Sunday, November 17, 2024
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प्रियंका ने कार्यकर्ताओं को हार के लिए लताड़ा, कॉन्ग्रेसियों ने कहा वो बनें UP CM पद की दावेदार

लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी अपने चुनावी अभियान की समीक्षा करने में जुटी हुई है। कॉन्ग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गाँधी समीक्षा बैठक कर रही हैं। इस बैठक में पार्टी के नेताओं ने एक सुर में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपित रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी को 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की माँग की है।

कॉन्ग्रेस आभार सम्मेलन में प्रियंका गाँधी की नाराजगी दिखी, “मैं यहाँ भाषण नहीं, समीक्षा कर अपनी भावनाओं को प्रकट करना चाहती हूँ। आपने समर्थन दिया, लेकिन सच्चाई कड़वी लगेगी। इस चुनाव में रायबरेली की जनता ने सोनिया गाँधी को जिताया है। इस चुनाव में सभी कार्यकर्ताओं ने दिल से काम नहीं किया। इस चुनाव में आप सब में से जिसने दिल से काम किया है उसकी जानकारी आप सबको है। जिसने दिल से काम नहीं किया उसकी जानकारी मैं करूँगी। मैंने हमेशा कहा कि चुनाव संगठन लड़ाता है। अपना मन बना लीजिए दिल से काम करना है, तो संघर्ष करना पड़ेगा।”

बैठक में हार के लिए कमजोर संगठन को जिम्मेदार माना गया जबकि पार्टी का मानना है कि भविष्य में पार्टी को गठबंधन नहीं करना चाहिए। उत्तर प्रदेश के 40 जिलों के कॉन्ग्रेस नेताओं ने पार्टी नेतृत्व से भविष्य में अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन का विकल्प चुनने से मना किया है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया गाँधी और कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी से बुधवार को रायबरेली के गेस्ट हाउस में मिलने वाले पार्टी नेताओं ने कहा कि पार्टी को खुद अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करना चाहिए। कई कॉन्ग्रेस नेताओं ने यह भी माँग की कि 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया जाए।

बैठक में मौजूद पूर्व सांसद डॉ संजय सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, “सभी उपस्थित लोग इस बात पर एकमत थे कि हमें बिना किसी गठजोड़ के आगे बढ़ना चाहिए। हमें कॉन्ग्रेस को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने की जरूरत है।”

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वाराणसी के पूर्व सांसद और कॉन्ग्रेस नेता राजेश मिश्रा ने कहा, “ज्यादातर नेताओं का मानना है कि संगठन के कमजोर होने की वजह से पार्टी को शिकस्त का सामना करना पड़ा। राज्यभर में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए काम किया जा रहा है। हमने मिलकर काम करने का तय किया है ताकि संगठन को मजबूत और कारगर बनाया जा सके। अगर प्रियंका डोर-टू-डोर प्रचार की जिम्मेदारी संभालती हैं तो निश्चित रूप से राज्य में हमारी सरकार होगी।”

मीडिया के अनुसार, अमेठी में कॉन्ग्रेस की हार को लेकर राहुल और प्रियंका गाँधी को रिपोर्ट सौंप दी गई है। राहुल गाँधी अमेठी में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से 55,000 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ जिला अध्यक्ष ने उम्मीदवारों के चयन पर भी सवाल उठाए हैं।

कॉन्ग्रेस ने कहा ‘राहुल ही थे, हैं और रहेंगे अध्यक्ष’: भाजपा में ख़ुशी की लहर, 2047 तक रहेगी चिल्ल?

रवीश चचा खुद सूती कपड़े पहनकर भाजपा समर्थकों पर चाहे कितना भी भक्ति करने का आरोप लगाएँ, लेकिन उन्हें कॉन्ग्रेस के राजपरिवार के प्रति उनके सेवकों के समर्पण भाव और भक्ताई का शायद ही कोई इल्म है। कॉन्ग्रेस पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आज अध्यक्ष राहुल गाँधी की संन्यास की ख़बरों से पर्दा हटाते हुए खुलासा कर ही दिया है कि ये सब फर्जी ख़बरें हैं और दुनिया की कोई भी ताकत राहुल गाँधी से अध्यक्ष का पद नहीं छीन सकती है। उन्होंने पूरी चौड़ाई में आज पब्लिक के बीच आकर ये घोषणा कर ही डाली कि राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष थे, हैं और हमेशा अध्यक्ष ही बने रहेंगे।

रणदीप सुरजेवाला ने जैसे ही आज अपना बयान दिया दिया; अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर में कुछ छोटे-बड़े चक्रवातों ने जन्म लिया। कुछ सूत्रों का तो यह भी कहना है कि युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी के बारे में हुई इस ऐतिहासिक घोषणा के बाद इटली के पास एड्रियाटिक सागर में भी जबरदस्त ज्वार-भाटा देखने को मिला है। हालाँकि, गोदी मीडिया ने इसमें इटली का जिक्र होने के कारण छुपाकर रखा। इसके बाद यूनेस्को ने भी संकेत दिए हैं कि वो भी राहुल गाँधी को सदी का बेस्ट अध्यक्ष का खिताब देने पर विचार कर रहे हैं।

‘सरकारें आएँगी-जाएँगी लेकिन राहुल गाँधी अध्यक्ष बने रहने चाहिए’

राहुल गाँधी के बारे में हुई इस भविष्यवाणी के बाद कॉन्ग्रेस में मौजूद अन्य कार्यकर्ताओं ने भी एक स्वर में इस बात को दोहराते हुए कहा- “सरकारें आएँगी-जाएँगी लेकिन राहुल गाँधी अध्यक्ष ही बने रहने चाहिए।”और सबने ध्वनि मत से इस बात का समर्थन भी किया। हालाँकि राहुल गाँधी के नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर उनके भविष्य के बारे में हाल ही में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने भी भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि “राहुल जी सदृश दूसरा मूर्ख मिलना मुश्किल, उनकी जगह कोई ले ही नहीं सकता

भाजपा कार्यकर्ताओं ने बाँटी मिठाइयाँ

कॉन्ग्रेस द्वारा राहुल गाँधी के भविष्य को लेकर की गई इस घोषणा से भाजपा के कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह देखने को मिला है। हर गली-मोहल्ले में भाजपा कार्यकर्ताओं ने घूम-घूमकर मिठाइयाँ बाँटी और सड़कों पर जमकर नागिन डाँस भी किया। हालाँकि, अमित शाह ने कार्यकर्ताओं के इस जश्न में खलल डालते हुए कह दिया कि यह मात्र एक अफवाह है क्योंकि राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहेंगे ना कि भाजपा के, और चुपके से नरेंद्र मोदी की ओर देखते हुए उन्होंने कहा- “यही तो मास्टरस्ट्रोक है।

फूट-फूटकर नाचे भाजपा कार्यकर्त्ता, नागिन डांस की एक झलक

इसके बाद कार्यकारिणी मीटिंग में अमित शाह यह कहते हुए भी सुने गए कि अब जबकि 2047 तक राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस का चिरकालीन अध्यक्ष बने रहने का फैसला कर ही लिया है तो अब वो अगले चुनाव से पहले-पहले युगांडा में भी भाजपा का बहुमत साबित करने पर विचार कर सकते हैं। अपने इस दावे की पुष्टि उन्होंने युगांडा के 2 विधायकों से बात करवाकर दी।

यूगांडा की EVM का जायजा लेते हुए अमित शाह

राहुल गाँधी के इस आजीवन अध्यक्ष बने रहने की भीष्म प्रतीज्ञा से रोजगार के आँकड़ों में तुरंत एक बार फिर तीव्र उछाल आया। जब इसके पीछे कारण पता किया गया तो खुलासा हुआ कि यह रोजगार कॉन्ग्रेस के लिए 2047 तक सस्ते और घटिया चुटकुले सुनाकर नए कुणाल कामरा तैयार किए जाने की प्रक्रिया भी चालू की जा चुकी है।

वामपंथी CM पी विजयन के खिलाफ पोस्ट लिखने के लिए 119 पर केस, मीडिया गिरोह मौन

केरल की मौजूदा सरकार ने अब तक 119 व्यक्तियों पर सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक लिखने के लिए केस किया है। यह कोई मनगढंत आँकड़ा नहीं है बल्कि केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने मंगलवार (जून 11, 2019) को राज्य विधानसभा में खुद बताया कि सरकार में आने के बाद से अब तक 119 लोगों पर सोशल मीडिया पर सीएम को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने के लिए मामला दर्ज हुआ है।

गौरतलब है कि यहाँ मीडिया के किसी भी धड़े को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में नज़र नहीं आई और न ही कोई हो हल्ला हुआ। सब कुछ ऐसा रहा जैसे कुछ हुआ ही नहीं या ‘हुआ तो हुआ’। क्या मीडिया गिरोह के किसी भी सदस्य ने इस पर आपको बताया कि केरल में आपातकाल आ गया है वहाँ सोशल मीडिया पर कुछ भी सत्ता के खिलाफ लिखने पर केस दर्ज़ हो जा रहा है।

मीडिया का समुदाय विशेष जो बात बे बात पर आपातकाल लाता रहता है वह विशेष धड़े ने इसे चुपचाप गुज़र जाने दिया। बता दें कि अभी हाल के ही दिनों में फेसबुक पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक बकवास वीडियो के आधार पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई और पूरा गिरोह उसे मजे लेकर शेयर-कमेंट करता पाया गया और जब इस पर बेहद ख़राब शब्दों के साथ इसे इस तरह पेश करने वाले द वायर से जुड़े पत्रकार प्रशान्त कन्नौजिया की गिरफ़्तारी हुई तो गिरोह के सम्मानित और बदनाम सदस्य तुरंत ही सोशल मीडिया से लेकर ट्विटर पर बवाल काटने लगे और अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट तक मामले को ले गए।

संयोग से एक तरफ जहाँ विजयन अभिव्यक्ति का गला घोटने की जिस समय घोषणा कर रहे थे लगभग उसी समय मंगलवार को ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सोशल मीडिया पर पोस्ट के लिए गिरफ्तारी पर फटकार लगाई है।

यहाँ एक बार फिर से इस पूरे मीडिया गिरोह का दोहरा चेहरा आपके सामने है, जो अपने गालियों और आपत्तिजनक टिप्पणियों पर अभिव्यक्ति के नाम पर पूरी छूट चाहते हैं वहीं ऐसे ही कॉमरेडों के गढ़ केरल में या कोलकाता में जब अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाता है तो यह बगले ताकते नज़र आते हैं।

इमरान ने गाय इसलिए काटी कि होली पर सांप्रदायिक तनाव भड़के, दिल्ली पुलिस ने दबोचा

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आज इमरान नाम के एक युवक को गिरफ्तार किया जिसने बताया कि होली के दिन वह अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर दो समुदायों के बीच तनाव भड़काने की फ़िराक़ में था। इमरान का ताल्लुक एक व्यवसायी परिवार से है और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उसके परिवार के लोग गाय और भैंसों की खरीद-बिक्री का व्यापार करते हैं।

होली के दिन इमरान ने अपने तीन और दोस्तों, परवेज, लुकमान और इंशालाहम, के साथ मिलकर गाय काटी थी और इसका मकसद यह था की साम्प्रदायिक तनाव बढ़े। पुलिस द्वारा पूछने पर इमरान ने कबूला कि उसने होली के दिन हर्ष विहार इलाक़े में एक गाय काटी थी। इमरान आपराधिक रिकॉर्ड वाला व्यक्ति है।

इससे पहले, होली की सुबह (23 मार्च, 2019) पुलिस को कुछ महिलाओं ने हर्ष विहार इलाक़े में कटे हुए जानवरों के बारे में पुलिस को सूचित किया था। उन महिलाओं ने बताया कि खेत में जानवरों के कटे हुए अंग फैले हुए थे। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस ने वहाँ चौकसी बढ़ा दी थी और जाँच शुरू कर दी गई थी।

14000 खातों से गायब हुई कर्ज़ माफ़ी की रकम: किसानों ने कहा – कॉन्ग्रेस-JDS ने हमें बनाया बेवकूफ

लोकसभा में अपनी बुरी तरह हुई शिकस्त के बाद एचडी कुमारास्वामी की कॉन्ग्रेस-जेडीएस सरकार को एक और शर्मनाक स्थिति से दो-चार होना पड़ रहा है। जिन किसानों को विधानसभा घोषणा-पत्र के मुताबिक सरकार बनने के बाद कर्ज-माफ़ी की ‘सौगात’ मिली थी, उनमें से भारी संख्या में किसान, खाते में से रकम ‘ग़ायब’ हो जाने की शिकायत कर रहे हैं। क़रीब 14,000 किसानों ने यह शिकायत की है कि उनके खाते में कर्ज-माफ़ी के नाम पर जमा रकम कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन के लोकसभा निर्वाचन में विफल रहने के बाद उनके खातों से गायब हो गई। वहीं, कुमारास्वामी ने इसका ठीकरा मोदी सरकार के द्वारा नियंत्रित राष्ट्रीयकृत बैंकों के सर पर फोड़ा है।

लॉलीपॉप दिया था, वोट नहीं मिले तो वापिस ले लिया

कर्नाटक के जिन 13,988 किसानों के खाते से पैसा गायब हुआ है, उनका कहना था कि उन्हें चुनावी मौसम में लुभाने के लिए ही यह कर्ज-माफ़ी हुई थी। अपने मन-मुताबिक वोट नहीं पड़े तो रकम वापिस ले ली गई। यादगीर जिले के सागर में रहने वाले 60-वर्षीय शिवप्पा के खाते में इसी अप्रैल में ₹43,553 आए थे, लेकिन 3 जून को वह रकम शिवप्पा के खाते से गायब हो गई

‘केंद्र के अंतर्गत राष्ट्रीयकृत बैंकों के खातों में ही हो रही गड़बड़ी’

मुख्यमंत्री कुमारास्वामी ने इसे विपक्ष का फैलाया जा रहा झूठ और भ्रम बताते हुए कहा कि उन्होंने 14 जून को राष्ट्रीयकृत बैंकों के प्रतिनिधियों को मीटिंग के लिए बुलाया है। इसके अलावा कर्ज-माफ़ी के निष्पादन के लिए उत्तरदाई मुनीश मुद्गिल, जो सर्वेक्षण, चकबंदी और भूमि अभिलेख विभाग के आयुक्त हैं, ने भी कुमारास्वामी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि गड़बड़ी राष्ट्रीयकृत बैंकों के खातों में ही हो रही है, जहाँ 12 लाख किसानों ने कर्ज-माफ़ी के लिए आवेदन किया था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि राज्य सरकार ने 7.5 लाख कर्ज-माफ़ी के लिए योग्यता की शर्तें पूरी करने के ₹3,930 करोड़ माफ़ भी किए हैं। यह कदम बैंकों द्वारा दिए गए डेटा की पूरी पड़ताल के बाद ही उठाया गया है।

इसके बाद मुद्गिल ने यह भी दावा कर दिया है कि एक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार जिन 13,988 खातों से पैसे गायब हुए हैं, वह उन किसानों के हैं जो इस योजना के लिए तो अयोग्य थे लेकिन उनके खाते में धनराशि फिर भी स्थानांतरित हो गई। बैंकों को ऐसे खातों में जमा किए गए ₹60 करोड़ (लगभग) वसूलने के निर्देश दिए गए हैं

अलवर रेप और हत्‍या मामला: POCSO कोर्ट ने राजकुमार को दी सजा-ए-मौत

अलवर में नाबालिक की रेप और हत्‍या के मामले में पॉक्‍सो कोर्ट ने राजकुमार उर्फ धर्मेंद्र को दोषी करार देते हुए फाँसी की सजा सुनाई है। चार साल पहले 2015 में पाँच वर्षीय एक बच्‍ची से दुष्‍कर्म किया गया था और फिर पत्थर से कूचकर उसकी हत्‍या कर दी गई थी। यह बर्बर घटना राजस्थान के अलवर के बहरोड़ के रिवाली का है।

बता दें कि राजस्थान के बहरोड़ तहसील जिला अलवर के रेवाली गाँव में 1 फरवरी 2015 को राजकुमार द्वारा पड़ोस में रहने वाली 5 वर्षीय बालिका को टॉफी देने के बहाने पास के खंडहर नुमा मकान में ले जाकर दुष्कर्म किया गया। दुष्कर्म के बाद भारी पत्थर से बालिका के सिर में मारकर हत्या कर दी गई थी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह भी आया था कि तेज हथियार से बालिका के प्राइवेट पार्ट को काटकर अलग कर दिया गया था।

घटना में पुलिस थाना बहरोड द्वारा अभियुक्त राजकुमार के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 365, 201, 376 ,302 एवं POCSO अधिनियम की धारा 4/8 में आरोपपत्र न्यायालय में पेश किया गया था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस पाशविक दुष्कर्म व जघन्य हत्याकांड के मामले में विशेष न्यायालय अधिनियम अलवर के न्यायाधीश अजय शर्मा ने अपने निर्णय में उक्त कृत्य को पाशविक कृत्य करार देते हुए अपने फैसले में जज ने कहा, “अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध अत्यधिक क्रूर और समाज को झकझोर देने वाला है। अपराध और इसको करने के तरीके ने समाज में अत्यधिक रोष फैलाया। इस अपराध को करने का तरीका अत्यंत बर्बर और क्रूरतम था।

केंद्र में मोदी और बंगाल में 18 सांसद झुनझुना बजाने के लिए नहीं… मरते कार्यकर्ताओं को चाहिए न्याय

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसाओं का दौर थमता नज़र नहीं आ रहा है। पंचायत चुनाव के दौरान बड़े स्तर पर हिंसा हुई थी, हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान भी हिंसा की वारदातें बढ़ती चली गईं। जैसा कि अब सर्वविदित हो चुका है, इस हिंसा में मरने वाले अधिकतर भाजपा कार्यकर्ता हैं। अधिकतर मामलों में यह एकपक्षीय हिंसा रही है, जहाँ तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने भाजपा वालों को मार डाला। कहीं ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए किसी को पेड़ से लटका दिया गया तो कहीं अपने बूथ पर भाजपा को बढ़त दिलाने के लिए कार्य करने का परिणाम किसी भाजपा कार्यकर्ता को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। अब सवाल यह उठता है, हिंसा का यह दौर कब थमेगा?

ममता बनर्जी की पार्टी को इन हिंसक वारदातों के लिए सजा मिली और राज्य में पार्टी का एकछत्र वर्चस्व था, वहाँ भाजपा को 18 सीटें मिलीं। लोकसभा चुनाव में तृणमूल और भाजपा- दोनों का ही वोट शेयर प्रतिशत लगभग सामान रहा। दोनों ही दलों को 40.3% मत मिले। हालाँकि, तृणमूल कॉन्ग्रेस 22 सीटें जीत कर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी तो अभी भी है, लेकिन अब उसके प्रदर्शन में वो बात नहीं रही, जो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले थी। भाजपा को जितनी सीटें मिलीं, उतने की उम्मीद शायद पार्टी को भी न रही हों। कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष और मुकुल रॉय सहित अन्य नेताओं की मेहनत रंग लाई और भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपना पाँव ऐसा जमाया कि तृणमूल के पाँव उखड़ने लगे।

यह कैसे संभव हुआ? यह किसने किया? यह किसके भरोसे के कारण साकार हो सका? इसके पीछे कौन लोग हैं? मोदी-शाह का चेहरा भले ही वोट आकर्षित करने के मामले में आज टॉप पर हो, लेकिन बंगाल में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय जाता है उन कार्यकर्ताओं को, जिन्होंने अपनी जान हथेली पर रख कर भाजपा के लिए काम किया। जहाँ किसी कार्यक्रम में ‘जय श्री राम’ का नारा लगा देने भर से तृणमूल के गुंडे नाराज़ होकर किसी की हत्या कर देते हों, वहाँ किन परिस्थितियों में कार्यकर्ताओं ने काम किया होगा, यह सोचने वाली बात है। राष्ट्रीय मीडिया बंगाल में उस तरह से सक्रिय नहीं है, जितना कि हिंदी बेल्ट में। कई ख़बरें तो हम तक पहुँचती ही नहीं।

जब अमित शाह जैसे देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक की रैली में आगजनी की जा सकती है, तो सोचिए कि वहाँ एक सामान्य नेता व कार्यकर्ता के साथ क्या कुछ किया जाता होगा। इन सबके बीच अगर किसी कार्यकर्ता की मृत्यु हो जाती है, उस पार्टी का फ़र्ज़ बनता है कि उस कार्यकर्ता के परिवार की देखभाल करे, उसके बच्चों की अच्छी पढ़ाई सुनिश्चित करे व परिजनों में से किसी के लिए नौकरी की व्यवस्था करे। अगर कोई दल ऐसा करने में विफल रहता है, इसका अर्थ है कि वह अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं करता। जैसा कि हमनें देखा, अमेठी में एक कार्यकर्ता की मृत्यु हो जाने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी कंधा देने पहुँची थी। इस बात की सबने तारीफ भी की।

लेकिन, भाजपा के लिए समय आ गया है कि पार्टी अब प्रतीकात्मक कार्यों से आगे बढ़े। हाँ, अगर स्मृति ईरानी जैसे क़द की नेत्री एक साधारण कार्यकर्ता के शव को कंधा देने पहुँचती हैं तो अन्य कार्यकर्ताओं में यह भरोसा जगता है कि पार्टी का शीर्ष आलाकमान उनके लिए सोच रहा है और उनके साथ खड़ा है, लेकिन अगर उसी पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार है, तो यह फ़र्ज़ भी उसी दल का है कि जल्द से जल्द न्यायिक प्रक्रिया पूरी की जाए। हाँ, अधिकतर मुख्य राजनीतिक दलों के पास रुपयों की कमी नहीं है, इसीलिए किसी कार्यकर्ता की हिंसा के दौरान हुई मृत्यु के बाद परिजनों के सुख-दुःख का ख्याल रखने पर भी उसी दल की जवाबदेही बनती है, जिसके लिए उसनें जान दी।

हो सकता है कि 2014 से पहले बंगाल या केरल जैसे जगहों पर भाजपा असहाय रही हो। हो सकता है कि पार्टी नेताओं की बातें उस समय की सरकारें अनसुनी कर देती हों। लेकिन, अब जब जनता ने उसे विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल का दर्जा दिला दिया है, यह भाजपा का कर्तव्य है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि कार्यकर्ताओं की जानें नहीं जाएँ। आज देश में पूर्ण बहुमत की सरकार है, अधिकतर राज्यों में राजग की सरकारें चल रही हैं। भाजपा अब बेचारी नहीं है और न ही उसे ऐसा दिखावा करना चाहिए। भाजपा के पास अब कोई वजह नहीं है, कोई अधिकार नहीं है, कि पार्टी अब बेचारी होने का दिखावा करे।

अब एक्शन लेने का समय है। पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और नरेन्द्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, वो भी पिछली बार से भी अधिक वोट शेयर और सीटों के साथ। यह बहुमत झुनझुना बजाने के लिए नहीं मिला है। विकास के मुद्दों पर अच्छा कार्य कर रही मोदी सरकार को जनता ने स्वीकार किया है तो भाजपा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने भी दोगुनी मेहनत की है। यह सब सिर्फ़ इसीलिए, क्योंकि उन्हें भाजपा पर भरोसा है। यह भरोसा टूट जाएगा, अगर कार्यकर्ता मर रहे हों और पार्टी अध्यक्ष सोते रहें। आज अमित शाह गृह मंत्री हैं, मोदी के बाद देश में शायद ही कोई उनसे ज़्यादा ताक़तवर नेता हो, अब एक्शन लेने का समय है, अपराधियों को जेल पहुँचाने का समय है।

क्या गृह मंत्रालय एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसक वारदातों की तेज़ी से एक समय-सीमा के भीतर जाँच करा कर दोषियों को सलाखों के पीछे नहीं पहुँचा सकता? क्या भाजपा जैसी अमीर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के केस लड़ने के लिए अदालत में अच्छे और कुशल वकील नहीं खड़ा कर सकती? क्या मोदी सरकार बड़ी संख्या में अतिरिक्त अर्धसैनिक बल भेज कर स्थिति को नियंत्रण में नहीं कर सकती? अगर राजनीतिक हिंसा की वारदातें हो रही हैं, लगातार हो रही हैं, तमाम विरोधों के बावजूद बार-बार हो रही हैं, और इसके रुकने के दूर-दूर तक कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, तो इसमें ग़लती भाजपा की भी है, केंद्र सरकार की भी है।

आज बंगाल में तृणमूल के लोग भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। एक-एक कर कई नेता पार्टी में शामिल हो रहे हैं। क्या भारतीय जनता पार्टी इस बात को सुनिश्चित कर रही है कि पार्टी ज्वाइन करने वाले ऐसे तृणमूल नेताओं पर भाजपा कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा करने के कोई आरोप नहीं हैं? या फिर हर उस नेता का पार्टी में स्वागत किया जा रहा है, जो तृणमूल छोड़ कर आ रहा हो? कार्यकर्ताओं ने ऐसी बातें उठाई हैं, जहाँ भाजपा में शामिल हो रहे सैकड़ों काउंसलर, नेता, विधायक और कार्यकर्ताओं में से कई ऐसे भी शामिल हैं, जिन पर भाजपा कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा के आरोप रहे हैं। भाजपा में आकर वे सारे पवित्र नहीं हो सकते। अगर इसमें लेशमात्र भी सच्चाई है तो यह कार्यकर्ताओं के साथ धोखा है। भाजपा में शामिल होने वाले एक-एक तृणमूल नेताओं का बैकग्राउंड चेक किया जाए।

अगर गृह मंत्रालय कोई उच्च स्तरीय कमेटी बना कर राजनीतिक हिंसक वारदातों की जाँच नहीं करवा रहा है, तो यह न सिर्फ़ भाजपा के मतदाताओं बल्कि जनता के लिए धोखा है। अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बिना देखे-समझे किसी भी तृणमूल नेता का पार्टी में स्वागत कर रहा है, तो यह हिंसक परिस्थितियों में पार्टी के लिए खून बहाने वाले कार्यकर्ताओं के लिए धोखा है। अगर भाजपा मारे गए व घायल हुए कार्यकर्ताओं के लिए अच्छे वकील नहीं खड़ा कर रही है, तो यह पार्टी के कार्यकर्ताओं व उनके परिजनों के साथ धोखा है। अगर मृत कार्यकर्ताओं के परिजनों व बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और कुछ प्रतीकात्मक चीजों (जैसे शपथग्रहण समारोह में बुलाना) से काम चलाया जा रहा है, तो यह उन हजारों कार्यकर्ताओं के लिए धोखा है, जो जान हथेली पर लिए घूमते हैं।

बंगाल में जनता ने अपना काम कर दिया है, कार्यकर्ताओं ने अपना काम कर दिया है। 18 सांसदों के साथ भाजपा को एक बड़ी ताक़त जनता के विश्वास और कार्यकर्ताओं की मेहनत ने बनाया है, अब भाजपा को अपना काम करना है। भाजपा को यह सुनिश्चित करना है कि और नए कार्यकर्ताओं की जानें जाएँ, जिसे करने में वह विफल रही है। भाजपा को यह सुनिश्चित करना है कि जो भी कार्यकर्ता मारे गए हैं, उन्हें न्याय मिले, दोषियों को सज़ा मिले, जो वह करती नहीं दिख रही है। अगर भाजपा की राज्य या केंद्र में सरकार बनती है, तो यह उन कार्यकर्ताओं के लिए न्याय नहीं है। यह भाजपा की सफलता है, जिसके लिए उन कार्यकर्ताओं ने मेहनत की है। अब भाजपा की बारी है- उन कार्यकर्ताओं के लिए मेहनत करने की।

अगर 18 सांसदों वाली बंगाल भाजपा को एक अलग दल के रूप में देखें, तो यह लोकसभा सीटों के मामले में देश की शीर्ष 6 पार्टियों में आती है। यह ऐसा ही है, जैसे तमिलनाडु में डीएमके कार्यकर्ताओं की लगातार हत्या होती रहे और पार्टी कुछ न कर पाए। और, भाजपा की तो केंद्र में सरकार है। वो भी पिछले 5 वर्षों से। अगर न्याय दिलाने का समय अब नहीं है तो कब आएगा? क्या कुछ और जानें जाने के बाद? क्या भाजपा को इस बात का डर है कि अगर बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग भी जाता है तो ममता बनर्जी अपने पक्ष में एक सहानुभूति वाली लहर तैयार करने में सफल हो जाएगी? क्या भाजपा को डर है कि ममता सरकार के ख़िलाफ़ केंद्र द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई से वह जनता के बीच सहानुभूति का पात्र बनने की कोशिश करेगी?

अगर यह डर एक वास्तविकता है, तो भी पहली और सर्वप्रथम प्राथमिकता मृत कार्यकर्ताओं के परिजनों को न्याय दिलाना और जो जीवित हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना होनी चाहिए। ममता सहानुभूति लहर पैदा करे या न करे, यह बाद की बात है। अभी जो हो रहा है, उसकी रोकथाम करना भाजपा का कर्त्तव्य है, केंद्र सरकार की प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए। बहते खून को नज़रअंदाज़ कर रोज़ 40 किलोमीटर सड़कें बन रही हैं, तो इसे विकास कहना ग़लत है। रिकॉर्ड किलोमीटर में सड़कें बनीं हैं लेकिन उन सड़कों पर भाजपा कार्यकर्ताओं का खून बह रहा है- इसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कैसे नज़रंदाज़ कर सकती है?

अगर रिकॉर्ड संख्या में गैस सिलेंडर बाँटे गए हैं, लेकिन कार्यकर्ता आग में जल रहे हैं, ऐसे विकास से भी कोई फायदा नहीं। विकास होता रहेगा, यह मोदी सरकार के अंतर्गत होता रहा है, लेकिन खून की कीमत पर कुछ भी जायज़ नहीं। सत्ता आएगी-जाएगी लेकिन सत्ता दिलाने वाले कार्यकर्ता नहीं रहेंगे तो भाजपा का भी वही हाल होगा, जो आज कॉन्ग्रेस का है। भाजपा देश की चुनिन्दा बड़ी पार्टियों में से एक है, जिसमें एक परिवार का राज नहीं चलता, पूर्ण लोकतान्त्रिक तरीके से कार्य होते हैं। ऐसे में, राजनीतिक हिंसक वारदातों के मामले में प्राथमिकताएँ तय करने का समय आ गया है। इसमें से बहुत समय अब बीत चुका है, अपितु अब हर एक सेकंड का विलम्ब अक्षम्य है। यह खून बहाना कैसे रोकना है, इस बारे में भाजपा और उसके नेता बेहतर समझते हैं। सवाल है, एक्शन का समय कब आएगा?

बेबस महिलाओं को नग्न करके नचाया मजहब विशेष वालों ने, The Hindu-Wire की पत्रकार ने लिखा, ‘हिंदुत्व कल्चर’

हिन्दुओं से नफरत पत्रकारिता के समुदाय विशेष के दिल में इतना अंदर तक घर कर गई है कि हर नकारात्मक चीज़ में इन्हें ‘हिन्दू’ एंगल देखने की बीमारी हो गई है। और जहाँ ‘हिन्दू-एंगल’ नहीं दिख रहा है, वहाँ हर नकारात्मक चीज़ को हिन्दू के ठप्पे के साथ दिखाने की छटपटाहट दिख रही है। The Wire और The Hindu से जुड़ी रहीं ‘वरिष्ठ पत्रकार’ नीना व्यास ने हाल ही में असम के मजहब विशेष वालों द्वारा ईद के मौके पर एक डांस ग्रुप की लड़कियों को नग्न कर नचाने की खबर को ‘हिंदुत्व कल्चर’ के नाम से ‘बेचने’ की कोशिश की।

जब खबर ‘बिकी’ नहीं और गालियाँ बेभाव में पड़नी शुरू हुईं तो सहारा लिया आरएसएस में भी हाशिए पर गई एक पुरानी मान्यता का, कि ‘हिंदुत्व मज़हब नहीं, भौगोलिक पहचान है, और इसलिए हिंदुस्तान का हर निवासी एक तरह से हिन्दू है (चूँकि हिंदुत्व शब्द का तात्पर्य उपासना पद्धति से नहीं, भौगोलिक पहचान से है)।’

हिन्दू घृणा और बेईमानी का अद्भुत घालमेल

ईद के मौके पर असम में कुछ लोगों ने एक डांसर ग्रुप को सामान्य डांस के लिए किराए पर बुलवाया, लेकिन बाद में हवस की भूखी 700-800 लोगों की भीड़ के हवाले कर दिया। आयोजकों ने भीड़ को नग्न नृत्य करने वाली डांसर्स का ही वादा किया था, और इन सामान्य डांसर्स को उस भीड़ के हवाले कर दिया। लड़कियाँ किसी तरह जान बचाकर भाग पाईं।

बाद में जब खबर सोशल मीडिया पर वायरल होनी शुरू हुई तो नीना व्यास ने अपने प्रिय ‘समुदाय विशेष’ के कृत्य पर पर्दा डालने और हिन्दुओं पर कीचड़ उछालने के लिए ट्वीट किया:

इसके बाद जब हिन्दुओं ने ट्विटर पर उनकी भ्रामक/फेक न्यूज़ की ओर ध्यान दिलाना शुरू किया तो गलती मानने की बजाय वह कुतर्क पर उतर आईं। RSS में एक समय प्रचलित लेकिन फ़िलहाल ठंढे बस्ते में पड़ी ‘सभी हिंदुस्तानी हिन्दू हैं’ थ्योरी की आड़ में हिन्दूफ़ोबिया को ढकने की कोशिश की।

लेकिन उनकी सच्चाई सामने आते देर नहीं लगी। लेखक अरविंदन नीलकंदन ने उनके बारे में ट्वीट किया:

पत्रकार शेफ़ाली वैद्य ने भी उनके हिन्दूफ़ोबिया पर से पर्दा खींच दिया:

जैसा कि इस ट्वीट की दूसरी तस्वीर से साफ है, नीना व्यास का मकसद संघ परिवार या उसकी विचारधारा से विरोध जताना नहीं, हिन्दुओं पर कीचड़ उछालना था। उनके हिन्दूफ़ोबिया का एक और उदाहरण: जब ऑपइंडिया (अंग्रेज़ी) की सम्पादिका नूपुर शर्मा और स्वराज्य संवाददाता स्वाति गोयल-शर्मा ने हाल ही में प्रकाश में आए कुछ भयावह आपराधिक मामलों (मसलन तीन साल की बच्ची की हत्या, मासूम से बलात्कार, मेरठ में लस्सी के पैसे माँगने पर विक्रेता की मजहबी भीड़ द्वारा हत्या) पर चिंता प्रकट की, तो नीना व्यास ने उसे तथाकथित “गौरक्षक/हिंदूवादी/शाकाहारवादी हिंसा” से जोड़ कर उपरोक्त अपराधों को उचित ठहराने की कोशिश की:

यानी, यह माना चाहिए कि नीना व्यास जी के विचार में अगर कुछ गौरक्षक अगर कानून अपने हाथ में लेते हैं (जिसके कारण आप विस्तार में यहाँ पढ़ सकते हैं), तो उससे किसी दुकानदार की लस्सी के पैसे माँगने पर “योगी-मोदी से हम नहीं डरते” दहाड़ कर हत्या कर देना, किसी मासूम बच्ची को मार डालना या ऐसी ही किसी भी घटना को अंजाम देने का औचित्य बन सकता है?

दरअसल यह पत्रकारिता का समुदाय विशेष केवल और केवल हिन्दुओं से घृणा से ही प्रेरित है। इनके लिए हर घटना, हर अवसर केवल एक ही ‘एंगल’ लेकर आता है- कैसे हिन्दुओं से घृणा की जाए, कैसे उन्हें नीचा दिखाया जाए, उनके धर्म को भी अन्य कुछ वर्चस्ववादी और विध्वंसक मज़हबी विचारधाराओं के स्तर पर घसीट लाया जाए, और इसके लिए वे झूठ का भी सहारा लेने से नहीं हिचकिचाते।

यही झूठ कभी अक्षय पात्र के बारे में होता है, कभी ईशा फाउंडेशन के सरकारी ज़मीन हड़पने के बारे में, कभी पुरी की रथयात्रा के बारे में; कभी ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं की मॉब-लिंचिंग पर भी हिन्दुओं के ही त्यौहार बंद करने को ‘समाधान’ के रूप में सुझाया जाता है, तो कभी नीना व्यास के इस प्रयास की तरह दूसरों की कालिख से हिन्दुओं के चेहरे को मैला करने की कोशिश की जाती है। तरीकों का कोई अंत नहीं है, लेकिन ऐसे विभिन्न प्रयासों के पीछे प्रेरणा एक ही होती है- हिन्दूफ़ोबिया

Viral: माँ की दूसरी शादी पर बेटे ने दी भावुक बधाई, केरल के गोकुल की मार्मिक कहानी

माँ और बेटे का रिश्ता बेहद ही ख़ास होता है, जिसे शब्दों में पिरो पाना शायद ही मुमकिन हो। एक माँ के लिए बेटा जितना अनमोल होता है, बेटे के लिए माँ भी उतनी ही ख़ास होती है। ऐसे ही अटूट रिश्ते की मिसाल क़ायम की है केरल के माँ और बेटे ने। बेटे ने अपनी माँ के दूसरे विवाह के अवसर पर उनके नाम फेसबुक पर ऐसा भावुक पत्र लिखा जो हर किसी के लिए चर्चा का विषय बन गया।

दरअसल, केरल के गोकुल श्रीधर ने अपनी माँ के दूसरे विवाह के अवसर पर मलयालम भाषा में एक भावुक पोस्ट लिखी, जो देखते ही देखते वायरल हो गई। अपनी पोस्ट में गोकुल ने लिखा कि उनकी माँ ने अपनी पहली शादी में बहुत दु:ख झेले। उन्हें कई बार शारीरिक हिंसाओं का सामना करना पड़ा और यह सब उन्होंने अपने बेटे गोकुल के लिए सहा। ख़बर के अनुसार, गोकुल श्रीधर ने अपनी पोस्ट में लिखा, “ये मेरी माँ का विवाह है। मैंने बहुत सोचा कि क्या इस तरह के नोट को लिखना सही होगा! आख़िरकार ये ऐसा समय है जब बहुत सारे लोग अभी भी दूसरी शादी को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। जिन लोगों की नज़र में संदेह हो, जो निर्दयी हों और घृणा की नज़र से देखते हैं, कृपया यहाँ नज़र न डालें। अगर आप देखेंगे भी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

गोकुल श्रीधर का कहना है कि वो इस नोट को शेयर करने से पहले काफ़ी झिझक रहे थे। उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा लगता था कि मेरे इस विचार को समाज के एक तबके में सही तरीके से नहीं लिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि बहुत जल्द उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि उन्हें अपनी भावनाएँ किसी से छिपाने की आवश्यकता नहीं है, इसके बाद उन्होंने फ़ैसला लिया कि वो इस ख़ुशी (माँ की दूसरी शादी) को सबसे शेयर करेंगे।

इसके अलावा गोकुल ने लिखा, “एक औरत जिसने मेरे लिए अपने जीवन की क़ुर्बानी दे दी। उन्होंने अपनी पहली शादी में बहुत कुछ झेला है। पिटने के बाद जब उनके माथे से ख़ून टपकने लगता था, तो मैं अक्सर उनसे पूछता था कि वह इसे क्यों झेल रही हैं। मुझे याद है कि उन्होंने मुझे बताया था कि वह मेरे लिए दु:ख सहने को तैयार हैं क्योंकि वह मेरे लिए जी रही थीं। उस दिन, जब मैंने उनके साथ घर छोड़ा, मैंने इस पल के बारे में फ़ैसला कर लिया था। मेरी माँ ने अपनी पूरी जवानी मेरे लिए न्योछावर कर दी, अब उनके सपने मेरे हैं और उन्हें पूरा करने का अवसर मेरा है। मेरे पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि यह कुछ ऐसा है जिसे मुझे किसी से छिपाने की ज़रूरत नहीं है। माँ! आपकी शादीशुदा ज़िंदगी बहुत ख़ुशहाल रहे।”

गोकुल की इस पोस्ट को कुछ ही देर में 33,000 से अधिक लोगों ने शेयर किया और उस पर बहुत से लोगों ने सकारात्मक जवाब भी दिए। गोकुल ने अपनी पोस्ट के साथ अपनी माँ और उनके दूसरे पति की तस्वीर भी शेयर की। आमतौर पर एक महिला के दूसरे विवाह पर लोगों की सोच एक सी नहीं दिखती, ऐसे में एक बेटे का अपनी माँ के दूसरे विवाह के प्रति इतना सम्मान और ख़ुशी तालियों की हक़दार है।

राजद विधायक के पुत्र ने खोमचे वाले को खाने का स्वाद पसंद न आने पर बुरी तरह पीटा

बिहार में जब लालू यादव की राजद सत्ता में थी तो उस समय के कालखंड को ‘जंगलराज’ कहा जाता था। और अब वही ‘जंगली’ सत्ता से बाहर तो कर दिए गए हैं लेकिन बिहार में उनकी गुंडागर्दी पर इसका फर्क नहीं दिख रहा है। राजद विधायक के बेटे पर आरोप है कि उसने एक खोमचा लगाने वाले युवक को पीट-पीट कर केवल इसलिए मरणासन्न कर दिया क्योंकि उसका बनाया खाना विधायक जी के बेटे को पसंद नहीं आया था। यही नहीं, ‘विधायक-पुत्र’ पर पहले भी ऐसी ही गुंडागर्दी का आरोप लग चुका है।

पिता डॉक्टर, बेटा बना जानलेवा

अंकित कुमार के पिता विधायक अशोक कुमार पेशे से डॉक्टर हैं, यानि जान बचाने वाले- लेकिन बेटा उनका लोगों के लिए प्राणघातक बनता दिख रहा है। आरोप के अनुसार अंकित ने रजत केसरी नामक युवक को इतना मारा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया। रिपोर्टों के अनुसार रजत की ‘गलती’ खाली इतनी थी कि ‘विधायक जी के बेटे’ अंकित को उसका बनाया खाना पसंद नहीं आया था। माथे पर गहरी चोट खाए रजत को डिहरी के जमुहार स्थित नारायण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा

रजत के होश में आने पर उसका बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने अंकित और उसके दोस्तों पर हत्या के प्रयास समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा दायर किया है। रजत ने बताया कि राजद विधायक के होटल के सामने चल रहे उसके खोमचे पर से अंकित और उसके दोस्तों ने खाने-पीने का कुछ सामान मँगाया था। खाना विधायक-पुत्र को न पसंद आने पर विवाद हुआ जिसके बाद विधायक के बेटे और उसके दोस्तों ने बेरहमी से पीट-पीट कर बेहोश कर दिया। सदर एएसपी राजेश कुमार ने कहा कि मामला दर्ज कर जाँच की जा रही है। जाँच के मुताबिक कार्रवाई होगी।