Wednesday, November 20, 2024
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केजरीवाल करेंगे अपनी JCB लेकर खुदाई शुरू, कहा- अटेंशन के साथ नहीं कर सकते कोई समझौता

लोकसभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एकदम सुस्त पड़ गए हैं। देखा जाए तो आराम करने और रिफ्रेशमेंट के लिए नरेंद्र मोदी को नहीं बल्कि अरविन्द केजरीवाल को केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाने के लिए भेजा जाना चाहिए था। लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से जो निरंतर और पूर्ण मनोरंजन का राज्य बनाने का भरोसा दिलाया है, वो उस पर अडिग हैं।

दिल्ली को पूर्ण मनोरंजन दिलाने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने कमर कसी ही थी कि नरेंद्र मोदी ने उनके काम में बाधा डालने के लिए एक और अड़ंगा डाल दिया, जिससे कि अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली की जनता को पूर्ण मनोरंजन देने और बदले में सम्पूर्ण अटेंशन लेने में समस्या आने लगी है।

JCB को मिल रही है फुल TRP

सोशल मीडिया पर अचानक से जेसीबी की खुदाई ट्रेंड करता देख अरविन्द केजरीवाल के रोंगटे खड़े हो गए। जैसे ही उन्होंने सबसे हैंडसम व्यक्ति मनीष सिसोदिया से इस पूरे जेसीबी मामले की जानकारी माँगी, उन्हें पता चला कि मनीष सिसोदिया भी खुद निकटस्थ जेसीबी की खुदाई देखने निकल चुके हैं। यह देखकर अरविन्द केजरीवाल के आत्मसम्मान को बहुत ठेस लगी और उन्होंने आत्मचिंतन कर पता किया कि जनता जेसीबी की खुदाई में उनसे ज्यादा इंट्रेस्ट सिर्फ इसलिए ले रही है क्योंकि वो चुनाव में गठबंधन के लिए भीख माँगने की व्यस्तता के कारण
जनता को स्तरीय मनोरंजन देने में विफल रहे हैं और इसी वजह से उनका फैन बेस शिफ्ट होता जा रहा है।

चंदा माँगकर व्यक्तिगत JCB खरीदेंगे केजरीवाल

जनता का सारा ध्यान जेसीबी की ओर जाता हुआ देखकर अरविन्द केजरीवाल ने ऑनलाइन जनमत संग्रह करने का फैसला लिया, जिसमें किसी के भी भाग न लेने को ही जनता की “हाँ” समझकर अरविन्द केजरीवाल ने व्यक्तिगत जेसीबी खरीदने का निर्णय लिया और अंततः पार्टी कार्यकारिणी में तय किया गया कि इसके लिए वो जनता से चंदा भी माँगेंगे। लेकिन जब उनके व्यक्तिगत सलाहकार ने केजरीवाल को याद दिलाया कि “सर जी! जब रैपट खाने से ही चंदा नहीं आया तो फिर जेसीबी लेकर स्टंट दिखाने के लिए कैसे आएगा? वो भी जब हर गली-मोहल्ले में लोगों को फ्री में जेसीबी की खुदाई देखने को मिल जाती है तो फिर वो आपको चंदा देकर जेसीबी खरीदकर मारक मजा लेने आपके पास क्यों आएँगे?”

इस तथ्य की गंभीरता को समझकर अरविन्द केजरीवाल को थोड़ा सा निराशा जरूर हुई, लेकिन उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब उनसे JNU की फ्रीलांस प्रोटेस्टर और बलात्कार पीड़ितों के नाम पर चंदा इकठ्ठा कर के अकेले डकार जाने वाली हायब्रिड वामपंथ की डोमेस्टिक विचारक शेहला रशीद ने उनसे #मिशन_चंदा में सहयोग का वादा किया।

तीखी मिर्ची लिखे जाने तक आम आदमी वालंटियर्स और पार्ट टाइम वामपंथन शेहला रशीद के साथ कामरेड सड़कों पर लोगों से जेसीबी के आगे का पल्ला खरीदने लायक चंदा इकठ्ठा कर चुके थे। बाकी का चंदा उन्हें एक विश्वविद्यालय के छात्र ने अपनी स्कालरशिप देकर जुटाने की मदद की है, जिसके पीछे तर्क सिर्फ और सिर्फ पूंजीवादी बूर्जुआ जेसीबी के मनोरंजन पर एकाधिकार से जनता को निजात दिलाना बताया गया है।

मोदी जी ने नहीं दी खुदाई की परमिशन

अपनी व्यक्तिगत जेसीबी के माध्यम से जनता को पूरा मनोरंजन देकर सारी अटेंशन जुटाने के अरविन्द केजरीवाल के अरमानों को तब गहरा आघात लगा, जब उनकी यह फ़ाइल केंद्र सरकार द्वारा रोक दी गई और उन्हें अपनी व्यक्तिगत जेसीबी से खुदाई करने की इजाजत नहीं मिल पाई। गुस्साए अरविन्द केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर तुरंत इसमें सूँघकर मोदी और अमित शाह का हाथ बताते हुए खुलासा किया कि इस फ़ाइल को अनुमति न देने के पीछे भाजपा के इन्हीं दो नेताओं का हाथ है।

साथ ही, अरविन्द केजरीवाल ने बेहद भावुक कर देने वाले मार्मिक शब्दों में कहा, “मैं सिर्फ सड़कों पर लप्पड़ खाकर ही आखिर कब तक अटेंशन जुटाता रहूँगा? एक ओर स्वरोजगार का दिखावा करते हैं और दूसरी ओर मोदी जी चाहते हैं कि केजरीवाल के गाल रैपट खा-खाकर ही टेढ़े हो जाएँ और मैं मनोरंजन के नए आयाम न तलाश सकूँ ये किस तरह की राजनीति है?”

केजरीवाल के इस आरोप में उनके मशहूर ऑनलाइन ट्रोल और आँकड़ों यानी, फैक्ट एंड फिगर्स में बात करने वाले यूट्यूब एक्सपर्ट ध्रुव लाठी ने भी बताया कि मार्केट में ‘ऑलरेडी वन पॉइंट नाइन फाइव सिक्स हेक्सा डेसिमल‘ जेसीबी वर्किंग हैं जो मोदी जी ने विदेशी संस्थाओं के साथ टाई-अप कर के काम पर लगवाए हैं। इतने बड़े आँकड़ों को अंग्रेजी में इंटरनेट पर सुनने के बाद कई सोशल मीडिया विचारक और कॉन्सपिरेसी थ्योरी एक्टिविस्ट्स ने भी कहा है कि इतने बड़े आँकड़ों को अंग्रेजी में सुनने के बाद झूठा मानना बेवकूफी होगी।

इसके बाद केजरीवाल के वायदे के मुताबिक़, दिल्ली में चप्पे-चप्पे पर लगाए गए CCTV कैमरा के माध्यम से एक तस्वीर जारी हुई है। जिसमें व्यक्तिगत जेसीबी से खुदाई तो दूर, दूसरे किसी जेसीबी की खुदाई करते हुए देखने से केंद्र सरकार ने अरविन्द केजरीवाल को परमिशन देने से इंकार कर दिए जाने पर केजरीवाल की फूट-फूट कर रोती हुई एक दुर्लभ किन्तु मार्मिक तस्वीर सामने आई है।

फासिस्ट सरकार द्वारा जेसीबी खुदाई और दिखाई की अनुमति ना मिलने पर कार्यकर्ताओं द्वारा जबरन मौक़ा ए वारदात तक धरना देने के लिए अरविन्द केजरीवाल को उठाकर ले जाते हुए एकजुट आम आदमी कार्यकर्ता

बेटे के लिए 93 तो पार्टी के लिए सिर्फ़ 37 रैलियाँ: मुख्यमंत्री गहलोत से कॉन्ग्रेस आलाकमान नाराज़

राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक तरफ जहाँ प्रदेश के कृषि मंत्री अपना इस्तीफा देकर और फोन स्विच ऑफ कर के नैनीताल में मंदिरों के दर्शन को निकल भागे हैं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे दिल्ली पहुँचे, जहाँ कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। कॉन्ग्रेस अभी राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व संकट से जूझ रही है और राहुल गाँधी सहित गाँधी परिवार के अन्य वफादार नेता लगातार बैठक कर रहे हैं। अभी हाल ही में ख़बर आई थी कि राहुल गाँधी ने अशोक गहलोत, पी चिदंबरम और कमलनाथ जैसे नेताओं को आड़े हाथों लिया।

राहुल गाँधी ने इन तीनों नेताओं को ‘पुत्र-प्रेम’ को पार्टी से ऊपर रखने का आरोप लगाया। राहुल गाँधी का मानना था कि अगर इन नेताओं ने अपने बेटों के क्षेत्रों में सारा समय खपाने की जगह पार्टी के चुनाव प्रचार पर ध्यान दिया होता तो शायद पार्टी को इतना नुकसान नहीं होता। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रैलियों की पड़ताल करें तो आँकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। अशोक गहलोत ने कॉन्ग्रेस के लिए बाकी 24 सीटों पर जितनी मेहनत की, उसका ढाई गुना सिर्फ़ जोधपुर सीट को दिया क्योंकि उस सीट से उनके बेटे वैभव गहलोत चुनाव लड़ रहे थे।

जोधपुर अशोक गहलोत की पुरानी राजनीतिक कर्मभूमि रही है। वह जोधपुर लोकसभा सीट को पाँच बार जीत चुके हैं। 1991, 1996 और 1998 लोकसभा चुनावों में उन्होंने इसी सीट से जीत की हैट्रिक लगाई थी। लेकिन, अब सब बदल गया है। रिपब्लिक टीवी की ख़बर के अनुसार, ताज़ा लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत ने प्रदेश में कुल 130 रैलियाँ की, जिनमें से 93 रैलियाँ उन्होंने अकेले अपने बेटे वैभव के लिए कीं। अशोक गहलोत ख़ुद जोधपुर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। जोधपुर लोकसभा से 5 बार जीत चुके गहलोत ने सरदारपुरा विधानसभा से भी 5 बार जीत दर्ज की है।

इसी क्षेत्र में अब तक 10 चुनाव जीत चुके गहलोत की 93 रैलियों का कोई असर नहीं हुआ और उनके ख़ुद के ही विधानसभा क्षेत्र में उनके बेटे लीड नहीं ले सके। सरदारपुरा में वैभव गहलोत लगभग 18,000 मतों से पीछे छूट गए। मुख्यमंत्री के एक ही क्षेत्र में सीमित रह जाने का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा और पूरे राजस्थान में कॉन्ग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। राज्य की सत्ताधारी पार्टी का इस तरह खाता भी न खोल पाना अशोक गहलोत के प्रति लोगों के असंतोष का भी परिचायक बना।

कुल मिलाकर देखें तो मुख्यमंत्री ने 71% रैलियाँ सिर्फ़ अपने बेटे के लिए की, बाकी की 29% रैलियाँ उन्होंने जोधपुर के अलावा अन्य क्षेत्रों में की। अब जब मंत्रियों द्वारा जवाबदेही तय करने की माँग की जा रही है, गहलोत पर दबाव बढ़ना तय है। जोधपुर में भाजपा उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह शेखावत को 788888 मत मिले, वैभव गहलोत 514448 मत पाकर क़रीब पौने 3 लाख मतों से पीछे छूट गए। शेखावत को 58.6% मत मिले जबकि वैभव को कुल मतों का 38.21% हिस्सा ही मिल पाया। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत की इस मनमानी और लापरवाही के लिए पार्टी आलाकमान उन पर इस्तीफे का दबाव बना रहा है, जिसके लिए वह तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि राहुल उनसे नहीं मिले।

आँगनबाड़ी में रोज पढ़ने जाती है IAS की बेटी, राज्यपाल ने की सराहना

हम अक्सर देखते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को बढ़िया से बढ़िया शिक्षा दिलवाने के लिए उसे प्राइवेट स्कूलों में भेजना उचित समझता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम मान चुके हैं कि हमारे समाज में सरकार द्वारा संचालित शिक्षा व्यवस्था चरमराई हालत में है। हम हाई क्लास लोगों के बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देखते हैं तो मान लेते हैं कि सरकारी स्कूल उनके बच्चे में ये गुण विकसित नहीं कर पाएँगे।

ऐसी सोच के साथ जब हम चाहकर भी अपने बच्चे का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में नहीं करवा पाते, तो खुद को कोसते हैं। ऐसे लोगों के लिए मध्य प्रदेश के डिस्ट्रिक्ट अधिकारी और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट पंकज जैन एक उदाहरण होने चाहिए, जिन्होंने सरकार की शिक्षा व्यवस्था पर यकीन जताया और अपनी बेटी का दाखिला किसी बड़े नर्सरी स्कूल की जगह आँगनबाड़ी में करवाया है।

मध्य प्रदेश के कटनी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट पंकज जैन की बेटी का नाम पंखुड़ी है। वो हर रोज आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ने जाती हैं। जिसका श्रेय आईएएस अधिकारी पंकज जैन की सकारात्मक सोच को जाता है। वो चाहते तो अन्य अधिकारियों की तरह पंखुड़ी को भी किसी बड़े स्कूल में भेज सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

जिला मजिस्ट्रेट पंकज जैन का कहना है कि उनकी बेटी जिस आँगनबाड़ी में पढ़ने जाती है, उस केंद्र के अलावा वहाँ के चार-पाँच केंद्र किसी प्ले स्कूल से कम नहीं हैं। उनका कहना है कि जब कोई जिम्मेदार अधिकारी अपने बच्चों को ऐसे केंद्रों में भेजता है तो हालात अपने आप सुधरने लगते हैं। कोई कमी होने पर लोग इस पर खुद नज़र रख पाते हैं और सुधार लाने के लिए टोकते भी हैं।

पंकज जैन के इस कदम की जानकारी जब मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन को हुई तो उन्होंने आईएएस अधिकारी पंकज जैन को बधाई दी। राज्यपाल आनंदी बेन ने अपनी खुशी को जाहिर किया और उन्हें एक लेटर भी भेजा। इस पत्र में उन्होंने लिखा, “लोक सेवक समाज में प्रेरणा के केंद्र होते हैं, उनके आचरण का समाज पालन करता है। कर्तव्यों के प्रति आपकी सहजता ने मुझे काफी ज्यादा प्रभावित किया है, आपके इस प्रयास से शासकीय सेवकों का दायित्व बोध बढ़ेगा।”

पत्र में राज्यपाल ने आगे लिखा कि पंकज के इस कदम से सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी संचालन के प्रति सकारात्मक चेतना का संचार होगा। राज्यपाल ने मजिस्ट्रेट पंकज को शुभकामनाएँ दी और कहा कि आशा है वो लोकसेवा के रूप में इसी निष्ठा और समर्पण के साथ जनसेवा में लगे रहेंगे।

मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन का ये पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और हर जगह पंकज जैन के इस कदम को सराहना मिल रही है और उनकी तारीफ़ हो रही है।

CBI की रडार पर कमलनाथ के करीबी, दिग्विजय समेत 11 कॉन्ग्रेस प्रत्याशी की बढ़ सकती है मुश्किलें

आयकर विभाग ने अप्रैल में कमलनाथ के करीबियों के घर हुई छापेमारी के बाद इकट्ठा किए गए सबूत और उसकी रिपोर्ट सीबीआई को सौंप दी है। विभाग के इस कदम के बाद कमलनाथ के करीबियों की मुश्किलें बढ़नी तय है, क्योंकि इस मामले में बड़ी कार्रवाई हो सकती है। हालाँकि, कमलनाथ इस तरह के सभी आरोपों को खारिज कर चुके हैं। खबर के मुताबिक, आयकर विभाग ने चुनाव आयोग को जो सबूत और जाँच रिपोर्ट सौंपी है, वो हाल ही में खत्म हुए लोकसभा चुनाव के दौरान 11 कॉन्ग्रेस प्रत्याशियों को कथित तौर पर भारी रकम ट्रांसफर किए जाने की ओर इशारा करती है। आरोप ये भी है कि ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी को ₹20 करोड़ की रकम का भुगतान किया गया।

बता दें कि, 7 अप्रैल, 2019 को जिन लोगों के यहाँ छापे मारे गए थे, उनमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से जुड़े 5 लोग थे। आयकर विभाग ने जाँचकर्ताओं के बयान के साथ-साथ उनके अकाउंट को भी मिलाया है। इसके अलावा व्हाट्सएप चैट के जरिए पैसों के लेन-देन का भी पता लगाया गया है और साथ ही फोन पर की गई बातचीत भी रिकॉर्ड की गई है। इन पर आरोप है कि विभिन्न प्रत्याशियों के इस्तेमाल के लिए पैसे को डायवर्ट किया गया था। हालाँकि, फोन पर हुई बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट चुनाव आयोग के पास दाखिल नहीं किए गए हैं। चुनाव आयोग ने इस मामले में 4 मई को लिखित में सिफारिश की है कि इसमें सीबीआई जाँच की जाए।

जाँचकर्ताओं के रिकॉर्ड से पता चलता है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और इस बार भोपाल से चुनाव लड़ने वाले दिग्विजय सिंह उन प्रत्याशियों की सूची में शीर्ष पर हैं, जिन्हें तलाशी अभियान की जद में आए लोगों से चुनाव के लिए फंड मिले थे। आयकर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, ये जानकारी ललित कुमार चलानी नामक शख्स के कम्प्यूटर से मिली है। ललित एक सीए हैं, जो कमलनाथ के पूर्व सहयोगी आरके मिगलानी और प्रवीण कक्कड़ के साथ काम कर चुके हैं।

ललित के जरिए कथित तौर पर लोकसभा प्रत्याशियों को 25 से 30 लाख रुपए की रकम दी गई। अकेले दिग्विजय सिंह को ही ₹90 लाख मिले। वहीं भुगतान से जुड़ी रसीदें महज दो मामलों में मिली हैं। पहली सतना से राजाराम प्रजापति और दूसरी बालाघाट से मधु भगत। इस मामले पर चुनाव आयोग का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशियों ने जो खर्च किया है, उसका लेखा-जोखा जून के अंत तक आ जाएगा, जिसके बाद ही किसी तरह की कोई कार्रवाई की जाएगी।

जिन अन्य लोकसभा प्रत्याशियों को फंड मिलने का आरोप हैं, उनमें मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन, मंडला से कमल माडवी, शहडोल से प्रमिला सिंह, सिद्धि से अजय सिंह राहुल, भिंड से देवाशीष जरारिया, होशंगाबाद से शैलेंद्र सिंह दीवान, खजुराहो से कविता सिंह नटिराजा और दामोह से प्रताप सिंह लोधी शामिल हैं।

इस मामले पर सीएम कमलनाथ ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है। उनका कहना है कि ये मामला सीबीआई को भेजने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। आईटी विभाग के निष्कर्षों में यह भी आरोप है कि मध्यप्रदेश में सरकारी विभागें से बहुत बड़े पैमाने पर पैसा जुटाया गया। इस बारे में विस्तृत जानकारी कमलनाथ के पूर्व ओएसडी प्रवीण कक्कड़ के व्हॉट्सएप मैसेजों से मिले हैं।

इसके अनुसार, परिवहन विभाग के नाम पर 54.45 करोड़, एक्साइज विभाग के नाम पर 36.62 करोड़, खनन विभाग के नाम पर 5.50 करोड़, पीडब्ल्यूडी विभाग के नाम पर 5.20 करोड़ और सिंचाई विभाग के नाम पर 4 करोड़ रुपए कथित तौर पर ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी को ट्रांसफर किए गए। वहीं, चलानी के फोन से मिले सबूतों से पता चलता है कि ₹17 करोड़ कथित तौर पर ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी को ट्रांसफर किए गए थे। इन पैसों का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव में होना था।

ममता को बड़ा झटका: TMC के 3 विधायक और कई पार्षद आज होंगे BJP में शामिल!

लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद आज (मई 28, 2019) ममता बनर्जी को एक और बड़ा झटका लग सकता है। खबर के मुताबिक, ममता की पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) से हाल ही में सस्पेंड हुए मुकुल रॉय के बेटे और विधायक सुभ्रांशु रॉय भाजपा में शामिल हो सकते हैं। बता दें कि सिर्फ शुभ्रांशु ही नहीं, बल्कि उनके साथ 2 और विधायक तथा कई अन्य पार्षद भीभाजपा में शामिल हो सकते हैं।

मुकुल रॉय के बेटे शुभ्रांशु रॉय को शुक्रवार (मई 24, 2019) को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 6 साल के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। जिसके बाद सुभ्रांशु ने बीजेपी में शामिल होने का मन बना लिया है। बता दें कि, सुभ्रांशु के पिता मुकुल रॉय ने साल 2017 में तृणमूल कॉन्ग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी का झंडा थाम लिया था और अब उसी राह पर चलते हुए सुभ्रांशु रॉय भी मोदी नाम के नारे को बुलंद करने वाले हैं। सुभ्रांशु के अलावा नोआपारा से विधायक सुनील सिंह और बैरकपुर के विधायक शीलभद्र दत्ता मुकुल रॉय के साथ दिल्ली पहुँच चुके हैं। इन तीनों नेताओं के आज शाम 4 बजे बीजेपी दफ्तर में पार्टी में शामिल होने की खबर है।

गौरतलब है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में बड़ी सफलता हासिल की है। साल 2014 में मात्र 2 सीटों पर सिमटी भाजपा ने इस बार 18 सीटों पर जीत हासिल की। इस जीत में मुकुल रॉय का बड़ा रोल बताया जा है। इनकी रणनीतियों ने भाजपा को बड़ी कामयाबी दिलाने में बड़ा योगदान दिया है।

वहीं, बीजेपी की बड़ी सफलता से बौखलाई हुई ममता बनर्जी ने पार्टी से इस्तीफा देने का नाटक किया। इस बारे में बात करते हुए मुकुल रॉय कहते हैं कि ये सब ममता बनर्जी के नाटक के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने ये सब कुछ केवल समाचार की सुर्खियों में बने रहने के लिए किया। वो खुद ही पार्टी (टीएमसी) हैं। रॉय ने कहा कि उन्होंने (ममता) खुद को ही इस्तीफा दिया और फिर खुद ही खारिज भी कर दिया। किसी ने भी उनके इस्तीफे के कागजात नहीं देखे। वो कहते हैं कि ममता को सत्ता और पावर से बहुत प्यार है और वो कभी भी अपने मन से इस्तीफा नहीं देंगी। वो तभी सत्ता को छोड़ेंगी, जब पश्चिम बंगाल की जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करके उन्हें बाहर निकाल फेंकेगी।

अब्दुल ने हवाई जहाज में महिला क्रू के सामने खोली पैंट की जिप, करने लगा अश्लील इशारे

जेद्दाह से नई दिल्ली जाने वाली सऊदी एयरलाइंस की फ्लाइट में एक शर्मनाक घटना हुई। दरअसल, फ्लाइट में सिगरेट पीने से रोकने पर 24 वर्षीय अब्दुल शाहिद शम्सुद्दिन ने महिला क्रू के सामने अपने पैंट की जिप खोल दी। उसके साथ गाली-गलौच की और सिगरेट जलाने पर अड़ा रहा। जानकारी के मुताबिक अब्दुल केरल के कोट्टयम का रहने वाला है।

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक पहले अब्दुल शाहिद ने खूब हंगामा किया। जब महिला क्रू ने बाकी स्टाफ़ के लोगों को अपनी सहायता के लिए बुलाया, तो उसने अपने पैंट की जिप खोल दी और महिला को अश्लील इशारे करने लगा। दिल्ली में फ्लाइट लैंड होते ही इस पूरे वाकये की जानकारी हवाई अड्डे के संचालन नियंत्रण को दी गई। साथ ही इस मामले के बारे में सीआईएसएफ को भी सूचित किया गया।

शिकायत मिलते ही सुरक्षाकर्मियों ने आरोपित को हिरासत में ले लिया। अब्दुल को आईजीआई एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन ले जाया गया और आगे की कार्रवाई के लिए उसे दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया।

आज़ाद भारत में नेहरू ने सावरकर पर लगाया ‘प्रतिबन्ध’, जानिए फिर शास्त्री ने कैसे किया ‘न्याय’

विनायक दामोदर सावरकर भारत के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक रहे हैं, जिनकी विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी आज से कई दशक पहले थी। उन्हें हिंदुत्व का पुरोधा माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि अंग्रेजों के अलावा कोई और भी था, जिसने सावरकर पर प्रतिबन्ध लगाया? अंग्रेजों के अलावा कोई और भी था, जिसने सावरकर को चुप कराना चाहा? अंग्रेजों के अलावा कोई और भी था, जिसने सावरकर के मुँह पर ताला मारने की कोशिश की थी? विडंबना यह है कि जिस भारत को आज़ाद कराने में सावरकर ने अपना तन-मन-धन सब कुछ न्यौछावर किया, उसी आज़ाद भारत की सरकार ने सावरकर को प्रतिबंधित किया। भारत की परिकल्पना सावरकर ने की थी, जिस स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कालापानी की सज़ा काटी थी, उसी स्वतंत्र भारत में उनका मुँह सील दिया गया।

सावरकर 1960 के दशक में अक्सर अस्वस्थ रहते थे। उससे कई वर्ष पहले 1948 में, जैसा कि हमें पता है, नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या कर दी थी, जिसके बाद सावरकर गिरफ़्तार हुए थे। तब गुस्साई भीड़ ने उनके घर के ऊपर पत्थरबाज़ी की थी। हालाँकि, सावरकर सभी आरोपों से बरी हुए और क़ानून ने उन्हें दोषी नहीं माना। उस समय देश में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही थी। नेहरू सरकार को सावरकर के भाषणों से दिक्कतें थीं। नेहरू सरकार को सावरकर के भाषणों से समस्याएँ थी। इसलिए आज़ाद भारत में सावरकर को फिर से प्रतिबंधित किया गया।

वीर सावरकर को गिरफ़्तार किया गया, उन पर हिन्दू-मुस्लिम एकता का विरोधी होने का आरोप लगा। सावरकर पर हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच तनाव पैदा करने का आरोप लगा। सभी स्वतन्त्रता सेनानियों को मानदेय मिलता था लेकिन सावरकर को शायद नेहरू सरकार स्वतन्त्रता सेनानी नहीं मानती थी, तभी उन्हें इससे वंचित रखा गया। हालाँकि, सावरकर के अनुयायी उनके लिए वित्त से लेकर अपना समय और परिश्रम तक, सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते थे, लेकिन भारत की सरकार ने उन्हें किसी भी प्रकार के वित्तीय मदद से वंचित रखा। बढ़ते दबाव के बाद सरकार ने उन्हें रिहा तो किया लेकिन उसके लिए भी एक शर्त लगाई।

सावरकर को इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह अब अपनी राजनीतिक गतिविधियों पर लगाम लगाएँगे। सावरकर की राजनीतिक गतिविधियों से किसे भय था? सावरकर की राजनीतिक सक्रियता किसके लिए परेशानी और समस्या का कारण बन रही थी? खैर, सावरकर ने राजनीतिक सक्रियता तो बंद कर दी लेकिन वह सामाजिक कार्यक्रमों में जाते रहे, पुस्तकें लिखते रहे और सामाजिक सेवा में अपना योगदान देना जारी रखा। हाँ, उन्हें कॉन्ग्रेस सरकार से थोड़ा-बहुत सम्मान मिला, लेकिन वह प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के शासनकाल में मिला। शास्त्री ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सावरकर को प्रति महीने 2000 रुपए का मानदेय देना शुरू किया, लेकिन इससे भी कई लोगों को दिक्कतें थीं।

संसद में सावरकर को पेंशन दिए जाने को लेकर आवाज़ उठी। कॉन्ग्रेस नेता आबिद अली जाफरभाई ने सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने पूछा कि “सावरकर जैसे व्यक्ति” को पेंशन क्यों दिया जा रहा है? इस पर लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने स्वीकार किया कि सावरकर इस देश के स्वतन्त्रता सेनानी हैं और उन्हें इसीलिए पेंशन दी जा रही है। हालाँकि, नेहरू सरकार के दौरान 2 वर्षों बाद सावरकर पर से राजनीतिक प्रतिबन्ध हटा दिया गया था, जिसके बाद वह फिर से सक्रिय हो सके लेकिन तब तक उनके स्वास्थ्य ने जवाब देना शुरू कर दिया था।

सावरकर और कॉन्ग्रेस के रिश्ते अच्छे नहीं थे, इसका प्रमुख कारण जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के 100 वर्ष पूरे होने के पश्चात आयोजित कार्यक्रम में उनके साथ मंच साझा करने से इनकार कर दिया था। लेकिन, क्या आपको पता है कि कॉन्ग्रेस में सभी कोई नेहरू की तरह ही सोच नहीं रखते थे। हालाँकि, सावरकर की मृत्यु के बाद कोई कॉन्ग्रेस का मंत्री उनके अंतिम क्रिया-कर्म में शामिल होने या उन्हें श्रद्धांजलि देने नहीं गया लेकिन कभी एक समय ऐसा भी आया था, जब सावरकर के हिन्दू महासभा के साथ कॉन्ग्रेस के गठबंधन की बातें चल रही थीं। इसके लिए देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लवभाई पटेल ने प्रयास भी किया था।

सरदाल पटेल और सीडी देशमुख जैसे नेता यह चाहते थे कि सावरकर और उनकी हिन्दू महासभा कॉन्ग्रेस के भीतर ‘कंजर्वेटिव ताक़तों’ का साथ दें और इसके लिए दोनों नेताओं ने प्रयास भी किया लेकिन सावरकर और नेहरू के बीच की तल्खी के कारण यह संभव नहीं हो सका। इसका अर्थ यह है कि सरदार पटेल के मन में सावरकर के लिए सॉफ्ट कॉर्नर था। सरदार पटेल ने कॉन्ग्रेस और सावरकर को साथ जोड़ने की कोशिश की। लाल बहादुर शास्त्री ने सावरकर को पेंशन देना शुरू किया। लेकिन, जवाहर लाल नेहरू आजीवन सावरकर के विरोधी रहे और कभी भी उन्हें सम्मान नहीं दिया।

महात्मा गाँधी की हत्या के बाद न सिर्फ़ सावरकर बल्कि हिन्दू महासभा पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया। हिन्दू महासभा के कई नेताओं की गिरफ्तारियाँ हुईं और संगठन को नेस्तनाबूद करने की हर कोशिश की गई। लेकिन, हिन्दू महासभा को सावरकर की तरह ही सभी आरोपों से बरी किया गया और राष्ट्रपिता की हत्या में संगठन का कोई रोल नहीं साबित हुआ। सावरकर भीमराव अम्बेडकर के भी बड़े प्रशंसक थे। कई विशेषज्ञ और इतिहासकार मानते हैं कि सावरकर के पास एक मास नेता होने की क्षमता नहीं थी क्योंकि वह जल्दी गुस्सा हो जाते थे और दूसरे नेताओं के साथ समझौता करने में उन्हें दिक्कतें आती थीं।

तमाम आलोचनाओं के बावजूद हमें सोचना चाहिए कि जिस व्यक्ति ने देश के लिए कालापानी की सज़ा काटी हो, उसकी निष्ठा पर संदेह करते हुए उसे उसके ही देश में परेशान कैसे किया जा सकता है? कॉन्ग्रेस में सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल और राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन को कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद लोकतान्त्रिक तरीके से जीतने के बावजूद सिर्फ़ इसीलिए छोड़ना पड़ा, क्योंकि जवाहरलाल नेहरू से उनके मतभेद थे। यह मान कर चला जा सकता है कि आज़ादी के बाद देश और पार्टी पर एकछत्र राज कर रहे नेहरू को किसी अन्य नेता के उदय का भय सताता था। क्या नेहरू को यह लगता था कि फलाँ नेता उनसे ज्यादा लोकप्रिय होकर उनका सिंहासन हिला सकता है?

लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु या हत्या के पीछे की साज़िश को बेनक़ाब करने की कोशिश में ‘द ताशकंद फाइल्स‘ नामक फिल्म भी आई, जिसमें इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कहीं हमें सिर्फ़ शास्त्री जी की मृत्यु की गुत्थी में उलझ कर नहीं रह जाना चाहिए बल्कि उनके द्वारा किए गए कार्यों, उनके योगदानों को भी याद करना चाहिए। नेहरू सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार किए जाने के बाद शास्त्रीजी द्वारा सावरकर को उचित सम्मान देते हुए उनके लिए अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों की तरह पेंशन की व्यवस्था करने के लिए राष्ट्र उनका कृतज्ञ रहेगा।

References:

1.) ‘Divine Enterprise: Gurus and the Hindu Nationalist Movement‘ By Lise McKean
2.) ‘Veer Vinayak Damodar Savarkar: An Immortal Revolutionary of India‘ By Bhawan Singh Rana

जय श्री राम और मुस्लिम टोपी: बरकत अली ने समाज में फैलाया जहर, मीडिया ने भी दिया साथ – CCTV से खुला राज

हरियाणा के गुरुग्राम में जामा मस्जिद के पास शनिवार (मई 25, 2019) की रात कथित तौर पर एक मुस्लिम युवक (बरकत अली) की टोपी फेंकने और जबरन जय श्री राम बुलवाने के मामले में एक नया खुलासा हुआ है। पुलिस ने इस मामले की गंभीरता को लेते हुए इसकी तहकीकात करनी शुरू की। शुरुआती जाँच में पुलिस ने उक्त इलाके में लगे सीसीटीवी के तकरीबन 50 फुटेज देखे, जिसमें सामने आया कि मुस्लिम युवक के साथ मारपीट हुई थी। लेकिन इस दौरान न तो किसी ने उसकी टोपी फेंकी और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई। इतना ही नहीं, शिकायतकर्ता मुस्लिम युवक को रोकने वाला आरोपी नहीं, बल्कि कोई अन्य व्यक्ति था।

सीसीटीवी फुटेज को देखने पर शिकायतकर्ता मुस्लिम युवक के आरोप बिल्कुल निराधार हो गए हैं। इसे देखने के बाद ये बात निकल कर सामने आ रही है कि दोनों युवकों के बीच कहासुनी के बाद हाथापाई हुई और इस दौरान मुस्लिम युवक की टोपी गिर गई, जिसे उसने खुद ही उठाकर अपनी जेब में रखा, किसी दूसरे ने उसकी टोपी को हाथ तक नहीं लगाया। अब ये तो सामान्य सी बात है कि अगर दो लोगों के बीच में हाथापाई होगी, तो टोपी का नीचे गिरना तो स्वाभाविक है।

लेकिन सामान्य रिपोर्टिंग में मीडिया गिरोह को मसाला नहीं मिलता। इसलिए मुस्लिम की टोपी गिरी है, तो इसमें जबरन सांप्रदायिकता वाला एंगल ठूँसा गया, जो प्राय: ऐसे मामलों में गिरोह द्वारा हर बार करते देखा गया है। इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएँ सामने आ चुकी हैं, जब मामूली सी मारपीट की घटना होती है, लेकिन कुछ मीडिया हाउस इसे सांप्रदायिकता का रंग देकर भुनाने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही कुछ इस मामले में भी किया गया। ऊपर द हिंदू के हेडलाइन से लेकर नीचे द वायर और इंडिया टुडे तक की रिपोर्ट देख लीजिए, माजरा समझ में आ जाएगा। ‘आरोपी ने ऐसा कहा’ लिखने के बजाय ये लोग डायरेक्ट हेडलाइन ऐसी लिखते हैं मानो सही में पूरी घटना इन्होंने अपनी आँखों से देखी हो। कोट-अनकोट का कॉन्सेप्ट को इन लोगों ने मानो भूला ही दिया हो।

जाँच के बाद पुलिस अधिकारी आरोपी की पहचान करने में जुटे हुए हैं, जिसके लिए सीसीटीवी फुटेज को साफ करवाने के लिए लैब भेजा गया है। हालाँकि पुलिस का भी यही कहना है कि शराब के नशे में की गई मामूली सी मारपीट की घटना को कुछ असामाजिक तत्व सांप्रदायिकता का रंग देने का प्रयास कर रहे हैं।

गौरतलब है कि मुस्लिम युवक बरकत अली ने आरोप लगाया था कि वो शनिवार (मई 25, 2019) की रात मस्जिद से नमाज पढ़कर अपने घर जा रहा था। तभी रास्ते में 6 युवकों ने उसे रोका और टोपी उतारकर जय श्री राम बोलने के लिए बोला। बरकत का कहना है कि जब उसने ऐसा करने से मना किया तो युवकों ने उसके साथ मारपीट की। वहीं, अब बरकत का कहना है कि वह गुरुग्राम में असुरक्षित महसूस कर रहा है और वो शहर छोड़कर जाना चाहता है। मगर कमिश्नर ने उसे सुरक्षा का आश्वासन देते हुए जाँच पूरी होने तक गुरुग्राम में ही रूकने के लिए कहा है।

आए दिन ऐसा देखने को मिलता है कि सेलीब्रिटी मीडिया में आई खबरों की सच्चाई को जाने बिना ही उस पर अपना ज्ञान और विचार बाँटना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्व क्रिकेटर और नवनिर्वाचित सांसद गौतम गंभीर के हालिया ट्वीट को लिया जा सकता है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम युवक के मामले पर अपने विचार पेश किए थे। ऐसा करना एक सेलीब्रिटी को शोभा नहीं देता। इन लोगों को सिर्फ घटना के आधार पर नहीं, बल्कि जाँच में सामने आई हुई बातों के आधार पर अपनी बात रखनी चाहिए और इसके लिए उन्हें घटना की जाँच होने तक का इंतजार करना चाहिए।

‘मैं मुस्लिम महिला हूँ… मुझे मोदी की जीत से डर नहीं लगता, मेरे लिए ख्याली आँसू मत बहाओ’

इस लेख की शुरुआत में ही मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं एक मुस्लिम हूँ। मैंने मोदी को वोट नहीं दिया है और मैं चाहती थी कि हमारे देश को प्रधानमंत्री के रूप में कोई और नेता मिले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो फिर से पीएम बने और इसलिए बने क्योंकि हिंदुस्तान के लोगों ने उन्हें अपना नेता चुना।

23 मई को जब ये साफ़ होता जा रहा था कि नरेंद्र मोदी सत्ता में दोबारा लौट रहे हैं, तो मेरा ट्विटर टाइमलाइन उच्च जाति के कुछ चुनिंदा हिंदुओं के ट्वीट्स से भर गया था, जिसमें वो भारत में मुस्लिमों की स्थिति पर गंभीर विचार कर रहे थे।

सच कहूँ, 24 मई को जब मैं सुबह उठी तो मुझे बिलकुल वैसा लग रहा था जैसे मैंने 27 साल पहले महसूस किया था। मेरे अंदर कोई डर नहीं बढ़ा था। मुझे बिलकुल नहीं लग रहा था कि दुनिया खत्म होने वाली है। मुझे नहीं महसूस हो रहा था कि मुझे अपना बैग-पैक करके देश छोड़ देना चाहिए।

फिर आप लोग किस लड़ाई के बारे में बात कर रहे हैं? कोई लड़ाई नहीं है। मैं ऐसे हिंदुओं को बिलकुल नहीं जानती जो मेरे पास आकर मेरे धर्म के बारे में पूछें। और इस बात को जानने के बाद कि मैं एक मुस्लिम हूँ, वो मुझे तंग करें। ट्विटर ही सिर्फ़ एक ऐसी जगह है जहाँ बार-बार मुझे मेरे धर्म से अवगत कराया जाता है। यहाँ मुझे बार-बार बताया जाता है कि मुझे डरने की जरूरत है क्योंकि यह अटल सत्य है कि एक दिन मुझे मेरे मुस्लिम होने के कारण मार दिया जाएगा।

मैंने अपनी एक मुस्लिम साथी का लेख पढ़ा। इसमें वो लिखती हैं कि वो अपनी भारतीयता को साबित करते-करते थक चुकी हैं और वो अपनी ऊर्जा खुद को पाकिस्तान से अलग दिखाने में गँवाती हैं। हो सकता है वो गलत लोगों की संगत में हों या अपना ज्यादा से ज्यादा समय ट्विटर पर बिताती हों, जहाँ अपनी आवाज उठाते ही लोग आपको तेजी से ट्रोल कर देते हैं। लेकिन अगर आप सच में अपने घर से कदम निकालेंगी और लोगों से बात करेंगी तो मालूम चलेगा कि दुनिया वैसी ही है जैसे अब से 10 साल पहले थी।

हमें हकीकत में उस सोच को बदलने की जरूरत है, जिसमें हमने अपनी छवि ऐसे मुस्लिम की बना ली है जिसे बचाने की जरूरत है। लोग हमसे नाराज़ नहीं हैं, बल्कि उन कट्टरपंथियों से नाराज़ हैं जो अल्लाह का नाम लेकर मज़हबी लड़ाई लड़ते हैं। इसलिए हमें हमारे मजहब के कारण विशेष महसूस करवाना बंद करिए। उस समय आप अपने सेकुलर होने की साख को धूमिल करते हैं जब आप मुझे एक ‘मुस्लिम’ की तरह देखते हैं। जैसे-जैसे मेरे मज़हब से जुड़े लोग अपराध करना बंद करेंगे, वैसे-वैसे लोगों में इस मज़हब के प्रति गुस्सा कम होता जाएगा। उनके आक्रोश की जड़ मेरा मुस्लिम होना नहीं हैं, बल्कि इसका कारण आप हैं जो मेरे मजहब के लोगों के गुनाहों को ये कहकर छिपाते हैं कि अपराध से मजहब का कोई लेना-देना नहीं हैं, जबकि ये सब जानते हैं कि मजहब ही एक कारण जिसके कारण लोग भड़कते हैं।

मेरे परिवार में ऐसे लोग हैं जो दूसरे धर्म के लोगों से जुड़ना ही नहीं चाहते हैं। वे अपने स्वयं के केंद्रित इलाकों में रहना पसंद करते हैं, दूसरों के साथ बातचीत करने से इनकार करते हैं। जिसके कारण दूसरों में अविश्वास की भावना पैदा होती है। वो डर और गरीबी में जीवन जीते हैं क्योंकि उनके धार्मिक गुरू चाहते हैं कि वो ऐसे ही रहें। मुस्लिम समुदाय की 5 प्रतिशत आबादी जो संपन्न है, वो इस्लाम को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है। किनके खिलाफ? उनके खिलाफ जो मुस्लिम समाज का बहुसंख्यक तबका (आर्थिक व सामाजिक तौर पर पिछड़ा) है। वो नहीं चाहते हैं कि पूरी मुस्लिम कौम का विकास हो, वो नहीं चाहते हैं कि पंक्चर वाला अब्दुल बाहर निकले, दुनिया देखे, आगे बढ़े… क्योंकि इससे उनकी सत्ता पर खतरा मंडराता है।

अब ऐसे में क्या इसका मतलब यह है कि मैं मोदी समर्थक हूँ? नहीं। क्या मैं कॉन्ग्रेसी हूँ? नहीं। क्या मुझे आम आदमी पार्टी में यकीन है? बिलकुल नहीं।

और क्या मुझे डर लग रहा है? बिलकुल भी नहीं।

इसलिए आप लोग अपने गुस्से को शांत करें, और असल जिंदगी में कुछ काम करें। मुस्लिमों से बात कीजिए, उन्हें पढ़ाइए और एक बात खुद भी समझिए कि आपके टीवी स्टूडियो के बाहर अधिकांश मुस्लिमों का जीवन आम है, आप जैसा ही है। ये आप हैं जो किसी भी कारण से चाहते हैं कि मुस्लिम डर के साथ जिए। ये बिलकुल उतना ही साम्प्रादायिक है जितना एक मुस्लिम से कहना कि वो अपना राष्ट्रवाद साबित करे।

मैं ये भार नहीं चाहती हूँ। मैं एक आम जिंदगी जीना चाहती हूँ।

नोट: लेखिका का नाम नूरी मोहम्मद है। उनका पालन-पोषण भोपाल में हुआ है। उन्होंने एमबीए किया हुआ है और वर्तमान में वो गुरुग्राम स्थित एक कम्पनी में बतौर एचआर एग्जिक्यूटिव कार्यरत हैं।

यह लेख अनुवादित है। अंग्रेजी में मूल लेख पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-
I am an Indian Muslim, stop feeling sorry for me

8000 महिलाओं की अवैध नसबंदी: डॉक्टर मोहम्मद सियाब्दीन ने अर्जित की अकूत संपत्ति, गिरफ़्तार

श्री लंका में स्थित कुरुनेगला टीचिंग हॉस्पिटल से मोहम्मद सियाब्दीन साफी नामक डॉक्टर को गिरफ़्तार किया गया है। उसके द्वारा लगभग 8000 महिलाओं की अवैध नसबंदी करने का मामला सामने आया है। ख़ुद श्री लंका के स्वास्थ्य मंत्री रंजीता सेनारत्ने ने कहा कि विशेषज्ञों की एक कमिटी बनाई गई है, जो इस मामले की जाँच करेगी। आरोपित डॉक्टर ने न सिर्फ़ अवैध नसबंदी की बल्कि उसके द्वारा वित्तीय अनियमितता की बातें भी सामने आईं हैं। उसने अवैध तरीके से अकूत संपत्ति का अर्जन किया है। मंत्री सेनारत्ने ने बताया कि विशेषज्ञों की कमिटी में दो एक्सपर्ट्स ‘Sri Lanka College of Obstetricians and Gynaecologists’ से होंगे, जबकि एक एक्सपर्ट मेडिकल काउंसिल से होंगे।

मंत्री ने कहा कि दोषी साबित होने पर उक्त डॉक्टर के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। मंत्री ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में उक्त डॉक्टर द्वारा 8000 सिजेरियन ऑपरेशन किए जाने की बात सामने आ रही है। उसे क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट (CID) को सौंप दिया गया है, जहाँ उससे पूछताछ की जा रही है। यह डॉक्टर पहले कई अस्पतालों में काम कर चुका है और सिजेरियन सर्जरी के दौरान अवैध रूप से नसबंदी कर देना इसके लिए बाएँ हाथ का खेल रहा है। श्री लंका के मंत्री ने इस पर आश्चर्य जताया है क्योंकि ऐसी सर्जरी करते समय डॉक्टर के साथ उसके कई सहायक भी ऑपरेशन कक्ष में उपस्थित रहते हैं।

अब तक कुल 27 ऐसी महिलाएँ सामने आई हैं, जिन्होंने डॉक्टर सियाब्दीन के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराते हुए सिजेरियन ऑपरेशन के दौरान नसबंदी किए जाने की बात कही है। सरकार ने कहा है कि ऐसी अन्य पीड़ित महिलाएँ भी आकर शिकायत दर्ज करा सकती हैं ताकि अधिक से अधिक साक्ष्य जुटाए जा सकें और पीड़ितों की संख्या का सही अंदाज़ा लगे। कुरुनेगला अस्पताल में एक अलग दफ्तर सिर्फ़ इसीलिए स्थापित किया गया है, ताकि वहाँ पीड़ित महिलाएँ जाकर शिकायत दर्ज करा सकें।

इसके अलावा आरोपित डॉक्टर के ख़िलाफ़ कई अन्य चौंकाने वाली शिकायतें भी दर्ज की गई है। वह नवजात बच्चे को किसी तीसरे को दे देता था। इसके लिए वह काग़ज़ातों से छेड़छाड़ किया करता था और दस्तावेजों को बदल देता था। इसके अलावा एक महिला ने कहा कि ऑपरेशन के दौरान उसकी बच्चेदानी निकाल दी गई, जिसका पता उसे काफ़ी बाद में चला। अगर अभी तक की बात करें तो ताज़ा सूचना के अनुसार उसके ख़िलाफ़ कुल 51 शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं।