Monday, October 7, 2024
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कश्मीर में सबसे बड़ा आतंकी हमला, CRPF के 40 जवान शहीद

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकियों द्वारा किए गए हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए हैं। शहीद जवानों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर स्थित अवंतीपोरा इलाके में आतंकियों ने जवानों की गाड़ी को निशाना बनाते हुए आतंकी घटना को अंजाम दिया।

हमले के बाद दक्षिण कश्मीर के कई इलाकों में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अलर्ट जारी किया गया है। बताया जा रहा है कि सुरक्षाबलों के काफ़िले पर जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन ने आत्मघाती हमला किया जिसमें करीब 40 जवान शहीद हो गए हैं, जबकि 40 से अधिक जवानों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है।

घायल जवानों को नज़दीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि जिस वक्त सीआरपीएफ के काफ़िले पर हमला किया गया उस वक्त करीब 70 गाड़ियों में सवार होकर करी 2500 जवानों का काफिला निकल रहा था। बता दें कि उरी हमले के बाद यह बड़ा आतंकी हमला है। उरी हमले में 19 जवान शहीद हुए थे।

हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। बताया जा रहा है कि इस आतंकी घटना को अंजाम देने के पीछे आदिल अहमद डार नाम के आतंकी का हाथ है। आदिल पुलवामा के काकापोरा इलाके का रहने वाला है। सुरक्षाबलों का कहना है कि आदिल को पहले एक ऑपरेशन के दौरान घेर भी लिया गया था। लेकिन वह किसी तरह बच कर निकल गया था।

आदिल अहमद डार
डार ने यह वीडियो पुलवामा में आतंकी घटना को अंजाम देने से पहले बनाया था

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने घटना के बाद डार के एक वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो में डार ने सरकार के प्रति अपनी नफरत को दिखाया है। इसमें उसने बाबरी मस्‍ज‍िद के मुद्दे को भी उठाया है। इस वीडियो से साफ है कि इस हमले से पहले उसका ब्रेनवॉश किस हद तक किया गया था। बता दें कि, हमले से पहले आतंकियों ने पहले हाइवे खड़ी एक कार में आईईडी से ब्लास्ट किया और फिर सीआरपीएफ जवानों के वाहनों पर हथियारों से जमकर फ़ायरिंग की।

गौरतलब है कि इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने लेते हुए आदिल का फोटो जारी करते हुए कहा कि वह इस हमले का मास्टरमाइंड है। हालाँकि, उसकी संलिप्तता के बारे में सुरक्षा एजेंसियों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है।

इस घटना के बाद सीआरपीएफ, सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस इस हमले से जुड़े हर पहलू की पड़ताल में जुट गयी हैं। इस बीच, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने घटना को लेकर इमरजेंसी बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा कि स्थिति की समीक्षा की जा रही है और सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारी उन्हें स्थिति पर जानकारी दे रहे हैं।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रेस वार्ता करके कहा कि इस कायरतापूर्ण घटना को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया है। इसके साथ ही राजनाथ सिंह ने देशवासियों को आश्वस्त किया कि जल्द ही आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

इसके अलावा केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने इस घटना पर कहा है कि शहीदों के खून की एक-एक बूंद का बदला लेंगे।

‘मैं अब जन्नत में हूँ’, पुलवामा आतंकी का वीडियो; ट्विटर पर कॉन्ग्रेस की शर्मनाक बयानबाजी चालू

पिछले लगभग 2 सालों से भारत आतंकी हमलों से खुद को सुरक्षित समझ रहा था, लेकिन बृहस्पतिवार (फरवरी 14, 2019) शाम को आतंकियों ने कश्मीर के पुलवामा में फिदायीन हमला कर दिया। मीडिया के अनुसार आतंकवादियों की इस कायराना हरकत में अब तक CRPF के लगभग 40 जवानों के शहीद होने की खबर आ रही हैं। यह हमला सितंबर, 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले से भी बड़ा हमला है। उस समय आतंकियों ने राष्ट्रीय राइफल्स के कैंप पर अटैक किया था, जिसमें मौके पर ही 18 जवान शहीद हो गए थे।

इस घटना के बाद एक ओर जहाँ कुछ लोगों ने शहीदों को लेकर अपनी संवेदना और नाराजगी व्यक्त की है, वहीं दूसरी तरफ मीडिया और राजनीतिक दल इसे सरकार को घेरने का एक अच्छा मौका समझकर मैदान में उतर चुके हैं। सेना पर हुए इस आतंकी हमले पर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली।

पुलवामा में CRPF के काफिले पर हुए आतंकी हमले के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इस हमले की निंदा की है। पीएम ने कहा, “पुलवामा में CRPF के जवानों पर हुआ हमला बेहद घृणित है। मैं इस कायराना हमले की कठोर निंदा करता हूँ। हमले में शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पूरा देश शहीदों के परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। प्रार्थना करता हूँ कि घायल जल्द ठीक हों।”

वहीं, विपक्ष ने इस मौके को भुनाते हुए हमले में मारे गए जवानों पर राजनीति भी शुरू कर दी है। कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने अपने ट्वीट में लिखा है, “उरी, पठानकोट, पुलवामा… आतंकी हमलों की लिस्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता जारी है और मोदी सरकार चुप है।”

इसके बाद मीडिया से बातचीत में रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “मोदी सरकार में 5 साल में यह 17वां बड़ा हमला है। उरी और पठानकोट इससे पहले के कई बड़े उदाहरण हैं। हमारी सरकार पाकिस्तान को 56 इंची सीना नहीं दिखा सकी है। जवानों की शहादत पर अब तक पीएम मोदी ने दो शब्द तक नहीं कहे। हम मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि उनका 56 इंची सीना कब इस हमले का जवाब देगा?”  हैरानी की बात है कि ऐसे समय में जब सभी लोगों को
आतंकवाद से लड़ने के लिए सरकार के साथ खड़ा होकर साथ होना चाहिए, मीडिया गिरोह और विपक्ष राजनीतिक लाभ के लिए सरकार पर अपनी भड़ास निकालने का प्रयास कर रहा है।

विदेश राज्य मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने कहा, “एक सैनिक और देश का नागरिक होने के नाते मेरा खून ऐसे कायराना हमलों पर खौलता है। पुलवामा हमले में CRPF जवानों की जान गई है। मैं उनकी शहादत को सलाम करता हूँ और वादा करता हूँ कि उनके खून की एक-एक बूंद का बदला लिया जाएगा।”

सर्जिकल स्ट्राइक को हमेशा संदेहास्पद बताते रहने वाली मीडिया के समुदाय विशेष की पत्रकार सागरिका घोष ने अपने ट्वीट में लिखा है कि देश में CRPF और उरी जैसी घटनाएँ हो रही हैं और दिशाहीन सरकार तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक पर खुश होती है और धार्मिक प्रतीकों के साथ नाटक करती है। इसके जवाब में ट्विटर यूज़र्स ने लिखा है कि सरकार दुबारा सर्जिकल स्ट्राइक करेगी और तुम फिर भी इसे झूठा साबित करने के पूरे प्रयास करते रहोगे।

अरुण जेटली, वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर के साथ ही अन्य लोगों ने भी ट्वीट कर इस आतंकी घटना पर अपनी प्रतिक्रियाएँ जाहिर की हैं।

जैश-ए-मोहम्मद ने ली जिम्मेदारी, आतंकी का वीडियो वायरल

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। बताया जा रहा है कि आदिल अहमद डार नाम के आतंकी ने इस काफिले पर हमले की साजिश रची थी। जैश के आतंकी आदिल अहमद उर्फ वकास कमांडो ने आज दोपहर 3:15 बजे यह फिदायीन हमला किया। ये वही आतंकी है जो मई 2018 में सेना के एनकाउंटर में बच निकला था। इसी ने विस्फोटक से भरी कार जवानों की बस से टकराई। जैसे ही सीआरपीएफ का काफिला लेथपोरा से गुजरा, आतंकी ने अपनी गाड़ी जवानों से भरी बस से टकरा दी।

इस हमले के बाद जैश-ए-मोहम्‍मद ने आदिल डार का एक वीडियो जारी किया। कहा जा रहा है कि इस वीडियो कोआत्‍मघाती हमले के पहले ही शूट किया गया था। इस वीडियो में आदिल के पीछे जैश-ए-मोहम्‍मद का बैनर दिख रहा है। इसमें आतंकी डार तमाम हथियारों से लेस है। इस हमले के बाद जैश के प्रवक्‍ता मोहम्‍मद हसन ने दावा किया है कि इस हमले में सेना के कई वाहन नष्‍ट कर दिए गए हैं। डार ने इस वीडियो में ऐलान करते हुए सरकार के प्रति अपनी नफरत को दिखाया है। इसमें उसने बाबरी मस्‍ज‍िद के मुद्दे को भी उठाया है, इस वीडियो से साफ है कि इस हमले से पहले उसका ब्रेनवॉश किस हद तक किया गया था।

वीडियो में आतंकी डार कह रहा है कि जब तक यह वीडियो लोगों तक पहुँचेगा वो जन्नत पहुँच चुका होगा। उसने कहा है कि दक्षिण कश्मीर के लोग कश्मीर के लिए भारत से लड़ रहे हैं, अब मध्य कश्मीर और जम्मू को भी इस लड़ाई में उतर जाना चाहिए।

फैक्ट चेक: क्या मोदी ने 1992 में लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बारे में झूठ बोला था?

14 फरवरी को, प्रोपेगैंडा वेबसाइट ‘द वायर’ ने एक स्टोरी प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नरेंद्र मोदी के एक वीडियो के तथ्यों की जाँच की है। 2 मिनट 20 सेकेंड के इस वीडियो में मोदी के भाषण के एक हिस्से को दिखाया गया है जो कि पुराना प्रतीत होता है। वीडियो के एक हिस्से में मोदी को 1992 में कन्याकुमारी से कश्मीर तक के एकता यात्रा के बारे में बात करते सुना जा सकता है।

द वायर में छपी रिपोर्ट

स्टोरी पढ़ने के बाद ऐसा लग रहा है कि वायर की लेखिका ने प्रधानमंत्री के भाषण के इस वीडियो को महज 2 मिनट देखने के बाद यह रिपोर्ट लिख दिया है। इस रिपोर्ट में वायर ने दावा किया है कि मोदी ने भाषण के दौरान कहा कि उन्होंने अकेले कश्मीर के लाल चौक पर जाकर झंडा फहराया और वापस आ गए। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को गलत साबित करने के लिए वायर ने एकता यात्रा के बारे लंबा चिट्ठा तैयार करते हुए स्टोरी की है। वायर ने स्टोरी में लिखा है कि लाल चौक पर झंडा फहराने के लिए एकता यात्रा के दौरान अकेले मोदी नहीं थे, बल्कि मोदी यात्रा में जोशी के साथ आने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं में से एक थे।

इसके बाद रिपोर्ट में स्वाति चतुर्वेदी एक सनसनीखेज का दावा करते हुए लिखती हैं कि मुरली मनोहर जोशी इस वीडियो को देखने के बाद गुस्से में हैं, और उन्होंने आरएसएस से भी इस बारे में शिकायत की है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जोशी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से पूछा है कि प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की कल्पना में क्यों लिप्त हैं और क्यों भाजपा के इतिहास को फिर से लिख रहे हैं?

पहली बात यह है कि वायर ने अपने रिपोर्ट में इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं दिया है कि दिग्गज पार्टी नेता मुरली मनोहर जोशी वास्तव में मोदी के एक पुराने भाषण से नाराज हैं और नराजगी भी इस तरह की वो आरएसएस प्रमुख से शिकायत करने की हद तक चले गए। वायर की लेखिका ने अपने लेख में जो दावा किया है उसका कोई स्रोत नहीं है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि क्या यह एक तथ्य है, या वास्तव में स्वाति चतुर्वेदी स्वयं कल्पना में लिप्त हैं। इसके अलावा इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरएसएस ने नरेंद्र मोदी के भाषण की तथ्य-जाँच की है, जैसा कि वायर की रिपोर्ट में दावा किया गया है

दूसरा, वीडियो में भाषण का केवल 2 मिनट के आसपास का हिस्सा ही दिखाई देता है, पूरे भाषण के वीडियो की क्लिप नहीं है। इसलिए यह दावा करना कि मोदी ने इस छोटी क्लिप के आधार पर एकता यात्रा का पूरा श्रेय लिया, गलत है। हमने भाषणों की छोटी क्लिप का उपयोग करके नेताओं की छवी को अपने मुताबिक प्रस्तुत करने के कई उदाहरण देखे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के भाषण को पूरा सुने बिना और उनके भाषण के संदर्भ को जाने बिना इस तरह के दावे करना गलत है।

तीसरा, हालाँकि यह सच है कि मुरली मनोहर जोशी ने 1992 में एकता यात्रा का नेतृत्व किया था। आखिरकार वह पार्टी अध्यक्ष थे और उस समय पार्टी के शीर्ष तीन नेताओं में से एक थे। परंतु इस यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी सिर्फ एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता नहीं बल्कि यात्रा के संचालन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा रहे थे। ऐसे में वायर द्वारा रिपोर्ट में मोदी को एकता यात्रा के दौरान सामान्य नेता लिखना गलत है।

एकता यात्रा 11 दिसंबर, 1991 को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी, और 26 जनवरी को श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ समाप्त होने वाली थी। और इस यात्रा के संचालन की जिम्मेदारी एक सक्रिय पार्टी कार्यकर्ता और पार्टी की राष्ट्रीय चुनाव समिति के एक सदस्य नरेंद्र मोदी संभाल रहे थे। उन्हें यात्रा के संयोजक के रूप में नामित किया गया था। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी एकता यात्रा के दौरान एक समान्य पार्टी कार्यकर्ता से कहीं ज्यादा अहम भूमिका में इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे। मोदी ने दो साल पहले लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था।

1992 में जब मुरली मनोहर जोशी ने गणतंत्र दिवस पर लाल चौक पर राष्ट्रध्वज फहराया था, तो उसके ठीक बगल में नरेंद्र मोदी थे। झंडा फहराने के बाद, पार्टी अध्यक्ष ने प्रेस के सामने नरेंद्र मोदी को “ऊर्जावान और होनहार” पार्टी नेता के रूप में पेश किया था। इसलिए, नरेंद्र मोदी सिर्फ एक समान्य नेता की तौर पर यात्रा में हिस्सा लेने के बजाय प्रमुख भूमिका निभा रहे थे।

द वायर की रिपोर्ट में 2011 की एक वीडियो भी लगाया गया है जिसमें मुरली मनोहर जोशी एकता यात्रा के बारे में बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं। लेकिन बता दें कि यह वीडियो जनवरी 2011 का है, और जोशी 1992 की बजाय 2011 की राष्ट्रीय एकता यात्रा के बारे में बात कर रहे थे, जो पूरी तरह से अलग घटना है।

2011 में होने वाले एकता यात्रा का नेतृत्व तत्कालीन भाजयुमो अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने किया था। 1992 के विपरीत, 2011 में होने वाले एकता यात्रा के दौरान राज्य सरकार ने भाजपा नेताओं को लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोका दिया था। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार और अन्य ने 2011 एकता यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें राज्य पुलिस ने सीमा पर रोक दिया और हिरासत में ले लिया था। 2011 की यात्रा के दौरान न तो जोशी और न ही मोदी कश्मीर गए, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि वायर ने उस वीडियो को कहानी में क्यों शामिल किया।

राष्ट्र-निर्माण नहीं, राष्ट्र-विरोध की पाठशाला बनता जा रहा है AMU

गर्व से अपने अल्पसंख्यक दर्जे का बखान करने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा बाक़ी सभी कारणों से सुर्ख़ियों में रहता है। यहाँ बात-बात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क जाती है। देश-विरोधी नारे और राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ तो जैसे यहाँ एक सामान्य बात हो चुकी है। अभी हाल ही में भड़की हिंसा और छात्रों के उग्र प्रदर्शन के बाद इस सवाल का उठना लाज़िमी है कि आख़िर AMU राष्ट्र-निर्माण में क्या योगदान दे रहा है? देश में हज़ारों समस्याएँ हैं। उन्हें सुलझाने के लिए अलग-अलग यूनिवर्सिटीज और लैब्स में रिसर्च चल रहे हैं। छात्र अक्सर ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इत्यादि बनाते रहते हैं जो देश के काम आए। क्या AMU इन सब के लिए कार्य कर रहा है?

अगर AMU में हाल के दिनों में हुई घटनाओं पर नज़र डाली जाए, तो इस से पता चलता है कि संस्थान अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। ऐसा नहीं है कि यूनिवर्सिटी का पुराना इतिहास (आज़ादी के बाद से) बहुत ही चमकदार रहा है, ऐसी घटनाएँ पहले भी हुईं हैं। लेकिन, हाल के कुछ महीनों में जिस तरह के विषाक्त वातावरण ने कैंपस के शैक्षणिक परिवेश को अपने पैरों तले कुचल कर रख दिया है, उस से लगता है कि संस्थान अब ग़लत दिशा में बढ़ रहा है। सबसे पहले ताज़ा घटना को समझते हैं। इसके बाद पिछली कुछ घटनाओं को समझ कर हम इस बात का विश्लेषण करेंगे की आख़िर ऐसी गतिविधियों के पीछे कौन सी मानसिकता है।

मीडियाकर्मियों और अन्य गुट के छात्रों की पिटाई

मामला कुछ यूँ शुरू हुआ। यूनिवर्सिटी कैंपस में मुस्लिम फ्रंट बनाने के लिए बैठक चल रही थी। इस बैठक में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल होने वाले थे। ओवैसी तो बैठक में नहीं पहुँच सके लेकिन उनके आने और छात्रों द्वारा मुस्लिम फ्रंट बनाने की ख़बर सुन कर कुछ छात्र नाराज़ हो गए। जब दो महिला पत्रकार कैंपस में पहुँची, तब छात्रों ने उसके साथ बदतमीज़ी की और कैमरे को भी तोड़ दिया। एक अन्य पत्रकार को दौड़ा-दौड़ा कर बेल्ट से पीटा गया। इतना ही नहीं, जब कुछ हिन्दू छात्र हॉस्टल में खाना खाने पहुँचे, तब उनके साथ मारपीट की गई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक कार्यकर्ता की बाइक को आग के हवाले कर दिया।

बहुत सारे ऐसे शैक्षणिक संस्थान हैं, जो राजनैतिक वजहों से सुर्ख़ियों में रहते हैं। छात्रों की अलग-अलग विचारधाराएँ होती है, अलग-अलग समझ होती है। अल्पसंख्यक दर्जे का ढ़ोल पीटने वाले AMU ने कभी यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत नहीं समझी कि यहाँ पढ़ रहे अन्य छात्रों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने के लिए क्या कोशिशें की जाए। जब यूनिवर्सिटी में अधिकतर छात्र एक ख़ास समुदाय से आते हैं, तब यह यूनिवर्सिटी प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है कि उन्हें सुरक्षित महसूस कराया जाए।

एक छात्र ने प्रधानमंत्री मोदी को ख़ून से पत्र लिख कर मदद की गुहार लगाई है। उसने कहा है कि अगर समय रहते कैंपस में पल रहे राष्ट्र विरोधी मानसिकता को ख़त्म करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हिन्दू छात्रों का हाल भी कश्मीरी पंडितों की तरह ही होगा। छात्र अब भी धरने कर रहे हैं। प्रॉक्टर के कार्यालय में ताला जड़ दिया गया है। भाजपा-संघ के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी हो रही है। मोदी-योगी को जी भर गालियाँ दी जा रही है। उनके पुतला-दहन की धमकी दी जा रही है। यह सब देख कर लगता नहीं कि हम किसी बड़े शैक्षणिक संस्थान की बात कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे यह कोई राजनीतिक अखाड़ा हो।

ग़ौर करने वाली बात यह है कि AMU प्रशासन भी पीड़ितों के ख़िलाफ़ ही खड़ा दिख रहा है। छात्र नेता अजय, जिनकी पिटाई की गई- अस्पताल में भर्ती हैं। महिला पत्रकारों ने छात्रों के ख़िलाफ़ थाने में मामला दर्ज कराया है। लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पुलिस को जो दलीलें दी है, उसमे पीड़ितों के ही विरोध किया गया है। यूनिवर्सिटी पुलिस छावनी बन चुकी है। ज़िले के डीएम एवं एसपी वहाँ कैम्प कर रहे हैं। यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है? यह कैसा शैक्षणिक संस्थान है जहाँ छात्रों के झगड़े सुलझाने के लिए ज़िले के सबसे बड़े अधिकारियों को कैम्प करना पड़ रहा है?

तिरंगा यात्रा मना, ‘वन्दे मातरम्’ पर रोक

जनवरी 2019 में जब कुछ छात्रों ने तिरंगा यात्रा निकाली और ‘वन्दे मातरम्’ के नारे लगाए तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन पर गंभीर आरोप लगा कर नोटिस थमा दिया। उन छात्रों पर यूनिवर्सिटी को बदनाम करने, कैंपस में भय का माहौल पैदा करने और अन्य छात्रों को बहकाने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए। क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के अंदर नहीं आता है? क्या AMU कैम्पस में भारतीय संविधान, भारतीय प्रतीक चिह्नों व राष्ट्रगीत के लिए कोई इज्ज़त नहीं? संस्थान चलता है नागरिकों के भरोसे से। अगर देश के नागरिकों का किसी संस्थान से भरोसा ही उठ जाए तो फिर उसे अस्तित्व का कोई औचित्य नहीं बनता है।

छात्रों की ग़लती बस इतनी थी कि वो वीर ऐप के जरिए शहीदों के लिए धन जुटा रहे थे। AMU में इसे भी अपराध माना गया। तिरंगा यात्रा निकालने पर न सिर्फ़ छात्रों को नोटिस थमाई गई, बल्कि मुस्लिम छात्रों ने उन्हें मारा-पीटा भी। ये ख़बरें जल्दी कैंपस से बाहर नहीं आ पाती। अगर बाहर आती भी है, तो दबा दी जाती है। जब इसे लेकर आवाज़ें उठतीं हैं, तब दोनों गुटों के छात्रों पर कार्रवाई कर इतिश्री कर ली जाती है। तिरंगा यात्रा निकालने वाले छात्रों को हादी हसन हॉल में देर रात पीटा गया। पीटने वाले कौन लोग थे और वह किस समुदाय से थे- यह साफ़ है। आप बिना लिखे समझ सकते हैं।

आतंकियों के प्रति इतना प्रेम कहाँ से लाता है AMU?

अभी जब AMU के कट्टर छात्रों ने पत्रकारों को अपने लपेटे में लिया तब ये एक बड़ी ख़बर बनी। लेकिन एक बार और ऐसा हुआ था, जब छात्रों ने पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार किया था। अक्टूबर 2018 में जब सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में हिज़्बुल मुज़ाहिद्दीन के आतंकी बशीर मन्नान वानी को मार गिराया था, तब AMU में उसके लिए नमाज पढ़ी गई थी। उस दौरान भी छात्रों ने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के साथ नोंक-झोंक की। घटना की सूचना पर पहुँचे एक पत्रकार को पीटा गया और उसके फोन छीन लिए गए।

आतंकवाद से भी ज़्यादा ज़हरीला है आतंकवाद का समर्थन। एक आतंकी को जब समाज या क्षेत्र के किसी हिस्से में समर्थन और सहानुभूति मिलती है, तब 10 अन्य आतंकी भी पैदा हो जाते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय इसमें अव्वल दिख रहा है। बशीर वानी भी उसी यूनिवर्सिटी का छात्र था। यह कैसी फक्ट्री है जहाँ एक योग्य नागरिक के बदले आतंकी निकलते हैं? ऐसे संस्थान का क्या तात्पर्य जहाँ आतंकियों के मरने पर मातम मनाया जाता हो। यह न सिर्फ़ आतंकियों का आत्मविश्वास बढ़ाने वाला है, बल्कि सुरक्षा बलों के मनोबल को चोट पहुँचाने वाला कृत्य भी है।

जिस यूनिवर्सिटी में सुरक्षा बलों के लिए सम्मान होना चाहिए वहाँ आतंकियों के लिए नमाज़ पढ़ी जाती है। जहाँ से स्कॉलर निकलने चाहिए, वहाँ से आतंकी निकलने की ख़बर आती है। जहाँ शहीदों को सम्मान के भाव से देखा जाना चाहिए, वहाँ उनके लिए धन एकत्रित करने वालों पर ही कार्रवाई की जाती है। जहाँ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों को सर-आँखों से लगाया जाना चाहिए, वहाँ उन्हें घृणाभाव से देखा जाता है।

शाकाहारियों को परोसा माँस वाले तेल में बना खाना

शैक्षणिक संस्थानों के छात्रावासों में हर प्रकार के विद्यार्थी रहते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक विशाल भारतवर्ष के कोने-कोने से छात्र देश के किसी भी विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में अपनी योग्यतानुसार दाख़िला पाते हैं। ऐसे में, किसी ख़ास गुट के छात्रों की भावनाओं का ख़्याल रखना और हिन्दू (चूँकि AMU अपने-आप को अल्पसंख्यक संस्थान मानता है) समूह के छात्रों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना- क्या यह अनुचित नहीं है?

दिसंबर 2018 में जिस तेल में मुर्गे का माँस तला गया, उसी तेल में भोजन बना कर शाकाहारी छात्रों को भी परोस दिया गया। छात्रों ने उस वक़्त कहा था कि वे यूनिवर्सिटी कैम्पस में हो रहे ऐसे व्यवहार के कारण मानसिक तनाव से गुज़र रहे हैं। मना करने का बावजूद उसी तेल में पूरी-सब्जी तल कर छात्रों को खाने दे दिया गया।

अव्वल तो यह कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस मामले को भी गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया। कुलपति को मेल द्वारा शिक़ायत भेजी गई, प्रॉक्टर को इस बात की जानकारी दी गई, लेकिन कार्रवाई शून्य। शिक़ायत मिलने के कई दिनों बाद तक यूनिवर्सिटी ने इन छात्रों की कोई सुध नहीं ली। क्या अपने-आप को अल्पसंख्यक संस्थान कहने का अर्थ है कि बहुसंख्यकों को मानसिक प्रताड़ना दे कर उन्हें तनाव दिया जाए?

भारत का विभाजन कराने वाले जिन्ना का पोस्टर

जब यूनिवर्सिटी में भारत का विभाजन कराने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के पोस्टर को लेकर सरकार से शिक़ायत की गई, तब यूनिवर्सिटी पोस्टर के समर्थन में खड़ा हो गया। जिसने देश के टुकड़े कर दिए, उसी देश के एक बड़े शैक्षिक संस्थान में उसके पोस्टर लगे हैं। कितना अजीब है न? यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने जिन्ना के पोस्टर को हटाने से मना कर दिया और उसके समर्थन में दलीलों की झड़ी लगा दी।

जिस यूनिवर्सिटी में देश बाँटने वालों से प्यार करना सिखाया जाता हो, वहाँ के छात्र एक अच्छे नागरिक कैसे बन पाएँगे? AMU को जिन्ना प्रिय हैं, वह उन्हें अपने सीने से लगाए रखना चाहता है।

भारत के पोस्टर से जम्मू एवं कश्मीर ग़ायब

पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता। जिस भी विदेशी राष्ट्र या संस्थान ने भारत के नक़्शे से खिलवाड़ किया है, भारत सरकार ने उस से कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। लेकिन, देश के ही एक बड़े शैक्षिक संस्थान में भारत के नक़्शे से उसके एक अभिन्न अंग को ग़ायब कर दिया गया। नवम्बर 2018 में AMU में लगे एक पोस्टर में भारत के नक़्शे से जम्मू-कश्मीर को ग़ायब कर दिया गया। ऐसा यूनिवर्सिटी के कल्चरल एजुकेशन सोसाइटी की तरफ से मंचन किए जाने वाले एक नाटक के पोस्टर में किया गया था।

जब मामला राष्ट्रीय मीडिया में पहुँचा, तब यूनिवर्सिटी ने एक्शन लेते हुए उन पोस्टर्स को हटवाया। यह सिर्फ़ एक छोटी सी घटना ही नहीं है, बल्कि यूनिवर्सिटी के अधिकतर कर्मचारियों, अधिकारियों और छात्रों की मानसिकता का परिचायक है। वह मानसिकता, जो दिन प्रतिदिन और गहरी होती जा रही है, जिसकी जड़ें लगातार फैलती जा रही है। क्या AMU ने कुछ बाक़ी भी रखा है? आतंकियों का समर्थन, सुरक्षा बलों का विरोध, राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों का अपमान, भारत के नक़्शे से छेड़छाड़…..कुछ बाक़ी नहीं रहा।

कैसे सुधरेंगे हालात? कैसे बदलेगी तस्वीर?

आज स्थिति यह हो गई है कि सरकार भी AMU कैम्पस में पल रही ऐसी मानसिकता और उसके प्रभाव में आकर किए जा रहे राष्ट्रविरोधी कार्यों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में ख़ुद को असहाय महसूस कर रही है। अंध-विरोध के इस दौर में इसका एक हल यही है कि यूनिवर्सिटी कैम्पस के भीतर राष्ट्र प्रेम भी सिखाया जाए। यूनिवर्सिटी के प्रशासक ऐसे लोग हों- जिनका देश सेवा में योगदान रहा हो, जिनकी राष्ट्र निर्माण में भागीदारी रही हो।

यह अच्छा नहीं है कि पुलिस और सुरक्षा बल आतंकियों और अपराधियों की धड़-पकड़ के बजाय छात्रों के झगड़े सुलझाते फिरें। ज़िले के डीएम विकास कार्यों पर ध्यान देने के बजाय छात्रों के राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोकने में व्यस्त रहें। अगर यूनिवर्सिटी से देश को फ़ायदा नहीं हो रहा, तो इसमें आमूलचूल बदलाव कर इसे एक नया रूप देना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कैंपस के अंदर वातावरण स्वच्छ हों, विषैला नहीं। ऐसा तभी संभव है जब प्रशासक और छात्र- दोनों ही की काउंसलिंग की व्यवस्था की जाए। अच्छे लोगों को आमंत्रित कर सेमिनार आयोजित किए जाएँ।

सैनिकों की शहादत पर कॉन्ग्रेस का घटिया बयान

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकियों ने भारतीय सुरक्षा बल के जवानों पर आत्मघाती हमला किया। इस हमले में सेना के दो दर्जन से अधिक जवान शहीद हो गए। आतंकी द्वारा इस कायरतापूर्ण घटना को अंजाम देने के बाद कॉन्ग्रेसी नेता रणदीप सुरजेवाला का एक बेकार-सा बयान सामने आया है।

कॉन्ग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट करके सेना के शहीद 18 बहादुर जवानों को श्रद्धांजलि दी। इसके अलावा उन्होंने दु:ख की इस घड़ी में घटिया बयान देते हुए कहा, “इस मोदी सरकार के पिछले 5 वर्षों में यह 18वाँ बड़ा आतंकी हमला है। 56 इंच की छाती कब जवाब देगी?”

इस तरह सुरजेवाला के इस बयान से साफ ज़ाहिर होता है कि देश की सुरक्षा और सम्मान से भी अधिक वोट बैंक की राजनीति कॉन्ग्रेसी नेताओं के लिए मायने रखती है। जब पूरा देश सेना के जवानों के शहीद होने पर दु:ख महसूस कर रहा है, तब देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के प्रवक्ता द्वारा राजनीतिक बयान देना बिल्कुल शर्मनाक है।

यह पहली बार नहीं है जब कॉन्ग्रेस से इस तरह के बयान आए हैं। दिसंबर 2018 में शगीर सईद खान ने राज्य के लोगों से भरोसा दिलाया था कि अगर कॉन्ग्रेस की सरकार बनी तो आतंक के नाम पर मारे गए लोगों के परिवार को एक करोड़ रुपए और सरकारी नौकरी दी जाएगी।

ऐसे में साफ जाहिर होता है कि कॉन्ग्रेस को देश के सुरक्षा या स्वाभिमान की जरा भी चिंता नहीं है। सत्ता पाने के लिए सुरजेवाला जैसे नेता किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं। दर्द की इस घड़ी में जब देश के सभी राजनीतिक दलों को एक साथ इस आत्मघाती हमले के ख़िलाफ़ आवाज बुलंद करना चाहिए था, जब शहीद जवानों के परिवार के साथ खड़ा होना चाहिए था, तब सुरजेवाले ने राजनीतिक बयान देकर कॉन्ग्रेस पार्टी के असली चेहरा को उजागर किया है।


CRPF पर आतंकी हमले के बाद नीच लोगों की ‘संवेदनशील’ राजनीति शुरू हो गई है

भगोड़े विजय माल्या ने कहा, ‘ले लो बक़ाया पैसा वापस’

आर्थिक भगोड़ा एवं शराब कारोबारी विजय माल्या ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यकाल के संसद में आख़िरी भाषण का ज़िक्र करते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा कि उसने जिन पैसों को लौटाने के लिए प्रस्ताव दिये हैं उन्हें लेने के लिए प्रधानमंत्री बैंकों को निर्देश ही नहीं दे रहे हैं।

बता दें कि विजय माल्या ने अपने ट्विटर हैंडल से लिखा कि,“मैंने प्रधानमंत्री का संसद में दिये गए आख़िरी भाषण को सुना। वह निश्चित रूप से एक बहुत अच्छे वक्ता हैं। मैंने सुना कि उन्होंने अपने भाषण में ₹9,000 करोड़ लेकर भागे एक अज्ञात व्यक्ति का ज़िक्र किया।”

मीडिया आई ख़बरों के मुताबिक़, “मैं यह अनुमान लगा सकता हूँ कि उनका इशारा मेरी ओर था। मैं प्रधानमंत्री से आदरपूर्वक पूछना चाहता हूँ कि वे बैंको को मेरे द्वारा पेशकश की गई राशि को लेने का निर्देश क्यों नहीं दे रहे हैं ताकि वह (प्रधानमंत्री) कम से कम किंगफिशर को दिये गए ऋण की पूर्ण वसूली का श्रेय लेने का दावा तो कर सकें।”

अपने अगले ट्वीट में माल्या ने लिखा, “मैंने माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय के सामने ऋण वापसी का प्रस्ताव रखा है, जिसे ख़ारिज कर दिया गया है। यह पूरी तरह से सत्य और ईमानदार प्रस्ताव है। अब यह उनके हाथ में है। बैंक किंगफिशर एयरलाइन्स को दी अपनी राशि क्यों नहीं लेते हैं?”

इसके अलावा माल्या ने एक अन्य ट्वीट में लिखा,“मुझे यह कहते हुए आश्चर्य हो रहा है कि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दावा किया कि मैंने अपनी सम्पत्ति छुपा ली है! अगर मैंने सम्पत्ति छुपाई होती तो मैं अदालत के सामने सार्वजनिक रूप से लगभग
₹14,000 करोड़ की सम्पत्ति कैसे रख सकता था? लोगों को भ्रमित करना शर्मनाक और भयावह है।”

बता दें कि विजय माल्या 2 मार्च, 2016 को देश छोड़कर लंदन भाग गया था। माल्या को कड़ा झटका देते हुए मुंबई की धनशोधन निरोधक क़ानून (पीएमएलए) की विशेष अदालत ने उसे भगोड़ा ‘आर्थिक अपराधी’ घोषित कर दिया था। लंदन की एक अदालत ने 10 दिसंबर, 2018 को उनके प्रत्यर्पण का आदेश दिया था। ब्रिटेन के गृहमंत्री साजिद जावीद ने चार फ़रवरी 2019 को माल्या को करारा झटका देते हुए उसे भारत प्रत्यर्पित करन के आदेश पर हस्ताक्षर किए। माल्या को वहाँ के हाईकोर्ट में अपील करने के लिए 14 दिनों का समय दिया गया है।

पुलवामा जैसे आतंकी हमलों से निपटने के लिए क्या कर रही है भारत सरकार? एक नज़र

मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना को मजबूत और अधिक आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई सराहनीय कदम उठाए हैं। देश की रक्षा एवं सुरक्षा देश के विकास का ही एक अंग है। हम सुरक्षित हुए बिना विकसित होने की कल्पना नहीं कर सकते हैं। वर्तमान सरकार पड़ोसी देशों से सामरिक बढ़त लेने के साथ ही सेना को और उन्नत बनाने के लिए निरंतर सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए प्रयासरत रही है। विदेशों से उच्च गुणवत्ता वाले हथियार और मिसाइलों के साथ ही इस सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया है कि अधिक से अधिक रक्षा उपकरणों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ही किया जाए।

सेना के सशक्तिकरण के लिए हाल ही में लिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों पर एक नज़र

72,400 असाल्ट राइफल के लिए अमेरिकी कंपनी से करार

भारत ने अमेरिका से 72,400 असाल्ट राइफलें खरीदने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। करीब ₹700 करोड़ में ये राइफलें खरीदी जाएँगी। अमेरिका और कई यूरोपीय देशों की सेना इस राइफल का इस्तेमाल करती हैं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी महीने सिग सौयर राइफलों की खरीद की मंजूरी दी थी। चीन से लगती 3,600 किलोमीटर की लंबी सीमा पर तैनात जवान इस राइफल का इस्तेमाल करेंगे।

इज़राइल से ख़रीदे 2 AWACS

भारत ने इज़राइल से 2 और फाल्कन एयरबॉर्न वॉर्निंग एंड कण्ट्रोल सिस्टम (“Phalcon” Airborne Warning And Control System) एयरक्राफ्ट ख़रीदने का निर्णय लिया है। इसे AWACS भी कहा जाता है। अभी हाल ही में भारत ने एयर डिफेंस रडार (ADR) के लिए इज़राइल से ₹4577 करोड़ का करार किया है। इज़राइल भारत के शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ता देशों में से एक है। भारतीय सेना इस स्थिति को मज़बूत करते हुए इज़राइल से अतिरिक्त हेरॉन (Heron) और हारोप (Harop) भी ख़रीदना चाहती है। ये दोनों ही मानवरहित विमान हैं, जो दुश्मन के रडार में या अन्य लक्ष्य पर विस्फोट करने के लिए क्रूज़ मिसाइल का भी कार्य करते हैं।

भारत-रूस के बीच 7.47 लाख AK राइफ़लों का समझौता 

इसमें रूस के साथ मिलकर लगभग 7,47,000 क्लाशिनिकोव राइफ़लों के निर्माण का समझौता शामिल है। इन राइफ़लों को बनाने के लिए प्लांट उत्तर प्रदेश के अमेठी में लगाया जाएगा। बता दें इससे पहले भारत ने एक अमेरिकी कंपनी के साथ भी 72,400 असॉल्ट राइफ़ल्स की ख़रीद का समझौता किया था।

54 इज़रायली HAROP किलर ड्रोन

रक्षा मंत्रालय द्वारा एक उच्च स्तरीय बैठक में भारतीय वायु सेना की मानवरहित युद्ध क्षमता को और मजबूत बनाने के लिए 54 इजरायली HAROP किलर ड्रोन की खरीद को मंजूरी दी गई है। ये किलर ड्रोन दुश्मन के हाई-वैल्यू मिलिट्री टारगेट को पूरी तरह से ध्वस्त कर सकता है। इन घातक ड्रोनों को चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात किया जाएगा। इससे आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करना और भी आसान हो जाएगा। सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन भी आसानी से अंजाम देने में सक्षम होगी हमारी सेना। मौजूदा समय में वायुसेना के पास 110 ड्रोन हैं।

चिनूक सैन्य हेलिकॉप्टर

अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोईंग ने रविवार (10 फ़रवरी) को भारतीय वायुसेना को 4 चिनूक सैन्य हेलिकॉप्टर सौंप दिए। इन हेलीकॉप्टर्स को गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह पर उतारा गया। कंपनी द्वारा जारी बयान के अनुसार सीएच-4एफ़ (I) चिनूक हेलिकॉप्टर को चंडीगढ़ ले जाया जाएगा, वहाँ उन्हें औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना में शामिल किया जाएगा। इसका इस्तेमाल युद्ध के दौरान या सामान्य स्थिति में हथियारों, उपकरणों और ईंधन को ढोने में किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल मानवीय और आपदा राहत अभियानों में राहत सामग्री पहुँचाने और बड़ी सँख्या में लोगों को बचाने के लिए भी किया जाता है। चिनूक वही हेलिकॉप्टर है, जिसकी मदद से अमेरिका ने कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का ख़ात्मा किया था।

AN- 32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट पहुँचा पाक्योंग एयरपोर्ट 

हाल ही में वायुसेना ने देश के सबसे ऊँचे हवाईअड्डों में से एक- पाक्योंग एयरपोर्ट पर अपना परिवहन विमान AN-32 को उतार कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह एयरपोर्ट सामरिक रूप से भी भारत के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है। भारतीय वायुसेना (IAF) के ‘Antonov-32 (AN- 32)’ ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को पाक्योंग एयरपोर्ट पर सफलतापूर्वक लैंड कराया गया। यह एयरपोर्ट भारत-चीन सीमा से सिर्फ 60 किमी की दूरी पर स्थित है। राजधानी गंगटोक से इसकी दूरी क़रीब 16 KM है।

S-400 एयर डिफ़ेन्स सिस्टम 

रूस के उप विदेश मंत्री सर्जे रयाब्कोव ने जनवरी 9, 2019 को कहा कि रूस भारत को S-400 एयर डिफ़ेन्स मिसाइल सिस्टम पूर्व निर्धारित समय पर ही देगा तथा डिलीवरी में किसी भी प्रकार की देर नहीं की जाएगी। भारत-रूस के मध्य 40,000 करोड़ रुपये में S-400 ट्रायंफ खरीदने का समझौता गत वर्ष सम्पन्न हुआ था जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आए थे। S-400 एक इंटीग्रेटड मिसाइल सिस्टम है जो दूर और पास दोनों प्रकार के लक्ष्यों को भेद सकता है। युद्धनीति के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक प्रतिरक्षात्मक प्रणाली है अर्थात इसका प्रयोग पहले हमला करने के लिए नहीं किया जाता। S-400 की इन चार मिसाइलों की रेंज है: 40 किमी, 120-150 किमी, 200-250 किमी और 400 किमी।

अंडमान निकोबार द्वीपसमूह क्षेत्र में सैन्य बुनियादी ढाँचे का विकास

हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत ने अंडमान निकोबार द्वीपसमूह क्षेत्र में अपने सैन्य बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए अगले 10 वर्षों के लिए ₹5,650 करोड़ लागत की योजना को अंतरिम रूप दे दिया है। इसके ज़रिए अब अतिरिक्त युद्धपोत, विमान, ड्रोन, मिसाइल बैट्री और पैदल सैनिकों की तैनाती की राह सुलभ हो जाएगी। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए इस योजना को अमल में लाया गया है।

INS अरिहंत

नवंबर 5, 2018 को भारत की प्रथम स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन आईएनएस अरिहंत ने समुद्र में गश्त लगाई थी। इसे Ship Submersible Ballistic Nuclear (SSBN) सबमरीन कहा जाता है। जल के भीतर होने से अरिहंत शत्रु की नज़र से लगभग ओझल ही रहेगी जिसके कारण भारतीय नौसेना को रणनीतिक लाभ होगा। अरिहंत 6000 टन की 367 फिट लंबी पनडुब्बी है जो K-15 बैलिस्टिक मिसाइल से लैस की जा सकती है। इस मिसाइल की रेंज 750 किमी तक मार करने की है। 

K-9 वज्र

इस सेल्फ प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र को लार्सेन एंड टर्बो नाम की कंपनी ने तैयार किया है। नवंबर 2018 को देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय सेना के तोपखाने में K-9 वज्र को शामिल करने की घोषणा की थी। पाकिस्तान से सटे बाड़मेर व अन्य रेगिस्तानी बार्डर वाले इलाके के लिहाज से यह बेहद उपयोगी है। K-9 वज्र के ज़रिए 28 से 38 किलोमीटर के रेंज में वार किया जा सकता है।

₹22,563 करोड़ की वृद्धि के साथ रक्षा बजट ₹3 लाख करोड़ के पार –

वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान रक्षा बजट में मात्र ₹22,563 करोड़ की वृद्धि की गई है। इससे सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण प्रभावित होगा। गत वर्ष रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने वाइस चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद्र ने कहा था कि बजट में जितना धन आवंटित किया जा रहा है उससे लिमिटेड लायबिलिटी तक पूरी नहीं होती।स्पष्ट है कि यह बजट सेना के नवीनीकरण और आधुनिकरण में लाभदायक साबित होगा।

‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनेंगे नेवी के हेलिकॉप्टर्स

भारत ने 111 नौसैन्य हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए अभिरूचि पत्र जारी किया। फरवरी 12, 2019 को रक्षा मंत्रालय ने 111 नौसेना उपयोगिता हेलीकॉप्टरों (एनयूएच) की खरीद के लिए संभावित भारतीय सामरिक साझेदारों एवं विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के नाम छांटने के लिए अभिरूचि पत्र यानी ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ जारी किया है। ये हेलीकॉप्टर चेतक मॉडल की जगह लेंगे और इनका इस्तेमाल हताहतों की तलाश, बचाव या उन्हें सुरक्षित निकाले जाने में किया जाएगा। इन 111 में से 95 हेलीकॉप्टरों का निर्माण भारत में उसके द्वारा चुने गए भारतीय सामरिक साझेदार करेंगे। इस कई अरब डॉलर वाले प्रस्ताव को पिछले साल अगस्त में रक्षा खरीद परिषद ने मंजूरी दी थी। इस परियोजना से सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बड़ा बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और भारत में हेलीकॉप्टरों की निर्माण क्षमता को प्रोत्साहित करेगी।

CRPF के एक दर्जन से अधिक जवान आतंकी हमले में शहीद, 45 से अधिक घायल

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में अवंतीपोरा इलाके के करीब सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकियों द्वार किए गए हमले में सीआरपीएफ के एक दर्जन से अधिक जवान शहीद हो गए हैं। शहीद जवानों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर स्थित अवंतीपोरा इलाके में आतंकियों ने जवानों की गाड़ी को निशाना बनाते हुए आतंकी घटना को अंजाम दिया।

हमले के बाद दक्षिण कश्मीर के कई इलाकों में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अलर्ट जारी किया गया है। बताया जा रहा है कि सुरक्षाबलों के काफ़िले पर जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन ने आत्मघाती हमला किया जिसमें करीब 40 जवान घायल, जबकि 18 जवानों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है।

उरी के बाद यह बड़ा आतंकी हमला

घायल जवानों को नज़दीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि जिस वक्त सीआरपीएफ के काफ़िले पर हमला किया गया उस वक्त करीब दर्जनभर गाड़ियों में सवार होकर जवानों का काफिला निकल रहा था। बता दें कि उरी हमले के बाद यह बड़ा आतंकी हमला है। उरी हमले में 19 जवान शहीद हुए थे।

हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “जैश-ए-मोहम्मद ने फिदायीन हमले का दावा किया है। यह हमला 2004-05 के पहले के काले दिनों की याद दिलाते हैं।”

जैश-ए-मोहम्मद ने ली हमले की जिम्मेदारी, आदिल डार ने रची साजिश

हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। बताया जा रहा है कि इस आतंकी घटना को अंजाम देने के पीछे आदिल अहमद डार नाम के आतंकी का हाथ है। आदिल पुलवामा के काकापोरा इलाके का रहने वाला है। बता दें कि, हमले से पहले आतंकियों ने पहले हाइवे खड़ी एक कार में आईईडी से ब्लास्ट किया और फिर सीआरपीएफ जवानों के वाहनों पर हथियारों से जमकर फ़ायरिंग की।

जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर ट्रैफिक बंद, सर्च ऑपरेशन जारी

हमले की जानकारी मिलते ही सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की अन्य कंपनियों को अवंतिपोरा भेजा दिया गया है और आतंकियों का सर्च ऑपरेशन जारी है। हमले के बाद से जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर ट्रैफिक को बंद करते हुए बड़ा सर्च ऑपरेशन किया जा रहा है। इसके अलावा पुलवामा, शोपियां, कुलगाम और श्रीनगर जिलों में हाई अलर्ट भी जारी किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले की निंदा करते हुए कहा है कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।

J&K में आग से खेल रही सरकार: लद्दाख डिविज़न पर महबूबा मुफ़्ती की बौखलाहट

पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती आए दिन अपने बयानों से विवादों में घिर जाती हैं। आज फिर उनका एक बयान सामने आया, जिसमें एक बार फिर वो केंद्र को घेरने की कोशिश में दिखीं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार राज्यपाल सत्यपाल मलिक के ज़रिए राज्य में आग से खेलने का प्रयास कर रही है। राज्य की मुस्लिम बहुल चरित्र को तोड़ने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र राज्यपाल को माध्यम बनाकर जो भी निर्णय ले रही है, वो राज्य के लोगों और उनके हितों के ख़िलाफ़ है।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संवाददाताओं से मुख़ातिब होते हुए उन्होंने कहा, “पूरे देश और केंद्र को स्वीकार करना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है और बड़े समुदाय के साथ-साथ अल्पसंख्यकों की भी भावनाओं का ख़्याल रखते हुए निर्णय लिए जाने चाहिए।”

बीजेपी के ख़िलाफ़त में महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि उन्होंने (बीजेपी) न सिर्फ़ पीर पंजाल और चेनाब को अनदेखा करके एक डिविज़न का गठन किया बल्कि इसके मुख्यालय के चयन में भी भेदभाव किया। करगिल के लिए लेह श्रीनगर से ज़्यादा दूर है।

बता दें कि राज्य प्रशासनिक परिषद ने पिछले सप्ताह ही राज्य में एक अलग डिविज़न लद्दाख का गठन किया था और लेह को इसका मुख्यालय बनाया था। इसका करगिल में विरोध भी हुआ था। इसके पीछे मुफ़्ती ने बीजेपी का हाथ होने की संभावना जताई।

महबूबा मुफ़्ती ने केंद्र पर आरोप लगाते हुए कहा, ”हम राज्य में अब लिए जा रहे निर्णयों में केन्द्र सरकार का हाथ देख रहे हैं, यह एजेंडा लगता है। जिसे हमने बीजेपी को लागू करने नहीं दिया (जब पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार सत्ता में थी) वह अब राज्यपाल के ज़रिए लागू किया जा रहा है। इसके कारण करगिल में एक विस्फोटक स्थिति हुई, हालाँकि यह एक शांतिपूर्ण इलाक़ा है।”

Valentine’s Day: हैदराबाद में बजरंग दल के सदस्यों ने प्रेमी जोड़े की कराई शादी

हैदराबाद के मेडचल में एक कंडलाकोया पार्क है। मीडिया से आ रही ख़बरों के मुताबिक इस पार्क में वेलेंटाइन डे के मौके पर बजरंग दल के सदस्यों द्वारा एक प्रेमी जोड़े की शादी कराई गई है। हालाँकि, इस मामले में शादी के बाद से भगवा-पहने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ प्रेमी जोड़े द्वारा कोई शिकायत या एफआईआर दर्ज़ नहीं की गई है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि दल की मौजूदगी में यह शादी युगल की सहमति से किया गया।

वेलेंटाइन के मौके पर प्रेमी जोड़े को शादी कराने के बाद बजरंग दल के सदस्यों ने कहा कि हमलोग वेलेंटाइन डे जश्न के ख़िलाफ़ हैं। वेलेंटाइन डे हिंदू परंपराओं के ख़िलाफ़ है। यह दिन हमारे देश की संस्कृति का प्रतीक नहीं है।

फरवरी के पहले ही सप्ताह से बजरंग दल ने शहर में वेलेंटाइन डे जश्न के ख़िलाफ़ बाइक रैलियों के जरिए विरोध प्रदर्शन किया था। इस रैली के माध्यम से बजरंग दल के लोगों ने वेलेंटाइन डे मनाने के ख़िलाफ़ प्रेमी जोड़े को सतर्क किया था। यही नहीं बजरंग दल के सदस्यों ने प्रेमी जोड़े को किसी पार्क या पब में जाकर वेलेंटाइन डे को सेलीब्रेट करने का भी विरोध किया था।

बता दें कि एक हफ्ते पहले, बजरंग दल ने चेतावनी जारी की थी कि तेलंगाना में कहीं भी अगर कोई जोड़ा वेलेंटाइन डे पर पाया जाता है, तो उनके माता-पिता को बुलाया जाएगा और उसके बाद अभिवावक के सामने इन प्रेमी जोड़े की काउंसिलिंग की जाएगी।