने सूबे के अधिकारियों-ज़िलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को हर हाल में सुबह नौ बजे तक दफ़्तर पहुँचने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने सख़्त निर्देश दिए कि सभी अधिकारी तत्काल प्रभाव से इसका पालन करें और ऐसा नहीं होने पर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है। 

ख़बर के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरिद्वार प्रवास के दौरान अलकनंदा घाट के किनारे यूपी पर्यटन निगम द्वारा निर्माणाधीन पर्यटक गृह भागीरथी का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने अधिकारियों से इसके डिज़ाइन को लेकर जानकारी प्राप्त की। बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने 29 मई 2018 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की उपस्थिति में अलकनंदा होटल के पास अलकनंदा घाट के किनारे 41 करोड़ की लागत से बनने वाले 100 कमरों के पर्यटक आवास गृह भागीरथी की आधारशिला रखी थी।

लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का कड़ा रुख़ देखने को मिल रहा है। प्रदेश में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए उन्होंने एक के बाद एक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अभी हाल ही में उन्होंने पुलिस विभाग को भी फ़टकार लगाते हुए सख़्त रवैया अपनाया था। आज़मगढ़ ज़िले की समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा था कि पुलिस प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि वर्दी के नाम पर कलंक बन चुके पुलिसकर्मियों के लिए विभाग में कोई जगह नहीं है।

कड़ा रुख़ अपनाते हुए उन्होंने 50 के पार हो चुके नकारा पुलिसकर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का रास्ता दिखा दिया था। इसी संदर्भ में एडीजी स्थापना पीयूष आनन्द ने पुलिस की सभी इकाईयों के प्रमुखों, सभी आईजी रेंज और एडीजी ज़ोन को ऐसे नकारा पुलिसवालों की सूची 30 जून तक भेजने का पत्र लिखा है।

इसके अलावा यूपी के सीएम ने भ्रष्टाचार और बेईमान अफ़सरों के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाते हुए फ़रमान जारी किया था कि ऐसे अधिकारियों के लिए सरकार में कोई जगह नहीं है। भ्रष्ट और बेईमान अधिकारियों के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि ऐसे अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले अन्यथा उन्हें सेवानिवृत्ति के लिए बाध्य कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के सख़्त रवैये के बाद सचिवालय प्रशासन द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के लिए 30 भ्रष्ट अधिकारियों के नाम छाँटे जा चुके हैं।

पहली पत्नी के मरने पर शकील अंसारी ने की 4 महीने में 2 नई शादी: बेटी को घर से निकालने के लिए की मारपीट

दिल्ली में एक 55 वर्षीय व्यक्ति ने अपनी ही बेटी को घर से निकाल बाहर करने की कोशिश की है। यह हाल ही में रणवीर सिंह की आई फ़िल्म ‘गल्ली बॉय’ की कहानी नहीं है बल्कि एक वास्तविक ख़बर है। ‘गल्ली बॉय’ में आफताब अहमद (विजय राज) एक जवान बेटा होने के बावजूद दूसरी बीवी ले आते हैं और इस कारण से उनकी बीवी और बेटे मुराद अहमद (रणवीर सिंह) को दूसरे घर में रहना पड़ता है। खैर, यह कहानी तो मुंबई की थी और थी भी तो फिल्मी थी। लेकिन ताज़ा ख़बर नोएडा से है।

नोएडा के मोहम्मद शकील अंसारी ने अपनी 28 साल की बेटी पर हमला किया और उसके साथ गाली-गलौज भी की। इतना ही नहीं, उसने अपने बेटी-दामाद को तुरंत घर छोड़ कर चले जाने को कहा। आरोपित की बेटी ने कहा कि उनकी माँ की मृत्यु इस साल फ़रवरी में हो गई थी। इसके तुरंत बाद उसके पिता ने 16 वर्षीय लड़की शहनाज़ के साथ शादी की। इस सप्ताह अंसारी ने अचानक बताया कि उसने एक और लड़की से शादी कर ली है और घर में 2 बीवियों के लिए पर्याप्त जगह बनाने के लिए बेटी-दामाद को घर से निकलना होगा।

बहलोलपुर गाँव निवासी आरोपित मोहम्मद शकील अंसारी दुकानदार है। उसकी बेटी ने बताया उन्हें उनके पिता की दूसरी शादी के बारे में तभी पता चला जब वह शहनाज़ को घर लेकर आए। इसके बाद वह व्यक्ति अपनी बेटी से लगातार कहने लगा कि उसे उसकी बीवी के लिए घर में पर्याप्त जगह चाहिए, इसीलिए बेटी-दामाद को जाना होगा। लेकिन बेटी-दामाद का मानना था कि यह शादी उनके परिवार की प्रतिष्ठा के खिलाफ है और लोग इसे ग़लत नज़रों से देख रहे हैं।

पीड़िता जन्नती ने अपनी शिकायत में कहा कि उनके पिता ने उनके साथ मीरपीट भी की। दामाद ने बताया कि 2007 में जब यह प्लॉट ख़रीदा गया था, तब उन्होंने 2 लाख रुपए दिए थे और घर बनाने के लिए बाद में 5 लाख रुपए और दिए।

इस बीच आरोपित अंसारी का कहना है कि उसकी दूसरी बीवी शहनाज़ दूकान पर ही रहती है, जबकि तीसरी वाली (नई शादी, जो इस हफ्ते की) घर में रहेगी। बेटी-दामाद की शिकायत पर पुलिस ने अंसारी को हिरासत में ले लिया है।

बाइकसवार तय्यब खान और शाहिद ने मीडियाकर्मियों पर चलाई गोली, गिरफ्तार

दिल्ली में एक न्यूज़ चैनल क्रू पर हमला करने के मामले में तय्यब खान और शाहिद को गिरफ्तार कर लिया गया है। दो सप्ताह पहले इन दोनों ने एक न्यूज़ चैनल के क्रू पर बारापुला में हमला किया था

डीसीपी राम गोपाल नायक की टीम ने इन दोनों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। दोनों पर डकैती और लूटपाट के अनेक मामले पहले से दर्ज हैं। जून 9, 2019 को आधी रात के समय जर्नलिस्ट सिद्धार्थ पुरोहित, कैमरामैन अरविन्द कुमार और ड्राइवर चन्दर सेन कार से एक मर्डर स्टोरी को कवर करने प्रताप नगर जा रहे थे।

जैसे ही वे सूचना भवन के आगे बढ़े, मोटरसाइकिल पर सवार दो व्यक्तियों ने उनपर गोली दागनी शुरू कर दी। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम से आगे जाते ही मोटरसाइकिल सवार ने कार का पीछा करना बंद दिया। पुलिस में इस गोलीबारी की घटना की शिकायत दर्ज होने पर 19 पुलिसकर्मियों की एक विशेष टीम बनाई गई।

घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले गए। आईएनए मार्केट के पास पिकेट पर तैनात पुलिसकर्मियों को भी निलंबित कर दिया गया है। क्योंकि उन्होंने पीड़ित मीडिया कर्मियों की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया था। 

पुलिस ने काफी मशक्क्त के बाद तय्यब खान और शाहिद को पकड़ा। इन दोनों ने स्वीकार किया कि लूटपाट के इरादे से इन्होंने मीडिया कर्मियों की कार पर गोली चलाई थी। पुलिस वारदात में प्रयोग किए गए हथियार को खोजने में जुटी हुई है।  

2 से अधिक संतान वाले नहीं लड़ पाएँगे पंचायत चुनाव, उत्तराखंड में पास हुआ विधेयक

उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार (जून 26, 2019) को एक विधेयक पारित हुआ, जिसके मुताबिक 2 से अधिक संतान वाले लोग अब पंचायत का चुनाव नहीं लड़ पाएँगे। इस विधेयक में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता भी तय की गई है और इसे अब पंचायत चुनाव से पहले राज्यपाल की मंजूरी मिलने की उम्मीद है।

पंचायत राज अधिनियम 2016 (संशोधन) विधेयक के जरिए राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव जीतने के बाद यदि किसी प्रतिनिधि की तीसरी संतान होती है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी

गौरतलब है कि उत्तराखंड में पंचायत के चुनाव इस वर्ष के अंत में होने हैं। ऐसे में इस विधेयक के पारित होने पर संसदीय कार्य मंत्री मदन कौशिश ने कहा है कि विधेयक का उद्देश्य परिवार नियोजन को बढ़ावा देना और उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को निर्धारित करना है।

नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक उन्होंने बताया है कि इस विधेयक में सभी पंचायत सदस्यों की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई है। इसके अनुसार सामान्य वर्ग के लिए न्यूनतम योग्यता कक्षा 10 है जबकि अनसूचित जाति और अनसूचित जनजाति की श्रेणियों में पुरूषों के लिए न्यूनतम योग्यता कक्षा 8 और महिलाओं के लिए कक्षा 5 है।

साथ ही यह विधेयक किसी भी पंचायत सदस्य को एक साथ 2 पद संभालने की अनुमति नहीं देता है। कौशिक के मुताबिक यह एक सुधारवादी विधेयक है और इसे ज़मीनी निकायों में सुधार के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए।

बता दें कि सदन में मंगलवार (जून 25, 2019) को यह बिल पेश होने के बाद, विपक्ष के विरोध के बीच सरकार ने इस विषय पर विधिक राय ली। बुधवार को विधायक केदार सिंह रावत ने संशोधन प्रस्ताव रखे, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया, इसके बाद संशोधन विधेयक ध्वनिमत से पारित हुआ।

तबरेज का बदला! ओवैसी की पार्टी के नेता गाँव में दे रहे रेप की धमकी, मंदिर को किया क्षतिग्रस्त, 34 महिलाओं की FIR

एआईएमआईएम के कुछ लोगों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने का मामला सामने आया है। बता दें कि एआईएमआईएम असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी है। मामला झारखण्ड के सरायकेला का है। यहाँ ओवैसी की पार्टी के नेताओं ने महिलाओं के साथ गाली-गलौज किया और फिर रेप करने की धमकी तक की। एआईएमआईएम के नेताओं ने लूटमार की भी कोशिश की। बता दें कि सरायकेला में ही तबरेज अंसारी नामक व्यक्ति की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई थी। गाँव की 34 महिलाओं ने थाने में आवेदन देकर शिकायत की है कि ओवैसी की पार्टी के लोगों ने उनके साथ गुंडागर्दी की। यह घटना सोमवार (जून 24, 2019) की है।

चारपहिया वाहनों से पहुँचे आरोपितों ने महिलाओं से लूटपाट की, रेप और बम से उड़ा देने की धमकी भी दी। वे लोग जिस वाहन से गाँव में पहुँचे थे, उस पर भी ओवैसी की पार्टी का बोर्ड लगा हुआ था। हमले के दौरान उन्होंने मंदिर के ध्वज को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। पूरी घटना के दौरान वो लोग आफताब अहमद सिद्दीकी जिंदाबाद, असदुद्दीन ओवैसी जिंदाबाद के नारे भी लगाते रहे। महिलाओं ने अपनी शिकायत में कहा कि उनकी इस गुंडागर्दी से गाँव में दहशत का माहौल है और पुरुष घरों को छोड़ कर पलायन कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बीते 17 जून को हुई घटना के बाद ऐसे लोगों की गुंडागर्दी काफ़ी बढ़ गई है। क्षेत्र के बुद्धिजीवी भी इन पर लगाम लगाने की माँग कर रहे हैं। गाँव में पुरुषों की हालत यह है कि उन्हें छिप कर रहना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर कई भड़काऊ बातें फैलाई जा रही हैं और भीड़ द्वारा हत्या वाली वीडियो को एडिट कर-कर के शेयर किया जा रहा है। ओवैसी की पार्टी के नेताओं द्वारा बलात्कार की धमकी देना इसी क्रम में हुई एक घटना है। इसके अलावा लोगों में पुलिस की धर-पकड़ का भी ख़ौफ़ है।

स्थानीय भाजपा नेताओं ने कहा है कि दोनों पक्षों को भड़काया जा रहा है। भाजपा जिलाध्यक्ष ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि निर्दोषों पर कार्रवाई की जा रही है और दोषियों को नहीं पकड़ा जा रहा है। गाँव के लोगों की माँग है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को कुछ दिनों तक गाँव में प्रवेश करने की अनुमति न दी जाए। वहीं कॉन्ग्रेस के स्थानीय नेताओं ने कहा कि भीड़ द्वारा हत्या की वारदातें भाजपा सरकार की देखरेख में ही हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी संरक्षण के कारण ऐसी घटनाएँ दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही हैं।

न्यूज़ 18 की ख़बर के अनुसार, ओवैसी की पार्टी के नेता कुल 30 गाड़ियों से आए थे, ताकि गाँव में दहशत फैलाई जा सके। बता दें कि तबरेज आलम की चोरी के शक में हत्या कर दी गई थी, उसके बाद से ही माहौल यहाँ गर्म है। ग्राम प्रधान का कहना है कि तबरेज के साथ कई अन्य चोर भी आए थे, जो भाग गए लेकिन तबरेज धर लिया गया। असदुद्दीन ओवैसी इस मामले पर संसद से लेकर मीडिया तक में आवाज़ उठा चुके हैं और मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस घटना को हेट क्राइम करार दिया गया है।

महुआ मोइत्रा, देश में फ़ासीवाद ‘घुसता’ दिख गया, बंगाल में फासीवाद का नंगा नाच नहीं दिखा?

तृणमूल की नवनिर्वाचित सांसद और पूर्व इन्वेस्टमेंट बैंकर महुआ मोइत्रा ने लोक सभा में अपना पहला भाषण देते हुए देश में ‘फ़ासीवाद के पैर पसारने’ के ‘सात चिह्न’ गिनाए। इसमें नया कुछ नहीं था- वही पुराना रोना-गाना जिससे पिछले पाँच साल में एनडीटीवी-वायर गिरोह का रोटी-पानी चला और महुआ मित्रा और उनके जैसे ‘लिबरल, सेक्युलर नेताओं’ ने वोट बटोरे। लेकिन दिलचस्प बात यह है उनके इस भाषण में कि वह ममता बनर्जी की पार्टी से हैं- और तृणमूल कॉन्ग्रेस का किसी को फ़ासीवाद पर लेक्चर देना ‘सूप बोले तो बोले, छलनी क्या बोले जिसमें खुद ही बहत्तर छेद’ की मिसाल पर आराम से फिट बैठेगा।

पिछले दिनों ममता बनर्जी के तानाशाही रवैये ने जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल ही नहीं, पूरे देश में एक मेडिकल संकट की स्थिति केवल अपनी अकड़ और अपने तुष्टिकरण से पैदा कर दी थी, वह अभी कोई नहीं भूला है। और उसी पार्टी की सांसद अगर किसी और को फ़ासीवाद का पाठ पढ़ाए, ये बताए कि मोदी सरकार की चाल-ढाल में फ़ासीवाद के ‘प्रारंभिक लक्षण’ हैं, तो यह गिनाना बनता है कि कैसे यही तथाकथित ‘प्रारंभिक लक्षण’ पश्चिम बंगाल, जो महुआ का गृह-राज्य भी है और निर्वाचन-क्षेत्र भी, में चौथी स्टेज का फासीवादी कैंसर बन गए हैं।

राष्ट्रवाद का राष्ट्रीय विमर्श में घुस जाना

पहली बात तो यह रुपए में बीस आने झूठ है हिंदुस्तान के मामले में कि राष्ट्रवाद से फासीवाद बढ़ता है, भले ही यह पाश्चात्य देशों (खासकर कि बीसवीं सदी में) के केस में सच रहा हो। कारण यह है कि भारत राष्ट्र उन बुनियादों पर नहीं खड़ा है जिनपर यूरोप के राष्ट्र-राज्य बने थे- अतः बात ही बेमानी है।

लेकिन अगर एक मिनट के लिए उनकी बात को सच मान भी लिया जाए कि भारतीय राष्ट्रवाद फ़ासीवाद का ही प्रारम्भिक रूप है, तो वह उस ‘बंगाली, गैर-हिंदुस्तानी राष्ट्रवाद’ को किस रूप में देखती हैं, जो उनकी पार्टी बंगाल में चलाती है? “अगर बंगाल में आ रहे हो तो बंगाली बोलनी ही पड़ेगी।” एक नारे (“जय श्रीराम”/”वन्दे मातरम”) के आग्रह से चिढ़ने वालीं, महुआ की सुप्रीम लीडर बंगाल में आने वाले देश के ही लोगों के लिए एक पूरी भाषा सीखना और बोलना जबरन करना चाहतीं हैं। राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेजों में गैर-बंगाल निवासियों को (यानि मोटे तौर पर गैर-बंगालियों को) प्रवेश लेने से रोकना भी महुआ की नेत्री ममता बनर्जी की ही धमकी थी, जब उनसे डॉक्टरों का प्रदर्शन संभाला नहीं गया। महुआ मित्रा को यह सब नहीं दिखा?

मानवाधिकारों के लिए तिरस्कार का भाव

पंचायतों जैसे छोटे निर्वाचन के समय ममता की विरोधी माकपा के नेता-दम्पति देबू और उषा दास को जिन्दा जला दिया जाता है; उनका बेटा घर आता है तो माँ-बाबा नहीं, जली लाशें मिलतीं हैं। तृणमूल की ही पंचायत समिति के पूर्व सदस्य और उसकी पत्नी का पार्टी वालों के साथ झगड़ा होता है, बहस हो जाती है तो खमियाजा पति को पिट कर और पत्नी को जूतों की माला पहनकर भुगतना पड़ता है। निर्वाचन अधिकारी ‘उठा’ लिया जाता है और वीभत्स लाश रेलवे ट्रैक के किनारे मिलती है। महुआ मोइत्रा के लिए इतना ‘मानवाधिकार के लिए तिरस्कार’ काफी है, या और चाहिए?

मीडिया को दबाना और झुकाना

हालाँकि यह सच है कि अभी तक किसी मुख्यधारा मीडिया के बड़े पत्रकार को ममता के कोप का भाजन नहीं बनना पड़ा है, लेकिन यह केवल वक्त की बात है- अभी तक मुख्यधारा के मीडिया ने उन्हें इतना नाराज़ नहीं किया है। जिसने किया है, जैसे प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्र जिन्होंने ममता पर बना एक कार्टून महज़ फॉरवर्ड भर कर दिया, वह जानते हैं कि क्या हो सकता है। उस समय महुआ मोइत्रा कहाँ थीं? या उस समय तक उनकी फासीवाद की परिभाषा ही अलग थी?

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ‘सनक’

एक बार फिर, पहले तो महुआ मोइत्रा का यह दावा ही गलत है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंतित होना फासीवाद है- और शर्म की बात यह है कि वह उस राज्य से आतीं हैं जिसकी पड़ोसी देशों के साथ सबसे लम्बी खुली सीमाओं में से एक है; उन्हें तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सबसे ज्यादा मुखर आवाज़ होना चाहिए था संसद में। लेकिन उनकी सुप्रीम लीडर की राजनीति ही बांग्लादेशियों को बंगाली हिंदुस्तानी बनाने के मॉडल पर कायम है।

खैर, एक बार फिर अगर उनकी इस गलत बात को सही मान भी लिया जाए तो भी इस डिपार्टमेंट में भी ममता बनर्जी का फासीवाद मोदी के किसी भी तथाकथित फ़ासीवाद को मात देता है। ममता बनर्जी ने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की देखा-देखी ‘राज्य सुरक्षा सलाहकार’ का न नया केवल नया पद निर्मित कर डाला, जो कि अपने आप में देश में पहली बार हुआ, बल्कि उसे इतनी ताकतें दे दीं कि राज्य सुरक्षा सलाहकार राज्य का प्रॉक्सी गृह मंत्री हो गया। महुआ मोइत्रा ‘राज्य की सुरक्षा’ के नाम पर चल रही इस सनक के बारे में क्या कहेंगी?

मज़हब और शासन का घालमेल

इसमें तो मैं हाइपरलिंक भी नहीं दूँगा, यह इतना जाना-माना चेहरा है महुआ मोइत्रा की सुप्रीम लीडर का। समुदाय विशेष को खुश करने के लिए कभी राम नवमी को कभी देवी-विसर्जन में बाधा उत्पन्न करना, पुजारियों को नहीं, पर मदरसों के इमामों को खास भत्ते का प्रावधान, प्राचीन तारकेश्वर मंदिर के ट्रस्ट में एक मजहब विशेष वाले को (जिसका मज़हब उसे सीधे-सीधे इससे दुश्मनी पालने का हुक्म देता है) घुसाना- वह भी मुखिया के तौर पर, इंद्रधनुष का बांग्ला नाम ‘रामधोनु’ बदल कर न्य शब्द ‘रॉन्गधोनु’ गढ़ना… ममता बनर्जी को यूँ ही सुब्रमण्यम स्वामी ने ‘जिहादी दीदी’ नहीं कह दिया था!

बौद्धिकों और कला के लिए घृणा

ऊपर अम्बिकेश महापात्र का उदाहरण आप को विस्मृत नहीं ही हुआ होगा। इसके अलावा प्रियंका शर्मा, भाजयुमो नेत्री का बनाया मीम तो ममता बनर्जी से बर्दाश्त हुआ नहीं। अपनी सरकार की आलोचना करने वाली फिल्म को भी उन्होंने प्रतिबंधित कर दिया। महुआ मोइत्रा बौद्धिकों की बात करना चाहतीं हैं? तस्लीमा नसरीन को माकपा से ज्यादा दुर्व्यवहार तृणमूल के समय में बंगाल में झेलना पड़ा, क्योंकि वह इस्लाम के खिलाफ किताबें लिखतीं हैं। तृणमूल की आलोचना करने वाली टीना बिस्वास ने अपनी किताब के कोलकाता लॉन्च में उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अपनी मुस्लिम नीति की आलोचना करने वाली किताब को भी प्रतिबंधित कर दिया, जबकि उसके लेखक नज़रुल इस्लाम एक मुस्लिम और आईपीएस हैं। महुआ मोइत्रा को इसमें कला के प्रति सम्मान दिख गया या बौद्धिकता के प्रति?

राजनीतिक तंत्र में स्वतंत्रता का क्षरण

इससे ज्यादा दोहरापन क्या हो सकता है कि जिसके राज्य में, जिसकी पार्टी के शासन में एक-तिहाई पंचायतों में (सत्ताधारी दल के डर से) निर्विरोध निर्वाचन होते हों, विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं की लाशें किसी काले, मध्ययुगीन समय की तरह पेड़ों से लटकी मिलें, यहाँ तक कि निर्वाचन अधिकारी भी दिनदहाड़े गायब हो जाते हों, वह दूसरों के राजनीतिक स्वतंत्रता के प्रति आचरण पर बात करने की जुर्रत करे? महुआ मोइत्रा अगर अपनी पार्टी के गिरेबान में झाँक लें तो शायद राजनीतिक स्वतंत्रता पर दूसरों को उपदेश देने के बाद वह संसद आना तो दूर, घर से निकलने में शर्माएँ!

दिल तो कर रहा है कि महुआ मोइत्रा से पूछ लूँ कि कौन सा महुआ पीकर उन्होंने मोदी के तथाकथित ‘आते हुए फ़ासीवाद’ पर सवाल उठाए थे, जब उनका खुद का राज्य, उनकी खुद की पार्टी की सुप्रीम लीडर की जूतियों तले असली फासिस्ट स्टेट न केवल आ चुका है, बल्कि उसके हाहाकार से पूरा बंगाल त्रस्त भी है। लेकिन फिर याद आता है कि ठीक यही तंज कसे जाने पर महुआ ने बाबुल सुप्रियो को अपनी शीलता के अपमान की पुलिस कंप्लेंट कर दी थी। अतः मैं यह नहीं पूछूँगा। बल्कि आरोप लगाऊँगा कि पुलिसिया हथकण्डे अपनाने वाली महुआ मोइत्रा मिज़ाज से अपनी सुप्रीम लीडर से कोई कम फासीवादी नहीं हैं।

मूसा का बदला: 290 आतंकी बैठे हैं अमरनाथ यात्रा समेत सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए, अलर्ट जारी

एक जुलाई से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा पर आतंकी साया मंडरा रहा है। इस बारे में सुरक्षा एजेंसियों ने खुफिया इनपुट मिलने के बाद सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त कर दी है। दक्षिण कश्मीर में अमरनाथ की तीर्थयात्रा शांतिपूर्ण रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए इस साल जम्मू-कश्मीर को अतिरिक्त केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल उपलब्ध कराया गया है। 

प्राप्त खुफिया इनपुट के अनुसार, भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा खासतौर पर प्रशिक्षित 34 पाकिस्तानी आतंकियों समेत 290 आतंकी तैयार बैठे हैं। यह भी आगाह किया गया है कि अमरनाथ यात्रा शुरू होते ही आतंकी सुरक्षा बलों को निशाना बना सकते हैं।

जाकिर मूसा का बदला लेने की कर रहे हैं तैयारी

रिपोर्ट्स के अनुसार, खुफिया इनपुट में बताया गया है कि इन आतंकियों में 130 लश्कर-ए-तैयबा, 103 हिजबुल मुजाहिदीन और 34 जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी हैं। इनके अलावा ISIS (जम्मू-कश्मीर) के 2 और अल बदर के 5 आतंकी शामिल हैं। बताया गया है कि अल कायदा की भारतीय ईकाई अंसार गजवातुल हिंद के 3 आतंकी भी जाकिर मूसा के मारे जाने का बदला लेने की फिराक में हैं। ये वही जाकिर मूसा है जिसे सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया था, उसके बाद से ही अंसार गजवातुल हिंद बदला लेने पर उतारू है। सुरक्षा बलों ने इन खुफिया इनपुट्स के बाद अमरनाथ यात्रा को लेकर चौकसी कड़ी कर दी है।

सुरक्षा कारणों से जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा लंगर सामग्री लेकर जा रहे ट्रकों को रोका जा रहा है। उन्हें सड़क किनारे लगवाकर खड़ा कर दिया गया है। वहीं, ट्रकों को रोके जाने की वजह भी नहीं बताई जा रही। बालटाल और पहलगाम में लगाए जाने वाले लंगर की सामग्री से भरे ट्रकों को जम्मू-कश्मीर पुलिस 20 से 22 घंटे के लिए जगह-जगह पर रोक रही है।

इस साल अब तक 115 आतंकी भेजे जा चुके हैं जहन्नुम

आतंकवादियों में डर का माहौल देखने को साफ़ मिल रहा है और वो घबराए हुए भी हैं। इस साल अब तक 115 आतंकी विभिन्न मुठभेड़ों में ढेर किए जा चुके हैं। मुठभेड़ में मारे गए ज्यादातर आतंकी जैश-ए-मोहम्मद के हैं। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक प्रयासों के तहत जैश चीफ मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित कराने में सफलता हासिल की है। यही नहीं, इस साल सुरक्षा बलों ने जैश के 36 आतंकियों को ढेर करने में भी सफलता हासिल की है।

वहीं, अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर जम्मू रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि श्रद्धालु बिना किसी डर के धार्मिक यात्रा पर आएँ क्योंकि राज्य में सुरक्षा स्थिति देश के बाकी क्षेत्रों जितनी ही अच्छी है।

तबरेज़ के अब्बू मस्कूर को भी चोरी करते पकड़े जाने पर भीड़ ने मार डाला था: रिपोर्ट

झारखण्ड में बाइक चोरी के आरोप में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डाले गए तबरेज़ अन्सारी के बारे में नई-नई खबरें निकल कर सामने आ रहीं हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक तबरेज़ के अब्बू मस्कूर अंसारी को भी लगभग 15 साल पहले ऐसे ही मार डाला गया था। मस्कूर अंसारी को कथित तौर पर भीड़ ने जमशेदपुर के बागबेड़ा में चोरी करते हुए पकड़ लिया था और पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

‘मैं गया था मस्कूर की लाश लाने’: कॉन्ग्रेस नेता

कॉन्ग्रेस नेता और पार्टी की जिला यूनिट के महासचिव मोहम्मद मुसाहिद खान बताते हैं कि मस्कूर की लाश गाँव में वापस लाने वह खुद जमशेदपुर गए थे। उनके अनुसार उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मस्कूर का गाँव से ही संबंध था। बागबेड़ा पुलिस स्टेशन में एक केस भी उस समय दायर किया गया था। पुलिस अब उस केस की भी विस्तारपूर्वक जानकारी निकलवाने में जुटी है।

रिपोर्ट के मुताबिक गाँव के दो 70+ वर्षीय वृद्धों ने भी खान के बयान का समर्थन किया है। उन्होंने जाँच एजेंसियों की पूछताछ से बचने के लिए अपने नाम बताने से मना कर दिया। इसके अलावा तबरेज़ के घर से महज़ 100 मीटर दूर जामा मस्जिद की सड़क के दूसरी ओर रहने वाली उनमें से एक वृद्धा ने यह भी बताया कि भीड़ ने पकड़ने के बाद मस्कूर की बेरहमी से पिटाई की थी और गला रेत कर हत्या कर दी थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि जब मस्कूर की लाश लाई गई थी तो वह वहीं मौजूद थीं।

‘अभी भी याद है’

TOI के अनुसार बागबेड़ा में अभी भी कुछ लोगों के ज़ेहन में यह घटना ताज़ा है। नवंबर 2004 में हुई इस नृशंस हत्या के बारे में TOI से स्थानीय नेता सुबोध कुमार झा ने बात की। “एक दिन रामनगर के निवासियों ने एक आदमी को पकड़ लिया और गुस्साई भीड़ ने पीट-पीट कर उसे मार डाला।”

VIDEO: पाक के LIVE न्यूज शो में घमासान मल्लयुद्ध, नेता ने कर दी जर्नलिस्ट की कुटाई

जिस तरह से न्यूज़ चैनल्स पर ‘डिबेट कल्चर’ चल रहा है, ऐसे में न्यूज़ चैनल्स पर कौन कब अपना धैर्य खो दे, यह कहा नहीं जा सकता है। लेकिन यह किस्सा अपने देश की मीडिया का नहीं बल्कि रुपयों और ‘टिमाटर’ की किल्लत से जूझते हुए पाकिस्तान के एक न्यूज़ चैनल का है।

पाकिस्तान में एक न्यूज चैनल का स्टूडियो तब अखाड़े में तब्दील हो गया, जब सत्ताधारी पार्टी PTI के एक नेता ने पैनल में शामिल एक वरिष्ठ पत्रकार को पीट दिया। दुखद बात यह है कि यह सब कुछ लाइव न्यूज शो के दौरान हुआ और अब इस निंदनीय घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

पत्रकार कर रहे थे इमरान खान सरकार की खिंचाई, फिर छिड़ा मल्ल्युद्ध

यह निंदनीय मामला गत 20 जून का है, जब कराची के एक चैनल ‘के 21 न्यूज‘ पर ‘न्यूज लाइन विद आफताब मुघेरी‘ शो चल रहा था। वीडियो में हम देख सकते हैं कि इसमें जर्नलिस्ट इमरान खान सरकार की जमकर खिंचाई कर रहा था, वहाँ बैठे सत्ताधारी PTI के सीनियर नेता मसरूर अली सियाल से ये देखा नहीं गया और वरिष्ठ पत्रकार इम्तियाज़ खान की तुरंत धुनाई शुरू कर दी। इम्तियाज़ खान कराची प्रेस क्लब के प्रेजीडेंट भी हैं। और यह सब लाइव चलता रहा। पाकिस्तानी पत्रकार नायला इनायत ने इसका वीडियो शेयर किया।

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि पीटीआई नेता बार-बार अपनी सीट से उठ कर धमकी भरे लहजे में कराची प्रेस क्लब के अध्यक्ष (पत्रकार) से बात कर रहे हैं। लेकिन, इसके बाद हद तब पार हो गई जब सियाल ने पत्रकार की धुनाई शुरू कर दी। पत्रकार को धक्का देकर फर्श पर गिरा दिया और पहले लात और फिर बाद में हाथ से पिटाई करने लगे। बाद में चैनल के बाकी लोगों ने बीच-बचाव का काम किया। इस घटना के बाद पीटीआई की काफी आलोचना हो रही है। 

पाकिस्तानी पत्रकार नायला इनायत ने डिबेट शो में मल्लयुद्ध के वीडियो को ट्विटर पर शेयर करते हुए इमरान खान के ‘नया पाकिस्तान’ दावे पर पर तंज कसा है। उन्होंने लिखा, “क्या यही नया पाकिस्तान है? पीटीआई के मसरूर अली सियाल ने कराची प्रेस क्लब के अध्यक्ष इम्तियाज खान पर लाइव न्यूज शो के दौरान हमला कर दिया।”

देखिए यह पूरा निंदनीय तमाशा इस वीडियो में-