Sunday, May 19, 2024
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जब कॉन्ग्रेस ने की शिवराज को ट्रोल करने की कोशिश और ख़ुद ही हो गए ट्रोल

मध्यप्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार ने अपना काम करना शरू कर दिया है, और काम करने की एक ऐसी थ्योरी बनाई है, जिससे पाँच दिनों में ‘चमत्कार’ हो रहा है। दरअसल कॉन्ग्रेस का कहना है कि सदियों से गंदी, मैली, पड़ी क्षिप्रा नदी को उन्होंने बस पाँच दिनों में साफ़ कर दिया। सफ़ाई का श्रेय लेने के लिए, और अपने काम का ट्रेलर शिवराज सिंह (मामा) को भी दिखाने के लिए, कॉन्ग्रेस के ऑफ़िसियल ट्विटर एकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया गया, जिसमें उन्हें टैग करते हुए लिखा गयाः

“कमलनाथ जी ने उज्जैन में क्षिप्रा नदी को स्वच्छ करने और नियमित जलप्रवाह का वादा किया और महज़ 5 दिन में परिणाम आपके सामने है। गंगा सफ़ाई के नाम पर जनता का हज़ारों करोड़ बर्बाद करने वाले उज्जैन आएँ और देखें-सीखें।”

खै़र, शिवराज सिंह ने इनके वीडियो का लोड तो लिया ही नहीं और वीडियो बनाने एवं क्षिप्रा को साफ़ करने का श्रेय देने के बजाय, पूरी मेहनत पर बिना कुछ सोचे-समझे पानी फेरते हुए एक मुस्कुराहट वाली ईमोजी पोस्ट कर दी।

चलिए आपने ये कॉन्ग्रेस के ट्विटर हैडल का वीडियो तो देख ही लिया अब हम आपको दो साल पुरानी क्षिप्रा और उसके तट के घाटों को दिखाते हैं, जिसमें क्षिप्रा पूर तरह से निर्मल दिख रही है।

दो साल पहले इस तरह दिख रही थी क्षिप्रा नदी

अब इस वीडियो को देखकर आपको अंदाज़ा लग ही गया होगा कि आखिर कैसे इस नदी को पाँच दिनों में साफ़ कर दिया गया। वैस आपकी जानकारी के लिए बता दे कि नदी में पानी नहीं था और उसमें पानी छोड़कर क्षिप्रा को साफ़ करने का श्रेय ले लिया गया। इस ट्वीट पर लोगों की ख़ूब प्रतिक्रियाएँ आईं जिसमें से कुछ लोग ये पूछते दिखे कि अगर 5 दिन में साफ़ हो सकती थी नदी, तो इतने समय से कमलनाथ कहाँ थे, सफ़ाई तब ही करवा देते जब लोगों को पानी के न होने पर कीचड़ में नहाना पड़ा था। ज़ाहिर सी बात है कि नदियाँ 5 दिनों में साफ़ नहीं होती, बल्कि उसके लिए तमाम इंतज़ाम किए जाते हैं ताकि उसमें बाहर से गन्दगी ना आए, उसके तटों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएँ आदि।

जाते-जाते आपको दिखाते हैं कि पाँच दिन में क्षिप्रा को साफ़ करने की बात पर लोगों ने क्या कहा:

‘अर्बन नक्सल’ आनंद तेलतुम्बडे के ख़िलाफ़ दर्ज़ FIR को SC ने रद्द करने से किया इनकार

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (जनवरी 14, 2019) को भीमा कोरेगाँव हिंसा के मामले में संलिप्तता और प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रचने के सिलसिले में पुणे पुलिस द्वारा दर्ज़ FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस के कौल की एक खंडपीठ ने मामले में चल रही जाँच में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और आनंद तेलतुंबडे को ट्रायल कोर्ट से नियमित जमानत लेने का आदेश दिया। हालाँकि, शीर्ष अदालत ने तेलतुंबडे को चार हफ्तों के लिए गिरफ़्तारी से सुरक्षा दे दी है।

इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर को तेलतुंबडे द्वारा दायर पुणे पुलिस के FIR को रद्द करने की याचिका ख़ारिज़ कर दी थी और उन्हें तीन सप्ताह के लिए गिरफ़्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया था।

पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगाँव हिंसा के सिलसिले में स्वयंभू ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ – गौतम नवलखा, पी वरवरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण परेरा, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे और स्टेन स्वामी – को गिरफ़्तार किया था। ये सभी पीएम मोदी की हत्या की साज़िश रचने के आरोपित हैं। गिरफ़्तार किए गए इन ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ पर माओवादियों के नेटवर्क के साथ सम्बन्ध होने के पुख़्ता सबूत मिले थे।

गिरफ़्तारियाँ भीमा कोरेगाँव हिंसा के संबंध में थीं। इससे पहले, पुणे पुलिस ने इस मामले में रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और सुधीर धवले को गिरफ़्तार किया था। अगस्त (2018) महीने के छापे में गिरफ़्तार किए गए ये आरोपित सर्वोच्च न्यायालय में चले गए थे और न्यायिक हिरासत के बजाय ‘हाउस अरेस्ट’ का अंतरिम आदेश प्राप्त किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगाँव हिंसा में कथित भूमिका के लिए पाँच नक्सलियों की गिरफ़्तारी के मामले में इतिहासकार रोमिला थापर द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका की तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।

28 सितंबर को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय ने इन पाँच ‘अर्बन नक्सलियों’ की गिरफ़्तारी के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। साथ ही इनकी हाउस अरेस्ट की अवधि को बढ़ा दिया था। शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि इन आरोपित कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का विपरीत राजनीतिक विचारधारा या भिन्न विचार होने से कोई लेना-देना नहीं है।

राहुल गाँधी का इस्लाम और शांति: अक़बर और नरमुंडों का पहाड़ (भाग-1)

राहुल गाँधी ने दुबई में एक बयान देते हुए कहा है कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इस्लाम से भी शांति सीखी। हालाँकि उन्हें ‘हिन्दू’ बोलने में उन्हें कुछ सकुचाहट महसूस हुई और तमाम नाम लेने के बाद वो सनातनियों की अहिंसा तक नहीं पहुँच पाए। हो सकता है जनेऊ पार्टी कार्यालय में ही छूट गया हो। राहुल गाँधी के दुबई में दिए गए इस बयान के बाद इस बात पर तर्क-वितर्क आवश्यक हो जाता है कि आख़िर राहुल गाँधी किस इस्लाम की बात कर रहे हैं। इस्लाम के इतिहास में आख़िर वो कौन-सा वाक़या था जिसने राहुल गाँधी के अनुसार गाँधीजी तक को शांति का सन्देश दिया। इसकी पड़ताल ज़रूरी है।

भारत में जब इस्लाम का नाम आता है और सहिष्णुता की चर्चा की जाती है तब लिबरल और सेक्युलर लोग सबसे पहले अक़बर ‘महान’ की बात करते हैं। इसीलिए यहाँ भी हम बात अक़बर से ही शुरू करेंगे। जी हाँ, इस्लाम, शांति, सहिष्णुता और सद्भाव को एक साथ रख कर चलने वाले अक़बर के चेलों की जब चर्चा हो रही है, तो बात वहीं से शुरू की जाएगी।

हेमचन्द्र विक्रमादित्य- एक ऐसा नाम जो सिलेबस में बहुत कम मिलता है, एक ऐसा नाम जिस पर हमारे इतिहास के किताबों में कोई चैप्टर नहीं है। एक ऐसी गाथा- जो हर भारतीय के जबान पर होनी चाहिए लेकिन अधिकतर लोग इससे अवगत नहीं हैं। लेकिन अब समय आ गया है जब हम इतिहास की गलतियों से सीख लेकर वर्तमान को ठीक करें।

तो आइए, एक छोटी सी कहानी से शुरू करते हैं। एक कहानी जो भारत में इस्लामिक सद्भावना के सबसे बड़े प्रतीक- अक़बर ‘महान’ से जुडी है, अक़बर की ताज़पोशी से जुड़ी है, भारतीय इस्लामिक इतिहास के सबसे बड़े अध्याय की शुरुआत से जुड़ी है।

कुछ दिनों पहले अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनावों को पानीपत की तीसरी लड़ाई बताई थी। हो सकता है इसमें सच्चाई हो। लेकिन, उससे पहले हमें यह जानना चाहिए कि पानीपत के दूसरे युद्ध में क्या हुआ था। 5 नवंबर 1556 का दिन था। यानि कि आज से लगभग साढ़े चार सौ वर्ष पहले। दिल्ली के सिंहासन पर अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य उर्फ़ हेमू विराजमान थे। एक ऐसा वीर योद्धा जिसने 22 युद्ध जीत कर इतिहास रच दिया था। एक ऐसा वीर जो एक साधारण गरीब परिवार से मंत्री, सेनाध्यक्ष और फिर सम्राट तक की पदवी पर पहुँचा। लेकिन उसके सिंहासन धारण किए एक महीने भी नहीं हुए थे। तब तक अक़बर की सेना ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया।

हेमू की सेना, दिल्ली के लोग, चाणक्य के अखंड भारत के स्वप्न को फिर से साकार होने का स्वप्न देख रही भारत की जनता- सब आश्वस्त थे कि 22 युद्ध जीतने वाला महान योद्धा उनके लिए फिर जीत की सौग़ात लाएगा। लेकिन हुआ इसके उलट। संख्याबल, शस्त्र और साधन- हर मामले में हेमू की सेना मुग़लों पर भारी थी। पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। अपनी सेना का खुद नेतृत्व कर रहे हेमचन्द्र ने जब हाथी पर बैठ कर विकराल रूप धरा तो अकबर का क़रीबी और तुर्क सेना का नेतृत्व कर रहा आततायी बैरम खान भी एक पल के लिए काँप गया।

जीत क़रीब थी तभी न जाने कहाँ से एक तीर आकर हेमू की आँख को बेध गया। मूर्छित हेमू हाथी से सीधा गिर पड़ा और उसकी सेना में ऐसा हाहाकार मचा कि भारत में अगले 300 से भी अधिक वर्षों के लिए इस्लामिक राजसत्ता स्थापित हो गई। यहाँ तक जो भी हुआ वो तख़्त की लड़ाई में दुनिया भर में बहुतों बार हो चुका है। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो अक़बर को महान बताने वाले और इस्लाम से शांति सीखने का सन्देश देने वाले हर एक आदमी को अपना मुँह छिपाने पर मजबूर कर दे। अक़बर के आदेश से अधमरे हेमचन्द्र विक्रमादित्य का गला काट कर उसके धड़ और सर को अलग कर दिया गया।

उसके बाद अक़बर की सेना ने दिल्ली में जो तबाही मचाई उसकी तुलना चंगेज़ खान द्वारा बीजिंग में की गई क्रूरता से की जा सकती है। आख़िर, अक़बर के अंदर भी तो बीजिंग को लाशों का शहर बनाने वाले मंगोल चंगेज़ खान का ही खून दौड़ रहा था। हेमू के सर को काबुल भेज दिया गया और उसके धड़ को दिल्ली के एक द्वार से लटका दिया गया ताकि हर एक भारतवासी जो उधर से गुज़रे, अपने राजा का क्षत-विक्षत शव देख कर क्रंदन करे और अपने देश के भाग्य को हज़ार बार कोसे। आज भी अगर आप पानीपत में हेमू के समाधी स्थल के दर्शन करने जाएँ तो सोचे कि वो कौन सी शांति थी जिसका सन्देश अक़बर और बैरम खान ने भारत में आकर दिया था। अक़बर को महान बताने वाले किस मुँह से उसे भारत में धर्मनिरपेक्षता का चेहरा बताते हैं?

अकबरनामा में किया गया चित्रण: स्कल टॉवर (नरमुंडों का पहाड़) ; फोटो साभार: ट्रू इंडोलॉजी

इसके बाद दिल्ली में खोपड़ियों का एक इतना बड़ा टावर खड़ा किया गया जिसे पूरी दिल्ली देख सके। नरमुंडों का एक इतना विशाल ढेर, जिसे देख कर नृशंसता भी हज़ार बार काँपे। भारत में इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा किये गए सैकड़ों आक्रमणों में से ये सबसे ज़्यादा क्रूर, नृशंस और घिनौना था। उसके बाद अकबर की सेना ने दिल्ली में घुस कर हज़ारों महिलाओं का बलात्कार किया, जिन्होंने इस्लाम अपनाने से मना किया- उनका सर बेहद ‘शांति’ से अलग कर दिया गया। ऐसी मारकाट मचाई गई जिस से दिल्ली में या तो लाश बचे या फिर ज़िंदा लाश।

नरमुंडों के कंकाल के बीच शांति का एक बहुत ही अच्छा सन्देश दिया गया। और उस पर विडम्बना ये कि उस घटना के बाद जो शहंशाह बन कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा- वो ‘महान’ बना और उसे भारत में सांप्रदायिक समावेश का सबसे बड़ा चेहरा बना दिया गया। ये कहाँ का न्याय है? ऐसा किसी देश में नहीं हुआ की जिस आक्रांता ने वहाँ जाकर उनके पूर्वजों को मारा-काटा हो, महिलाओं की इज़्ज़त लूटी हो- उसे ही भगवान बना दिया गया।

अगर यही इस्लाम है, अगर यही इसके लिए शांति का सन्देश है- तो फिर ईश्वर न करे कि ऐसी शांति भविष्य में कभी देखने को मिले। ऐसे शांति के अनगिनत सन्देश दिए गए हैं भारत को- इस्लाम द्वारा, इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा, आज के लिबरल्स के पोस्टर बॉय्ज़ द्वारा। इस सबकी पड़ताल होगी एक-एक कर। इतिहास में जाकर हर उस घटना को खँगाला जाएगा जहाँ इस्लाम ने शांति का सन्देश देने की कोशिश की है और उसे आज के लोगों के सामने बताया जाएगा। इंतज़ार कीजिये हमारे इस सीरीज़ के अगले लेख का।

कर्नाटक सरकार के 13 असन्तुष्ट विधायक दे सकते हैं इस्तीफ़ा, कुमारस्वामी ने किया इनकार

ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक की सियासत में एक बड़ा परिवर्तन आने की सुगबुगाहट है। अगर बात सही है तो कुमारस्वामी सरकार पर संकट के बादल घिर आये हैं। कुछ दिन पहले कुमारस्वामी ने ख़ुद काम के अत्यधिक बोझ का हवाला दिया था और कहा था, “गठबन्धन की मज़बूरी की वज़ह से क्लर्क बन गया हूँ।” शायद अब उनका बोझ हल्का होने वाला हो।

रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्ग्रेस के 10 और जेडीएस के 3 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। बीजेपी की कोशिश है कि जल्दी ही ये 13 विधायक इस्तीफ़ा दे दें। मीडिया में ख़बर यह भी है कि अगर सब कुछ सही रहा तो बीजेपी कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ अगले हफ़्ते अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकती है। ये इस बात का संकेत भी है कि कुमारस्वामी सरकार से उनके अपने ही विधायक असन्तुष्ट चल रहे हैं। हालाँकि, काँग्रेस ने बीजेपी पर विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त का आरोप लगाया है।  उधर, बीजेपी ने भी काँग्रेस पर पलटवार करते हुए इससे इनकार किया है।

अभी तक की ख़बर के अनुसार, बीजेपी ने अपनी पार्टी के विधायकों को दिल्ली बुला लिया है। कर्नाटक विधायकों की बैठक 1:30 बजे दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट एनेक्सी में सम्पन्न हुई। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष येदियुरप्पा के साथ-साथ प्रदेश बीजेपी के कई नेता भी शामिल हुए। हालाँकि, बताया जा रहा है कि बैठक लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा हुई। वहीं दूसरी तरफ़ ख़बर यह भी है कि भाजपा अपने विधायकों को एकजुट करने की कोशिश में है क्योंकि उन्हें भी संभावित तोड़-फोड़ का डर है। फ़िलहाल, BJP के 102 विधायक गुड़गाँव के रिज़ॉर्ट में शिफ़्ट किए जा रहे हैं।

उधर, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने सोमवार को कहा कि राज्य में कॉन्ग्रेस-जेडीएस की सरकार की ‘अस्थिरता’ का कोई सवाल नहीं है। कुमारस्वामी पहले ख़ुद बीजेपी पर विधायकों को तोड़ने का आरोप लगाते रहे हैं और आज भी मुख्यमन्त्री कुमारस्वामी ने अपने इस आरोप को दोहराया कि बीजेपी सत्तारुढ़ गठबंधन के विधायकों को लुभाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने ये दावा किया कि गठबंधन का कोई भी विधायक पाला नहीं बदलेगा।  

खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर में घटकर 2.19 प्रतिशत, 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर

खुदरा मुद्रास्फीति पिछले 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। ये दिसंबर में घटकर 2.19% रही। सब्ज़ी, फल और ईंधन के सस्ते होने से खुदरा मुद्रास्फीति में अपने निचले स्तर पर आ गई है। 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में 2.33 प्रतिशत तथा दिसंबर, 2017 में 5.21 प्रतिशत पर थी। और इससे पहले जून, 2017 में मुद्रास्फीति 1.46 प्रतिशत के निचले स्तर पर थी। पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कमी से इन उत्पादों की मूल्यवृद्धि घटी। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने रिपोर्ट जारी करते हुए इसकी जानकारी दी।

मुंबई हमले के दोषी आतंकी तहव्वुर राणा को जल्द भारत लाया जा सकता है

वर्ष 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के दोषी तहव्वुर राणा को जल्द भारत लाए जाने की संभावना है। मीडिया में आ रही ख़बर के मुताबिक़ भारत सरकार अमरीकी प्रशासन के पूरे सहयोग से आतंकी को भारत लाने की कोशिश की जा रही है।

बता दें कि मुंबई को दहला देने वाले इस कांड की साज़िश रचने वाला आतंकी तहव्वुर राणा पिछले 14 साल से अमरीका की जेल में सज़ा काट रहा है। तहव्वुर को साल 2009 में गिरफ़्तार किया गया था, और उसकी सज़ा 2021 में पूरी होगी।

ख़बरों के अनुसार, भारत सरकार ट्रम्प प्रशासन की मदद से पाकिस्तानी-कैनिडियन नागरिक के प्रत्यर्पण के लिए सभी ज़रूरी काग़ज़ी कार्रवाई पूरा कर रही है। राणा को 2013 में 14 साल की सज़ा सुनाई गई थी, जो अब 2021 को रिहा किया जाएगा।

मुंबई को दहला देने की साज़िश को तहव्वुर राणा ने रचा था और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मिलकर उसे अंजाम तक पहुँचाया था। इन 10 हमलावर आतंकियों में से 9 आतंकियों को मौक़े पर ही ढेर कर दिया गया था, जबकि बाक़ी ज़िंदा बचे 1 आतंकी (अजमल कसाब) को फ़ाँसी दे दी गई थी।

इस जानलेवा आतंकी हमले में लगभग 166 लोगों ने अपनी जान गँवाई थी, जिनमें अमरीकी नागरिक भी शामिल थे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अमरीका में राणा की सज़ा पूरी होने के बाद उसे भारत लाया जा सकता है। प्रत्यर्पण प्रक्रिया के धीमे होने से तहव्वुर राणा के भारत आने तक के सफर में भले ही थोड़ा विलंब हो, लेकिन भारत सरकार की यह कोशिश पुरज़ोर पर है कि राणा को जल्द से जल्द भारत लाया जाए और इसके लिए सभी ज़रुरी कार्रवाई समय पर पूरी की जा रही है।

सहज भाषा में पठनीय व्यंग्यबाणों से लैस है ‘गंजहों की गोष्ठी’

हरिशंकर परसाई ने अपनी पुस्तक ‘सदाचार की ताबीज़’ में व्यंग्य को परिभाषित करते हुए कहा था – “व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, मिथ्याचारों और पाखंड का पर्दाफ़ाश करता है।”

अगर हम ये कहें कि निरन्तर गिरते जा रहे सामाजिक मूल्यों तथा बढ़ती महत्वकांक्षाओं के इस दौर में व्यंग्य लेखन एक चुनौती से कम नहीं तो अतिशयोक्ति न होगी। व्यंग्य स्वयं नहीं जन्मता बल्कि विरोधाभासों का तांडव व्यंग्य को जन्म देता है।

आज का व्यंग्यकार समाज में व्याप्त चुनौतियों/विसंगतियों के प्रति चौकन्ना है। ऐसे ही सजग रचनाकार साकेत सूर्येश अपनी पहली ही पुस्तक ‘गंजहों की गोष्ठी’ में विविध विषयों पर अपनी लेखनी से चमत्कृत करते हैं। पूर्व में भी लेखक की अंग्रेज़ी भाषा में कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी है तथा वे निरन्तर दैनिक जागरण, स्वराजमैग आदि में लिखते रहते हैं।

85 पृष्ठों की पुस्तक ‘गंजहों की गोष्ठी’ में कुल 20 व्यंग्यबाण (लेख) हैं। हर लेख एक मनके के समान है जो अद्वितीय है।

पुस्तक की पहली रचना ‘क़स्बे का कष्ट’ है। लेखक के व्यंग्य की कुशलता और संक्षिप्तता इतनी अद्भुत है कि वह क़स्बे का चित्रण एक ही पंक्ति में कर देता है- “क़स्बा गाँव के लार्वा और शहर की ख़ूबसूरत तितली के बीच का टेडपोल है।”

वस्तुतः, व्यंग्य किया जाता है, व्यंग्य कसा जाता है, व्यंग्य मारा जाता है, व्यंग्य बाण चलाया जाता है। ये मुहावरे व्यंग्य के तीखेपन को दर्शाते हैं। ‘गंजहो की गोष्ठी’ में ये तीखापन सर्वत्र बिखरा हुआ पड़ा है। कुछ उदाहरण देखें:

– विषय न भी हो तो पत्रकार विषय का निर्माण कर के जीवन में हलचल बनाए रहते है। कुछ नहीं होता तो किसी अभिनेता के पुत्र के पोतड़े बदलने का कार्यक्रम गोष्ठी का विषय बन जाता है।

– एल प्लेट पूड़ी-सब्ज़ी राजनीतिक जनसभाओं की सफलता का और ग़रीबों की थाली में सजी भूख चुनावी निर्णयों का निर्धारण करती रही है।

– मनुष्य की बौद्धिकता के विकास में कॉटन साड़ियों का भी वही स्थान है, जो सिगरेट के आविष्कार का और नाई के अवकाश का।

– राष्ट्र सब्ज़ी वाले से प्रेमिका के लिए मुफ़्त धनिया लाता रहा, चाचा जी गुलाब टाँगे घूमते रहे, राष्ट्र उनका बिगड़ा लम्ब्रेटा कल्लू मैकेनिक के यहाँ जाकर कर्तव्यनिष्ठा के साथ बनवाता रहा। मध्यमवर्गीय शहर के मध्यमवर्गीय प्रेमी की भाँति जनता के हाथ सत्ता के हवाई चुम्बन के अतिरिक्त कुछ न लगा।

– चार्वाक घी से डालडे पर आ रुके और ग़ालिब साहब को बस ठर्रे का सहारा बचा।

– सत्ता में आने वाला, तीन वर्ष पिछली सरकार को कोसता है, दो वर्ष पुनः सत्ता में आने का जुगाड़ बिठाता है।

– श्री औरंगज़ेब एक लोकतांत्रिक नेता थे जो प्रजा को ‘बीफ़ इन द प्लेट’ और ‘सेल्फ़ इन द प्लेट’ का हमेशा विकल्प देते थे।

ऐसे ही अनेक व्यंग्यबाणों से सजी इस पुस्तक में ‘नेता का अट्टहास’, ‘क्षमा बड़ेन को चाहिए’, ‘महाभियोग पर महाभारत’, ‘कर्ज़ की पीते थे मय’, ‘जम्बूद्वीप का शब्दचित्र’, ‘बुद्धिजीवियों की बारात’, ‘छगनलाल का ब्याह’ आदि अनेक पाठ हैं जो आपको गुदगुदाते हैं। पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि व्यंग्यों में पठनीयता बनी रहती है, भाषा कहीं भी बोझिल नहीं है। अंततः यह पुस्तक पाठक को गुदगुदाने, खिलखिलाने और वर्तमान विसंगतियों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। इन बीस मनकों को एक सूत्र में पिरोकर बनी ये ‘गंजहों की गोष्ठी’ रूपी लेखमाला का हिंदी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा, ऐसी मुझे आशा है। पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।

पुस्तक का नाम- गंजहो की गोष्ठी
व्यंग्यकार- साकेत सूर्येश
प्रकाशक- Notion Press
पृष्ठ-85
कीमत- ₹120
समीक्षक- श्री मनोज मौर्य
(शोध छात्र- हिंदी विभाग,काशी हिंदू विश्वविद्यालय। सुमित्रानंदन पंत जी के काव्यशिल्प पर शोध कर रहे हैं।)

JNU मामले में चार्जशीट आने से पहले ही जज बन बैठा ‘आज तक’

जेएनयू (JNU) कैम्पस दिल्ली में 2016 में देशद्रोह के नारे लगाने के मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दिया है। चार्जशीट में माकपा नेता डी राजा की बेटी अपराजिता, JNU के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, और उमर ख़ालिद समेत 10 को आरोपी बनाया गया है। अब इस मामले में कोर्ट कल (जनवरी 15, 2019) विचार करेगी।

चार्जशीट दाख़िल होने से पहले ही कन्हैया कुमार पर फ़ैसला

‘आज तक’ न्यूज चैनल तेज़ तो है लेकिन इस बार कुछ ज़्यादा ही तेज़ी दिखाई गई। JNU मामले में चार्जशीट दाख़िल होने से पहले ही इन्होंने JNUSU के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के ख़िलाफ़ सबूत नहीं होने का दावा करते हुए हेडलाइन लिखा – JNU केस में चार्जशीट आज, कन्हैया के ख़िलाफ़ सबूत नहीं, शहला राशिद और डी राजा की बेटी का नाम

जब चार्जशीट आने से काफ़ी पहले ‘आज तक’ ने चलाई ये ख़बर
ब्रेकिंग न्यूज़ में भी ये ख़बर चली
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हालाँकि, जब FIR की कॉपी रिलीज़ की गई तो ‘आज तक’ ने फिर से तेज़ी दिखाते हुए ख़बर में संशोधन करते हुए हेडलाइन में बदलाव कर दिया और पुरानी हेडलाइन को वेबसाइट से हटा दिया।

आरोपपत्र में आरोप हैं, लेकिन ‘आज तक’ ने हेडलाइन ऐसे चलाई थी जैसे कन्हैया चार्जशीट में निर्दोष हैं
बाद में ‘आज तक’ ने उसी आर्टिकल में कन्हैया पर लगे आरोपों के बारे में लिखा, लेकिन पहले ‘सबूत नहीं’ की बात की

पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने उठाए थे मीडिया पर सवाल

बता दें कि बीते दिनों मीडिया-सोशल मीडिया पर स्वयं ही जज बनने वालों पर काटजू ने तंज कसा था। उन्होंने मीडिया की नैतिकता और जवाबदेही पर सवाल उठाते हुए कहा था, “ऐसा लगता है कि हमारे अधिकांश पत्रकार केवल सनसनी पैदा करना चाहते हैं। तथ्यों की परवाह किए बिना मसाला घोंटने में विश्वास रखते हैं। इसीलिए मैं ज्यादातर भारतीय मीडिया को फ़र्ज़ी ख़बर कहता हूँ।”

ख़बरों को सबसे पहले चलाने की मारा-मारी में अक्सर सत्य और तथ्य पहला शिकार बनते हैं। चार्जशीट दाख़िल होने के बाद कोर्ट कल इसका संज्ञान लेगी, फिर मुक़दमे की बात होगी, मुक़दमा चलेगा, सबूत माँगे जाएँगे, गवाहियाँ होंगी, और तब जाकर कहा जा सकेगा कि ‘कन्हैया के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिले’ या ‘सबूत मिले’। लेकिन चार्जशीट फ़ाइल होने से पहले हेडलाइन में क्लीनचिट और भीतर आरोप तथा धाराओं की बात लिखना बताता है ख़बर पढ़वाने के लिए वेब मीडियम भ्रामक हेडलाइन चलाने से बाज़ नहीं आते।

‘निःस्वार्थ सेवा, अथक ऊर्जा’ के लिए PM मोदी को फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रथम फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड दिया गया। 14 जनवरी को पीएम मोदी को प्रदान किया गया यह पुरस्कार मुख्यतः तीन पर बिंदुओं पर केंद्रित है – जनता, लाभ, धरती (3 Ps – People, Profit and Planet)। यह पुरस्कार किसी राष्ट्र के नेता को प्रतिवर्ष दिया जाना है।

“पीएम मोदी का चयन राष्ट्र के लिए उत्कृष्ट नेतृत्व के आधार पर किया गया है। भारत के लिए उनकी निःस्वार्थ सेवा के साथ-साथ उनकी अथक ऊर्जा के कारण देश में असाधारण आर्थिक, सामाजिक व तकनीकी विकास हुआ है।” – फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड के प्रशस्ति पत्र में यही उल्लेख है।

प्रशस्ति पत्र में यह भी कहा गया है कि उनके नेतृत्व में भारत को अब इनोवेशन का केंद्र, मेक इन इंडिया के कारण विनिर्माण केंद्र के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी, अकाउंटिंग व फ़ायनांस जैसी व्यावसायिक सेवाओं के लिए वैश्विक तौर पर पहचान मिली है।

पीएम मोदी को डिजिटल क्रांति (डिजिटल इंडिया) का श्रेय देते हुए प्रशस्ति पत्र में कहा गया कि उनके दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही आधार कार्ड के जरिए सामाजिक लाभ और वित्तीय समावेशन संभव हो पाया। इससे उद्यमशीलता, व्यापार करने में आसानी भी हुई। इस कारण भारत आज 21वीं सदी का बुनियादी ढाँचा बनाने में सक्षम है।

जानकारी के लिए बता दें कि फिलिप कोटलर केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी) में मार्केटिंग के प्रोफ़ेसर हैं और मार्केटिंग गुरु के नाम से मशहूर भी। वो अपने स्वास्थ्य कारणों से ख़ुद यह पुरस्कार देने नहीं आ पाए। उनकी जगह जॉर्जिया की इमोरी यूनिवर्सिटी के जगदीश सेठ को पीएम मोदी को पुरस्कार प्रदान करने के लिए भेजा गया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की बात करें तो नरेंद्र मोदी को पिछले साल प्रतिष्ठित सियोल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उससे पहले, संयुक्त राष्ट्र ने ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड्स’ फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्राँ के साथ संयुक्त रूप से दिया था।

सपा-बसपा का आशीर्वाद लेने पहुँचे तेजस्वी यादव, कहा- BJP को हराने के लिए यही दोनों काफ़ी हैं!

लोकसभा चुनाव जितने करीब आ रहे हैं, विपक्षी नेताओं का मिलना-जुलना उतना ही बढ़ता जा रहा है। इन्हींं मुलाक़ातों से सपा-बसपा के बीच का गठबंधन देखने को मिला है और अब लग रहा है, जैसे इस गठबंधन में राजद नेता तेजस्वी यादव भी अपनी जगह बना ही लेंगे।

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस समय लखनऊ आए हुए हैं, जहाँ वह सोमवार को मायावती से मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मिले हैं। दोनों पार्टी के मुखियों से मिलने के बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि इस समय देश में अघोषित रूप से आपातकाल का माहौल है। देश के नौजवान बेरोज़गार हैं। ऐसे में भाजपा को चुनावों में हराने के लिए सपा-बसपा के हुए इस गठबंधन पर उन्होंने मायावती और अखिलेश को बधाई दी।

अपने बयान में तेजस्वी ने कहा कि आज बाबा साहब के संविधान को मिटाने के साथ ‘नागपुरिया कानून’ को देश में लागू करने करने प्रयास किया जा रहा है। तेजस्वी की मानें तो इन लोकसभा के चुनावों में भाजपा का सफ़ाया यूपी और बिहार से बिलकुल तय है। तेजस्वी ने अपना गणित लगाते हुए कहा कि अगर भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 सीटें, बिहार की 40 सीटें और झारखंड की 14 सीटें न मिलें, तो बीजेपी अपने आप ही 100 सीटों से नीचे पहुँच जाएगी।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सपा-बसपा का ये गठबंधन बेहद सराहनीय कदम है। अपनी इस बातचीत में तेजस्वी ने लालू के जेल में होने का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि इस समय सीबीआई और ईडी बीजेपी के सहयोगी हैं, जिसके कारण लालू जी जेल में हैं।

इस गठबंधन में कॉन्ग्रेस के न शामिल होने पर तेजस्वी ने इस बात को खुलकर स्वीकारा कि पूरे विपक्ष का लक्ष्य सिर्फ बीजेपी को हराना है, जिसके लिए सिर्फ़ सपा-बसपा का गठबंधन ही काफ़ी है।

तेजस्वी द्वारा पाई गई बधाई के बाद सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका धन्यवाद अदा किया। साथ ही, उन्होंने कहा कि देश में किसान से लेकर नौजवान और व्यापारी सभी दुखी हैं, ऐसे में यूपी के साथ पूरे देश में इस गठबंधन को लेकर खुशी है।

बसपा की मुखिया से मिलने के बाद तेजस्वी ने कहा कि वो सबसे छोटे हैं, इसलिए लखनऊ आशीर्वाद लेने आए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन देखने को मिले, ये लालू जी भी चाहते थे।

आगामी चुनावों को देखते हुए अगर बात करें तो उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य है, जिन्होंने हमेशा से ही राजनीति के बदलते समीकरणों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया है। इस डेढ़ घंटे चली मुलाकात के बाद बताया जा रहा है कि सपा-बसपा के गठबंधन में अब राजद भी शामिल हो सकती है और साथ ही बिहार में बसपा को 1-2 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है।