Thursday, October 3, 2024
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लंदन में ₹72 करोड़ के फ्लैट में रह रहा है नीरव मोदी, शुरू किया हीरों का नया व्यवसाय: The Telegraph (UK) का दावा

पंजाब नेशनल बैंक से करोड़ों रुपए का लोन लेकर चुकता न करने का भगोड़ा आरोपित नीरव मोदी आजकल लंदन में ₹72 करोड़ से अधिक के फ्लैट में रह रहा है। यह खुलासा किया है यूके के अख़बार टेलीग्राफ ने। टेलीग्राफ की खबर के अनुसार नीरव मोदी अपने पुराने ठिकाने से कुछ ही दूरी पर हीरों का नया व्यवसाय कर रहा है।

द टेलीग्राफ ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें एक जर्नलिस्ट नीरव मोदी से प्रश्न कर रहा है लेकिन नीरव हर सवाल का जवाब “No Comment” में ही दे रहा है। वीडियो में नीरव ने जो जैकेट पहनी है वह ऑस्ट्रिच पक्षी की खाल से बनी है जिसकी अनुमानित कीमत नौ लाख रुपए से अधिक बताई जा रही है।

टेलीग्राफ के मुताबिक नीरव मोदी लंदन सेंटर पॉइंट टावर ब्लॉक के पास में तीन बैडरूम के आलिशान फ्लैट में रह रहा है। वह प्रतिदिन बिना किसी डर के अपने कुत्ते को लेकर घर से ऑफिस जाता है। टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार नीरव को यूके में नेशनल इंश्योरेंस नंबर भी मिल चुका है और वह इंग्लैंड में अपने बैंक खाते भी चला रहा है।  

ED ने फिर कसा रॉबर्ट पर शिकंजा, 7 घंटे तक लगातार होती रही पूछताछ

कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा इन दिनों मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बहुत बुरी तरह से फंसे हुए हैं। शुक्रवार (मार्च 8, 2019) को भी उन्हें इस मामले के चलते प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पूछताछ के लिए पेश होना पड़ा। इस पूछताछ में वाड्रा से लंदन में अवैध ढंग से खरीदी गई सम्पत्ति को लेकर करीब 7 घंटे तक सवाल किए गए।

ईडी ने वाड्रा से यह पूछताछ केंद्र दिल्ली स्थित जामनगर हाउस में की। इस मामले को लेकर पूरे दिन ईडी ने रॉबर्ट पर सवाल दागे। अवैध ढंग से खरीदी गई संपत्तियों के कारण ईडी के चंगुल में फंसे रॉबर्ट का कहना है कि चुनाव नज़दीक होने के कारण उनपर अधिक दबाव बनाया जा रहा है। शायद वो भूल रहे हैं कि यह मामले पिछले पाँच साल से उनपर चल रहे हैं।

बता दें कि कुछ समय पहले रॉबर्ट ने ईडी से बचने के लिए युक्ति निकाली थी। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए मांग की कि उन्हें उन पर चल रहे केसों की हार्ड कॉपी सौंपी जाए। इस याचिका के साथ उन्होंने कहा था कि जब तक यह दस्तावेज उन्हें नहीं मिलते तब तक उनसे किसी प्रकार की पूछताछ न हो।

लेकिन, इस पर कोर्ट से उन्हें निराशा हाथ लगी। अदालत ने ईडी को दस्तावेज देने का आदेश देते हुए कहा था कि ईडी जब भी रॉबर्ट को पूछताछ के लिए बुलाएगी, उन्हें पेश होना ही पड़ेगा। कोर्ट की बात पर रॉबर्ट ने कहा था कि वह हर जाँच में सहयोग करने के लिए तैयार हैं। उनके पास छिपाने को भी कुछ नहीं हैं।

मुआवज़ा देने के लिए खुद ‘आपदा’ बने राहुल गाँधी: लहलहाते खेत कटवाकर की रैली

आमतौर पर किसी प्राकृतिक आपदा के कारण खेतों में फसलों को हुए नुकसान पर सरकार मुआवज़ा देती है। लेकिन राहुल गाँधी ने गुरुवार (7 मार्च 2019) को रैली करने के लिए जगह खाली करवाने के लिए पहले खेतों में खड़ी फसल को कटवाया फिर किसानों को उसका मुआवज़ा दिया उसके बाद रैली की।

चुनाव का मौसम आ चुका है। हालाँकि अभी तक चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, मगर राजनीतिक पार्टियाँ चुनावी रैलियों में जुट गई हैं। गुरुवार को पंजाब सरकार की तरफ से पंजाब के मोगा में रैली शो का आयोजन किया गया था, जिसमें कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भाषण दिया था।

यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि इस रैली के लिए मैदान तैयार करने के लिए किसानों की तकरीबन 100 एकड़ गेहूँ की खड़ी तैयार फसल को काटकर नष्ट कर दिया गया। हैरानी और ताज़्जुब की बात तो ये भी है कि हमेशा किसान कर्ज माफी और किसानों को लेकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपनी रैली के लिए उन्हीं किसानों की फसलें कटवा दीं और राज्य सरकार से मुआवज़ा भी दिलवाया।

साधारण सी बात है कि कॉन्ग्रेस पार्टी की तरफ से इस रैली का आयोजन किसी और स्थान पर किया जा सकता था। इसके लिए किसानों की खड़ी फसल को काटकर वहाँ पर मैदान तैयार करके रैली करने का क्या मतलब बनता है? प्रशासन का कहना है कि उसने इसके लिए किसानों को 40,000 प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा भी दे दिया है। पर मुआवजा तो किसी प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए होता है। लेकिन राहुल गाँधी खुद ही आपदा और आपदा प्रबंधक दोनों बन बैठे। चूँकि पंजाब में कॉन्ग्रेस की सरकार है, इसका यह मतलब कतई नहीं है कि पार्टी की रैली के लिए सरकारी फंड का इस तरह से दुरुपयोग किया जाए। सरकारी फंड का इस्तेमाल तो विशेष परिस्थितियों के लिए किया जाता है। वैसे कॉन्ग्रेस ने ऐसा करके ये तो दिखा ही दिया कि वह किसानों के कितने बड़े शुभचिंतक हैं।

इस मामले पर विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। बता दें कि शिरोमणि अकाली दल ने कॉन्ग्रेस की रैली में सरकारी फंड के दुरुपयोग की जांच करवाने की माँग की है। पार्टी प्रवक्ता डॉ दलजीत चीमा ने मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि सरकारी खजाने को इस तरह लूटने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। पत्र की कॉपी केंद्रीय और पंजाब चुनाव आयोग को भी भेजी गई है। इसमें माँग की गई है कि कर्ज माफी समागम की आड़ में राहुल की रैली करवाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि खर्च की गई रकम सरकारी खजाने में जमा करवाई जाए।

इधर पंजाबी एकता पार्टी प्रधान सुखपाल खैरा ने भी सवाल खड़े किए हैं और साथ ही आम आदमी पार्टी ने भी सरकारी खजाने का बेहिसाब दुरुपयोग करने पर राहुल गाँधी की निंदा की है। तो अब ऐसे में अब आगे देखना ये होगा कि पंजाब सरकार और राहुल गाँधी किस तरह से अपने आपको सही साबित करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ये बात तो तय है कि वो इसे गलत कभी नहींं मानेंगे।

बड़गाम में सेना के जवान के अपहरण की खबर बेबुनियाद: रक्षा मंत्रालय

जम्मू कश्मीर के बड़गाम जिले से सेना के एक जवान के लापता होने की अफवाह की सच्चाई सामने आ गई है। शुक्रवार की शाम से सेना के एक जवान को लेकर आशंका जताई जा रही थी कि किसी आतंकवादी संगठन ने उनका अपहरण किया होगा मगर यह बात पूरी तरह से गलत निकली।

इसकी पुष्टि खुद रक्षा मंत्रालय की तरफ से की गई है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बारे में ट्ववीट करते हुए कहा है कि बडगाम के चाडूपोरा इलाके के काजीपोरा से छुट्टी पर गए सेना के जवान के अगवा होने की मीडिया रिपोर्ट गलत है और जवान पूरी तरह से सुरक्षित है। इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय ने ऐसी अटकलबाजियों से दूर रहने को भी कहा है।

बता दें कि जम्मू कश्मीर के बड़गाम जिले में शुक्रवार शाम सेना के एक जवान का उनके घर से अपहरण करने की खबरें आ रही थी। बताया जा रहा था कि जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री यूनिट के जवान मोहम्मद यासीन को उनके घर से अगवा कर लिया गया जो कि काज़ीपोरा चाडोरा के रहने वाले हैं और 26 फरवरी से 31 मार्च तक की छुट्टियाँ बिताने के लिए घर आए हुए थे। 8 मार्च की शाम से ही इनके लापता होने की बात कही जा रही थी। इस घटना को आतंकियों द्वारा अंजाम देने की आशंका जताई जा रही थी। मगर अब ये साफ हो गया है कि उनका अपहरण नहीं हुआ है और ये महज़ एक अफवाह थी।

AAP विधायक पर छापा, IT अधिकारियों ने ₹2 करोड़ कैश के साथ पकड़ा

आयकर विभाग ने शुक्रवार (मार्च 08, 2019) को आम आदमी पार्टी के उत्तम नगर से विधायक नरेश बाल्यान के घर पर छापेमारी की है। बताया जा रहा है कि, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की टीम ने ₹2 करोड़ कैश बरामद किए हैं। इनकम टैक्स की टीम फिलहाल नरेश बाल्यान से पूछताछ कर रही है।

दरअसल, आईटी टीम उनके ठिकाने पर छापा मारने पहुँची ही थी, तभी AAP विधायक बाल्यान वहाँ ₹2 करोड़ के साथ अधिकारियों से टकरा गए थे। टीम ने इसके बाद उन्हें पकड़ लिया था। आयकर विभाग ने नरेश बाल्यान को द्वारका सेक्टर 12 पॉकेट 6 के फ्लैट नंबर 86 से पकड़ा है। बताया जा रहा है कि यह फ्लैट किसी प्रॉपर्टी डीलर का ऑफिस है। आयकर विभाग की दो टीमों ने ये छापेमारी की थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह दफ्तर प्रदीप सोलंकी नाम के प्रॉपर्टी डीलर का बताया जा रहा है। प्रदीप सोलंकी की पहले मौत हो चुकी है। आयकर विभाग ने विधायक बाल्यान के साथ उनके एक रिश्तेदार को भी पकड़ा है। इनकम टैक्स विभाग के 8 अधिकारियों की टीम विधायक और सोलंकी के रिश्तेदार से पूछताछ कर रही है।

‘रुपया जिससे भी मिलता है ले लो’ जैसे कालजयी वाक्य कहने वाले आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि उनके पास हरियाणा में चुनाव लड़ने के लिए रूपए नहीं हैं। जबकि उनके विधायक करोड़ों रुपए लेकर खुलेआम घूम रहे हैं।

आप विधायक बाल्यान इससे पहले विवादों में तब घिरे थे, जब उन्होंने दावा किया था कि दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव अंशु प्रकाश जैसे अधिकारियों को विकास कार्य में बाधा डालने के लिए पीटा जाना चाहिए।

सिर्फ MSME सेक्टर से 4 सालों में 6 करोड़ लोगों को मिली नौकरी: CII

पिछले 4 साल के दौरान एमएसएमई (MSME: Ministry of Micro, Small & Medium Enterprises) सेक्टर में रोजगार के ज्यादा मौके पैदा हुए हैं। सीआईआई (CII: Confederation of Indian Industry) द्वारा जारी किए गए सर्वे के अनुसार मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान पिछले 4 साल में MSME में 13.9% की बढ़ोत्तरी से रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। जब हम इस प्रतिशत को संख्या में बदलते हैं तो हमें प्रति वर्ष लगभग 1.49 करोड़ नौकरियों का सृजन होता दिखता है। चार सालों में यही संख्या लगभग 6 करोड़ होती है।

उद्योग संगठन CII के अनुसार, अगले 3 साल के दौरान नौकरियों के मौकों में बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है। MSME पर ब्याज में 2% छूट और ट्रेड रिसविवेबल्स ई-डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS) की वजह से इसमें ग्रोथ आएगी, जिस कारण नौकरियों के मौके बनेंगे।

सर्वे में प्रति वर्ष 3.3% (मिश्रित विकास दर) की वृद्धि हुई है। CII के अध्यक्ष श्री राकेश भारती मित्तल ने कहा कि जब लेबर ब्यूरो से लिए गए Macro level के डेटा को मैप किया गया, तो इसमें 1.35 से 1.49 करोड़ प्रति वर्ष का अतिरिक्त रोजगार सृजन पाया गया है। ब्यूरो के आँकड़ों का उपयोग करके वर्ष 2017-18 में लेबर फ़ोर्स की कुल संख्या लगभग 45 करोड़ आँकी गई है। औद्योगिक संगठन CII के सर्वे में यह पता चला है कि MSME, यानी छोटे और मझोले उद्योगों में पिछले 4 सालों में हर साल 1.49 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है।

उद्योग संगठन CII का यह सर्वे अन्य सभी आँकड़ों को झूठा साबित करता है, जिनमें यह दावा किया गया है कि नोटबंदी और GST के लागू होने की वजह से बड़े पैमाने पर नौकरियाँ खत्म हो गई। साथ ही, कई और सर्वेक्षणों के मुताबिक अलग-अलग सेक्टरों में भारी संख्या में नौकरी सृजन की बात कही गई है।

CII के सर्वे की जरुरी बातें

CII के इस सर्वे में 1,05,347 MSME ने भाग लिया। सर्वे बताता है कि पिछले 4 सालों के दौरान छोटे उद्योग धंधों ने सबसे ज्यादा रोजगार के मौके पैदा किए और इस दौरान किए गए आवश्यक सुधारों के कारण अगले 3 सालों में भी ऐसा ही होने की उम्मीद है।

सर्विस और कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में मिली हैं सबसे ज्यादा नौकरियाँ

पिछले 4 सालों में सबसे ज्यादा नौकरियाँ सर्विस सेक्टर में मिली हैं। इसमें खासकर पर्यटन के क्षेत्र और इसके बाद कपड़ा उद्योग और मेटल प्रॉडक्ट्स के क्षेत्र में नौकरियों के मौके बने हैं। इनके अलावा भारी मशीनरी, लॉजिस्टिक्स और परिवहन के क्षेत्र में खासा रोजगार बढ़े हैं।

महाराष्ट्र और गुजरात सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले राज्य

सर्वे के अनुसार विगत 4 वर्षों में महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना क्रमशः सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले राज्य हैं। निर्यात के मामले में महाराष्ट्र, तमिलनाडू और तेलंगाना क्रमशः सबसे आगे रहे हैं। अगले 3 वर्षों में कर्नाटक पहले 3 रोजगार प्रदाता राज्यों में शामिल हो सकता है।

सर्वे में बताया गया है कि असंगठित और अनिश्चित समूहों में रिसर्च करने वालों के कारण लोगों में अफवाह है कि रोजगार सृजन नहीं हुआ है। जबकि, CII ने अपने सर्वे में बड़े और व्यापक प्रक्रियाओं को अपनाया है। CMIE और अन्य रिपोर्ट्स के तरीके अलग हैं और जिन आँकड़ों पर वो बात करते हैं, वो MSME के व्यापक क्षेत्र को नहीं जोड़ता है जबकि यह क्षेत्र सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करता है।

सर्वे में कहा गया है कि टेक्नोलॉजी के साथ वर्क फोर्स को तैयार करना आगामी समय में चुनौती हो सकती है जिसके लिए तैयार रहना होगा।

AMU ने जमात-ए-इस्लामी को कहा सामाजिक संगठन, बैन को बताया हिंदुत्व की राजनीति

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अधिकतर समय सिर्फ बेकार की बातों की वजह से ही चर्चा में रहती है। पिछले कुछ दिनों में देशविरोधी बातों को लेकर इस यूनिवर्सिटी की खूब निंदा हुई थी। कभी जिन्ना प्रेम, कभी पाकिस्तान प्रेम, तो कभी आतंकी प्रेम से ओतप्रोत यहाँ के कुछ विद्यार्थी हमेशा गलत कार्यों की वजह से ख़बरों में आ जाते हैं।

इसी कड़ी में, परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, यहाँ के छात्र संघ के प्रेसिडेंट सलमान इम्तियाज़ ने हाल ही में प्रतिबंधित कश्मीरी संगठन, जमात-ए-इस्लामी को ‘सामाजिक मज़हबी राजनैतिक संगठन’ कहा है।

हाल ही में सरकार ने पुलवामा आतंकी हमले के बाद इस संगठन द्वारा आतंकी संगठन हिज़्बुल मुजाहिदीन को वित्तीय सहायता देने के लिए प्रतिबंधित करने के बाद इससे जुड़े लोगों और ठिकानों पर छापे मारे थे। कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया था।

सलमान इम्तियाज़ ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “जमात न तो भूमिगत संस्था है, न ही आतंकी संगठन। यह राज्य में चुनावी प्रक्रिया में भी शामिल रहा है। 1989 में जब चुनावों में धाँधली हुई थी, तब के बाद से यह संगठन चुनावों का नकारने लगा था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से हम सारे छात्र इस प्रतिबंध का संज्ञान लेते हैं, और वर्तमान सरकार को जमात पर लगाए गए आरोपों को साफ तरीके से बताने कहते हैं।”

बयान में सलमान और छात्र संघ इतने पर ही नहीं रुका बल्कि इस घटना को भाजपा की ‘हार्डकोर हिन्दुत्व की राजनीति’ से प्रेरित बताया, “जैसे-जैसे भाजपा के शासन के अंतिम दिन आ रहे हैं, और चुनाव सर पर हैं, जमात पर प्रतिबंध लगाना यह दिखाता है कि इसका कारण कोई ग़ैरक़ानूनी कार्य नहीं बल्कि भाजपा की घोर हिन्दुत्व वाली नीति है। कश्मीर के मज़हबी नेतृत्व, आम समाज और व्यापारियों ने भी इस प्रतिबंध की निंदा करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया है।”

इस तरह के स्टेटमेंट पर प्रतिक्रिया देते हुए अलीगढ़ से भाजपा के सांसद सतीश गौतम ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्र संघ ने जमात से प्रतिबंध हटाने की बात कही है। हमारे जवान सीमा पर बलिदान हो रहे हैं, और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्र संघ इस संगठन पर लगे प्रतिबंध का विरोध कर रहा है।” सांसद सतीश गौतम ने पहले भी इस यूनिवर्सिटी को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का केन्द्र कहा था। 

सतीश गौतम ने आगे कहा, “यूनिवर्सिटी के छात्रों की मानसिकता हर दिन सामने आ रही है। ये लोग ‘भारत माता’ के खिलाफ खड़े होते हैं, और देशविरोधी नारेबाज़ी करते रहते हैं। मैं विश्वविद्यालय के उपकुलपति से मिलकर ऐसे छात्रों पर कार्रवाई की बात करूँगा।” 

कॉन्ग्रेसी ट्रॉल महोदय, थूक बचाकर रखें! मई में फिर काम आएगा: कुमार विश्वास

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को ‘आत्ममुग्ध बौना’ कहने वाले युवाओं के चहेते कवि कुमार विश्वास आजकल लगातार आग उगल रहे हैं। अपनी हाजिरजवाबी के कारण कुमार विश्वास बहुत पसंद किए जाते हैं। लेकिन आज एक कॉन्ग्रेस के ट्रॉल को देखते ही पहचान लेने के बाद उन्होंने कॉन्ग्रेस को भी अपने कटाक्ष का निशाना बनाने में कोई चूक नहीं की।

हुआ ये कि कुमार विश्वास ने अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जयशंकर प्रसाद की एक कविता ट्विटर पर पोस्ट की। इसके बाद ट्रॉल्स ने उन्हें निशाने पर ले लिया। कमेंट की भाषा को भाँपकर कुमार विश्वास फ़ौरन समझ गए कि ये कोई कॉन्ग्रेस का इंटरनेट ट्रॉल है और उन्होंने तुरंत सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए ट्रॉल को लोकसभा चुनाव का परिणाम देखने की बात कह डाली। विश्वास के समर्थकों ने उन पर अभद्र टिप्पणी करने वाले शख्स की जमकर क्लास लगाई।

जानिए क्या था असल में पंगा

अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कुमार विश्वास ने जयशंकर प्रसाद की कविता ‘नारी! तुम केवल श्रद्धा हो’ का वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया। जयशंकर प्रसाद की इस कविता को कुमार विश्वास ने खुद वीडियो बनाया और बोल भी दिए हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रॉल किया जाने लगा।

यह थी ‘ज़हर उद्दीन’ ट्रॉल की दिक्कत

ट्विटर पर एक यूजर ने कवि जयशंकर प्रसाद के लिए अभद्र टिप्पणी करते हुए कुमार विश्वास पर निशाना साधा। उसने लिखा, ‘‘थू है ऐसे कवि पर, जिसने इस कविता में नारी को केवल श्रद्धा माना है और ऐसी वाहियात पक्तियाँ लिखीं। ये सामंती मानसिकता की पंक्तियाँ चुनकर आपने अपनी मानसिक स्तर का परिचय दिया है।’’ ये टिप्पणी करने वाले युवक का नाम था मुबिन जहूरुद्दीन।

इस पर कवि कुमार विश्वास ने जवाब दिया

कुमार विश्वास ने जयशंकर प्रसाद परअभद्र टिप्पणी करने वाले मुबिन जहूरुद्दीन को जवाब हुए लिखा, ‘‘हे जहर उद्दीन जी, ये पक्तियाँ मेरी नहीं, बल्कि विश्व के सबसे बड़े कवियों में से एक, स्वतंत्रता सेनानी, चंद्रशेखर आजाद के मित्र, नेहरू जी के प्रिय कवि स्वर्गीय जयशंकर प्रसाद जी की हैं। आप कॉन्ग्रेस से हैं। थूक बचाकर रखें, मई में फिर काम आएगा।’’

CM कमलनाथ की ‘गाय हाँक योजना’ पर ट्विटर ने लिए मज़े

मध्य प्रदेश में पढ़े लिखे लोग जल्द ही आपको पशु हाँकते हुए नजर आ सकते हैं। दरअसल, युवा स्वाभिमान योजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश के बेरोजगारों को सरकार ऐसे काम सिखाएगी। कमलनाथ सरकार की इस युवा स्वाभिमान योजना में रजिस्ट्रेशन करवाने वाले बेरोजगारों ने पशु हाँकने तक की ट्रेनिंग के लिए अपना नाम लिखवाया है। वहीं बीजेपी ने इसे बेरोजगारों का मज़ाक बताया है। इस योजना में विभिन्न ट्रेड्स में इलेक्ट्रीशियन, अकाउंट्स असिस्टेंट, मोबाइल रिपेयरिंग, ड्राइवर व फोटोग्राफर के अलावा पशु हाँकने का काम भी शामिल है।

हालाँकि, युवा स्वाभिमान योजना पर कॉन्ग्रेस की तरफ से कहा गया है कि गाय हाँकने का मतलब गाय को भगाना नहीं है, बल्कि गाय का संरक्षण करना है। देखा जाए तो कोई भी काम बड़ा या नहीं होता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वरोजगार के लिए पकोड़े बनाने वाले का उदाहरण देने पर पकोड़े बनाने वालों का मजाक बनाने वाली यह कॉन्ग्रेस सरकार रोजगार देने के नाम पर बेरोजगारों का मजाक बनाती दिख रही है। गाय हाँकने की यह क्रिएटिव स्कीम बेरोजगारी पर कॉन्ग्रेस की दूरदृष्टि सोच का नतीजा है।

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार बेरोजगारों को जल्द ही पशु हाँकने की ट्रेनिंग देगी। प्रदेश शासन के नगरीय विकास और आवास विभाग की युवा स्वाभिमान योजना के तहत पंजीकरण भी शुरू हो चुका है। हर जिले के हिसाब से पशु हाँकने के काम के लिए पद निकाले गए हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर कमलनाथ सरकार की इस योजना का जमकर मजाक उड़ाया गया। ट्विटर यूजर्स ने #HaankInIndia के साथ कटाक्ष करने वाले कुछ वीडियो और फोटो शेयर किए थे। लोगों ने इसी के साथ कहा- यह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की ऐसी योजना है, जिससे गाय भी परेशान हैं।

कमलनाथ सरकार के इस कदम को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मजाक बताया है। पार्टी नेता उमाशंकर गुप्ता ने कहा, “कमलनाथ सरकार ने ऐसा कर बेरोजगारों का मजाक बनाया है। कमलनाथ सरकार, पढ़े-लिखे लोगों से पशु हाँकने का काम क्यों करा रही है?”

देखते हैं लोगों ने किस तरह से प्रतिक्रिया दी हैं –

दूध माँगोगे तो भी चीर देंगे: जब पाक की पूँछ के नीचे पेट्रोल डालकर भारत अपने काम करता रहा

जब अजित डोभाल ने ‘ऑफेन्सिव डिफ़ेंस’ की नीति की बात की थी, तो बहुतों को वो थ्योरेटिकल लगती थी। लगता था कि ये सब कहने की बातें हैं, इसका इस्तेमाल कब होगा। कुछ लोग यह भी मानते थे कि पाकिस्तान से शांति वार्ता ही अंतिम विकल्प है। हालाँकि, पिछले तीन सप्ताह में भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया ये नीति क्या है और विकल्प कितने हैं।

हमले, एयर स्ट्राइक, पाकिस्तानी घुसपैठ, F16 को गिराना, अभिनंदन की कस्टडी, अभिनंदन की वापसी, कराची-रावलपिंडी-लाहौर आदि शहरों पर गूँजते जेटों की आवाज से डरा पाकिस्तान और हरे झंडे के साथ ‘शांति’ की भीख माँगता इमरान खान। ये सब ऐसे हुआ, और इतने दिनों में कॉन्सपिरेसी में लीन पाकिस्तान अकुपाइड पत्रकारों (Pak Occupied Patrakaar) ने इतनी पलटियाँ मारीं, कि देश को दिख गया कि किसकी ज़मीन कहाँ है। 

ट्विटर पर कराची के ऊपर उड़ते पाकिस्तानी विमानों की आवाज सुनकर, ‘युद्ध होगा तो क्या होगा’ की स्थिति से डरे पाकिस्तानी लगातार ‘अल्ला रहम करे’, ‘अल्ला खैर करे’ की दुहाइयाँ दे रहे थे। वही हाल रावलपिंडी का भी था जहाँ अलर्ट जारी हो गए थे, रातों में बिजली काट दी गई थी, और अस्पतालों से कहा गया था कि बिस्तर खाली रखें। हालाँकि, पाकिस्तान द्वारा खुद को इस तरह से युद्ध के लिए तैयार दिखाने का दूसरा आयाम भी था, जिस पर हम आगे चर्चा करेंगे, लेकिन आम जनता को भारतीय हमले का ख़ौफ़ दिख रहा था।  

पहले ऐसे हर आतंकी हमले के बाद भारत, पाकिस्तान के ‘न्यूक्लिअर ब्लफ’ को कुछ ज्यादा ही गम्भीरता से लेता था। अगर सेना तैयार होती तो मनमोहन डर जाते कि न जाने पाकिस्तान क्या कर बैठेगा, वो तो एक बदमाश देश है, न्यूक्लिअर वॉर हो जाएगा आदि। इस बार भी पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लिअर कमांड अथॉरिटी की मीटिंग बुलाकर ब्लफ खेलने की कोशिश की थी, लेकिन परिणाम में उसे भारत की चुप्पी की जगह, उसके अत्याधुनिक फ़ाइटर जेट को पुराने भारतीय मिग का शिकार होना पड़ा।

इसके साथ ही, भारत ने एक के बाद एक वो सारे निर्णय लिए जो भारत-पाक मामलों के जानकार सालों से कहते आ रहे थे: मोस्ट फेवर्ड नेशन का स्टेटस हटाना, सिंधु जल समझौते को अपने फ़ायदे के लिए बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना, अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर भारत की छवि मजबूत और पाकिस्तान की छवि धूमिल करना।

इन सबका रिजल्ट यह हुआ कि न सिर्फ यूएन में पाकिस्तान के खिलाफ एक लॉबी खड़ी हुई, बल्कि हर बड़े देश ने भारत द्वारा किए गए एयर स्ट्राइक्स को सही बताते हुए, भारत के हमले करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया क्योंकि वो आतंकवादियों के लिए था। साथ ही, सिक्योरिटी काउंसिल से प्रस्ताव पारित कराना भी अपने आप में एक उपलब्धि ही है। इसी पर आगे, मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने में चीन भी साथ आता दिख रहा है।

जब 55 घंटे के अंदर भारतीय पायलट वापस ले आया गया तो कुछ लोगों ने कहा कि वो तो समझौते के तहत हुआ। लेकिन वो लोग कैप्टन सौरभ कालिया वाला घटनाक्रम भूल गए। ये भारत की बहुत बड़ी जीत थी, और मोदी ने बार-बार अपने रैलियों के बयानों में पाकिस्तान पर और भी बड़ी कार्रवाइयों के होने का ज़िक्र करना नहीं छोड़ा।

इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान ने, प्रोपेगेंडा के लिए ही सही, दुनिया को यह दिखाना शुरु किया कि उसने दर्जनों आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया है, और आतंकियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है। फिर ख़बर फैली कि पाकिस्तान ने कई मदरसों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है। उसके बाद ख़बर आई कि जैश-ए-मोहम्मद संचालित संगठनों पर सरकार ने कार्रवाई की है।

ये हुआ या नहीं हुआ, ये पाकिस्तान ही बेहतर जानता है, लेकिन ये इसलिए हुआ क्योंकि भारत ने विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी के बाद भी अपने ढीले होने के संकेत नहीं दिए। मोदी ने एक रैली में बस यह कह दिया कि ये तो ‘पायलट प्रोजेक्ट‘ था, और पाकिस्तान में युद्ध से निपटने की तैयारी के लिए नियंत्रण रेखा पर सेना और हथियारों की मूवमेंट बढ़ा दी गई। 

ये काम करते हुए पाकिस्तान दो तरह से गेम खेलना चाह रहा था। पहला यह कि अपनी सहमी हुई जनता को यह बताना कि वो लोग तैयार हैं। दूसरी यह कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश जाए कि पाकिस्तान अपने तरफ से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, लेकिन भारत शांति की जगह युद्ध का बिगुल फूँक रहा है।

खैर, दोनों ही बातों से भारत को कोई असर नहीं पड़ा और नियंत्रण रेखा के पार से होती गोलीबारी का लगातार जवाब दिया जाता रहा।

इन सबके बीच, पाकिस्तान जैसे देश की, जो भीख माँगकर गुज़ारा करने पर मजबूर है, लगातार दस दिनों से हवाई परिवहन को बंद करने की मजबूरी से उसे कितना नुकसान पहुँचा है, ये भी वही बता पाएगा। गधे बेचना, भैंस बेचना, कार बेचना और अपने बजट से आतंकियों को स्पॉन्सर करना पाकिस्तान की वो नियति है, जिससे वो भाग नहीं सकता।

दो-चार इस्लामी देश और चीन की शह पर कूदने वाले पाकिस्तान को चार हिस्सों में बाँटने की भी नीति की बात होती रहती है। बलूचिस्तान एक संवेदनशील इलाक़ा है, और वहाँ लगातार विद्रोह होते रहते हैं। आतंरिक कलह, शिया-सुन्नी के आपसी बम धमाकों के आतंक और लगातार बर्बाद होती अर्थव्यवस्था से उबर पाना पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।

नया पाकिस्तान‘ का नारा लगाने से वो नया नहीं हो जाता, जबकि सिवाय इस बात के कि वहाँ का पीएम एक क्रिकेटर बन गया है, पाकिस्तानियों के लिए नया कुछ नहीं है। बुनियादी अधिकारों से वंचित लोग, कट्टरपंथी इस्लामी आतंक और आम समाज में दूसरे मतों को लिए घृणा पालते लोग, बिजली-पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतों से हर दिन लड़ते बड़े शहर, करप्शन और सामंतवादी सोच से चलते पोलिटिकल सिस्टम ने पाकिस्तान को हर तरफ से जकड़ा हुआ है।

वहीं, भारतीय जनमानस में जो संवेदनाजन्य आक्रोश था, उसके लिए हमारी सेना जितना कर सकती थी, उन्होंने उससे कहीं ज़्यादा किया। यह बात एक सत्य है कि जो बलिदान हो गए, वो वापस नहीं आ सकते, लेकिन शत्रु को उसकी औक़ात बताना, और बलिदानियों के परिवार के बेहतर भविष्य के साथ इस महान देश की सीमाओं को भी सुरक्षित रखने की हर संभव कोशिश की जा रही है।

पाकिस्तान को जितनी डिप्लोमैटिक समझदारी से अलग-थलग करते हुए, पीएम द्वारा उसको उसकी औक़ात बताते हुए कि तुम्हारा नाम लेना भी ज़रूरी नहीं क्योंकि तुम उतनी बड़ी समस्या नहीं हो, पाकिस्तान को उसकी जगह बता दी गई। वहीं, सेना ने जितनी जल्दी, जिस स्तर से पाकिस्तान को क्षति पहुँचाई है, उस हिसाब से न्यूक्लिअर कमांड अथॉरिटी की मीटिंग बुलाकर इमरान जो दबाव बनाना चाहता था, वो कितना बना, सबके सामने है। 

अब हालत यह है कि पाकिस्तान को अमेरिका भी पूछ रहा है कि उसका F16 क्यों इस्तेमाल किया गया, और पाकिस्तान इस बुरी स्थिति में है कि अपने एक शहीद पायलट का नाम तक नहीं ले पा रहा है। ज्ञात हो कि पाकिस्तान ने ही बताया था कि उन्होंने दो पायलट पकड़े हैं, एक हमारे विंग कमांडर अभिनंदन थे, और दूसरे के बारे में कहा गया कि उनका उपचार चल रहा है। 

बाद में पता चला, वो उन्हीं का पायलट था, और सोशल मीडिया में उस शहीद को उसका हक़ दिलाने के लिए पाकिस्तान में खूब कैम्पेन चले। लेकिन, पाकिस्तानी मीडिया से अचानक उस पायलट की कवरेज तक गायब हो गई, और विंग कमांडर शहज़ाज़ुद्दीन को पाकिस्तानी हुकूमत ने, अपनी पुरानी करतूतों की ही तरह, भुला दिया। नहीं भुलाते तो उन्हें अमेरिका को जवाब देने में और भी मुश्किल होती कि उन्होंने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए किस विमान का इस्तेमाल किया था।

कुल मिलाकर बात यह है कि पाकिस्तान का पुराना ब्लफ बाहर आ गया, और भले ही विदेशी प्रोपेगेंडा अख़बारों में ‘साउथ एशिया में न्यूक्लिअर वॉर के आसार’ लिखे जाते रहें, लेकिन पाकिस्तान को बेहतर पता है कि भारत इस बार क्या कर सकता है। युद्ध में क्षति तो होती है, दोनों तरफ से होती है, लेकिन पाकिस्तान ने अगर ऐसा चाहा तो उसके समूचे अस्तित्व पर बड़ा संकट आ सकता है। 

भारत का क्या है, यहाँ सामान्य गति से हर संस्था अपना कार्य कर रही है। आम नागरिकों से लेकर बड़े, रसूखदार लोगों ने हर बलिदानी के परिवार तक अपनी मदद पहुँचाई है। देश सेना के साथ खड़ा है, विकास के कार्य लगातार शुरु और खत्म किए जा रहे हैं। वहीं पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी शुद्ध हिन्दी में कश्मीर समस्या के समाधान के लिए शांति और मानव विकास के मार्ग प्रशस्त करने वाले के लिए नोबेल पुरस्कार की बात कर रही है।