Tuesday, October 8, 2024
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चंद्रबाबू नायडू के लिए ज़मीन नहीं देने पर किसान की पीट-पीट कर हत्या

आंध्र प्रदेश के गुंटूर में एक किसान की असामयिक मृत्यु को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा जा रहा है। राज्य में विपक्षी पार्टियों ने TDP (तेलुगू देशम पार्टी) सरकार पर हमला तेज़ कर दिया है। विपक्षी नेताओं ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उक्त किसान ने उनके दौरे को लेकर अपनी ज़मीन देने से इनकार कर दिया था, जिस कारण उसे मार डाला गया। किसान के परिवार वालों ने बताया कि उन्होंने अपनी ज़मीन में अस्थायी हेलिपैड बनाने के लिए अनुमति नहीं दी, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया।

मृतक की पहचान पिटला कोटेश्वरा राव के रूप में की गई है, जो यदलापडु मंडल के पुटलकोटा गाँव के मूल निवासी हैं। उसके परिजनों का कहना है कि पुलिस ने मृतक को काफ़ी यातनाएँ दी। यह घटना सोमवार (फ़रवरी 18, 2019) की है, जब नायडू एक कार्यक्रम के सिलसिले में क्षेत्र के दौरे पर आए थे। ‘द न्यूज़ मिनट’ के अनुसार, पीड़ित के परिवार और स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस द्वारा पीटने के बाद उसकी मौत हो गई क्योंकि उसने सीएम की सुरक्षा व्यवस्था के लिए अपने खेत में जगह देने से इनकार कर दिया था।

इस घटना के बाद वाईएसआरसीपी के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी, जो राज्य की विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं, ने नायडू को किसान की मृत्यु का दोषी ठहराया। अपने एक ट्वीट में जगन ने कहा:

“आपने कोंडावेदु में बीसी किसान कोटिया की हत्या कर दी है। पिटाई के बाद उसे अधमरे स्थिति में छोड़ दिया गया था। आपके हेलीकॉप्टर की लैंडिंग की सुविधा के लिए, उनकी पपीते की फसल नष्ट हो गई। जब मानवता की ज़रूरत है तो यह क्रूरता क्या है?”

TDP सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने मृतक किसान के परिजनों को मुआवज़े के रूप में 5 लाख रुपए देने की घोषणा की। इस घटना के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने इलाके में पहुँचना शुरू कर दिया। जगनमोहन की पार्टी की तरफ से 3 सदस्यीय समिति ने किसान के परिजनों से मुलाक़ात किया। तेलुगू सुपरस्टार पवन कल्याण की पार्टी ने भी घटना को लेकर नायडू पर निशाना साधा और मृतक के परिजनों को सरकार नौकरी के साथ-साथ एक करोड़ रुपए देने की माँग की।

वहीं पुलिस ने बताया कि मामले की उच्च स्तरीय जाँच की जाएगी और जो भी दोषी होंगे, उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य भाजपाध्यक्ष कन्ना लक्ष्मी नारायण ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से हस्तक्षेप करने की माँग की है। राज्य भाजपा ने कहा कि सीएम नायडू केंद्र में भाजपा सरकार को लेकर अक्सर कहते रहते हैं कि लोकतंत्र ख़तरे में है, लेकिन उन्हीं की सरकार ने एक निर्दोष किसान को मार डाला।

कालिंदी एक्सप्रेस विस्फोट स्थल पर मिला पत्र, PM मोदी की रैली में RDX से विस्फोट करने की थी योजना

बुधवार (21 फ़रवरी 2019) को कानपुर-भिवानी कालिंदी एक्सप्रेस में बम विस्फोट हुआ, जिसमें अभी तक किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं मिली। लेकिन विस्फोट की जाँच करते समय सुरक्षा एजेंसियों को जैश-ए-मोहम्मद के संचालक द्वारा लिखा गया एक पत्र मिला है।


पत्र की शुरुआत में लिखा है कि मीटिंग कर इस बारे में सभी को अवगत कराया जा चुका है। उसके बाद लिखा है कि मोदी के मंच को बम से उड़ाना है।

सुरक्षा एजेंसियों को मिले इस पत्र में RDX के प्रयोग से रैली के दौरान पीएम मोदी पर एक सुनियोजित हमला करने की साज़िश का विवरण है। इस पत्र में शताब्दी एक्सप्रेस और दिल्ली-कानपुर मार्ग पर बने एक पुल पर हमला करने के बारे में भी लिखा है।

कालिंदी एक्सप्रेस ने शाम 5:30 बजे कानपुर सेंट्रल स्टेशन से भिवानी, हरियाणा की ओर यात्रा शुरू की। ट्रेन कानपुर से 40 किमी दूर, बर्राजपुर स्टेशन पर शाम करीब 6:40 बजे पहुँची। बम धमाका सामान्य डिब्बे के टॉयलेट में हुआ। राजकीय रेलवे पुलिस ने सबसे पहले विस्फोट की जानकारी दी और बाद में आतंकवाद निरोधी दस्ते ने जाँच अपने हाथों ली।

पत्र के मुताबिक कानपुर से 30 किमी दूर, 27 फरवरी को एक पुल पर एक विस्फोट होना निर्धारित किया गया था। फिर, डेढ़ किलो RDX का उपयोग करके, कानपुर-दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस पर हमला किया जाना था। हमले से एक दिन पहले विस्फोटकों को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल पर सौंप दिया जाना था। पत्र के ऊपरी भाग पर 786 और शब्द “पैगाम” लिखा है।


पत्र के ऊपरी भाग पर 786 और शब्द “पैगाम” लिखा है

इसके बाद पत्र में आगामी पीएम मोदी की रैली का विवरण है, इस रैली के दौरान दो किलो RDX के इस्तेमाल से धमाका करने का मक़सद था। पत्र में इस बात का भी ज़िक्र है कि इन हमलों के लिए लगभग 5 करोड़ रुपये लगाए गए हैं।

पत्र के अलावा एजेंसियों को एक डायरी भी मिली है, इसमें कानपुर के मक्कड़पुर शहर के निवासियों के कई गुप्त कोड और नाम दर्ज हैं। फ़िलहाल, एजेंसियों द्वारा इन गुप्त ​​कोडों को क्रैक करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा घटना स्थल पर आधा किलो माँस से भरा बैग भी बरामद किया गया।

SSP अनंत देव तिवारी के मुताबिक, पत्र और डायरी की जाँच हो रही है और मामले को गंभीरता से लिया गया है। ट्रेन विस्फोट के गुर्गों का पता लगाने के लिए एक अलग टीम का गठन भी किया गया है। अपराधियों की धर-पकड़ के लिए जाँच एजेंसियाँ ​​सीसीटीवी कैमरों की मदद ले रही हैं।

रवीश जी गालियाँ आपके पत्रकारिता से तंग जनता का आक्रोश है, इसे भारत-माँ के नाम मत कीजिए

परम आदरणीय रवीश जी,

आज आपकी फिर बहुत जोर से याद आयी, यूँ ही नहीं, मैंने कल आपका राष्ट्र के नाम सन्देश पढ़ा तो ख़ुद को आपको याद करने से नहीं रोक पाया। आपको तो पता ही होगा कि आप एक ‘महान’ पत्रकार हैं। पर रवीश जी, आपको जो महानता हासिल हुई है क्या उसका सर्टिफिकेट आपने ख़ुद छापा या इस देश के लोगों ने आपको इतना सम्मान दिया कि आप पत्रकारिता के एक पर्याय बने? बहुतों ने आपको देखकर आपके जैसा बनना चाहा। ऐसे कई लोगों से तो मैं मिला भी हूँ। जो लोग आपके प्राइम टाइम का बेसब्री से इंतज़ार करते थे।

वो आज आपका नाम सुनते ही कंटेंट ख़ुद बताने लगते हैं कि आपने क्या लिखा होगा? आज हम उस दौर में जी रहे हैं जब ख़ुद आपको ही ये अपील करनी पड़ रही है दर्शकों से कि ‘आप टीवी से दूर रहें। हमारी तो नौकरी है, हमें तो प्राइम टाइम करना ही होगा लेकिन अब यहाँ भी आपके देखने-जानने-समझने लायक कुछ भी नहीं है।’ इसलिए अब मुझसे उम्मीदे न रखें। सोचिए ना आज-कल आपने प्राइम टाइम का क्या हाल कर दिया है। आपने तो एक तरह से हथियार ही डाल दिया कि अब हमसे पत्रकारिता नहीं हो पाएगा। अब जो कर रहा हूँ बस यही मुझमें शेष है। आपके अंदर इतना खोखलापन देखकर सच में बहुत दुःख हो रहा है रवीश जी।

ख़ैर, कल रवीश जी आपने लिखा कि लोग आपको गालियाँ दे रहे हैं। सच में यह जानकर बहुत दुःख हुआ। पर सर, क्या आपने सोचा कभी कि क्यों दे रहे हैं? ऐसा आप क्या कर रहे हैं जो आपको पत्रकारिता के सिरमौर बनाने वाले दर्शक आज आपसे ख़फ़ा हैं। क्या आपने ये भी सोचा कि कौन लोग हैं ये, जो आपको गालियाँ दे रहे हैं? आपने तो बड़ी आसानी से इनके लिए एक वर्ग चुना ‘देश भक्त’। क्या आपके हिसाब से देश भक्ति की यही परिभाषा है। क्या जो आपको गालियाँ नहीं दे रहे वो देश भक्त नहीं, कुछ और हैं?

रवीश जी, आपने गौर किया कि आप पिछले कुछ सालों से पत्रकारिता के नाम पर जो कर रहे हैं वो क्या है? पूरे देश को काला-सफ़ेद दो वर्गों में बाँटने का पराक्रम करके भी आपके हाथ कुछ नहीं लगा। आपको भी मालूम है कि इनके बीच भी कई शेड हैं। जानते हैं सर, यह वही शेड हैं, जो अब उभर कर सामने आ रहे हैं। जो पहले आपको ठीक से नहीं समझ पा रहे थे। जब वो खुल कर बोलने लगे तो आपने उन्हें ‘भक्त’ कहा, सम्मान वश नहीं बल्कि गाली के रूप में ही जबकि आपको अच्छी तरह पता है कि आप जो कर रहे हैं वह भी वही है बस आपका तारणहार अलग है या आप खुद ही भगवान बनने की लालसा में किसी का तारणहार बनने के लिए जी जान से लगे हैं?

आपने पहले इस देश के युवाओं को ललकारा कि तो थोड़ा पढ़ लिख लिया करो। यही गलती कॉन्ग्रेस ने केज़रीवाल को राजनीति के लिए ललकार कर और मोदी को गाली देकर की थी। एक ने ऐसी राजनीति की कि लोग कहते हैं इसे देखकर गिरगिट भी रंग बदलना छोड़ दिया है। और जब मोदी को ललकारा तो उन्होंने विकास को आगे कर कॉन्ग्रेस को पीछे छोड़ दिया। बहरहाल, आपकी बात जम गई युवाओं को। जब पढ़ने लगे तो उनको आपकी पत्रकारिता में झोल नज़र आने लगा सर। शुरुआत में वो ग़लती कर रहे थे तो आपने फिर उन्हें राह दिखाई कि व्हाट्सप यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि सही स्रोतों का इस्तेमाल करें।

रवीश जी आप तो गुरु हैं आपको ख़ुश होना चाहिए, आज आपके वही छात्र जैसे ही आप कुछ भी आधा-अधूरा परोसते हैं वो फटाक से पढ़-वढ़कर उसका ठीक से पोस्टमॉर्टम कर देते हैं। आपके पूरे प्रोपेगंडा की चिन्दी-चिन्दी कर उससे ‘राफ़ेल’ बनाने की कला सीख गए हैं। सर, जैसे-जैसे आपके लेखों में साल दर साल गन्दगी बढ़ती गई। आपके छात्र भी परिपक्व होते गए अब उन्हें आपके बोलने में भी काइयाँपन नज़र आने लगा, आपकी तिरछी मुस्कान में छिपी कुटिलता को भी ये भाँपने लगे और जब आप हें-हें-हें करते हैं न तो पक्का ये समझने लगे कि देश की जनता से पत्रकारिता के नाम पर कुछ बड़ा झोल अब करने वाले हैं आप।

अब सोशल मीडिया से लेकर आप अपने प्राइम टाइम पर जो भी खिचड़ी परोसते हैं, इससे पहले कि आँख मूँदकर आपके भक्त वाह-आह करें, उससे पहले ही आपके छात्र पहचानने लगे हैं कि यह खिचड़ी है किस चीज़ की। क्या-क्या और कौन सा सड़ा-गला सामान उनके गुरु ने स्वाद और सेहत का पर्याय बना कर परोस दिया है। जानते हैं सर, आपके छात्रों की मेधा से देश की आम जनता की भी आँखे खुलने लगी हैं।

पहले आप जो कुछ भी परोस देते थे, जो बेचारे उसे चुपचाप अमृत समझ खा लेते थे। रवीश जी, जानते हैं जो पहले आपका दिया सब कुछ खा लेते थे ना, वो अपना पूरा लिवर, गाल ब्लेडर डैमेज कर बैठे हैं। डॉ. ने उनसे पूछा कि पहले क्या खाते थे, जिससे दिनों-दिन आपकी सेहत गिरती गई। फिर आपके दर्शकों और पाठकों को लगा कि धोख़ा हुआ है हमारे साथ, हमारी भावनाओं और भरोसे का गला घोटा गया है। हर तरफ़ एक आक्रोश पनपने लगा।

जानते हैं रवीश जी जब कोई अपना धोखा दे ना तो ज़्यादा बुरा लगता है। परिणामस्वरुप अचानक से आपके भक्ति का ग्राफ़ गिरने लगा, आपके पूरे गिरोह की नींव डगमगाने लगी तो आप सीधे-सीधे खुलकर सामने आ गए। अब प्रोपेगंडा ही आपके लिए ख़बर हो गई। पर कम्बख़्त जब वो भी नहीं चला तो आपने अभी-अभी जागी जनता को फिर से सोने को कह दिया, पर ये सम्भव न हुआ।

रवीश जी, जिसे आप जिसे गाली कह रहे हैं वो गाली नहीं, बल्कि आपसे खीझी हुई जनता का आक्रोश है। ये आइना है आपके लिए कि आप अपना पुनः मूल्यांकन करें और जानें कि आप कौन सी गलती कर रहे हैं? आपकी अपनी भक्त जनता भी जब आपसे उकता कर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगी है तो आपने और आपके गिरोह ने ‘भक्त’ शब्द को ही गाली बना दिया और अब ‘देश भक्ति’ के पीछे पड़े हैं।

रवीश जी, आपने कहा कि आपको जो गालियाँ दी गईं, उसमें माँ-बहनों के जननांगों को केंद्रित किया गया है। दुर्भाग्य है, ऐसा नहीं होना चाहिए। मैं भी इसके सख्त ख़िलाफ़ हूँ। जनता और आपके छात्रों को अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए या तो संसदीय गालियां ईज़ाद करनी चाहिए या फिर कोई और तरीका अपनाना चाहिए। पर जानते हैं रवीश जी, मुझे जो लग रहा है, ये आम जनता है। ये आपके जितना क्रिएटिव नहीं कि ‘देश भक्ति’ को ही गाली बना दे। रवीश जी, आपके एक पुराने छात्र ने तो खुलकर ये स्वीकार किया कि ये बस आपके प्रोपेगंडा से ऊबी जनता का आक्रोश है।

आप तो विद्वान हैं रवीश जी, जानते ही होंगे कि जब हम गुस्से में होते हैं तो यूँ ही किसी को बोल देते हैं कि ‘ज़िंदा गाड़ दूँगा’, ‘आँखे निकाल लूँगा’, यहाँ तक कि खीझी माँ भी अपने बच्चे को बोल देती है कि ‘मर क्यों नहीं जाते’! इनमें से जो भी ऐसा बोलता है वो ऐसा चाहता नहीं सर और न ही करता है बल्कि वो खीझा हुआ है, तंग है, ऐसा करने का मक़सद सिर्फ़ ये जताना होता है कि कुछ तो गड़बड़ है, अन्याय पूर्ण है जो नहीं होना चाहिए।

पर सर आपने तो हद कर दी। जब आपको तारीफें मिली, प्रसिद्धि मिली, आज आप जो कुछ हैं जब वो सब मिला तो आपने कभी नहीं कहा कि ये सब ‘भारत माँ’ की वजह से है। और जब आपको आपके विचारों और पत्रकारिता के नाम पर प्रोपेगंडा से त्रस्त जनता और आपके अपने ही छात्रों का आक्रोश झेलना पड़ रहा है तो आप आज कह रहे हैं कि ये सभी गालियाँ मैं ‘भारत माँ’ को समर्पित कर रहा हूँ। क्या आप की नज़र में आज ‘भारत माँ’ यही डिज़र्व करती हैं?

दूसरे शब्दों में आज आप देश भक्तों का सहारा ले परोक्ष रूप से ही सही पत्रकारिता के नाम पर भारत माँ को गाली नहीं दे रहे?

अभी भी वक़्त है रवीश जी लौट आइए। पत्रकारिता का वो सुनहरा दौर फिर से ले आइए। जिस दिन से आप फिर से पत्रकारिता करने लगेंगे, देश की यही जनता, आपके भक्त और पुराने छात्र आपके तारीफ़ में कसीदें पढ़ते नज़र आएँगे। हमारे यहाँ तो कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। छोड़ दीजिए ना ये प्रोपेगंडा, मत कीजिए ‘देश भक्ति’ और भारत-माँ को गाली बनाने का कुत्सित प्रयास।

देश सिर्फ़ सीमाओं की घेराबंदी नहीं बल्कि वहाँ के लोगों के अंदर व्याप्त उसके प्रति प्रबल भावनाओं से बनता है, विकसित होता है। जिस दिन से आपने फिर से पत्रकारिता शुरू कर दी ना रवीश जी, ये आक्रोशित लोग जिसे आपने पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया है, जिनके आप मनोनीत गुरु हैं, यूँ अपने अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरुपयोग करना छोड़ देंगी, ये सब इस पीढ़ी ने आप ही से सीखा है। बस आपने थोड़ा नाटकीय ढंग से उसमे काइयाँपन भी मिलाकर फेंट लिया है और ये आपसे विमुख आपके भक्त, आपके पूर्व छात्र आज भी सीधे-सरल बने हुए हैं।

सधन्यवाद
पत्रकारिता के अच्छे दिनों के लिए कृतसंकल्प एक पत्रकार

गृह मंत्रालय ने लिया बड़ा फ़ैसला, CAPF बलों के जवानों को मिलेगी हवाई यात्रा की सुविधा

पुलवामा में 14 फ़रवरी को हुए आत्मघाती हमले को ध्यान में रखकर गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अर्ध सैन्य बलों के जवानों के हित में बड़ा फ़ैसला लिया है। जानकारी के अनुसार अब जवानों को हवाई जहाज़ से आने-जाने की सुविधा उपलब्ध होगी। गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) के सभी जवानों को दिल्ली से श्रीनगर व श्रीनगर से दिल्ली के अलावा जम्मू से श्रीनगर और श्रीनगर से जम्मू की हवाई यात्रा पर स्वीकृति दे दी है।

अर्ध सैन्य बलों के जवानों को मिली हवाई यात्रा से आवागमन की सुविधा

गृह मंत्रालय द्वारा उठाए गए इस सराहनीय क़दम से CAPF बलों के उन लगभग 7,80,000 जवानों को लाभ मिल सकेगा जिन्हें पहले यह सुविधा प्राप्त नहीं थी। बता दें कि इनमें कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल और एएसआई रैंक के जवान और अधिकारी शामिल हैं। इसलिए यह फैसला इन सभी जवानों को काफ़ी राहत पहुँचाने वाला है। बता दें कि गृह मंत्रालय द्वारा लिया गया यह फ़ैसला तत्काल काल से प्रभावशाली है। इसलिए अब जवानों को छुट्टी पर घर जाने और वापस ड्यूटी ज्वॉइन करने के लिए किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा।

आपको बता दें कि इससे पहले भी हमले के तुरंत बाद गृह मंत्रालय ने ऐलान किया था कि जब सेना का क़ाफ़िला किसी रास्ते से गुजर रहा होगा, तो वहाँ आम लोगों को आवाजाही की अनुमति नहीं दी जाएगी। और सेना के जवानों के क़ाफ़िले के नियमों में कई बदलाव किए गए हैं। केंद्र सरकार ने पुलवामा हमले के बाद जम्मू-कश्मीर में रह रहे अलगाववादी नेताओं को दी गई सुरक्षा भी वापस ले ली है।

‘Pak को नहीं देंगे पानी, रावी, ब्यास और सतलुज के पानी से यमुना को सींचेंगे’

केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने बड़ा ऐलान किया है। गडकरी ने कहा कि पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोक कर अब यमुना में लाया जाएगा। उन्होंने बताया कि भारत के अधिकार में जो 3 नदियाँ हैं, उनके लिए प्रोजेक्ट्स तैयार कर लिया गया है। दिल्ली-आगरा से इटावा तक जलमार्ग तैयार किया जाएगा, जिसके लिए डीपीआर (Detailed Project Report) तैयार कर लिया गया है। गडकरी ने बागपत को रिवर पोर्ट बनाने का भी ऐलान किया है। किसान अपनी फसल चक्र बदलें और चीनी मिलें गन्ने के रस से एथनॉल बनाएं, तो रोज़गार और आमदनी भी बढ़ेगी।

अभी हाल ही में हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान पर चहुँओर से शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने पाकिस्तान को दिया गया ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन‘ का दर्जा भी वापस ले लिया है। अब गडकरी के ताज़ा ऐलान के बाद पहले से ही आर्थिक परेशानी से जूझ रहे पाकिस्तान पर संकट के नए बादल मँडराने लगे हैं। भारत में नदी विकास को लेकर चल रही अन्य परियोजनाओं के बारे में चर्चा करते हुए गडकरी ने कहा:

“सड़कों के साथ-साथ जलमार्ग पर सरकार काम कर रही है। हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग दिल्ली से आगरा जलमार्ग से जा सकेंगे। इसके बाद रिवर पोर्ट भी बागपत में यमुना किनारे बनाए जाने की तैयारी है। पोर्ट से चीनी बांग्लादेश और म्यांमार तक भेजी जाएगी, इसमें ख़र्च कम होगा। प्रयागराज से वाराणसी तक जलमार्ग तैयार है, जल्द ही इसमें रिवर बोट चलेगी। एक बोट में 14 लोग बैठे सकेंगे। गंगा के साथ यमुना, हिंडन, काली समेत अन्य नदियों और नालों के पानी को नमामि गंगे योजना से साफ किया जाएगा।”

बालैनी स्थित श्रीकृष्ण इंटर कॉलेज में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने मेरठ बाईपास से हरियाणा बॉर्डर तक डबल लेन हाईवे और बागपत में यमुना के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का शिलान्यास किया। इसी मौके पर बोलते हुए गडकरी ने उक्त बातें कही।

केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी पहले भी दावा कर चुके हैं कि दिल्ली और मथुरा में यमुना की सफाई के लिए जिस गति से काम हो रहा है, उसके पूरा होने पर सवा साल के भीतर नदी का पानी पीने योग्य हो जाएगा। गडकरी गंगा नदी को साफ़ करने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं।उन्होंने कहा था कि गंगा भारत की संस्कृति एवं इतिहास का अंग है।

जिन्हें गुमान था कि वो लाइन खुद बनाते हैं, चुनाव आते ही लाइन में खड़े हो गए!

पिछले दिनों अपने बागी रवैये के कारण पार्टी के भीतर का माहौल बिगाड़ने वाले एक्टर-कम-नेता शत्रुघ्न सिन्हा सुर्खियों में रहने लगे हैं। कभी लोकतंत्र को बचाने के नाते उन्होंने पार्टी के ख़िलाफ़ जाकर ममता का हाथ थामा तो कभी ‘इंदिरा जिंदा होतीं तो आज मैं कॉन्ग्रेस में होता‘ जैसे बयान दिए। लेकिन लोकसभा चुनावों के नज़दीक आते ही उनके सुर बदलने लगे। पार्टी के ख़िलाफ़ बगावत पर उतरे शत्रुघ्न सिन्हा अब पार्टी के समर्थन में बात करते हुए फैसलों की तारीफ़ कर रहे हैं। ऐसे में उनके पिछले बयानों को और वर्तमान स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए इस बयान पर सवाल उठना बेहद लाजमी है।

बरौनी में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पटना मेट्रो की आधारशिला रखने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट किया कि बिहार को विकास की राह पर ले जाने के लिए यह एक बड़ा कदम है। शत्रुघ्न ने अपने ट्वीट में लिखा कि मेट्रो परियोजनाओं के साथ 35 करोड़ की विकास परियोजनाओं का ऐलान एक बेहद सराहनीय कदम है। इस फ़ैसले की प्रशंसा होनी चाहिए।

हालाँकि उनके द्वारा की गई तारीफ को सार्वजनिक रूप से सराहा जाना चाहिए लेकिन फिर भी इस बयान पर सवाल उठने की ज़मीन खुद शत्रुघ्न सिन्हा ने तैयार की है। बीते समय में वह लगातार बीजेपी के हर कार्य पर सवाल उठाते आए हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि वह बीजेपी के कार्य की प्रशंसा करने लगे?

शत्रुघ्न सिन्हा का लोकसभा चुनाव के नज़दीक आते पलट जाना बताता है कि उनके भीतर का एक्टर और राजनेता दोनों एक साथ जाग गया जो यह जानता है कि मौकापरस्ती क्या है। लेकिन वो भूल रहे हैं कि जिस तरह कमान से निकला तीर वापस नहीं आता है उसी तरह से एक बार मुँह से निकला बयान जनता के मन में घर कर जाता है। शायद इसलिए इस बयान के बाद बिहार के भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय ने मीडिया से हुई बातचीत में कहा कि वो सच कहने के लिए शत्रुघ्न के आभारी हैं लेकिन पार्टी में बने रहना और इस तरह यू-टर्न लेना सिन्हा को टिकट की गारंटी नहीं देता है।

जाहिर है, भाजपा के कार्यकाल में लगातार अपने बयानों से पार्टी की छवि खराब करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा अगर लोकसभा चुनाव के नज़दीक आते ही इस तरह प्रशंसा करते नज़र आएँगे तो हर किसी के मन में सवाल आएगा। आइए आपको हाल ही में कुछ ऐसे मौक़ों के बारे में बताएँ जब शत्रुघ्न बीजेपी के ख़िलाफ़ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खड़े नजर आए।

ममता की रैली में शामिल

शत्रुघ्न सिन्हा बीते कुछ समय से लगातार बीजेपी के ख़िलाफ़ जाकर बयान भी दे रहे हैं और कदम भी उठा रहे हैं। इसका सबसे हालिया उदाहरण तब का है जब ममता की रैली में शामिल होकर उन्होंने कहा, “यह रैली लोकतंत्र को बचाने के लिए आयोजित हुई है और वो इस रैली में ‘राष्ट्र मंच’ संस्था के प्रतिनिधि बनकर शामिल होंगे।” बता दें कि राष्ट्र मंच की शुरूआत भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा ने की है। अपनी इस हरकत पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता भी तो राष्ट्रीय स्वयंसंवक संघ के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। इसलिए रैली में शामिल होने से उनकी वफादारी पर सवाल न उठाए जाएँ।

लालू यादव से मुलाकातें और तेजस्वी की तारीफ़

इसके अलावा भाजपा के कट्टर विरोधी और राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ भी वो मुलाकातें करते रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा लालू के बेटे तेजस्वी के बारे में कह चुके हैं कि उन्हें तेजस्वी में भविष्य का नेता दिखाई देता है। इतना ही नहीं शत्रुघ्न सिन्हा नीतीश कुमार से भी उस दौरान लगातार मेल-जोल करते रहे थे जब वो भाजपा के विरोध में महागठबंधन में थे।

मंत्री न बनने पर बेबुनियादी इल्ज़ाम

आज पार्टी द्वारा उठाए कदम की सराहना करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा समय-समय पर प्रधानमंत्री समेत कई भाजपा नेताओं की आलोचना लगातार करते रहे हैं। उनका कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी के साथ रहने के कारण उन्हें सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया। हालाँकि उनका यह भी कहना है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।

‘राहुल गांधी में जबरदस्त सुधार’- शत्रुघ्न सिन्हा

मोदी पर लगातार तंज कसने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने विपक्ष में बैठे राहुल गांधी की तारीफों के पुल बाँधते हुए भी नजर आ चुके हैं। उन्होंने राहुल की तारीफ़ करते हुए कहा था कि बहुत कम समय में राहुल गांधी ने स्वयं में बहुत जबरदस्त सुधार किया है।

कॉन्ग्रेस का समर्थन और भाजपा पर निशाना

पाँच राज्यों में हुई बीजेपी की हार के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी पार्टी यानी बीजेपी के ख़िलाफ़ जाकर कटाक्ष करते हुए अपनी पार्टी को अहंकारी बताकर दूसरे दलों की जीत को कठोर परिश्रम का परिणाम बताया था।

केजरीवाल को बताया छोटा भाई

आम आदमी पार्टी (AAP) की ओर से आयोजित ‘तानाशाही हटाओ, लोकतंत्र बचाओ सत्याग्रह’ में बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा भी विपक्ष की रैली में शामिल हुए थे। यहाँ जनता को संबोधित करने के दौरान शत्रुघ्न ने केजरीवाल को अपना छोटा भाई बताते हुए कहा कि वह बहुत दमदार हैं। उन्होंने कहा था कि साउथ के हीरो चन्द्रबाबू नायडू और ममता दीदी के इस महागठबंधन को पूरा समर्थन वह पूरा समर्थन देते हैं। रैली में उन्होंने देश और संविधान बचाने की भी बात की थी।

अपने ही बयानों से विरोधाभास की स्थिति खड़ा करने वाले शत्रुघ्न लगातार भाजपा में तानाशाही का आरोप मढ़ते रहते हैं साथ ही यह भी कहते हैं कि जो कुछ भी हो जाए पटना साहिब से ही चुनाव लड़ेंगे। बीते दिनों शत्रुघ्न के ऐसे रवैये से नाराज़ होकर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने उन्हें पार्टी छोड़ने की नसीहत तक दे दी थी। साथ ही यह भी कहा था कि शत्रुघ्न सिन्हा एक बार कॉन्ग्रेस या राजद से टिकट लेकर चुनाव लड़ें, फिर उन्हें अपनी लोकप्रियता का भ्रम दूर हो जाएगा।

सुशील मोदी की बात पर शत्रुघ्न ने उन्हें पहचानने से साफ़ मना करते हुए कहा था कि वो सिर्फ़ एक मोदी को जानते हैं जो देश के प्रधानमंत्री हैं। इन सब बातों के अलावा भी शत्रुघ्न सिन्हा मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अनेकों बार भाजपा के ख़िलाफ़ बोलते नज़र आए हैं और रैलियों में शामिल होकर मंच पर चढ़कर विरोधियों के साथ खड़े नज़र आए हैं।

सपा-बसपा गठबंधन पर मुलायम हुए नाराज़, कहा: ‘अपने ही लोग पार्टी को खत्म कर रहे हैं’

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन पर नाराज़गी जताते हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश पर तीखा हमला बोला। गुरूवार (फरवरी 21, 2019) को मुलायम सिंह यादव ने कहा कि एक बार अगर इस गठबंधन पर वह खुद बात करते तो बात कुछ समझ में आती लेकिन अब लोग उन्हें कह रहे हैं कि लड़का (अखिलेश) इस मामले पर बात करके चला गया।

गठबंधन पर नाराज़ मुलायम ने कहा कि समाजवादी पार्टी को आज उनके ही लोग खत्म कर रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को साफ तौर पर कहा कि उत्तरप्रदेश में सपा की लड़ाई सिर्फ़ भाजपा से ही है, इस लड़ाई में कोई और तीसरा दल शामिल नहीं है।

मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अखिलेश ने बसपा के साथ गठबंधन कर लिया है, और सुनने में आया है कि सीटें आधी रह गईं हैं। उनका कहना है कि बसपा के साथ गठबंधन के कारण हमारे अपने लोग तो खत्म हो गए। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने अपने दम पर तीन बार अकेले सरकार बनाई है, लेकिन अखिलेश ने तो इस बार लड़ने से पहले ही आधी सीटें बसपा को सौंप दी।

मुलायम ने बसपा-सपा के गठबंधन को गलत ठहराते हुए कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि अखिलेश यादव ने किस आधार पर राज्य की आधी सीटें बसपा को सौंपीं हैं। साथ ही मुलायम ने कहा कि सपा अध्यक्ष सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा करने में देरी कर रहे हैं। सपा के पूर्व मुखिया ने कहा कि वह अखिलेश से ज्यादा अनुभवी हैं। ऐसे में उन्हें संरक्षक तो बनाया गया है लेकिन उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है।

बता दें कि पिछले महीने ही लंबी लड़ाई के बाद करीब 25 साल बाद एक बार फिर से सपा-बसपा ने एक साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की। 2019 के लोकसभा चुनाव पर यूपी की कुल 80 सीटों में 38-38 सीटों पर सपा-बसपा आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।

धिक्कार अशरफ़ और Caravan! 40 जवानों के शवों पर तुमने जाति का नंगा नाच किया है

झूठ, प्रोपेगंडा और मौक़ापरस्ती को आधार बना कर पत्रकारिता के सारे मानदंडों को धता बताने वाली कारवाँ पत्रिका ने अब भारतीय सेना को बदनाम करने का बीड़ा उठाया है। पुलवामा जैसे त्रासद आतंकी हमले में जाति और मज़हब को लाकर एजाज़ अशरफ़ ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर थूक दिया है। दरअसल, कारवाँ में लिखे एक लेख में अशरफ़ ने पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए 40 जवानों की जाति का जिक्र कर यह साबित करने की घिनौनी कोशिश की है कि इनमें ‘उच्च जाति’ वालों की कोई भागीदारी नहीं है। इस लेख में ऐसी दलीलें हैं जिसे पढ़ने के बाद आपको इनकी वास्तविकता पता चल जाएगी। इसने हमारे 40 वीर जवानों के शवों को अपने हथकंडे के घेरे में ले लिया है।

कारवाँ की घटिया हैडिंग और उस से भी घटिया लेख

बाकी संस्थानों को छोड़िए, यहाँ तक कि आज तक किसी ने क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों से नहीं पूछा कि वे किस जाति के हैं। सचिन तेंदुलकर का बल्ला बोलता था, उनकी जाति नहीं। हरभजन सिंह की कलाइयों में जादू था, उनके धर्म में नहीं। मोहम्मद कैफ़ की फील्डिंग में ताक़त थी, वह धर्म के बल पर टीम में नहीं आए थे, धोनी विकेट के पीछे अपनी चपलता के कारण जाने जाते हैं, अपनी जाति की वजह से नहीं। इन सभी के करोड़ों फैंस हैं- आम आदमी इनकी योग्यता देखता है, जाति नहीं।

नीचता की भी हद होती है

स्वयं को स्वतंत्र मीडिया का ठेकेदार मानने वाले इन संस्थानों ने आज तक इसी बात का फ़ायदा उठाया है कि इनसे सवाल नहीं पूछे जाते थे। अब सोशल मीडिया और आधुनिकता के युग में जब परत दर परत इनकी पोल खुलती जा रही है, ये और भी नीचे गिरती जा रहे हैं। रीडरशिप और सब्सक्रिप्शन के इस दौर में ख़ुद का वजूद बचाने के लिए इन्होने लाशों पर प्रोपेगंडा का नंगा नाच करने की ठान ली है। यहाँ हम कारवाँ के लेख में कही गई बेतुकी और बेढंगी बातों का जिक्र करने के साथ ही आपके सामने उनकी असली सच्चाई लाएँगे ताकि भविष्य में आप भी ऐसे ज़हरीले कीड़ों से सावधान रहें।

सबसे पहले इस लेख के हैडिंग की बात करते हैं। इसने टाइटल में ही अपना एजेंडा साफ़ ज़ाहिर कर दिया है। इसने लिखा- ‘पुलवामा में मारे गए जवानों में हिंदुत्व राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले शहरी उच्च-जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।’ कारवाँ क्या यह परिभाषित करेगा कि हिंदुत्व क्या है? राष्ट्रवाद क्या है? और अव्वल तो यह कि ये हिंदुत्व राष्ट्रवाद क्या है? और हाँ, कारवाँ के पास इस बात के क्या सबूत हैं कि जिस कथित हिंदुत्व राष्ट्रवाद की बात वह कर रहा है, उसके कर्ता-धर्ता शहरी उच्च जाति के लोग हैं? ना आँकड़ा और ना कोई सबूत, सीधा घटिया सा एक निष्कर्ष। कभी किसी गाँव के महावीरी झंडे वाले मेले में जाओ, तुम्हे भगवा ध्वज थामे दलित और पिछड़ी जाति के लोग ही दिखाई पड़ेंगे। क्या इसी को तुम हिंदुत्व कह कर इसे डरावने रूप में पेश करने की कोशिश करते हो?

लेख की शुरुआत होते-होते यह नैरेटिव और ज़हरीला हो जाता है। जैसे-जैसे लेख आगे बढ़ता है, कथित हिंदुत्व राष्ट्रवाद का सारा दोष शहरी उच्च-जाति की बजाय शहरी मध्यम वर्ग के चरित्र-हनन पर उतर आते हैं और फिर बिना आँकड़ों व सबूत के दावा ठोकते हैं कि उच्च-जाति में अधिकतर शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। ऐसा किस जनगणना में लिखा है? जब मध्यम वर्ग द्वारा झेली जा रही परेशानियों की बात होनी चाहिए, उनकी समस्याओं पर बात होने चाहिए, उनके लिए सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं पर बात होनी चाहिए तब कारवाँ के अशरफ़ उनके चरित्र-हनन में मशग़ूल हैं।

मौलाना अशरफ़ साहब, जब कोई युवा सेना में भर्ती होने के लिए जाता है तो उसकी जाति नहीं देखी जाती। देखा जाता है तो उनका शारीरिक गठन, उनका हौसला और देखी जाती है उनकी योग्यता। वो सब के सब भारतीय होते हैं। अगर कोई पिछड़ी जाति से आता है तो उसे नियमानुसार कई सुरक्षा बलों में कुछ राहत ही मिलती है, दिक्कतें नहीं आतीं। इससे उसे फ़ायदा ही होता है, नुक़सान नहीं। जाति नेताओं और पत्रकारों की खोजिए, सेना के जवानों की नहीं। आप अपना हथकंडा राजनीति और मीडिया तक सीमित रखिए, इसे देश की सुरक्षा व्यवस्था में मत घुसाइए। सेना के जवान अपने जज़्बे, साहस और देशप्रेम के लिए लड़ते हैं, जाति-धर्म के लिए नहीं। वे मातृभूमि की सुरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त होते हैं। वे किसी आम नागरिक की रक्षा करते समय उससे उसकी जाति नहीं पूछते।

जरा उन जवानों की जगह स्वयं को रख कर देखिए

अशरफ़ और कारवाँ ने इन जवानों की जाति का पता लगाने के लिए जिस नीचता का परिचय दिया, उसे जान कर आप कारवाँ मैगज़ीन के पन्नों का टॉयलेट पेपर की तरह प्रयोग करने से भी हिचकेंगे। जैसा कि उसने बेशर्मीपूर्वक अपने लेख में ही बताया है, उसने वीरगति को प्राप्त जवानों की जाति जानने के लिए उनके परिजनों को कॉल किया। यह मानवीय नैतिकता को तार-तार करने वाला आचरण है। इसे अशरफ़ को समझना पड़ेगा। कल यदि ख़ुदा-न-ख़ास्ता अगर अशरफ की ही मृत्यु हो जाए और खुदा न करे उनकी विधवा, बच्चों व माता-पिता से मृत अशरफ़ की जाति पूछने के लिए फोन पर फोन आने लगे, तो परिजनों पर कैसा असर पड़ेगा?

अरे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर टांग उठा के पेशाब करने वालों, बजाय इसके कि तुम वीरगति को प्राप्त जवानों की आवाज सरकार तक पहुँचाओ, तुम उन्हें परेशान करने में लगे हो? बजाय इसके कि तुम उन जवानों के परिजनों को सरकारी सहायताएँ दिलाने में मदद करो, तुम उनकी पीड़ा को बढ़ाने का कार्य कर रहे हो? हद है असंवेदनशीलता की। अगर ऐसे पत्रकारों की चले तो ये लोग किसी भी मृतक के श्राद्धकर्म में सम्मिलित होकर शोक-संतप्त परिजनों का दुःख बाँटने की बजाय फोन कर के जाति पूछने लगें। मान लीजिए कि खुदा न करे अशरफ़ की मृत्यु के बाद अगर उनकी जैसी ही गन्दी मानसिकता वाले पत्रकार और मीडिया संस्थान उनकी विधवा से फोन पर ये पूछने लग जाएँ कि वह शिया हैं या सुन्नी, पठान हैं या सैयद या क़ुरैशी- तो उन पर क्या असर पड़ेगा?

अभी पत्रकारों को बलिदान हुए जवानों के बारे में जनता को बताना चाहिए ताकि पूरा देश उनकी वीरता और बलिदान के बारे में जान सके। अभी पत्रकारों का धर्म होना चाहिए उन जवानों के परिजनों को ढांढस बँधाना ताकि उन्हें ऐसा महसूस हो कि दुःख की इस घड़ी में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। लेकिन अशरफ़ जैसे पत्रकार और कारवाँ जैसे मीडिया संस्थान कर क्या रहे हैं? वो मृतकों के परिजनों से हुतात्मा की जाति पूछ रहे हैं। संवेदनाएँ मर गई हैं क्योंकि इनके मन में जवानों के बलिदान के प्रति कोई सम्मान नहीं है।

जिनके ख़ुद के घर काँच के हों…

भारत में क़रीब 15% मुस्लिम हैं। क्या अशरफ बताएँगे कि उनके संस्थान कारवाँ में लोगों को जाति एवं धर्म के आधार पर कितनी हिस्सेदारी मिलती है? भारत में सैकड़ों जातियों और कई धर्मों के लोग रहते हैं। क्या कारवाँ में उन सबका उचित प्रतिनिधित्व है? संस्थान ने कितने पारसियों को नौकरी पर रखा है? वहाँ जैन और बौद्ध पत्रकारों के प्रतिनिधित्व का आँकड़ा क्या है? अगर ऐसा नहीं है, तो सबसे पहले अपना घर दुरुस्त कीजिए और फिर दूसरों को सलाह दीजिए। और अगर जाति-धर्म ही हर संस्थान का मापदंड होगा तो ऐसा संस्थान आपको ही मुबारक हो। सुरक्षा बल भारतीय होते हैं, भारतियों की रक्षा के लिए लड़ते हैं और भारतीय अस्मिता की लाज रखते हैं।

तुम्हें तो यह पता करना चाहिए था कि वीरगति को प्राप्त जवानों के बच्चों को पढ़ाने के लिए परिजनों के पास धन है या नहीं। तुम्हे पता लगाना चाहिए था कि जिन माँ-बाप ने अपनी इकलौती संतान को खो दिया, उनकी ज़िंदगी का कोई अन्य सहारा है या नहीं। तुमने लिखा है कि जवानों के परिजनों को डर है कि उनके बलिदान को लोग भुला देंगे। उनका यह डर वाज़िब है लेकिन उनकी इस संवेदना के साथ तुमने जो प्रीफिक्स लगाया है वह निंदनीय है। “While the fervour of nationalism grips the country” जैसा गन्दा प्रीफिक्स लगा कर तुमने परिजनों के बयानों को मैनिपुलेट किया है, उसके साथ छेड़-छाड़ कर उसमे अपना हथकंडा घुसाया है।

इस लेख में तुम्हारे कथित दलित विशेषज्ञ ने कहा है कि CRPF में आरक्षण है, इसीलिए वीरगति को प्राप्त जवानों में अधिकतर दलित हैं। अगर किसी संस्थान में आरक्षण नहीं हो तो तुम्हारा वही कथित दलित विशेषज्ञ यह बोल रहा होगा कि वहाँ दलितों को नहीं लिया जाता क्योंकि सरकार को उनकी योग्यता पर संदेह है। ऐसे ही देश की सुरक्षा व्यवस्था चलेगी क्या? चित भी कारवाँ की और पट भी कारवाँ की। तुम्हारा ये असंवेदनशील, नीच और घटिया खेल तुम्हे मुबारक।

और हाँ, पुलवामा हमले को लेकर केवल शहरी मध्यम वर्ग ही आक्रोशित नहीं है, पूरा देश आक्रोशित है। कभी गाँवों में जाकर कम से कम वहाँ की किसी चौपाल पर 10 मिनट बैठ कर देखो, ज़मींदार, किसान और मजदूर- सभी एक सुर में आतंकियों की निंदा करते हुए दिखेंगे। कभी किसी कस्बे में जा कर देखों। तुम्हें एक सब्जी वाला उँगलियों पर गिनाता मिल जाएगा कि वीरगति को प्राप्त जवानों में किस राज्य से कितने थे। कभी किसी खेत-खलिहान में जा कर देखो, तुम्हे खर-पतवार इकठ्ठा करती महिलाएँ पाकिस्तान की निंदा करती मिलेंगी। लेकिन नहीं, तुमने अपने AC कमरे में बैठ कर जवानों के परिजनों से बेढंगे सवाल पूछने हैं क्योंकि तुम्हे अपना प्रोपेगंडा चलाना है

और अंत में, तुम्हे आइना दिखाने के लिए रामधारी सिंह दिनकर की यह कालजयी पंक्तियाँ:

“तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके,
पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींचकर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।”

और दिनकर की ये पंक्तियाँ जो भारतीय सुरक्षाबलों पर आज भी फिट बैठती है, ख़ासकर तब, जब कारवाँ जैसे संस्थान अपना घटिया रंग दिखा कर वीरगति को प्राप्त जवानों से उनकी जाति पूछते हैं:

“मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।”

‘कॉन्ग्रेस को मना-मनाकर थक गए हैं, लेकिन वो AAP से गठबंधन के लिए तैयार नहीं’: अरविन्द केजरीवाल

एक समय कॉन्ग्रेस के ख़िलाफ़ जनता को रोजाना अपने साथ धरने पर बिठाकर अपने राजनीतिक करियर की बुनियाद रखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल आजकल कॉन्ग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने के लिए दिन-रात प्रयास कर रहे हैं। मीडिया में रोजाना आ रहे उनके बयानों से स्पष्ट है कि भाजपा को लोकसभा चुनावों में हराने के लिए अरविन्द केजरीवाल किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।

लोकसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस के गठबंधन की चर्चा पर अब खुद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने विराम लगा दिया है। बुधवार (फरवरी 20, 2019) को केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की सातों सीटों पर बीजेपी को हराने के लिए आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कॉन्ग्रेस  को गठबंधन के लिए मनाने की खूब कोशिशें कीं लेकिन कॉन्ग्रेस नहीं मानी। अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी के हर कैंडिडेट के ख़िलाफ़ एक प्रत्याशी होना चाहिए और वोटों का बँटवारा नहीं होना चाहिए।

जामा मस्जिद के पास आयोजित रैली को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा, “हम गठबंधन के लिए कॉन्ग्रेस को मना-मनाकर थक गए हैं, लेकिन वह नहीं समझ रही। अगर गठबंधन होता है तो बीजेपी सातों लोकसभा सीटों पर हार सकती है।” अपने भाषण में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यह भी कहा कि जिनके अंदर भी देश के लिए अच्छी भावना है, उन्हें चाहिए कि वह 2019 चुनाव में भाजपा को हराए।

केजरीवाल की यह रैली चाँदनी चौक इलाके के अल्पसंख्यक बहुल इलाके में आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता कि कॉन्ग्रेस के दिमाग में क्या चल रहा है। कॉन्ग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा को कमजोर करने गई है और दिल्ली में बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ रही AAP को कमजोर करने का काम कर रही है।” ज्ञात हो कि फरवरी की शुरुआत में केजरीवाल ने मीडिया को बताया था कि कॉन्ग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए AAP के साथ गठबंधन की संभावना को लगभग खत्म कर दिया है।

SC ने पुलवामा हमले के बाद कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा वाली जनहित याचिका स्वीकार की

पुलवामा हमले के बाद देश भर में कश्मीरी छात्रों पर कथित तौर पर हो रहे हमलों के ख़िलाफ़ एक वकील द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए देश की शीर्ष अदालत सहमत हो गई है।

CJI रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस की याचिका पर संज्ञान लिया और कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा से संबंधित मामले में तत्काल सुनवाई की माँग की। अदालत इस याचिका पर कल (22 फ़रवरी 2019) को सुनवाई करेगी।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश भर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में कश्मीर घाटी के छात्रों के साथ मारपीट की जा रही है। याचिका में इस तरह के हमले रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों द्वारा कार्रवाई की माँग की गई है।

पुलवामा में 14 फ़रवरी को CRPF के क़ाफ़िले पर हुए भीषण हमले के बाद देश भर के लोगों के मन में इसको लेकर गहरा दुख और क्षोभ है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो आतंकी हमले का जश्न मनाने में व्यस्त थे। कई सोशल मीडिया यूज़र के साथ जश्न मना रहे लोगों के सहयोगियों ने भी शिकायतें कीं, कई छात्रों और कर्मचारियों को उनके देश विरोधी पोस्ट के लिए निलंबित और गिरफ़्तार भी किया गया।

पुलवामा हमले के बाद कश्मीरी छात्रों पर हमले जैसी घटनाओं पर पुलिस द्वारा स्ष्टीकरण दिया जा चुका है कि ऐसी कोई घटना नहीं हो रही है, बावजूद इसके पूरे भारत में कश्मीरी छात्रों पर हमले जैसी अफ़वाहें प्रचारित और प्रसारित हो रही हैं। बेवजह ही ऐसी अफ़वाहों को हवा दी जा रही है जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।

इसके अलावा यह भी ग़ौर करने वाली बात है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 1989-90 के दौरान हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार में जाँच और बाद में मुक़दमा चलाने की माँग को ख़ारिज कर दिया था।