Thursday, October 3, 2024
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आपसी रंजिश के चलते BJP नेता की हत्या

बीजेपी नेताओं की हत्या का सिलसिला लगातार रफ़्तार पकड़ता दिख रहा है। एक और बीजेपी नेता की हत्या का मामला सामने आया है जो उत्तर प्रदेश का है। दरअसल उत्तर प्रदेश में भदोही के गोपीगंज क्षेत्र में जौनपुर इलाक़े में एक शादी के समारोह का आयोजन था और इसी शादी में बीजेपी नेता दिनेश चंद्र मिश्र (48 वर्ष) अपने छोटे भाई सुनील कुमार मिश्र के साथ शामिल होने गए थे। जहाँ उन्हीं के पट्टीदार वीरेंद्र मिश्र ने लाइसेंसी रिवॉल्वर से बीजेपी नेता को गोली मार दी।

गोली बीजेपी नेता की बाईं आँख पर जा लगी जिससे उनकी मौक़े पर ही मृत्यु हो गई। मौक़े पर पहुँची पुलिस ने जानकारी दी कि रविवार (27-01-2019) को जौनपुर में सुरेरी क्षेत्र के कोहरौड़ा गाँव के निवासी एक युवक की बारात भदोही में गोपीगंज क्षेत्र के धनीपुर गाँव में जानी थी। द्वारचार के बाद जनवासे में बाराती बैठे थे। इस बीच उन्हीं के पट्टीदार वीरेंद्र मिश्र ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से बीजेपी नेता को गोली मार दी।

अचानक गोली चलने से वहाँ मौजूद सभी बारातियों में हड़कंप मच गया। हमलावर को पकड़ने के लिए कई बाराती उसकी ओर भागे, लेकिन अँधेरा होने की वजह से हमलावर रिवॉल्वर समेत फ़रार होने में क़ामयाब रहा। बता दें कि घटना के बाद बीजेपी नेता दिनेश चंद्र मिश्रा के परिजन शव को लेकर गोपीगंज थाने पहुँचे।

मृतक के छोटे भाई सुनील कुमार मिश्र ने सुरेरी क्षेत्र के कोहरौड़ निवासी वीरेंद्र उर्फ़ बद्री नारायण के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ कराया दिया है। बीजेपी नेता के छोटे भाई सुनील कुमार मिश्रा ने बताया कि लाइसेंसी रिवॉल्वर आरोपी के बड़े भाई नरेंद्र मिश्र की है और वो रोजी-रोटी के सिलसिले में अक्सर बाहर रहते हैं।

इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि आरोपी शख़्स हमेशा रिवॉल्वर को लेकर घूमता रहता था और जान से मारने की धमकी भी देता था। फ़िलहाल बीजेपी नेता के शव को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया गया है और पुलिस मामले की खोजबीन में जुटी हुई है।

बता दें कि इससे पहले भी बीजेपी नेताओं के साथ इस तरह की जानलेवा घटना को अंजाम दिया जा चुका है जिसमें मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता प्रह्लाद बंधवार और मनोज ठाकरे मुज़्जफ़्फरपुर के बीजेपी नेता बैजू प्रसाद गुप्ता शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में लड़ाकू विमान क्रैश, पायलट ने सूझ-बूझ से ग्रामीणों की बचाई जान

यूपी के कुशी नगर में वायुसेना का लड़ाकू विमान क्रैश हुआ है। मिली जानकारी के अनुसार यह घटना हेतिमपुर गाँव की है। इस अचानक हुई दुर्घटना में संतोषजनक बात यह है कि इस घटना के होने से पहले ही पायलट ने पैराशूट की मदद से इमरजेंसी गेट से निकलकर ख़ुद को सुरक्षित बचा लिया।

इस हादसे की वज़ह से इलाके में उठे भयंकर धुएँ के गुबार से घटना की बिकरालता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, इस लड़ाकू विमान ने गोरखपुर से उड़ान भरी थी। बीच रास्ते में इस ख़तरे का अंदाजा लगने के बाद पायलट ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए विमान को आबादी वाले क्षेत्र से दूर ले गए।

बता दें कि ये विमान खेत में क्रैश हुआ है। पायलट की समझदारी की वजह से किसी प्रकार की कोई जनहानि नहीं हुई है। राहत एवं बचाव कार्य के उद्देश्य से हेलीकॉप्टर ने समय से पहुँचकर विमान में लगी आग पर क़ाबू पा लिया और घटना से प्रभावित क्षेत्रों में आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की।

अभी विमान में आई ख़राबी की वज़ह पता नहीं लग पाई है। इस दुर्घटना की जाँच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया गया है।

बता दें कि दुर्घटनाग्रस्त जगुआर विमान, लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण फ्रांस में हुआ है। ये विमान कम ऊँचाई पर उड़ान भरने में सक्षम युद्धक विमान है। इसमें दो इंजन होते हैं। यह
1350 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ान भर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, इस हादसे के पहले, 2018 के जून महीने में दो जगुआर विमान क्रैश हुए थे।

समुदाय विशेष की हिंसा के पीड़ित बच्चों से मिलने खुजनेर जाएंगे शिवराज सिंह चौहान

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजगढ़ के खुजनेर में हुई घटना को वीभत्स बताया है। बता दें कि खुजनेर में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान बच्चे गदर फ़िल्म के एक गाने को प्रस्तुत कर रहे थे। इसी दौरान ‘विशेष संप्रदाय’ कुछ लोगों ने देश विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए। उन्होंने डांस कर रहे बच्चों पर हमला कर दिया जिस से कई बच्चों को चोट भी आई। इस मामले में 16 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है।

गिरफ़्तार किए गए आरोपितों में ‘संप्रदाय विशेष’ के समद खां, बल्ला खां, सेठा उर्फ जाकिर खां, अबरार खां, शाकिर खां, अय्यूब खां, इम्तियाज खां एवं समीर खां शामिल हैं। अब पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने इस घटना पर अपनी प्रतिक्रया दी है। उन्होंने कहा कि वह कल शाम को खुजनेर जा कर पीड़ित बच्चों से मुलाक़ात करेंगे और उनका हालचाल जानेंगे।

इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए शिवराज सिंह ने कहा कि असामाजिक तत्व सर उठा रहे हैं, अराजकता पैदा कर रहे हैं और दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री को इस घटना की जानकारी दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने दिया। उन्होंने ‘मामा’ शिवराज से ‘भांजी’ की मदद करने की अपील की, जिस पर शिवराज ने उपर्युक्त ऐलान किया।

मामले की और जानकारी लेने के लिए ऑपइंडिया की टीम ने राजगढ़ पुलिस स्टेशन को फोन किया। अफ़सोस, सरकारी वेबसाइट पर जो नंबर दिया गया है, डायल करने पर वो इनवैलिड बताता है।

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में जब से कमलनाथ सरकार आई है, तब से राजनीतिक हत्याओं का दौर जारी है। लेकिन गणतंत्र दिवस पर बच्चों पर हमला अक्षम्य अपराध है, पाप है। ऑपइंडिया ने इस घटना के संबंधित दो रिपोर्ट प्रकाशित किए हैं। पहली रिपोर्ट में घटना की जानकारी दी गई है, वहीं दूसरी रिपोर्ट में आरोपितों की गिरफ़्तारी की ख़बर है।

हम छेड़ते नहीं, और कोई छेड़े तो छोड़ते भी नहीं: PM मोदी

नरेंद्र मोदी ने देश की राजधानी में आयोजित नेशनल कैडेट्स कॉर्प्स (एनसीसी) की रैली में देश भर के कैडेट्स को संबोधित किया। इस मौके पर एनसीसी कैडेट्स द्वारा प्रधानमंत्री को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा, “जब मैं आप सबों के बीच आता हूँ तो मेरी पुराने दिनों की यादें ताजा हो जाती है।”

प्रधानमंत्री ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, “आज जिस समय को आप जी रहे हैं, कभी मैंने भी इस समय को आपके तरह ही जिया है।” अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश के सैनिकों की एक ख़ासियत है कि हम किसी को छेड़ते नहीं हैं, लेकिन यदि हमें कोई छेड़ता है तो हम उसे छोड़ते भी नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह भी कहा कि हम शांति पसंद मुल्क हैं, लेकिन यदि बात राष्ट्र की रक्षा तक पहुँचती है तो हम किसी तरह के कदम उठाने से नहीं चूकेंगे।

एनसीसी कैडेट्स को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम में एनसीसी कैडेट्स को प्रोत्साहन देते हुए कहा, “आप ही के बीच से निकली हिमा दास ने दुनिया में नाम किया है। कई एनसीसी कैडेट्स ने पर्वतारोहन व ट्रैकिंग में शानदार उपलब्धि को अपने नाम किया है। ऐसे में मैं जब भी एनसीसी के बीच आता हूँ तो मेरा उत्साह बढ़ता है। मैं खुद को पहले से अधिक उर्जावान महसूस करता हूँ।”

प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान केरल बाढ़ के दौरान अपनी जान पर खेलकर राज्य के लोगों के जान-माल की रक्षा करने के लिए एनसीसी के जवानों को बधाई दी।

क्या है अंतरिम और पूर्ण बजट? अंतरिम बजट के तहत क्या हैं सरकार की सीमाएँ

मोदी सरकार का 5 साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। सरकार ने 2019 के चुनाव से पहले 1 फरवरी को बजट पेश करने की तैयारी कर ली है। वित्त मंत्री 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करगें। बता दें कि, आम तौर पर सरकार जब अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा करने वाली होती है तो वह केवल अंतरिम बजट पेश करती है। उसके बाद सत्ता में आई नई सरकार पूर्ण बजट को पेश करती है।

अंतरिम बजट और पूर्ण बजट में अंतर

अंतरिम बजट (Interim Budget) का अर्थ है चुनावी साल में कुछ वक्त जो बचा हुआ है, तब तक देश को चलाने के लिए खर्चों का इंतजाम करने की औपचारिकता। इस बजट में नई सरकार के आने के बीच के बचे हुए समय में देश को चलाने के लिए ख़र्चे का इंतजाम किया जाता है। दरअसल, सरकार बजट में नई सरकार बनने तक के समय के लिए अंतरिम बजट पेश करती है।

बता दें कि, इस बजट में कोई ऐसा फै़सला भी नहीं लिया जा सकता है, जिसके लिए संसद की मंजूरी की ज़रूरत हो या जिसके लिए संविधान संशोधन की जरूरत पड़े। इस बजट में डायरेक्ट टैक्स, जिसमें इनकम टैक्स शामिल है, उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाता। हालाँकि, सरकार यदि कोई वस्तु सस्ती करनी चाहे तो वह इंपोर्ट, एक्साइज या सर्विस टैक्स में थोड़ी राहत दे सकती है।

पूर्ण बजट

पूर्ण बजट में सरकार आने वाले वित्तीय वर्ष के ख़र्चे का लेखा-जोखा पेश करती है। इसमें सभी विभागों को आवंटित होने वाली राशि, विभिन्न योजनाओं में ख़र्च होने वाली राशि क्या होगी आदि का जिक्र होता है। यही नहीं सरकार चल रही तमाम योजनाओं में धन की राशि बढ़ा या घटा भी सकती है। पूर्ण बजट में सरकार के पास डायरेक्ट टैक्स में बदलाव करने का अधिकार भी होता है।

मुज़फ़्फ़रनगर दंगे से जुड़ी 18 मुक़दमे वापस लेगी योगी सरकार

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े 18 केस वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने ज़िला प्रशासन को इस बारे में कोर्ट की अनुमति लेने को कहा है। 2013 में हुए इस दंगे को लेकर दायर किए गए 125 मामलों को वापस लेने की माँग लम्बे समय से की जा रही है। इस बाबत डीएम-एसएसपी से रिपोर्ट माँगी गई थी, लेकिन अधिकारियों ने मामले को वापस लेने से मना कर दिया था।

अब सरकार ने डीएम राजीव शर्मा को एक पत्र भेजा है जिसमें उन्हें 18 मुक़दमों को वापस लेने की संस्तुति करते हुए कोर्ट में अपील दायर करने का निर्देश दिया गया है। बता दें कि जिन मुक़दमों को वापस लिए जाने का निर्णय लिया गया है, उनमे कोई भाजपा नेता नामज़द नहीं है।

जिन मुक़दमों को वापस लिया जाना है, वह भौराकलां और फुगाना क्षेत्र के हैं। एडीएम प्रशासन ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सरकार ने मुक़दमे वापस लेने के लिए कुल 13 बिंदुओं पर जानकारी माँगी थी। उन्होंने बताया कि अभी पूरी सूची तो नहीं आई है लेकिन इस बाबत एकल आदेश जारी कर दिया गया है। शासकीय अधिवक्ता राजीव सिंह शर्मा ने कहा:

“मुकदमे वापसी के लिए शासन का पत्र प्राप्त हो गया है। अब मुकदमे वापस लेने के लिए कोर्ट में अपील की जाएगी। इस संबंध में कोर्ट का फ़ैसला ही अंतिम होगा।”

बता दें कि मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को लेकर चल रहे मुक़दमों में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, बिजनौर के सांसद भारतेंद्र सिंह, सरधना विधायक संगीत सोम और बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक सहित कई भाजपा नेताओं को आरोपित बनाया गया था। संगीत सोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। इतना ही नहीं, दंगों से जुड़े मामलों में विहिप के दुर्गा वाहिनी की संस्थापक अध्यक्ष साध्वी प्राची भी नामज़द हैं। इसके अलावा योगी सरकार में राज्यमंत्री का पदभार संभाल रहे सुरेश राणा को भी आरोपित बनाया गया था।

बता दें कि, 2013 में अखिलेश सरकार के दौरान मुज़फ़्फ़रनगर में भड़की हिंसा में 60 से भी अधिक लोग मारे गए थे। गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के मुताबिक़, इन दंगों में क़रीब 20 हिन्दू मारे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार को फटकार लगाते हुए लापरवाही बरतने का दोषी बताया था।

बजट 2019: किसानों की आय बढ़ाने को प्रतिबद्ध मोदी सरकार, दे सकती है ये सौगात

2019 का बजट इस मायने में ख़ास है कि यह बजट 2019 लोकसभा चुनाव से पहले और सरकार के पाँच साल के कार्यकाल के अंत में पेश किया जाएगा। कार्यकाल के अंत में या लोकसभा भंग होने से पहले पेश बजट को अंतरिम बजट कहा जाता है। सरकार 1 फरवरी को अंतरिम बजट 2019-20 पेश करेगी। बजट में ये उम्मीद की जा रही है कि सरकार स्वच्छता, निवेश, रेलवे, टैक्स, सड़कों के साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई सौगातें दे सकती है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ करीब 70% लोगों की आजीविका आज भी कृषि पर निर्भर है। आँकड़ों के मुताबिक़ देश में लगभग 70% किसान हैं। किसान सही मायने में देश के रीढ़ की हड्डी है। कृषि का देश की मौजूदा जीडीपी में लगभग 17% का योगदान है।

रिपोर्ट के अनुसार, सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय दोगुनी करने का है। साथ ही उन्हें कई चीजों मेंं रियायत देने के बारे में भी सरकार विचार कर रही है। रिपोर्ट की मानें तो किसानों को उनकी उपज की सही कीमत नहीं मिल रही है। ज्ञात हो कि पिछले बजट में सरकार ने किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। लेकिन, इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका। बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी विशेष ध्यान देने की उम्मीद है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 20-25% वृद्धि की संभावना के भी अनुमान लगाए जा रहे हैं।

डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से किसानों की आय बढ़ाने की तैयारी

बता दें कि, बिचौलियों के चलते किसानों को काफ़ी नुकसान उठाना पडता है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें उनकी मेहनत की पूरी लागत नहीं मिल पाती है। सरकार इसे लेकर गंभीर है। रिपोर्ट की मानें तो बजट में किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने की योजना के बारे में विचार किया जा रहा है। साथ ही अलग-अलग योजनाओं के जरिए सब्सिडी देने की बजाय सीधे उनके खाते में पैसा भेजने का फ़ैसला लिया जा सकता है। संभावना इस बात की भी है कि सरकार किसानों पर ख़र्च ₹70,000 करोड़ से बढ़ाकर ₹75,000 करोड़ कर सकती है।

एक नज़र किसानों को लेकर चल रही विभिन्न राज्यों की योजनाओं पर

कॉन्ग्रेस सरकार की ऋण माफ़ी के चुनावी हथियार से निपटने के लिए भाजपा सरकार विभिन्न राज्यों के किसानों को लेकर चल रही योजनाओं पर निरंतर मंथन कर रही है। देखना यह है कि किस राज्य का मॉडल सरकार द्वारा चुना जाता है।

मध्य प्रदेश भावान्तर योजना

पिछले साल मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने जिस ‘भावांतर योजना’ के ज़रिए 15 लाख किसानों की मदद की थी। केंद्र की मोदी सरकार भी उसी तर्ज़ पर किसानों को फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बिक्री मूल्य के अंतर को सीधे खाते में भेजने पर विचार कर रही है।

ओडिशा का ‘कालिया’ (KALIA) फ़ॉर्मूला

कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों की मदद के लिए ओडिशा सरकार ने ₹10,000 करोड़ की ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता (KALIA)’ योजना लागू की है। इस स्कीम के तहत किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध किया जाएगा। इस स्कीम के द्वारा किसानों को कर्ज़माफ़ी के बजाय ख़ासतौर से सीमांत किसानों को फ़सल उत्पादन के लिए आर्थिक मदद दिया जाएगा। ‘KALIA’ योजना के तहत छोटे किसानों को रबी और खरीफ़ की बुआई के लिए प्रति सीजन ₹5000-5000 की वित्तीय मदद मिलेगी, अर्थात सालाना ₹10,000 दिए जाएँगे।

झारखंड मॉडल

झारखंड की रघुवर दास सरकार भी मध्यम और सीमांत किसानों के लिए ₹2,250 करोड़ की योजना की घोषणा कर चुकी है। झारखंड में 5 एकड़ की जोत पर सालाना प्रति एकड़ ₹5,000 मिलेंगे, एक एकड़ से कम खेत पर भी ₹5,000 की सहायता मिलेगी। इस योजना की शुरुआत झारखंड सरकार 2019-20 वित्त वर्ष से करेगी जिसमें लाभार्थियों को चेक या डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफ़र के ज़रिए मदद दी जाएगी।

तेलंगाना का ऋतु बंधु मॉडल

ओडिशा और झारखंड के साथ ही केंद्र सरकार तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई किसान योजनाओं की भी पड़ताल कर रही है। तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋतु बंधु योजना शुरू की है। यहाँ के किसानों को प्रति वर्ष प्रति फ़सल ₹4000 प्रति एकड़ की रकम दी जाती है। दो फ़सल के हिसाब से किसानों को हर साल ₹8000 प्रति एकड़ मिल जाते हैं।

लगातार घट रही कृषि योग्य भूमि है चुनौती

कृषि ऋण और कर्ज़ माफ़ी जैसी योजनाएँ कहीं ना कहीं सरकारी राजस्व पर दबाव डालती हैं। फिर भी, सरकार के लिए किसान प्राथमिकता रहे हैं और उसे कोई न कोई मार्ग तो निकालना ही है। समय के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि भी देश में निरंतर घट रही है। ऐसी अनेक चुनौतियाँ हैं, जिन्हे मद्देनज़र रखते हुए सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करेगी। मोदी सरकार का यह आख़िरी बजट है, इस कारण सभी की निगाह इस बजट पर रहनी सामान्य बात है।

आम धारणा है कि देश का चुनावी मिज़ाज काफी हद तक देश का किसान तय करता है। देश में ज्यादातर लोग कृषि पर आश्रित हैं, तो यह ज़ाहिर सी बात है कि सरकार उसकी बनती है जिसके साथ देश का किसान रहता है। वर्तमान सरकार किसानों की दशा सुधारने के लिए निरंतर महत्वपूर्ण प्रयास करती आ रही है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पिछले 60 वर्षों तक किसानों के जो हालात रहें हैं उसकी क्षतिपूर्ति करिश्माई तरीके से करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

5 सवाल अखिलेश यादव जी से पूछती उत्तर प्रदेश की एक लड़की

लोकसभा के चुनाव पास में आ रहे हैं। बिना आधार के किसी भी बात को विवाद बनाने की रीत शुरू हो चुकी है। उत्तर प्रदेश तो खैर केंद्र की राजनीति का हमेशा से केंद्र-बिंदु रहा है, ऐसे में यहाँ के नेताओं का आरोप-प्रत्यारोप ख़बरों के केंद्र में बना रहता है। ताजा मामला है, योगी आदित्यनाथ के गणतंत्र दिवस पर कही गई बातें और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का उसकी आड़ में किसानों के दर्द का आँसू बहाना।

26 जनवरी के मौक़े पर जनता को सम्बोधित करते हुए सीएम योगी ने कहा कि कोर्ट को राम मंदिर मामले पर जल्द ही फै़सला सुनाना चाहिए। आदित्यनाथ ने कहा कि अगर वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो यह मामला उन्हें सौंप देना चाहिए, योगी सरकार इसका हल 24 घंटों के अंदर निकाल लेगी।

अखिलेश यादव ने सीएम आदित्यनाथ की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमारा देश 70वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। अगर कोई मुख्यमंत्री इस मौके पर ऐसी बातें करता है तो आप सोचिए कि वो किस तरह के मुख्यमंत्री होंगे?” अखिलेश ने सीएम को हिदायत देते हुए कहा कि जनता ने उन्हें 90 दिन दिए हैं, उन्हें फसलों को बैलों से बचाने की दिशा में कुछ कदम उठाने चाहिए, सबसे पहले किसानों को बचाने की आवश्यकता है।

सवाल यह है कि गणतंत्र दिवस पर जनता द्वारा चुने मुख्यमंत्री क्या बोलें, क्या न बोलें – यह लिखित है क्या, कहीं दर्ज़ है क्या? मेरी जानकारी में तो नहीं। एक मुख्यमंत्री का जनता की उम्मीदों पर, उनके सवालों पर बात करना शायद पूर्व मुख्यमंत्री की नज़र में गलत हो सकता है क्योंकि बतौर सीएम उनका अनुभव बिल्कुल ही अलग है।

अखिलेश यादव द्वारा कही गई इस बात को पढ़कर-सुनकर ऐसा लगता है जैसे वो भूल गए हैं कि योगी आदित्यनाथ का बतौर मुख्यमंत्री अभी कार्यकाल ज़ारी है। यह और बात है कि ख़ुद उनका बीत चुका है। सिर्फ सवाल उठाने को ही अगर सवाल उठाए जाएँ तो अखिलेश यादव को अंदाज़ा भी नहीं कि उन पर किस-किस तरह के सवाल उठेंगे।

सवाल नंबर #1

2013 का समय याद किया जाए तो मालूम पड़ेगा कि अखिलेश जनता से बात करने से ज्यादा उपयुक्त कटरीना कैफ़ के सवालों का जवाब देना पसंद करते थे। ऐसे में पॉलिटिकल करियर में कई बॉलीवुड कलाकारों से रूबरू हुए अखिलेश अगर बीजेपी पर इस तरह के सवाल नहीं उठाएँगे तो शायद उन पर किसी का ध्यान भी नहीं जाएगा।

साल 2013 में पूर्व मुख्यमंत्री साहब ने हॉकी इंडिया लीग के उद्घाटन समारोह में कटरीना से बड़े धैर्य और संयमता को बनाए रखते हुए बातचीत की थी। कटरीना और अखिलेश की इस बातचीत में कटरीना ने उनसे कई पॉलिटिकल सवाल पूछे थे, जिस पर उन्होंने शांति से मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर जवाब दिए थे।

शायद हो सकता है उनका चुप, मुस्कुराते हुए जवाब देना इसलिए हो क्योंकि वो उस समय भी किसानों की समस्याओं में उलझे हुए हों 🙂 कटरीना से हुई बातचीत में वो इस बात का लब्बो-लुआब ढूंढ रहे हों कि किस तरह से उनके इन क़ीमती पलों को किसानों के लिए समर्पित किया जा सकता है 🙂

सवाल नंबर #2

वैसे, अखिलेश यादव का कहना भी बिलकुल जायज है क्योंकि जनता के लिए किए गए उनके कार्य, योगी आदित्यनाथ के कार्यों से बिलकुल ही अलग हैं। एक तरफ जहाँ सीएम योगी के राज में राज्य में सेवाभाव की ख़बरें आती हैं, वहीं साल 2016 में यह ख़बर आती थी कि सूखे से पीड़ित लोगों की व्यथा जानने पहुँचे अखिलेश के स्वागत में हज़ारों लीटर पानी को हैलीपैड पर बहा दिया गया।

पानी की सौगात लेकर पहुँचे अखिलेश अपने लोगों की परेशानियों के प्रति इतने सचेत थे कि उन्हें इस बात से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो अखिलेश योगी आदित्यनाथ को जब ये बताते हैं कि किसानों के लिए, जनता के लिए क्या करना है, तो थोड़ा हास्यास्पद वाली स्थिति बन जाती है।

सवाल नंबर #3

अखिलेश अपने कार्यकाल में इतनी व्यस्तता से जीवन गुज़ारते थे कि सरकारी सम्पत्ति (सरकार द्वारा मिले आवास) की भी हालत ख़स्ता करने से नहीं चूके। यह और बात है कि सरकारी बंगले में तोड़-फोड़ करने से परहेज नहीं करने वाले अखिलेश यादव खुद के आवास निर्माण और उसके साज-सज्जा पर करोड़ों खर्च कर देते हैं।

सवाल नंबर #4

किसानों के कंधों पर बंदूक रख कर बीजेपी पर निशाना साधने वाले अखिलेश यादव न जाने क्यों अपने कार्यकाल के बारे में बात करने में हमेशा पीछे रह जाते हैं। अखिलेश यादव शायद इस बात को भूल रहे हैं कि जो हिदायत वो सीएम योगी को दे रहे हैं वो अगर उन्होंने खुद पर लागू की होती तो 2017 में उन्हें इतनी तीख़ी हार का सामना नहीं करना पड़ता। अन्य राज्यों के मुक़ाबले अखिलेश यादव के राज में लगातार किसानों का फंदे पर लटकना उनकी कार्यशैलियों पर न केवल सवाल खड़ा करता है बल्कि चुनावों के नज़दीक होने के कारण उनके अवसरवादी होने का भी प्रमाण देता है।

सवाल नंबर #5

जो अखिलेश यादव 2016 में किसी पार्टी से गठबंधन न करने की हामी भरते रहे, वही अखिलेश 2017 में कॉन्ग्रेस से हाथ मिलाकर फूले नहीं समाते। और न जाने फिर क्या हुआ कि वही अखिलेश 2019 के आते-आते वर्षों पुरानी दुश्मनी भुलाकर बसपा से बुआ-भतीजे का खेल खेलते भी नज़र आते हैं।

अखिलेश यादव जी! आप किसी पर भी सवाल उठाने से पहले अपने कार्यकाल का समय आखिर क्यों भूल जाते हैं?

मुख्यमंत्री पद छोड़ दूँगा, सीमा लाँघ रही है कॉन्ग्रेस: कुमारस्वामी

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस व जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) के नेताओं के बीच आए दिन बिगड़ते रिश्ते की ख़बर मीडिया में आती रहती है। लेकिन इस बार ख़ुद राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी कॉन्ग्रेस पर भड़क गए हैं। दोनों ही दलों के बीच रिश्ता इतना ख़राब हो चुका है कि ख़ुद मुख्यमंत्री को बयान देना पड़ा है।

राज्य के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, “कॉन्ग्रेस के नेता अपनी सीमा को लाँघ रहे हैं। कॉन्ग्रेस को अपने नेताओं को कंट्रोल करना चाहिए। यदि कॉन्ग्रेस के नेता इस तरह के बयान देते रहे तो मैं मुख्यमंत्री पद से पीछे हटने के लिए तैयार हूँ।” मुख्यमंत्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस को इन मुद्दों पर नजर रखनी चाहिए, मैं इनके लिए जिम्मेवार व्यक्ति नहीं हूँ।

दरअसल कॉन्ग्रेस की तरफ़ से राज्य के उपमुख्यमंत्री बने जी परमेश्वरा ने बयान दिया था कि सिद्धरमैया सबसे अच्छे व्यक्ति रहे हैं। “वह हमारे नेता हैं। कॉन्ग्रेस विधायकों के लिए सिद्धरमैया ही मुख्यमंत्री हैं। हम उनके साथ खुश हैं।” राज्य के उपमुख्यमंत्री के इस बयान के बाद पत्रकारों ने जब मुख्यमंत्री से इस मामले में सवाल किया तो मुख्यमंत्री ने पद छोड़ने तक की बात कह दी।  

कॉन्ग्रेस पार्टी में भी अंदरूनी कलह

कर्नाटक कॉन्ग्रेस के अंदरुनी खेमें से खटपट की ख़बरें आए दिन उजागर होती रहती हैं। इससे पार्टी की बिगड़ती छवि तो दिखती ही है, साथ में पार्टी के अंदर फैला गहरा असंतोष भी जगज़ाहिर होता है। पिछले दिनों कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के दो विधायक किसी बात को लेकर आपस में न सिर्फ़ भिड़ गए थे बल्कि बात हाथापाई की नौबत तक आ गई थी।

बेंगलुरू के जिस होटल में कॉन्ग्रेसी विधायक आनंद सिंह और जेएन गणेश ठहरे हुए थे, वहीं यह झड़प हुई थी। किसी बात को लेकर दोनों में आपसी विवाद इतना बढ़ गया कि जेएन गणेश ने आनंद सिंह के सिर पर बोतल से वार कर दिया था।

‘वेश्या’ कहे जाने पर पति की हत्या ‘मर्डर’ नहीं: SC का फ़ैसला

तमिलनाडु के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय ने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। दरअसल, यह निर्णय तमिलनाडु की एक घटना से जुड़ा है। एक महिला द्वारा अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने को सुप्रीम कोर्ट ने ‘मर्डर’ मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने दोनों को मिली उम्रकैद की सज़ा भी रद्द कर दी और इसे ‘ग़ैर इरादतन हत्या’ की श्रेणी में रखा। ट्रायल कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट- दोनों ने ही महिला और उसके प्रेमी को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कम कर दिया।

आरोपित महिला का उसके पड़ोसी के साथ विवाहेतर सम्बन्ध थे। घटना के दिन उसके पति ने महिला और अपनी बेटी के लिए ‘वेश्या’ शब्द का प्रयोग किया। बढ़ते वाद-विवाद के बाद महिला के प्रेमी ने महिला का पक्ष लेते हुए दख़ल दिया, जिसके कारण पति का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। प्रेमी ने महिला के पति को थप्पड़ जड़ा और आरोपित महिला के साथ मिल कर पति का गला भी दबाया।

दोनों ने मिलकर पति की हत्या कर दी और उसके शव को अपने एक मित्र की गाड़ी में छिपा दिया। लाश को 40 दिन बाद बरामद किया जा सका। महिला ने गाँव के ही एक शिक्षक को घटना की जानकारी देते हुए अपना दोष स्वीकार किया। ट्रायल कोर्ट और मद्रास हाई ने महिला और उसके प्रेमी को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई।

हाई कोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ दाख़िल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस मोहन एम शांतानागोदर और दिनेश माहेश्वरी ने कहा:

“अश्लील भाषा की वजह से महिला को एकदम से गुस्सा आ गया और महिला ने अपना नियंत्रण खो दिया और मात्र कुछ ही मिनटों में पति की हत्या कर दी गई। मृत पति ने पत्नी को वेश्या कहकर उकसाया था।”

अदालत ने यह भी कहा कि हमारे समाज में कोई भी महिला अपने लिए या ख़ास तौर पर अपनी बेटी के लिए ऐसे शब्दों को बर्दाश्त नहीं करेगी। कोर्ट ने इसे एक भड़काने वाला मामला बताया। कोर्ट ने दोनों को मिली उम्रकैद की सज़ा को 10 वर्ष की सज़ा में तब्दील कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह ‘एकाएक उकसाए जाने (Sudden Provocation)’ का मामला है।

2007 में भी केरल की एक घटना पर निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यही कारण देते हुए एक दुकानदार की सज़ा कम कर दी थी। यह घटना 1998 की थी। एक कूड़ा उठाने वाले ने आरोपित व्यक्ति की दुकान में कूड़ा फेंक दिया था, जिसके कारण दुकानदार ने उसकी हत्या कर दी थी। अदालत ने उस मामले में कहा था कि आरोपित दुकानदार ने ‘स्वयं पर नियंत्रण खोने’ के कारण ऐसा किया।