Sunday, June 16, 2024
Home Blog Page 5269

देश भर में आज मनाया जाएगा राष्ट्रीय मतदाता दिवस ताकि कोई मतदाता पीछे न रह जाए

गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी 25 जनवरी को हमारे देश में मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यह है कि देश भर में युवा मतदाओं में चुनावी प्रक्रिया को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके। देश के ज्यादा से ज्यादा नागरिक अपने मताधिकार के प्रति जागरूक हों।

आज 25 जनवरी 2019 को हमारे देश में 10 लाख मतदान केंद्रों को कवर करते हुए 6 लाख से ज्यादा जगहों पर 9वाँ राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाएगा। इस दिवस पर मनाए जाने वाले समारोह में नए मतदाताओं को बधाई भी दी जाएगी और उन्हें उनके पहचान पत्र भी दिए जाएँगे।

आज दिल्ली कैन्ट स्थित मानेकशॉ केन्द्र (Manekshaw Centre) में चुनाव आयोग द्वारा एक समारोह आयोजित किया जा रहा है जिसके मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। इस समारोह में कानून मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद भी उपस्थित रहेंगे।

लोकसभा चुनाव करीब होने के कारण इस दिवस का महत्व और भी अधिक है इसलिए ये समारोह इसी विषय पर केंद्रित होगा कि ‘कोई मतदाता पीछे न रहे’। इस दिवस पर आज ‘My Vote Matters’ नाम की त्रैमासिक पत्रिका का उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा। इस आयोजन पर उन अधिकारियों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जाएगा जिन्होंने चुनावों के दौरान अपना श्रेष्ठ योगदान दिया है। इसके अलावा नागरिक समाज संगठनों और मीडिया संस्थानों को भी चुनाव के दौरान मतदाताओं में जागरूकता फैलाने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस देश में उत्साह से मनाया जाना भारत के सही अर्थों में लोकतांत्रिक होने का परिचायक है। इतिहास के पन्नों में चुनाव आयोग का गठन 25 जनवरी 1950 को ही हुआ था। लेकिन इस दिन को औपचारिक रूप से मनाने की शुरूआत 2011 से हुई। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य था कि देश में चुनाव के दौरान होने वाले मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हो।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस

आपको बता दें आज हमारे देश में मतदाता होने का अधिकार हमें 18 वर्ष का होने पर मिल जाता है लेकिन 1988 से पहले ये उम्र 21 हुआ करती थी। 61वें संशोधन बिल के पास होने के बाद मतदाता की उम्र घटाकर 18 की गई।

आज के समय में चुनाव के दौरान होने वाले मतदान में चुनाव आयोग उन्हीं लोगों को वोट देने की अनुमति देता है जो उस क्षेत्र का स्थाई निवासी होता है। अगर कोई व्यक्ति से एक से अधिक जगहों पर मतदान करता है तो इसे अपराध माना जाता है। 18 साल के होते ही कोई भी नागरिक स्वत: एक मतदाता हो जाता है। मतदान करने के लिए आवश्यक नहीं है कि वोटर पहचान पत्र ही साथ हो। हम अपने पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड को ले जाकर भी वोट डाल सकते हैं।

कॉन्ग्रेस नेता का महिलाविरोधी बयान: ‘केरल के CM एक महिला से भी बदतर हैं’

कोल्लम के पूर्व सांसद के सुधाकरन ने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को लेकर एक महिला विरोधी बयान दिया है। सुधाकरन केरल में कॉन्ग्रेस पार्टी के तीन कार्यकारी अध्यक्षों में से एक हैं। बुधवार (जनवरी 23, 2019) को कासरगोड में कॉन्ग्रेस के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री विजयन का प्रदर्शन एक महिला से भी बदतर है। उन्होंने कहा- “जब विजयन को CPM कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री चुना था तब हमें लगा था कि वह एक पुरुष की तरह कार्य करेंगे। न केवल वह (विजयन) एक पुरुष की तरह कार्य करने में विफल रहे हैं, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि वे एक महिला से भी बदतर साबित हुए हैं।”

उन्होंने पिनाराई विजयन को ‘सबसे बड़ी आपदा’ बताते हुए कहा कि वे कुशलतापूर्वक और प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में विफल रहे हैं। उन्होंने विजयन को एक असंवेदनशील मुख्यमंत्री भी कहा। मीडिया में बात फैलने के बाद उन्होंने माफ़ी मांगते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।

दरअसल, केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने CPM सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन तेज़ कर दिया है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि राज्य सरकार 2018 में आई बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास में पूरी तरह से विफल रही है। UDF नेताओं ने तिरुअनंतपुरम सचिवालय के साथ राज्य के सभी जिलों के कलेक्ट्रेट पर भी प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शन जारी रहेगा।

वैसे यह पहली बार नहीं है जब सुधाकरन विवादों में आए हैं। इससे पहले भी वे कई बार गलत कारणों की वजह से सुर्ख़ियों में रह चुके हैं। नवंबर 2012 में एक सैंड स्मगलर को छुड़ाने के लिए उन्होंने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर वालपट्नम थाना के सब-इंस्पेक्टर का घेराव किया था। उसके बाद उनके ख़िलाफ़ केस भी दर्ज़ किया गया था। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को धमकी भी दी थी और परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। सुधाकरन को 15वीं लोकसभा (2009-14) में कन्नूर क्षेत्र से कॉन्ग्रेस के टिकट पर सांसद चुना गया था। सितंबर 2018 में उन्हें केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी (KPCC) का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

सुधाकरन सबरीमला मंदिर पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। उनका मानना है कि सबरीमला मंदिर की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।

अभी कुछ दिनों पहले ही कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी कुछ इसी तरह का महिलाविरोधी बयान दिया था। प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने उन्हें मर्द बनने की सलाह दी थी। राहुल ने कहा था कि पीएम ने ख़ुद आने की बजाय एक महिला को आगे कर दिया। उनके इस बयान के बाद महिला संगठनों ने उनसे सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने की माँग की थी।

भारत के इतिहास में पहला जौहर करने वाली उत्तराखंड की जिया रानी

मित्रो, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी पर आधारित फ़िल्म मणिकर्णिका सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने है। ऐसे में जब हम सब लोगों का दिल 25 जनवरी को सिनेमाघरों में आने वाली कंगना रनौत की इस फ़िल्म को देखने के लिए धड़क रहा है, हम आपका परिचय करवाते हैं एक ऐसी पहाड़ी वीरांगना से जिन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई कहा जाता है।

यूँ तो सम्पूर्ण भारत ही विभिन्न हस्तियों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है परंतु इसे साधनों का अभाव कहिए या फिर हमारी शिक्षा नीति की कमजोरी, प्रायः देखा गया है कि ऐसी बहुत सी हस्तियों के बारे में जानने से हम लोग हमेशा वंचित रहे हैं, जिनके त्याग और बलिदान को कभी संवाद का ज़रिया नहीं मिल सका।

गत वर्ष हम लोगों को मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ काव्य पर आधारित फ़िल्म देखने को मिली। लेकिन पद्मावती अकेली महिला नहीं थी, जिसे मुस्लिम आक्रान्ताओं के शोषण और व्यभिचारी प्रवृत्ति के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना पड़ा था। हालाँकि फ़िल्म आते ही देश का ‘लिबरल वर्ग’ यह भी कहता देखा गया कि सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना बेवकूफ़ी भरा निर्णय हुआ करता था। ख़ैर, सबकी अपनी विशिष्ट प्राथमिकताएँ हो सकती हैं।

आज हम इतिहास के पन्नों से किस्सा लेकर आ रहे हैं एक ऐसी वीरांगना का जिन्हें उत्तराखंड (कुमाऊँ) की लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है। यह नाम है- ‘रानी जिया’। जिस प्रकार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित है, उसी तरह से उत्तराखंड की अमर गाथाओं में एक नाम है जिया रानी का।

खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतमदेव (1380-1400) की महारानी जिया थी। कुछ किताबों में उसका नाम प्यौंला या पिंगला भी बताया जाता है। जिया रानी धामदेव (1400-1424) की माँ थी और प्रख्यात उत्तराखंडी लोककथा नायक ‘मालूशाही’ (1424-1440) की दादी थी ।


उत्तराखंड के प्रसिद्ध कत्यूरी राजवंश का किस्सा

कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था। इस राजवंश के बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे और इसलिए वे सूर्यवंशी कहलाते थे। इनका कुमाऊँ क्षेत्र पर छठी से ग्यारहवीं सदी तक शासन था। कुछ इतिहासकार कत्यूरों को कुषाणों के वंशज मानते हैं।

बागेश्वर-बैजनाथ स्थित घाटी को भी कत्यूर घाटी कहा जाता है। कत्यूरी राजाओं ने ‘गिरिराज चक्रचूड़ामणि’ की उपाधि धारण की थी। उन्होंने अपने राज्य को ‘कूर्मांचल’ कहा, अर्थात ‘कूर्म की भूमि’। ‘कूर्म’ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिस वजह से इस स्थान को इसका वर्तमान नाम ‘कुमाऊँ’ मिला।

कत्यूरी राजवंश उत्तराखंड का पहला ऐतिहासिक राजवंश माना गया है। कत्यूरी शैली में निर्मित द्वाराहाट, जागेश्वर, बैजनाथ आदि स्थानों के प्रसिद्ध मंदिर कत्यूरी राजाओं ने ही बनाए हैं। प्रीतम देव 47वें कत्यूरी राजा थे जिन्हें ‘पिथौराशाही’ नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर वर्तमान पिथौरागढ़ जिले का नाम पड़ा।

जिया रानी

जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी। सन 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा। मौला देवी, राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी। मौला रानी से 3 पुत्र धामदेव, दुला, ब्रह्मदेव हुए, जिनमें ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से जन्मा मानते हैं। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।

रानी जिया ,प्रतीकात्मक चित्र

पुंडीर राज्य के बाद भी यहाँ पर तुर्कों और मुगलों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ में भी तुर्कों के हमले होने लगे। ऐसे ही एक हमले में कुमाऊँ (पिथौरागढ़) के कत्यूरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा जिसके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी (रानी जिया) का विवाह कुमाऊँ के कत्यूरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया।

उस समय दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था। मध्य एशिया के लूटेरे शासक तैमूर लंग ने भारत की महान समृद्धि और वैभव के बारे में बहुत बातें सुनी थीं। भारत की दौलत लूटने के मकसद से ही उसने आक्रमण की योजना भी बनाई थी। उस दौरान दिल्ली में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के निर्बल वंशज शासन कर रहे थे। इस बात का फायदा उठाकर तैमूर लंग ने भारत पर चढ़ाई कर दी।

वर्ष 1398 में समरकंद का यह लूटेरा शासक तैमूर लंग, मेरठ को लूटने और रौंदने के बाद हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था। उस समय वहाँ वत्सराजदेव पुंडीर शासन कर रहे थे। उन्होंने वीरता से तैमूर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर भारत में गंगा-जमुना-रामगंगा के क्षेत्र में तुर्कों का राज स्थापित हो चुका था। इन लुटेरों को ‘रूहेले’ (रूहेलखण्डी) भी कहां जाता था। रूहेले राज्य विस्तार या लूटपाट के इरादे से पर्वतों की ओर गौला नदी के किनारे बढ़ रहे थे।

इस दौरान इन्होंने हरिद्वार क्षेत्र में भयानक नरसंहार किया। जबरन बड़े स्तर पर मतपरिवर्तन हुआ और तत्कालीन पुंडीर राजपरिवार को भी उत्तराखंड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी जहाँ उनके वंशज आज भी रहते हैं और ‘मखलोगा पुंडीर’ के नाम से जाने जाते हैं।

लूटेरे तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने के लिए भेजी। जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने फ़ौरन इसका सामना करने के लिए कुमाऊँ के राजपूतों की एक सेना का गठन किया। तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तुर्क सेना की जबरदस्त हार हुई।

इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गए लेकिन दूसरी तरफ से अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुँची और इस हमले में जिया रानी की सेना की हार हुई। जिया रानी एक बेहद खूबसूरत महिला थी इसलिए हमलावरों ने उनका पीछा किया और उन्हें अपने सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिपना पड़ा।

जब राजा प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो जिया रानी से चल रहे मनमुटाव के बावजूद स्वयं सेना लेकर आए और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया। इसके बाद वो जिया रानी को अपने साथ पिथौरागढ़ ले गए।

पिता की मृत्यु के बाद अल्पवयस्क धामदेव बने उत्तराधिकारी

राजा प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद पुत्र धामदेव को राज्य का कार्यभार दिया गया किन्तु धामदेव की अल्पायु की वजह से जिया रानी को उनका संरक्षक बनाया गया। इस दौरान मौला देवी (जियारानी) ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन किया, रानी स्वयं शासन संबंधी निर्णय लेती थी और राजमाता होने के चलते उन्हें जिया रानी भी कहा जाने लगा।

वर्तमान में जिया रानी की रानीबाग़ स्थित गुफा के बारे में एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुँचते हैं। कहते हैं कि कत्यूरी राजा प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही तुर्क सेना ने उन्हें घेर दिया।

इतिहासकारों के अनुसार जिया रानी बेहद खूबसूरत और सुनहरे केशों वाली सुन्दर महिला थी। नदी के जल में उसके सुनहरे बालों को पहचानकर तुर्क उन्हें खोजते हुए आए और जिया रानी को घेरकर उन्हें समर्पण के लिए मजबूर किया लेकिन रानी ने समर्पण करने से मना कर दिया।

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि जिया रानी के पिता ने उनकी शादी राजा प्रीतम देव के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध की थी जबकि कुछ कथाओं के आधार पर मान्यता है कि राजा प्रीतमदेव ने बुढ़ापे में जिया से शादी की। विवाह के कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गौलाघाट चली गई, जहाँ उन्होंने एक खूबसूरत रानीबाग़ बनवाया। इस जगह पर जिया रानी 12 साल तक रही थी।

दूसरे इतिहासकारों के अनुसार एक दिन जैसे ही रानी जिया नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही उन्हें तुर्कों ने घेर लिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उन्होंने अपने ईष्ट देवता का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई।

लूटेरे तुर्कों ने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन उन्हें जिया रानी कहीं नहीं मिली। कहते हैं उन्होंने अपने आपको अपने लहँगे में छिपा लिया था और वे उस लहँगे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है जिसका आकार कुमाऊँनी पहनावे वाले लहँगे के समान हैं। उस शिला पर रंगीन पत्थर ऐसे लगते हैं मानो किसी ने रंगीन लहँगा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी का स्मृति चिन्ह माना जाता है।

इस रंगीन शिला को जिया रानी का स्वरुप माना जाता है और कहा जाता है कि जिया रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए इस शिला का ही रूप ले लिया था। रानी जिया को यह स्थान बेहद प्रिय था। यहीं उन्होंने अपना बाग़ भी बनाया था और यहीं उन्होंने अपने जीवन की आखिरी साँस भी ली थी। रानी जिया के कारण ही यह बाग़ आज रानीबाग़ नाम से मशहूर है।

कुमाऊँ स्थित जिया माता मंदिर

रानी जिया हमेशा के लिए चली गई लेकिन उन्होंने वीरांगना की तरह लड़कर आख़िरी वक्त तक तुर्क आक्रान्ताओं से अपने सतीत्व की रक्षा की।

वर्तमान में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को चित्रशिला में सैकड़ों ग्रामवासी अपने परिवार के साथ आते हैं और ‘जागर’ गाते हैं। इस दौरान यहाँ पर सिर्फ ‘जय जिया’ का ही स्वर गूंजता है। लोग रानी जिया को पूजते हैं और उन्हें ‘जनदेवी’ और न्याय की देवी मना जाता है। रानी जिया उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की एक प्रमुख सांस्कृतिक विरासत बन चुकी हैं।

इस देश के लगभग सभी क्षेत्र में शौर्य, बलिदान और त्याग की पराकाष्ठाओं के अनेक उदाहरण मौज़ूद हैं। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण देशभर में तमाम ऐसे नायक-नायिकाओं को उस स्तर की पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वो हक़दार हैं।

सशस्त्र सेनाओं की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान

सशस्त्र सेनाओं की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान का गठन भारत गणतंत्र को सुरक्षित करने की दिशा में महत्वूर्ण निर्णय है। विगत डेढ़ दशक से सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान बनाने की माँग ने ज़ोर पकड़ा था।

आज के समय में जहाँ युद्ध धरती, समुद्र और आकाश तक सीमित नहीं रह गए हैं और नेटवर्क सेंट्रिक युद्ध का सिद्धांत दिया जा चुका है वहाँ भारत के पास भी साइबर, स्पेशल ऑपरेशन और स्पेस की संयुक्त कमान होना समय की माँग है। भारत सरकार ने इन तीनों कमान के गठन को स्वीकृति प्रदान की है।

जल्दी ही भारत के पास एक संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन डिवीज़न, स्पेस और साइबर एजेंसी होगी जो इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के अधीन कार्य करेंगी। रक्षा संबंधी विभिन्न समितियों की रिपोर्टों में इन तीनों की संकल्पना एक ‘कमांड’ के रूप में की गई थी- वैसे ही जैसे थलसेना, नौसेना या वायुसेना की कमांड होती है- परंतु सरकार ने साइबर और स्पेस के लिए एक बड़ी कमांड नहीं बल्कि ‘एजेंसी’ और स्पेशल ऑपरेशन के लिए ‘डिवीज़न’ शब्द प्रयोग किया है।

चूँकि थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के पास अपने पृथक साइबर विभाग हैं और साइबर विभाग से तीनों के सामने आने वाले खतरे समान हैं इसलिए एक संयुक्त साइबर कमान की आवश्यकता पड़ी जिसमें सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों के अधिकारी मिलकर कार्य करेंगे।

स्पेशल ऑपरेशन कमान या एजेंसी का महत्व समझने के लिए स्पेशल ऑपरेशन को समझना आवश्यक है। जब युद्ध चल रहा होता है तब किसी देश की सेना के विशेष रूप से प्रशिक्षित सैनिक शत्रु के क्षेत्र में भीतर तक घुसकर किसी विशेष लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते हैं। ऐसा मिलिट्री ऑपरेशन ‘स्पेशल ऑपरेशन’ कहलाता है। इसका प्रारंभ द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ था जब अमेरिका ने हवा से कूद कर शत्रु की भूमि पर उतरने वाली स्पेशल एयरबोर्न डिवीज़न बनाई थी।       

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही लगभग सभी शक्तिशाली देशों की सेनाओं के पास स्पेशल ऑपरेशन दस्तों की बटालियनें रही हैं जिन्हें वे पारंपरिक युद्ध के अतिरिक्त शांतिकाल में लड़े जाने वाले छद्म युद्धों में प्रयोग करते रहे हैं। उदाहरण के लिए इस्राएल ने फ़लस्तीन के साथ कई वर्षों तक छद्म युद्ध लड़ा जिसमें इस्राएली डिफेंस फ़ोर्स की भूमिका अहम रही।

जब भी फ़लस्तीन के आतंकी इस्राएल पर हमला करते तब इस्राएली डिफेंस फ़ोर्स की स्पेशल फ़ोर्स यूनिट उन्हें दंडित करती। आज स्पेशल फ़ोर्स का प्रयोग लंबे समय तक चलने वाले ‘प्रॉक्सी वॉर’ या छद्म युद्ध से लड़ने के लिए ही किया जाता है।  

भारत की थलसेना के पास भी स्पेशल ऑपरेशन के लिए PARA SF यूनिट है। इसके अतिरिक्त नौसेना, वायुसेना और यहाँ तक की केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के पास भी क्रमशः MARCOS, GARUD और COBRA नामक दस्ते हैं जो कठिन परिस्थितियों शत्रु के क्षेत्र में विशेष लक्ष्य को बर्बाद करने का कार्य करते हैं।

लेकिन हमारे यहाँ समस्या यह है कि हमने स्पेशल फ़ोर्स की आधिकारिक परिभाषा नहीं गढ़ी है जिसके कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे में स्पेशल फ़ोर्स डिवीज़न- जिसे मेजर जनरल रैंक का अधिकारी कमांड करेगा- में किस विशेष बल के जवानों को रखा जाएगा यह तय करना पड़ेगा।  

भारतीय थलसेना की PARA SF का अंग रहे लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश कटोच (सेवानिवृत्त) अपनी पुस्तक India’s Special Forces: History and Future of Special Forces में लिखते हैं कि पहले तो यह निर्धारित करना पड़ेगा कि किस बल की यूनिट को स्पेशल फ़ोर्स कहा जाएगा क्योंकि किसी भी देश की स्पेशल फ़ोर्स उस देश की विदेश नीति निर्धारित करने का कारगर हथियार होता है।

इसका हालिया उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब भारत ने म्यांमार और पाकिस्तान में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी। यह सर्जिकल स्ट्राइक केवल भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी, एयर फ़ोर्स) के जवान ही कर सकते थे क्योंकि भारत सरकार किसी दूसरे देश में जाकर मिलिट्री ऑपरेशन करने का अधिकार सशस्त्र सेनाओं को ही प्रदान करती है।

ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि विशेष रूप से प्रशिक्षित COBRA कमांडो स्पेशल फ़ोर्स की श्रेणी में आकर विदेश में सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं। स्पेशल फ़ोर्स के महत्व को सबसे पहले अमेरिका ने समझा था। आज अमेरिका के पास न केवल संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन कमान है बल्कि उन्होंने छद्म युद्ध के अध्ययन के लिए एक अलग जॉइंट स्पेशल ऑपरेशन यूनिवर्सिटी तक स्थापित कर ली है।

यह बड़ी विचित्र विडंबना है कि भारत में ‘इंडियन नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी’ का बिल 2016 से सरकार की वेबसाइट पर जनता के विचारार्थ पड़ा हुआ है जिसपर 1,000 से अधिक विचार आ भी चुके हैं लेकिन सरकार के पास समय नहीं है कि इस बिल को संसद तक ले जाए।

आज के दौर में स्पेशल फ़ोर्स की अहमियत इतनी अधिक है कि सामरिक विशेषज्ञ भरत कर्नाड ने लिखा है कि यदि भारत को दक्षिण एशिया में अपना सामरिक प्रभुत्व स्थापित करना है तो हमारे पास तीन मूलभूत सामरिक क्षमताओं का होना अनिवार्य है: परमाणु क्षमता युक्त इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, नेटवर्क सेंट्रिक युद्धक प्रणाली और स्पेशल ऑपरेशन कमांड।

इस दृष्टि से यदि भारत एक वर्ष के भीतर संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन डिवीज़न बना लेता है तो हमारे पास पाकिस्तान से दीर्घकालिक छद्म युद्ध लड़ने के लिए डिवीज़न स्तर का एक संयुक्त विशेष युद्धक बल होगा।

संयुक्त साइबर एजेंसी बनाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि भविष्य में सशस्त्र सेनाओं के सभी विभाग आपस में साइबर नेटवर्क से जुड़ कर युद्ध लड़ेंगे। नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर में समुद्र, थल और नभ में स्थित उपकरण आपस में एक ही नेटवर्क से जुड़े होंगे। यदि इस नेटवर्क को शत्रु भेद देगा तो हम युद्ध हारने की स्थिति में होंगे।

यही नहीं युद्ध और शांतिकाल में सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंग एक साथ देश के संसाधन साझा करते हैं चाहे वह बिजली हो या वित्तीय लेनदेन। ऐसे में एक संयुक्त एजेंसी होना आवश्यक है जो किसी भी परिस्थिति में सेनाओं के तीनों अंगों के बीच तारतम्य टूटने न दे।

सेनाएँ गोपनीय सूचनाओं का आदान प्रदान भी करती हैं जिनपर चीन की विशेष नज़र है। इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा साझा की जा रही सूचनाएँ साइबर डोमेन में सुरक्षित नहीं हैं। मई 2017 में Wanna Cry नामक रैन्समवेयर ने विश्व भर में उत्पात मचाया था। अक्टूबर 2016 में साइबर अटैक से भारत के लगभग 30 लाख डेबिट कार्ड प्रभावित हुए थे।

आतंकवाद से लड़ने के लिए भी संयुक्त साइबर एजेंसी की आवश्यकता है। विभिन्न आतंकी संगठन युवाओं को बरगलाने के लिए साइबर स्पेस का उपयोग करते हैं। मुंबई में 2008 में हुए हमले में voice over internet प्रोटोकॉल का प्रयोग किया गया था। ऐसे अनेक साइबर खतरे हैं जिनसे संयुक्त रूप से निपटने के लिए संयुक्त एजेंसी की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त देश में सभी प्रकार के संगठनों की सूचनाएँ NTRO और NATGRID में संग्रहित होती हैं जो मिलिट्री इंटेलिजेंस से साझा की जाती हैं। इन सभी सूचनाओं की सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग है।

साइबर के अतिरिक्त स्पेस अर्थात अंतरिक्ष भी आज के समय में युद्ध का अखाड़ा बना हुआ है। जनवरी 2007 में चीन ने अपनी ही सैटेलाइट को मार गिराया था और दुनिया के सामने इसे एक दुर्घटना बताया था। वास्तव में चीन किसी सैटेलाइट को मार गिराने की अपनी क्षमता को जाँच रहा था। डीआरडीओ के अध्यक्ष वी के सारस्वत ने 2010 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में अपने संबोधन में कहा था कि भारत भी शत्रु के सैटेलाइट मार गिराने की तकनीक विकसित कर रहा है।

आज भारत ने स्पेस एक्सप्लोरेशन ASTROSAT से लेकर नेविगेशन सैटेलाईट IRNSS तक अंतरिक्ष में स्थापित की है। देश में पूरी संचार व्यवस्था इन्हीं सैटेलाइट की सुरक्षा पर टिकी है। थलसेना, वायुसेना और नौसेना के उपकरण इस संचार व्यवस्था पर कार्य करते हैं इसलिए एक संयुक्त एजेंसी का गठन स्वागतयोग्य निर्णय है।

चंदा कोचर ने वीडियोकॉन को कर्ज़ दिलाने के बदले घूस की रकम अपने पति की मदद से ली: CBI

CBI को अपनी जाँच में ICICI बैंक की पूर्व सीईओ व मैंनेजिंग डायरेक्टर चंदा कोचर के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत मिले हैं। ख़बरों के अनुसार सीबीआई ने जाँच के बाद इस बात को स्पष्ट किया है कि वीडियोकोन कंपनी से चंदा कोचर ने घूस की रकम अपने पति दीपक कोचर की मदद से ली है।

सीबीआई के मुताबिक बैंक के उच्च पद पर होने का गलत फ़ायदा उठाते हुए चंदा कोचर ने वीडियोकोन ग्रुप के लिए जून 2009 से अक्टूबर 2011 के बीच कुल छ: लोन को अप्रूव किया था। सीबाआई ने जाँच में यह भी पाया कि इन छ: में से एक ₹300 करोड़ का लोन वीडियोकोन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स (VIEL) लिमिटेड के नाम से अप्रूव किया गया था।

सीबीआई ने अपनी जाँच में पाया कि VIEL को लोन पास करने के बदले कोचर ने घूस लिया था। 26 अगस्त 2009 को जब VIEL के नाम पर यह लोन इश्यू किया गया था, तब बैंक द्वारा लोन अप्रूव करने वाली टीम में चंदा कोचर भी शामिल थी।

यही नहीं लोन की रकम VIEL कंपनी के खाते में बैंक द्वारा 7 सितम्बर को ट्रांसफर कर दिया गया। इसके अगले ही दिन VIEL कंपनी के चेयरमैन वेनुगोपाल धूत ने दीपक कोचर के कंपनी न्यूपावर रिन्यूएबल लिमिटेड के बैंक अकाउंट में ₹64 करोड़ ट्रांसफ़र किया। इस तरह सीबीआई ने बताया कि चंदा कोचर व उनके पति ने मिलकर अपने लाभ के लिए गैर-कानूनी तरह से लोन अप्रूव कर दिया।

चंदा कोचर 2016 में फ़ोर्ब्स पत्रिका की ‘एशिया की 10 सबसे शक्तिशाली बिज़नेस-वूमन’ की लिस्ट में शामिल रही थीं। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक नई कम्पनी बना कर फर्जीवाड़ा किया। उनके पति दीपक कोचर ने वीडियोकॉन समूह के मालिक वेणुगोपाल धूत के साथ मिलकर दिसंबर 2008 में एक कंपनी बनाई थी।

बाद में इस कंपनी को दीपक कोचर के ट्रस्ट को सौंप दिया गया था। वीडियोकॉन ग्रुप को ICICI बैंक ने ₹3,250 करोड़ का लोन दिया था, जिसके कुछ महीनों बाद दीपक कोचर के हाथ में नई कम्पनी की कमान दे दी गई थी। इन लोन की कुल 86% राशि (₹2,810 करोड़) जमा नहीं कराई गई, जिसे NPA घोषित कर दिया गया। CBI इस मामले की जाँच कर रही है।

आजीविका में विविधता के जरिए तेज़ी से घट रही है गरीबी : ब्रूकिंग्‍स इंस्‍टीट्यूशन की रिपोर्ट

हाल के वर्षों में भारत में गरीबी घटने की गति तेज हो गई है। वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 के साथ-साथ ब्रूकिंग्‍स इंस्‍टीट्यूशन द्वारा प्रकाशित एक नोट से यह तथ्‍य उभर कर सामने आया है।

दीनदयाल अंत्‍योदय योजना – राष्‍ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई – एनआरएलएम) का लक्ष्‍य गरीबों के टिकाऊ सामुदायिक संस्‍थानों के निर्माण के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करना है। इसके तहत लगभग 9 करोड़ परिवारों को स्‍वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित करना है और उन्‍हें टिकाऊ आजीविका के अवसरों से जोड़ना है।

इसके लिए इनके कौशल को बढ़ाया जाएगा और इसके साथ ही वित्‍त के औपचारिक स्रोतों, पात्रता और सार्वजनिक एवं निजी दोनों ही क्षेत्रों की सेवाओं तक उनकी पहुँच सुनिश्चित की जाएगी। यह परिकल्‍पना की गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब महिलाओं के गहन एवं सतत क्षमता निर्माण से उनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ-साथ विकास भी सुनिश्चित होगा।

अप्रैल 2014-नवम्‍बर 2018 के दौरान प्रगति

महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में इस मिशन की उपलब्धियों का उल्‍लेख नीचे किया गया है :

१. मिशन फुटप्रिंट : इस अवधि के दौरान 2411 अतिरिक्‍त ब्‍लॉकों को ‘गहन’ रणनीति के दायरे में लाया गया है। इस मिशन को संचयी रूप से 29 राज्‍यों और 5 केन्‍द्र शासित प्रदेशों के 612 जिलों में फैले 5,123 ब्‍लॉकों में कार्यान्वित किया जा रहा है।

२. सामुदायिक संस्‍थानों का निर्माण :  अप्रैल 2014 और नवम्‍बर 2018 के बीच 3 करोड़ से भी अधिक ग्रामीण निर्धन महिलाओं को देश भर में 26.9 लाख स्‍वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित किया गया है। कुल मिलाकर 5.63 करोड़ से भी अधिक महिलाओं को 49.7 लाख से ज्‍यादा एसएचजी में संगठित किया गया है। इसके अलावा, एसएचजी को 2.73 लाख से भी अधिक ग्राम स्‍तरीय महासंघों और लगभग 25,093 क्‍लस्‍टर स्‍तरीय महासंघों के रूप में संगठित किया गया है।

इसके अलावा, इन सामुदायिक संस्‍थानों को पूँजीगत सहायता के रूप में ₹5,919.71 करोड़ से भी अधिक की राशि मुहैया कराई गई है, जिनमें से लगभग 85 प्रतिशत रकम (₹5030.7 करोड़) उपर्युक्‍त अवधि के दौरान उपलब्‍ध कराई गई है।

३. वित्‍तीय समावेश : एसएचजी की बकाया ऋण राशि मार्च 2014 के ₹32,565 करोड़ से बढ़कर अक्‍टूबर 2018 में ₹76,591 करोड़ के स्‍तर पर पहुँच गई है। पिछले पांच वर्षों के दौरान एसएचजी द्वारा कुल मिलाकर ₹1.96 लाख करोड़ के बैंक ऋण से लाभ उठाया गया है। चालू वर्ष में फंसे कर्जों (एनपीए) के घटकर 2.64 प्रतिशत हो जाने के साथ ही पोर्टफोलियो की गुणवत्‍ता में भी उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है। यह एसएचजी द्वारा समय पर ऋणों के भुगतान को बढ़ावा देने के लिए राज्‍यों द्वारा सतत रूप से किये जा रहे प्रयासों का नतीजा है।

४. दूर-दराज के क्षेत्रों में वित्‍तीय सेवाएं : इस अवधि के दौरान वित्‍तीय सेवाएँ मुहैया कराने के वैकल्पिक मॉडलों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। लगभग 3,050 एसएचजी सदस्‍यों को बैंकिंग कॉरस्‍पोंडेंट एजेंटों (बीसीए) के रूप में तैनात किया गया है, ताकि अंतिम छोर तक वित्‍तीय सेवाएं मुहैया कराई जा सकें। इनमें जमा, ऋण, धन प्रेषण, वृद्धावस्‍था, पेंशन एवं छात्रवृत्तियों का वितरण, मनरेगा से संबंधित पारिश्रमिक का भुगतान एवं बीमा और पेंशन योजनाओं के तहत नामांकन शामिल हैं। नवम्‍बर 2018 तक ₹185 करोड़ के 16 लाख से भी अधिक लेन-देन पूरे किये गये हैं।

५. महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना एवं मूल्‍य श्रृंखला से जुड़ी पहल : महिला किसानों की आमदनी बढ़ाने और कच्‍चे माल से संबंधित लागतों एवं जोखिमों में कमी करने वाले कृषि-पारिस्थितिकी तौर-तरीकों को बढ़ावा देने के लिए इस मिशन के तहत महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (एमकेएसपी) को कार्यान्वित किया जा रहा है। अप्रैल 2014 से लेकर नवम्‍बर 2018 तक की अवधि के दौरान लगभग 3 लाख और महिला किसानों को एमकेएसपी के दायरे में लाया गया है। इसके साथ ही इस परियोजना के तहत अब तक 35.92 लाख महिला किसानों को लाया जा चुका है।

वित्‍त वर्ष 2015-16 से लेकर अब तक ‘डीएवाई-एनआरएलएम’ ने मूल्‍य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) से संबंधित उपलब्धियाँ हासिल करने की दिशा में उल्‍लेखनीय प्रयास किये हैं, ताकि बाज़ार संपर्कों (लिंकेज) का विस्‍तार किया जा सके। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य संपूर्ण बिजनेस मॉडल विकसित करना है, जिससे कि प्राथमिक उत्‍पादकों को उत्‍पादक संगठनों के सृजन से लेकर विपणन संबंधी संपर्कों के निर्माण तक के समस्‍त सॉल्‍यूशन सुलभ कराए जा सकें।

साभार: पत्र सूचना कार्यालय

मोदी सरकार की वो योजनाएँ जिन्होंने बदल दी ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगियाँ

हम सुनते आए हैं कि भारत गाँवों का देश है, और यह भी सच है कि गाँवों का जीवन तमाम चुनौतियों से भरा होता है। ग्रामीण समस्याओं को देखना और बात है, और उसका निदान करना और। अगर पिछली सरकार की बात करें तो ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास केवल चुनावी घोषणा-पत्र तक ही सिमटता दिखा। कहना ग़लत नहीं होगा कि वर्षों तक सत्ता पर क़ायम रहने वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने ग्रामीणों की समस्याओं को गंभीरता से कभी लिया ही नहीं जिसके लिए जनता उन्हें चुनती आई थी।

वहीं वर्तमान सरकार की उपलब्धियों में स्वच्छ भारत अभियान और उज्ज्वला योजना जैसी तमाम ऐसी योजनाएँ हैं जिन्होंने गाँवो की तस्वीर बदल दी, उसमें भी ख़ास कर महिलाओं के स्वाभिमान और गरिमा की रक्षा करने का जो काम इन योजनाओं ने किया, उसके परिणाम दूरगामी हैं।

केंद्र सरकार ने गाँवों के जीवन को सुगम और बेहतर बनाने की दिशा में कई सकारात्मक क़दम उठाए हैं जिसमें न केवल पुरुष ही शामिल हैं बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी राहत पहुँचाना शामिल है। इस लेख में हम आपको ग्रामीण महिलाओं की बदलती ज़िदगियों के बारे में विस्तार से बताएँगे।

गाँव की पुरानी तस्वीर का अगर हम क्षण भर के लिए ख़्याल करें तो उसमें चूल्हे से जूझती महिलाओं की एक तस्वीर उभरकर सामने आती है। आपने भी देखा होगा कि ग्रामीण महिलाएँ जब खाना बनाने बैठती हैं तो चूल्हे को जलाने से लेकर जब तक खाना बनकर तैयार न हो जाए तब तक उन्हें कड़ी मशक्क़त करनी पड़ती है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि खाना बनाने के दौरान चूल्हे से उठने वाला इस विषैले धुएँ का प्रभाव तंबाकू से भी अधिक घातक होता है। इसके अलावा महिलाओं को चूल्हा जलाने के लिए न जाने कितनी मेहनत करनी पड़ती थी।

ग्रामीण महिलाओं को उज्ज्वला योजना ने दी धुएँ से आज़ादी

गाँव के दूर-दराज़ इलाक़ों में घूम-घूमकर लकड़ी चुनना, कोयला जलाना और गोबर से उपले बनाकर ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना, ये सभी वो चुनौतियाँ हैं जिनसे ग्रामीण महिलाओं का सामना रोज़ाना होता है। इसके अलावा बरसात के समय तो यह समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है क्योंकि गीले ईंधन से खाना बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होता।

बता दें कि चूल्हे के धुएँ से एक तरफ तो फेफड़ों को नुक़सान पहुँचता है जिससे टीबी यानी तपेदिक की बीमारी का ख़तरा रहता है और वहीं दूसरी तरफ महिलाओं की आँखों को भी कई तरह की समस्याओं का ख़तरा बना रहता है, जिसमें मोतियाबिंद जैसी बीमारी के चलते दिखाई देना तक बंद हो सकता है। धुएँ का सीधा संबंध दिल संबंधी बीमारियों से होता है जिसका शिकार सबसे अधिक महिलाएँ ही होती हैं।

ऐसे में केंद्र सरकार की ‘उज्ज्वला योजना’ उन महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई जिन्हें रोज़ाना खाना बनाने के दौरान धुएँ से जूझना पड़ता था। उज्ज्वला योजना के तहत मुफ़्त गैस कनेक्शन ग्रामीण महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं। पिछली सरकार 55 फ़ीसदी लक्ष्य ही पूरा कर सकी जबकि मोदी सरकार ने 90 फ़ीसदी लक्ष्य प्राप्ति कर लगभग हर ग्रामीण महिला को चूल्हें के धुएँ से आज़ादी दिला दी। ध्यान देने वाली बात यह है कि जो आँकड़ा 2014 से पहले का है वो कॉन्ग्रेस के वर्षों तक एकछत्र राज का है और 90 फ़ीसदी का आँकड़ा वर्तमान सरकार का है जोकि बीजेपी सरकार के महज़ साढ़े चार साल के शासनकाल का है।

इस योजना के ज़रिए अब शुद्ध ईंधन के प्रयोग से महिलाओं के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। साथ ही, छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी उचित प्रभाव पड़ा है। बता दें कि मई 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवार की महिलाओं को मुफ़्त रसोई गैस (LPG) कनेक्शन मुहैया कराने के लिए मंत्रिमंडल ने ₹8,000 करोड़ की योजना को मंज़ूरी दी।

प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना ने रखा गर्भवती महिलाओं का ख़्याल

महिलाओं के हालात बदलने में केवल एक यही योजना नहीं है बल्कि ऐसी अनेकों योजनाएँ हैं जिन्होंने उनके रहन-सहन में बेहतर योगदान दिया है। ऐसी ही एक और योजना है ‘प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना‘ जिसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ₹6,000 की आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान है।

इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार करना है और नकदी प्रोत्साहन के ज़रिए उनके जीवन को स्वावलंबी बनाना है। इस योजना के लाभ से माँ और बच्चे दोनों को पोषण प्रदान किया जाता है, जिससे उन्हें कुपोषण से बचाया जा सके। जनवरी 2017 में इस योजना के तहत मोदी सरकार ने कुल बजट ₹12,661 करोड़ तय किया जिसमें से ₹7,932 करोड़ केंद्र सरकार द्वारा वहन किए जाना तय हुआ, बाक़ी राशि संबंधित राज्यों द्वारा वहन की जाएगी। इस योजना की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि योजना की राशि सीधे बैंक में भेजी जाती है जिससे इसके दुरुपयोग न किया जा सके।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना से बेटियों को मिला आधार

जनवरी 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ‘ योजना का भी वर्तमान समय में काफ़ी योगदान है। समाज में बेटी का स्थान बेटे से कमतर ही आँका जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में गठित सरकार ने बेटियों के मान को न सिर्फ़ बढ़ाने का काम किया है बल्कि उनके चहुमुखी विकास के लिए ऐसी योजनाओं का प्रावधान भी किया जिससे वो किसी पर बोझ न बनें और अपना विकास स्वयं करने में सक्षम हो सकें। जिस घर में बेटी का जन्म होता है उस घर में उसकी पढ़ाई और विवाह की चिंता घर के लोगों की चिंता का कारण बनी होती है। इसके समाधान के लिए बेटियों की शिक्षा का ज़िम्मा सरकार ने ख़ुद अपने कंधों पर लिया।

इस योजना को लागू करने के पीछे सबसे बड़ा मक़सद बालिका लिंगानुपात की गिरावट को कम करना है। इसके अलावा परिवार को बालिकाओं के प्रति किए जा रहे भेदभाव को कम करना और उन्हें जागरूक करना भी शामिल है ताकि समाज में बालिकाओं को भी अपने विकास का पूरा अधिकार मिल सके। इस योजना के तहत बेटियों को शिक्षा और विवाह के लिए आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है। इस योजना को लागू कर सरकार ने देश की बेटियों के गौरव को बढ़ाने का काम किया है।

महिला ई-हाट ने दिलाई ग्रामीण महिलाओं के हुनर को पहचान

आज भी देश का किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की एक मज़बूत रीढ़ है, और इस रीढ़ के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने वाली उन महिलाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता जो हाथ के हुनर को भी जानती हैं। इन ग्रामीण महिलाओं के हाथ को हुनर को पहचान दी प्रधानमंत्री द्वारा चलाए जा रही एक ‘लाभकारी प्रशिक्षण और रोज़गार कार्यक्रम’ ने, जिसके माध्यम से महिलाओं को स्व-रोज़गार तलाशने में मदद मिली और उन्हें उद्यमी बनने में सक्षम बनाया। इस कार्यक्रम में हर वो कार्य शामिल किया गया जो महिलाएँ अक्सर घरों में किया करती थीं। इसमें, अचार बनाना, पापड़ बनाना, सिलाई, कढ़ाई, ज़री, हथकरघा, हस्तशिल्प जैसे तमाम लघु उद्योग शामिल हैं।

महिलाओं को इस तरह का कौशल प्रदान करना और सरकार द्वारा इसे प्रशिक्षण के दायरे में लाना एक बेहद सुखद पहल है, इससे ग्रामीण स्तर की महिलाओं को भी अपना जीवन सँवारने में मदद मिलेगी। महिलाओं की बेहतरी के लिए और उनके हुनर को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ‘महिला ई-हाट’ भी वर्तमान सरकार की ही देन है। इस हाट का उद्देश्य है कि ग्रामीण महिलाओं के हस्तशिल्प को विश्व स्तर पर पहचान मिल सके और उनके लिए कमाई के एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर सके।  

निष्कर्ष के तौर पर यह मानने में कोई गुरेज़ नहीं होनी चाहिए कि वर्तमान सरकार ने देश के हर वर्ग को बराबर और एक स्तर पर लाने का पूरा प्रयास किया है। इस प्रयास में महिलाओं की बेहतरी के लिए उटाए गए क़दम भी शामिल हैं। तमाम आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद वर्तमान सरकार अपने लक्ष्यों को पाने में न सिर्फ़ सफल रही बल्कि देश को तरक्की की राह पर भी लेकर आई।

NRC की समयसीमा में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा: SC

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की अंतिम रिपोर्ट हर हाल में 31 जुलाई 2019 तक पूरा करने के लिए कहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए एनआरसी के को-ऑर्डिनेटर, असम सरकार और चुनाव आयोग के साथ बैठकर इस मामले में योजना बनाने के लिए कहा है।

कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की वजह से एनआरसी का काम किसी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के जज ने यह भी कहा कि इसके लिए असम के चीफ सेक्रेटरी, राज्य के चुनाव आयुक्त व एनआरसी से जुड़े अधिकारी आपस में बैठकर तय करें कि लोकसभा चुनाव व एनआरसी दोनों से ही जुड़े काम को सरकारी कर्मचारी बेहतर तरह से कैसे कर पाएँगे।

कोर्ट में बहस के दौरान एनआरसी के अधिकारियों ने बताया कि 31 दिसंबर 2018 तक एनआरसी लिस्ट में कुल 36.2 लोगों ने अपना नाम जुड़वाने के लिए आवेदन किया था। 30 जुलाई को एनआरसी ने एक रिपोर्ट जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि 3.29 करोड़ लोगों के आवेदन में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम इस लिस्ट में जोड़ा गया था।

इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि असम की तरफ़ से कोर्ट में पेश होने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एक सप्ताह के भीतर सभी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग करें। इस मीटिंग की रिपोर्ट को अगले बार सुनवाई के दौरान रखने के लिए कोर्ट ने कहा है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 5 फ़रवरी को तय की है।

लोकसभा चुनाव : MOTN सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत में NDA के लिए UPA नहीं होगी बड़ी चुनौती

लोकसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स ने मिलकर मूड ऑफ द नेशन (MOTN) के नाम से देश भर में एक सर्वे किया है। इस सर्वे के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2019 में देश के उत्तरी हिस्से में भाजपा व उनके सहयोगी दलों के लिए को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) से बड़ी चुनौती नहीं मिलेगी।

इस रिपोर्ट की मानें तो उत्तर भारत के पाँच राज्यों – दिल्ली, हरियाणा, पंजाब , उत्तर प्रदेश और राजस्थान – में बीजेपी को कॉन्ग्रेस से ज़्यादा बड़ी चुनौती अन्य दलों से मिलेगी। इंडिया टुडे ने इस सर्वे के ज़रिए देश के लोगों के मिज़ाज जानने का प्रयास किया। इस सर्वे के ज़रिए यह भी जानने का प्रयास किया गया कि लोकसभा चुनाव में जनता किन मुद्दों के आधार पर वोट करेगी।

इसके साथ ही इस सर्वे में यह भी जानने का प्रयास किया गया कि, क्या जनता यूपीए, एनडीए के आलावा तीसरे विकल्प को मौका देगी? इसी तरह चुनाव से जुड़े कई सवालों के आधार पर कराए गए इस सर्वे में जो परिणाम आए हैं वो यूपीए समेत कई दलों के लिए चौकाने वाली है।

सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत के पाँच राज्यों में चुनाव के नतीजे एनडीए के समर्थन में ही आने वाली है। सर्वे के मुताबिक इन पाँच राज्यों – दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान- में एनडीए को 40% तक वोट मिल सकते हैं, जबकि यूपीए को महज 23% वोट मिलने की संभावना है। हालाँकि, इस रिपोर्ट के मुताबिक अन्य दल इन राज्यों में यूपीए से ज्यादा भाजपा व उनके सहयोगी दलों के लिए चुनौती पेश कर सकते हैं।

सर्वे की मानें तो एनडीए व यूपीए के अलावा इन राज्यों में अन्य दलों को 37% वोट मिलने की संभावना है।  

पाँच राज्यों में इतनी सीटें भाजपा को मिल सकती है

यदि उत्तर भारत के इन पाँचों राज्यों में सीटों के लिहाज़ से देखें तो एनडीए यहाँ 66 सीटों पर चुनाव जीत सकती है, जबकि अन्य दलों को 65 सीटें मिल सकती है। यूपीए की बात करें तो सर्वे के मुताबिक यूपीए को यहाँ से 20 सीटें मिल सकती है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि इन पाँच राज्यों में लोकसभा की कुल 135 सीटें हैं। सर्वे में इस बात की भी चर्चा है कि यदि सपा व बसपा यूपीए का हिस्सा होता तो एनडीए को नुकसान होता।

*दिल्ली राज्य नहीं है, सर्वे में लिखने की सहजता के लिए उसे ‘राज्यों’ में शामिल किया गया है।

मजबूरी का नया नाम – प्रियंका गाँधी

विपक्ष में आजकल त्योहारों का मौसम देखने को मिल रहा है। इसी मौसम के बीच पहली ख़ुशख़बरी ये रही कि भगवंत मान ने देशहित के लिए दारु छोड़ने की भीष्म प्रतिज्ञा कर डाली। जबकि जानकारों का कहना है कि भगवंत मान यह घोषणा करने से पहले ही 2 पैग लगा चुके थे। देशहित में अगला ऐतिहासिक त्याग इसके बाद अगर वो कुछ कर सकें तो कृपया कर उन्हें राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।

इसके बाद त्यौहार मनाया लोकतंत्र के लेटेस्ट प्रवक्ता, नक़ाबपोश और ‘टेक एक्सपर्ट’ सैयद शूजा ने। सैयद शूजा की मानें तो वो भारतीय मूल के अमरीकी एक्सपर्ट हैं, जिन्होंने EVM को हैक कर के दिखाने का दावा कर डाला था।

लोकतंत्र ख़तरे के निशान से ऊपर रहे या नीचे जाए, लेकिन इस वाकए ने देश के नौजवानों को एक नई दिशा दे डाली है। मने, इंजीनियरिंग कर के घर में पूरा दिन PUBG खेल रहे युवा, जो घर पर अपने टैलेंट की कद्र ना होने से परेशान भी है और पंखा-टीवी ठीक करने के काम आता रहा है, उसने भी मन बना लिया है कि ‘One fine day’ वो भी अब अमेरिका जाकर, नक़ाब पहन कर लाइव विडियो प्रसारण के ज़रिए देश-विदेशों में ये कह कर लहरिया लूटेगा कि वो भी टेक एक्सपर्ट है, क्योंकि विदेश में बैठा एक नौजवान ऐसा कर के बहुत जलवा काट चुका है। उसके प्रवचन कोई सुने न सुने, कपिल सिब्बल और नेशनल हेराल्ड के पत्रकार गिरोह तो जा कर सुन ही लेंगे।

हमारे देश में अपनी विश्वसनीयता क़ायम करने का ये सबसे आसान तरीका बन चुका है कि ख़ुद को किसी तरह से विदेश से सम्बंधित बताकर जो मन करे वो ज्ञान उड़ेल दिया जाए। कोई जवान लड़का जब लड़की देखने जाए तो जब तक लड़की की मम्मी इंस्टाग्राम पर उसकी होनोलूलू में खिंचाई गई तस्वीर नहीं देख लेती, तब तक उसे यकीन नहीं हो पाता है कि लड़का वाकई में क़ाबिल है।

सैयद शूजा की रामलीला ख़त्म हुई ही थी कि कॉन्ग्रेस ने भी लगे हाथ देश की राजनीति में एक और ऐतिहासिक निर्णय झोंक दिया। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की मानें तो प्रियंका गाँधी ने पूर्वांचल में पार्टी कमान संभालकर वर्षों से चली आ रही परिवारवाद कि राजनीति में नई मिसाल क़ायम कर डाली है।

अंधभक्त और भाजपा चाहे कितना भी विरोध करें, लेकिन प्रियंका गाँधी हर मायने में ज़मीन से जुड़ी हुई नेता हैं और उनमें प्रतिभा भी कूट-कूट कर भरी हुई है। सबसे बड़ी प्रतिभा उनकी जिसे ख़ोज निकालने में गोदी मीडिया कल से नाकाम रहा है, वो ये है कि दुनिया में वो ऐसी इकलौती महिला हैं जो जीन्स पहनते ही वाड्रा, और साड़ी पहनते ही गाँधी बन जाने की विलक्षण क्षमता रखती हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि बस इस मामले में वो इंदिरा गाँधी से एकदम अलग हैं। प्रियंका गाँधी की सबसे बड़ी खूबी है कि वो ‘ऑड डेज़’ पर गाँधी और ‘इवन डेज़’ पर वाड्रा बनकर रह सकती हैं। यानी इस तरह से ऑड-इवन का फ़ॉर्मूला अब सिर्फ सर केजरीवाल ही नहीं बल्कि कॉन्ग्रेस ने भी इजाद कर डाला है।

ये वही मीडिया गिरोहों का समूह है, जो प्रियंका गाँधी के आज तक के उनके समाज के लिए किए योगदान, उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किए गए राजनीतिक कार्य को गिनाने के बजाए उनके ‘लुक’ की तुलना इंदिरा गाँधी से करने में लगा है। बेहद सफाई से यह गिरोह कल से यह बताकर पाठकों का मनोरंजन कर रहा है कि प्रियंका गाँधी अपने नाश्ते और डिनर में टिंडे नहीं बल्कि दाल-मखनी और मलाई कोफ़्ता खा रही हैं।

एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस बिना किसी पूर्व अनुभव के प्रियंका गाँधी को राजनीति में झोंककर ये साबित कर चुकी है कि राहुल गाँधी से ना हो पाएगा, वहीं पत्रकारों का गिरोह इस मशक्कत में जुटा है कि प्रियंका गाँधी चलती भी अपनी दादी की ही तरह हैं और बोलती भी अपनी दादी की तरह हैं। स्पष्टरूप से यह गिरोह जानता है कि कॉन्ग्रेस की इस नई सनसनी के पास ऐसा कुछ है ही नहीं, जिस पर वाकई में वह चर्चा और ‘विशेष चर्चा’ बिठा सकें।

इस देश का वोटर कितना खुश होता अगर कॉन्ग्रेस अपने वंशवाद की तलब को किनारे कर, एक ऐसे चेहरे को लेकर आती जिसमें जनता को एक भविष्य का नेता नज़र आता, जो उनकी अधिकारों को लेकर लड़ चुका हो, जो समाजवाद और लोकतंत्र के ढाँचे के लिए प्रतिबद्द रहा हो।

विपक्ष की सबसे बड़ी हार यही है कि वो इस देश में नेता नहीं बल्कि अपने वंश को झोंकना चाहता है, इसी जल्दबाज़ी में वो प्रधानमंत्री का चेहरा लेकर नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी को हटाने की तीव्र कुंठा लेकर जनता के सामने आता है।

वहीं प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने से भाजपा के राष्ट्रीय प्रचारक रह चुके राहुल गाँधी के लिए नया संकट यह पैदा हो गया है कि कहीं उन्होंने बहन को वोट देने की माँग की और वोटर दे आएँ अपना वोट बहन मायावती को। कितना बड़ा संकट उनके सामने पैदा हो गया है, कभी ‘बटन’ दबा देने मात्र से वोट भाजपा को चले जाया करते थे, अब यह नई चुनौती है कि ‘बहन’ के लिए वोट माँगकर उन्हें वोट को बहन मायावती को जाने से भी रोकना होगा।

प्रियंका गाँधी का नाम चर्चा में आने के बाद कुछ महिलाओं में भी विशेष उत्साह देखा गया है, उनका मानना है कि प्रियंका गाँधी इस देश में पितृसत्ता की काट बनकर आई हैं। लोग शायद यह भूल गए हैं कि उन्हीं की माता सोनिया गाँधी पिछली 2 पंचवर्षीय के दौरान ख़ुद प्रधानमन्त्री न होकर भी देश चला चुकी हैं। जो महिला 15 पन्नों के CV वाले एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को झोलाछाप डॉक्टर साबित कर चुकी हैं, क्या वह इस देश में महिला सशक्तिकरण में नहीं आता है?

क्या ये महज़ एक इत्तेफ़ाक है कि वही राजमाता जो कॉन्ग्रेस की प्राचीन दंतकथाओं में कहा करती थी कि बेटा सत्ता ज़हर है, आज उसी के दोनों बच्चे परिवार के पैत्रिक व्यवसाय यानि राजनीति में ‘वेल सेटल्ड’ हो चुके हैं। लोकतन्त्र की भाषा में तो मालूम नहीं, लेकिन गढ़वाली बोली में इसे ‘फट्याटोप’ कहते हैं।

‘बेटा बचाओ’ की नाकाम कोशिशों के बाद बालिका दिवस पर कॉन्ग्रेस ने ‘बेटी बचाओ’ अभियान पर जो पहल की है, उसकी हर तरह से तारीफ़ ही की जानी चाहिए।

देश का वोटर सिर्फ यही उम्मीद पाल सकता है कि जितना योगदान राहुल गाँधी के गालों के डिम्पल भारतीय राजनीति में कर रहे हैं प्रियंका गाँधी के डिम्पल उससे कुछ ज्यादा का ही योगदान करेंगी, आख़िरकार वो गाँधी होने के साथ ही वाड्रा भी तो हैं।

उम्मीद पर दुनिया क़ायम है, दोनों बच्चों के ‘सेटलमेंट’ के बाद अब कॉन्ग्रेस पार्टी भी किसी दिन ‘सेटल’ हो जाए, इसी उम्मीद के साथ प्रियंका को बधाई और शुभकामनाएँ।