Wednesday, October 2, 2024
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पोप का पूर्व सलाहकार और वैटिकन का टॉप कार्डिनल बाल यौन अपराध का दोषी: मिली 6 वर्ष की क़ैद

चर्च भले ही खुद को परमपिता परमेश्वर के दूत का घर और पवित्र संस्थान बताता हो लेकिन उसके दामन पर लगने वाले दागों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। हाल ही में एक बड़ा मामला सामने आया है जिसमें वैटिकन के पूर्व कोषाध्यक्ष और पोप फ्रांसिस के सलाहकार रह चुके कार्डिनल जॉर्ज पेल को बाल यौन अपराध का दोषी करार दिया गया है और 6 वर्ष जेल की सज़ा सुनाई गई है।

मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) के कार्डिनल जॉर्ज पेल पर आरोप था कि उसने चर्च के दो ‘कॉयर बॉयज़’ (प्रार्थना गीत गाने वाले लड़के) का नब्बे के दशक में यौन शोषण किया था। अदालत ने इन आरोपों को सही पाया और जॉर्ज को 6 साल जेल की सज़ा सुनाई है। हालाँकि यह सज़ा बहुत कम है फिर भी महत्वपूर्ण यह है कि विश्वभर भर में ऐसे मामलों में अब तक सज़ा पाए ईसाई कैथोलिक पादरियों में जॉर्ज पेल का ओहदा सबसे ऊँचा है क्योंकि वह सीधा वैटिकन से जुड़ा हुआ था।

विक्टोरिया काउंटी के चीफ जज पीटर किड ने सज़ा सुनाते हुए कहा कि वो चाहते हैं कि पेल अब जीवन में कभी भी जेल से न निकल पाए और यह सज़ा बाकियों के लिए एक सबक होगी। 77 वर्षीय पेल ने दो कॉयर बॉयज़ का यौन शोषण कैथेड्रल में ही 1996 में ‘संडे मास’ के एकत्रीकरण के बाद किया था। जज ने सज़ा सुनाते हुए इस बात को रेखांकित किया कि यौन शोषण के बाद लड़कों की मानसिकता पर ऐसा दुष्प्रभाव पड़ा जो वे जीवनभर नहीं भूल पाए। एक लड़के को तो इसके कारण हेरोइन की लत गई थी जिसके कारण उसकी मौत हो गई थी।     

दक्षिणपंथी मूर्ख नहीं है वामपंथी परमादरणीय क्यूटियों, तुम एक्सेल-एक्सेल खेलते रहो

मीडिया अपनी नंगई के नए आयाम हर दिन गढ़ता जाता है। जब ख़बर न हो, तो ख़बर बनाई जाती है। एंगल न हो, तो एंगल निकाला जाता है। बात कही न गई हो, तो बात कहलवाई जाती है। कोई माफ़ीनामा नहीं, कोई शुद्धिकरण नहीं, कोई पछतावा नहीं। 

सर्फ़ एक्सेल ने एक प्रोपेगेंडा किया अपने एक विज्ञापन के माध्यम से। बहुत ही सहज तरीके से, अपने आप को धार्मिक सद्भाव का पक्षधर दिखाते हुए, विज्ञापन में होली के त्योहार को समुदाय विशेष के बच्चे पर आतंक की तरह से दिखाते हुए, एक बच्ची का सहारा लेकर यह जताने की कोशिश हुई कि हिन्दुओं ने उनकी नमाज़ तक बंद करा रखी है।

विज्ञापन बनाने वालों को सामान भी बेचना है, और उन्हीं की भावनाओं को टार्गेट भी करना है जो उनका सबसे बड़ा ख़रीदार है। जब विज्ञापन की कॉपी लिखी जाती है तो किसी को आहत करना उसका मक़सद नहीं होता, बशर्ते आप सच में किसी को आहत करके ही चर्चा का विषय बनना चाहते हैं। 

टीवी पर अब विज्ञापन कोई नहीं देखता। विज्ञापन आया, आप चैनल बदल लेते हैं। ऐसे में दो उपाय बचते हैं विज्ञापन बनाने वालों के लिए, पहला यह कि विज्ञापन इतना अच्छा बना दिया जाए कि वाक़ई लोग उसे देखें। जैसा कि गूगल ने कई बार एक से डेढ़ मिनट लम्बे विज्ञापन बनाए हैं, जिसमें कहानियाँ होती हैं, और आप भावुक हो जाते हैं। ऐसे विज्ञापन खूब शेयर होते हैं, और इसी के माध्यम से कम्पनी का प्रचार भी हो जाता है।

इस तरीके में थोड़ा समय लगता है, थोड़ा दिमाग लगाना होता है, टीम को बैठकर कॉपी लिखनी होती है, सामाजिक संवेदना और भावनाओं को केन्द्र में रखकर चर्चा होती है, तब जाकर वह विज्ञापन बनकर तैयार होता है। चूँकि, इतने स्तर पर इसमें लोग जुड़े होते हैं, तो उसमें किसी को टार्गेट करने की जगह, सब को अपील करने की बात पर ज़्यादा ज़ोर होता है। 

दूसरे तरीके में ऐसा अप्रोच नहीं होता। दोनों तरीके का मक़सद है चर्चा में आना। दूसरे तरह के लोग, जो सर्फ़ एक्सेल वाले हैं, या फिर पूरी दुनिया में कभी बीयर बेचते हुए नस्लभेदी बात कहने वाले, या फिर डोल्चे एंड गबाना, पेप्सी, या केटी पैरी जैसे ब्रांड और लोगों के द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खेलते हैं, ऐसे लोग जानबूझकर इस तरह के विज्ञापन बनाते हैं।

इस तरह के विज्ञापन को बनाने में आपको टार्गेट पता होता है, वो किन बातों से नाराज हो सकते हैं, ये भी पता होता है। फिर आप शब्दों और तस्वीरों की कलाकारी से दिखाते हैं कि आप सद्भावना की बात कर रहे हैं, और बड़े ही प्रेम से आप नफ़रत बाँटकर निकल लेते हैं। सर्फ़ एक्सेल ने यही तरीक़ा अपनाया। उनका तरीक़ा सफल रहा। उस विज्ञापन के कुछ दिन पहले हिन्दुस्तान यूनिलीवर ने कुम्भ मेले को ऐसे दिखाया था जैसे वहाँ हिन्दू युवक अपने बुजुर्ग माँ-बाप को छोड़कर भाग जाने के लिए आते हैं।

ऐसे विज्ञापनों के तरीके तो अब सब जानते हैं, लेकिन इसके बाद जो होता है, वो भी एक गिरोह का कारोबार बन गया है। ये बातें भी पहले से तय होती हैं कि क्या होगा, कैसे होगा, और कब होगा। एक्सेल का विज्ञापन न सिर्फ अपनी तस्वीरों के लिए बेहूदा कहा जाएगा, बल्कि होली के रंगों को ‘दाग’ जैसे नकारात्मक शब्दों से जताने के लिए भी। हम होली खेलकर आते हैं, तो यह नहीं कहते कि ‘दाग नहीं छूट रहा’, हम यही कहते हैं कि ‘रंग नहीं उतर रहा’। 

एक्सेल ने अपने शब्द चुने, टोपी पहनकर सफ़ेद कपड़ों में मस्जिद जाते मासूम बच्चे को चुना, हिन्दुओं के सुंदर से त्योहार को चुना, बच्चों की टोलियाँ चुनीं और उनके माध्यम से एक घृणित सोच को विज्ञापन के रूप में चलाया। क्या ऐसा कहीं होता है? आज के दौर में जहाँ रामनवमी के जुलूस पर समुदाय विशेष की चप्पलें फेंकी जाती हैं, दुर्गा पूजा के पंडालों पर पत्थरबाज़ी होती है, विसर्जन पर प्रशासन को घेराबंदी पर मजबूर होना पड़ता है, वहाँ आप हिन्दुओं के रंगो को ऐसे दिखा रहे हैं जैसे वो छतों से बम फेंकते हों? 

इसे कहते हैं सामान्यीकरण। अपवाद भी नहीं है, ऐसा कहीं नहीं होता कि नमाज़ पढ़ने जाते बच्चे पर, या युवक पर, किसी हिन्दू ने रंग फेंक दिया हो। अगर ऐसा होगा तो वहाँ दंगा हो जाएगा, क्योंकि इतनी समझदारी हर आदमी में है कि किस पर रंग फेंका जाए, किस पर नहीं। दंगा इसलिए होगा क्योंकि कुछ लोग दंगा कराने की फ़िराक़ में बैठे रहते हैं। जिसे रंग पड़ा हो, वो मजहब का आदमी भले ही कपड़े बदल ले, लेकिन चार लोग उस बात का बतंगड़ बनाकर झगड़ा शुरू कर सकते हैं।

नॉर्मल बात यह है, न कि वो कि छोटा बच्चा मस्जिद जा रहा है, और उसे रंगों से नहलाने का इंतजार किया जा रहा हो। और हाँ, इन मासूम बच्चों को अपनी घृणित मानसिकता में क्यों घसीट रहे हो? इन्हें न तो होली पता है, न नमाज़। ये तो रंगों से सराबोर कपड़ों में नमाज़ पढ़ लेंगे, लेकिन तुम पढ़ने दोगे नहीं। तुम्हें उन बच्चों को आतंकियों की तरह दिखाना है जो रंग खेल रहे हैं, होली मना रहे हैं।

किसी त्योहार से किसी तक नकारात्मकता कैसे पहुँचाई जाए, ये एक्सेल के विज्ञापन से देखा जा सकता है। अगली बार कोई एन्टीसैप्टिक क्रीम वाले लोग ऐसा विज्ञापन बनाएँगे, जिसमें किसी नमाज़ पढ़ने जाते समुदाय विशेष के बच्चे पर हिन्दू बच्चों ने बम उछाल दिया हो, और उसकी चमड़ी जल जाए। बाद में पता चले कि वो तो हिन्दू ही था जिसने अपने मजहबी दोस्त के लिए टोपी पहनकर बम झेला! फिर आप चुपके से अपनी क्रीम बेच लेना यह कहकर कि साम्प्रदायिक सद्भावना का परिचायक है यह विज्ञापन।

ये सब अब क्रिएटिवीटी के नाम पर हो रहा है। ऐसा करना इस प्रोसेस का पहला हिस्सा है। इसमें हिन्दुओं को पहले रंग खेलने वाले आतंकवादियों की तरह दिखाया गया जैसे वो रंग की जगह एसिड फेंक रहे हों, और रही सही कसर शब्दों के चुनाव से पूरी हो गई। प्रोसेस का दूसरा हिस्सा है ट्विटर पर बॉयकॉट सर्फ़ एक्सेल ट्रेंड होना।

ये ट्रेंड, हो सकता है, ऑर्गेनिक हो, और लोगों ने वाक़ई सर्फ़ एक्सेल को न ख़रीदने का विचार किया हो, लेकिन एंड्रॉयड एप्प स्टोर में जाकर, माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल एप्प के नीचे, फर्जी नाम बनाकर (प्राउड हिन्दू, जय श्री राम, अ एंड्रॉयड यूज़र आदि) टूटी-फूटी हिन्दी और अंग्रेज़ी में एप्प को गाली देना, रेटिंग कम करना, ऑर्गेनिक नहीं है। ये स्वतः नहीं होता, ये किया जाता है।

ये ऐसा जताने की कोशिश है कि दक्षिणपंथी लोग, हिन्दू लोग, वैसे लोग जिन्हें ऐसे विज्ञापनों से समस्या है, वो न सिर्फ ‘एक सामाजिक सद्भाव के विज्ञापन को समझ नहीं सके’ बल्कि उन्हें तो ‘सर्फ़ एक्सेल और माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल का भी फ़र्क़ नहीं पता’। ये लोग मीडिया पोर्टल चलाते हैं, तीन एप्प रिव्यू देखकर आर्टिकल लिखते हैं, और ‘स्टूपिड राइट विंगर्स’ के मज़े लेते हैं।

इनकी यही मूर्खता इनकी ताबूत में कीलों को ठोकती जा रही है। इन्हें लगता है कि ये दक्षिणपंथियों को ऐसे ही मूर्ख बनाकर दिखाते रहेंगे और इन्हें कुछ हासिल हो जाएगा। जबकि होता है इसका उल्टा। राइट विंग वाले जानते हैं कि ये करतूत किसकी है। अब सबको पता है कि मीडिया इन बातों पर कैसे रिएक्ट करेगी। लोग कटाक्ष करने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल के एप्प की रेटिंग कम देकर, बुरी भाषा में कुछ लिखकर आ जाते हैं। 

ऐसा करना वामपंथियों का मजाक उड़ाना है कि तुम यही खोजते आओगे, मैंने पहले ही तुम्हारी चाल समझ ली, इसलिए हवेली पर आओ, हम तुम्हारे मज़े लेंगे। अब दक्षिणपंथी इन वामपंथियों को इन्हीं के खेल में हराने लगे हैं। ये इन्हें जितना मूर्ख दिखाने की कोशिश करें, मोर तो ये खुद ही बन रहे हैं। सर्फ़ एक्सेल वालों को बेहतर पता होगा कि फ़र्क़ माइक्रोसॉफ़्ट को पड़ा है, या सर्फ़ को। 

अब ये हथकंडे पुराने हो चुके हैं। ये उतना ही घिसा हुआ आर्टिकल होता है जितना कि हर सेलिब्रिटी के इन्स्टाग्राम पर गाली देने वाले ट्रोल को जवाब देती सेलिब्रिटी के एक कमेंट पर आर्टिकल लिखने वाले पोर्टलों के खलिहरपन की जब वो लिखते हैं ‘एंड शी शट डाउन द ट्रोल विद हर एपिक रिप्लाय’। रिप्लाय कोई एपिक नहीं होता, वो लिख रही होती है कि ट्रोल को ढंग का काम करना चाहिए, गाली देने से कुछ नहीं होगी, या फिर गाली ही देकर उससे उलझा जा रहा हो।

इसलिए, वामपंथी क्यूटाचारी पत्रकारो, पत्रकारिता के समुदाय विशेष गिरोह के चिरकुट सदस्यो, बंद करो ये नौटंकी। वैसे भी दक्षिणपंथी पोर्टलों की ट्रैफिक बढ़ती ही जा रही है और तुम्हारे बाप और दादा हिटलर का लिंग नापने से लेकर जवानों की जाति बताने, झूठे ‘एक्सपोज़े’ करने और सनसनी फैलाकर हिट्स बटोरने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे कॉन्ग्रेस विधायक, 5 हफ़्तों में 7 विधायक BJP में शामिल

पिछले कुछ दिनों के ट्रेंड को देखें तो पता चलता है कि कॉन्ग्रेस के कई विधायक पार्टी से असंतुष्ट होकर खेमा बदल रहे हैं। गुजरात में तो पार्टी की स्थिति अच्छी ख़ासी बुरी है। कुल मिलाकर देखें तो पिछले 5 सप्ताह में 4 राज्यों में कॉन्ग्रेस के 6 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय मुंबई में भाजपा में शामिल हुए। नेता प्रतिपक्ष के बेटे के ही पार्टी बदल लेने से कॉन्ग्रेस को राज्य में फ़ज़ीहत का सामना करना पड़ा। सुजय ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा- “मुझे नहीं पता कि मेरे पिता इस फैसले का कितना समर्थन करेंगे, लेकिन भाजपा के नेतृत्व में मैं अपना सब कुछ झोंक दूंगा। ताकि सभी को गर्व हो।” उनके अहमदनगर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की संभावना है। भाजपा संसदीय बोर्ड को उनका नाम लोकसभा उम्मीदवारी के लिए भेज दिया गया है। ये जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दी।

गुजरात में तो कॉन्ग्रेस की स्थिति और भी बुरी हो चली है। पिछले पाँच हफ्ते में राज्य के 4 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है। हाल ही में विधायक वल्लभ धारविया कॉन्ग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। धारविया ने जामनगर (ग्रामीण) के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा ने कहा कि यह धारविया के लिए घर वापसी है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले कॉन्ग्रेस में जाने और विपक्षी पार्टी के टिकट पर जीतने से पहले वह भाजपा के साथ थे। उन्होंने भाजपा में शामिल होकर पीएम मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा की। उस से पहले 2 विधायकों पुरुषोत्तम सावरिया और जवाहर चावड़ा ने एक ही दिन में कॉन्ग्रेस को डबल झटका दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे। बता दें कि जवाहर चावड़ा और पुरुषोत्तम सावरिया दोनों ही नेताओं की अपने इलाक़े में अच्छी पकड़ रही है।

चावड़ा को तो विजय रुपानी सरकार में मंत्री भी बनाया गया है। अगर दक्षिण भारत की बात करें तो कर्णाटक में कॉन्ग्रेस विधायक उमेश जाधव इस्तीफा देने के बाद 6 मार्च को भाजपा में शामिल हो गए थे। वह लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के ख़िलाफ़ गुलबर्गा से ताल ठोक सकते हैं। खड़गे के बेटे को राज्य सरकार में मंत्रीपद दिया गया था। जाधव इसी बात से नाराज चल रहे थे। बंगाल में भी कॉन्ग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। यहाँ पार्टी के विधायक दुलार चंद बार ने भाजपा का दामन थाम लिया है। बंगाल में भाजपा को डबल फ़ायदा हुआ है। राज्य में माकपा विधायक खगेन मुर्गु भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। तृणमूल कॉन्ग्रेस के लिए भी कोई अच्छी ख़बर नहीं है। तृणमूल से निष्काषित सांसद अनुपम हजारा भी भाजपा में शामिल हुए हैं।

चुनाव के इस मौसम में भाजपा भी बाहर से आ रहे नेताओं के स्वागत में खड़ी है। जदयू, लोजपा, शिवसेना और अकाली दल जैसे पुराने गठबंधन साथियों का साथ बनाए रख कर भाजपा और उत्साह में नज़र आ रही है। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के रूप में राजग में एक और बड़ा दल शामिल हुआ है। भाजपा ने जहाँ से जीत दर्ज नहीं की थी, वहाँ के विधायकों के पार्टी में शामिल होने को वह एक अच्छी निशानी के रूप में देख रही है।

मसूद अज़हर ‘जी’ के साथ माननीय राहुल G का पोस्टर लगा अमेठी में, वायरल हुआ सोशल मीडिया पर

अभी हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पुलवामा हमले के साज़िशकर्ता आतंकी मसूद अज़हर को ‘जी’ लगाकर सम्बोधित किया था। उसके बाद से ही उन्हें लेकर विरोध शुरू हो गया। दिग्विजय सिंह भी ओसामा को सम्मानपूर्वक सम्बोधित कर चुके हैं। ऐसे में, कॉन्ग्रेसी नेताओं की इस हरकत को लेकर जनता ने उन्हें सोशल मीडिया पर घेरा। उधर अमेठी के रेलवे स्टेशन परिसर में राहुल गाँधी के विरोधस्वरूप एक पोस्टर लगाया गया है। इस पोस्टर में वह आतंकी मसूद अज़हर के साथ दिख रहे हैं। पोस्टर में राहुल गाँधी को जैश सरगना का पाँव छूते (हालाँकि कम झुकने की वजह से हाथ पाँव तक नहीं पहुँच पाया है) हुए दिखाया गया है।

पोस्टर में कलाकारी की गई है। रचनात्मकता को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। जिसने भी यह किया है, वह जरूर कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं से प्रभावित रहा होगा। जिस प्रकार से किसी भी फोटो को एडिट करके राहुल गाँधी को कभी राम तो कभी शंकर बना पोस्टर में उभारा जाता है, ठीक उसी प्रकार से अमेठी के इस पोस्टर को बनाया गया है – फोटो किसी की, चेहरा किसी का!

अमेठी के वोटर शायद अपने सांसद साब से खुश नहीं

राहुल गाँधी अमेठी से ही लोकसभा सांसद हैं। वह 2004, 2009 और 2014 में इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। आगामी लोकसभा चुनावों में भी राहुल गाँधी अमेठी से ही ताल ठोकेंगे। क्षेत्र में भाजपा और कॉन्ग्रेस के बीच पोस्टर वॉर कोई नया नहीं है। यहाँ अक्सर एक-दूसरे की पार्टी के नेताओं के ख़िलाफ़ ऐसे पोस्टर्स लगाए जाते रहे हैं। मई 2015 में ‘राहुल गाँधी गायब‘ लिखे पोस्टर्स चस्पाए गए थे। इन पोस्टर्स में राहुल की फोटो के साथ लिखा गया था कि क्षेत्र के सांसद गायब हो गए हैं। एक अन्य वायरल पोस्टर में राहुल गाँधी को भगवान परशुराम के वंशज के रूप में दिखाया गया था।

ताज़ा चस्पा किए गए पोस्टर्स में लिखा है- “राहुल गाँधी मुर्दाबाद। अमेठी को ऐसा सांसद नहीं चाहिए जो पीएम का अपमान करे और आतंकवादी का सम्मान करे।” पोस्टर में लिखा गया है कि आतंकियों को ‘जी’ कह कर सम्बोधित करने वाला सांसद उन्हें नहीं चाहिए। मंगलवार (मार्च 12, 2019) को देर रात लगा यह पोस्टर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इस पर भाजयुमो कार्यकर्ता का नाम लिखा है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने गठबंधन कर कॉन्ग्रेस को किनारे कर दिया है। मायवती ने तो पार्टी के ख़िलाफ़ सख़्त रुख अपना कर साफ़ कर दिया है कि वह कॉन्ग्रेस से किसी प्रकार का मदद नहीं लेंगी। प्रियंका गाँधी को यूपी में जिम्मेदारी देकर अलग-थलग पड़ी पार्टी किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद कर रही है। पिछले आम चुनाव में राज्य में कॉन्ग्रेस का रिकॉर्ड ख़ासा ख़राब रहा था।

मायावती के क़रीबी पूर्व IAS अधिकारी के घर छापा, BSP से लोकसभा चुनाव लड़ाने की थी तैयारी

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के क़रीबी और रिटायर्ड IAS अधिकारी नेतराम के यहाँ आयकर विभाग ने छापेमारी की है। मीडिया में चल रही ख़बरों के अनुसार, वे आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। बसपा से उन्हें टिकट भी मिलने वाला था। मंगलवार (मार्च 12, 2019) को इनकम टैक्स विभाग ने दिल्ली से लखनऊ तक उनके दर्जन भर ठिकानों पर गहन छापेमारी की। छापेमारी उनके निजी आवास समेत अन्‍य ठिकानों पर की गई है। आयकर विभाग की टीमें एक साथ उनके दिल्ली और लखनऊ के ठिकानों पर पहुँचीं। लखनऊ में स्टेशन रोड स्थित उनके घर पर कई घंटों तक जाँच चली। आपको बता दें कि लखनऊ में कपड़ों के गाढ़ा भंडार नाम के शोरूम पूर्व आईएएस नेतराम के ही हैं।

नेतराम बसपा शासनकाल में राज्य के मुख्य सचिव थे। आयकर विभाग ने उनके बैंक खातों को भी जाँच के घेरे में ले लिया है। विपुलखंड स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नेतराम और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर जो भी खाते थे, उन्हें सीज कर दिया गया है। छापेमारी के दौरान स्टेशन रोड स्थित उनके घर से कई क़ीमती चीजें बरामद की गई हैं। उन पर टैक्स चोरी के मामले में कार्रवाई की जा सकती है। यूपी में मायावती की सरकार के दौरान आईएएस नेतराम सबसे ताक़तवर अधिकारियों में से एक थे। वह 2007 से 2012 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के प्रमुख सचिव भी रहे हैं।

मायावती के शासनकाल के दौरान उनका प्रभाव ऐसा था कि बड़े-बड़े नेताओं को भी उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। उनके आवास पर नेताओं की लम्बी लाइन लगी रहती थी। कैबिनेट मंत्रियों तक को उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। क़यास लगाए जा रहे हैं कि आयकर विभाग के अलावा अन्य केंद्रीय एजेंसियाँ भी उन पर शिकंका कस सकती है। 1979 बैच के अधिकारी नेतराम कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी काबिज़ रहे हैं।

उधर एक अन्य ख़बर के मुताबिक़, बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में बसपा के लोकसभा प्रभारी, नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में कॉन्ग्रेस के प्रति काफ़ी सख़्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि हम अपना रुख दोहराते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में हम किसी भी राज्य में कॉन्ग्रेस के साथ न तो गठबंधन करेंगे और न ही उनकी कोई भी मदद लेंगे। अगर वह हमसे मदद मांगते हैं तो फिर हम विचार कर सकते हैं। बैठक में बसपा अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी किसी भी राज्य में कॉन्ग्रेस के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी चुनावी समझौता अथवा तालमेल आदि करके यह चुनाव नहीं लड़ेगी।

एक और ‘रावण’ ने भंग की मर्यादा, ‘ब्राह्मणवादी’ पुलिस ने किया गिरफ्तार

रावणों और मर्यादा-भंग का पुराना सम्बन्ध है- और इसी सम्बन्ध को चरितार्थ करते हुए खुद को ‘रावण’ घोषित करने वाले भीम आर्मी संस्थापक वकील चंद्रशेखर ने चुनावी आचार संहिता भंग कर देवबंद में रैली निकाली, जिसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

श्री रावण जी अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ चुनावी आचार संहिता और प्रदेश की कानून व्यवस्था को धता बताते हुए पूरे ज़ोरों-शोरों से रैली निकाल रहे थे, पर देवबंद पुलिस द्वारा आचार संहिता और 144 के उल्लंघन में गिरफ्तार करते ही इस वज्रकाय योद्धा को अचानक तबियत ख़राब हो जाने के कारण अस्पताल ले जाना पड़ा

अपने महान सेनानायक के बंदी बनाए जाने की सूचना जब रावण जी की सेना (समर्थक-मण्डली) को प्राप्त हुई तो पीठ दिखाकर कायरों की तरह तितर-बितर ही जाने की अपेक्षा इन रणबाँकुरों ने सहारनपुर-मुजफ्फरनगर स्टेट हाइवे को जाम कर दिया, और राजकाज के प्रकाण्ड पण्डित माने जाने वाले (original) भीम और भारत की शासन-विधि के लेखक-समिति के अध्यक्ष भीमराव अम्बेडकर जी का सीना गर्व से 56 इंच(?) चौड़ा किया।

15 मार्च को कांशीराम जी करते रह जाएँगे इंतज़ार

ऐसा सुनाई पड़ रहा है कि कासमपुर में गिरफ्तार और देवबंद के किसी स्कूल में बंद महापण्डित रावण जी बसपा के संस्थापक और सुश्री मायावती के राजनीतिक गुरू कांशीराम जी (वही, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वह अयोध्या विवाद का हल विवादित स्थल पर शौचालय बनवाकर करना चाहते थे) की जयंती के सुअवसर पर 15 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर में एक रैली पहुँचाना चाहते थे जो कि 13 मार्च को मुजफ्फरनगर से कूच करती और 14 मार्च को गाज़ियाबाद को अपनी मनमोहनी उपस्थिति से उपकृत करती हुई 15 को जंतर-मंतर पहुँचती। पर दुष्ट जातिवादी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी के लोगों को यूपी राजपुरुषों (पुलिस) की वर्दी में भेजकर इस रैली पर अनिश्चितता के बादल उड़ेल दिए हैं।

अथ नव रावण जीवन वृत्तान्त  

उस प्रथम रावण की त्रासद जीवन कथा से तो हम सभी वाकिफ़ हैं जो श्रेष्ठ ब्राह्मण कुल में जन्म और लालन-पालन पाकर भी anti-दलित प्रताड़ना का शिकार हुआ, और जिसे जातिवादी, मनुवादी, दबंग ठाकुर राम सिंह ने अपनी जोरू चुराने के ‘छोटे से’ आरोप में बा-खानदान मौत के घाट उतार दिया। पर इन नए रावण की कहानी भी कम रोमांचक नहीं है।

अपने पुराने हमनाम की तरह श्री चंद्रशेखर रावण भी ज्योतिष और भविष्य-वाचन विद्या के प्रखर ज्ञानी हैं- मई 2017 से सितम्बर 2018 तक रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) में जेल में रहने के बाद जब यूपी की फ़ासीवादी मनुवादी सरकार ने उन्हें रिहा कर उनका अपमान करने का दुस्साहस किया तो इस महाज्ञानी ने यह भविष्यवाणी कर दी कि अगले 10 दिनों के भीतर भाजपा सरकार उन्हें दोबारा किसी-न-किसी बहाने दोबारा कृष्ण-जन्मभूमि (कारागृह) का उनका टिकट कटा देगी।

2017 में श्री रावण जी पर रासुका लगने का किस्सा भी फ़ासिस्ट-ब्राह्मणवादी गठजोड़ और उसके सिरमौर आदित्यनाथ के निरंकुश शासन का ही उदाहरण है। जब सहारनपुर जनपद के शब्बीरपुर ग्राम के दुष्ट ठाकुरों ने महान पैगम्बर-राजा अकबर द ग्रेट के खिलाफ़ लड़ाई करने वाले शॉविनिस्ट (chauvinist) राणा प्रताप का बर्थडे मनाने की हिमाकत की तो अपनी उस समय केवल लगभग 5 साल पुरानी नवजात भीम आर्मी के साथ वीर रावण जी यह दुष्कृत्य रोकने अपनी जान हथेली पर रखकर पहुँच गए। ज़ाहिर सी बात है कि दबंग ठाकुरों ने अत्याचार-पूर्वक इस जनांदोलन को दबाने का पूर्ण प्रयास किया पर अल्लाह की मेहरबानी से दुष्ट ठाकुरों को ही अपने एक सदस्य की जान से हाथ जोना पड़ा।

इसके बाद श्री रावण जी ने सहारनपुर के रामनगर में महापंचायत बुलानी चाही, जातिवादी पुलिस ने ज़ाहिर तौर पर अनुमति नहीं दी, पर क्रांति भला कब रुकती है? मजबूरन संचार विद्या के भी महारथी रावण जी ने (जो कि original रावण की ही भांति multi-talented भी हैं) सोशल मीडिया के कबूतरों के द्वारा अपना सन्देश वाइरल कर दिया। उनकी सेना सैकड़ों की संख्या में जुट गई और जातिवादी पुलिस को जम कर रगेदा, जिसके बाद दुष्ट आदित्यनाथ ने उन्हें अन्दर कर दिया।

यह रावण जी की organizational skills नहीं तो और क्या हैं कि जिस भीम आर्मी का गठन दलित समाज की सेवा और गरीब कन्याओं के विवाह के लिए धन जुटाने जैसे बेकार के कार्यों के लिया किया गया था, उसे आज उन्होंने सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर समेत पश्चिमी यूपी का खासा ताकतवर राजनीतिक संगठन बना दिया है। यह उनके राजनीतिक प्रताप का ही सबूत है कि देश भर में दलित राजनीति का ‘आइकन’ मानी जाने वालीं सुश्री मायावती जी से वह प्रेरणा या आशीर्वाद नहीं लेते, बल्कि उन्हें अपना समर्थन देकर कृतार्थ करते हैं।

मसूद अज़हर जी, जीजा जी, आपको लगता है मैं इस जन्म में सेंसिबल बात कर पाऊँगा?

‘होली कब है, कब है होली’ के साथ ही ‘चुनाव कब है, कब है चुनाव?’ जैसे सवालों से भी अब पर्दा गिर चुका है। चुनाव की तारीखें मार्केट में ‘वायरल’ हो चुकी हैं। लेकिन चुनाव की तारीखों से पर्दा तो हट चुका है लेकिन राहुल बाबा की अक्ल पर गिरा पर्दा है कि उठता ही नहीं!

प्रियंका गाँधी के भाई और रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी मानो प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए इतने उतावले हुए जा रहे हैं कि आतंकवादी मसूद अजहर को ‘जी’ कहकर बुलाने लगे हैं। आतंकवादियों को सम्मान देकर उन्होंने जो मिसाल क़ायम कर दी है, राजनीति में अब इस तहजीब और शिष्टाचार में उनका कोई दूर-दूर तक सदियों तक कोई मुकाबला नहीं कर पाएगा। वैसे तो घोटालेबाजों और आतंकवादियों को सम्पूर्ण सम्मान देना कॉन्ग्रेस पार्टी हमेशा से ही अपना पहला कर्तव्य समझती आई है, लेकिन आजकल बिना जुबान लड़खड़ाए ही आतंकवादियों को पूरा सम्मान देने का सबसे सही अवसर कॉन्ग्रेस भाँप चुकी है।

जीजा जी से शुरू हुई 2019 लोकसभा चुनावों की तैयारी कब आतंकवादी मसूद अजहर जी पर आ गई, राहुल गाँधी को पता भी नहीं चला। हर तरफ से हार हासिल होने पर उनका ‘जी जनाब’ होना स्वाभाविक है। बहुत प्रयासों के बाद भी राफेल घोटाला साबित न हो सका, जनेऊधारी हिंदुत्व काम न आया, गो-भक्ति का अब समय नहीं रहा। मने, राहुल गाँधी की हालत उस बोर्ड परीक्षा के विद्यार्थी की तरह हुई पड़ी है, जिसे कल सुबह पेपर देने जाना है और वो आज शाम नोट्स बनाने बैठा है। उसे अभी सिलेबस भी खरीदना है, ‘मोस्ट इम्पोर्टेन्ट’ और वेरी-वेरी इम्पोर्टेन्ट सवाल लाल-नीले और तमाम रंगीन पेनों से रंग कर परीक्षा के मैदान में कूदना है। लेकिन अब पर्याप्त समय न देखकर वो विद्यार्थी अब सिर्फ व्हाट्सएप्प पर अपने साथ वालों से पूछ रहा, “तेरा कितना सिलेबस हुआ भाई? अपनी तो बैक पक्की है।”

अभी समय बिताने के लिए राहुल गाँधी तमाम वो हरकत करेंगे, जो उनका इस कठिन समय में ध्यान बाँट सकें ताकि वो एग्जाम हॉल में बिना ‘स्ट्रेस’ के जा सकें। इसलिए राष्ट्रवादी जन राहुल गाँधी से गुस्सा ना ही व्यक्त करें। मसूद अजहर को सम्मानसूचक ‘जी’ देना उनका इम्तेहान से पहले ‘स्ट्रेस रिलीज़’ करने का जरिया मात्र है। राहुल गाँधी साबित कर चुके हैं कि उनकी अक्ल पर पड़ा हुआ पर्दा अब उनके ‘जी’ तक तो कम से कम उतर ही चुका है। साथ ही बताना चाहूँगा कि यहाँ पर ‘जी’ से तात्पर्य राहुल गाँधी के ‘जिगर’ से है।

राहुल बाबा का नया गम ये है कि कॉन्ग्रेस की आगामी चुनावों में सबसे बड़ी उम्मीद-बैंक, बहुजन समाजवादी पार्टी भी अब मीडिया में जा-जाकर बताने लगी है कि हम कॉन्ग्रेस से गठबंधन नहीं कर रहे। यानी, विद्यार्थी के अरमानों पर एक और कुठाराघात! कॉन्ग्रेस के लिए ऐन समय पर BSP के हाथी का पीछे हट जाना ऐसा है, जैसे पेपर हाथ में आते ही उस सवाल का नदारद होना जिसे विद्यार्थी ने सबसे ज्यादा इसलिए रटा था क्योंकि वो सवाल हर साल जरूर आता था और इसी वजह से ‘VVImpt’ (वेरी-वेरी इम्पोर्टेन्ट) होने के कारण उसकी ‘TRP हाई’ हुआ करती थी।

खैर, अब परीक्षार्थी राहुल गाँधी आंसर सीट खाली रह जाने के भय से उस मोड (Mode) में आ चुका है, जिसमें वो जय बजरंगबली बोलकर जो कुछ भी उसने रटा हुआ है, उसकी उल्टी करने के लिए कमर कस चुका है। इसलिए चुनाव से पहले इस तरह के ‘जी-अजीर’ अभी ना जाने और कितने देखने को मिलेंगे।

सत्ता से गए 5 साल हो गए हैं लेकिन राहुल गाँधी अभी तक ‘जी’ को नही भूल पाए हैं और उसका असर अब तक दिखाई देता है। आज ही राहुल गाँधी को नया स्वप्न भी आया है, जिसमें वो NSA अजीत डोभाल को मसूद अजहर के साथ कंधार जाते हुए देख रहे हैं। तो मित्रों, ये अल्पवयस्क युवाओं की नींद की वह अवस्था होती है, जिसमें इंसान हक़ीक़त और स्वप्न में अंतर महसूस न कर पाने के चलते बिस्तर पर ही ‘सू-सू’ कर बैठता है। लेकिन गाँधी परिवार से होने के नाते राहुल गाँधी की सू-सू अलग है। यह राजनीतिक सू-सू है जो आम आदमी से बिलकुल अलग है। राहुल गाँधी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि आखिर क्या हक़ीक़त है और क्या स्वप्न। राहुल गाँधी अभी यह फैसला करेंगे कि जिस भाजपा सरकार पर वो आतंकवादी को रिहा करने का आरोप लगा रहे हैं उसकी सर्वदलीय बैठक में उनकी पारिवारिक पार्टी भी शामिल थी।

परमादरणीय मसूद अजहर ‘जी’ के नाम भुनाने की जल्दबाजी में राहुल गाँधी यह तक भूल गए हैं कि उस आतंकवादी को पकड़ने कॉन्ग्रेस पार्टी सदस्य नहीं गए थे। लेकिन फिर भी यदि कॉन्ग्रेस मानती है कि उसी ने मसूद अजहर को पकड़ा था, तो फिर नरेंद्र मोदी को भी पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय देने में रॉबर्ट वाड्रा के साले साहब की पार्टी को ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए।  

कॉन्ग्रेस की की ‘जी’ सीरीज अभी लम्बी चलनी है। जो ‘जी’ की परंपरा कॉन्ग्रेस ने विकसित की है, अध्यक्ष जी उसको पार्टी के लिए पेटेंट करते हुऐ कल मसूद अजहर ‘जी’ पर तो लॉक कर ही चुके हैं। नेताओं से लेकर मीडिया गिरोह तक द्वारा भाजपा को आम चुनावों में विजयी होने से रोकने के लिए आजमाए गए एक-एक कर सारे प्रोपेगेंडा ‘लगभग’ ध्वस्त हुए जा रहे हैं। आज इंदिरा गाँधी वर्जन-2 ने भी भाषण देकर साबित कर दिया है कि उनकी सिर्फ नाक और साड़ी ही इंदिरा गाँधी से मिलती है। जानकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी का भाषण नेहा कक्कड़ की आवाज से भी ज्यादा फ़्लैट था।

अब इस परीक्षा की घड़ी में कॉन्ग्रेस को अपने आखिरी हथियार और ‘इक्के’ को मैदान में उतारने पर विचार करना चाहिए। उनकी जनता के बीच छवि ऐसी है कि राजनीति और कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच उनका ‘विशेष फैन क्लब’ देखा जाता रहा है। खासकर जबसे उनकी पत्नी ने उनके साथ हर समय खड़े रहने का सिनेमाई दावा किया है। उस हस्ती का नाम है रॉबर्ट वाड्रा! जनता के बीच देखे जा रहे उत्साह को देखते हुए, रॉबर्ट वाड्रा अगर अभी भी कॉन्ग्रेस की तरफ से चुनावों में कूद पड़ें तो कॉन्ग्रेस के रुझान बदलने तय हैं क्योंकि जिस भी मैदान में रॉबर्ट वाड्रा कूदते हैं, वो कब उनके नाम हो जाता है खुद रॉबर्ट वाड्रा भी नहीं जानते हैं। इसलिए Don’t underestimate the power of a Property Dealer Man जी।

फजरुद्दीन, सलीम, अली ने मिलकर दलित संजय को मार डाला था, 6 महीने से न्याय की आस

हेट क्राइम का एक और पीड़ित परिवार पिछले 6 महीने से न्याय का इंतजार कर रहा है। पता नहीं कब उसे न्याय मिलेगा। मामला हरियाणा के फरीदाबाद जिले में अगस्त में अपनी पत्नी के परिवार के हाथों 22 वर्षीय संजय कुमार की निर्मम हत्या का है।

एक दलित हिंदू, संजय ने एक मुस्लिम महिला से शादी करने और अपने परिवार का धर्म परिवर्तित करने की माँग को स्वीकार न करने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। मुस्लिम युवती के परिवार वालों ने युवक की वीभत्स तरीके से हत्या कर दी।

संजय की मौत के बाद, उसकी माँ मंजू, मानसिक रूप से विकलांग नाबालिग भाई और पाँच साल पहले शादी के बंधन में बँध चुकी एक बहन सहित पूरा परिवार न केवल वित्तीय संकट से जूझ रहा है, बल्कि अपने प्रियजन के लिए न्याय की लड़ाई में भी खुद को अशक्त पा रहा है।

बता दें कि संजय 16 अगस्त 2018 की शाम को लापता हो गया था, एफआईआर 19 अगस्त को दर्ज की गई थी और उसका क्षत-विक्षत शरीर 21 अगस्त को पास के पहाड़ी जंगल में पाया गया था।

इस घटना से लगभग एक साल पहले, संजय ने रुखसार के साथ राजस्थान में अपने दादा के गाँव जाकर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर ली थी। दोनों आठ महीने बाद फरीदाबाद लौट आए, जब रुखसार, जो अब खुद को रुक्मिणी कहती थी, गर्भवती हो गई। लड़के की माँ मंजू के अनुसार, रुखसार के परिवार ने उसे उसके पाँच महीने के भ्रूण का गर्भपात कराने और उसके माता-पिता के घर लौटने के लिए मजबूर किया। फिर भी, दोनों ने लगातार संपर्क बनाए रखा था।

मंजू के अनुसार, रुखसार के पिता फजरुद्दीन खान और भाई सलीम खान ने 15 अगस्त को संजय को फोन किया था, जब वह राजस्थान में था, और उसे कॉलोनी लौटने के लिए मना लिया, ताकि दोनों पक्ष प्रेमी युगल के विवाह का मामला सुलझा सकें। अगले दिन, सलीम और फजरुद्दीन संजय के घर मोटरसाइकिल पर आए और उसे ले गए।

वे संजय को जंगल में ले गए, दो पुरुषों की मदद से इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया और उसके शरीर को सड़ने के लिए छोड़ दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जब संजय का मृत शरीर सड़ी हालत में हासिल हुआ तो उससे क्रूरता की हदों का पता चला। उसका मलाशय गायब था, उसके गुदा में कोई वस्तु डालकर उसे जबरन बाहर निकाला गया था। उनके लिंग को काट दिया गया था। उसके फेफड़े गायब थे, उसका शरीर खुला हुआ था। यहाँ तक कि आँखे भी निकाल ली गई थी। उसके कई दांत गायब थे। उसे बाँध कर घसीटा गया था। कुछ स्थानों पर त्वचा को बुरी तरह से छील दिया गया था, जिसमें एक पैच भी शामिल था जहाँ ‘ओम’ का एक टैटू मौजूद था।

मंजू के भाई प्रह्लाद ने कहा कि उसने अपनी बहन से उन तथ्यों को छिपाया। कई वर्षों से विधवा रहीं मंजू ने 10 साल पहले अपने बड़े बेटे को भी खो दिया था, जिनकी बिजली के झटके से मौत हो गई थी। और अब इस हादसे ने पूरी तरह से मंजू को तोड़ दिया।

स्वराज मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपपत्र में रुखसार का उल्लेख नहीं है। उसका बयान महत्वपूर्ण है, लेकिन दर्ज नहीं किया गया है। परिवार इसके लिए प्रशासन से कई बार गुहार लगा चुका है।

चार्जशीट में चार अभियुक्तों का नाम है- फजरुद्दीन, सलीम, सलीम के चाचा अली मोहम्मद और सलीम के पड़ोसी सुमित ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया है।

आज 6 महीने बीतने के बाद भी परिवार न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा है। चूँकि, इस मामले में मृत हिन्दू है तो तथाकथित हल्ला बोल मीडिया ने भी इसे कोई खास कवरेज नहीं दिया। और न ही इस मामले में कोई अवार्ड वापसी गैंग सामने आया।

पोखरण में हुआ पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली का सफल परीक्षण, अचूक मारक क्षमता से लैस

मोदी सरकार के नेतृत्व में सेनाओं के उन्नतिकरण पर लगातार काम हो रहा है। देश की सुरक्षा के लिए चाहे विदेशों से अत्याधुनिक हथियारों की खरीद हो या अपने ही देश में निर्माण, दोनों ही क्षेत्रों में तत्परता से काम हो रहा है।

इसी कड़ी में एक और छलाँग लगाते हुए, डीआरडीओ ने सोमवार (मार्च 11, 2019) को पोखरण फायरिंग रेंज में देश में ही विकसित उन्नत पिनाका मिसाइल का सफल परीक्षण किया। टेस्ट में रॉकेट प्रणाली ने बेहद सूक्ष्म और सटीक निशाना लगाया।

देश में ही विकसित पिनाका मिसाइल का यह तीसरा वर्जन है। जहाँ एक तरफ पहले दो वर्जन की मारक क्षमता 40 व 75 किलोमीटर थी। वहीं इस उन्नत वर्जन की मारक क्षमता बढ़ाकर 120 किलोमीटर की गई है। परीक्षण में 90 किलोमीटर दूर के लक्ष्य का सफल संधान किया गया। DRDO के अनुसार, इस मिसाइल में एडवांस नेवीगेशन व कंट्रोल सिस्टम लगाया गया है। इनकी सहायता से अब यह अपने लक्ष्य को पहचान कर एकदम सटीक प्रहार करने में सक्षम हो गई है। इससे भारतीय सेना की मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी।

डीआरडीओ की तरफ से बताया गया कि आज के परीक्षण में पिनाका मिसाइल ने अपने लक्ष्य पर पहले से निर्धारित मानक के अनुरूप ज़बरदस्त प्रहार कर ध्वस्त कर दिया। टेलीमीटरी सिस्टम के माध्यम से पिनाका मिसाइल दागने के बाद से पूरी नजर रखी गई। यह परीक्षण सभी मानकों पर पूरी तरह सफल रहा।

बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान पहाड़ों पर कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों पर पिनाका ने जबरदस्त प्रहार किया था। पिनाका को एक ट्रक पर बने लॉन्चर से दागा जाता है। 44 सेकंड में बारह राकेट दागे जा सकते है। प्रत्येक राकेट 250 किलोग्राम तक के बम अपने साथ ले जाने सक्षम है। अपने लक्ष्य पर यह अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हमला कर सकता है।

‘भाजपा को हराने के लिए SP-BSP गठबंधन परफेक्ट’, हाथी ने दिखाया हाथ को ठेंगा

बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी राज्य में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी। मायावती ने इस तरह से कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन की सभी संभावनाओं को समाप्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के लिए SP और BSP का गठबंधन है। SP यूपी की 37 सीटों और BSP 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

हालाँकि, SP अध्यक्ष और मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव कहते आए हैं कि इस गठबंधन में कॉन्ग्रेस भी शामिल है और उसे 2 सीटें दी गई हैं।

इस बीच मायावती के इस बयान से जाहिर होता है कि BSP आगामी लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहती है। BSP और SP के बीच मध्य प्रदेश में भी चुनावी समझौता हुआ है। कॉन्ग्रेस और BSP के बीच राजनीतिक दूरी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान भी देखने को मिली थी। मध्य प्रदेश में गठबंधन न होने के लिए मायावती ने कॉन्ग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था।

माना जा रहा है कि मायावती के चलते ही SP-BSP गठबंधन में कॉन्ग्रेस को जगह नहीं मिल पाई है। कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन न करने के पीछे मायावती का अपना तर्क भी रहा है। मायावती का कहना है कि चुनावों में उनकी पार्टी का वोट बैंक कॉन्ग्रेस और अन्य दलों को आसानी से ‘ट्रांसफर’ हो जाता है लेकिन उनका वोट BSP को नहीं मिल पाता। उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम कभी कॉन्ग्रेस पार्टी के वोट बैंक रहे हैं। इसीलिए मायावती को इस बात की आशंका रहती है कि कॉन्ग्रेस पार्टी BSP के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।

मायावती ने कहा, “BSP से चुनावी गठबंधन के लिए कई दल काफी आतुर हैं, लेकिन थोड़े से चुनावी लाभ के लिए हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है जो पार्टी मूवमेन्ट के हित में बेहतर नहीं है.”