Monday, October 7, 2024
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गुजरात न्यूज़ एडिटर महोदय, बलिदान की संवेदना पर व्यक्तिगत घृणा थोप कर रात में कैसे सो पाते हैं आप?

श्रीमान श्रेयांश शांतिलाल शाह,

मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय अहमदाबाद में बिताया है। मैं आपके अख़बार को पढ़कर बड़ी हुई हूँ। मुझे याद है कि जब दिव्य भास्कर ने अहमदाबाद में डेब्यू किया था, तो गुजरात के लोगों का आपके अख़बार के प्रति निष्ठा का भाव ऐसा था कि नए अख़बार के साथ-साथ लोग गुजरात समचार को भी ख़रीदते थे।

गुजरात के लोग ये जानते हैं कि आपके नेतृत्व में प्रकाशित होने वाले अख़बार हमेशा सरकार विरोधी और प्रतिष्ठान विरोधी रुख़ अपनाता रहा है। यही वजह है कि बतौर संपादक आप तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज के ख़िलाफ़ लिखते रहे हैं।

2002 के दंगों के दौरान आपका ये रवैया और स्पष्ट हो गया जब आपने एक ज़िम्मेदार प्रकाशन की भूमिका निभाने की बजाए आपने अपने सरकार विरोधी आचरण को और बढ़ा दिया। आपने अख़बार में भड़काऊ सामग्री प्रकाशित की। प्रेस काउंसिल ने एक और गुजराती दैनिक संध्या में आपके और आपके मित्र से कुछ रिपोर्टों में पत्रकारीय आचरण के मानदंडों के उल्लंघन के संबंध में जवाब माँगा गया था।

ज़ाहिर तौर पर, जाँच समिति के सदस्यों को आपके इस व्यवहार से दु:ख हुआ क्योंकि अभिमानी और ज़रूरत से ज़्यादा जिद्दी होने के नाते आपने जाँच समिति के छह में से पाँच नोटिस का जवाब तक नहीं दिया। आपने इस संवेदनशील समय में सनसनीखेज़ रिपोर्ट को अख़बार के पन्नों पर छापना जारी रखा। आपने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आप जिस व्यक्ति को पसंद नहीं करते थे वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा था।

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बरसों बाद वही मुख्यमंत्री अब देश के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन आपके इस व्यवहार को देखने के बाद मुझे अहसास हुआ है कि घृणा प्यार की तुलना में अधिक प्राकृतिक मानवीय भावना है। इसलिए, जब एक ऐसे आतंकवादी जिसे लगता है कि गौमूत्र पीने वाले को मारकर उसे जन्नत मिलेगी और वो आतंकी सीआरपीएफ के 44 जवानों को मार देता है, तो इस दर्दनाक घटना के तुरंत बाद आपकी प्रवृत्ति सदमे और डर की नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के मजाक उड़ाने की होती है।

हमले के एक दिन बाद 15 फ़रवरी को, आपके अख़बार की हेडलाइन कुछ इस तरह थी, “56नी छत्तीनी कैवर्त: एतंकियॉ बेफाम, 44 जवान शहीद, आपके अख़बार के इस हेडलाइन का अनुवाद इस तरह है “56 इंच के सीने की कायरता, आतंकवादियों को खुली छूट मिलती है: 44 जवान शहीद।”

आपके अख़बार की सबहेडिंग कुछ इस तरह दी गई, ‘जेड प्लस सिक्योरिटी वाचा फर्ता वडप्रधान देश सुरक्षा कर्ता जवना माटे लचार’, यदि आपके अख़बार की हेडलाइन का अनुवाद करें तो यह इस तरह है कि प्रधानमंत्री जो जेड प्लस सुरक्षा के बीच कहीं जाते हैं, जब जवानों की सुरक्षा की बात आती है वो असहाय नज़र आने लगते हैं।

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हेडलाइन में लिखा है, “पुलवामा हमला: देश नी जनता सरकार, पुछे छे, कैसा है जोश?” का मोटे तौर पर अनुवाद इस तरह है कि, ‘पुलवामा हमला: नागरिक सरकार से पूछते हैं,’ कैसा है जोश?’ फ़िल्म उरी का संबंध भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक से था, जिसमें उरी हमलों का बदला लेने के लिए भारतीय फौज ने अपनी जान की बाजी लगाकर बार्डर पार दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। लेकिन आपने उसका इस्तेमाल अपने लेख में सरकार पर हमला करने के उद्देश्य से किया। आपने अख़बार के लेख में कुछ इस तरह लिखा है कि जनता आतंकी हमले के बाद सरकार से उरी फ़िल्म के इस डॉयलॉग के ज़रिए सवाल पूछ रही है।

लेकिन आप ग़लत हैं। वाक्यांश ‘जोश कैसा है’ का उपयोग नागरिकों द्वारा सरकार से सवाल पूछने के लिए नहीं किया गया है, लेकिन हमले के बाद इसका उपयोग वास्तव में ज़िहादियों द्वारा पुलवामा हमले का जश्न मनाने के लिए ज़रूर किया गया है। हाँ, यह बात अलग है कि कई बार आतंकियों से सहानुभूति रखने वाले कुछ मध्यस्थ और कुछ मीडिया कर्मी ऐसे मौक़े पर इस तरह के सवाल का इस्तेमाल करते हैं। अरे हाँ, यहाँ मेरे कहने का मतलब संपादक महोदय सिर्फ़आपसे नहीं है।

साहब, आप बहादुरों के बलिदान का शोक नहीं मना रहे हैं। लेकिन हाँ, आप इन 44 जवानों के जीवन को बचाने में मोदी सरकार के ‘विफल’ होने पर आप ज़रूर शोक जरूर मना रहे हैं। मुझे मालूम है कि उन सैनिकों की भयावह शव को देखकर आपकी आंखें नम भी नहीं हुई होंगी। लेकिन हाँ जवानों की मौत पर आपके चेहरे पर एक मुस्कुराहट ज़रूर दिख रही है।

मुझे इस बात पर आश्चर्य होता है कि आपके अंदर इतनी नफ़रत कहाँ से आती है? आपको घमंड किस बात का है? यही कि आपके पास क़लम की ताक़त है?

संपादक महोदय आप देखिए कि लोग अब सोशल मीडिया पर अपनी बात रख रहे हैं। आपको यह मानना होगा कि सोशल मीडिया के आने से लोगों को पारम्परिक मीडिया के असली चेहरा का पता चल गया है। सोशल मीडिया के आने से लोगों ने मुख्यधारा की मीडिया पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया के आने से राष्ट्रीय मीडिया या तो तथ्यों को सही करने की कोशिश कर रहा है या उन्होंने उन सभी का उल्लेख करना शुरू कर दिया है जो उन्हें सही करते हैं। संपादक महोदय आप देखते रहिए वह समय बहुत दूर नहीं है जब लोग क्षेत्रीय समाचार पत्रों से भी आगे निकल जाएँगे और उनसे उनकी नैतिकता और बुनियादी पत्रकारिता की आचार संहिता पर सवाल करेंगे।

यदि आप आज इंटरनेट पर आकर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि लोगों को आपसे कितनी सारी शिक़यतें हैं। यदि आप यह सोच रहे हैं कि यह सभी लोग मोदी भक्त हैं तो आप ग़लत हैं, क्योंकि वे सभी मोदी भक्त नहीं बल्कि एक सभ्य इंसान हैं। यह सभी लोग हैरान हैं कि एक संपादक होने के नाते आपके अंदर भावना के रूप में सहानुभूति की कमी है। सच तो यह है कि आपसे शिक़ायत किसी और को नहीं बल्कि आपके अख़बार के नियमित पाठकों, देश के नौजवान छात्रों और पेशेवर लोगों को है। यक़ीन मानिए आपने आज उन्हें निराश कर दिया।

संपादक महोदय, मैं यह जानना चाहती हूँ कि आप ख़ुद के साथ कैसे न्याय करते हैं, यह जानते हुए कि आपने एक व्यक्ति की आलोचना को जवान के शवों से ज़्यादा अहमियत दे दी। ऐसा लिखने पर क्या आपकी अंतरात्मा आपको झकझोरती नहीं है? या फिर आप अंदर से ही इतने मर चुके हैं कि अब आपके पास कोई भावना शेष ही नहीं बची?

आतंकी आदिल के पिता का कुतर्क कहाँ तक उचित है?

जैश-ए-मोहम्मद का साथ पाकर आदिल अहमद दार नामक आतंकवादी ने महज़ 22 साल की उम्र में पुलवामा जैसे भयानक हमले को अंजाम दिया। इस हमले के बाद भारतीय सेना के 42 जवान बिन किसी गलती के जान गवा बैठे। साथ ही, आदिल के भी परखच्चे उड़ गए, निशान के नाम पर सिर्फ़ उसका हाथ बचा।

इस मामले पर जब समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आतंकी आदिल के पिता गुलाम हसन दर से बात की तो उन्होंने अपने बेटे के गुनाहों पर पर्दा डालते हुए कुतर्क दिया। उनका कहना था कि साल 2016 में स्कूल से लौटते समय सुरक्षाबल ने आदिल के साथ और उसके दोस्त के साथ कथित तौर पर बद्तमीजी की थी, जिसके बाद से उसने आतंकी संगठन से जुड़ने का मन बना लिया था।

गौरतलब है कि आदिल पर और उसके साथी पर आरोप था कि वे सुरक्षाबल पर हुई पत्थरबाजी में शामिल थे। ऐसे में आदिल के पिता का सार्वजनिक रूप से ऐसा घटिया तर्क देना क्या आतंकवाद को स्थानीय युवकों में और बढ़ावा देना नहीं है?

एक आतंकी के पिता का इस तरह का बयान क्या उस संवेदनशील इलाक़े के नौजवानों को उकसाने के लिए काफ़ी नहीं है, कि वो सुरक्षाबल की सख्ती को आतंकवाद की ओर जाने का आधार मान लें? इस बयान को आधार मानकर अगर कल कोई नवयुवक यही घटना दोहराता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी?

सुरक्षाबल का कर्म ही देश की रक्षा करना है, अब इस रास्ते पर उन्हें कई बार सख्त भी होना पड़ता है। ऐसें में मान लें कि हर स्थानीय नागरिक को अपने पूछताछ से नाराज़ होकर मसूद अज़हर जैसे लोगों के संगठन से जुड़ जाना चाहिए?

जाहिर है राष्ट्र के प्रति इमानदार व्यक्ति ऐसा बिलकुल नहीं करेगा, क्योंकि उसे मालूम है सुरक्षाबल द्वारा की जाने वाली पूछताछ सिर्फ़ देश में सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिहाज़ से की जाती है। अब इस पूछताछ को हम देशहित समझे या देशद्रोह यह हमपर निर्भर करता है।

आदिल के पिता ने अपनी बात में न केवल अपने बेटे के बचाव में तर्क दिया बल्क़ि यह भी कहा कि जो दर्द आज जवानों के घर वाले महसूस कर रहे हैं, उसे कभी हमने भी महसूस किया था।

क्या अकारण वीरगति को प्राप्त हुए सेना के जवान और आतंकी मनसूबों के साथ मरने वाले आतंकवादियों में कोई फर्क ही नहीं रह गया है? अपने दुख को इन जवानों के घर वालों के दुख के समान बताकर किस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, कि एक बार फ़िर से अफ़जल गुरु वाला रोना शुरू हो?

सुरक्षाबल के रोके जाने की वजह से आदिल ने आतंकी संगठन को ज्वॉइन कर लिया। यह उसकी नाराज़गी नहीं थी, ये बीमारी थी जो उसे अपने आस-पास पनप रहे वातावरण से मिली थी। ऐसे लोग कल को माँ-बाप से नाराज़ होकर ही अगर आतंकवादी बनने लग जाएँ, तो
शायद ही हैरानी की बात होगी।

अपने बेटे की इस मानसिकता को उसके आतंकी होने का आधार बताना क्या माँ-बाप की परवरिश पर सवाल नहीं उठाता है? क्या उनका फर्ज़ नहीं होता कि बच्चे को गलत दिशा में जाने से रोका जाए। आतंकी आदिल के पिता को यह मालूम है कि वो नाराज़ था और संगठन से जुड़ने की सोच रहा था, लेकिन फिर भी न वो लोग उसे समझा पाए और न रोक पाए। या तो ऐसे माँ-बाप पब्लिक में यही स्वीकार लें कि वो भी भारतीय राष्ट्र के ख़िलाफ़ छेड़े जा रहे आंतरिक युद्ध का हिस्सा हैं, या फिर ऐसी दलीलें तो न दें जिसे आधार बनाकर उनके पड़ोसी का बच्चा भी शरीर पर बम बाँधकर सेना के जवानों की हत्या कर दे।

ऐसे बयान देकर आदिल के पिता सार्वजनिक स्तर पर सुरक्षाबल को वजह बताकर न केवल सेना को टारगेट कर रहे हैं बल्कि हर उस बच्चे को ‘आतंकवाद-एक विकल्प’ बता रहें हैं जो सीमा पर पल-बढ़ रहा है और हालातों के चलते सुरक्षाबल से नाराज़ है।

खुद से सवाल करिए, क्या हम एक आतंकी के माता-पिता द्वारा पेश किए गए कुतर्कों पर ध्यान भी देकर एक हिंसक विचारधारा के समर्थन में तो खड़े नहीं हो रहे? क्योंकि जिस समय उसे कॉलेज में जाकर शिक्षा लेकर, अपने उसी माँ-बाप के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए थी, वो बम-बन्दूक चलाना सीख रहा था। क्या कोई समझदार माँ-बाप अपने बच्चों को ऐसा करने देता है जहाँ वो खुद को ऐसे खतरे में डाल रहा हो? शायद नहीं।

भगोड़े माल्या ने प्रत्यर्पण आदेश के ख़िलाफ़ अपील दायर करने की माँगी अनुमति

आर्थिक अपराधी घोषित भगोड़े विजय माल्या ने ब्रिटेन की हाईकोर्ट में आवेदन कर ब्रिटेन के गृह मंत्री द्वारा दिए गए प्रत्यर्पण आदेश के ख़िलाफ़ अपील करने की अनुमति माँगी है। ब्रिटेन के गृह मंत्री साज़िद जाविद ने माल्या के ख़िलाफ़ प्रत्यर्पण आदेश दिया था साथ ही अपील के लिए 14 दिन का समय दिया था। ख़बरों के अनुसार माल्या ने प्रत्यर्पण आदेश पर हस्ताक्षर होने के 10 दिन बाद गुरुवार (14 फ़रवरी 2019) को हाईकोर्ट के प्रशासनिक कोर्ट विभाग में आवेदन किया।

ब्रिटेन कोर्ट के प्रतिनिधि ने बताया कि माल्या की याचिका जज के पास भेजी गई है। इस पर जवाब आने में क़रीब 2 से 4 सप्ताह का समय लग सकता है। अगर माल्या की अर्ज़ी स्वीकार कर ली गई तो अगले कुछ महीनों में मामले की सुनवाई को आगे बढ़ा दिया जाएगा।

दूसरे केस में अगर माल्या की अर्ज़ी ख़ारिज हो जाती है तो उसके पास रिन्यूवल फॉर्म दाखिल करने का विकल्प उपलब्ध रहेगा। बता दें कि माल्या पर क़रीब 9000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप है। माल्या 2016 से ब्रिटेन में है और 2017 से स्कॉटलैंड यार्ड द्वारा जारी प्रत्यर्पण वारंट पर ज़मानत पर है।

सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले माल्या ने अपनी अपील पर कोई नए सिरे से टिप्पणी नहीं की। हालाँकि, इससे पहले गृह सचिव ने 4 फरवरी को माल्या के प्रत्यर्पण के पक्ष में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत के आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा दिसंबर 10, 2018 को निर्णय दिए जाने के बाद, माल्या ने अपील करने का इरादा ज़ाहिर किया था।

आपको बता दें कि इस प्रक्रिया के दौरान 30 मिनट की मौखिक सुनवाई होगी जिसमें माल्या के वकील और भारत सरकार की ओर से वाद लड़ रही क्राउन प्रोसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) अपील के ख़िलाफ़ और पक्ष में अपने दावों को नए सिरे से रखेगी ताकि जज यह फ़ैसला ले सकें कि इस मामले में पूरी सुनवाई की जा सकती है या नहीं।

बता दें कि यह प्रक्रिया लंदन में रॉयल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में होगी। इस प्रक्रिया में कई महीने भी लग सकते हैं क्योंकि मामले का अदालत की कार्रवाई के लिए सूचीबद्ध होना जजों की उपलब्धता और अन्य कारकों पर निर्भर करता है। हाईकोर्ट के स्तर पर फ़ैसला आने के बाद दोनों पक्षों के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का हक़ होगा। ब्रिटेन में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की प्रक्रिया थोड़ी और कठिन है।

पाकिस्तान के पूर्व गृहमंत्री का भारत पर आरोप: RAW ने करवाया पुलवामा आतंकी हमला

पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान अपनी ग़लती को स्वीकारने की जगह इसका सीधा आरोप भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी ‘RAW (Rsearch and Analysis Wing)’ पर लगा रहा है। पाकिस्तान के पूर्व गृह मंत्री एवं पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी के नेता रहमान मलिक ने यह आरोप एक प्रेस वार्ता के दौरान लगाया।

मलिक का आरोप है कि अंतराष्ट्रीय न्यायालय में लंबित कुलभूषण जाधव के मसले से ध्यान हटाने के लिए भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ ने ख़ुद ही हमले कराए हैं।

पाकिस्तानी अख़बार ‘द डॉन’ के अनुसार शुक्रवार (फरवरी 15, 2019) को एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए रहमान ने इस बयान को दिया है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से ही तमाम झूठे मामलों का आरोप पाकिस्तान पर लगाता आया है। पाकिस्तान को अकेला करने के लिए भारत हमेशा से कोई न कोई साज़िश रचता रहता है।

ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान की सरज़मीं पर पाल-पोसकर बढ़ाए जा रहे जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा में हुए आतंकी हमले की पूरी ज़िम्मेदारी ली है। इस पूरी साज़िश को अंजाम देने वाले फिदायीन हमलावार का वीडियो भी सोशल मीडिया पर डाला गया। जिसमें वो हमले के बारे में बात करते हुए नज़र आया। इतने सबूत होने के बावजूद भी पाकिस्तान अपनी ओछी बयानबाज़ी से बाज नहीं आ रहा है।

फैक्ट चेक: NDTV, कॉन्ग्रेस IT सेल की प्रमुख ने ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ के बारे में फ़र्ज़ी ख़बर फैलाई

भारत की सबसे तेज़ रफ़्तार ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ की सफलता को ख़ारिज करने के लिए फर्जी ख़बरों का सहारा लेते हुए इसके बारे में झूठ फैलाने की कोशिश की गई। अभिनेता से नेता बनी दिव्या स्पंदना ने इसे लेकर न केवल नकली ख़बरों को गढ़ा, बल्कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर भी असंवेदनशील बयानों को फै़लाने की कोशिश की।

कॉन्ग्रेस आईटी सेल की प्रमुख और कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की करीबी सहयोगी दिव्या स्पंदना ने अपने ट्वीट में कहा कि भारत की सबसे तेज़ गति से चलने वाली ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ एक मवेशी के आगे आने से बीच में रुक गई। उन्होंने ट्रेन के बारे में फर्ज़ी ख़बरों को फैलाने की कोशिश की।

यही नहीं दिव्या ने अपने पोस्ट के माध्यम से न केवल फ़र्ज़ी ख़बरों के प्रचार का सहारा लिया, बल्कि रेल मंत्री पीयूष गोयल को राजनीतिक रूप से निशाना बनाने और उन्हें ट्रोल करने के लिए भी कोशिश की।

बता दें कि ट्रेन-18, जिसे आधिकारिक तौर पर ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ नाम दिया गया है, उसको कुछ यात्रियों के साथ ट्रायल के तौर पर वाराणसी से दिल्ली के बीच चलाया गया था। ट्रेन जब दिल्ली लौट रही थी, तो दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर टुंडला के पास एक मवेशी के चपेट में आ जाने के कारण ट्रेन को रोका गया था।

चूंकि मवेशी ट्रेन के पहिए के नीचे आ गया था, इसलिए आख़िरी कोच की संचार प्रणाली ट्रेन के नियंत्रण प्रबंधन प्रणाली को प्रभावित कर रही थी, जिसके चलते उसे अलग करते हुए ट्रेन को सुबह 8.15 बजे रवना किया गया था। बता दें कि ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ का इस्तेमाल किसी व्यवसायिक परिचालन की दृष्टि से नहीं किया गया था।

NDTV की झूठी ख़बर फैलाने की कोशिश

कॉन्ग्रेस और वामपंथियों को समर्थन देने वाला न्यूज चैनल NDTV जो झूठी ख़बरों को प्रसारित करने के लिए बदनाम हो चुके है, उसने भी इसके बारे में गलत ख़बर फ़ैलाने की कोशिश की। NDTV ने जानबूझकर मवेशी के टकराने की बात को नज़रअंदाज करते ट्रेन में तकनीकी ख़राबी की ख़बर प्रसारित करते हुए मोदी सरकार को निशाना बनाया।

जहाँ एक तरफ देश पुलवामा में शहीद हुए 44 सीआरपीएफ के जवानों को लेकर शोक मना रहा था, वहीं दूसरी ओर दिव्या स्पंदना ने भी एनडीए सरकार पर निशाना साधने की हड़बड़ी में NDTV की आधी-अधूरी रिपोर्ट का इस्तेमाल करते हुए ट्रेन-18 के बारे में झूठी ख़बर फैलाते हुए ट्रेन को विफल बताया।

गढ़ दिया गया पीयूष गोयल का फ़र्जी बयान

दिव्या स्पंदना भारतीय रेल को बदनाम करने के लिए पुलवामा हमले को लेकर रेल मंत्री पीयूष गोयल को भी घसीटने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि पीयूष गोयल ने कथित तौर ट्रेन-18 को पुलवामा आतंकी हमले का जवाब कहा था, जबकि पीयूष गोयल ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था।

कॉन्ग्रेस के सोशल मीडिया सेल प्रमुख ने बातों को खींचते हुए पुलवामा आतंकी हमले के मास्टरमाइंड आदिल डार को आतंकवाद में शामिल होने की बात को शर्मनाक तरीके से सही ठहराया। दिव्या स्पंदना ने इसके अलावा अल्ट्रा-लेफ्ट विंग वकील प्रशांत भूषण के एक ट्विटर को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने देश के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने के लिए आतंकवाद में शामिल होने वाले कश्मीरी युवाओं को सही ठहराया था।

PM से विस्फोटक बाँधकर आतंकी क्षेत्र में जाने की माँगी अनुमति

पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में जवानों की शहादत देशभर में ग़म और आक्रोश का माहौल है। पाकिस्तान की इस हरक़त का जवाब देश का लगभग हर नागरिक अपने-अपने तरीके से देना चाहता है। कहीं ये ग़ुस्से के रूप में निकलकर सामने आता है तो कहीं जवानों के बलिदान को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलियाँ देने के रूप में उजागर होता है।

दु:ख भरे इस माहौल में एक ऐसा भी शख़्स सामने आया है जिसने प्रधानमंत्री मोदी से गुहार लगाई है कि उसे आतंकी क्षेत्र में विस्फ़ोटक बाँधकर जाने की अनुमति दी जाए। यह मामला है मध्य प्रदेश का जहाँ मऊगंज के सिविल कोर्ट के कर्मचारी राजकरण सिंह ने शुक्रवार (15 फ़रवरी 2019) को कहा कि वो अपने शरीर पर विस्फोटक सामग्री बाँधकर आतंकी क्षेत्र में जाना चाहते हैं और इसके लिए वे प्रधानमंत्री की अनुमति चाहते हैं।

राजकरण सिंह ने जिस भावना से यह पत्र लिखा उससे साफ़ ज़ाहिर है कि जवानों के प्रति उनके मन में कितना सम्मान और लगाव है। सरहद पर तैनात देश के जवानों के प्रति उनका यह सम्मान इस बात का भी संकेत है कि भले ही आज ये जवान प्रत्यक्ष रूप से उनके साथ न हों लेकिन अपने बलिदान से वो देशवासियों के दिल में हमेशा जीवित रहेंगे।

बता दें कि सिंह ने प्रधानमंत्री के नाम सोशल मीडिया पर लिखे इस पत्र में उन्होंने लिखा कि देश के जवान हर समय देश को सुरक्षित रखने में लगे रहते हैं। इसके लिए वे सरहद पर दिन-रात चौकस रहते हैं। देश के प्रति अपनी इसी वफ़ादारी को निभाते हुए वो अपने प्राणों की आहुति देने से भी नहीं चूकते। हर समय अपनी जान हथेली पर रखने वाले इन साहसिक वीरों को पता भी नहीं होता कि कब इनका जीवन समाप्त हो जाएगा। इसी बात का हवाला देते हुए राजकरण सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि वे अपना जीवन जी चुके हैं, इसलिए अब वो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं।

देश के लिए कुछ कर गुज़रने वाली इस चाहत से ओत-प्रोत अपने पत्र में सिंह ने इस बात को भी लिखा कि अगर देश की सेवा के लिए उन्हें अपने प्राण भी न्यौछावर करने पड़ें तो उसके लिए भी उन्हें कोई अफ़सोस नहीं होगा।

PM मोदी की हुंकार, नहीं छिप सकेंगे आतंकी, सज़ा मिलना तय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र के दौरे पर हैं। यहाँ उन्होंने यवतमल में कई परियोजनाओं का शिलान्यास किया। पीएम ने एक बार फ़िर पुलवामा में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि गुनहगारों को उनके किए की सज़ा दी जाएगी। “मैं जानता हूँ कि हम सभी किस गहरी वेदना से गुज़र रहे हैं। पुलवामा में जो हुआ, उसको लेकर आपके आक्रोश को मैं समझ रहा हूँ।”

पीएम मोदी ने कहा, “जिन परिवारों ने अपने लाल को खोया है, उनकी पीड़ा मैं अनुभव कर सकता हूँ। इन शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। आतंकी हमसे जितना मर्ज़ी छिप लें, लेकिन उन्हें सज़ा मिलनी तय है। उन्होंने कहा कि सैनिकों में और विशेषकर CRPF में जो ग़ुस्सा है, वो भी देश समझ रहा है। इसलिए सुरक्षाबलों को खूली छूट दी गई है।”

पीएम ने कई परियोजनाओं का किया शिलान्यास

इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कई परियोजनाओं का शिलान्यास किया। उन्होंने कहा कि ये परियोजनाएँ ग़रीबों से जुड़ी, सड़कों से जुड़ी, रेलवे से जुड़ी, रोज़गार से जुड़ी हई हैं। पीएम मोदी ने कहा कि यवतमाल के साढ़े 14 हज़ार से अधिक ग़रीब परिवारों ने आज अपने नए घर में प्रवेश किया है। केंद्र सरकार ने 2022 तक हर बेघर को पक्का घर देने का लक्ष्य रखा है और सरकार तेज़ी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने बातया कि अब तक देश के गाँव और शहरों में 1.5 करोड़ ग़रीबों के घर बनाए जा चुके हैं।

पीएम ने यहाँ सड़क से जुड़े करीब ₹500 करोड़ के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास किया गया। इसके अलावा पुणे- अजनी-पुणे हमसफर एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाई। ये ट्रेन दौंड, मनमाड, भुसावल और बडनेरा होते हुए जाएगी। इससे इन सभी जगहों के लोगों को बहुत सुविधा होने वाली है।

भीख का कटोरा लेकर घूमने वालापाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ क़ाफ़िले पर (14 फ़रवरी 2019) हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर जमकर हमला बोला था। पीएम ने कहा था कि आतंकवाद को जारी रखने वाला पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है।

प्रधानमंत्री ने कहा था कि पाकिस्तान आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उसके लिए रोज़मर्रा का ख़र्चा तक चलाना मुश्किल हो गया है, वह दुनिया में भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है। दुनिया जान रही है कि पाकिस्तान आतंकवाद का पोषण करता है, यही कारण है कि तमाम देश उसे अलग-थलग कर रहे हैं।

पुलवामा पर सभी दल एकजुट, सीमा पार आतंकी को दिया जाएगा मुँहतोड़ जवाब

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर सरकार की तरफ से आज (शनिवार) को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। यह बैठक संसद की लाइब्रेरी में आयोजित की गई। इस बैठक में कॉन्ग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, एनसीपी नेता शरद पवार सहित कई विपक्षी नेता शामिल हुए।

इस बैठक में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का प्रस्ताव पास किया गया। इस दौरान गृहमंत्री ने हमले के बाद सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की विपक्ष को जानकारी देते हुए कहा कि सुरक्षा बलों को फ्री हैंड दे दिया गया है।

देश की सुरक्षा में लगे जवान मुँहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। इस दौरान पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया कि जो लोग सीमा पार के इशारे पर चलते हैं, हम ऐसे आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए एकजुट हैं।

सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की। सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए आमंत्रण भेजा गया था। सर्वदलीय बैठक से पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह के घर पर बड़ी बैठक हुई। इस बैठक में गृह सचिव राजीव गौबा सहित इंटेलीजेंस ब्यूरो(आईबी) के बड़े अधिकारी भी बैठक में शामिल रहे। इस बैठक में 14 फरवरी को हुए पुलवामा हमले की अब तक की जाँच पर चर्चा की गई ।

इस सर्वदलीय बैठक में गृहमंत्री के अलावा सचिव राजीव गौबा, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा, नरेंद्र सिंह तोमर, जेपी यादव, के रंगराजन (सीपीएम), नेशनल कांफ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला, चन्दू माजरा, के वेणुगोपाल, जितेंद्र रेड्डी, राम मोहन राय, नरेश गुजराल, डेरेक ओ ब्रायन, सुदीप बंदोपाध्याय, शरद पवार, आनंद शर्मा, आप सांसद संजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, उपेंद्र कुशवाहा मौजूद रहे।

आतंकवाद पर अब अलग-थलग होगा पाकिस्तान, अमेरिकी NSA ने कहा भारत को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद दुनिया के तमाम देश भारत के साथ खड़े हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जॉन बॉल्टन ने कहा है, “भारत को आत्मरक्षा करने का पूरा अधिकार है। हम इस मुश्किल में भारत के साथ खड़े हैं।” आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान और जैश-ए-मोहम्मद को जवाब देने के लिए अब तैयारी की जा रही है।

आतंकवाद के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया एक साथ खड़ी है। एनएसए जॉन बॉल्टन ने बीते शुक्रवार सुबह जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से फोन पर बात करते हुए शोक जताया था।

बता दें कि, हमले के बाद से अमेरिका ही नहीं दुनिया के कई अन्य बड़े देश भी आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के साथ खड़े हैं। कल (15 फरवरी 2019) को इसी मामले में दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय में जी-20 देशों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई थी। इसमें जर्मनी, हंगरी, इटली, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, रूस, इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित कई अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

अमेरिका ने की हमले की कड़ी निंदा

पुलवामा में शहीद हुए जवानों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता रॉबर्ट पैलाडिनो ने कहा कि अमेरिका इस घटना की कड़ी निंदा करता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है, और साथ ही यह भी कहा कि मैं सभी देशों से अपील करता हूँ कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का पालन करें।

बता दें कि, अमेरिकी व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव सारा सैंडर्स ने हमले के बाद कहा था कि पाकिस्तान से अपील है कि वह अपनी ज़मीन से आतंकी गतिविधियाँ चलाने वाले सभी आतंकी समूहों को समर्थन देना और उन्हें सुरक्षित पनाह देने बंद करे।

‘पाकिस्तान को चुकानी पड़ेगी बड़ी क़ीमत’

पुलवामा हमले की निंदा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कड़े स्वर में कहा कि पाकिस्तान सिर्फ़ आतंकियों को पनाह देकर उन्हें पोषित करता है। पुलवामा में आतंकियों ने जो कायरता दिखाई है उसका अंजाम उन्हें भुगतना पड़ेगा, इनसे पूरा हिसाब लिया जाएगा।

पीएम ने कहा कि सुरक्षा बलों को आगे की कार्रवाई, समय, स्थान और योजना तय करने की पूरी इजाज़त दी गई है। उन्होंने कहा कि हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, “हर नुक़सान का हिसाब पाकिस्तान को देना पड़ेगा, उसे इसके लिए बड़ी क़ीमत चुकानी होगी।”

आतंकियों को मानवीय बनाने की कोशिश करने वालो, बेहयाई थोड़ी कम कर लो

ओसामा एक अच्छा पिता था, बुरहान वनी का बाप हेडमास्टर था, अफ़ज़ल गुरू का बेटा बारहवीं में इतने नंबर लाया, अहमद डार को आर्मी वाले ने पीटा था, आर्मी के लोगों के कारण आतंकी बनते हैं… ऐसे हेडलाइन आपको पत्रकारिता के समुदाय विशेष से लगातार मिलते रहेंगे। हमेशा इनकी लाइन यही रहती है कि जिसने इतनी जानें ले लीं, वो कितना अच्छा आदमी था, और उसकी बुराई की ज़िम्मेदारी भी पीड़ितों पर ही है। 

ये यहीं तक नहीं रुकता, क्योंकि ये वो लोग हैं जो पाकिस्तान का अजेंडा भारत में चलाते हैं जिसे पाकिस्तान अपने बचाव में इस्तेमाल करता है। देखा जाए तो इस तरह की बातें, ऐसे मौक़ों पर करना यह बताता है कि ये लोग उन आतंकियों की विचारधारा के लिए मस्जिद के ऊपर लगे लाउडस्पीकर हैं जो इसे एम्प्लिफाय करते हैं। इनके लेखों से यही निकल कर आता है जैसे कि जवानों की नृशंस हत्या के पीछे उन्हीं का हाथ था, और आतंकियों का नहीं।

ऐसी घटनाओं के बाद भी ‘दूसरा एंगल’ तलाश लेना, या हमेशा ही ऐसे ही एंगल तलाशने की कोशिश करना बताता है कि इनकी संवेदना कहाँ है। अपने हेडलाइन में बलिदान के लिए ‘मरे’, आतंकियों के लिए ‘लोकल यूथ’, पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए ‘ब्लेम’ और ‘अक्यूज’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो पता चलता है कि आपको पाकिस्तानी तथा आतंकी विचारधारा भी बेचनी है, और अपने आप को भारतीयता का मुखौटा भी पहनना है। 

इनमें से कुछ तो आदत से लाचार और लगातार एक ही तरह की बेहूदगी करने वाले लोग हैं। चाहे वो बरखा दत्त का ‘हेडमास्टर बाप’ हो, क्विंट का ‘अच्छा पिता ओसामा’ हो, या स्क्रॉल का ‘मौलवी बनने की चाह रखने वाला’ पुलवामा आतंकी अहमद डार हो, ये लोग हमेशा बताने में रहते हैं कि ऐसे घातक आतंकवादी कितने अच्छे और सुशील लोग थे।  

ऐसी ही मानसिक विक्षिप्तता का परिचय कोर्ट से कई बार डाँट सुन चुके वकील प्रशांत भूषण ने लिखा कि आर्मी ने कभी अहमद डार को किसी कारण से पीटा था, इसलिए वो आतंकी बन गया। साथ ही, भूषण ने यह भी लिखा कि इसी तरह की हरकतों के कारण लोग आतंकी बन जाते हैं। ये अपने आप में एक अलग लेवल की नग्नता है। अगर आर्मी वाले ने उसे पीटा भी हो, तो क्या राह चलते उसे बिना कारण के पीट दिया? क्या प्रशांत भूषण ने ये पता करने की कोशिश की कि क्या अहमद डार आर्मी पर पत्थर चला रहा था, या उनके काम में बाधा पहुँचा रहा था, या राष्ट्रविरोधी आंदोलन में साथ दे रहा था? इस पर चुप्पी है क्योंकि ट्वीट में 280 कैरेक्टर ही होते हैं, और प्रशांत भूषण जैसे वकील तो तो साँस लेने के भी पैसे माँग लेते हैं! 

पिछले दिनों में आपको अधिकांश मीडिया हाउस जवानों के परिवारों से मिल कर, उनकी कहानियाँ दिखा रहा है कि अकारण हुए इस बलिदान से कितने लोग आहत हैं। लोगों तक ऐसे हृदयविदारक कहानियाँ लाई जा रहीं हैं जिसे सुनकर हमारे शरीर में सिहरन होने लगती है। टीवी पर एंकर तक अपने आप को इस भावुक क्षण में रोक नहीं पातीं, उनके आँसू छलक जाते हैं। जवानों के परिवारों के लोग बता रहे हैं कि किसी की शादी होने वाली थी, कोई फोन पर बात कर रहा था जब धमाका हुआ, किसी ने कहा था कि छुट्टी पर आते ही वो घर बनवाएगा…

ये वो लोग हैं जिनके परिवार आर्थिक रूप से उतने सक्षम नहीं हैं, उनके लिए घर का चिराग़ एक ही था। ग़ौरतलब यह भी है कि यही क्विंट, स्क्रॉल, एनडीटीवी और भूषण अपनी ज़रूरत के हिसाब से दलितों, वंचितों और पिछड़ों की बात करते हुए रुआँसे हो जाते हैं, और ये वही लोग हैं जिन्हें उसी सामाजिक स्तर के लोगों के बलिदान पर यह याद आता है कि जिस आतंकी ने 44 लोगों की जान ले ली, उसके पास एक ज़ायज कारण था! 

आप कहने को स्वतंत्र हैं कि पत्रकार ने वही लिखा जो उसके माँ-बाप ने कहा। लेकिन, ऐसी बातें छापना यह नहीं बताता कि आप उस आतंकी की विचारधारा को हवा दे रहे हैं? आप कहीं न कहीं जस्टिफाय करने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर किसी स्कूली बच्चे को कोई पीटे, डाँटे, मुर्गा बना दे, तो वो तीन सौ किलो विस्फोटक लेकर सेना की गाड़ियों से टकरा दे? 

या, आपको लगता है कि ख़बर पढ़ने वाले इतने मूर्ख हैं कि उन्हें लगेगा कि ये महज़ रिपोर्टिंग है? ये रिपोर्टिंग छोड़कर सब कुछ है। ये बताता है कि पत्रकारिता में संवेदनहीनता का चरम स्तर क्या है। जैसे कि संसद पर हुए हमले की बात सुनकर राजदीप जैसों की बाँछें खिल जाती हैं। जैसे कि बुरहान वनी जैसे आतंकियों के परिवार की कहानी बताकर बरखा दत्त दुनिया को यह बताना चाहती हैं कि उसका बाप हेडमास्टर था, और उसके आतंकी बनने के पीछे भारत सरकार की ट्रेनिंग शामिल थी! 

चौबीसों घंटे टीवी और मीडिया साइट्स के दौर में हिट्स और क्लिक्स के लिए पत्रकार हमेशा नया एंगल ढूँढते रहते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन नया एंगल पाने की चाहत में विशुद्ध नीचता पर उतर आना और देश के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाली शक्तियों को ‘मानवता का पक्षधर’ बताने की कोशिश आखिर क्या कहती है? 

राष्ट्रवाद को ज़हर बताने तक की कोशिश करने वाले आखिर अपनी लाइन कब खींचेंगे? क्या कुछ न्यूनतम स्तर है राष्ट्रवादी होने का? या देश की चिंता करना, उसके जवानों के बलिदान पर आहत महसूस करना, देश के समर्थन में नारे लगाना अपराध है, और कथित तौर पर आर्मी द्वारा बच्चे को डाँटने पर, मामूली सजा देने पर आरडीएक्स से भरी गाड़ी लेकर 40 जवानों की हत्या करना उचित कार्य? 

ये बेहूदगी है कि उनके परिवार का भी बच्चा मर गया। शर्म आनी चाहिए ऐसे माँ और बाप को जो इस कुकृत्य को किसी भी तरीके से सही ठहराने की कोशिश कर रहा है। कम से कम इतनी हया तो रहनी चाहिए कि सीधा कह दो कि तुम और तुम्हारा परिवार भारत के ख़िलाफ़ है, न कि यह कि उसे आर्मी वाले ने एक दिन पीटा था तो उसने ऐसा कर दिया! ये किस तरह की परवरिश है?

क्या एक बलात्कारी का पिता और ये मीडिया वाले उसके पक्ष में यह कह कर खड़े हो जाएँगे कि उसे उस लड़की ने ठुकरा दिया था? क्या लड़की पर एसिड फेंकने वाले के माँ-बाप यह कह देंगे कि उनके बेटे के गुलाब को लड़की ने फेंक दिया था? बलात्कारी एक फ़्रस्ट्रेटेड व्यक्ति था, और उसके हेडमास्टर बाप ने कहा है कि उसे भी उसके बेटे से अलग रहने का गम है क्योंकि वो जेल में है? क्या ये भी ख़बर का नया एंगल है?

ऐसी हर बेहयाई के केन्द्र में ये यूजूअल सस्पैक्ट्स आते हैं, भारतीय पत्रकारिता के समुदाय विशेष, गिद्धों का गिरोह जिसे जवानों के बलिदान की चिंता नहीं, उन्हें नया और अलग एंगल चाहिए कि बाकी लोग जवानों के परिवार से मिल रहे हैं, हम आतंकियों के घरवालों से मिल लेते हैं! उसके बाद क्या? उसके बाद यह कहना कि दोनों के माँ-बाप एक ही तरह के दुःख से गुजर रहे हैं? 

ऐसे संवेदनहीन रिपोर्ट और इस तरह की सोच बताती है कि ये लोग सिर्फ पत्रकारिता नहीं कर रहे, ये आतंकियों की विचारधारा के लिए मल्टीप्लायर हैं, ये उनकी बातों को, उनके जिहादी विचारों को सूक्ष्म स्तर पर, सहज तरीके से वैसे लोगों तक पहुँचाते हैं जो इन्हें पढ़ने के बाद धीरे-धीरे अपने देश की उसी सेना पर सवाल करने लगते हैं जिनकी वजह से जिहाद का ज़हर उनकी सोसायटी और शहर तक नहीं पहुँचा है।