Friday, October 4, 2024
Home Blog Page 5487

कॉन्ग्रेस के नए जोगी-जोगन की जटाएँ रामावतार राहुल और दुर्गावतार प्रियंका बन कर बाहर आ रही हैं

चुनाव आते जा रहे हैं, और धर्म को नकारने वाले, राम को मिथक कहकर झुठलाने वाले, अब राम और दुर्गा बनकर सामने आने लगे हैं। कल की ख़बर में राहुल गाँधी को राम के रूप में दिखाया गया था, और वहीं प्रियंका गाँधी को ‘गंगा की बेटी’ कहकर एक पोस्टर लगाया गया था।

आज प्रियंका गाँधी को दुर्गा के रूप में दिखाया जा रहा है। इस से पहले एक रोचक बात शशि थरूर के ट्विटर से आई थी जहाँ उन्होंने गंगा को हमाम और उसमें नहाने वालों को पापी और नंगा कहा था।

कॉन्ग्रेस का नेतृत्व कन्फ़्यूज़्ड है कि वो अपना जनेऊ दिखाता फिरे, या फिर नए-नए जोगी की सामाजिक स्वीकार्यता के लिए धूल और राख मिलाकर तुरत-फुरत में बनाई जटाओं को अपनी पहचान बनाए, या योगियों और संतों को गंगास्नान करते हुए देखने पर पापी कहता फिरे।

हम आपके लिए राहुल और प्रियंका की कुछ तस्वीरें छोड़ रहे हैं ताकि आप उन्हें देखकर शशि थरूर की भाषा में कॉन्ग्रेसियों की तरह पाप धो लें।

दुर्गा रूप में प्रियंका
गंगा की बेटी प्रियंका
राम के रूप में राहुल गाँधी
भगवान परशुराम के वंशज राहुल
रामभक्त पंडित राहुल गाँधी
थरूर
शशि थरूर का हिन्दू संतों और प्रतीकों को लेकर नज़रिया

दंगे, हिंसा, आतंक से सरकार को अस्थिर करने की साज़िश की तेलतुम्बडे ने, पुणे पुलिस का दावा

भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी रहे प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुम्बडे की अग्रिम ज़मानत याचिका पर विरोध दर्ज करते हुए, पुणे पुलिस ने दावा किया है कि ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों (रोकथाम) के अपराधों के लिए उनकी विशिष्ट भूमिका का पता लगाने के लिए, तेलतुम्बडे को (अधिनियम) एक्ट के तहत हिरासत में रखने की ज़रूरत है।

पुलिस ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि सबूत जुटाने के लिए जाँच एजेंसी को पर्याप्त अवसर देने की ज़रूरत है। अभियोजन पक्ष ने मंगलवार को अदालत के सामने दावा किया कि उनके पास प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के माध्यम से सरकार को अस्थिर करने के लिए विद्रोही गतिविधियों में तेलतुम्बडे की भागीदारी को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, जिसका वो सदस्य था।

इस मामले में पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वला पंवार ने आरोप लगाया है कि तेलतुम्बडे, गोवा प्रबंधन संस्थान के एक प्रोफ़ेसर, अन्य सह-अभियुक्त एक आपराधिक साज़िश में शामिल थे। साज़िश के सिलसिले में सीपीआई के लिए ग़ैरक़नूनी गतिविधियों को अंजाम दिया था।

अभियोजन पक्ष द्वारा अदालत के समक्ष लिखित स्वरूप में बहस को प्रस्तुत किया गया। इसके मुताबिक ‘यह साज़िश शर्मिंदगी और दुश्मनी की भावना को बढ़ावा देने के इरादे से की गई थी। यह भारत या भारत सरकार के प्रति विद्रोह पैदा करने के लिए विभिन्न धर्मों, भाषाओं या धार्मिक समूहों, जाति या समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए घृणा या द्वेषपूर्ण व्यवहार था। इसके अलावा दंगों, हिंसक कार्य और आतंकवादी गतिविधियों जैसी ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने से भी संबंधित था’।

प्रोफ़ेसर ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की थी कि अदालत ने उनके ख़िलाफ़ पुणे पुलिस द्वारा दायर प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था। इसे अदालत ने 14 जनवरी को ख़ारिज कर दिया था। लेकिन उन्हें ग़िरफ़्तारी से पहले अदालत ने सुरक्षा और ट्रायल कोर्ट के समक्ष ज़मानत के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी। इसके बाद उन्होंने 18 जनवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन किया था।

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल कई कथित शहरी नक्सलियों पर छापा मारा था और आरोप लगाया था कि एल्गर परिषद ने भीमा कोरेगाँव हिंसा का नेतृत्व किया था।

खाली कुर्सियाँ देख कर सभा में नहीं आए केजरीवाल, फूट-फूट कर रोया कर्ज़ में डूबा आयोजक

हरियाणा के भिवानी में एक सभा आयोजित की गई थी, जिसके मुख्य अतिथि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल थे। इसे लेकर पोस्टर भी छपवा दिया गया था और इलाक़े में जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी किया गया था। लेकिन अफ़सोस, केजरीवाल के आने की ख़बर सुन कर भी सभा में लोग नहीं पहुँचे। भिवानी की नई अनाज मंडी में दयानन्द गर्ग नामक व्यक्ति ने अभिभावक सम्मलेन आयोजित किया था। सभा में केजरीवाल के न पहुँचने के निर्णय की ख़बर सुनते ही गर्ग फुट-फूट कर रो पड़े।

गर्ग ने रोते-रोते मीडिया को अपनी दुःख भरी दास्तान सुनाते हुए कहा कि उनके पास पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने ब्याज पर पैसे उधार लेकर इस सभा का आयोजन किया था। उन्होंने कहा कि अरविन्द केजरीवाल के न आने से उनका पैसा तो डूबा ही है, साथ ही उनके सम्मान को भी ठेस पहुँची है। इतना ही नहीं, रोते हुए गर्ग इसके बाद सभास्थल पर ही धरने पर बैठ गए।

केजरीवाल की सभा में खाली कुर्सियाँ।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार इस आयोजन की तैयारियाँ पिछले 15 दिनों से पूरे जोर-शोर से चल रही थी। आयोजक दयानन्द गर्ग ने, इस आयोजन को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिया था और अपने पूरे पैसे झोंक दिए थे। उन्होंने जी-तोड़ मेहनत कर सभा के आयोजन की तैयारियाँ पूरी की थी। उन्होंने दिल्ली सीएम को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि केजरीवाल ने उन्हें कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। उन्होंने यहाँ तक कहा कि इस सम्मलेन के लिए उन्होंने अपने परिवार तक को समय नहीं दिया। उनकी बेटी 10 दिनों से एक पेंसिल की माँग कर रही थी लेकिन सभा की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण उन्होंने वो भी नहीं ख़रीद सके।

आम आदमी पार्टी के हरियाणा दफ़्तर ने ऑपइंडिया को बताया कि उन्हें सभा में केजरीवाल के न पहुँचने के निर्णय के पीछे का कारण पता नहीं है। AAP के प्रवक्ता जतिन राजा ने बताया कि यह पार्टी का कार्यक्रम नहीं था।

राहत ब्रो, ‘काफ़िरों की शराब, शबाब और पैसा पसंद’ होना ठीक, लेकिन पैसों की स्मगलिंग ‘गल्त बात’ है

ऐसे समय में जब गायक राहत फ़तेह अली ख़ान एक बार फिर फॉरेन करेंसी स्मगलिंग के मामले में चर्चा में आ गए हैं, हम लाए हैं एक किस्सा, जो भारतीय राजनयिकों के गलियारे में ख़ूब चर्चा में रहा है। ये किस्सा है 1990 का, जब पाकिस्तान के एक मशहूर ग़ज़ल गायक और उस दौरान इस्लामाबाद में पोस्टेड एक भारतीय राजनयिक साथ में हवाई सफ़र कर रहे थे।

भारतीय राजनयिक इस ग़ज़ल गायक के फ़ैन तो थे ही, आस-पास ही बैठे होने के कारण बातचीत का माहौल भी बना हुआ था। ग़ज़ल गायक को लगा कि शायद ये पाकिस्तान के ही राजनयिक हैं और भारत में होने वाले उनके दौरों पर बात करते हुए भारत के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसी माहौल में वो ‘काफ़िर’ भारतीय लोगों पर खूब बरस भी रहे थे, साथ ही उन्होंने कहा था कि एक ‘मोमिन’ होने के नाते वो भारत देश के काफ़िरों की सिर्फ शराब, शबाब और और पैसा पसंद करते हैं और इसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं होती।

प्लेन से अपने हवाई सफ़र से उतरने के बाद जब राजनयिक ने उनसे बताया कि वो पाकिस्तानी नहीं बल्कि भारतीय राजनयिक हैं तो भारतीय शराब, शबाब और रूपए के शौक़ीन ग़ज़ल गायक ने फ़ौरन उनसे माफ़ी माँगी, गिड़गिड़ाए और इस नासमझी के लिए उनसे माफ़ी भी माँगी।

राजनयिक की सिफ़ारिश पर तत्कालीन भारत सरकार द्वारा इस ग़ज़ल गायक को कई वर्षों के लिए भारत में ‘ब्लैकलिस्ट’ कर दिया गया और ‘काफ़िरों’ के इस देश में परफॉर्म करने की अनुमति देने से मना कर दिया।

ऐसे में जब ग़ज़ल गायक के पास ‘काफ़िरों’ से पैसे आने बंद हो गए और ‘पाक़’ जमीं पर गाने-बजाने के लिए कोई ख़ास धन और अवसर थे नहीं, तो स्वाभाविक है कि रुपयों की तंगी गायक को सताने लगी।

हमारे देश में फिर एक समय आया, जब कविता, काव्य और ग़ज़लों के शौक़ीन प्रधानमन्त्री ने इस ग़ज़ल गायक को फिर से भारत आने का मौका दिया और काफ़िरों से आने वाले रूपए पर फिर से चाँदी लूटी जानी लगी।

बचपन में एक कहानी पड़ी थी, बिच्छू की प्रवृत्ति डंक मारने की ही होती है, लेकिन इंसान की प्रवृत्ति उस पर दया कर के उसे बचाने की होनी चाहिए।

पाकिस्तान के जाने-माने सिंगर और पाकिस्तानी गायक नुसरत फ़तेह अली ख़ान के भतीजे राहत फ़तेह अली खान पर सरकार ने फॉरेन करेंसी स्मगलिंग मामले में शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। ईडी (इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट) ने FEMA (फ़ॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट) के तहत राहत फ़तेह अली ख़ान को ‘शो-कॉज’ नोटिस यानी कारण बताओ नोटिस जारी किया है और जाँच में शामिल होने को कहा है। आरोप हैं कि राहत फ़तेह अली ख़ान 3 सालों से फॉरेन करेंसी की स्मगलिंग के धंधे में लिप्त थे।

राहत फ़तेह अली ख़ान के साथ करेंसी स्मलिंग का ये दूसरा मामला है। इससे पहले 2011 में दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर रेवेन्यू इंटैलीजेंस की टीम ने राहत फ़तेह अली ख़ान को फॉरेन करेंसी के साथ पकड़ा था, जिसकी कोई रसीद या सबूत राहत के पास नहीं था। राहत के साथ 2 और लोगों को हिरासत में लिया गया था। तब राहत को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया था। लेकिन इस बार ईडी राहत को बख्शने के मूड में नहीं दिखती।

हैरानी की बात है कि ऐसे समय में जब भारत देश में रह रहे कुछ कलाकारों को, जिनकी यहाँ पर बहुत बड़ी फ़ैन फ़ॉलोइंग भी है, को लगता है कि इस देश में लोगों के अंदर धार्मिक असहिष्णुता का माहौल है, पाकिस्तानी कलाकार यहाँ आकर अपने ‘टैलेंट’ को साबित करने के लिए मरे जाते हैं। संगीत और कला के प्रति भारत देश की आसक्ति हमेशा से ही दिलचस्म मुद्दा रही है।

जींद उपचुनाव: भाजपा जीती, बुरी तरह हारे रणदीप सुरजेवाला

जींद उपचुनाव में भाजपा को बड़ी सफलता मिली है। भाजपा के उम्मीदवार कृष्णा मिड्ढा ने जननायक जनता पार्टी के दिग्विजय चौटाला को 12,248 मतों से हराया। वहीं कॉन्ग्रेस उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें विजयी उम्मीदवार को मिले मतों से आधे मत नहीं मिल पाए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी मतगणना के दौरान कहा था कि भाजपा जींद उपचुनाव आसानी से जीत लेगी। इसके बाद राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा में 47 विधायक हो गए हैं।

रणदीप सुरजेवाला कॉन्ग्रेस पार्टी के कम्युनिकेशन प्रभारी हैं और हरियाणा के कैथल से विधायक हैं। जिंद चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने अपनी हार स्वीकारते हुए कहा:

“मुझे उम्मीद है कि मनोहर लाल खट्टर और कृष्णा मिड्ढा जी,जींद के लोगों के सपनों को पूरा करेंगे। मुझे पार्टी द्वारा एक जिम्मेदारी दी गई थी जिसे मैंने अपनी क्षमताओं के अनुसार पूरा किया, मैं कृष्ण मिड्ढा जी को बधाई देता हूं।”

रणदीप सुरजेवाला का हारना कॉन्ग्रेस के लिए हरियाणा में एक बुरा संकेत माना जा रहा है। विपक्षी पार्टियों ने लगातार दावा किया था कि राज्य में खट्टर सरकार की लोकप्रियता कम होते जा रही है, लेकिन हाल के मेयर चुनावों और ताज़ा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को मिली जीत कुछ अलग ही कहानी कहती है। बता दें कि 2018 के दिसंबर में हरियाणा में हुए म्युनिसिपल चुनाव के परिणाम आए थे, जिसमे सभी पाँच सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था। यहाँ तक कि राज्य में कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के गृह क्षेत्र रोहतक में भी कॉन्ग्रेस समर्थित उम्मीदवार को मुँह की खानी पड़ी थी।

वहीं राजस्थान के रामगढ़ में कॉन्ग्रेस की जीत हुई। अब राज्य में कॉन्ग्रेस के विधायकों की संख्या 100 पहुँच गई है। कॉन्ग्रेस के ज़ुबेर खां ने भाजपा के सुखवंत सिंह को 12,228 वोटों से मात दी। दोनों ही सीटों पर 28 जनवरी को चुनाव संपन्न हुए थे। जींद में मतगणना के दौरान एक उम्मीदवार के समर्थकों ने हंगामा भी किया, जिसके बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा।

‘मणिकर्णिका’ आजकल के समीक्षकों के संकीर्ण दायरों से परे है

‘मणिकर्णिका’ जैसी फ़िल्म का बनना और सुपरहिट होना भारतीय सिनेमा व बॉलीवुड के लिए एक अच्छा संकेत है। समीक्षकों के एक गिरोह द्वारा इसे नकारने के बावज़ूद दर्शकों का फ़िल्म को इतना प्यार देना, यह दिखाता है कि आज का दर्शक अपने इतिहास को लेकर संज़ीदा हो रहा है और अपनी गौरव गाथा को नए सिरे से याद करने की कोशिश कर रहा है। भारत एक विशाल देश है और उस से भी बड़ा है इसका इतिहास। और, अगनित भारतीय वीरों की गौरव गाथाएँ को समेटे वह इतिहास, जो आज तक पुस्तकालयों की भारी-भरकम किताबों में दबा हुआ था, अब धीरे-धीरे जनमानस की चर्चा का विषय बन रहा है। यही ‘मणिकर्णिका’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी है।

मणिकर्णिका: यह ‘वीरे दी वेडिंग’ नहीं है

जैसा कि ट्रेलर देखने से ही प्रतीत हो गया था, कंगना रनौत ने झाँसी की रानी के किरदार को अदा नहीं किया है, बल्कि हर एक दृश्य में उसे जिया है। रानी लक्ष्मीबाई एक माँ हैं, एक रानी हैं, और एक पिता की पुत्री भी हैं। मराठा साम्राज्य में पली-बढ़ी मनु कैसे उत्तर प्रदेश के एक राज्य का दिल जीत लेती है, ग्वालियर की सेना के अंदर देशभक्ति जगा देती है, और अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर देती है- इसे फ़िल्म ने काफ़ी अच्छी तरह से उकेरा है। यहाँ हम फ़िल्म की कहानी की चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि ऐसी फिल्मों को बनाने मे झोंकी गई मेहनत और बजट को देखते हुए आपको इसे सिनेमा हॉल में अनुभव करना चाहिए।

यहाँ हम फ़िल्म की थीम, प्रभाव, अदाकारी और इसको लेकर फैलाए जा रहे प्रोपगेंडा की बात करेंगे और परत दर परत समीक्षकों के उस गिरोह की पोल खोलेंगे, जिसने देशभक्ति से ओत-प्रोत फ़िल्म में भी खोट ढूँढ कर इसे बदनाम करने की असफल कोशिश की। सबसे पहले ‘द प्रिंट’ के शरण्या मुंशी की बात करते हैं, जिन्होंने अपनी समीक्षा में कहा है कि फ़िल्म में महारानी लक्ष्मीबाई तलवार तो उठाती हैं, लेकिन पितृसत्ता से लड़ाई नहीं करती।

फ़िल्म के एक दृश्य में कंगना को नाना साहेब और तात्या टोपे जैसे वीरों के साथ लड़ते हुए दिखाया गया है (मैत्रीपूर्ण तलवार युद्ध क्योंकि सभी एक साथ ही पले-बढे थे), जिसमे रानी उन पर भी भारी पड़ती है। इस युद्ध में प्रेम है, वीरता है, एक लड़की का साहस है- अगर इसे पितृसत्ता से लड़ाई वाले दृष्टिकोण से देखें तो भी यह एक लड़की के तीन पुरुषों पर भारी पड़ने वाली बात है। लेकिन नहीं, अगर राष्ट्रभक्ति और बलिदान की गाथा का चित्रण करने वाली इस फ़िल्म में रानी सिगरेट फूँक कर उनका धुआँ हवा में नहीं उड़ाती है, वह दारू की बोतल लिए टल्ली होकर लड़खड़ाते हुए और उलूलजलूल कुछ भी बकते हुए अपने बॉयफ्रेंड के साथ रातों में नहीं घूमती हैं- शायद यही कारण है कि तीन-तीन वीरों पर भारी पड़ने के बावज़ूद, वह पितृसत्ता से नहीं लड़ पाती।

रानी के एक नहीं, कई पहलू हैं

रानी अपने पालक पिता से नखरे करती हैं, वह उनका अधिकार है। रानी अपने पति का आदर-सम्मान करती हैं, क्योंकि वह राजा हैं और उम्र में उनसे बड़े हैं। इसमें पितृसत्ता नहीं, एक बेटी का अपने पिता के सामने नटखटपन और एक पत्नी का अपने पति के सामने शालीन, सहज और सौम्य व्यवहार वाला दृष्टिकोण है। वह व्यवहार जो राजा का भी अपनी पत्नी के लिए है। रानी अपने पति की मृत्यु की सोच कर ही भयभीत हो उठती है। इसमें उनका उनके पति के प्रति स्नेह है, लगाव है, अपनों के लिए किसी अनहोनी की आशंका का भय है। वह ‘ब्रेक अप के बाद पार्टी’ वाली महिला नहीं है, बल्कि बीमार पति की तन-मन-धन से सेवा करने वाली आदर्श हैं।

पति की मृत्यु के बाद शोकाकुल रानी एक पत्नी का फ़र्ज़ निभाती हैं। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी राजाविहीन झाँसी की चिंता कर वह एक रानी का फ़र्ज़ निभाती हैं। विधवाओं के लिए समाज के एक वर्ग में तय किए गए आडम्बरपूर्ण नियम-क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर एक समाज-सुधारक की भूमिका निभाती हैं। रानी के कई आयाम हैं, इतने कि उनके सामने आजकल प्रचलित किए जाने वाले पितृसत्ता, धर्मनिरपेक्षता और अंधराष्ट्रवाद जैसे शब्दों का कोई मोल नहीं है। वह इन सब से परे हैं, वह इन परिभाषाओं को तय करती हैं, इनके दायरे में नहीं बंधती।

विधवा होने के बाद तमाम आडम्बरों को धता बताते हुए (जो कि एक महिला द्वारा ही उन पर थोपे जा रहे थे, किसी पुरुष द्वारा नहीं) राजकाज संभालने वाली रानी को पितृसत्तात्मक नज़रिए से देखना अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देने के सामान है। वह हज़ारों लोगों के सामने एक विधवा को कुमकुम लगा कर समाज के एक वर्ग द्वारा ढोए जा रहे आडम्बरों को धता बताती हैं। हर एक जोड़े की तरह, राजा-रानी को भी एक संतान की इच्छा है। यहाँ हम इतिहास को नहीं, फ़िल्म की कहानी के हिसाब से पितृसत्ता का मूल्यांकन करेंगे क्योंकि उंगली फ़िल्म पर ही उठाई गई है।

पितृसत्तात्मक अँगरेज़ हैं, और रानी उनसे लड़ती हैं। अंग्रेज़ पितृसत्तात्मक हैं क्योंकि आक्रांता डलहौजी की हड़प नीति में किसी पुत्र के न होने पर राज्य का अंग्रेजी शासन में विलय करने की बात कही गई थी, यह उनकी पितृसत्तात्मकता दिखाती है। एक महिला के शासन को मान्यता न देना, यह उनकी पितृसत्तात्मकता को दिखाता है। एक ‘हिन्दू महिला के विधवा होने के बाद काशी जाने की कामना करना, यह उनकी पितृसत्तात्मकता का परिचायक है। राजनैतिक अंधविरोध में पागल हो चुके समीक्षकों को आजकल सबकुछ उलटा ही नज़र आता है, जिसके परिणामस्वरूप हो सकता है कि उन्हें अंग्रेज़ों की पितृसत्तात्मकता ‘कूल’ लगी हो और रानी का विधवा आडंबरों को धता बताना रास न आया हो।

वह महिला नहीं, पहले भारतीय हैं

ऐसा इसीलिए, क्योंकि उन्होंने पितृसत्तात्मकता की एक परिभाषा तय कर ली है, अपने अजेंडे के हिसाब से नए मानदंड तैयार कर लिए हैं। रानी इनके इन मानदंडों से परे हैं, वह ऐसी गिरी हुई मानसिकता वाले लोगों के द्वारा तय किए गए एक दायरे में बँध कर रहना नहीं जानती, वह लोहा लेना जानती है। झाँसी की जनता के बीच मिल-बैठ कर सत्ता और जनता के बीच संवाद का माध्यम स्थापित करने वाली रानी को लोग सहज स्वीकार करते हैं। राज्य के सभी स्त्री-पुरुष उनके पीछे हो लेते हैं, यह किसी महिला की कामयाबी नहीं है, यह पितृसत्ता के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं है- यह एक देशभक्त भारतीय की आक्रांताओं के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़ने की कहानी है। मणिकर्णिका परिवार, राज्य और मातृभूमि- तीनो की मर्यादाएँ सिखाती है।

अपने पुत्र की मृत्यु पर शोकाकुल रानी धीरज नहीं रख पाती, वह रोती-बिलखती है, गम के सागर में डूब कर अपने मृत पुत्र को भी बाहों में समेटे रहती है। संतान की मृत्यु का गम किसी भी महिला के लिए इतना दुखदाई है, जिसकी परिकल्पना हम-आप नहीं कर सकते। पुत्र-शोक से ग्रसित रानी अपने शोक को मिटाने के लिए किसी क्लब में नहीं जाती- जो कि आजकल के समीक्षकों को खुश करने का एक ज़रिया हो सकता था। वह अपने बीमार पति की देखभाल में समय व्यतीत करती हैं, झाँसी की भावी रणनीति पर चर्चा करते हुए अपनी क्षमता दिखाती है।

मणिकर्णिका क्रूर अंग्रेज़ों के सामने सर नहीं झुकाती है। वह अपने पिता के लिए मणिकर्णिका हैं, पति के लिए मनु हैं, राज्य के लिए लक्ष्मी हैं और इतिहास के लिए एक वीरांगना हैं, झाँसी की रानी हैं। वह बात-बात में अंग्रेज़ी शब्द दुहरा कर अपनी बौद्धिकता का परिचय नहीं देती, बल्कि अंग्रेज़ी को एक ‘mere language’ बता कर अपनी मातृभाषा का सम्मान करने सिखाती है। पुस्तकों की प्रेमी मणिकर्णिका पठान-पाठन में समय व्यतीत करती हैं, उनके पुस्तकालय में आग लगा कर अंग्रेज़ अपनी मानसिकता का परिचय देते हैं।

मणिकर्णिका ट्रेलर (साभार: Zee Studios)

ग़ुलाम गौश ख़ान को गौश बाबा कहने वाली रानी उनका सम्मान करती है। गौश बाबा एक मुस्लमान नहीं है, वह भी एक भारतीय हैं जो अपनी मातृभूमि में दफ़न होने की कामना रखते हैं। पीर अली ग़द्दार है, वह देश का नमक खाता है लेकिन उसके मन में ज़हर भरा है। गौश बाबा की मृत्यु के वक़्त भावुक रानी वहाँ उपस्थित रहती है। ख़ान मरते वक़्त रानी को ‘विजयी भव’ का आशीर्वाद देते हैं। एक देशभक्त और बुज़ुर्ग की इज्ज़त करना जानती है रानी, इसे पितृसत्ता और धर्म के नज़रिए से आँकने वालों के मुँह पर तमाचा मारती है।

सार यह, कि अगर आपने मणिकर्णिका नहीं देखी तो आपको देखनी चाहिए। अगर आपने देख ली है, तो आपको इतिहास में झाँक कर उस गौरव गाथा के बारे में और जानना चाहिए, समीक्षकों की बेहूदगी पर सवाल खड़े करने चाहिए। फ़िल्म ऐतिहासिक रूप से भले ही शत प्रतिशत प्रामाणिक न हो, लेकिन कहानी वही है जो हमें दशकों से प्रेरणा देती आई हैं। कंगना इस फ़िल्म के निर्देशक हैं, बाहुबली के लेखक विजयेंद्र प्रसाद ने कहानी लिखी है और सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसूनजोशी ने डायलॉग्स लिखे हैं। फ़िल्म देखिए, उस गौरव गाथा को री-विजिट कीजिए और इन सबका धन्यवाद कीजिए।

देश मोदी के नेतृत्व में बना रहा है नए आयाम; राष्ट्रपति के बजट अभिभाषण की मुख्य बातें

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने बजट सेशन के पहले दिन संसद के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए गुरु नानक देव को उनकी 550वीं जयंती वर्ष पर याद किया। उन्होंने अपने अभिभाषण में महात्मा गाँधी और राम मनोहर लोहिया का ज़िक्र करते हुए कहा कि देश उनके दिखाए राह पर चल रहा है। साथ ही राष्ट्रपति ने जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में शहीदों को नमन किया। राष्ट्रपति ने कहा कि 2014 चुनावों से पहले देश अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा था लेकिन पारदर्शी मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद लोक कल्याणकारी सुविधाओं को जन-जन तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा।

कृषि एवं किसानों के हित में किए गए कार्य

राष्ट्रपति ने देश के मेहनती किसानों को रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के लिए उनकी प्रशंसा की। उन्होंने उन्हें अर्थव्यवस्था का आधार बताया। किसानों का अभिनन्दन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार उन तक सभी सुविधाएँ पहुँचाने का लगातार प्रयास कर रही है। इस पर विशेष जानकारी देते हुए उन्होंने कहा:

“मेरी सरकार ने 22 फसलों के न्‍यूनतम समर्थन मूल्य यानि एम.एस.पी. को फसल की लागत का डेढ़ गुना से अधिक करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। मिट्टी की सेहत के बारे में किसानों को जानकारी देने के लिए 17 करोड़ से ज्यादा सॉयल हेल्थ कार्ड बांटे गए हैं। खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा यूरिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए यूरिया की 100 प्रतिशत नीम कोटिंग भी की गई है। सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए मेरी सरकार पहले की 99 अधूरी परियोजनाओं को पूरा कर रही है। इनमें से 71 परियोजनाएं, अगले कुछ महीनों में पूरी होने जा रही है। देश की 1,500 से ज्यादा कृषि मंडियों को ऑनलाइन जोड़ने का अभियान चलाया गया है।”

दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों पर चल रही है सरकार

पंडित दीन दयाल उपाध्याय को याद करते हुए और मोदी सरकार में हुए बदलावों के बारे में बात करते हुए राष्ट्रपति ने कहा:

“वो ग़रीब माँ जो लकड़ी के धुएँ में खाना बनाती थी, वो बेबस बहन जो पैसे की चिंता में गंभीर बीमारी के बावजूद अपना इलाज़ टालती थी, वो बेटी जो शौच जाने के लिए सूरज ढलने का इंतजार करती थी, वो बच्चा जो बिजली के अभाव में पढ़ाई के लिए सूरज की रोशनी का इंतज़ार करता था, वो किसान जो ओले से फ़सल बर्बाद होते देखकर कर्ज़ चुकाने की चिंता में घिर जाता था, वो युवा जो कर्ज़ न मिल पाने के कारण अपना रोज़गार शुरू नहीं कर पाता था, ऐसे ही असंख्य असहाय चेहरों ने मेरी सरकार के लक्ष्य तय किए। और इसी सोच ने मेरी सरकार की योजनाओं को आधार दिया। यही दीन दयाल उपाध्याय के अंत्योदय का आदर्श रहा है और उनका यह आदर्श ही, मेरी सरकार के कामकाज की सार्थकता की कसौटी बना है।”

उज्ज्वला योजना

मोदी सरकार की महत्वकांक्षी उज्ज्वला योजना पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने आँकड़े गिनाए। उन्होंने कहा:

“हमारी बहुत सी माताएँ, बहनें और बेटियाँ, चूल्हे के धुएँ के कारण बीमार रहती थीं, पूरे परिवार का स्वास्थ्य प्रभावित होता था और उनका अधिकांश परिश्रम और समय, ईंधन जुटाने में लग जाता था। ऐसी बहनों-बेटियों के लिए मेरी सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 6 करोड़ से ज़्यादा गैस कनेक्शन दिए हैं। दशकों के प्रयास के बाद भी वर्ष 2014 तक हमारे देश में केवल 12 करोड़ गैस कनेक्शन थे। बीते केवल साढ़े चार वर्षों में मेरी सरकार ने कुल 13 करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन से जोड़ा है।”

शौचालय निर्माण के क्षेत्र में केंद्र सरकार के अभूतपूर्व कार्य

राष्ट्रपति ने स्वच्छता अभियान में शौचालय निर्माण के क्षेत्र में किए गए कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती तक देश को सम्पूर्ण रूप से स्वच्छ बनाने का संकल्प रखा गया है। उन्होंने कहा:

“शौचालय की सुविधा का न होना करोड़ों देशवासियों, विशेषकर हमारी बहू-बेटियों को गरिमाहीन और अस्वस्थ जीवन जीने के लिए मजबूर करता था। स्वच्छ भारत अभियान के तहत 9 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण हुआ है। इस जन आंदोलन के कारण आज ग्रामीण स्वच्छता का दायरा बढ़कर 98 प्रतिशत हो गया है, जो कि वर्ष 2014 में 40 प्रतिशत से भी कम था। एक आकलन के अनुसार, इन शौचालयों के बनने से गरीबों की अनेक बीमारियों से सुरक्षा, हो पा रही है और 3 लाख से ज्यादा गरीब देशवासियों के जीवन की रक्षा संभव हुई है। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के इस वर्ष में हमें याद रखना है कि हमने पूज्य बापू की स्मृति में इस वर्ष 2 अक्तूबर तक देश को संपूर्ण स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया है।”

स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्य

राष्ट्रपति ने ‘आयुष्मान भारत योजना’, ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान’ और ‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ का ज़िक्र करते हुए स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों को गिनाते हुए कहा:

हम इस बात से भली-भाँती परिचित हैं कि बीमारी के इलाज़ का ख़र्च, किसी ग़रीब परिवार को और भी ग़रीब बनाता है। इस पीड़ा को समझने वाली मेरी सरकार ने, पिछले वर्ष ‘आयुष्मान भारत योजना’ शुरू की। विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना- ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान’ के तहत देश के 50 करोड़ गरीबों के लिए गंभीर बीमारी की स्थिति में, हर परिवार पर प्रतिवर्ष 5लाख रुपए तक के इलाज़ ख़र्च की व्‍यवस्‍था की गई है। सिर्फ 4 महीने में ही इस योजना के तहत 10 लाख से ज़्यादा ग़रीब ,अस्पताल में अपना इलाज़ करवा चुके हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने किडनी की बीमारी से परेशान भाइयों और बहनों के लिए डायलिसिस की निशुल्क सेवा उपलब्ध कराई है। उन्होंने कहा:

मेरी सरकार का यह भी प्रयास रहा है कि ग़रीब और मध्यम वर्ग के परिवारों पर इलाज़ के खर्च का बोझ कम से कम पड़े। ‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ के तहत देश भर में अब तक 600 से ज्यादा जिलों में 4,900 जन औषधि केन्‍द्र खोले जा चुके हैं। इन केन्‍द्रों में 700 से ज़्यादा दवाइयाँ बहुत कम क़ीमत पर उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसी तरह, दिल की बीमारी में इस्तेमाल होने वाले स्टेंट की क़ीमत कम किए जाने से ग़रीब और मध्यम वर्ग के लोगों को औसतन लगभग 4,600 करोड़ रुपए सालाना की बचत हो रही है। घुटने के ट्रांसप्लांट की क़ीमत कम किए जाने से लोगों को सालाना लगभग 1,500 करोड़ रुपए की बचत हो रही है। मेरी सरकार ने किडनी की बीमारी से परेशान भाइयों और बहनों के लिए डायलिसिस की निशुल्क सेवा उपलब्ध कराई है। इससे डायलिसिस के हर सेशन में लोगों को 2 हजार रुपए से अधिक की बचत हो रही है।

केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे बीमा योजनाओं की जानकारी देते हुए बताया:

इसके साथ ही, सिर्फ 1 रुपया महीना के प्रीमियम पर ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’ और 90 पैसे प्रतिदिन के प्रीमियम पर ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ के रूप में लगभग 21 करोड़ गरीब भाई-बहनों को बीमा सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। किसी अनहोनी के समय प्रत्येक योजना के तहत 2 लाख रुपए की सहायता का प्रावधान किया गया है। अब तक इस योजना के माध्यम से 3,100 करोड़ रुपए से ज़्यादा राशि उपलब्ध कराकर, मेरी सरकार ने देशवासियों का, उनके संकट के समय में साथ दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत की सफलता

महामहिम कोविंद ने भारतीय कूटनीति की सफलता की चर्चा करते हुए कहा कि अब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की बात ध्यान से सुनी जा सकती है। अंतररष्ट्रीय योग दिवस व अन्य सफलता पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:

यह मेरी सरकार की राजनयिक सफलता है कि आज भारत की आवाज वैश्विक मंचों पर सम्मान के साथ सुनी जाती है। कुछ दिन पूर्व वाराणसी में आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस में भारत की यह अंतर्राष्ट्रीय ध्वनि और ज्यादा मुखर हुई है। भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया और आज यह दिवस पूरे विश्व में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। पूरी दुनिया में योग की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है। आज भारत को यह गर्व है कि हमने विश्व समुदाय को योग जैसी श्रेष्ठ पद्धति की सौगात दी है।

सरकार ने विदेश में रहने वाले भारतीयों के पासपोर्ट की ताकत और उसका मान ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि उनके सुख-दुःख की सहभागी भी बनी है। पिछले चार वर्ष में संकट में फंसे 2 लाख 26 हजार से ज्यादा भारतीयों को स्वदेश वापस लाया गया है।

जम्मू, लद्दाख और कश्मीर

जम्मू, कश्मीर एवं लद्दाख में किए जा रहे विकास कार्यों की चर्चा करते हुए महामहिम ने कहा कि वहाँ चुनाव सफल रहे हैं। उन्होंने कहा:

“मेरी सरकार जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के संतुलित विकास के लिए प्रतिबद्ध है। मेरी सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि राज्य में विकास का वातावरण बनना शुरू हुआ है। हाल ही में राज्य के शहरी स्थानीय निकायों में 13 वर्ष बाद और पंचायतों में 7 वर्ष के अंतराल के बाद शांतिपूर्वक चुनाव हुए जिनमें लोगों ने बहुत उत्साह दिखाया और 70 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रतिबद्ध मेरी सरकार द्वारा 80 हजार करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया गया था। इस पैकेज में से, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी अलग-अलग परियोजनाओं के लिए अब तक 66 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की स्वीकृति दी जा चुकी है।”

भारतीय सेना और OROP

राष्ट्रपति ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ लागू किए जाने की चर्चा करते हुए भारतीय सेना की तारीफ़ की और कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ ने सैन्य बलों का मनोबल बढ़ाया है। उन्होंने राफेल की भी चर्चा की। उन्होंने कहा:

“हमारी सेनाएँ और उनका मनोबल, 21वीं सदी के भारत के सामर्थ्य का प्रतीक है। मेरी सरकार ने चार दशकों से लंबित वन रैंक वन पेंशन की मांग को न सिर्फ पूरा किया बल्कि 20 लाख पूर्व-सैनिकों को 10,700 करोड़ रुपए से ज्यादा के एरियर का भुगतान भी किया है। मेरी सरकार का मानना है कि अपनी रक्षा ज़रूरत को एक पल के लिए भी नज़रअंदाज़ करना, देश के वर्तमान और भविष्य, दोनों के ही हित में नहीं है। बीते वर्ष रक्षा क्षेत्र में हुए नए समझौतों, नए सैन्य उपकरणों की खरीद और Make In India के तहत देश में ही उनके निर्माण ने सेना का मनोबल बढ़ाया है और सैन्य-आत्मनिर्भरता की ओर देश का मार्ग प्रशस्त किया है। दशकों के अंतराल के बाद भारतीय वायुसेना, आने वाले महीनों में, नई पीढ़ी के अति आधुनिक लड़ाकू विमान-राफेल को शामिल करके, अपनी शक्ति को और सुदृढ़ करने जा रही है।”

अर्थव्यवस्था और GST पर राष्ट्रपति के बोल

संसद के बजट सेशन में दोनों सदनों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि GST से देश में एक ईमानदार और पारदर्शी व्यापारिक व्यवस्था का निर्माण हो रहा है जिसका काफी बड़ा लाभ देश के युवाओं को मिल रहा है। अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए उन्होंने आगे कहा:

“सरदार पटेल ने देश के भौगोलिक और राजनैतिक एकीकरण का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य अपनी असाधारण क्षमताओं के बल पर प्राप्त किया था। लेकिन पूरे देश के व्यापक आर्थिक एकीकरण का काम अधूरा रह गया था। हमारे व्यापारी और उद्यमी हमेशा परेशान रहते थे कि वे अपना सामान कहां से खरीदें और कहां बेचें, किस तरह से अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग कर-प्रणालियों का पालन करें। अब GST जैसा व्यापक कर सुधार लागू होने से One Nation- One Tax- One Market की अवधारणा साकार हुई है।

GST से देश में एक ईमानदार और पारदर्शी व्यापारिक व्यवस्था का निर्माण हो रहा है जिसका काफी बड़ा लाभ देश के युवाओं को मिल रहा है। इस व्यवस्था से व्यापारियों के लिए पूरे देश में कहीं पर भी व्यापार करना आसान हुआ है और उनकी कठिनाइयां कम हुई हैं। मैं देशवासियों को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि शुरुआती दिक्कतों के बावजूद, देश के बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने बहुत कम समय में एक नई प्रणाली को अपनाया। मेरी सरकार ने व्यापार जगत से मिल रहे सुझावों को ध्यान में रखकर GST में सुधार की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखा है।”

राष्ट्रपति ने ‘Ease Of Doing Business’ में भारत की रैंकिंग पाँच वर्ष में 65 अंक ऊपर जाने की बात कहते हुए कहा कि सरकार स्व-रोज़गार को बढ़ावा दे रही है।

भ्रष्टाचार और कालाधन पर अंकुश

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘बेनामी संपत्ति कानून’, ‘प्रिवेन्शन ऑफ मनी लांडरिंग एक्ट’ और आर्थिक अपराध करके भागने वालों के खिलाफ बने कानून के तहत 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई हो रही है। उन्होंने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी देते हुए बताया:

“वर्ष 2014 में मेरी सरकार को जनता ने पूर्ण बहुमत देने के साथ ही यह आदेश भी दिया था कि कालेधन और भ्रष्टाचार पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो। बीते साढ़े चार वर्षों में मेरी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ी है। जन-मन को समझने वाली मेरी सरकार ने पहले दिन से ही कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी और कैबिनेट की पहली ही बैठक में कालेधन के खिलाफ SIT यानि विशेष जांच दल के गठन का निर्णय लिया। इसके बाद सरकार ने कालेधन के खिलाफ नया और कठोर कानून बनाया। विदेश में गैर-कानूनी तरीके से जुटाई गई संपत्ति के खिलाफ भी मेरी सरकार ने अभियान चलाया। टैक्स हेवेन समझे जाने वाले अनेक देशों के साथ नए सिरे से समझौते किए गए और कई देशों के साथ पुराने समझौतों की कमियों को दूर करते हुए, नए बदलाव लाए गए।”

कालेधन के ख़िलाफ़ अभियान की बात करते हुए महामहिम ने कहा:

“भारत से विदेश जा रहे कालेधन को रोकने के साथ ही मेरी सरकार ने, देश के भीतर भी कालेधन के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया। देश का हर वह सेक्टर जहाँ कालेधन का प्रवाह था, उसके लिए नए कानून बनाए गए, उन्हें टैक्स के दायरे में लाया गया। इन कार्रवाइयों के बीच सरकार ने लोगों को अपनी अघोषित आय और अघोषित धन को स्वेच्छा से घोषित करने का अवसर भी दिया।”

“कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान में नोटबंदी का फैसला एक महत्वपूर्ण कदम था। इस फैसले ने कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था पर प्रहार किया और वह धन, जो व्यवस्था से बाहर था, उसे देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। सरकार के इस कदम ने देश को अस्थिर करने वाली ताकतों और कालेधन के प्रवाह में मदद करने वाली व्यवस्थाओं की कमर तोड़ दी है। कालेधन के प्रवाह के लिए जिम्मेदार 3 लाख 38 हजार संदिग्ध शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन सरकार द्वारा खत्‍म किया जा चुका है। इन कंपनियों के निदेशकों के दोबारा चुने जाने पर भी पाबंदी लगा दी गई है।”

इसके अलावा राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ के तहत, बिना किसी गारंटी के 7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के ऋण दिए गए हैं। इसका लाभ, ऋण प्राप्त करने वाले 15 करोड़ से ज्यादा लोगों ने उठाया है।

शाह फ़ैसल के नए गीतों में अलगाववादियों के बोल हैं

भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में टॉप करने वाले कश्मीरी शाह फ़ैसल का इस्तीफ़ा देने के बाद नई पार्टी बनाने का विचार, फ़ैसल की राजनीतिक मंशा को उजागर करता है। अपने हर वक्तव्य में केवल कश्मीर मुद्दे का राग अलाप कर फ़ैसल देश की जनता का ध्यान भटकाने का काम कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अपने इस हथकंडे से वो जनता को अपने पक्ष में लेकर अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने में कामयाब हो जाएँगे।

एनबीएसओ सरहद और अरहम फाउंडेशन द्वारा आयोजित 12वें कश्मीर महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए एमबीबीएस डिग्री धारक फ़ैसल वहाँ पहुँचे। इस मौक़े पर पत्रकारों से बात करते हुए, फ़ैसल (35) ने सिविल सेवा से इस्तीफ़ा देने, कश्मीर मुद्दे और भविष्य की योजनाओं पर अपने विचारों, राजनीति में शामिल होने के अपने फ़ैसले के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, “घाटी की स्थितियों को देखते हुए, केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि जब तक हत्याएँ नहीं रुकेंगी, तब तक राज्य में स्थिति नहीं सुधरेगी।”

भारत समेत कश्मीर में ‘हिन्दुत्ववादी तत्वों’ में ख़तरनाक वृद्धि का हवाला देकर नौकरी से इस्तीफ़ा देने वाले वाले फैसल के पसंदीदा व्यक्तित्वों में से एक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी हैं, इसका मतलब कहीं ये तो नहीं कि फैसल की राजनीतिक गतिविधियाँ वहीं से उड़ान भरती हों।

इसके सीधे मायने तो यही लगाए जा सकते हैं कि फ़ैसल का इस्तीफ़ा केवल एक ज़रिया भर था जिससे वो अपने उन मनसूबों को पूरा कर सकें जो सेवा में रहकर पूरे नहीं किए जा सकते। फ़िलहाल तो फ़ैसल को अपनी राजनीतिक उड़ान में कई दिक़्कतों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि हिज़्बुल मुज़ाहिदीन संगठन ने शाह फैसल के राजनीति में आने के क़दम पर कड़ा ऐतराज जताया। हिज़्बुल ने शाह के फैसले को केंद्र सरकार की चाल बताया है। बक़ायदा एक चिट्ठी के ज़रिए हिज़्बुल ने लोगों से कहा है कि वो फैसल का साथ न दे और राज्य में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करें। हिज़्बुल ने इतने पर ही विराम नहीं लगाया बल्कि शाह फैसल से यह भी पूछा कि उन्होंने डॉक्टर मन्नान वानी का रास्ता क्यों नहीं अपनाया और राजनेताओं की टोली में क्यों शामिल हो गए?

बता दें कि यह वही मन्नान है जिसे जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। मन्नान का एक फोटो फेसबुक पर राइफल के साथ वायरल होने पर उसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद 5 जनवरी 2019 को वो हिज़्बुल में शामिल हुआ था। 

शाह फ़ैसल ने अपने इस्तीफ़े के बारे में बात करते हुए कहा, “प्रशासनिक सेवाओं की एक अहम भूमिका होती है, मैं पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर सकता हूँ, लेकिन मैं लोगों के राजनीतिक अधिकारों को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि वो केवल राजनीतिक नेताओं द्वारा ही दिए जा सकते हैं।

देश के मुस्लिमों और युवाओं को को मोहरा बनाकर अपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाले फ़ैसल को बता दें कि मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों के फलने-फूलने के लिए पहले से ही अनेकों कल्याणकारी योजनाएँ चल रही हैं जो प्रधानमंत्री मोदी के ‘सबका विकास, सबका साथ’ के इरादों को स्पष्ट करती हैं।

इन योजनाओं में मुस्लिम लड़कियाँ भी शामिल हैं, ‘शादी शगुन योजना‘ ऐसी ही एक योजना है । इसमें लड़कियों को 51,000 रुपए की धनराशि देना शामिल है। इसके अलावा लोन की व्यवस्था, शैक्षिक शिक्षा में सुधार, उर्दू की शिक्षा को बढ़ावा गेना, मदरसों का आधुनिकीकरण, मेधावी छात्रों को छात्रवृति, स्वरोज़गार, कौशल विकास जैसी तमाम योजनाओं के माध्यम से उन्हें भी देश में बराबरी का स्तर प्रदान किया गया है।

जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए ‘उड़ान योजना‘ पहले से मौजूद है। इसका मक़सद वहाँ के युवाओं को एक बेहतर रोज़गार उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके जीवन को स्वावलंबी बनाना है। इस योजना के ज़रिए घाटी के लगभर 30,000 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और वे देश के अलग-अलग हिस्सों में नौकरी भी कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के ग़रीब परिवारों को नि:शुल्क बिजली का कनेक्शन उपलब्ध करवाने के लिए ‘सौभाग्य योजना‘ भी शुरू की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वकांक्षी योजना के तहत दिसंबर 2018 तक चार करोड़ ग़रीब परिवारों को बिजली मुहैया करवाने का लक्ष्य रखा गया था। 

ऐसे में शाह फ़ैसल का कश्मीर मुद्दा केवल राजनीति में आने का ज़रिया मात्र दिखता है। साल 2009 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद लगभग 10 वर्ष पद पर रहने के बाद एकाएक लोकसभा चुनाव से पहले नौकरी से इस्तीफ़ा देना, फ़ैसल के जिस लक्ष्य को दिखाता है वो उनकी राजनीतिक मंशाओं को स्पष्ट दिखाता है। अब देखना बाक़ी है कि आख़िर शाह फ़ैसल एकमात्र कश्मीर को मुद्दा बनाकर कब तक अपनी राजनीति चमकाते रहेंगे, जबकि उस पाले में पहले ही बहुत भीड़ है।

कुम्भ मेले में साधु-संतों से ‘चिलम’ माँगते दिखे बाबा रामदेव

कुम्भ मेला पहुँचे योग गुरू रामदेव ने साधु-संतों से धूम्रपान छोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने वहाँ साधु-संतों से कहा कि हम सब राम और कृष्ण का अनुसरण करते हैं, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया, तो फिर हमें क्यों ज़रूरत है? हमें क़सम खानी चाहिए कि हम धूम्रपान करना छोड़ देंगे।

उन्होंने कहा, “हम साधुओं ने अपना घर, माँ-बाप सब कुछ बहुत बड़े मकसद की वज़ह से छोड़ा है तो हम धूम्रपान करना क्यों नहीं छोड़ सकते।”

रामदेव ने वहाँ बैठे साधुओं से चिलम इकट्ठा की और उन्हें प्रण दिलाया कि वो सब लोग तंबाकू छोड़ देंगे। रामदेव ने कहा कि वो ये सारी ‘चिलम’ इकट्ठा करके उस म्यूज़ियम में रखेंगे, जिसे वो बनवाएँगे। उन्होंने कहा, “मैं नौज़वानों से तंबाकू और धूम्रपान छुड़वा सकता हूँ तो महात्माओं से क्यों नहीं।”

बता दें कि 55 दिन तक चलने वाला कुंभ मेला 4 मार्च को ख़त्म होगा। एक अंदाज़ के अनुसार, 13 करोड़ श्रद्धालु कुम्भ में भाग ले सकते हैं।

राहुल-चिदंबरम के आँकड़े में लोचा, ₹7 लाख करोड़ से भी ज्यादा का वित्तीय भार पड़ेगा सरकार पर

राहुल गाँधी ने सोमवार (जनवरी 28, 2019) को देश की जनता से वादा किया कि अगर कॉन्ग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव जीतती है तो देश के हर ग़रीब को न्यूनतम आय प्रदान करने का प्रावधान करेगी। अपने इस वादे की मौखिक रूप से घोषणा के बाद राहुल ने प्रस्ताव के बारे में खुलकर कुछ नहीं बताया।

इस घोषणा पर पी चिदंबरम के गणित के अनुसार अगर देश के 18-20% ग़रीबों को इसमें टारगेट किया जाता है तो इस योजना का लागत अनुमान 5 लाख करोड़ रुपए होगा।

केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार देश के 25 प्रतिशत गरीबों को न्यूनतम आय प्रदान कराने के लिए 7 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक का खर्चा आएगा। सरकार के इस शुरुआती अनुमान में न्यूनतम वेतन भुगतान ₹321 प्रतिदिन के आधार पर लगाया गया है। इसमें सरकार द्वारा अकुशल मज़दूरों को महीने में ₹9,630 का वेतन भुगतान निश्चित किया जाएगा।

बता दें कि गरीबों को न्यूनतम आय देने वाली यह योजना अगर अस्तित्व में आती है तो सरकार पर वित्तीय भार बढ़ जाएगा। क्योंकि पहले से ही सरकार गरीबों को सब्सिडी दे रही है और कई राज्यों ने किसान कर्ज़माफ़ी भी शुरू कर दी है।

दो साल पहले हुए इकोनॉमिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक आय पर जो सुझाव दिया गया था, उसे अमल में नहीं लाया जा सका। ऐसा इसलिए क्योंकि तेंदुलकर कमिटी द्वारा परिभाषित ग़रीबी रेखा से हर एक को ऊपर उठाने के लिए देश में 75% परिवारों को सालाना 7,620 रुपए देने पड़ते। यह इसलिए भी मुमकिन नहीं था क्योंकि सरकार मध्य वर्ग के लोगों और ग़रीबों को दी जाने वाली सब्सिडी वापस लेने में असमर्थ थी।

इस सर्वेक्षण का यह भी अनुमान था कि जीडीपी का 4.9 प्रतिशत यानि सालाना 2.4-2.5 लाख करोड़ का खर्चा करके 25 प्रतिशत गरीबों को न्यूनतम आय दी जा सकती है। इसके अलावा अगर गरीब परिवार के पाँच सदस्यों को ₹3,180/महीने दिए जाएँ तो सरकार को इसमें 1.75 लाख करोड़ का खर्चा आएगा।