Friday, October 4, 2024
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कश्मीरी आतंकियों ने 25 साल की लड़की को गोली मारी, 10 सेकेंड का वीडियो वायरल

शुक्रवार (फ़रवरी 01, 2019) सुबह कश्मीर के शोपियाँ में एक लड़की की लाश बरामद हुई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों ने 25 वर्षीय लड़की की गोली मारकर हत्या कर दी। उन्होंने इस घटना की वीडियो बनाई और इसे सोशल मीडिया पर डाल दिया। पुलिस के एक प्रवक्ता ने बताया कि पीड़िता की पहचान पुलवामा के डूंगरपुर निवासी इशरत मुनीर के रूप में हुई है। महिला का शव शोपियाँ जिले के द्रागाद इलाके से बरामद किया गया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मृतक लड़की एक पुलिसकर्मी की बहन बताई जा रही है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “हम उस IP एड्रेस का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ से वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया था। धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया है और दोषियों को पकड़ने के लिए जाँच चल रही है।”

पुलिस ने बताया कि, ”आतंकवाद के वीभत्स कृत्य के तहत आतंकवादियों ने 25 वर्षीय लड़की की बेहद नज़दीक से गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने शोपियाँ जिले में जैनापुरा के द्रागाद इलाके से शव बरामद किया। प्रवक्ता ने कहा, ”आतंकवादियों ने इस वीभत्स घटना को अंजाम देते हुए इसका वीडियो बना लिया और उसे सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया।

पुलिस ने बताया कि 10 सेकंड के इस वीडियो में महिला हाथ जोड़कर दया की भीख मांगती दिखाई दे रही है, लेकिन बंदूकधारी ने उसे 2 बार बेहद नज़दीक से गोली मार दी। पुलिस ने कानून की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। प्रवक्ता ने कहा, ”पुलिस की जांच कुछ विश्वसनीय सूचनाओं पर केंद्रित है और उम्मीद है कि जल्द ही दोषियों को कठघरे में खड़ा किया जाएगा।”

कुछ रिपोर्ट्स में मीडिया का मानना है कि पूर्व आतंकवादी ज़ीनत-उल-इस्लाम इस मृत लड़की का मामा है, इसे जनवरी 13, 2019 को कटपोरा कुलगाम में एक मुठभेड़ में एक सहयोगी के साथ बंद कर दिया गया था। कहा जा रहा है कि इस लड़की को सूचनाएँ पहुँचाने के आरोप के चलते मारा गया है।

कश्मीर में इस प्रकार की यह पहली घटना नहीं है, नवंबर 2018 को शोपियां जिले के निकलोरा गाँव में 17 वर्षीय नदीम मंज़ूर की गोलियों से छलनी लाश मिली थी।

3 मिनट में 35 बड़ी बातें: छोटा है, सटीक है, हर कुछ समेटे हुए है

कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 1 फरवरी 2019 को अंतरिम बजट पेश किया। बजट लंबा होता है, थोड़ा उबाऊ होता है। आँकड़े ज्यादा होते हैं, तो पकाऊ भी होता है। इसलिए हम लेकर आए हैं सिर्फ मुख्य बातें:

  • मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपए
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 19,000 करोड़ रुपए
  • 22वाँ नया AIIMS हरियाणा में खोलने की घोषणा
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN, पीएम-किसान) की शुरुआत: 2 हेक्टेयर तक की जोत वाले सभी भू-स्वामी किसान परिवारों को प्रति वर्ष 6000 रुपए तीन बराबर-बराबर (2000-2000-2000) किस्तों में सीधे बैंक खाते में होगा ट्रांसफर
  • पीएम-किसान के लिए 2019-20 के लिए 75,000 करोड़ रुपए जबकि 2018-19 के संशोधित अनुमान में 20,000 करोड़ रुपए
  • राष्ट्रीय कामधेनु आयोग बनाने की घोषणा – यह गायों के लिए कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने और कल्याणकारी स्कीमों पर काम करेगा
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन का आवंटन बढ़ाकर 750 करोड़ रुपया किया गया
  • अलग मत्स्य पालन विभाग बनाने की घोषणा
  • किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ऋण लेने वालों को 2% ब्याज सब्सिडी; ऋण समय पर चुकाने वालों को 3% अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी
  • गंभीर प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित सभी किसानों को 2% ब्याज सब्सिडी तथा तत्काल भुगतान के प्रोत्साहन के रूप में 3% अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी
  • न्यू पेंशन स्कीम (NPS) में कर्मचारियों के योगदान को 10% रखते हुए सरकार के योगदान को 4% से बढ़ाकर 14% कर दिया है।
  • श्रमिकों को दिए जाने वाले बोनस आकलन की अधिकतम सीमा 3500 से बढ़ाकर 7000 रुपए
  • श्रमिकों को दिए जाने वाले वेतन की अधिकतम सीमा को 10,000 से बढ़ाकर 21,000 रुपए
  • ग्रेच्युटी के भुगतान की सीमा को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपए
  • ESI के लिए सुरक्षा पात्रता की सीमा 15,000 से बढ़ाकर 21,000 रुपए की गई
  • प्रत्येक श्रमिक के लिए न्यूनतम पेंशन 1000 रुपए तय
  • सर्विस के दौरान मौत होने पर श्रमिक के आश्रितों को EPFO से मिलने वाली 2.5 लाख रुपए की राशि को बढ़ाकर 6 लाख रुपए किया गया
  • आंगनबाड़ी और आशा योजना के तहत सभी श्रेणियों के मानदेय में लगभग 50% की वृद्धि
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन नामक वृहत पेंशन योजना का आरंभ
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना के तहत 15,000 रुपए से कम के मासिक वेतन वालों को 60 वर्ष की उम्र के बाद से प्रति माह 3000 रुपए का पेंशन दिया जाएगा
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना में 29 वर्ष की आयु से जुड़ने वाले कामगारों को प्रति माह 100 रुपए का अंशदान 60 वर्ष की आयु तक करना होगा। 18 वर्ष की आयु से इसमें जुड़ने वाले को प्रति माह 55 रुपए का अंशदान 60 वर्ष की आयु तक करना होगा। सरकार भी हर अंशदाता के पेंशन खाते में बराबर की राशि जमा करेगी।
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना के पहले साल के लिए 500 करोड़ रुपए का आवंटन
  • रक्षा बजट 3 लाख करोड़ रुपए का। आवश्यक हुआ तो और अधिक बढ़ोतरी की जाएगी
  • रेलवे के लिए 64,587 करोड़ रुपए की पूंजीगत सहायता का प्रस्ताव
  • पूर्वोतर क्षेत्रों में अवसंरचना विकास के लिए 21 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 58,166 करोड़ रुपए
  • किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए 75,000 करोड़ रुपए की व्यवस्था
  • राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के लिए 38,572 करोड़ रुपए
  • एकीकृत बाल विकास स्कीम के लिए 27,584 करोड़ रुपए
  • अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए 35.6% की वृद्धि के साथ 76,801 करोड़ रुपए
  • अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए 28% की वृद्धि के साथ 50,086 करोड़ रुपए
  • 5 लाख रुपए सालाना तक की आय वालों को कोई कर नहीं
  • 6.5 लाख रुपए सालाना तक की आय वालों को कोई कर नहीं यदि वे भविष्य निधि, विशिष्ट बचतों या बीमा आदि में निवेश करते हों तो
  • वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) को 40,000 से बढ़ाकर 50,000 रुपए किया गया
  • बैंकों/डाकघरों में जमा धनराशियों से अर्जित ब्याज पर कर की कटौती सीमा 10,000 से बढ़ाकर 40,000 रुपए की गई
  • HBA में कर से मिलने वाली छूट की सीमा 1,80,000 से बढ़ाकर 2,40,000 रुपए करने का प्रस्ताव

बजट 2019: मोदी सरकार का ‘मास्टर स्ट्रोक’, जनता ताली पीट रही है और विपक्षी छाती पीट रहे

मोदी सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तर्ज़ पर इस बार अपना अंतरिम बजट पेश किया। मध्यम वर्गीय नौकरी-पेशा वाले लोग अंतरिम बजट (Budget 2019) में मोदी सरकार की ओर उम्मीद की नज़र से देख रहे थे। जिसके बाद सरकार ने भी उन्हें निराश नहीं किया और आज बजट के जरिए उनकी झोली भरकर उनके चेहरे पर खुशियाँ ला दी।

हर बार की तरह इस बार भी सरकार ने मिडिल क्लास और गरीबों को राहत देने और उनके जीवन को बदलने के लिए कई सारी घोषणाएँ की हैं। अपने अंतरिम बजट में सरकार ने मिडिल क्लास, किसान वर्ग, मजदूर वर्ग को बड़ी राहत देते हुए टैक्स छूट की सीमा में बढ़ोतरी की है। बता दें कि जहाँ सरकार के इस फैसले से करीब 3 करोड़ मिडिल क्लास टैक्स पेयर्स को फायदा मिलेगा वहीं अंतरिम बजट के सुंतलन से विपक्ष क्लीन बोल्ड हो गया है।

सदन में मोदी-मोदी के नारे, विपक्ष में सन्नाटा

कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने गरीब और मध्यम वर्ग को राहत देते हुए टैक्स छूट की सीमा ₹2.5 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख करने का ऐलान किया। जिसके बाद सदन में न सिर्फ मोदी-मोदी के नारे लगे बल्कि विपक्ष के सन्नाटे को भी महसूस किया गया। यही कारण है कि विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद में पेश बजट को खिसियाने अंदाज में भाजपा का चुनावी घोषणापत्र बता दिया। लेकिन वह भूल गए कि सरकार के इस फ़ैसले से करीब 3 करोड़ लोगों की जिंदगी आसान हो जाएगी।

किसानों और मजदूरों का रखा गया ख़याल

सरकार ने ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के जरिए 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटी जोत के किसान परिवारों को 6,000 प्रति वर्ष की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। यह आय सहायता 2,000 की तीन समान किस्तों में लाभ पाने वाले किसानों के बैंक खाते में भेजा जाएगा।

सरकार के इस कार्यक्रम से लगभग 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान परिवारों को लाभ मिलेगा। यह कार्यक्रम 1 दिसंबर, 2018 से लागू किया जाएगा और 31 मार्च, 2019 तक की अवधि के लिए पहली किस्त का इसी वर्ष के दौरान भुगतान कर दिया जाएगा। बता दें कि सरकार के इस फैसले से जो किसान गरीबी की समस्या से जूझ रहे हैं उन्हें काफी राहत मिलेगी।

अंतरिम बजट में सरकार ने वैसे तो हर वर्ग का ध्यान रखा लेकिन गरीब वर्ग, मजदूर, किसान को सरकार ने ध्यान में रखते हुए उन्ही बड़ी राहत दी। गरीबों के नाम पर आजतक वोट माँगने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी को आईना दिखाते हुए सरकार ने मजदूरों को मासिक पेंशन देकर न सिर्फ़ उनका सम्मान किया, बल्कि इससे उनके जीवन में भी काफी बदलाव आएगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि मजदूर हमारी इंफ्रास्ट्रचर और उद्योगों के आधार स्तम्भ हैं, लेकिन उनके लिए किसी भी तरह की योजना का अभाव बताता है कि कुछ पार्टियाँ अभिजात्य सोच के साथ गरीब को गरीब ही रखने में व्यस्त रहीं।

सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सौगात देते हुए उनके लिए पेंशन स्कीम का ऐलान किया है। ‘प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना’ के तहत मजदूरों को कम से कम 3 हज़ार महीने का पेंशन दिया जाएगा। योजना का लाभ लेने के लिए उन्हें प्रति माह 100 का अंशदान करना होगा और जब वह 60 वर्ष की आयु पूरी कर लेंगे तो उन्हें 3,000 प्रति माह मासिक पेंशन के रूप में इसका लाभ मिल सकेगा। बता दें कि, इस इस योजना के जरिए करीब 10 करोड़ मजदूरों को लाभ पहुँचेगा।

इसके साथ ही सरकार ने (एक्सीडेन्टल) मुआवजे की रकम को बढ़कर 6 लाख कर दिया है। यानी अगर अब काम के दौरान किसी मजदूर की मौत होती है तो उसके परिवार को ₹6 लाख का मुआवजा मिलेगा।

सरकार ने बजट से पहले विपक्ष के पैरों तले से खींची थी ज़मीन

बजट से पहले भी सरकार आम जन को राहत देने और उनके विकास को ध्यान में रखते हुए आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण देने का फैसला लिया था। मोदी सरकार ने आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था करके उनकी सामाजिक जरूरत को पूरा करने का काम किया है।

बात दें कि, जब से इस बिल को स्वीकृति मिली थी तब से विपक्ष में बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जिसके बाद राहुल गाँधी ने एक ‘जुमला’ देश के सामने पेश किया जिसको हम ‘गरीब व्यक्ति को एक न्यूनतम आमदनी’ देने के नाम से जानते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश में आम जनता और किसानों को कर्ज़माफ़ी के झूठे वादे से ठगने के बाद राहुल गाँधी ने इसकी घोषणा की थी।

आर्थिक सलाहकारों की मानें तो इस योजना को लागू करने के लिए सरकार के पास मोटी रकम होनी चाहिए जो देश की जीडीपी का 15-20% हो सकती है। सलाहकारों की मानें तो किसी एक योजना में इतना पैसा खर्च करने के लिए कई अन्य योजनाओं पर रोक लगानी पड़ेगी जो कि संभव नहीं है। बता दें कि एक आँकड़े के मुताबिक देश में करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवन यापन करते हैं। इनमें से शेड्यूल ट्राइब (एसटी) के 45.3% और शेड्यूल कास्ट (एससी) 31.5% के लोग इस रेखा के नीचे आते है।

बजट 2019: चुनाव से पहले ही किसानों के खाते में होगी ₹2000

अंतरिम बजट की पेशकश के दौरान मोदी सरकार ने किसानों को 6 हजार रुपए प्रति वर्ष की दर से मदद देने का ऐलान किया है। इस योजना में किसानों के खातों में प्रति वर्ष तीन किस्तों में ₹2000-2000 भेजे जाएँगे।

पिछले साल के किसान आंदोलनों को देखते हुए यह माना जा रहा था कि देश के किसान मोदी सरकार से नाराज़ चल रहे हैं। उनकी शिकायतें थी कि मोदी राज में सरकार द्वारा किसानों के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। ऐसे में उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार ने मदद के रूप में किसानों के खातों में ₹ 6000 प्रति वर्ष भेजने का ऐलान किया है।

₹6000 की राशि मोदी सरकार तीन किश्तों में 2000-2000 करके सीधे किसानों के खातों में भेजेगी। जिस समय देश में चुनावी प्रचार जोर-शोर से तूल पकड़ रहे होंगे, उस वक्त किसानों को पहली किश्त मिल चुकी होगी।

किसानों को प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक मदद देने का फ़ैसला करते हुए ‘इनकम सपोर्ट प्रोग्राम’ का ऐलान भी किया गया है। इसके अलावा कार्यवाहक केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट 2019 पेश करते हुए ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना की शुरुआत करके किसानों को खुशखबरी भी दी।

उन्होंने बताया कि जिन किसानों के पास दो हेक्टेयर तक की ज़मीन है उन्हें हर साल ₹6 हज़ार दिए जाएँगे। सरकार के इस फैसले से देश के कमज़ोर और छोटे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी ताकि किसानों की आर्थिक हालत में सुधार हो। किसानों के लिए उठाए गए इस कदम से जहाँ सरकार पर ₹75 हज़ार करोड़ का खर्च बढ़ेगा, वहीं देश के लगभग 12 करोड़ किसानों को इससे लाभ पहुँचेगा।

‘पीएम किसान सम्मान निधि योजना’ की शुरूआत 1 दिसंबर 2018 से लागू होगी और इस तरह इस योजना की पहली किस्त का भुगतान 31 मार्च 2019 तक की अवधि में किया जाएगा।

पीयूष गोयल ने बजट पेश करने के दौरान कहा कि मोदी सरकार किसानों की आमदनी 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य तय करके चल रही है। बता दें कि पिछले साल के बजट (2018-19) में किसानों को उनकी फसलों की लागत डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी।

रक्षा बजट ₹3 लाख करोड़ के पार जाने के मायने क्या हैं

देश की रक्षा एवं सुरक्षा देश के विकास का ही एक अंग है। हम सुरक्षित हुए बिना विकसित होने की कल्पना नहीं कर सकते। इसीलिए वार्षिक बजट को विकासोन्मुख तब तक नहीं कहा जा सकता जब तक उसमें रक्षा क्षेत्र में पर्याप्त धन का आवंटन न हुआ हो। रक्षा क्षेत्र भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही उदासीन रहा है।

ऐसे में किसी भी सरकार से यह आशा रखना कि वह डिफेंस बजट में कुछ उल्लेखनीय वृद्धि करेगी एक दिवास्वप्न की तरह है। मोदी सरकार के कार्यकाल को देखें तो 2015 से लेकर अब तक प्रत्येक बजट में वृद्धि ही हुई है जिसमें सर्वाधिक वृद्धि उस वर्ष हुई थी जब वन रैंक वन पेंशन स्कीम को लागू किया गया था।

पिछले चार वर्षों का अनुमानित रक्षा बजट देखें तो 2015-16 में ₹2,33,000 करोड़, 2016-17 में ₹2,58,000 करोड़, 2017-18 में ₹2,74,114 करोड़, 2018-19 में ₹2,82,733 करोड़ तथा वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में ₹3,05,296 करोड़ आवंटित हुए।

धीमी गति से हुई इस वृद्धि से उन सभी रक्षा खरीद परियोजनाओं के लंबित होने की संभावना है जो गत चार-पाँच वर्षों में साइन की गई हैं। साथ ही यह भी देखना होगा कि 2012 में स्वीकृत हुए Long Term Integrated Perspective Plan के अंतर्गत 15 वर्षों में की जाने वाली हथियारों की खरीद पर भी कम बजट आवंटन से प्रभाव पड़ेगा।

वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान रक्षा बजट में मात्र ₹22,563 करोड़ की वृद्धि की गई है। इससे सशस्त्र सेनाओं का आधुनिकीकरण प्रभावित होगा। गत वर्ष रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने वाइस चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद्र ने कहा था कि बजट में जितना धन आवंटित किया जा रहा है उससे लिमिटेड लायबिलिटी तक पूरी नहीं होती।

बजट में धन कितना आवंटित होता है इससे अधिक आवश्यक यह है कि उस धन का कितना प्रतिशत वित्तीय वर्ष में वास्तव में खर्च होता है। सरकार इस पर भी विचार कर रही है कि थलसेना में अनावश्यक खर्चों की कटौती की जाए और सेना के आकार को छोटा लेकिन अधिक प्रभावी बनाया जाए। इस दृष्टि से रक्षा बजट में कमी एक मुद्दा तो है लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा के पूरे कैनवास को कवर नहीं करता।

सुरक्षा का अर्थ केवल रक्षा मंत्रालय अथवा सशस्त्र सेनाएँ ही नहीं हैं। स्थिर आर्थिक उन्नति भी हमें सुरक्षा प्रदान करती है। हमारी समूची रक्षा व्यवस्था में कम बजट आवंटन से भी बड़ी समस्याएँ हैं। यह समस्याएँ हैं रक्षा खरीद और उत्पादन में होता अनावश्यक विलंब, रक्षा मंत्रालय के बाबूओं का ढुलमुल रवैया, संसाधनों का समुचित उपयोग तथा जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों की जवाबदेही।

पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इन कमियों को दूर करने का भरसक प्रयास किया था और निर्मला सीतारमन भी उसी को आगे बढ़ा रही हैं। यह भी सत्य है कि रक्षा क्षेत्र में सुधार कोई चार पाँच वर्षों में समाप्त होने वाली प्रक्रिया नहीं है, इसके पूरा होने में समय लगना जायज़ है। गत पाँच वर्षों में जिस तेज़ी से रक्षा खरीद के निर्णय लिए गए वह उल्लेखनीय है।

हाल ही में डिफेन ऐक्विज़िशन कॉउन्सिल ने 6 सबमरीन के निर्माण के लिए ₹40,000 करोड़ स्वीकार किए हैं। भारत सरकार ने राफेल की खरीद में भी तेज़ी दिखाई जिसके कारण वर्ष 2019 के अंत तक राफेल की पहली खेप भारतीय वायुसेना को मिल जाएगी।

साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों जैसे ढाँचागत सुधार, वित्तीय समावेश, स्वच्छ्ता, स्थिर आर्थिक प्रगति, महिला सशक्तिकरण और विज्ञान एवं तकनीक ऐसे क्षेत्र हैं जिनके विकास से देश सशक्त मानव संसाधन तैयार करता है। इसी संसाधन के उपयोग से रक्षा प्रतिष्ठान को बल मिलता है। गत पाँच वर्षों में मोदी सरकार ने इन क्षेत्रों को विकसित करने पर काफ़ी ध्यान दिया है। इसलिए हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले वर्षों में रक्षा बजट बढ़ेगा और रक्षा खरीद तथा उत्पादन में तेज़ी आएगी।    

रवीश जी, मोदी की खुन्नस बच्चों पर क्यों? लीजिए 15 कार्य गिनिए जो मोदी ने शिक्षा के लिए किए

हाल ही में पीएम मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा’ के दूसरे संस्करण में परीक्षा के तनाव से जूझ रहे छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का हौसला बढ़ाया। इस कार्यक्रम का पूरा उद्देश्य था कि जो छात्र बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं उनके भीतर से डर को ख़त्म किया जा सके। पीएम मोदी द्वारा इस कार्यक्रम में की गई पूरी बातचीत पर अभी देश में चर्चा हो ही रही थी कि ‘द वायर’ ने अपने एक आर्टिकल में मोदी जी के इस कदम पर सवालों की झड़ी लगा दी।

इस आर्टिकल का शीर्षक ही ऐसा है कि अगर कोई नया पाठक इसे पढ़े तो वो अपने मन में स्वयं ही सवाल खड़े करना शुरू कर देगा कि क्या वाकई पीएम मोदी ने सत्ता को संभालने के बाद देश में बिगड़ी शिक्षा व्यवस्था के लिए कुछ नहीं किया? वो पाठक इस बात पर बिलकुल भी गौर नहीं करेगा कि मोदी जी को सत्ता में आए सिर्फ साढ़े 4 साल हुए हैं और देश में शिक्षा व्यवस्था की हालात आज़ादी के बाद से ही चरमरा के साँसे भर रही है। यह बताने की मुझे जरूरत नहीं है कि देश में 2014 से पहले किस परिवार का राज रहा है।

इस आर्टिकल के शीर्षक में मोदी जी से सवाल किया गया है कि क्या उन्हें नहीं पता बच्चों के तनाव का कारण बोर्ड की परीक्षा नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था है। यह शीर्षक ही सोचिए कितना हास्यास्पद है- जिन मोदी जी को यह पता है कि आजकल कौन से ऑनलाइन गेम (PUB G) की वज़ह से बच्चों का ध्यान पढ़ाई से भटक रहा है, उन्हें शिक्षा व्यवस्था के बारे में नहीं पता होगा क्या?

वैसे यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस लेख को लिखने वाले का नाम रवीश कुमार है। यह वही रवीश हैं जो सेकुलर देश में साँस लेने से घबराते हैं, जो अपने कार्यक्रम में बागों में बहार बताते हैं, और नए-नए तरीकों से, खोज-खोज कर केवल सरकार की आलोचना करने में व्यस्त रहते हैं। 2014 में बाद अचानक से ही वो पत्रकार कम समाजसेवी ज्यादा बनकर उभरते हैं। इस समाजसेवा में जुटकर रवीश अपने प्राइम टाइम में केवल उन विषयों पर ही बात करते हैं जिनपर कहीं बात न हो रही हो।

वो देश के कोनों-कोनों से सिर्फ़ उन तीन गाँवो की चर्चा करना अपने शो में नहीं भूलते हैं जिनमें अभी बिज़ली न पहुँची हो। या फिर, आज बजट की ही बात करें तो टैक्स छूट का दायरा बढ़ने पर उन्हें 3 करोड़ लोगों को मिली मदद नहीं दिखी, बल्कि उन्होंने अपना गणित लगाकर बता दिया, “2.5 लाख से 5 लाख होने पर कितना बचेगा? साल में लगभग 7500 टैक्स देते थे ऐसे लोग, महीना का लगभग 5-600 होता है, दिन के 10-12 रुपए। इस से किसको क्या मिलेगा पता नहीं।”

उन्हीं रवीश के आर्टिकल को पढ़कर लगता है मानो उन्होंने कभी ज़मीनी स्तर पर उतर के बोर्ड दे रहे बच्चों के प्रेशर के बारे में जानने की कोशिश नहीं की है। चूंकि मैं देश के क्रीमी माहौल में पढ़े-बढ़े बच्चों के बारे में नहीं जानती हूँ इसलिए मैं मध्य वर्गीय और ग़रीब बच्चों की मानसिकता और माहौल पर ही बात करुँगी।

अमूमन देखा जाता है कि हम लोग जिस माहौल में पढ़ते-बढ़ते हैं वहाँ पर बोर्ड परीक्षा को लेकर हमेशा से ही बच्चों को खौफ़ में रखा जाता है ताकि बच्चा बोर्ड परीक्षा के पड़ाव तक पहुँचते हुए किसी प्रकार की लापारवाही न बरते। फिर चाहे वो बच्चा क्लास का टॉपर ही क्यों न हो, बोर्ड परीक्षा के नाम से सिर-माथे पर पसीने सबके ही आता है। धड़कने उन अभिभावकों की भी बढ़ी रहती हैं जिनके बच्चे 99.99 प्रतिशत लेकर आते हैं और धड़कन उनकी भी बढ़ती है जिनके मार्जिन लाइन पर 33 प्रतिशत से पास होते हैं।

मोदी जी द्वारा की गई ‘परीक्षा पे चर्चा’ का उद्देश्य यह था कि बोर्ड परीक्षा के नाम से घबराई इन बढ़ी हुई धड़कनों को हौसला देकर शांत किया जा सके ताकि परीक्षा के लिए जाते समय उनपर किसी प्रकार का कोई दबाव न हो। इस कार्यक्रम का एक उद्देश्य उन अभिभावकों को विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ी कई संभावनाओं के बारे में बताना भी था जिनके अभाव में कई माता-पिता जबरन ही बच्चों डॉक्टर, इंजीनियर बनने के उद्देश्य से विज्ञान विषय की पढ़ाई में ढकेल देते हैं।

जानकारी के लिए बता दूँ कि भारत में हर 55 मिनट में एक विद्यार्थी आत्महत्या करता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि भारत में तनाव को न तो मानसिक रोग (पागलपन नहीं) की तरह देखा जाता है, न ही, स्कूल-कॉलेज तो छोड़ ही दीजिए, दिल्ली जैसे शहरों में इसे लेकर कोई जागरुकता है। फिर, ऐसे में अगर प्रधानमंत्री इस विषय पर, बच्चों से बात करते हैं, उनके अभिभावकों और शिक्षकों को अपील करते हैं की तनाव को ठीक से हैंडल करें, तो इसमें बुराई क्या है? एक प्रधानमंत्री की पहुँच अगर इतनी है कि वो एक साथ लाखों विद्यार्थियों से जुड़ जाए, तो क्या रवीश जी यह चाहते हैं कि 10,000 बच्चे इस साल आत्महत्या कर लें, तब तक सरकार हर स्कूल में काउंसलर की वेकन्सी निकाले?

आपकी बातों से भी ये तो नहीं लगता कि आप इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। आपको हर समस्या का हल इन्हीं 4 सालों में चाहिए क्योंकि मोदी तो हवाई यात्रा में व्यस्त रहते हैं, और शिक्षा पर ध्यान नहीं देते। सारा ध्यान तो आप दे रहे हैं क्योंकि आपको ये पता है कि मोदी को कितने मिनट किस काम में देना चाहिए, किस में नहीं। आपके हिसाब से तो आदमी शौचालय बनवाकर उसमें नहीं जाता इसके लिए भी मोदी ज़िम्मेदार है क्योंकि उसको बाल्टी में पानी लेकर वहाँ खड़ा रहना चाहिए!

‘द वायर’ के इस आर्टिकल को पढ़कर बिलकुल भी हैरान होने वाली बात नहीं हैं। सराहना की जगह पीएम के हर कदम की आलोचना करने वाले यह लोग बेबुनियादी बातों को ही आधार बनाते है। पीएम से देश की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल करने वाले लोगों ने कभी इन सवालों को 2014 से पहले खड़ा करना उचित क्यों नहीं समझा। वह लोग जो पीएम के इस कदम पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि उनके पास इस कार्यक्रम के लिए समय कहाँ से आया? उन्होंने कभी नेहरू पर सवाल नहीं खड़ा किया कि आख़िर देश के बारे में सोचने की जगह वो बच्चों के चाचा क्यों बन गए। उस समय कौन सी देश में शिक्षा की व्यवस्था इतनी अच्छी थी जो नेहरू बच्चों से बात करते पाए जाते थे।

खैर इन बातों से मैं यह साबित नहीं कर पाऊँगी, कि ऐसे आर्टिकलों से सिर्फ पीएम द्वारा किए गए कार्यों को न केवल छुपाने की कोशिश की जा रही है बल्कि उनकी छवि को भी धूमिल किया जा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदम

-बता दें कि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद लालकिले से अपने पहले संबोधन में 15 अगस्त को हर स्कूल में बालक-बालिकाओं के लिए अलग अलग शौचालय बनाने का वादा किया गया था जिसके बाद इस काम को करने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में शौचायल की बात करना इसलिए भी मैं ज़रूरी समझ रही हूं क्योंकि शौचालय एक बहुत बड़ी वजह है जिसकी वजह से कई लड़कियाँ अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देती हैं। 2015 में आई एक खबर के अनुसार झारखंड के जमशेदपुर इलाके में शौचालय की कमी की वज़ह से 200 लड़कियों ने एक साथ न सिर्फ स्कूल को छोड़ा बल्कि पढ़ाई से भी अपना तोड़ लिया था।

-डिजिटल इंडिया का सपना सिर्फ उद्योगों को मद्देनज़र रख कर ही नहीं किया गया था बल्कि इसका क्रियान्वयन शिक्षा के क्षेत्र में भी हुआ। जिसका परिणाम ‘ई-पाठशाला’ है जिसमें दोषरहित अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराई गई हैं, यहाँ पर सभी पुस्तकें और अन्य अध्ययन सामग्रियाँ उपलब्ध हैं।

-इसके अलावा सरकार द्वारा शाला सिद्धि योजना साल 2015 में शुरू की गई। इस पोर्टल पर सभी स्कूल निर्धारित मापदंडों के आधार पर अपना-अपना मूल्याकंन करते हैं, जिसके रिकॉर्ड सभी के लिए उपलब्ध होता है।

-मिड-डे का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान हैं। लेकिन इसके आँकड़ों में काफ़ी लंबे समय से गड़बड़ियाँ आ रही थी। लेकिन अब गड़बड़ियों को ई-पोर्टल और आधार नम्बर की मदद से काफी हद तक कम किया गया है। इसमें बजट से होने वाले धन आवंटन को वास्तविकता पर आधारित करने का प्रयास किया गया है। मंत्रालय के अनुसार आधार के चलते फर्जी नामों कमी आई।

-इसके अलावा सरकार ने बदलते समय में विज्ञान और गणित की प्रमुख भूमिका को देखते हुए इसमें अपेक्षित बदलाव किया है। जिसके बाद से सभी राज्यों के बोर्ड में NCERT के पाठ्यक्रम पर आधारित शिक्षा ही दी जाने लगी।

-आपको बता दें कि सरकार द्वारा लागू की गई इन प्रभावी नीतियों के चलते पहले के मुकाबले अब अधिक से अधिक बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। U-Dise के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार इस वर्ग के 20.78 करोड़ बच्चे थे जिनमें से 19.67 करोड़ बच्चों ने 2015-16 में देश के प्राइमरी स्कूलों की तरफ रुख किया।

इसके अलावा प्राइमरी से हाइयर प्राइमरी में एडमिशन लेने वाले बच्चों का औसत  2009-10 के 83.53 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 90.14 प्रतिशत हो गया है।

इसी दिशा में केंद्रीय विद्यालयों में ए़डमिशन के लिए ऑनलाइन फॉर्म भी उपलब्ध किए जाने लगे हैं।

‘द वायर’ के लेख में जहाँ शिक्षक और छात्रों के अनुपात को लेकर शिकायत है वो भी मोदी सरकार के राज बेहतर हुआ है। 2009-10 में 32 छात्रों पर एक शिक्षक थे, वह अनुपात 2015-16 में 24 छात्रों पर एक शिक्षक तक आ गया है। इसके अलावा रिक्‍त पदों को भरने के लिए लगभग 6,000 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

इसके अलावा मोदी सरकार ने स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए भी काफी प्रभावी कदम उठाए हैं लेकिन विरोधियों के सवाल न खत्म होंगे और न ही वो अपने पाठकों को बरगलाने से बाज आएँगे।

RUSA (राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान),मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी योजनाएँ है जिसके तहत राज्यों के उच्चतर शिक्षण संस्थाओं की गुणवत्ता के स्तर को बढ़ाने की कोशिश हो रही है।

NAAC: ये समिति मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत ये सर्वोच्च संस्था है जो देश के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का मूल्याकंन करती है। पहले मूल्याकंन के लिए NAAC अपनी टीम भेजता था जो मौके पर मानदंडों को परखते थे। इसमें भ्रष्टाचार का बोलबाल था। इसको खत्म करके मोदी सरकार ने Self Assessment की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है। जो इस साल जुलाई से लागू होगी।

NIRF (नेशलन इंस्टीट्यूश्नल रैंकिंग फ्रेमवर्क): देश की उच्च शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए 2016 से इस रैंकिग सिस्टम को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है। इस रैकिंग सिस्टम में देश के सभी कॉलेजों और विश्विघालयों की गुणवत्ता के निर्धारित मानदंडों के आधार पर रैंकिग की जाती है। ‘भारत रैंकिंग 2017’ में कुल 2,995 संस्थानों ने भाग लिया । इसके अंतर्गत 232 विश्वविद्यालय, 1024 प्रौद्योगिकी संस्थान, 546 प्रबंधन संस्थान, 318 फार्मेसी संस्थान तथा 637 सामान्य स्नातक महाविद्यालय शामिल हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार पर उंगली उठाने वालों के लिए जानना जरूरी है कि केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता का स्तर ऊँचा करने के लिए, 7 IIT, 14 IIIT, एक नया NIT, 62 नए नवोदय विद्यालय और 103 से भी अधिक केन्द्रीय विद्यालय और खोले हैं।

ऊपर लिखी सब बातें हुईं केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए उन कदमों के बारे मे जो उन्होंने शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए किया है। अब दोबारा से वापस आते हैं उस लेख पर जिसकी वज़ह से इन बातों को लिखने की ज़रुरत पड़ी। इस लेख में कहा गया है कि जो कार्य देश के प्रधानमंत्री ने किया है उसे मानव संसाधन का कोई मंत्री भी कर सकता था। ठीक है, यह बात स्वीकार्य है कि यह कार्य मानव संसाधन मंत्री भी कर सकते थे। लेकिन, पीएम ने खुद यदि इसका ज़िम्मा उठाया तो इसमें क्या गुनाह है। मोदी इस समय देश के उस पद पर हैं जिसके लिए उन्हें जनता द्वारा चुना गया है। अगर वो खुद छात्रों को, अभिभावकों को सचेत करना चाहते हैं। तो इसमें उनके इस कदम पर इतने सवालों को क्यों उठाए जा रहा है।

रवीश जी, आप नहीं जानते है क्या कि परीक्षा के डर से हमारे समाज में कितने छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। 2006 में आत्महत्या कर रहे छात्रों की संख्या 2016 तक आते-आते 9,500 हो गई। अगर ऐसे में देश का पीएम खुद बच्चों के तनाव को कम करने का प्रयास करें। तरह-तरह के क्षेत्रों में संभावना दिखाकर उन्हें उनका विस्तार करने का अवसर दे रहे हैं तो इसमें क्या गलत है। घर के बड़े के बोलने से ही एक बच्चा मान लेता है सही राह पर आ जाता है तो वह तो देश के प्रधानमंत्री हैं। देश का प्रधानमंत्री इस संवेदनशील मुद्दे पर बात करते हैं तो इसमें क्या बुराई है?

बजट 2019: जब संसद में गूँजा ‘हाउ इज़ द जोश?’

हाल ही में सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी विक्‍की कौशल की फ़िल्‍म ‘उरी: द सर्जिकल स्‍ट्राइक’ बहुत चर्चा में है। कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने भी बजट भाषण के बीच में इस फ़िल्म का ज़िक्र कर बजट भाषण के माहौल में और उत्साह झोंक दिया। इसके साथ ही आज के बजट भाषण में ₹5 लाख तक की वार्षिक आय पर टैक्स में छूट देने की जैसे ही घोषणा हुई, संसद ‘मोदी-मोदी’ के नारों से गूँजने लगी।

दरअसल पीयूष गोयल मनोरंजन जगत के लिए लिए बजट में किए गए प्रावधान की जानकारी दे रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने फ़िल्‍म की जमकर तारीफ़ की और एनडीए के सांसदों ने How’s the Josh के डायलॉग को दोहराया। पीयूष गोयल ने कहा, “मनोरंजन जगत से कई लोगों को रोज़गार मिलता है और हम सभी फ़िल्‍में देखते ही हैं।”

अपने बजट भाषण के अंत में जैसे ही पीयूष गोयल ने ₹5 लाख के दायरे को टैक्स मुक्त करने की घोषणा की, सांसदों ने उत्साह में ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाना शुरू कर दिया।

यह बजट किसानों और माध्यम वर्ग को समर्पित है। कार्यवाहक वित्त मंत्री ने पीयूष गोयल ने कहा कि यह सरकार सैनिक, किसान, महिलाओं, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे विभिन्न मुद्दों के साथ ‘नए भारत’ के सपने को साकार करने के ले प्रतिबद्ध है।

बजट 2019: 1 लाख और ‘डिजिटल गाँव’ की योजना… 10 करोड़ नए लोग जुड़ेंगे इंटरनेट से

साल 2014 में सत्ता का कार्यभार संभालने के साथ ही मोदी सरकार ने देश को डिजिटल बनाने का एक सपना देखा था। परिणाम आज हम देख सकते हैं कि भारत अब दुनिया में मोबाइल डेटा का सर्वाधिक उपयोग करने वाला देश बन चुका है। सरकार का उद्देश्य है कि अब इस योजना के प्रभाव को और भी अधिक विस्तृत रूप दिया जाए ताकि छूटे हुए क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग डिजिटल इंडिया से जुड़ सकें। इसी दिशा में आज (फरवरी 1, 2019) अंतरिम बजट को पेश करने के दौरान सरकार ने घोषणा की है कि आगामी पाँच वर्षों में 1 लाख गाँवों को डिजिटल किया जाएगा। उनका कहना है कि सरकार इस लक्ष्य को जन सुविधा केंद्रों का विस्तार करके हासिल करेगी।

संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने इस बात को कहा, “जन सुविधा केन्द्र गाँव में कनेक्टिविटी के साथ-साथ अपनी सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं और डिजिटल ढाँचा भी तैयार कर रहे हैं, जिससे हमारे गाँव ‘डिजिटल गाँवों’ में बदल रहे हैं।” उन्होंने कहा कि 3 लाख से अधिक जन सुविधा केन्द्र लगभग 12 लाख लोगों को रोज़गार प्रदान करने के साथ-साथ नागरिकों को अनेक डिजिटल सेवाएं भी प्रदान कर रहे हैं।

पीयूष गोयल ने बताया कि अब पूरी दुनिया में भारत एक ऐसा देश है, जहाँ सबसे सस्ते मोबाइल टैरिफ उपलब्ध हैं। उन्होंने बजट पेश करते समय इस बात की जानकारी भी दी कि पिछले 5 वर्षों में मोबाइल डेटा के मासिक इस्तेमाल में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आपको बता दें कि इस समय भारत में डेटा और वॉयस कॉल्स की कीमतें सम्भवत: पूरे विश्व में सबसे कम है।

ऐसे में 1 लाख गाँवो को डिजीटल करने का सपना अगर आने वाले पाँच सालों में वाकई सच होता है तो सरकार के साथ देश के लिए भी यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। एक लाख गाँवों को डिजिटल इंडिया का हिस्सा बनाने का सपना न केवल पिछड़े लोगों को तकनीक से जोड़ेगा बल्कि रोज़गार की संभावनाओं को भी विस्तार देगा। हम अगर एक गाँव में औसतन 1000 ग्रामीणों (असल में लगभग 1250 ग्रामीण) को भी लेकर सोचें तो आने वाले पाँच साल में करीब 10 करोड़ लोग डिजिटल इंडिया से जुड़ेंगे और तकनीक की मदद से स्वयं ही खुद के लिए अवसरों को खोज़ पाएँगे।

सरकार द्वारा लिया गया यह फ़ैसला बेहद सराहनीय योग्य है, क्योंकि इस योजना से पहले ही देश के नागरिकों को कई फायदे पहुँच चुके हैं। मोदी सरकार के नेतृत्व में आधार कार्ड के माध्यम से देश के 121.9 करोड़ निवासियों को डिजिटल पहचान मिली है। जिसमें 30 नवम्बर 2018 तक के आंकड़ों में 99% वयस्क शामिल हैं। इस योजना के बढ़ते हुए प्रभावों के कारण देश की अर्थव्यवथा में भी बड़ा बदलाव आया है। तकनीक से भागने वाले लोग भी आज पैसों का लेन-देन ऑनलाइन से करने लगे हैं। ये सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना की उपलब्धि ही है कि ‘भीम ऐप’ और ‘आधार कार्ड’ को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है।

बीते 4 सालों में डिजिटल रास्ता अपनाकर लोगों ने इन आँकड़ों को काफी उछाला है। एक तरफ 2014-15 में जहाँ मात्र ₹316 करोड़ के ट्रान्जेक्शन हुए थे, वहीं 2017-2018 में यह आँकड़ा ₹2,071 करोड़ तक पहुँच गया। इसके अलावा ‘डिजिटल इंडिया’ की दिशा में ‘डिजी लॉकर’ नाम की ऐप भी लॉन्च की गई। इसमें आप अपने आधार नंबर से ही सभी ज़रूरी काग़ज़ात निकाल सकते हैं, चाहे वो दसवीं की मार्कशीट ही क्यों न हो। जिन काग़ज़ात के खो जाने पर हमें संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ते थे, आज वो सब इंटरनेट के ज़रिए मात्र आधार नंबर से पाए जा सकते हैं।

बजट को पेश करते हुए पीयूष गोयल ने मेक इन इंडिया के प्रभावों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया के अंतर्गत भारत मोबाइल के पुर्जों को बनाने वाली कंपनी के साथ नई ऊँचाईंयों पर पहुँच रहा है। एक समय में जहाँ देश में मोबाइल पुर्जों की निर्माता संख्या सिर्फ दो थी, वो पहले से बढ़कर अब 286 हो गई है। जिसकी वज़ह से रोज़गार के अवसर प्रदान हुए हैं।

बजट में हुई MEME आयोग के लिए विशेष फंड की घोषणा

आज के बजट में हुई एक के बाद एक घोषणाओं से अगर आप नाराज़ हैं तो ये ख़बर पढ़ लीजिए मित्रों। देश में युवाओं के MEME (जिसे मीम कहते हैं) के प्रति रूचि को देखते हुए अलग से MEME आयोग बनाने की घोषणा कर डाली है। मोदी जी का कहना है कि अब देश का युवा PUBG तो खेलेगा ही साथ में सरकारी MEME आयोग में रेजिस्ट्रेशन करवा कर आधिकारिक रूप से MEME बना और देख भी सकेगा। मोदी जी ने स्पष्ट किया कि इसके लिए मित्रों को आधार की जरूरत नहीं पड़ेगी।

उभरते हुए कहानीकार वामपंथी लम्पट समुदाय में आज बजट के बाद एक निराशा की लहर देखी गई है, क्योंकि लोगों का मानना है कि आज के इस अंतरिम बजट से मोदी जी ने लहरिया लूटकर मामला एकदम इकतरफ़ा कर दिया है।

आइए देखते हैं क्या रही बजट के दौरान नेताओं और जनता की प्रतिक्रिया:

पीयूष गोयल कैबिनेट द्वारा अंतरिम बजट स्वीकार कर लिए जाने के बाद एकदम जोश में दिखे।
लेकिन अंतरिम बजट भाषण शुरू होते ही राहुल गाँधी मानो सोच रहे हों कि
फ़िक्र-ए-आशियाँ, हर ख़िज़ाँ में की, आशियाँ जला हर बहार में
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का एलान करते ही गौ-भक्त पीयूष गोयल साहब शरमा ही गए, जबकि योगी जी सब देख रहे हैं।
अपने बजट भाषण के दौरान पीयूष गोयल ने कहा, “हमारी सेना हमारा सम्मान है” और मोदी जी मेज थपथपाने से खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा, “एक ही तो लहरिया है गोयल जी, कितनी बार लूटोगे?”
इस पूरे भाषण के दौरान एक शख्सियत है जो शान्ति से भाषण सुनती रही, खोज सको तो खोज लो।  
5 लाख रुपए सालाना आय वालों को टैक्स राहत देने की बात सुनते ही खड़गे साहब की नींद टूटी और शायद कहने लगे “यो गई भैंस पानी में
इस घोषणा के बाद संसद में ‘मोदी-मोदी’ के नारों से सांसदों ने हल्ला ही काट दिया, इसी बात पर फूट-फूट कर हँस पड़े मोदी जी।
संसद के इस ”लाइट मोड” पर आदरणीय स्पीकर मैम भी मुस्कुरा पड़ीं।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बजट के बाद इस बात की ही निंदा कर डाली कि ये बजट इतना शानदार है कि उन्हें कहीं भी कड़ी निंदा करने का मौका नहीं मिला।
बजट पर चिंता व्यक्त करते हुए जातिवाचक पत्रकार।

बजट 2019: वो पाँच बड़ी बातें जो आपको पता होनी चाहिए

संसद में शुक्रवार को कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट 2019 पेश किया। सरकार द्वारा पेश किए गए इस बजट में ‘सबका साथ सबका विकास’ की मूल भावना का ख़याल रखा गया। यही वजह है कि सरकार ने किसानों, ग्रामीणों, महिलाओं और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कई बड़ी घोषणा की। ऐसे में बजट 2019 से जुड़ी वो पाँच बातें जिसके बारे में आपको पता होनी चाहिए।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम

रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता के नए युग का सूत्रपात करते हुए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। वित्त मंत्री ने रियल एस्टेट (नियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (रेरा) तथा बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम का उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा कि भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 ने उन आर्थिक अपराधियों की परिसंपत्तियों को ज़ब्त करने और उनका निपटारा करने में सहायता प्रदान की है जो देश के न्यायाधिकार से बच निकलते हैं। उन्होंने कहा कि कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों तथा स्पेक्ट्रम नीलामी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है।

स्वच्छता

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा शुभारंभ किए गए स्वच्छता मिशन की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए श्री गोयल ने कहा कि देश ने 98% ग्रामीण स्वच्छता कवरेज का लक्ष्य हासिल किया है। 5.45 लाख गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है।

ईडब्ल्यूएस आरक्षण

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए शैक्षणिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार 25% (लगभग 2 लाख) अतिरिक्त सीटों की व्यवस्था करेगी। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वर्तमान आरक्षित व्यवस्था पर जिसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

ग़रीबों के लिए अनाज

वित्त मंत्री ने कहा कि ग़रीबों तथा मध्यम वर्ग के परिवारों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए 2018-19 में 1,70,000 करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं। 2019-20 के बजट अनुमान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए 60 हजार करोड़ रुपए की धनराशि का आवंटन किया गया है।

राजकोषीय घाटे और मुद्रास्फीति में कमी

बजट के दौरान गोयल ने कहा कि 2011-12 के 5.8% तथा 2012-13 के 4.9% की उच्च दर की तुलना में राजकोषीय घाटे को 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार 3.4% पर लाया गया है।

वर्तमान सरकार के कामकाज़ के बारे में जानकारी देते हुए गोयल ने कहा कि औसत मुद्रास्फीति की दर 2000-2014 में 10.1% थी जो कम होकर 4.6% हो गई है। दिसंबर 2018 में मुद्रास्फीति केवल 2.19% थी।

वित्त मंत्री ने कहा कि इस वर्ष चालू खाता घाटा जीडीपी के केवल 2.5% रहने की संभावना है। 6 वर्ष पहले यह केवल 5.6% था। श्री गोयल ने कहा कि मजबूत मूलभूत घटकों तथा स्थिर नियामक व्यवस्था के कारण देश में पिछले 5 वर्षों के दौरान 239 बिलियन डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) हुआ है। उन्होंने कहा कि संरचनात्मक कर सुधार के मामले में वस्तु एवं सेवाकर एक मील का पत्थर है।