पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसाओं का दौर थमता नज़र नहीं आ रहा है। पंचायत चुनाव के दौरान बड़े स्तर पर हिंसा हुई थी, हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान भी हिंसा की वारदातें बढ़ती चली गईं। जैसा कि अब सर्वविदित हो चुका है, इस हिंसा में मरने वाले अधिकतर भाजपा कार्यकर्ता हैं। अधिकतर मामलों में यह एकपक्षीय हिंसा रही है, जहाँ तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने भाजपा वालों को मार डाला। कहीं ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए किसी को पेड़ से लटका दिया गया तो कहीं अपने बूथ पर भाजपा को बढ़त दिलाने के लिए कार्य करने का परिणाम किसी भाजपा कार्यकर्ता को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। अब सवाल यह उठता है, हिंसा का यह दौर कब थमेगा?
ममता बनर्जी की पार्टी को इन हिंसक वारदातों के लिए सजा मिली और राज्य में पार्टी का एकछत्र वर्चस्व था, वहाँ भाजपा को 18 सीटें मिलीं। लोकसभा चुनाव में तृणमूल और भाजपा- दोनों का ही वोट शेयर प्रतिशत लगभग सामान रहा। दोनों ही दलों को 40.3% मत मिले। हालाँकि, तृणमूल कॉन्ग्रेस 22 सीटें जीत कर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी तो अभी भी है, लेकिन अब उसके प्रदर्शन में वो बात नहीं रही, जो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले थी। भाजपा को जितनी सीटें मिलीं, उतने की उम्मीद शायद पार्टी को भी न रही हों। कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष और मुकुल रॉय सहित अन्य नेताओं की मेहनत रंग लाई और भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपना पाँव ऐसा जमाया कि तृणमूल के पाँव उखड़ने लगे।
यह कैसे संभव हुआ? यह किसने किया? यह किसके भरोसे के कारण साकार हो सका? इसके पीछे कौन लोग हैं? मोदी-शाह का चेहरा भले ही वोट आकर्षित करने के मामले में आज टॉप पर हो, लेकिन बंगाल में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय जाता है उन कार्यकर्ताओं को, जिन्होंने अपनी जान हथेली पर रख कर भाजपा के लिए काम किया। जहाँ किसी कार्यक्रम में ‘जय श्री राम’ का नारा लगा देने भर से तृणमूल के गुंडे नाराज़ होकर किसी की हत्या कर देते हों, वहाँ किन परिस्थितियों में कार्यकर्ताओं ने काम किया होगा, यह सोचने वाली बात है। राष्ट्रीय मीडिया बंगाल में उस तरह से सक्रिय नहीं है, जितना कि हिंदी बेल्ट में। कई ख़बरें तो हम तक पहुँचती ही नहीं।
जब अमित शाह जैसे देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक की रैली में आगजनी की जा सकती है, तो सोचिए कि वहाँ एक सामान्य नेता व कार्यकर्ता के साथ क्या कुछ किया जाता होगा। इन सबके बीच अगर किसी कार्यकर्ता की मृत्यु हो जाती है, उस पार्टी का फ़र्ज़ बनता है कि उस कार्यकर्ता के परिवार की देखभाल करे, उसके बच्चों की अच्छी पढ़ाई सुनिश्चित करे व परिजनों में से किसी के लिए नौकरी की व्यवस्था करे। अगर कोई दल ऐसा करने में विफल रहता है, इसका अर्थ है कि वह अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं करता। जैसा कि हमनें देखा, अमेठी में एक कार्यकर्ता की मृत्यु हो जाने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी कंधा देने पहुँची थी। इस बात की सबने तारीफ भी की।
लेकिन, भाजपा के लिए समय आ गया है कि पार्टी अब प्रतीकात्मक कार्यों से आगे बढ़े। हाँ, अगर स्मृति ईरानी जैसे क़द की नेत्री एक साधारण कार्यकर्ता के शव को कंधा देने पहुँचती हैं तो अन्य कार्यकर्ताओं में यह भरोसा जगता है कि पार्टी का शीर्ष आलाकमान उनके लिए सोच रहा है और उनके साथ खड़ा है, लेकिन अगर उसी पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार है, तो यह फ़र्ज़ भी उसी दल का है कि जल्द से जल्द न्यायिक प्रक्रिया पूरी की जाए। हाँ, अधिकतर मुख्य राजनीतिक दलों के पास रुपयों की कमी नहीं है, इसीलिए किसी कार्यकर्ता की हिंसा के दौरान हुई मृत्यु के बाद परिजनों के सुख-दुःख का ख्याल रखने पर भी उसी दल की जवाबदेही बनती है, जिसके लिए उसनें जान दी।
हो सकता है कि 2014 से पहले बंगाल या केरल जैसे जगहों पर भाजपा असहाय रही हो। हो सकता है कि पार्टी नेताओं की बातें उस समय की सरकारें अनसुनी कर देती हों। लेकिन, अब जब जनता ने उसे विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल का दर्जा दिला दिया है, यह भाजपा का कर्तव्य है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि कार्यकर्ताओं की जानें नहीं जाएँ। आज देश में पूर्ण बहुमत की सरकार है, अधिकतर राज्यों में राजग की सरकारें चल रही हैं। भाजपा अब बेचारी नहीं है और न ही उसे ऐसा दिखावा करना चाहिए। भाजपा के पास अब कोई वजह नहीं है, कोई अधिकार नहीं है, कि पार्टी अब बेचारी होने का दिखावा करे।
अब एक्शन लेने का समय है। पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और नरेन्द्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, वो भी पिछली बार से भी अधिक वोट शेयर और सीटों के साथ। यह बहुमत झुनझुना बजाने के लिए नहीं मिला है। विकास के मुद्दों पर अच्छा कार्य कर रही मोदी सरकार को जनता ने स्वीकार किया है तो भाजपा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने भी दोगुनी मेहनत की है। यह सब सिर्फ़ इसीलिए, क्योंकि उन्हें भाजपा पर भरोसा है। यह भरोसा टूट जाएगा, अगर कार्यकर्ता मर रहे हों और पार्टी अध्यक्ष सोते रहें। आज अमित शाह गृह मंत्री हैं, मोदी के बाद देश में शायद ही कोई उनसे ज़्यादा ताक़तवर नेता हो, अब एक्शन लेने का समय है, अपराधियों को जेल पहुँचाने का समय है।
क्या गृह मंत्रालय एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसक वारदातों की तेज़ी से एक समय-सीमा के भीतर जाँच करा कर दोषियों को सलाखों के पीछे नहीं पहुँचा सकता? क्या भाजपा जैसी अमीर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के केस लड़ने के लिए अदालत में अच्छे और कुशल वकील नहीं खड़ा कर सकती? क्या मोदी सरकार बड़ी संख्या में अतिरिक्त अर्धसैनिक बल भेज कर स्थिति को नियंत्रण में नहीं कर सकती? अगर राजनीतिक हिंसा की वारदातें हो रही हैं, लगातार हो रही हैं, तमाम विरोधों के बावजूद बार-बार हो रही हैं, और इसके रुकने के दूर-दूर तक कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, तो इसमें ग़लती भाजपा की भी है, केंद्र सरकार की भी है।
आज बंगाल में तृणमूल के लोग भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। एक-एक कर कई नेता पार्टी में शामिल हो रहे हैं। क्या भारतीय जनता पार्टी इस बात को सुनिश्चित कर रही है कि पार्टी ज्वाइन करने वाले ऐसे तृणमूल नेताओं पर भाजपा कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा करने के कोई आरोप नहीं हैं? या फिर हर उस नेता का पार्टी में स्वागत किया जा रहा है, जो तृणमूल छोड़ कर आ रहा हो? कार्यकर्ताओं ने ऐसी बातें उठाई हैं, जहाँ भाजपा में शामिल हो रहे सैकड़ों काउंसलर, नेता, विधायक और कार्यकर्ताओं में से कई ऐसे भी शामिल हैं, जिन पर भाजपा कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा के आरोप रहे हैं। भाजपा में आकर वे सारे पवित्र नहीं हो सकते। अगर इसमें लेशमात्र भी सच्चाई है तो यह कार्यकर्ताओं के साथ धोखा है। भाजपा में शामिल होने वाले एक-एक तृणमूल नेताओं का बैकग्राउंड चेक किया जाए।
अगर गृह मंत्रालय कोई उच्च स्तरीय कमेटी बना कर राजनीतिक हिंसक वारदातों की जाँच नहीं करवा रहा है, तो यह न सिर्फ़ भाजपा के मतदाताओं बल्कि जनता के लिए धोखा है। अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बिना देखे-समझे किसी भी तृणमूल नेता का पार्टी में स्वागत कर रहा है, तो यह हिंसक परिस्थितियों में पार्टी के लिए खून बहाने वाले कार्यकर्ताओं के लिए धोखा है। अगर भाजपा मारे गए व घायल हुए कार्यकर्ताओं के लिए अच्छे वकील नहीं खड़ा कर रही है, तो यह पार्टी के कार्यकर्ताओं व उनके परिजनों के साथ धोखा है। अगर मृत कार्यकर्ताओं के परिजनों व बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और कुछ प्रतीकात्मक चीजों (जैसे शपथग्रहण समारोह में बुलाना) से काम चलाया जा रहा है, तो यह उन हजारों कार्यकर्ताओं के लिए धोखा है, जो जान हथेली पर लिए घूमते हैं।
बंगाल में जनता ने अपना काम कर दिया है, कार्यकर्ताओं ने अपना काम कर दिया है। 18 सांसदों के साथ भाजपा को एक बड़ी ताक़त जनता के विश्वास और कार्यकर्ताओं की मेहनत ने बनाया है, अब भाजपा को अपना काम करना है। भाजपा को यह सुनिश्चित करना है कि और नए कार्यकर्ताओं की जानें जाएँ, जिसे करने में वह विफल रही है। भाजपा को यह सुनिश्चित करना है कि जो भी कार्यकर्ता मारे गए हैं, उन्हें न्याय मिले, दोषियों को सज़ा मिले, जो वह करती नहीं दिख रही है। अगर भाजपा की राज्य या केंद्र में सरकार बनती है, तो यह उन कार्यकर्ताओं के लिए न्याय नहीं है। यह भाजपा की सफलता है, जिसके लिए उन कार्यकर्ताओं ने मेहनत की है। अब भाजपा की बारी है- उन कार्यकर्ताओं के लिए मेहनत करने की।
अगर 18 सांसदों वाली बंगाल भाजपा को एक अलग दल के रूप में देखें, तो यह लोकसभा सीटों के मामले में देश की शीर्ष 6 पार्टियों में आती है। यह ऐसा ही है, जैसे तमिलनाडु में डीएमके कार्यकर्ताओं की लगातार हत्या होती रहे और पार्टी कुछ न कर पाए। और, भाजपा की तो केंद्र में सरकार है। वो भी पिछले 5 वर्षों से। अगर न्याय दिलाने का समय अब नहीं है तो कब आएगा? क्या कुछ और जानें जाने के बाद? क्या भाजपा को इस बात का डर है कि अगर बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग भी जाता है तो ममता बनर्जी अपने पक्ष में एक सहानुभूति वाली लहर तैयार करने में सफल हो जाएगी? क्या भाजपा को डर है कि ममता सरकार के ख़िलाफ़ केंद्र द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई से वह जनता के बीच सहानुभूति का पात्र बनने की कोशिश करेगी?
अगर यह डर एक वास्तविकता है, तो भी पहली और सर्वप्रथम प्राथमिकता मृत कार्यकर्ताओं के परिजनों को न्याय दिलाना और जो जीवित हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना होनी चाहिए। ममता सहानुभूति लहर पैदा करे या न करे, यह बाद की बात है। अभी जो हो रहा है, उसकी रोकथाम करना भाजपा का कर्त्तव्य है, केंद्र सरकार की प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए। बहते खून को नज़रअंदाज़ कर रोज़ 40 किलोमीटर सड़कें बन रही हैं, तो इसे विकास कहना ग़लत है। रिकॉर्ड किलोमीटर में सड़कें बनीं हैं लेकिन उन सड़कों पर भाजपा कार्यकर्ताओं का खून बह रहा है- इसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कैसे नज़रंदाज़ कर सकती है?
अगर रिकॉर्ड संख्या में गैस सिलेंडर बाँटे गए हैं, लेकिन कार्यकर्ता आग में जल रहे हैं, ऐसे विकास से भी कोई फायदा नहीं। विकास होता रहेगा, यह मोदी सरकार के अंतर्गत होता रहा है, लेकिन खून की कीमत पर कुछ भी जायज़ नहीं। सत्ता आएगी-जाएगी लेकिन सत्ता दिलाने वाले कार्यकर्ता नहीं रहेंगे तो भाजपा का भी वही हाल होगा, जो आज कॉन्ग्रेस का है। भाजपा देश की चुनिन्दा बड़ी पार्टियों में से एक है, जिसमें एक परिवार का राज नहीं चलता, पूर्ण लोकतान्त्रिक तरीके से कार्य होते हैं। ऐसे में, राजनीतिक हिंसक वारदातों के मामले में प्राथमिकताएँ तय करने का समय आ गया है। इसमें से बहुत समय अब बीत चुका है, अपितु अब हर एक सेकंड का विलम्ब अक्षम्य है। यह खून बहाना कैसे रोकना है, इस बारे में भाजपा और उसके नेता बेहतर समझते हैं। सवाल है, एक्शन का समय कब आएगा?