Saturday, October 5, 2024
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मृत किसान भी बना दिए गए कर्ज़दार: MP में कर्ज़माफ़ी के नाम पर खेल जारी

देश के किसान अपने जीते-जी तो कर्ज़ लेकर जीवन यापन करते ही हैं, लेकिन अब मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस सरकार ने मृत किसानों को भी कर्ज़दार बना दिया। शिवपुरी के टोढ़ा पिछोर के रहने वाले लाला राम की मौत 25 साल पहले हो गई है। लालाराम ने जिंदा रहते हुए कभी नहीं सोचा होगा कि उसके मृत्यु के 25 साल बाद कोई सरकार उन्हें कर्ज़दारों की लिस्ट में शामिल कर देगी।

लालाराम के पुत्र मोहन लाल ने बताया कि टोढ़ा पिछोर सोसायटी की कर्ज़माफ़ी सूची में 34 हजार 107 रुपए मेरे मृत पिता के नाम दर्ज़ है। यह कहानी सिर्फ़ लालाराम नाम के किसान की नहीं है।

दैनिक भास्कर ने अपने रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है कि सहकारी समितियों द्वारा राज्य में कर्ज़माफ़ी की घोषणा के बाद 300 से अधिक दिवंगत लोगों के नाम कर्ज़दारों की लिस्ट में शामिल किया है।

जानकारी के लिए बता दें कि दिवंगत किसानों के परिजन को गुलाबी फॉर्म भरने के साथ ही साथ लिखित शिकायत करने के लिए भी कहा गया है। किसानों को शिकायत करने की अंतिम तारीख 5 फ़रवरी तय की गई है।

इसके अलावा अधिकारियों द्वारा शिक़ायत वापस लेने के लिए दवाब बनाने के मामले भी सामने आए हैं। ऐसा ही एक मामला दतिया से सामने आया है जिसमें नंदपुर की रहने वाली शकुंतला नामक महिला ने शिक़ायत की तो उसके पास सहकारी बैंक की ओर से समझौते के लिए फोन किया गया।

एक मजेदार बात यह भी है कि अकेले दतिया जिले में बिना कर्ज़ लिए और दिवंगत हो चुके 5 हज़ार किसानों का नाम कर्ज़दारों की लिस्ट में शामिल होने की बात सामने आ रही है।

लोकतंत्र की हिमायती ममता बनर्जी ने Republic TV के फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच की हत्या के लिए थमाया नोटिस

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो हाल ही में तथाकथित देश के संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने का दावा करते हुए धरने पर बैठी थी, और जो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की ज़बरदस्त हिमायती हैं, उसी ममता बनर्जी ने अब कोलकाता में उनके धरना प्रदर्शन से उपजे हड़ताल के लगातार कवरेज पर इंग्लिश समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी और उसके हिंदी चैनल रिपब्लिक भारत को नोटिस भेजा है। बता दें कि सीबीआई अधिकारियों द्वारा शारदा चिट फंड घोटाले की जाँच के लिए कोलकाता पुलिस आयुक्त के आवास पर पहुँचने के बाद ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। कोलकाता पुलिस प्रमुख के पक्ष में माहौल बनाने के लिए, ममता, विभिन्न पुलिस अधिकारियों के साथ धरने पर बैठ गईं।

रिपब्लिक टीवी के अनुसार, मीडिया समूह ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में ‘सीबीआई बनाम कोलकाता पुलिस उपद्रव’ पर रिपोर्ट करने के बाद उन्हें एक नोटिस के साथ धमकी दी है। यहाँ आठ सीबीआई अधिकारियों को कोलकाता पुलिस ने ममता बनर्जी के आदेश पर गिरफ़्तार किया था। सीबीआई अधिकारी कोलकाता पुलिस प्रमुख राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए कोलकाता के लिए गए थे ताकि बड़े पैमाने पर शारदा घोटाले के से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सके। बता दें कि शारदा चिट-फंड मामले में सत्तारूढ़ तृणमूल कॉन्ग्रेस के कई वरिष्ठ पदाधिकारी आरोपित हैं।

हालाँकि, रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी ने कहा है कि वह ममता बनर्जी सरकार द्वारा घटना पर अपनी रिपोर्ट के लिए गिरफ़्तार होने को तैयार हैं। मीडिया संगठन ने यह भी कहा है कि वे अपनी रिपोर्ट के आधार पर खड़े हैं और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा इस तरह की धमकी से डरने वाले नहीं हैं।

रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी ने ममता सरकार से कहा, “मैं ममता बनर्जी के पुलिसिया गुर्गों द्वारा गिरफ़्तार होने के लिए तैयार हूँ।”

SC ने फिर कहा- ग़रीबों को 10% आरक्षण वाले विधेयक पर रोक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। आज (फरवरी , 2019) दूसरी बार है जब संविधान (103वें) संशोधन विधेयक पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगाने से इनकार कर दिया भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की खंडपीठ ने तहसीन पूनावाला की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐसा कहा, जिसमे संविधान संशोधन अधिनियम को चुनौती दी गई थी।

बता दें कि याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला कॉन्ग्रेसी नेता हैं। पूनावाला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भारत सरकार के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका में आरक्षण के 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को पार करने पर चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जल्द सुनवाई के लिए याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए कोई भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।

बता दें कि आर्थिक आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा दो दिनों के भीतर पारित किया गया था। संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के तीन दिन बाद, राष्ट्रपति ने भी इस बिल पर हस्ताक्षर कर दिए थे। हालाँकि, राष्ट्रपति की सहमति मिलने से पहले ही ग़ैर-सरकारी संगठन यूथ फॉर इक्वेलिटी ने सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून को चुनौती दे दी थी। 14 जनवरी से आर्थिक आरक्षण अधिनियम लागू हुआ।

यूथ फॉर इक्वलिटी’ और कौशल कान्त मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल कर विधेयक के ख़िलाफ़ दलील देते हुए कहा था कि अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलता भी है तो उसे केवल सामान्य वर्ग तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। बता दें कि इंदिरा साहनी वाले केस में अदालत ने ये फ़ैसला सुनाया था कि केवल आर्थिक स्थिति आरक्षण का आधार नहीं बन सकती।

इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट में इस विधेयक को चुनौती देते हुई कई याचिकाएँ दाख़िल की गई। सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, बल्कि देश के अन्य न्यायालयों में भी इस विधेयक को चुनौती देती कई याचिकाएँ दाख़िल की गई। तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी डीएमके ने भी मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दाख़िल कर इस अधिनियम को चुनौती दी है।

‘हिट जॉब विशेषज्ञ’ एन राम के अर्ध-सत्य को राहुल ने खींचना चाहा, सरकार ने उठाकर पटक दिया

राहुल गांधी ने आज द हिन्दू के हवाले से एक आधे अधूरे पत्र को दिखा कर फिर से फ़र्ज़ी राफेल उड़ाने की कोशिश की और प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा प्रयोग करते हुए कहा कि चौकीदार चोर है। द हिन्दू में एन राम ने एक लेख लिखा था जिसके बाद राहुल गांधी ने यह आरोप लगाया। एन राम पहले भी राफेल मुद्दे पर अप्रामाणिक और सनसनीखेज़ खबर प्रकाशित कर मुँह की खा चुके हैं।

द हिन्दू में एन राम ने आज सुबह एक लेख लिखा जिसमें 2015 में रक्षा सचिव रहे जी मोहन कुमार का लिखा एक आधा अधूरा पत्र प्रकाशित किया और मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय रक्षा मंत्रालय के काम में अड़ंगा डाल रहा था। एन राम ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने राफेल की खरीद में रक्षा मंत्रालय और फ़्रांस की कंपनी से की जा रही बातचीत में अनावश्यक रोड़ा अटकाने के उद्देश्य से हस्तक्षेप किया।

यह आरोप लगाने का उद्देश्य यह साबित करना था कि प्रधानमंत्री ने राफेल खरीद में किसी अन्य पार्टी को लाभ पहुँचाने के मकसद से हस्तक्षेप किया। जी मोहन कुमार ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय से असहमति जताते हुए लिखा था कि राफेल रक्षा खरीद में प्रधानमंत्री कार्यालय रक्षा मंत्रालय के पैरेलल नेगोशिएशन कर रहा है।  

द हिन्दू में प्रकाशित लेख के तुरंत बाद ही जी मोहन कुमार सामने आए और उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि वह पत्र उन्होंने राफेल की क़ीमत के बारे में नहीं बल्कि ‘sovereign guarantee’ और सामान्य नियम एवं शर्तों के बारे में लिखा था।

तेज़ी से बदलते घटनाक्रम में तस्वीर और साफ़ होती गई जिसमें राहुल गांधी के आरोपों की धज्जियाँ उड़ गईं। समाचार एजेंसी ANI ने जी मोहन कुमार का पूरा पत्र अपने ट्वीट में प्रकाशित किया जिसमें जी मोहन कुमार के पत्र का उत्तर तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने दिया था।

मनोहर पर्रिकर ने मोहन कुमार के पत्र का उत्तर देते हुए लिखा था कि भारत के पीएमओ और फ़्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा राफेल खरीद समझौते की पूरी मॉनिटरिंग की जा रही थी जो दोनों देशों के शासनाध्यक्षों के शिखर सम्मेलन में हुई मीटिंग के फलस्वरूप थी। ऐसे में मोहन कुमार की आपत्ति एक निरर्थक प्रतिक्रिया थी। मनोहर पर्रिकर ने अपने उत्तर में यह भी लिखा था कि यदि मोहन कुमार के पीएमओ से कोई मतभेद थे तो वे प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव से बात कर मामला तत्काल सुलझा सकते थे।    

जी मोहन कुमार के स्पष्टीकरण और ANI के ट्वीट के साथ ही रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने लोकसभा में कहा कि यदि एक अख़बार में एक पत्र प्रकाशित कर आरोप लगाए जा सकते हैं तो पत्रकारिता का यह भी दायित्व है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री (पर्रिकर) का उत्तर भी प्रकाशित किया जाए। सीतारमन ने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाते हुए भी कहा कि यूपीए शासनकाल में जब सोनिया गांधी पीएमओ में हस्तक्षेप करती थीं तो उसे क्या कहा जाएगा।            

SC में तेजस्वी की याचिका ख़ारिज, लगाया 50 हजार का जुर्माना

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव को सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका लगा है। कोर्ट ने राजद नेता तेजस्वी यादव की याचिका ख़ारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में देश रत्न मार्ग स्थित बंगला न. 5 को खाली करने का आदेश सुनाया है। इसके साथ ही कोर्ट ने तेजस्वी पर 50,000 रूपए का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने तेजस्वी को नेता विपक्ष के बंगले में रहने का फैसला सुनाया है।

हाई कोर्ट में भी बंगला के लिए दावा पेश कर चुके हैं तेजस्वी

जानकारी के लिए बता दें कि तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री रहते हुए जो बंगला मिला था, उस बंगले को तेजस्वी खाली नहीं करना चाहते थे। सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ तेजस्वी हाई कोर्ट पहुँच गए थे। हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने तेजस्वी की याचिका ख़ारिज कर दी थी। इसके बाद तेजस्वी ने सिंगल बैंच के फै़सले को पटना हाई कोर्ट के डबल बेंच में चुनौती दी। डबल बेंच ने भी तेजस्वी की याचिका को ख़ारिज कर दी। इसके बाद पटना हाई कोर्ट के डबल बेंच के फैसले के खिलाफ़ तेजस्वी सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए थे।

सुशील मोदी को अलॉट है यह बंगला

जिस बंगला के लिए तेजस्वी यादव सुप्रीम कोर्ट गए थे, वह बंगला राज्य के उप मुख्यमंत्री के लिए अलॉट है। ऐसे में नियम के मुताबिक वह बंगला बिहार के वर्तमान उपमुख्यमंत्री व भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को अलॉट किया गया है। बिहार सरकार ने तेजस्वी के लिए बंगला 1-पोलो रोड पर अलॉट किया है।

SC का आदेश, मायावती को लौटाना होगा मूर्तियों पर ख़र्च किया धन

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (फरवरी 8, 2019) को आदेश दिया है कि बसपा अध्यक्ष मायावती को जनता का वो सारा धन लौटाना होगा जिसे उन्होंने अपने स्मारकों को बनाने में खर्च किया हैं।

यह आदेश न्यायलय ने एक वकील द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। जिसमें शिकायत थी कि कोई भी राजनैतिक पार्टी जनता के पैसों का इस्तेामल अपने मूर्तियाँ बनवाने के लिए या फिर प्रचार- प्रसार करने के लिए नहीं कर सकती है।

साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में कुछ लोगों ने इस मामले पर याचिका को दायर किया था, जिसपर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह आदेश दिया है। इस सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मायावती के वकील से कहा कि वो अपनी मुवक्किल से कहें कि वह मूर्तियों पर ख़र्च किया गया पूरा धन सरकारी खजाने में जल्द जमा करवाएँ।

लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक यूपी की तात्कालीन मुख्यमंत्री ने लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोयडा में स्थित पार्कों और मूर्तियों पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए थे।

इसके अलावा मायावती ने नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर हाथी की पत्थर की 30 और काँसे की 22 मूर्तियाँ लगवाई थी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हाथी उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न भी है। इसलिए जब उनके इस कार्य पर लोगों ने सवालों को उठाना शुरू किया तो उन्होंने बेहद ही बचकाना तर्क़ दिया कि हाथी हमारी भारतीय सभ्यता की शान हैं। इसलिए उन्होंने हाथी की प्रतिमाओं को बनवाया हैं। इन हाथियों की प्रतिमा निर्माण में क़रीब ₹685 करोड़ का खर्चा आया था।

रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पीठ में जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना भी शामिल थे। इस मामले पर पीठ अपना अंतिम निर्णय आगामी 2 अप्रैल 2019 को सुनाएगी।

आपको याद दिला दें मायावती द्वारा की गई चालाकियाँ सिर्फ़ इतनी ही नहीं थी। मायावती ने न सिर्फ़ जनता के पैसे का दुरुपयोग करके अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रचार-प्रसार करने की कोशिशें की बल्कि इसके अलावा सरकारी आवास को ट्रस्ट बनाकर हथियाने की कोशिशें भी की।

सरकारी बंगला हाथ से न चला जाए इसके लिए मायावती ने साल 2018 में 13-ए मॉल एवेन्यू स्थित बंगले पर ‘श्री कांशीरामजी यादगार विश्राम स्थल का बोर्ड लगा दिया। क्योंकि कांशीराम के नाम से दलितों की भावनाएँ जुड़ी हैं, जिसके कारण सरकार के लिए उस पर कब्ज़ा करना आसान नहीं होगा।

‘हलाला’ और ‘हलाल’ में अधिक अंतर नहीं, क्योंकि तिल-तिल मरते जीवन का कोई अर्थ नहीं

‘निक़ाह-हलाला’ एक ऐसी कुप्रथा है जिसे सुनकर ही रूह काँप उठे और जिस पर गुज़रती हैं उसके तन-मन की स्थिति का अंदाज़ा लगाना भी असंभव है। मेरी समझ से तो ‘हलाला और हलाल’ में कोई ख़ास अंतर नहीं है। एक मायने में हलाल प्रक्रिया तो फिर भी मृत्यु तक पहुँचा देती है, लेकिन हलाला प्रक्रिया तो न जीने देती है और न मरने। तिल-तिल मरने को मजबूर होते जीवन का जो मतलब बनता होगा वो तो मुस्लिम महिलाएँ ही जानती होंगी, हम और आप तो उस दर्दनाक जीवन की केवल कल्पना भर ही कर सकते हैं।

प्रतीत होता है कि ऐसी विषम स्थितियों का सामना कर रही मुस्लिम सम्प्रदाय की महिलाएँ इन कुरीतियों को मानने के लिए लिए जैसे दिमागी तौर पर पहले से ही तैयार रहती हों। लगता है कि विरोध करने की ताक़त तो जैसे उनमें कभी पनपी ही न हो। क्या धार्मिक कुरीतियों को मानने की बाध्यता इतनी प्रबल है जिसमें सर्वस्व जीवन अंदर ही अंदर घुटते बीते, तो भी कोई ग़म नहीं? ऐसे में यह प्रश्न निहायत ही ज़रूरी बन पड़ता है कि चुप्पी साधे रखने को अपनी नियति समझती महिलाएँ कहीं असल में अपने ही पतन का कारण तो नहीं?

मुस्लिम महिलाओं के इसी नियती स्वरुप को ऑपइंडिया के एक लेख में विस्तार से बताया गया है। जिसे हर महिला को एक बार ज़रूर पढ़ना चाहिए।  

शोषण के ख़िलाफ़ मुस्लिम महिलाओं ने किया अदालत का रुख़

कहते हैं बर्दाश्त करने की भी कोई हद होती है और जब ये पार होती है तो इतिहास कुछ नया रचने की दिशा में अग्रसर होता है। ऐसा ही कुछ ट्रिपल तलाक़ और निक़ाह-हलाला की कुरीतियों के ख़िलाफ़ हुआ जिसकी बदौलत कुछ मुस्लिम महिलाएँ कोर्ट की चौखट तक जा पहुँची। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक़ को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर पूर्णत: रोक लगाने का आदेश दिया।

मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बेहतरी और बराबरी के पायदान तक लाने के लिए पिछले साल (दिसम्बर, 2018) मोदी सरकार द्वारा ट्रिपल तलाक़ विधेयक लाया गया जो लोकसभा में तो पास हो गया लेकिन राज्यसभा में अटक गया था।

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने निक़ाह-हलाला की कुप्रथा का पुरज़ोर विरोध किया

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए ट्रिपल तलाक़ विधेयक को रद्द करने के लिए कॉन्ग्रेस के रुख़ की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने निक़ाह-हलाला कुप्रथा के बारे में एक ब्लॉग लिखा जिसमें कॉन्ग्रेस की मंशा पर सवालिया होते हुए उन्होंने लिखा “क्या बरेली” निक़ाह-हलाला “आपकी अंतरात्मा को झकझोरता नहीं?” अपने लेख में उन्होंने कई बिंदुओं को उजागर किया।

  • कुछ घटनाएँ इतनी बेहूदा और प्रतिकारक होती हैं कि वे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देती हैं और उसे समाज से दूर करने के लिए मजबूर करती हैं। धार्मिक क़ानून (पर्सनल लॉ) द्वारा किया गया यह अन्याय इसका उदाहरण है।
  • पिछले कई दशकों में कई समुदायों द्वारा उनके पर्सनल लॉ में महत्वपूर्ण बदलाव लाए गए हैं। इन बदलावों में लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाती है, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जाती है और साथ ही सम्मान के साथ जीने का अधिकार सुनिश्चित किया जाता है। सदियों से चली आ रही कुछ प्रथाएँ इतनी अप्रिय थीं (जैसा कि सती और अस्पृश्यता) को अब असंवैधानिक माना जाता है।
  • बरेली के एक हालिया मामले ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया है। यह इस्लामिक पर्सनल लॉ में निक़ाह-हलाला की अप्रिय प्रथा से जुड़ी हुई है। 2009 में शादी करने वाली एक महिला को उसके पति ने ट्रिपल तलाक़ के माध्यम से एक बार 2011 में और उसके बाद 2017 में दो बार तलाक़ दिया। परिवार ने पत्नी को फिर से स्वीकार करने के लिए पति पर दबाव बनाया। दोनों अवसरों पर, पत्नी को बहकाया गया और निक़ाह-हलाला से गुज़रने के लिए कहा गया, पहले मौक़े पर अपने ससुर के साथ और बाद में अपने देवर के साथ हलाला की शर्त रखी गई।
  • दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया। लगभग इसी तरह का मामला 2 सितंबर, 2018 को उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में भी हुआ था। 21वीं सदी में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाओं की गरिमा का इतना घोर उल्लंघन हो सकता है कि हर व्यक्ति को शर्म से सिर झुकाना पड़े।
  • इस महिला के साथ बलात्कार करने के बाद, ससुर और देवर दोनों ने पीड़िता को तलाक़ देने के लिए ट्रिपल तालाक़ के हथियार का इस्तेमाल किया ताकि उसे उसके पति द्वारा स्वीकार किया जा सके।
  • यदि भारत में ट्रिपल तलाक़ की अनुमति नहीं दी जाती, तो क्या इस तरह की घटनाएँ होतीं ? सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही तत्काल प्रभाव से तलाक़ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कई मुस्लिम रुढ़ीवादी पुरुषों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अवहेलना की गई।
  • सुबह समाचार पत्रों में मानवीयता को ठेस पहुँचाने वाली इस इस ख़बर को पढ़ने के बाद इसका पुरज़ोर विरोध होना चाहिए था, लेकिन AICC के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अल्पसंख्यक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संसद में लंबित ट्रिपल तलाक़ विधेयक को हटाने के लिए फिर से संसद में लाया जाएगा।
  • इतिहास ने ख़ुद को दोहराया है, न तो एक व्यंग्य के रूप में और न ही एक त्रासदी के रूप में। इसने ख़ुद को क्रूरता की मानसिकता के साथ दोहराया है। दिवंगत राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो के फ़ैसले को पलटते हुए विधायी ग़लती की, जो सभी मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी से संबंधित था।
  • बरेली में मुस्लिम महिला को जानवरों से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर किया गया।
  • वोट भी महत्वपूर्ण हैं लेकिन इनकी निष्पक्षता भी ज़रूरी है। राजनीतिक अवसरवादी लोग केवल अगले दिन की सुर्ख़ियों को बटोरने की जुगत में दिखते हैं, जबकि राष्ट्र-निर्माण की सोच रखने वाले लोग अगली शताब्दी तक अपनी दूरदृष्टि बनाए रखते हैं।

इन सब में चिंता की बात है निक़ाह-हलाला और तलाक़ जैसी कुरीतियों के ख़िलाफ़ अगर कुछ मुस्लिम महिलाएँ सामने आती भी हैं, तो इस बात का क्या सबूत है कि उन्हें पूरी तरह से न्याय मिल ही जाएगा, शायद यही सवाल मुस्लिम महिलाओं के ज़ेहन में आज से नहीं बल्कि सदियों से रहा होगा, जिसका निदान आज के समय में तो हो ही जाना चाहिए।

अगर मोदी लोकतंत्र को बर्बाद कर रहा है, तो हमें बर्बाद लोकतंत्र ही चाहिए

विपक्षी नेतागण हद से ज्यादा बोरिंग हो गए हैं। उनके घिसे-पिटे बयानों से अब देश की जनता को खीझ और बोरियत होने लगी है, जो कभी-कभी ग़ुस्से में भी तब्दील हो जाता है। प्रधानमंत्री के अंध-विरोध में ये इतने पागल हो चुके हैं कि जब किन्हीं भ्रष्टाचार, अपराध या देशद्रोह के आरोपितों के यहाँ सरकारी एजेंसियों की दस्तक पड़ती है, तो सबसे पहले इन नेताओं के ही कान खड़े होते हैं। आतंक-विरोधी अभियान से लेकर भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई तक – विपक्षी दलों के ये नेता इन सभी का राजनीतिकरण करने की भरसक कोशिश करते हैं।

विजय माल्या को यूपीए कार्यकाल के दौरान हजारों करोड़ के लोन दिए जाते हैं। मोदी सरकार उसके प्रत्यर्पण में पूरी ताक़त झोंक देती है और उसकी सम्पत्तियों को एक-एक कर ज़ब्त करती है। लेकिन, लोकतंत्र की बर्बादी मोदी कर रहे हैं। अगस्ता-वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाला यूपीए कार्यकाल में होता है। मोदी सरकार उस घोटाले के मामले में क्रिस्चियन मिशेल सहित अन्य दलालों के प्रत्यर्पण में सफल होती है। लेकिन, लोकतंत्र को बर्बाद मोदी कर रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय थाईलैंड में घुसकर आर्थिक भगोड़े मेहुल चौकसी की फैक्ट्री को ज़ब्त कर लेता है। लेकिन नहीं, मोदी तो लोकतंत्र को तार-तार करने में व्यस्त हैं।

चिटफंड घोटाले पश्चिम बंगाल में हुए, राज्य सरकार की नाक के नीचे। सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस के कई नेताओं के ख़िलाफ़ जाँच चल रही है। लेकिन भ्रष्टाचार पसंद नेताओं के लिए किसी घोटाले की जाँच भी लोकतंत्र की हत्या है। केंद्रीय जाँच एजेंसियों का बड़ी मछलियों पर कार्रवाई करना भी अलोकतांत्रिक और सुपर इमरजेंसी है। अधीर विपक्षी नेताओं का इस तरह से दिशा-विहीन हो जाना बताता है कि उनके पास असली मुद्दों की कमी है, या फिर उनके भीतर इस धारणा ने घर कर लिया है कि आम जान के मुद्दों को उठा कर मीडिया की सुर्खियाँ नहीं बन सकते। आइए, कुछ बिंदुओं की पड़ताल कर बोरियत की पराकाष्ठा बन चुके इन मुद्दाविहीन नेताओं की मदांध अधीरता पर एक नज़र डालते हैं।

कुछ अलग बोलो या असली मुद्दे उठाओ

ताज़ा बयान कर्नाटक के सीरियल रोंदू मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का है। वो और उनके पिता पूर्व-प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा रोते-रोते सत्ता की मलाई चाभने में माहिर हैं। 225 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीटों वाली पार्टी कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में सरकार चला रही है और साथ ही एक बहुमत वाली सरकार पर लोकतंत्र की हत्या के आरोप मढ़ रही है। यह सब देख कर विडंबनाओं ने भी अपना सर घूँघट से ढक लिया है। एचडी कुमारस्वामी ने कहा है कि पीएम मोदी देश के लोकतंत्र को बर्बाद कर रहे हैं और लोगों को भ्रमित कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने विपक्ष के ईवीएम राग में अपना सुर मिलाते हुए कहा था कि भाजपा को अब सत्ता का ऐसा नशा चढ़ गया है कि वह हर कीमत पर सत्ता हथियाने के क्रम में लोकतंत्र की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से हत्या तक करने पर उतारु लगती है। अपने शासनकाल के दौरान पूरे यूपी को अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियों से पाट देने वाली मायावती लोकतंत्र की नई रक्षक हैं।

यूपी के ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कहा था कि 2019 के संसदीय चुनाव में यदि बीजेपी जीत गई तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। बम धमाके के दोषी आतंकियों के ख़िलाफ़ अभियोग वापस लेने का प्रयास करने वाली तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार को इलाहबाद उच्च न्यायालय ने कड़ी डाँट पिलाई थी, लेकिन मोदी सरकार लोकतंत्र की हत्यारी है क्योंकि अब आतंकियों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया जाता है, उन्हें जल्द से जल्द सज़ा दिलाई जाती है।

कमोबेश यही हाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी है। बंगाल में लोकतंत्र की जगह तानाशाही प्रेरित तृणमूलतंत्र चलाने वाली ममता को लोकतंत्र सिर्फ इसलिए ख़तरे में नज़र आ रहा है, क्योंकि सरकारी जाँच एजेंसियाँ सुचारू रूप से अपना कार्य कर रहीं हैं। बंगाल में ममता के कार्टून बनाने वाले भी जेल की हवा खाते हैं, लेकिन तृणमूलतंत्र सेक्युलर है, उसके ख़िलाफ़ आवाज उठाना गुनाह है।

राजद सुप्रीमो लालू यादव के सुपुत्र और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को भी मोदी में लोकतंत्र के लिए ख़तरा दिखता है। तेजस्वी यादव के अनुसार, मोदी के कार्यकाल के दौरान लोकतंत्र तार-तार हो गया है। बिहार को 15 वर्षों तक अपने परिवार की जागीर समझ कर चलाने वाले लालू यादव फ़िलहाल तो जेल में अपने भ्रष्टाचार की सज़ा भुगत रहे हैं, लेकिन उनके ट्विटर हैंडल से लगातार लोकतंत्र रक्षा संबंधी ट्वीट्स आते रहते हैं।

अगर इस सूची में राहुल गाँधी की बात न करें तो शायद यह लेख अधूरा रह जाए। एक ही बेढंगे बात को दिन में 100 बार बोलने वाले राहुल तो हवा में ऐसी बोरियत फैलाते हैं, जिसे न्यूट्रलाइज़ करना किसी के भी वश की बात नहीं। देश में कभी आपातकाल लगाने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल ने कहा था कि वो किसी भी क़ीमत पर लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर इन नेताओं का लोकतंत्र-प्रेम अभी ही क्यों जाएगा है?

अच्छा, तो घाव यहाँ है

दरअसल, दिक्कत कहीं और है। वो क्या है, हम बताते हैं। लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देते नहीं थकने वाले इन मौक़ापरस्त नेताओं का संवैधानिक संस्थाओं से ही भरोसा उठ गया है। सीबीआई और सेना से लेकर न्यायपालिका तक- इन्होने सबका राजनीतिकरण करने की पूरी कोशिश की है। संसद के भीतर भ्रष्टाचार मिटाने की बात करने वाले ये नेता संसद के बाहर भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई होते ही तिलमिला उठते हैं।

रॉबर्ट वाड्रा के द्वारा ज़मीन खऱीद में की गई अनगिनत अनियमितताओं की जाँच चल रही है और दामाद जी को प्रवर्तन निदेशालय के दफ़्तर में हाज़िरी लगानी पड़ रही है। शारदा और रोज़ वैली चिटफंड घोटालों की आँच ममता तक जा पहुँची है और आरोपितों को शिकंजे में लेने की पूरी कोशिश की जा रही है। जीएसटी जैसे बड़े टैक्स सुधार क़ानून को लागू करने के लिए जिस इच्छाशक्ति और जनसमर्थन की ज़रूरत थी- मोदी सरकार ने वो सब सफलतापूर्वक जुटाया। फ़र्जी कंपनियों की पोल खुल रही है, आर्थिक अनियमितता करने वाले पकड़े जा रहे हैं। 20,000 विदेशी फण्ड से चलने वाले NGO बंद किए जा चुके हैं, लाखों शेल कम्पनियाँ बंद करके उन्हें टैक्स संबन्धित नोटिस थमा दिया गया।

क्या आर्थिक भगोड़ों और महाघोटालों के दलालों का प्रत्यर्पण लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है? क्या जनता के करोड़ों रुपए लेकर नेताओं और व्यापारियों को फ़ायदा पहुँचाने वाली चिटफंड कंपनियों पर कार्रवाई से लोकतंत्र तार-तार हो जाता है? क्या नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक सुधार कार्यक्रमों से हजारों फ़र्जी कंपनियों का पकड़ा जाना लोकतंत्र की हत्या है? क्या संवैधानिक संस्थाओं का बड़े आरोपितों के खिलाफ़ स्वतंत्रतापूर्वक जाँच करना अलोकतांत्रिक है? अगर ये सब करने से लोकतंत्र बर्बाद होता है, तो देश की जनता को यही बर्बाद लोकतंत्र चाहिए।

अगर ऐसे बर्बाद लोकतंत्र से अपराधियों (आर्थिक भगोड़ों, घोटाले के बिचौलियों और फ़र्जी कंपनियों) में ख़लबली मचती है, तो देश की जनता को यही लोकतंत्र चाहिए। अगर इस बर्बाद लोकतंत्र से घोटालेबाज़ों से सहानुभूति रखने वाले नेताओं की नींद उड़ती है, तो देश की जनता इसी बर्बाद लोकतंत्र में चैन की नींद सोएगी। इसीलिए, अब समय आ गया है कि नेतागण किसानों, युवाओं और ग़रीबों के मुद्दे उठाएँ, बनावटी और काल्पनिक मुद्दे नहीं।

छत्तीसगढ़ में गरजे PM मोदी, पूछा ‘जब कुछ ग़लत किया नहीं तो CBI से डर कैसा?’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित किया। बता दें कि मोदी अगले 5 दिनों में 10 राज्यों का दौरा करने वाले हैं। इसी क्रम में वो आज छत्तीसगढ़ पहुँचे। छत्तीसगढ़ की नई कॉन्ग्रेस सरकार से निराशा जताते हुए पीएम ने कहा कि राज्य में नई सरकार बनी तो मैंने बधाई दी और सोचा कि कुछ नया करेंगे लेकिन जो पहले बेहतर हो रहा था उसे भी ठप्प करने में लगे हैं।

पीएम मोदी ने कहा कि देश और छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाने में हमारे आदिवासी बहन-भाइयों का बहुत बड़ा योगदान है। आज़ादी में अनेक आदिवासी नायकों ने बलिदान दिए हैं। ऐसे नायकों से देश को प्रेरणा मिलती रहे इसके लिए देशभर में स्मारक स्थलों का निर्माण हो रहा है नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ सरकार पर निशाना साधते हुए उनके दो ताज़ा निर्णयों की चर्चा करते हुए कहा:

  • यहाँ की सरकार ने पहला काम किया आयुष्मान भारत योजना से छत्तीसगढ़ को हटाने का फ़ैसला लिया।
  • दूसरा फ़ैसला किया सीबीआई को इस राज्य में आने नहीं देंगे।

पीएम मोदी द्वारा छत्तीसगढ़ में कही गई बातों के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं:

  • किसी ग़रीब को ₹5 लाख की सहायता मिले तो उससे कॉन्ग्रेस को क्या दिक्कत है? रायपुर से लेकर दिल्ली तक कॉन्ग्रेस की सल्तनत दलालों और बिचौलियों के मज़बूत तंत्र से फली-फूली है।
  • जय और पराजय जीवन का हिस्सा होता है। विधानसभा के इन चुनावों के बाद छत्तीसगढ़ के हर वर्ग के विकास के लिए हमारा संकल्प और अधिक मज़बूत हुआ है। चुनाव आते जाते रहते हैं, सरकारे आती जाती रहती हैं लेकिन सामान्य लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने का संकल्प अटल रहता है
  • अटल जी, जिन्होंने छत्तीसगढ़ बनाया उनके प्रति यहाँ के लोगों की श्रद्धा अप्रतिम है।
  • कांग्रेस ने 55 साल ग़रीबों के नाम पर देश को गुमराह किया, ग़रीबों को बर्बाद किया, उनके सपनों को कभी अंकुरित तक नहीं होने दिया। हमने 55 महीने में ग़रीबों में जोश भरा है। उनके आगे निकलने के रास्ते खोजे हैं, इसलिए ग़रीब आज ग़रीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने के लिए अपने पैरों पर खड़ा हो रहा है।
  • घोटाले-घपलों की इसी नीति और नियत का ही परिणाम है कि यहाँ की सरकार ने सीबीआई की जाँच में भी अड़ंगा लगाने का फ़ैसला लिया।
  • अगर किसी ने कुछ किया नहीं है तो वो क्या किसी जाँच से डरेगा? क्या कोई भी एजेंसी बिना किसी कारण से पूछताछ कर सकती है? अगर राज्यों में देश के ईमानदार करदाताओं के पैसे से भ्रष्टाचार होता है, तो सीबीआई को कार्रवाई करने का अधिकार है या नहीं?
  • कॉन्ग्रेस के नामदार परिवार के क़रीब-क़रीब हर सदस्य के विरुद्ध अदालतों में गंभीर मामले चल रहे हैं। क्या मामले चल रहे हैं? टैक्स चोरी के, ज़मीन और प्रॉपर्टी में घोटाले के। हालत ये है कि परिवार के ज़्यादातर सदस्य जमानत पर पर बाहर हैं
  • क़ानून से बचने की इनकी कोशिशों के बीच चौकीदार चौकस है, इनके हर राज़ को बाहर निकालने में जुटा है। देश विदेश से इनके राज़दारों को, इनके दलाल मामाओं और चाचाओं को भारत लाया जा रहा है और जाँच एजेंसियों के हवाले किया जा रहा है।
  • ये कितनी भी महा-मिलावट कर लें, चौकीदार चुप बैठने वाला नहीं है। मैं उनमें से नहीं हूँ जो अपनी किताब खुलने के डर से देश के शक्तिशाली सुल्तानों पर हाथ डालने से बचते थे।
  • क़र्ज़माफ़ी के नाम पर बिचौलियों का पेट भरने का काम करने वाली कॉन्ग्रेस के यही तौर-तरीक़े हैं। ये 10 वर्ष बाद क़र्ज़माफ़ी की योजना लेकर आते हैं। पहले 2009 का चुनाव जीतने के लिए लाए थे, अब 2019 में लेकर आए हैं।
  • अगर बहुत ईमानदारी से क़र्ज़माफ़ी की जाए, तो भी देश में 100 में से 25-30 किसानों को ही इसका लाभ मिल पाता है। बाक़ी के किसान, क्या खेती नहीं करते, क्योंकि वो और ज़्यादा ग़रीब हैं, इसलिए क्या उन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए? जी नहीं, ये भेदभाव का रास्ता मोदी को मंज़ूर नहीं।
  • हमारी सरकार ग़रीब की सरकार है, ग़रीब के दर्द, उसकी तकलीफ़ को समझने वाली सरकार है। बीते साढ़े चार साल में हमने लगातार कोशिश की है कि ग़रीब की ज़िदगी आसान बने। सरकार के इन्हीं प्रयासों का असर है कि देश में ग़रीबी कम होना शुरू हुई है।
  • इस साल के बजट में प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना की घोषणा की गई है मेरे मज़दूर भाई-बहनों के लिए, श्रमिक परिवारों के लिए, जो घरों में काम करते हैं, सड़कों या घरों के निर्माण में जुटे हैं, मिट्टी या लेबर का काम करते हैं, रिक्शा चलाते हैं, ठेला चलाते हैं, ऐसे करोड़ों बहन-भाइयों के लिए देश के इतिहास में पहली बार कोई योजना बनी है।
  • जिन ईमानदार करदाताओं के पैसे से ये सुविधाएँ संभव हो पाती हैं, उनके लिए भी केंद्र सरकार ने पहली बार बहुत बड़ा क़दम उठाया है। ₹5 लाख रुपए तक की इनकम को टैक्स से बाहर कर दिया गया है। इससे सीधे-सीधे करीब 3 करोड़ करदाताओं को लाभ होगा।
  • अब कुछ शक्तियाँ मज़बूत सरकार बनाने के लिए जुट रही हैं, ताकि उनका लूट-खसूट का कोराबार फल-फूल सके। इस साज़िश के प्रति, इस महा-मिलावट के प्रति आप सभी को जागरूक रहना है।

NCP की बेहूदा क़रतूत: कुत्ते के गले में डाली मोदी, अमित शाह और CBI के नाम की तख़्ती


बंगाल में सीएम ममता बनर्जी और सीबीआई के बीच हुए विवाद के बाद अब मध्य प्रदेश में भी इसका असर दिखाई दे रहा है। ममता बनर्जी के समर्थन में आई राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP) के कार्यकर्ताओं ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सीबीआई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन के दौरान एनसीपी के कार्यकर्ताओं नें कुत्तों के गले में पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तख्तियाँ डाली। साथ ही सरकार पर आरोप मढ़ा कि सरकार ने सीबीआई का दुरुपयोग किया है।

प्रदेश की राजधानी में एनसीपी के मुखिया शरद पवार की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सीबीआई के ख़िलाफ़ जो विरोध प्रदर्शन किया उसकी तस्वीरें एनएनआई द्वारा ट्वीट की गई। जिसमें दिख रहा है कि कुत्ते के गले में डली हुई तख्ती में उन्होंने लिखा हुआ था, “मोदी और शाह की सीबीआई।”

एनसीपी के कार्यकर्ताओं ने इन तख़्तियों पर पीएम मोदी और शाह के ख़िलाफ़ नारे भी लिखे हुए थे। एनसीपी का आरोप है कि सीबीआई, मोदी सरकार के पालतू कुत्ते की तरह बर्ताव कर रही है और मोदी सरकार भी सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है।

बता दें कि हाल ही में प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन हुआ है। ऐसे में एनसीपी द्वारा किए गए इस प्रदर्शन से पूरे प्रदेश में सीबीआई मामले में राजनीति तेज़ होने के आसार हैं।