Tuesday, November 19, 2024
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‘जय श्री राम’ कहने पर BJP कार्यकर्ता की चाकू मार कर हत्या, TMC पर हत्या का आरोप

पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं पर लगातार हमले हो रहे हैं। पार्टी ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के चलते उनके 54 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई हैं। हालाँकि इस दावे को ममता बनर्जी ने झूठ बताया है, लेकिन इसी बीच बर्धमान जिले के पांडुग्राम में भाजपा का एक कार्यकर्ता मृत पड़ा मिला।

बीजेपी ने अपने कार्यकर्ता की हत्या का जिम्मेदार TMC को बताया है। मृतक की पहचान 52 वर्षीय सुशील मंडल के रूप में हुई है। पांडुग्राम पुलिस थाने में मामले को औपचारिक रूप से दर्ज करवा दिया गया है। पुलिस, मामले की जाँच में जुट गई है।

टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार सुशील मंडल की हत्या तब हुई जब वो प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण के पहले केतुग्राम के पाण्डुग्राम इलाक़े में पार्टी के झंडे सजा रहे थे और ‘जय श्री राम’ का नारा लगा रहे थे। भाजपा कार्यकर्ताओं ने बताया कि तृणमूल के कुछ गुंडों ने मंडल को झंडे हटाने को कहा और नारा लगाने से मना किया। मंडल ने वैसा नहीं किया जिस कारण गुंडों ने लगतार चाकू से हमले करते हुए उन्हें घायल कर दिया। अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गयी।

अब ऐसे में अपनी पार्टी के ऊपर लगते आरोपों के विरोध में ममता बनर्जी ने अपने ही बयान से उलट जाकर फैसला किया है कि वो शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होंगी। बंगाल मुख्यमंत्री का कहना है कि ये मौतें ‘राजनीति से जुड़ी नहीं हैं।’

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि ममता अपने बयान से पलटी हों। 2014 में भी प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी नहीं आई थीं। इसके अलावा साल 2012 में भी जब गुजरात के सीएम के रूप में नरेंद्र मोदी शपथ लेने वाले थे, तो निमंत्रण के बावजूद वो समारोह में शामिल नहीं हुई थीं।

मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपनी दूसरी पारी शुरू करने जा रहे हैं। राष्ट्रपति भवन परिसर में दूसरी बार प्रधानमंत्री पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट का शपथग्रहण शुरू हो चुका है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद की शपथ दिलवाई। नरेंद्र मोदी के बाद राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी आदि मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली।

एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान एक बार फिर मंत्री बने, नरेंद्र सिंह तोमर को भी मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर भी बनीं मंत्री।

पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री का पद संभालने वाली सुषमा स्वराज भी समारोह में उपस्थित हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार वो मोदी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनेंगी। वो मंच पर नहीं बल्कि दर्शक दीर्घा में बैठी हुईं हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की माताजी टीवी पर शपथग्रहण देखते हुए

पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में 6 हजार से ज्यादा लोग देश-विदेश से पहुँचे हैं। शपथ ग्रहण के लिए राष्ट्रपति भवन में मेहमानों का जमावड़ा लगा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी समारोह में पहुँचे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह भी समारोह में मौजूद हैं।  

कॉन्ग्रेस ने अमेठी मर्डर केस में फर्जी खबर शेयर की, उप्र पुलिस करेगी कार्रवाई

उत्तर प्रदेश के अमेठी से नवनिर्वाचित सांसद स्मृति ईरानी के करीबी माने जाने वाले भाजपा कार्यकर्ता और बरौलिया गाँव के पूर्व प्रधान सुरेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शनिवार (मई 25, 2019) की रात सोते हुए सुरेंद्र सिंह पर अज्ञात बदमाशों ने ताबड़तोड़ गोली बरसा कर हत्या कर दी थी। गोली लगने से घायल सुरेंद्र सिंह को लखनऊ ट्रामा सेंटर ले जाते समय रास्ते में ही उनकी मौत हो गई थी।

इस हत्याकांड में पुलिस की जाँच चल रही है। कुछ दिन पहले छापेमारी करने के बाद पुलिस ने 3 नामजद आरोपितों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार आरोपितों के नाम नसीम (झोलाछाप डॉक्टर), धर्मनाथ गुप्ता (पूर्व प्रत्याशी ग्राम प्रधान बरौलिया) और रामचंद्र (वर्तमान में बीडीसी) हैं।

जाँच अभी चल ही रही थी कि कुछ लोगों द्वारा यह अफवाह फैलाई जाने लगी कि यह हत्या भाजपा के ही किसी कार्यकर्ता द्वारा करवाई गई है। कुछ लोग यहाँ तक कहने लगे कि उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक ने बयान दिया है कि भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा ही सुरेंद्र सिंह की हत्या करवाई गई।

इस अफवाह को आगे बढ़ाने का काम कॉन्ग्रेस के कुछ आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने भी करना चालू कर दिया। दरअसल इकनोमिक टाइम्स ने एक खबर छापी थी कि यूपी पुलिस के डीजी ने बयान दिया था कि सुरेंद्र सिंह की हत्या लोकल स्तर पर दुश्मनी के चलते हुई। इसी बयान को तोड़ मरोड़कर कॉन्ग्रेस सोशल मीडिया की नेशनल कन्वीनर रुचिरा चतुर्वेदी ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि सुरेंद्र सिंह की हत्या लोकल भाजपा के किसी कार्यकर्ता ने की है।

इसी प्रकार खबरदार डॉट कॉम नामक किसी वेबसाइट के लिंक को शेयर करते हुए कॉन्ग्रेस के समर्थक शमा मोहम्मद, गौरव पांधी और सेवादल ने भी ट्वीट किए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन ट्वीट का संज्ञान लिया और कहा कि DGP के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है और इस पर क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी। दरअसल इकनोमिक टाइम्स की खबर में डीजी पुलिस ने यह कहा था कि सुरेंद्र सिंह की लोकल स्तर पर दुश्मनी हो सकती थी लेकिन उन्होंने भाजपा के किसी कार्यकर्ता का नाम नहीं लिया था। जबकि कॉन्ग्रेस सोशल मीडिया के हैंडल से इस बयान का गलत अर्थ निकालकर फर्जी खबर फैलाई गई।

गौरव पांधी का ट्वीट
शमा मोहम्मद का ट्वीट
रुचिरा चतुर्वेदी का ट्वीट

कामरा-राठी आदि भी शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित, गेट पर मेहमानों को मारेंगे सेंट वाला स्प्रे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए आज 8000 मेहमान राष्ट्रपति भवन पहुँचने वाले हैं। लेकिन ये जान कर आप चौंक जाएँगे कि इन्हीं आठ हजार लोगों में कुछ नाम ऐसे हैं, जो आजकल सिर्फ बरनोल और नमक पानी का सेंक ले रहे हैं। रायसीना हिल्स से कुछ ख़ुफ़िया सूत्रों के अनुसार शपथ ग्रहण कार्यक्रम में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी इन्हीं कुछ लोगों को दी गई है।

आपने देखा ही होगा कि पिछले कुछ सालों में राहुल गाँधी की चौकीदारी करने के लिए विपक्ष द्वारा कुछ दिग्गज सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषकों को कॉन्ग्रेस द्वारा किराए पर लिया गया था। हालाँकि, यदि ऑपइंडिया तीखी मिर्ची सेल के सूत्रों पर यकीन करें, तो पार्टी ने उनके साथ सेवा बढ़ाने जैसा कोई अनुबंध नहीं किया था।

कॉन्ग्रेस ने आदर्श लिबरल गिरोह के इतिहासकार, वरिष्ठ दर्शनशास्त्री एवं पार्ट टाइम सस्ते कॉमेडियन कुणाल कामरा के साथ ही फैक्ट्स एंड फिगर्स में बात कर के जनता को गुमराह करने वाले ध्रुव राठी के साथ करार करते वक़्त चुपके से NDTV की तर्ज पर ही एक डिस्क्लेमर लिख दिया था। इस अस्वीकरण में उन्होंने लिखा था कि जनता का मनोरंजन करने के लिए मोदी विरोधी चुटकुलों के लिए भाड़े पर उठाए गए किसी भी ‘सस्ते कॉमेडियंस’ और ‘एक्सपोज़र’ का कार्यकाल और अनुबंध लोकसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा।

चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद कुणाल कामरा और ध्रुव राठी को पता चला कि जनता और कॉन्ग्रेस, दोनों ही उनके साथ अ’न्याय’ कर चुके हैं। हालाँकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कॉन्ग्रेस के हारने के बाद अब इन लोगों को अगले पाँच साल तक रोजगार के लिए चिंतित नहीं रहना पड़ेगा।

लेकिन सवा सौ करोड़ भारतीयों का जिक्र करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन लोगों की माली हालात देखकर इनका साथ देकर इनका विकास करने का निर्णय लिया और शपथ ग्रहण में बुलाकर इनके रोजगार की नींव रखने का फैसला किया है।

पाँच साल तक रोजगार और स्कैम्स के फर्जी आँकड़े सोशल मीडिया से लेकर यूट्यूब तक पर बाँचने वाले इन दोनों शरणार्थियों को शपथ ग्रहण समारोह में तो बुलाया गया है, लेकिन मेहमानों के कान साफ करने के लिए। लाख प्रयास के बाद भी कॉमेडी के नाम पर माँ-बहन की गाली परोसकर भी राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने में विफल रहने वाले कुणाल कामरा ने चुनाव नतीजों के बाद सिनेमाघर, पार्क और सार्वजानिक स्थानों पर लोगों के कान साफ़ करने वाला धंधा अपना लिया। इसके लिए उन्हें मियाँ भाई की वो बात याद आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है।

इस नए पेशे के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से लोन लेने के बाद कुणाल कामरा ने कान साफ़ करने के लिए अपनी एक स्पेशल किट खरीदी और स्वरोजगार की राह पर निकल पड़े। शपथ ग्रहण के लिए निमंत्रण देने के लिए जब उन्हें लोग मिलने गए तो उस समय कुणाल कामरा पड़ोस में ही चल रही जेसीबी खुदाई देखने गई पब्लिक के कान साफ़ करने पहुँचे हुए थे। उन्होंने बताया कि यह धंधा एकदम चोखा है और जेसीबी की खुदाई वाली जगह पर ये काम करने में सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको लोगों के पास नहीं जाना होता है, बल्कि लोग खुद चलकर आपके पास पहुँच जाते हैं।

जानकारों का तो यह भी कहना था कि जेसीबी के पास खड़ी बड़ी भीड़ को देखकर कुणाल कामरा पहले वहाँ से आने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे लेकिन जब उन्हें बताया गया कि उनका साथी ध्रुव राठी भी राष्ट्रपति भवन के बाहर बैठकर मेहमानों की गाड़ियों की हवा चेक कर के अपने दिन काट रहा है और वो खुश है, तो कुणाल कामरा तुरंत तैयार हो गए। ध्रुव राठी को यह भी याद रखने में परेशानी नहीं होती है कि एक दिन में उन्होंने कितने पंचर बनाए हैं और कितनी जगह टायर में छेद थे, क्योंकि फैक्ट एंड फिगर्स में बात करना उनके बाएँ हाथ का खेल रहा है।

रिपोर्ट्स लिखे जाने तक शपथ ग्रहण में आने-जाने वाले लोगों के कान की सफाई करने के लिए कुणाल कामरा तैयार हो चुके हैं और वो लगभग हजार मेहमानों के कानों से वैक्स निकाल चुके हैं। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि भारी मात्रा में लोगों की उपस्थिति में 8000 लोगों के 16,000 कान देखकर कुणाल कामरा की आँखें छलक पड़ीं और वो फूट-फूटकर रो पड़े। ‘डोंट वोट फॉर मोदी’ की सिफारिश करने वाल कुणाल कामरा ने कॉन्ग्रेस कार्यालय द्वारा जारी रोजगार के आँकड़ों वाले उस रजिस्टर को अपडेट कर दिया, जिसके आधार पर उन्होंने जनता को हाथ-पैर जोड़कर यकीन करने के लिए कहा था। और अंत में नम आँखों से एक लाइन लिखी, “अच्छे दिन आ गए” हालाँकि, कुणाल कामरा बहुत ज्यादा देर तक खुश नहीं रह पाए।

16,000 कानों की सफाई करने का ठेका मिलने के कारण ख़ुशी से पगला कर कुणाल कामरा ने एक मेहमान के कान की जेसीबी की तरह ही खुदाई कर डाली। मेहमान ने उनसे हाथ जोड़कर निवेदन किया कि “एक ही तो कान है कामरा जी, कितना गहरा खोदोगे?

साथ ही, बाकी के सस्ते कॉमेडियन और यूट्यूब के सितारों को भीड़ में सेंट वाला स्प्रे मारने से लेकर अतिथियों को लेमिनेटेड गुलाब बाँटने का काम मिला है। रवीश कुमार ने हँसते हुए बताया कि मोदी जी ‘निंदक नियरे राखिए’ का गलत प्रयोग कर रहे हैं। NDTV के गुप्त सूत्रों ने सस्ते कॉमेडियंस द्वारा आमंत्रण स्वीकार कर प्रांगण में पहुँचने को उनका बड़प्पन कहा है।

द इलेक्टोरल मशीन: TsuNaMo के बावजूद ओडिशा में नवीन पटनायक क्यों जीते?

अप्रैल 2014 में, मैं अपने ससुराल वालों को कार में बैठाकर BJB कॉलेज आर्ट्स ब्लॉक, भुवनेश्वर में उन्हें उनके वोटिंग बूथ पर ले जा रहा था। जिज्ञासावश, मैंने अपनी सास से पूछा कि वो किसे वोट देंगी? जैसा कि ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ था, तो उन्होंने जवाब दिया कि राज्य के लिए शंख और दिल्ली के लिए कमल। जैसे ही वो बूथ में गई और बाहर आई, तो मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने वैसा ही किया जैसा उन्होंने बताया था? इस पर उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया। दरअसल, उन्होंने दोनों ईवीएम में शंख के बटन को दबाया था। इसका कारण उन्होंने मुझे समझाया कि वो इस उलझन में थीं कि कौन-सी ईवीएम लोकसभा के लिए है और कौन-सी विधानसभा के लिए। वह इस बात से चिंतित थीं कि ‘कहीं ऐसा न हो कि उनका वोट नवीन पटनायक को न जाए’। वास्तव में वो भाजपा-विरोधी नहीं थीं बल्कि वो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करती थीं। लेकिन वह किसी भी तरह से नवीन पटनायक के ख़िलाफ़ मतदान नहीं कर सकती थीं। उनका मंतव्य स्पष्ट था कि वो नवीन पटनायक को ही वोट देना चाहती थीं, उन्हें वोट देने को वो अपना कर्तव्य समझती थीं, फिर भले ही वो दिल्ली के लिए मोदी को वोट देने से चूक गईं हों।

जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है कि राजनीति में किसी से दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं। यह बात ओडिशा की जनता के लिए अब एक गहरी भावना बन चुकी है। नवीन पटनायक को ओडिशा के मतदाताओं की यही भावना विरासत में मिली हुई है। उन्होंने दो दशकों तक शासन किया है, बावजूद इसके अभी भी ओडिशा कई मापदंडों पर खरा नहीं उतरता। वहीं, अगर मतदाताओं से पूछा जाए तो वो सभी कार्यों का श्रेय बीजू जनता दल (बीजेडी) के मंत्रियों को ही देते हैं। नवीन पटनायक के ख़िलाफ़ हर बात को व्यक्तिगत रूप से लिया जाता है। यह लगभग राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के पंथ की तरह ही है, यही वजह है कि राहुल गाँधी ने मोदी को ‘चोर’ कहकर इसकी भारी क़ीमत चुकाई।

29 मई को, नवीन पटनायक ने 5वीं बार भुवनेश्वर के आईडीसीओ प्रदर्शनी मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 2024 में उनका 5वाँ कार्यकाल समाप्त होने तक, वह सिक्किम के पूर्व सीएम पवन कुमार चामलिंग के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ देंगे, जिन्होंने 24 साल और 165 दिनों तक राज्य की सेवा की, जो अब तक के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री बने। वह अन्य दिग्गज, दिवंगत ज्योति बसु को भी पीछे छोड़ देंगे जिन्होंने 23 साल और 137 दिनों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। जबकि ज्योति बसु के शासन में वामपंथियों का वोट था, बसु के बाद भी पार्टी बंगाल को जीतती रही, ओडिशा में लोगों ने बीजेडी को सिर्फ़ सत्ता में लाने के लिए वोट नहीं दिया बल्कि उन्होंने प्रचंड बहुमत के साथ नवीन पटनायक को वोट देकर विजयी घोषित किया।

2014 के आम चुनावों के ठीक बाद, बीजेपी ने अपने अगले चुनावी युद्ध के मैदान के लिए ओडिशा और पश्चिम बंगाल को चुना था। बीजेपी ने पहली बार 2014 में ओडिशा में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की। तब से पीएम मोदी, शाह और अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने पार्टी कार्यक्रम या उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए ओडिशा की अनगिनत यात्राएँ की थी। बीजेपी ने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को जुटाने के लिए बूथ स्तर के एक बड़े कार्यक्रम ‘Mo Booth Sabuthu Majboot’ को अंजाम दिया। इसका परिणाम 2017 के पंचायत चुनावों में दिखा जहाँ पार्टी ने 849 पंचायतों में से 306 पर जीत दर्ज की। यह उनके पिछले रिकॉर्ड का 8.5 गुना था। राम मंदिर के पास पार्टी मुख्यालय में पार्टी का जश्न ख़ुशी से मनाया गया।

जब लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम घोषित किए गए, तो मोदी सुनामी ने देश को झुलसा दिया। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल, साथ ही गठबंधन ताश के पत्तों की तरह गिर गए। लेकिन एक व्यक्ति (नवीन पटनायक) जो मोदी लहर के बीच न सिर्फ़ तटस्थ होकर खड़ा रहा बल्कि तमाम चक्रवातों और आपदाओं से निपटने में पूरी तरह सक्षम भी रहा। मोदी सुनामी और 20 साल के सत्ता-विरोधी के चेहरे पर, नवीन ने 21 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में से 12 पर अपनी जीत सुनिश्चित की और 147 विधानसभा क्षेत्रों में से 112 पर अपनी जीत हासिल की। हालाँकि, 2014 की तुलना में पार्टी को 5 सीटों का नुकसान भी हुआ। आख़िर, भारतीय राजनीति में नवीन बाबू की इस अभूतपूर्व सफलता का क्या कारण है?

लोगों का कहना है कि नवीन पटनायक की जीत का कारण वहांँ किसी दूसरे विकल्प का नहीं होना है। भारतीय चुनाव की प्रक्रिया जटिल होती है। पाँच मोदी प्रशंसकों को इकट्ठा करके उनसे पूछें कि उन्होंने मोदी को वोट क्यों दिया, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि वे आपको पाँच अलग-अलग कारण दें। यदि चुनाव जीतने का केवल एक ही कारण बताया जाए तो वो जवाब बहुत ही सरल और सपाट होगा।

2015 में, ओडिशा में एक बड़े चिट फंड घोटाले का ख़ुलासा किया गया था। बीजेडी के कई नेताओं सहित कुछ विधायकों और सांसदों ने लंबा समय जेल में बिताया। बाद में, उनमें से कुछ को पार्टी में फिर से शामिल करने के लिए बीजेडी से निलंबित कर दिया गया था। उनमें से कुछ या उनके बेटों को 2019 में बीजेडी का टिकट दिया गया और उन्हें चुनाव में जीत भी मिली। हालाँकि, नवीन पटनायक की छवि को कोई आँच नहीं आई।  इसमें से किसी ने भी अपने मिस्टर क्लीन (नवीन पटनायक) की इमेज पर कोई सेंध नहीं लगाई। लोग उन्हें (नवीन पटनायक) ठगों से घिरे एक अच्छे आदमी के रूप में देखते हैं; हालाँकि, अच्छे आदमी ने यह सुनिश्चित किया है कि ठगों को सजा दी जाए।

नवीन पटनायक जो भी मदद करते हैं वह उनका गैर-टकराव वाला रवैया होता है। 2014 के बाद, जब बीजेपी ने ओडिशा को अपनी लड़ाई का मैदान बनाया, तब राज्य के बीजेपी नेता नवीन पर हुए हमले से बौखला गए थे। लेकिन वह शांत रहे और उन्होंने कभी भी शांति भंग नहीं होने दी। उनकी प्रतिक्रियाओं को गरिमापूर्ण रवैये के रूप में देखा गया।

नवीन की अद्वितीय सफलता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उनके व्यक्तित्व का सुलझा हुआ होना है। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के संदर्भ में उनकी कोई अस्पष्टता नहीं है। उनका एकमात्र उद्देश्य ओडिशा पर शासन करना है, जहाँ वह अपनी पूरी ऊर्जा लगाते हैं, और इसके परिणाम से सभी वाक़िफ़ हैं। इस स्थिति की तुलना अगर अन्य क्षेत्रीय दिग्गजों व उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और उनकी घटती राजनीतिक किस्मत से करें तो पता चलेगा कि हर कोई दिल्ली में अपने पैर पसारना चाहता है। सभी अपनी विस्तारवादी नीति को अपनाते हुए दिल्ली पर निशाना साधे रहते हैं।

सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि वे यह भी नहीं जानते कि वास्तव में नवीन पटनायक काम क्या करते हैं, लेकिन फिर भी वो हर चुनाव में जीत हासिल करने में क़ामयाब रहते हैं। यही वो कारण है जो रहस्य पैदा करता है। दरअसल, वो एक अकेला ऐसा शख़्स नहीं है जो अपने काम का राग अलापता है बल्कि नवीन पटनायक मतदाताओं को अच्छे से समझते हैं, वह अपनी सीमाओं, अपनी महत्वाकांक्षाओं को बख़ूबी जानतें हैं और वो अपनी ऊर्जा और ताक़त को उसी जगह केंद्रित करते हैं जहाँ उसकी आवश्यकता होती है। यदि उनकी प्री इलेक्टोरल वेलफेयर स्कीम्स, उनके अभियानों और रणनीतियों पर एक सरसरी निगाह डाली जाए तो आपको यह समझने में देरी नहीं लगेगी कि लोकसभा चुनाव को लेकर उनकी तैयारी आधी ही थी, क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल ओडिशा विधानसभा चुनाव पर लगा हुआ था।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2019 में ओडिशा में जबरदस्त सफलता पाई है। संसदीय सीटों में 8 गुना वृद्धि और विधानसभा चुनावों में दोगुने से अधिक लाभ प्राप्त किया है। दोनों चुनावों में वोट शेयर भी लगभग दोगुना है। लेकिन, यह संख्या राजनीतिक रणनीतिकारों और विश्लेषकों के लिए हैं। 19 साल की निरंतरता के बाद, 147 में से मात्र 23 सीटें जीतना, वो भी एक ऐसे राज्य में, जिसे भाजपा ने मिशन 120 घोषित करते हुए युद्ध का मैदान बनाया था, यह एक अस्वाभाविक विफलता है। इसका कारण राज्य के नेताओं के बीच संगठन की कमी, आंतरिक तोड़-फोड़, कोई लोकप्रिय चेहरा ना होना है। अगर संक्षेप में कहा जाए, तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि यह सभी कारण नवीन पटनायक के ख़िलाफ़ थे। सच्चाई यह है कि राज्य भाजपा के पास केवल उस व्यक्ति से निपटने के लिए कोई सक्षम उम्मीदवार था ही नहीं।

जैसा कि नवीन पटनायक 5वें कार्यकाल के लिए तैयार हैं, उनके सामने कई चुनौतियाँ हैं। एक चक्रवात से तबाह राज्य को पुनर्जीवित करने और विकास की पटरी पर वापस लाने की ज़रूरत है। हेल्थकेयर, खेती, शिक्षा और रोज़गार पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। नवीन पटनायक को बड़े पैमाने पर जनादेश मिला है और उन्हें सभी सुविधाएँ उपलब्ध करनी होगी। हम अगले पाँच वर्षों के कार्यकाल के लिए उन्हें शुभकामनाएँ देते हैं।

बाल-विवाह जैसी कुरीतियों की जकड़ से बाहर निकल रहा है देश, रिपोर्ट में हुआ साफ़

इंग्लैंड की ‘सेव द चिल्ड्रन’ एनजीओ की ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत में बाल विवाह, बच्चों की सेहत, शिक्षा, बाल-श्रम जैसे मानकों पर देश की स्थिति में सुधार हुआ है। यह रिपोर्ट बुधवार (मई 29, 2019) को आई है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 19 वर्षों में 15 से 19 साल की उम्र वाली लड़कियों की शादी में 51 प्रतिशत की गिरावट आई है और बाल विवाह के कारण किशोरियों के माँ बनने की संख्या में भी 20 लाख की कमी देखने को मिली।

रिपोर्ट में, चाइल्डहुड इंडेक्स में भारत की रैंकिंग सुधरी है। पहले भारत का चाइल्डहुड इंडेक्स 632 था, लेकिन अब यह 769 अंक तक पहुँच गया है। साल 2000 से देश में किशोरावस्था में माता-पिता बनने की दर में भी 63% की गिरावट दर्ज हुई है। बाल मृत्यु दर में 57 प्रतिशत की कमी आई है।

19 साल पहले यानी साल 2000 में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या करीब 13 लाख थी। 2019 तक इस संख्या में 70% की गिरावट देखी गई। यानी 13 लाख से कम होकर अब यह संख्या 3,84,000 हो गई है। लेकिन, नवजात मृत्यु के मामले में सिर्फ 52 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।


ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 में भारत की कोशिशों की सराहना

इसके अलावा 2000 से 2019 तक में भारत ने 5 से 14 साल के बच्चों को बालश्रम से निकालने के मामले में बड़ी सफलता हासिल की है। इसमें 70 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।

2000 में 35 लाख लड़कियाँ कम उम्र में माँ बनती थी जबकि अब यह संख्या 14 लाख है। इस हिसाब से
कम उम्र में माँ बनने वाली लड़कियों की संख्या में इस दौरान 60% की गिरावट आई है।

इस रिपोर्ट में बच्चों के लिए मौजूद सेहत संबंधी सुविधाएँ, शिक्षा, पोषण जैसे मानकों पर 176 देशों में अध्‍ययन किया गया। हालाँकि पिछले 19 वर्षों में 173 देशों में किशोरों से संबंधित हालातों में सुधार आया है। लेकिन ये बिलकुल सच है कि देश के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह अब भी बड़ी समस्या है।

एक ओर शहरी इलाकों में जहाँ किशोरियों की विवाह दर 6.9% है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह लगभग दोगुनी 14.1% है। इस रिपोर्ट में बच्चों का जीवन सुधारने के लिए भारत की कोशिशों को सराहा गया है, लेकिन साथ में यह भी कहा गया है कि जब तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर को खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बढ़ी रहेगी।


ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 के अनुसार टॉप / बॉटम 10 इंडेक्स रैंकिंग

बुलंदशहर: 3 मासूमों की हत्या का मुख्य आरोपित सलमान गिरफ़्तार, इफ्तार को लेकर हुई थी तकरार

बुलंदशहर ट्रिपल मर्डर मामले के मुख्य अभियुक्त को धर दबोचा गया है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को यह बड़ी कामयाबी मिली। सलमान मलिक नामक मुख्य आरोपित को बुधवार (मई 29, 2019) को सीलमपुर क्षेत्र से गिरफ़्तार किया गया। इससे पहले पुलिस बिलाल नामक आरोपित को शिकंजे में ले चुकी है, जिसने तीन मासूमों के हत्या की योजना बनाई थी। पुलिस के अनुसार, सलमान 15 दिनों पहले बुलंदशहर आया था और बिलाल ने उसके रहने के लिए जगह की व्यवस्था की थी। बिलाल को बार-बार परिजनों (माँ की तरफ का रिश्तेदार) द्वारा आगाह किया जा रहा था कि वह ग़लत संगत में रह रहा है। इसीलिए, उन्होंने उसे इफ्तार पार्टी के दिन सलमान को निमंत्रित करने से मना कर दिया।

मामला कुछ यूँ है कि रोजा इफ्तार में न बुलाए जाने के कारण बुलंदशहर, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के सलेमपुर क्षेत्र में होस्ट परिवार के तीन बच्चों की गोली मार कर निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। मृतकों में अब्दुल (8 वर्ष), आसमा (7 वर्ष) और अलीबा (8 वर्ष) तीन बच्चे शामिल थे। इनमें से दो लड़कियाँ और एक लड़का था। हत्या के बाद बच्चों के शव घटनास्थल से 15 किलोमीटर दूर ले जाकर सलेमपुर थाने के अंतर्गत आने वाले धतूरी गाँव के एक कुएँ में फेंक दिए गए थे। हत्या का खुलासा तब हुआ जब बच्चों की लाश शनिवार सुबह पुलिस ने कुएँ से बरामद किया।

यह साफ़ हो गया था कि हत्याकांड को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही आपसी रंजिश के चलते अंजाम दिया, लेकिन उसके बाद भी कुछ लोग इसे जबरदस्ती हिन्दू-मुस्लिम विवाद का रूप देने से लेकर ‘मोदी का न्यू इंडिया’ तक को घसीटने के कुटिल प्रयास किए गए। ऐसे में क्षेत्र और प्रदेश में बेवजह का साम्प्रदायिक तनाव फैलने का खतरा मंडराने लगा था। 

घोर कम्युनिस्ट लेकिन ‘मोदी प्रशंसक’ को शपथग्रहण समारोह का मिला न्योता

आज नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में लगभग 8000 लोग सम्मिलित होंगे। बिम्सटेक (BIMSTEC) के सदस्य देशों के अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव समर्थकों को भी समारोह में बुलाया गया है। बंगाल के उन भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों को भी न्योता दिया गया है जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान हुई राजनैतिक हिंसा में प्राण गंवा दिए थे।

नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले रहे होंगे तब उसमें विचारधारा के बिलकुल उलटे छोर पर स्थित उनकी एक प्रशसंक भी होंगी। उनका नाम है रीना साहा जो बंगाल से आती हैं और घोर कम्युनिस्ट हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में सीपीआई के मोहम्मद सलीम को वोट भी दिया है।

रीना साहा भगवान कृष्ण की भक्त हैं और गले में तुलसी माला पहनती हैं। वो गुजरात के विकास मॉडल की प्रशसंक हैं। उनके अनुसार बंगाल आज भी गुजरात से इतना पिछड़ा है कि वहाँ तक पहुँचने में बंगाल को अभी सौ साल लगेंगे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में रीना ने यह बातें कही हैं। रीना ने यहाँ तक कहा कि कि वो गुजरात 22 दिन घूमकर आई हैं और उनके अनुसार गुजरात स्वर्ग जैसा है। इसका श्रेय वो मोदी को देती हैं लेकिन अपना वोट उन्होंने सीपीआई को ही दिया है।

रीना साहा एक समर्पित कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं और पंचायत स्तर पर भी काम कर चुकी हैं। साहा शपथग्रहण समारोह का निमंत्रण मिलने पर बहुत खुश हैं और उनकी इच्छा है कि वो स्वयं नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें बधाई दें सकें। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी की जीत उनके काम को प्रमाणित करती है।

एयरसेल मैक्सिस केस: चिदंबरम पिता-पुत्र को सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त तक दी गिरफ़्तारी से राहत

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को गिरफ़्तारी से राहत प्रदान किया है। चिदंबरम पिता-पुत्र की गिरफ़्तारी से राहत की अवधि बढ़ा कर अगस्त तक कर दी गई है। एयरसेल-मैक्सिस केस में अनियमितता के आरोप में दोनों कॉन्ग्रेस नेताओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार गिरफ़्तारी से राहत प्रदान की जा चुकी है। कार्ति चिदंबरम हाल ही में सांसद बने हैं और उन्होंने शिवगंगा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए भाजपा के डी राजा को 3,32,000 से भी अधिक मतों के अंतर से हराया। तमिलनाडु में डीएमके से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही कॉन्ग्रेस को 8 सीटें आईं।

चिदंबरम पिता-पुत्र के ख़िलाफ़ सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सरकारी एजेंसियाँ जाँच कर रही हैं। दोनों की गिरफ़्तारी से छूट की अवधि 30 मई को समाप्त हो रही थी, जिसे आगे बढ़ने के लिए इन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। गुरुवार (मई 30, 2019) को हुई सुनवाई के दौरान ओपी सैनी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह अवधि आगे बढ़ा दी। ईडी ने दोनों की अग्रीम जमानत पर दलीलें पेश करने के लिए तीन सप्ताह का समय माँगा है। एजेंसी ने कहा कि उसके निदेशक सिंगापुर गए हुए हैं और जिन बैंक खातों की जाँच चल रही है, उनके बारे में सारी जानकारियाँ उपलब्ध हैं।

इससे पहले छह मई को पी चिदंबरम और कार्ति को दिल्ली की अदालत ने 30 मई तक गिरफ्तारी से छूट प्रदान की थी। एजेंसियों ने अदालत में कहा था कि मामले की पूरी जाँच के लिए उनकी टीमें ब्रिटेन और सिंगापुर गई हुई हैं।

पी. चिदंबरम पर आरोप है कि उन्होंने वित्त मंत्री रहते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी। उन्हें 600 करोड़ रुपए तक के निवेश की मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन यह सौदा करीब 3500 करोड़ रुपयों के निवेश का था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपने अलग आरोप पत्र में कहा है कि कार्ति चिदंबरम के पास से मिले उपकरणों में से कई ई-मेल मिली हैं, जिनमें इस सौदे का जिक्र है। इसी मामले में पूर्व टेलिकॉम मंत्री दयानिधि मारन और उनके भाई कलानिधि मारन भी आरोपित हैं। 

पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले मुश्ताक ने खोले कई राज

आर्मी स्टेशन रत्नूचक की जानकारी पाकिस्तान भेजने के आरोप में कल (मई 29, 2019) जिन दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था। उनसे पूछताछ में अहम खुलासे हुए हैं। जाँच में इनके पास से दो मोबाइल बरामद किए गए, जिनमें एक दर्जन से ज्यादा नंबर पाकिस्तान के हैं। संदिग्धों ने इनमें से एक नंबर पर स्टेशन की वीडियो बनाकर भेजी थी। पूछताछ में मालूम चला है कि वीडियोग्राफी की योजना हिमाचल प्रदेश के शिमला में बनाई गई थी, क्योंकि दोनों संदिग्ध शिमला में ही एक दूसरे के संपर्क में आए थे। शिमला में ही डोडा के रहने वाले मुश्ताक ने और कठुआ के रहने वाले नदीम अख्तर में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दिन के लिए काम करने की सहमति बनी थी।

डोडा से मजदूरों को हिमाचल प्रदेश ले जाने वाला मुश्ताक पेशे से ठेकेदार है। शिमला में उसका संपर्क नदीम से हुआ था और उसने उसे हिजबुल के लिए काम करने के लिए तैयार किया। साथ ही, मुश्ताक कई अन्य युवकों को भी हिजबुल के लिए काम करने के लिए तैयार कर रहा था। अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक मुश्ताक का एक चचेरा भाई शाहनवाज खान कुछ समय पहले पीओके के कोटली जाकर आतंकी बन गया था।

शाहनवाज और मुश्ताक में लगातार बात होती रहती है। नदीम को अपने साथ जोड़ने के लिए उसने शाहनवाज के नाम का ही सहारा लिया। मुश्ताक ने नदीम को बताया कि अगर वह हिजबुल के लिए काम करेगा तो उसे मोटी रकम मिलेगी। इसके बाद ही दोनों के बीच सहमति बनी और दोनों हिजबुल के लिए काम करने लगे। मुश्ताक के खाते में आतंकी संगठन से पैसे भी आने शुरू हो गए। दोनों मिलकर आर्मी स्टेशनों की जानकारी पीओके भेजने लगे।

इन दोनों संदिग्धों से लगातार तमाम सुरक्षा एजेंसियाँ पूछताछ कर रही हैं। पूछताछ में इन लोगों ने कुछ और लोगों के नाम बताए हैं, जिनको पकड़ने के लिए बुधवार (29 मई) को पुलिस ने कई इलाकों में छापेमारी की। इनसे पूछताछ में पता चला कि इन दोनों को पाकिस्तान में जानकारी भेजने के लिए मोटी रकम मिलती थी। खबरों के मुताबिक शाहनवाज ने रत्नूचक आर्मी स्टेशन की रेकी (टोह लेना) करने का काम मुश्ताक को दिया था। इसी कार्य के लिए मुश्ताक और नदीम विशेष तौर पर शिमला से जम्मू आए थे। यहाँ आकर दोनों ने रेकी भी की थी और अपने मोबाइल फोन से जम्मू के सैन्य ठिकानों की जानकारी पीओके में बैठे हैंडलर को भी भेजी थी।

जानकारी प्राप्त होते ही वहाँ बैठे हैंडलर इन्हें थंब्स अप का साइन भेजते थे, जिससे यह सुनिश्चित होता था कि भेजे गए फोटो और वीडियो देख लिए गए हैं। बताया जा रहा है कि इन दोनों ने जम्मू के नगरोटा, सतवारी के आर्मी स्टेशन, कालू चक आदि की भी वीडियोग्राफी कर रेकी की थी।