Friday, October 4, 2024
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100 साल से ऊपर है उम्र इन 6000 वोटरों की, लेकिन लोकतंत्र में आस्था मजबूत

आजकल के समय में जिस प्रकार से बुजुर्गों की बेकद्री की जाती है, उसके कारण वो अपने जीवन को पूरा नहीं जी पाते और समय से पहले ही 75-80 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह देते हैं। इस कारण आज 90 या उससे ऊपर की उम्र के बुजुर्ग दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं। ऐसे में हरियाणा में चल रही चुनाव की हवा एक ऐसी ख़बर लेकर आई है, जिसे सुनकर निश्चित ही आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी।

साल 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में इन दोनों चुनावों की तैयारी हरियाणा में जोर-शोर से हो रही है। इसी दिशा में वहाँ वोटर लिस्ट भी तैयार हो चुकी है। इस वोटर लिस्ट के बनने के बाद जो खास बात निकलकर आई वो यह कि इस लिस्ट में 5,910 वोटर ऐसे सामने आए, जिनकी उम्र 100 साल से ऊपर की है। और 89,711 ऐसे मतदाता हैं, जिनकी उम्र 90 से 99 के बीच है।

उम्र के जिस मोड़ पर आकर लोग घर-परिवार के साथ खुद के जीवन की स्मृतियों को भी भुलाने लगते हैं उस उम्र में इन बुजुर्गों में मतदान को लेकर जोश और सजगता आज भी बरकरार है। जिसके चलते देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाते हुए ये बुजुर्ग इस वर्ष चुनावों में मतदान करके अपना योगदान देंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक वोटर लिस्ट में देखें तो हरियाणा के करनाल जिले में 100 साल से ज्यादा उम्र के सबसे अधिक वोटर हैं और पंचकूला में इस उम्र-वर्ग के सबसे कम वोटर हैं। करनाल में जहाँ इन बुजुर्ग वोटर्स की संख्या 553 है वहीं पंचकूला में इस उम्र-वर्ग के केवल 111 ही मतदाता हैं।

इसके अलावा हरियाणा में 89,711 मतदाता ऐसे हैं, जिनकी उम्र 90 से 99 वर्ष की है। इस श्रेणी में आने वाले सबसे ज्यादा मतदाता भिवानी में हैं, जहाँ इनकी संख्या 7,946 है, जबकि इस उम्र-वर्ग के सबसे कम वोटर पंचकूला में हैं जहाँ पर इनकी संख्या 1,436 है।

संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी इंद्रजीत का कहना है कि अंतिम वोटर लिस्ट को 31 जनवरी 2019 को प्रकाशित किया गया था, जिसके अनुसार मतदाता सूची में इस बार 3.68 लाख नए वोटर्स जुड़े हैं लेकिन सत्यापन के बाद इस सूची से 85,613 वोटर्स बाहर कर दिए गए क्योंकि वह सभी नाम फर्जी थे और एक से अधिक जगहों पर उनका नाम दर्ज था। इंद्रजीत ने कहा कि राज्य के लिए यह गर्व की बात है कि इतनी अधिक आयु वाले मतदाताओं के नाम भी मतदाता सूची में दर्ज हैं।

रईसज़ादे ने कार से मारी टक्कर, फिर बोनट पर पीड़ित को 2 किमी तक घसीटा

दिल्ली NCR में आने वाले उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद से एक सनसनीखेज घटना सामने आई है। रोड रेज की इस घटना में कार चालक ने पहले तो एक शख़्स को टक्कर मारी और फिर उसे बोनट पर रख कर दो किलोमीटर तक गाड़ी दौड़ाता रहा। इस दौरान कई बार तो ऐसा लगा जैसे की वह व्यक्ति बोनट पर से गिर पड़ेगा। अगर वह चलती कार के बोनट से गिर जाता तो कोई बड़ी दुर्घटना होनी तय थी। सोशल मीडिया पर इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल हो गया। पुलिस ने आरोपित चालक को गिरफ़्तार कर लिया है। पीड़ित व्यक्ति ने थाने में शिक़ायत दर्ज करवाई है।

24 वर्षीय कार चालक का नाम रोहन मित्तल है जबकि पीड़ित एक कैब ड्राइवर है। लग्जरी गाड़ी चला रहा मित्तल नोएडा स्थित एक एक्सपोर्ट्स हाउस का मालिक है। उसे हत्या की कोशिश में गिरफ़्तार कर लिया गया है। सम्बंधित धाराओं के अंतर्गत उस पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

दरअसल, हुआ यूँ कि कार ने उक्त व्यक्ति को टक्कर मार दी। टक्कर के बाद वह व्यक्ति कार के एकदम क़रीब था लेकिन कार चालक ने गाड़ी नहीं रोकी। गुस्साए व्यक्ति ने कार के बोनट पर कई बार हाथ भी पटका। ऐसी स्थिति में उसने गिरने से बचने के लिए कार का बोनट पकड़ लिया लेकिन कार चालक कार को भगाता रहा। दो किलोमीटर बाद जब इस घटना को देख रही भीड़ जमा हो गई, तब जाकर कहीं ड्राइवर ने कार रोकी। इसी तरह की एक घटना दिसंबर 2018 में हुई थी जब हरियाणा के साइबर सिटी गुरुग्राम में एक कार चालक ने ट्रैफिक पुलिसकर्मी को गाड़ी के बोनट पर घसीटा था।

उस समय हुआ यूँ था कि शहर के सिद्धेश्वर चौक पर एक स्विफ्ट कार ने सिग्नल तोड़ डाला जिसके बाद ट्रैफिक पुलिस ने गाड़ी रोकने का इशारा किया। चालक ने पुलिस की बात को नज़रअंदाज़ कर गाड़ी को भगा दिया। उक्त पुलिसकर्मी कार की बोनट पर आ गया और कार चालाक काफ़ी दूर तक उसे घसीटता चला गया। अंत में चालक गाड़ी छोड़ कर फरार हो गया।

रॉबर्ट वाड्रा ने खुद अपनी तुलना माल्या, नीरव और मेहुल चौकसी जैसे भगोड़ों से की

‘चोर की दाढ़ी में तिनका’- हिंदी भाषा की इस कहावत है का इस्तेमाल तब किया जाता है जब कोई गलती करके खुद ही जाने-अंजाने में इशारा कर दे कि वह गुनहगार है। सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस बार वही किया है। हाल ही में अपने बयान में उन्होंने बिना किसी के कुछ कहे ही अपनी सफाई देते हुए खुद के मामले की तुलना विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे भगौड़े लोगों से कर डाली।

मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में इन दिनों प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सवालों से रॉबर्ट को लगातार जूझना पड़ रहा है। लंदन वाले मामले में पूछताछ खत्म नहीं हुई थी कि बीकानेर वाले मामले की भी फाइलें ईडी ने खोल दी। ऐसे में हर तरफ से खुद को फँसा हुआ महसूस करते हुए रॉबर्ट ने बुधवार (मार्च 6, 2019) को एएनआई से कहा कि वह (रॉबर्ट) तो इस देश में हैं, लेकिन उनका क्या जो देश को लूट कर भाग गए? रॉबर्ट ने कहा कि जब तक वह अपने आप को बेगुनाह नहीं साबित कर देते तब तक वह इस देश को छोड़कर कही भी नहीं जा रहे हैं और न ही वह इस बीच सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनेंगे।

यहाँ रॉबर्ट ने खुद अपनी सफाई के लिए जिन लोगों कि तरफ इशारा किया उनमें विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे भगोड़े शामिल हैं। दरअसल, जब से रॉबर्ट की पत्नी प्रियंका ने कॉन्ग्रेस महासचिव पद संभाला है तब से ही उनको अपने पति के इन कारनामों को लेकर आलोचनाओं का सामना कर पड़ रहा है जिसके कारण रॉबर्ट ने खुलकर यह बयान दिया है।

हाल ही में रॉबर्ट ने अपनी पत्नी प्रियंका के समान स्वयं भी सक्रिय राजनीति में आने का संकेत दिया था। लेकिन अब उन्होंने यह बयान भी दे दिया है कि वह जब तक अपने नाम पर लगे दाग को मिटा नहीं लेते तब तक राजनीति से नहीं जुड़ेंगे। फिलहाल के लिए बता दें कि दिल्ली की अदालत ने उनकी लंदन वाली संपत्ति पर चल रहे केस में मिलने वाली अंतरिम जमानत की तारीख़ को 19 मार्च तक के लिए बढ़ा दिया है।

कंगना और कुंभ पर सवाल खड़े करने वाले आमिर और यूनिलीवर की करतूतों पर चुप बैठ जाते हैं

फ़िल्मों के बारे में सभी जानते हैं कि वहाँ सेट, हुलिया, किरदार सभी नकली होते हैं। इसके बावजूद जब अभी हाल में कंगना की मणिकर्णिका अच्छी चल निकली तो गिरोहों ने विवाद उठाया कि कंगना का घोड़ा तो नकली है! ऐसा इसलिए था क्योंकि गिरोह के मर्दवादियों को एक अकेली कंगना आसान शिकार लगी होगी। इन्हीं लोगों ने आमिर ख़ान की फ़िल्म में शाकाहारी पहलवानों को जबरन मुर्गा खिलाना दिखाने पर ग़लत तथ्यों के बारे में कुछ नहीं कहा था। वो पुरुष हैं, फिल्म इंडस्ट्री पर मजबूत पकड़ रखते हैं, शायद उनकी फेंकी बोटियों से पेट भी भरा हुआ होगा। उन्हें निशाना एक ही तरफ़ साधना होता है।

अभी हाल में जब अर्धकुम्भ का वृहत आयोजन हुआ तो उनके पालतू कहने लगे कि इतना सरकारी ख़र्च क्यों? किसी ने पूछ लिया कि मंदिरों से धन और ज़मीनें लेना बंद कर दो तो आयोजन भी बंद कर देना। उसके बाद फिर हमले का दूसरा कोण ढूँढा जाने लगा। कुम्भ के आयोजन में 200 वर्षों बाद ऐसा हुआ है कि कोई बड़ी भगदड़ नहीं मची। किसी के भीड़ में कुचल कर मारे जाने की ख़बर चलाने का गिद्धों को मौक़ा ही नहीं मिला। भला आयातित विचारधारा और उपनिवेशवादी मानसिकता के लोग ऐसी कामयाबी कैसे सहन कर पाते?

लिहाजा उन्होंने प्रचारों के जरिये हिन्दुओं को फिर से नीचा दिखाने की कोशिश की। भारत को बरसों उपनिवेश बनाए रखने वाली जगहों की एक कंपनी के प्रचार का बहाना बनाया गया। ब्रिटिश-डच कंपनी जो भारत में हिंदुस्तान-यूनीलीवर के नाम से चलती है, अपने कई उत्पादों का प्रचार भी करती है। उसने अपनी चाय “रेड-लेबल” के लिए एक प्रचार बनाया जिसमें दर्शाया गया है कि भारतीय लोग कुम्भ की भीड़ का फायदा अपने बुजुर्ग अभिभावकों को वहाँ छोड़ आने के लिए उठाते हैं। प्रचार की कहानी में एक व्यक्ति अपने पिता को ऐसे भीड़ में छोड़ आता है, जैसे भारतीय समाज में ये आम बात हो!

ब्रिटिश-डच कंपनी हिंदुस्तान-यूनीलीवर के पिछले सीईओ को काफी हद तक “प्रगतिशील” माना जाता था और कई लोगों ने तो उनके अगला जॉर्ज सोरोस होने की संभावना भी जताई थी। इस ब्रिटिश-डच कंपनी के मौजूदा सीईओ के बारे में ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके अलग-अलग ब्रांड के हाल में आये प्रचारों पर सवाल जरूर उठ रहे हैं। थोड़े दिन पहले भारतीय लोगों का एक बड़ा वर्ग क्लोज-अप के प्रचारों से नाराज चल रहा था। भारत में इस ब्रिटिश-डच कंपनी को पहले ही स्वदेशी उद्यमों से कड़ा मुक़ाबला झेलना पड़ रहा है। उनका व्यापार बढ़ नहीं पा रहा।

हालाँकि ऐसी बड़ी कंपनियों में मीडिया को “मैनेज” करने की अपार क्षमता होती है, लेकिन अब के दौर में जब सोशल मीडिया, परम्परागत ख़रीदी जाने वाली मीडिया जितना ही प्रभावशाली हो चला है तो ब्रिटिश-डच कम्पनी यूनीलीवर को बायकाट के गाँधीवादी तरीके का असर शायद महसूस हो ही जायेगा। अच्छा भी है, क्योंकि सनातनी समाज अब अन्यायों के प्रति असहिष्णु हो चला है, ये बात उपनिवेशवादियों को पता भी होना चाहिए।

रागा का रा-फेल राग: नशे-सी चढ़ गई ओए…

राहुल गाँधी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस किया। हालाँकि, प्रोपेगेंडा में लिप्त, चोरों के सहारे ‘बड़ी ख़बर’ मैनुफ़ैक्चर करने वाले ‘द हिन्दू’ की साख लगातार गिरती ही जा रही है, लेकिन कॉन्ग्रेस वाले उसकी ख़बर की फ़ोटोकॉपी करके प्रेस कॉन्फ़्रेंस में लहराने से बाज़ नहीं आते। पिछली बार ‘द हिन्दू’ के एन राम ने राफेल को लेकर जो ‘सबूत’ दिए थे, उसे जानबूझकर काट कर पेश किया था ताकि रक्षा मंत्रालय पर सवाल उठे। लेकिन आधे घंटे में पूरी, बिन कटी, तस्वीर आ गई और एन राम का स्तर गिरकर उत्तर भारत के लोकप्रिय अश्लील साहित्य के लेजेंड मस्त राम जितना हो गया।

पिछली ग़लतियों से सीखे बिना, एन राम ने कल राफेल पर ‘नया ख़ुलासा’ किया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस रिपोर्ट पर भी कुछ निकल कर नहीं आएगा क्योंकि जिस तरह से रिपोर्ट लिखी गई है, उसकी क्लिष्टता से तो यही लगता है कि लिखने वाले ने भ्रमित करने की कोशिश की है। दूसरी बात यह भी है कि जब तक पूरी रिपोर्ट सामने न हो, कुछ हिस्सों को संदर्भ से बाहर निकालकर रखना, देशहित नहीं, डूबते अख़बार को चर्चा में रखने भर का ज़रिया है।

आप यह देखिए कि ऐसी रिपोर्ट कब आती है। राफेल पर रिव्यू पेटिशन पर कल ही सुनवाई होनी थी, और ‘द हिन्दू’ की रिपोर्ट भी उसी दिन आई। उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद गिरोह के वकील, प्रशांत भूषण, अख़बार की कतरन को सबूत के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में ले गए, जहाँ सुनवाई का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर बर्बाद हुआ कि इस ‘नए सबूत’ को शामिल किया जा सकता है, या नहीं।

आपको लगेगा कि ये सामान्य सी बात है, जबकि ऐसा है नहीं। यही काम इसी गिरोह ने अयोध्या मामले में किया जब वो नया एंगल ले आए कि ‘मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है’, और इस पर खूब समय बर्बाद किया गया। ये मरे हुए घोड़े को ज़िंदा रखने का पुराना तरीक़ा है जिसमें वामपंथी गिरोह को महारत हासिल है। 

कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष रखने वाले वकील ने कोर्ट को याद दिलाया कि अगर ये तथाकथित सबूत, जो चोरी से रक्षा मंत्रालय से उड़ाए गए हैं, पब्लिक में आते हैं, तो इसका मतलब भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करना होगा। कारण यह है कि जब दो देश ऐसे समझौते करते हैं तो उनकी कई शर्तें गोपनीय होती हैं, और जब रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज चोरी हो रहे हैं, तो कल को राफेल से संबंधित तकनीकी बातें भी पब्लिक में आ सकती हैं, और इससे भविष्य में होने वाले तमाम समझौतों पर असर पड़ेगा। 

‘द हिन्दू’ की टाइमिंग, उनके पास के तथाकथित सबूतों की कतरनें, और उनका प्रयोग एक खास गिरोह द्वारा होना, यह बताता है कि विपक्ष के पास अगर मुद्दा न हो, तो वो किस हद तक जा सकते हैं। एन राम ने अपनी पिछली करतूत के लिए पाठकों से माफ़ी नहीं माँगी है कि आधी तस्वीर क्यों छापी थी। कल को जब ये रिपोर्ट भी वैसी ही साबित होगी, तब भी ये माफ़ी नहीं माँगेंगे क्योंकि इनका काम है आरोप लगाकर गायब हो जाना।

राहुल गाँधी और उनकी पार्टी अब ऐसे ही धंधेबाज़ और अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ भी लिखने वाले अख़बारों पर निर्भर है। इसीलिए, उधर रिपोर्ट छपती है, इधर प्रेस कॉन्फ़्रेंस होती है। राहुल गाँधी राफेल पर आज तक 30,000 करोड़ अम्बानी को दे दिए कहते फिर रहे हैं, उधर अम्बानी की कम्पनी दिवालिया हो रही है। अगर मोदी इस तरह का दोस्त है, तो अम्बानी जैसे लोगों को समझना चाहिए कि कैसे दोस्त बनाने चाहिए! 

लेकिन राहुल गाँधी तो राहुल गाँधी हैं, उन्हें सत्य से क्या! जैसे एक नशेड़ी दीन-दुनिया से बेख़बर रहता है, और अचानक से कुछ बोल पड़ता है, या बार-बार एक ही बात बोलता है, वैसे ही राहुल गाँधी भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल में कुछ न पाने के बाद, संसद में निर्मला सीतारमण, अरुण जेटली से लेकर तमाम लोगों द्वारा घंटों चर्चा के बाद भी, इन सब बातों से परे, लगातार एक ही बात रटे जा रहे हैं।

अब उनके ये ‘खुलासे’ इतने बोरिंग हो गए हैं कि न्यूज रूम में ये सोचना पड़ता है कि इस पर अब कैसे लिखा जाए, क्योंकि ये आदमी तो लगातार एक ही बात बोलता है। 

कॉन्ग्रेस की हालत पिछले 14 फ़रवरी के पुलवामा हमलों के बाद ऐसी हो गई है जैसे उनकी पूरी योजना की फ़ाइल किसी ने हाथ से खींच ली हो। प्रियंका की धमाकेदार लॉन्च हुई, रैलियों का प्रोग्राम बना, फिर उसमें राहुल की छवि बेहतर करने के लिए और लोग आए… ये सब चल ही रहा था कि अचानक से स्थिति में बदलाव आया। 

यहाँ कॉन्ग्रेस ने जो लाइन पकड़ी, उससे इन्हें दो तरह से नुकसान हुआ। पहले तो साथ खड़े हुए क्योंकि राजनैतिक दूरदर्शिता यही माँग रही थी। लेकिन दिन भर के बाद ही इनके नेताओं ने उल्टी-सीधी बातें करने में समय लगाना शुरू किया, और जो कैपिटल ये बना रहे थे, वो हाथ से जाता रहा। फिर एयर स्ट्राइक हुए तब तक कॉन्ग्रेस ‘मोदी रैलियाँ कर रहा है’ वाली बात को इतनी बार बोल गई कि उनकी अपनी रैलियों के करने पर भी सवाल उठ जाते।

बहरहाल, हुआ यह कि मोदी ने सेना को अपना काम करने दिया, और खुद अपना काम करते रहे। कॉन्ग्रेस ने एयर स्ट्राइक पर सबूत माँगने से लेकर, अपने नेताओं के मुँह बद करने में नाकामी दिखाई, और स्वयं भी पार्टी के तौर पर ऐसा कुछ नहीं किया कि मोदी या भाजपा को घेर सके, तो इन्होंने जो कोशिश की थी, वो नाकाम हो गई। 

पुलवामा और एयर स्ट्राइक पर सरकार को घेरने की जगह, कॉन्ग्रेस अगर उन चालीस जवानों के घर राहुल-प्रियंका को भेज देती, बीस दिन भी लग जाते, तो अभी तक उनकी स्थिति मजबूत रहती। उनके पास सरकार और मोदी पर ये सवाल पूछने का पूरा हक़ होता कि ‘हम तो परिवारों से मिल रहे हैं, आप रैलियाँ कर रहे हो’। लेकिन कॉन्ग्रेस यहाँ भी मात खा रही है, और अब उन्हें क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन के नाम पर दो और तीन सीटों का प्रस्ताव मिल रहा है। 

फिर अब बचा क्या? बच गया राफेल और राहुल की पुरानी स्क्रिप्ट के वो पन्ने जिन्हें जीन्स की पिछली जेब में लेकर घूमने से उनकी रीढ़ टूट चुकी है। और जब किसी की रीढ़ टूट चुकी हो तो वो अपने मालिक की कितना ढोएगा, ये समझना बहुत मुश्किल नहीं।

अब राहुल वापस उसी काग़ज़ के टुकड़े से कई काम लेते हैं। दीन-दुनिया से बेख़बरी की दवाई भी उसी काग़ज़ पर रखकर तैयार होती है, स्पीच भी उसी काग़ज़ से पढ़कर देना है, बाद में आँसू भी उसी से पोंछना है। कभी-कभी तो दया आती है इस व्यक्ति पर, लेकिन फिर वो ख़ूनी, लुटेरा पंजा दिखता है भारतीय तिरंगे के तीन रंगों के साथ।

राजदीप ने बरखा, दुआ और गुप्ता की लगाई क्लास, सबने कहा – हेल हिटलर! Video में सब क्लियर है

मोदी अगर अपनी माँ को पीएम हाउस में घुमाते हैं तब उन पर फ्री होने की आलोचना होती है। विदेश जाते हैं तो ‘फालतू’ के घूमने पर आलोचना। लेकिन यहाँ तो पाकिस्तान के घर में घुसने की ‘हिम्मत’ कर दी प्रधानमंत्री ने! ऐसे में पाक-प्रेमी भला कैसे शांत बैठते! तय रणनीति के तहत वामपंथी पत्रकारों और विरोधियों ने एयर स्ट्राइक के बाद मोदी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। और उनके तर्क ऐसे-ऐसे थे कि किसी भी व्यक्ति को, जो देशहित में सोचता है, जिसकी जवानों और सेना में आस्था है, उसे शर्म आएगी।

पाक-प्रेमी मीडिया मठाधीश यहीं मात खा जाते हैं। वो अभी तक मीडिया को न्यूज़ मीडिया ही मानते आ रहे हैं। जबकि जमाना सोशल मीडिया का है। अभिव्यक्ति और संप्रेषण अब एकतरफा नहीं। इसलिए लोगों ने पाक-प्रेमियों को देश प्रेम का पाठ पढ़ाया – क्रिएटिव होकर।

2004 में एक फिल्म आई थी – Downfall/Der Untergang – हिटलर के ऊपर। पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक से बौखलाए गैंग और उनकी प्रतिक्रियाओं को थीम बनाकर इसी फिल्म के एक फेमस सीन को लोगों ने थोड़ा एडिट किया है। 3 मिनट 58 सेकंड के इस वीडियो में आप बार-बार हँसने को मजबूर होंगे। और तरस खाएँगे उन लोगों पर जिन्होंने एकाध फ्लैट-जमीन और कुछ पद-सम्मान के लिए अपना ज़मीर तक बेच दिया है।

MP: OBC आरक्षण हुआ दोगुना, कुल कोटा 70% के पार, बेरोज़गारी भत्ते पर वादे से मुकरे कमलनाथ

लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मिलने वाले आरक्षण को 14% से बढ़ा कर 27% करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही राज्य में आरक्षण का कुल कोटा बढ़ कर 70% को पार कर गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10% आरक्षण वाले प्रावधान को भी लागू करने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि सरकार राज्य में सृजित होने वाली नौकरियों में सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10% आरक्षण का लाभ देगी। सागर जिले में ‘जय किसान फसल ऋण माफ़ी योजना’ के मौके पर जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा:

“समाज में सभी वर्गों को आगे बढ़ने के अवसर मिले, इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है। मैंने ओबीसी वर्ग के लिए 27 प्रतिशत तथा सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का ऐलान किया है। यह एक बड़ा मसला है। भाजपा नेता पिछड़े वर्ग के हित की बातें ही करते रहते हैं, लेकिन 15 सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद वे इस वर्ग के कोटा को बढ़ा नहीं सके। लेकिन हमारी सरकार ने ओबीसी कोटे को बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फ़ैसला किया है।”

उन्होंने राज्य में खाली पड़ी 60,000 सरकारी सीटों को भरने का भी ऐलान किया। उन्होंने युवाओं से छोटे उद्योग खोलने और ‘युवा स्वाभिमान योजना’ का लाभ उठाने की अपील की। इस योजना के तहत 100 दिनों का काम और ₹4,000 मासिक भत्ते के रूप में मिलता है। बता दें कि चुनाव पूर्व घोषणापत्र में कॉन्ग्रेस ने प्रत्येक परिवार के एक बेरोज़गार युवा सदस्य को 3 वर्ष के लिए ₹10,000 मासिक बेरोज़गारी भत्ते के रूप में देने का वादा किया था। लेकिन, अब घोषणा के उलट 3 वर्ष की जगह 3 महीने के लिए और ₹10,000 की जगह ₹4,000 ही मिलेंगे।

भाजपा ने राज्य सरकार के फ़ैसले पर तंज कसते हुए कहा कि कमलनाथ की नीयत में खोट है। भाजपा ने उन पर केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए ग़रीबों को 10% आरक्षण वाले प्रावधान को लटकाने का आरोप लगाया। भाजपा ने कहा कि बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के आरक्षण को आगे बढ़ाना सिर्फ़ एक चुनावी शिगूफा है। आचार संहिता को देखते हुए इसके लागू होने के आसार भी कम हैं।

मेरठ में अतिक्रमण हटाने गई पुलिस पर पथराव, 200 झुग्गियाँ जलीं, नदीम, समर, मुमताज़ समेत 250 पर केस दर्ज

उत्तर प्रदेश के मेरठ के सदर थाना क्षेत्र की भूसा मंडी में कल (मार्च 6, 2019) अवैध निर्माण तोड़ने पर बवाल और आगजनी की घटना सामने आई। भूसा मंडी में स्थानीय लोगों ने अवैध निर्माण हटाने के लिए गई कैंटोनमेंट बोर्ड और पुलिस की टीम से विरोध जताते हुए हाथापाई शुरू कर दी और पुलिसकर्मियों का वायरलेस भी छीन लिया।

इतना ही नहीं, उग्र भीड़ ने पुलिस को पीटा भी और दिल्ली रोड पर पथराव करके काफ़ी अराजकता भी फैलाई। इसके बाद उपद्रवियों ने करीब 200 से ज्यादा झुग्गी झोपड़ी में आग लगा दी। जिससे वहाँ कई सिलेंडरों के फटने से स्थिति और भी अधिक भयावह हो गई। साथ ही इन आग की लपटों की चपेट में एक धार्मिक स्थल भी आ गया।

उत्पात मचाने के बाद भीड़ ने दिल्ली रोड पर निजी वाहनों और रोडवेज बसों में भी तोड़फोड़ करके जमकर लूटपाट की। गनीमत सिर्फ़ इतनी रही कि वहाँ आम लोगों के संयम और सूझ-बूझ से शहर दंगे की आग में जलने से बच गया।

इस मामले में कैंट बोर्ड के सीईओ प्रसाद चव्हाण की ओर से मछेरान निवासी नदीम, समर, मुमताज, रहीसुद्दीन समेत 250 लोगों के ख़िलाफ़ थाना सदर में केस दर्ज कराया गया है। साथ ही 7 लोगों को हिरासत में भी लिया गया। बताया जा रहा है कि हमले में कैंट बोर्ड सुपरवाइजर राजकुमार, मोहन, हीरालाल, एसओ सदर बाजार विजय गुप्ता समेत कई लोगों को चोटें भी आईं हैं।

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार पूरा मामला कुछ यूँ है कि, भूसा मंडी में बड़ी संख्या में झुग्गी-झोंपडी सहित पक्के मकान बने हुए हैं। जहाँ रहीसु नाम का व्यक्ति अपने मकान का निर्माण करवा रहा था। बुधवार (मार्च 6,2019) दोपहर कैंटोनमेंट बोर्ड की टीम और सदर थाने की पुलिस ने निर्माण को अवैध बताकर ध्वस्त कर दिया। इसे लेकर वहाँ रहने वाले लोगों और टीम के अधिकारियों में झड़प शुरू हो गई।

इसके बाद गुस्साई भीड़ ने कैंट बोर्ड के एक कर्मचारी को पीट दिया। बवाल बढ़ने की सूचना मिलने पर पहुँची सदर थाने की पुलिस से भी हाथापाई हुई। इसके बाद बवाल बढ़ता ही चला गया। आग से घरों में बड़ी संख्या में बकरियों और अन्य पशु जो बँधे रह गए आग में जलकर मर गए। डीएम-एसएसपी सहित पूरे जिले के पुलिस-प्रशासनिक अमले ने मौके पर पहुँचकर भीड़ को शांत कराया और आग बुझाने का प्रयास किया।

नोटबंदी के दौरान खातों में बड़ी राशि जमा कराने वाले 80,000 लोग IT विभाग के रडार पर

इनकम टैक्स विभाग ने ऐसे 80,000 लोगों की सूची तैयार की है, जिन्होंने नोटबंदी के दौरान अपने बैंक खतों में अच्छी-ख़ासी रकम जमा कराई थी। इन सभी के ट्रांजैक्शंस की जाँच की जा रही है। ये वो लोग हैं, जिन्होंने आयकर विभाग की नोटिस का जवाब नहीं दिया और वित्तीय वर्ष 2016-17 का टैक्स रिटर्न प्रस्तुत नहीं किया। अब ये सभी आयकर विभाग की स्क्रूटनी की जद में होंगे। 5 मार्च को अपने सीनियर कैडर को जारी किए गए नोटिस में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने इस बाबत स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार किया है।

इससे पहले आयकर विभाग ने धारा 142 (1) के तहत लगभग 3 लाख व्यक्तियों को नोटिस जारी किया था। उस नोटिस में उन्हें अपने नक़दी जमा से संबंधित विवरण प्रदान करने और 2016-17 के लिए अपने I-T रिटर्न को प्रस्तुत करने को कहा गया था। 87,000 मामलों में आयकर विभाग को कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी या तकनीकी शब्दों में यूँ कहें कि नोटिस का अनुपालन नहीं किया गया था। CBDT ने अनुमान के मुताबिक़, ‘Best Judgement Assessment’ मार्च से जून के बीच पूरा हो जाना चाहिए।

ये सभी 80,000 लोग अब आयकर विभाग के रडार पर हैं। आयकर अधिकारी उनके बारे में अधिकतम जानकारी जुटाएँगे और इन जानकारियों के आधार पर उनकी कुल आय का विवरण पता किया जाएगा। इस कार्य के लिए अधिकारियों को अधिकृत कर दिया गया है। उनकी कुल आय-व्यय का आकलन किया जाएगा।

CBDT की अधिसूचना के अनुसार, ये अधिकारी अब किसी भी व्यक्ति को धारा 133 (6) के तहत नोटिस भेज कर अतिरिक्त जानकारी की माँग कर सकते हैं। उनके बैंकों के लेनदेन का विवरण, फंड फ्लो इत्यादि से जुड़े विवरण माँगे जा सकते हैं। इस अधिसूचना में कहा गया है:

इस तरह के नोटिस संबंधित आई-टी अधिकारी द्वारा उपलब्ध सूचना के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद जारी किए जाएँगे ताकि अधिकतम संभव अतिरिक्त जानकारी को बाहर निकाला जा सकेसके अलावा, पिछले आयकर रिटर्न का एक विस्तृत विश्लेषण के आधार पर नोटबंदी के दौरान किए गए लेनदेन की प्रकृति के बारे में जानने के लिए अधिकारी इन विवरण की माँग कर सकते हैं।”

करदाताओं को उनका पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। सीबीडीटी के चेयरमैन सुशील चंद्रा ने कहा कि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद वास्तव में देश में कर आधार बढ़ाने में मदद मिली है। उन्होंने बताया कि प्रत्यक्ष करों से देश का शुद्ध राजस्व बढ़ा है। इस से पहले अप्रत्यक्ष करों का योगदान प्रत्यक्ष करों से ज्यादा हुआ करता था। लेकिन, पिछले साल ऐसा पहली बार हुआ है जब अप्रत्यक्ष करों (48%) का योगदान प्रत्यक्ष करों (52%) के योगदान से कम रहा।

AAP विधायक पर बलात्कार का आरोप, मामला दर्ज

आम आदमी पार्टी के विधायक मोहिंदर गोयल पर एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया है। मोहिंदर दिल्ली के रिठाला से विधायक हैं। उन्होंने 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीन बार विधायक रहे भाजपा नेता कुलवंत राणा को हराया था। पीड़िता ने अपनी शिकायत में बताया कि आरोपित ने 2 वर्ष पूर्व इस वारदात को अंजाम दिया था। पीड़िता ने कहा कि गोयल उसे जानते हैं और उन्होंने 2 साल पहले उस से दुष्कर्म किया था।

पीड़िता ने विधायक पर एक नहीं बल्कि कई बार जबरन सम्बन्ध बनाने का आरोप लगाया। प्रशांत विहार में विधायक के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया गया है और ‘महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध’ प्रकोष्ठ के अधिकारी मामले की जाँच कर रहे हैं। दिल्ली भाजपा के महासचिव कुलजीत सिंह चहल ने आप सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा कि क्या वे इसी तरह दिल्ली की महिलाओं को सुरक्षा देंगे? उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को शर्म आनी चाहिए।

40 वर्षीय पीड़िता ने विधायक के भाई पर अश्लील वीडियो भेजने और धमकाने का आरोप लगाया। आप नेता मोहिंदर गोयल ने ख़ुद पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए इसे साज़िश करार दिया। इस से पहले 2016 में अन्य दो आप नेताओं पर गैंगरेप के आरोप लगे थे। आप नेता राम प्रताप और भूपेंदर पर एक 24 वर्षीय महिला ने गैंगरेप का आरोप लगाया था।