Wednesday, October 2, 2024
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भगवंत मान ने ‘जनहित’ में दारू छोड़ी, सड़जी खुश हुए; अन्य AAP नेताओं ने लिए चुनावी रेज़ोल्यूशन

भारत में कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं और उन सबकी अलग-अलग विषेशताएँ हैं। भाजपा अपने IT सेल के लिए विख्यात है तो कॉन्ग्रेस अपने अल्पसंख्यक विंग के लिए। लेकिन देश में एक ऐसी पार्टी भी है जिसके पास उसकी अपनी कॉमेडी विंग है। वो पार्टी है- आम आदमी पार्टी। हमारी चुनौती है आपको, एक भी ऐसा राजनीतिक दल दिखा दें जिसके पास कॉमेडी और फ़िल्म समीक्षा के लिए अलग से एक ख़ास सेल हो। AAP इस मामले में भारत ही नहीं, दुनिया के सारे राजनीतिक दलों से काफ़ी आगे है।

इसी क्रम में पंजाब के लोगों को भी आख़िरकार आम आदमी पार्टी को वोट देने की एक बड़ी वज़ह मिल ही गई। राज्य में AAP के सांसद भगवंत मान ने जनता के हित में दारू छोड़ने की घोषणा कर दी है। जी हाँ, जनता के हित में। यह पंजाब ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी वज़ह है AAP को वोट करने की। और पार्टी के सुप्रीमो सह फ़िल्म समीक्षा विंग के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने इसे ‘एक बड़ा त्याग’ बताया है। यहाँ बताना ज़रूरी है कि केजरीवाल कभी-कभार दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर भी काम कर लेते हैं।

भगवंत मान ने AAP के बाकी नेताओं के सामने एक ऐसी चुनौती पेश की है जिस से सब अचरज में हैं। अब ख़ुद पार्टी के मुखिया ने उनके दारू छोड़ने को बलिदान बता दिया है तो बाकी के नेता भी केजरीवाल को खुश करने के चक्कर में लगे हैं। यही नहीं, वो भी कुछ ऐसा बलिदान देना चाहते हैं जिस से ‘सड़जी’ की प्रशंसा पा सकें। तो आइए जानते हैं कि भगवंत मान के दारू छोड़ने से प्रेरित AAP के अन्य नेताओं ने किस चीज का बलिदान दिया।

सोमनाथ भारती

सोमनाथ भारती AAP के नेता हैं। उनके पड़ोसियों का कहना है कि उनका पालतू कुत्ता AAP का सदस्य नहीं था। यहाँ तक कि कई बार केजरीवाल ने भी उसे पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने का अनुरोध किया था लेकिन वो बेचारा जानवर केजरीवाल को जानता था, समझता था- उसने जीवनपर्यन्त AAP की प्राथमिक सदस्यता नहीं ली। केजरीवाल ने उसे अपनी पार्टी के एनिमल सेल का अध्यक्ष बनाने का भी ऑफर दिया लेकिन वो टस से मस न हुआ।

चाहे कितनी भी इच्छाशक्ति हो पर जब कोई जीव AAP नेताओं की संगत में रहे जिनके एक तिहाई से भी ज़्यादा विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, तो खुद को कब तक रोक पाएगा? उसकी भी मति भटक गई और उसके बाद हुआ कुछ यूँ कि वो बेचारा भी ‘वांटेड’ हो गया।

सोमनाथ भारती ने भी चुनाव के मौके पर अपना रेज़ोल्यूशन तय करते हुए कहा है कि अब वो अपनी पत्नी पर कुत्ते नहीं छोड़ेंगे और उन्हें पीटेंगे भी नहीं। अपनी पत्नी को कुत्ते से कटवाने वाले सोमनाथ के इस बयान पर अभी दिल्ली के मालिक की तरफ से कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आई है। लेकिन हाँ, शशि थरूर ने एक प्रेस विज्ञप्ति ज़ारी कर उनकी तारीफ़ की है, जिसे समझने के लिए ऑक्सफ़ोर्ड से विशेषज्ञ बुलाए गए हैं।

अमानतुल्लाह ख़ान

दिल्ली से विधायक हैं। सड़जी के काफ़ी क़रीबी माने जाते हैं। जब भगवंत मान के दारू छोड़ने को केजरीवाल ने बलिदान बताया तब से ये भी इस सोच में डूबे हैं कि सड़जी का ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या किया जाए? वैसे भी बेचारे एक बार पार्टी से निकाले ही जा चुके हैं, अपनी जगह पक्की करने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही होगा उन्हें। ये केजरीवाल के इतने क़रीबी हैं कि अगर मालिक इन्हे किसी को प्यार से समझाने भेजते हैं तो ये दो-चार झापड़ लगा कर ही वापस आते हैं।

नाराज़ केजरीवाल ने इन्हे कितनी बार सिखाया कि थप्पड़ मारना नहीं चाहिए बल्कि उनकी तरह थप्पड़ खाना चाहिए लेकिन खान साहब मानते ही नहीं। थप्पड़ खाने का ये फ़ायदा है कि आप बाद में मोदी पर सारे इल्ज़ाम थोप कर खुद को हल्का कर सकते हो लेकिन थप्पड़ मारने में वो मजा कहाँ। एक बार अरविन्द केजरीवाल ने अमानतुल्लाह को दिल्ली के मुख्य सचिव को समझाने भेजा था। उसके कुछ दिनों बाद केजरीवाल को अमानतुल्लाह की ज़मानत कराने जाना पड़ा था।

जब दिल्ली सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के दौरान मनोज तिवारी मंच पर पहुँचे तब भी केजरीवाल ने अमानतुल्लाह को ही तिवारी को समझाने-बुझाने भेजा था लेकिन वो खान ने मनोज तिवारी को मंच से ऐसा ढकेला कि एक पल के लिए कश्मीर के पत्थरबाज़ भी उनकी दाद दें।

ताज़ा ख़बरों के अनुसार अमानतुल्लाह ख़ान ने ये तय किया है कि अब वो किसी की पिटाई नहीं करेंगे और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को देखते ही ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष के साथ शंख बजा कर स्वागत करेंगे। केजरीवाल ने तो इस पर अभी चुप्पी साध रखी है लेकिन स्वामी ओम ने ख़ान से खुश होकर उन्हें अपने घर डिनर पर बुलाया है।

जीतेन्द्र सिंह तोमर

फ़िलहाल AAP के सदस्य नहीं हैं लेकिन केजरीवाल मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके हैं। कहा जाता है कि केजरीवाल को मोदी की डिग्री माँगने की सलाह इन्होने ही दी थी। वो तो अलग बात है कि बाद में इनकी खुद की ही डिग्री जाली निकली। ये इतनी फ़ेक थी कि कोर्ट में इस बात को साबित करने के लिए पुलिस को 50,000 पेज के डाक्यूमेंट्स पेश करने पड़े थे।

केजरीवाल ने उन्हें क़ानून मंत्रालय दिया था लेकिन बेचारे आज खुद क़ानून के शिकंजे में बैठे हैं। अगले चुनावों को लेकर उन्होंने भी एक रेज़ोल्यूशन तैयार किया है। उन्होंने कहा है कि वो इस बार ऐसी डिग्री बनाएँगे कि दिल्ली पुलिस को चार्जशीट प्रिंट करने में ही 10 साल लग जाएँ। ताज़ा सूचना के अनुसार तेजस्वी यादव ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता दे दिया है।

मनीष सिसौदिया

अगर केजरीवाल अकबर हैं तो मनीष उनके टोडरमल। केजरीवाल जितनी भी वीडियो बनाते हैं उसमे मनीष उनके बगल में बैठे नज़र आते हैं। वो अलग बात है कि उस दौरान उन्हें बोलने कुछ नहीं दिया जाता। केजरीवाल बोलते हैं और मनीष एक्सप्रेशंस देते हैं। ये ठीक उसी तरह है जैसे फ्लाइट के टेक ऑफ़ के दौरान एक एयर हॉस्टेस बोलती हैं और बाकी बस इशारे करती है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही केस है।

फिर भी सिसौदिया ने चुनावी रेज़ोल्यूशन निश्चित कर लिया है। उन्होंने तय किया है कि AAP सरकार के जाते-जाते बारहवीं के विज्ञान के सिलेबस में एक चैप्टर सड़जी के नाम पर कर के रहेंगे। उनके इस निर्णय का मायावती ने स्वागत किया है। कहा तो ये भी जा रहा है कि सिसौदिया एक वेबसाइट भी बनाने जा रहे हैं जो बॉक्स ऑफिस इंडिया और IMDB को सीधी टक्कर देगी। उस वेबसाइट पर केजरीवाल के फ़िल्म रिव्यूज प्रकाशित किए जाएँगे।

ममता ने रोका अमित शाह का हेलीकॉप्टर, पीयूष गोयल ने पूछा बंगाल में आपातकाल है या नहीं?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने मालदा जिले में अमित शाह के हेलीकॉप्टर को उतारने की अनुमति देने से इनकार करते हुए, कई झूठे कारण गिनाए। इस पर पीयूष गोयल ने महागठबंधन से ही सवाल पूछा है कि क्या अब किसी को बंगाल में लोकतंत्र ख़तरे में नहीं दिख रहा?

“एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष को राज्य में रैली से रोकने में असहिष्णुता नज़र नहीं आ रही। यदि ऐसा किसी ज़रूरी कारण से भाजपा शासित किसी राज्य में होता तो अब तक आपातकाल आ चुका होता।”

बता दें कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 22 जनवरी को मालदा में एक रैली को संबोधित करने वाले हैं। उन्हें रैली में हिस्सा लेने के लिए कोलकाता से मालदा हेलीकॉप्टर से रवाना होना है।

प्रशासन की दलील

ममता बनर्ज़ी ने जिला प्रशासन का हवाला देते हुए पहले कहा कि इस सप्ताह में वीवीआईपी हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति देना संभव नहीं है। प्रशासन ने पत्र लिखकर कहा कि मालदा मंडल के कार्यकारी इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी (सिविल) की रिपोर्ट के अनुसार, मालदा में हवाई अड्डे पर काम चल रहा है। धूल और अन्य सामान रनवे के चारों ओर पड़ा है, साथ ही निर्माण के चलते अस्थायी हेलीपैड का रख-रखाव ठीक से नहीं किया गया है। इस स्थिति में हवाई अड्डा हेलीकॉप्टरों की सुरक्षित लैंडिंग के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी वजह से अमित शाह के हेलीकॉप्टर को लैंडिग की अनुमति दे पाना संभव नहीं है।

ग्राउंड रिपोर्ट में प्रशासनिक दलील का पर्दाफ़ाश

प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की लैंडिंग में ख़तरा बताने के बाद एक अंग्रेजी टीवी चैनल ने मौके का मुआयना किया तो प्रशासन की सारी पोल खुल गई। हेलीपैड क्षेत्र और रनवे के पास निर्माण सामग्री का नामो-निशान तक नहीं मिला। वहीं हवाई अड्डे पर काम करने वाले स्थानीय कर्मचारियों की मानें तो हेलीकॉप्टर नियमित रूप से हवाई अड्डे से बाहर चल रहे हैं।

हवाई अड्डे के आस-पास काम करने वाली दीपाली दास कहती हैं, “मंत्री और यात्री हेलीकॉप्टर से यहाँ आते हैं। पहले यहाँ सेवा बाधित थी लेकिन अब यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। यहाँ ममता बनर्जी और मिथुन चक्रवर्ती के पास हेलीकॉप्टर है और वो लोग यहाँ उतरते रहे हैं।”

मालदा से बीजेपी नेता संजय शर्मा ने कहा कि पार्टी ने इस संबध में प्रशासन से बात की है। उन्होंने कहा, “टीएमसी इस बात को लेकर घबराई हुई है कि अगर अमित शाह मालदा की इस रैली में आएँगे, तो बीजेपी को अधिक समर्थन मिलेगा।” उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में कोई लोकतंत्र नहीं है, सरकार इस हवाई अड्डे का उपयोग कर रही है, लेकिन हमने जब अनुमति माँगी तो नियम बदल गए।

हालाँकि, बाद में बवाल होने पर ममता बनर्जी ने दलील दी कि अनुमति दी गई थी लेकिन पुलिस ने सुरक्षा कारणों से मना किया था। उन्होंने कहा कि पुलिस ने चॉपर को कहीं और उतारने के लिए कहा था। ममता बनर्जी ने आगे कहा, “कभी-कभी मुझे भी पुलिस के कहने पर ऐसा करना पड़ता है। हमने अमित शाह को रैली के लिए परमीशन दे दी है क्योंकि हम लोकतंत्र में यक़ीन रखते हैं जबकि बीजेपी बात को तोड़-मरोड़ कर लोगों को ग़ुमराह कर रही है।”

कोलकाता रैली ‘बड़ा मज़ाक’, देश को PM का विकल्प चाहिए सिर्फ़ विपक्ष नहीं : योगेन्द्र यादव

हाल ही में कोलकाता में आयोजित हुई यूनाईटेड रैली पर तरह-तरह के बयान सामने आए हैं। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इस रैली को चुनाव से पहले बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है। तेजस्वी यादव से लेकर शत्रुघ्न सिन्हा और फ़ारुख़ अब्दुल्लाह तक इस रैली का हिस्सा बने।

एक तरफ जहाँ इस रैली को बड़े राजनीतिज्ञों का समर्थन प्राप्त हुआ है, वहीं स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का इस रैली के बारे में कुछ अलग ही विचार सामने आए हैं।

योगेन्द्र ने शनिवार (जनवरी,19 2019) को आयोजित हुई इस रैली के बारे में कहा कि इस रैली से उन्हें कोई उम्मीद नहीं दिखी है क्योंकि देश सिर्फ विपक्ष नहीं चाहता है, देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प की जरूरत है।

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यादव का कहना है कि इस पूरी रैली के दौरान विपक्ष के नेताओं का न कोई एजेंडा था और न ही कोई अपना नज़रिया था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव उनके बीच और पूरे विपक्ष के बीच में हो, जिसे करने में वो सफल भी हो रहे हैं।

अपनी बातचीत में यादव ने कहा कि इस समय आगामी चुनावों के लिए सभी विपक्षी पार्टियाँ सिर्फ सत्ता की कुर्सी के लिए ही लड़ रही हैं। ईवीएम को बैलट पेपर का विकल्प बताते हुए योगेन्द्र यादव ने बैलट पेपर वापस लाने की माँग करने वालों को निशाना बनाते हुए कहा कि पार्टियाँ सिर्फ ईवीएम की आलोचना तभी करती हैं जब नतीजे उनके पक्ष में नहीं होते हैं।

बता दें कि कुछ समय पहले बैलट पेपर की वापसी माँग पर चुनाव आयोग के पूर्वाधिकारी ओपी रावत ने भी इस बात को कहा था कि जब जो पार्टियाँ चुनावों को हारती हैं, तभी ईवीएम के मुद्दे को फुटबॉल की तरह उछाला जाता है। वरना इस बारे में कोई बात भी नहीं होती हैं। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार यादव ने इस पूरे गठबंधन को एक बड़ा मज़ाक बताया है।

हमारे बारे में अच्छी ख़बर लिखिए, ₹50,000/महीने का सरकारी इंतज़ाम हो जाएगा: अखिलेश यादव

अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी कार्यालय में सोमवार (जनवरी 21, 2019) को मीडिया को सम्बोधित करते हुए कहा कि साधु-संतों को हर महीने करीब ₹20 हजार पेंशन दी जाए और प्रदेश में यश भारती व समाजवादी पेंशन भी फिर से शुरू की जाए।

उन्होंने अपने भाषण में कहा कि उन्होंने रामलीला के पात्रों को पेंशन देने की स्कीम शुरू की थी और वो चाहते हैं कि रामलीला करने वालों को भी पेंशन दी जानी चाहिए, जिसके अंतर्गत भगवान राम को भी पेंशन मिलनी चाहिए, माता सीता को भी पेंशन मिलनी चाहिए और इसके बाद अगर कुछ बच जाए तो रावण को भी पेंशन दी जानी चाहिए।

अखिलेश यादव ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान, एक महिला पत्रकार से कहा कि उनके कई पत्रकार मित्र हैं जिन्हें ‘यश भारती सम्मान’ मिला है जिसमें ₹50,000/महीने का प्रावधान है, अगर वो अच्छा लिखेंगी उनके बारे में तो उन्हें भी सम्मान मिलेगा।

“अगर आप अपने कार्य में अच्छी रहेंगी तो कई पत्रकारों को हमने यश भारती सम्मान दिया है, वो ₹50 हजार भी आपको मिल जाएगा, लेकिन इसके लिए आपको समाजवादी पार्टी की स्टोरी अच्छी लिखनी पड़ेगी, अगर आज से आप लिखना शुरू करें तो ढाई साल में इंतज़ाम हो जाएगा कि अगला कोई सम्मान आपको प्राप्त हो जाए, हमारे कई पत्रकार साथियों को ये सम्मान प्राप्त हो चुका है।”

अखिलेश यादव ने कहा कि कुंभ दान का पर्व माना जाता है और केंद्र सरकार को प्रयागराज का अकबर किला यूपी सरकार को दान दे देन चाहिए, इसके बदले सेना को जगह चाहिए तो उसे चंबल में ख़ाली पड़ी जगह पर भेज दें।

गठबंधन पर अखिलेश यादव ने कहा, “नेता जी जहाँ से चाहेंगे, वहाँ से समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ेगी। बहुजन समाजवादी पार्टी के नेता और सपा ने सीटों पर विचार किया है, जल्द उसकी जानकारी आप सबको मिल जाएगी।” महागठबंधन के चेहरे के प्रश्न पर सपा अध्यक्ष ने कहा, “भाजपा के पास तो 40 दल जुड़े हैं, अभी तो हमने 20 से 22 ही जोड़े हैं। हमारे पास तो बहुत चेहरे हैं, बीजेपी के पास कोई चेहरा हो तो बताए।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए सपा नेता ने कहा कि देश को अब नए प्रधानमंत्री का इंतजार है। अगर बीजेपी के पास कोई नया पीएम हो तो बताएँ। महागठबंधन से पीएम के उम्मीदवार पर अखिलेश सफाई से सवाल टालते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि ईवीएम की जगह बैलट से चुनाव कराए जाने चाहिए, इससे उनका गुस्सा शांत हो जाएगा।

कल्पवासियों के लिए ही नहीं बल्कि आम साधकों के लिए भी मोक्षदाई है पौष पूर्णिमा

पौष पूर्णिमा के मौके पर सोमवार (जनवरी 21, 2019) संगम में सुबह सूर्य के उदय होने के पहले से ही श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुँच चुके हैं। आज से ही कल्पवासियों की विशेष साधना भी शुरू होगी। पौष पूर्णिमा पर प्रयागराज कुम्भ में कल्पवासियों के साथ ही अब तक करोड़ों श्रद्धालुओं ने आस्था की डूबकी लगाई है।

सभी पूर्णिमाओं में पौष पूर्णिमा बेहद ख़ास है क्योंकि आमतौर पर पूर्णिमा को चन्द्रमा की तिथि माना जाता है। लेकिन पौष पूर्णिमा इकलौती ऐसी पूर्णिमा है जिसमें सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो लोग तन, मन और पूरी आस्था के साथ व्रत रखते हैं, स्‍नान करते हैं और दान देते हैं, वे जन्‍म और मरण के बंधन से मुक्‍त हो, मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। सुबह सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद रात के समय सत्‍यनारायण भगवान की कथा सुनी जाती है और चंद्रमा की पूजा का विधान है।

पञ्चाङ्ग में पौष पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पौष माह में सूर्य का पूर्णिमा पर आधिपत्य होता है। सूर्य और चन्द्रमा का यह अद्भुत संयोग मात्र पौष पूर्णिमा को मिलता है।

एक वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या आती हैं। प्रत्येक महीने के 30 दिन को चन्द्र काल के अनुसार 15-15 दिन के दो पक्षों में विभाजित किया गया है। एक पक्ष को शुक्ल पक्ष तो दूसरे को कृष्ण पक्ष कहा गया। जब शुक्ल पक्ष चल रहा होता है उसके अन्तिम दिन यानी 15वें दिन को पूर्णिमा कहते हैं। वहीं जब कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन होता है तो वह अमावस्या होती है।

वैसे तो सनातन में साधना की दृष्टि से हर माह की पूर्णिमा महत्वपूर्ण है। लेकिन, पौष और माघ माह की पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व माना गया है, मुख्यतः, उत्तर भारत में यह बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन व्रत और दान करना अत्यधिक फ़लदाई माना गया है।

पौष पूर्णिमा के बारे में शंकराचार्य अधोक्षानंद ने बताया, “पौष पूर्णिमा सनातन धर्मावलम्बियों के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण दिन है। प्रयाग कुम्भ में आने वाले कल्पवासी पौष पूर्णिमा से संगम की रेती पर कल्पवास शुरू कर देते हैं।”

पौष पूर्णिमा के बाद से ही माघ महीने की शुरुआत होती है। पौष पूर्णिमा के दिन ही शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है। जैन धर्मावलम्बी इसी दिन से पुष्‍याभिषेक यात्रा की शुरुआत करते हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लोग इस दिन ‘छेरता पर्व’ मनाते हैं।

प्रयागनगरी में लगे आस्था के सबसे बड़े उत्सव कुम्भ में कल्पवासियों की वजह से रौनक बनी रहती है। पौष पूर्णिमा से कल्पवास शुरू होकर माघी पूर्णिमा के दिन महास्नान तक चलता रहेगा। कुम्भ में संगम तट पर कल्पवासी शिविरों में कथा व भोज आयोजित किए जाएँगे।

बता दें कि कल्पवास के 12 वर्ष पूरे करने वाले कल्पवासी सेजिया दान करते हैं, जिसका भव्य आयोजन होता है। जूना अखाड़े के एक संत के अनुसार कुम्भ में सेजिया दान का ख़ासा महत्व है।

माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद कल्पवासी विदा हो जाएँगे। इस दिन प्रत्येक कल्पवासी अपनी क्षमता के अनुसार दान करते हैं। समृद्ध कल्पवासी सेज यानी आलीशान बिस्तर से लेकर हीरे जवाहरात तक दान कर देते हैं। यह दान की परम्परा आस्था और स्वेच्छा पर निर्भर है। इसके लिए कल्पवासियों पर कोई दबाव नहीं होता है। आम लोग भी स्नान-दान कर पुण्य लाभ के भागी हो सकते हैं।

‘शाह की रैली से TMC को डर, हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति नहीं देना सिर्फ एक बहाना’

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की सरकार ने मालदा जिले में अमित शाह के हेलीकॉप्टर को उतारने की अनुमति देने से इनकार किया है। अब बीजेपी ने इस मामले में बीएसएफ को हेलीकॉप्टर सुरक्षित लैंड करवाने के लिए पत्र लिखकर मदद माँगी है। दरअसल बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 22 जनवरी को मालदा में एक रैली को संबोधित करेंगे। उन्हें कोलकाता से रैली में हिस्सा लेने मालदा के लिए हेलीकॉप्टर से रवाना होना है।

प्रशासन की दलील

जिला प्रशासन ने कहा है कि इस सप्ताह में वीवीआईपी हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति देना संभव नहीं है। प्रशासन ने पत्र लिखकर कहा कि मालदा मंडल के कार्यकारी इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी (सिविल) की रिपोर्ट के अनुसार, मालदा में हवाई अड्डे पर काम चल रहा है। धूल और अन्य सामान रनवे के चारों ओर पड़ा है, साथ ही निर्माण के चलते अस्थायी हेलीपैड का रख-रखाव ठीक से नहीं किया गया है। इस स्थिति में हवाई अड्डा हेलीकॉप्टरों की सुरक्षित लैंडिंग के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी वजह से अमित शाह के हेलीकॉप्टर को लैंडिग की अनुमति दे पाना संभव नहीं है।

ग्राउंड रिपोर्ट में प्रशासनिक दलील का पर्दाफ़ाश

प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर की लैंडिंग में खतरा बताने के बाद एक अंग्रेजी टीवी चैनल ने मौके का मुआयना किया तो प्रशासन की सारी पोल खुल गई। हेलीपैड क्षेत्र और रनवे के पास निर्माण सामग्री का नामो-निशान तक नहीं मिला। वहीं हवाई अड्डे पर काम करने वाले स्थानीय कर्मचारियों की मानें तो हेलीकॉप्टर नियमित रूप से हवाई अड्डे से बाहर चल रहे हैं।

हवाई अड्डे के आस-पास काम करने वाली दीपाली दास कहती हैं, “मंत्री और यात्री हेलीकॉप्टर से यहाँ आते हैं। पहले यहाँ सेवा बाधित थी लेकिन अब यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। यहाँ ममता बनर्जी और मिथुन चक्रवर्ती के पास हेलीकॉप्टर है और वो लोग यहाँ उतरते रहे हैं।”

मालदा से बीजेपी नेता संजय शर्मा ने कहा कि पार्टी ने इस संबध में प्रशासन से बात की है। उन्होंने कहा, “टीएमसी इस बात को लेकर घबराई हुई है कि अगर अमित शाह मालदा की इस रैली में आएँगे, तो बीजेपी को अधिक समर्थन मिलेगा।” उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में कोई लोकतंत्र नहीं है, सरकार इस हवाई अड्डे का उपयोग कर रही है, लेकिन हमने जब अनुमति माँगी तो नियम बदल गए।

नागरिकता बिल: क़रीब 31,000 अप्रवासियों को मिलेगा दीर्घकालिक वीज़ा

भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के क़रीब 31,000 अप्रवासियों को उनके ‘धार्मिक उत्पीड़न’ के आधार पर दीर्घकालिक वीज़ा दिए जाने की स्वीकृति मिल गई है। इसके अलावा जिन लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है, उन्हें नागरिकता अधिनियम के प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार तत्काल प्रभाव से जल्द वीज़ा दिया जाएगा।

पहले यह माना जा रहा था कि यह बिल केवल असम में रहने वाले बांग्लादेशी अप्रवासियों को ही नागरिकता प्रदान करेगा, जबकि ऐसा नहीं है। बता दें कि साल 2011 से 08 जनवरी, 2019 तक 187 से अधिक बांग्लादेशियों को दीर्घकालिक वीज़ा नहीं दिया गया था।

2011 से 8 जनवरी 2019 के बीच 34, 817 अप्रवासियों को वीज़ा जारी किए गए थे। इसमें अधिकांश लाभार्थी पाकिस्तानी अप्रवासियों के होने की संभावना है। नागरिकता संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की रिपोर्ट के अनुसार कुल 31,313 अप्रवासियों में से पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश के 25,447 हिंदू, 5807 सिख, 55 ईसाई, 2 बौद्ध और 2 पारसी समुदायों के लोग दीर्घकालिक वीज़ा पर रह रहे थे। जबकि 15,107 पाकिस्तानी दीर्घकालिक वीज़ा धारक राजस्थान में रह रहे हैं, 1,560 गुजरात में, 1,444 मध्य प्रदेश में, 599 महाराष्ट्र में, 581 दिल्ली में, 342 छत्तीसगढ़ और 101 उत्तर प्रदेश में हैं।

7 जनवरी 2019 को संसद के दोनों सदनों में रखी गई जेपीसी रिपोर्ट के अनुसार, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने समिति के समक्ष अपने बयान में कहा था कि तीनों देशों के 31,313 अल्पसंख्यकों ने ‘धार्मिक उत्पीड़न’ के दावों के आधार पर दीर्घकालिक वीज़ा प्रदान किया है। इसके अलावा जिन्होंने भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन किया है, उन्हें नागरिकता अधिनियम में प्रस्तावित परिवर्तनों को अमल में लाते हुए जल्द वीज़ा उपलब्ध कराया जाएगा। आईबी के निदेशक ने पैनल को बताया कि भविष्य में किसी भी ‘धार्मिक उत्पीड़न’ के दावे पर रॉ (RAW) के माध्यम से खोजबीन की जाएगी और उसके बाद ही भारतीय नागरिकता प्रदान करने पर विचार किया जाएगा।

विदेश में रहकर चुकाया देश का कर्ज़, अब घर बैठे कर सकेंगे श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन

वाराणसी का एक लड़का जो कुछ समय पहले मिशिगन में जाकर बस गया था। उसने एक ऐसी ऐप को बनाया है जिससे लोग काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन अपने घर में बैठे ही कर पाएंगे।

हमारा भारतीय समाज अपने धर्म और संस्कारों की वज़ह से पूरे विश्व भर में जाना जाता है। लेकिन, आज के समय में कुछ भारतीय ऐसे भी है जो बेहतर भविष्य की कल्पना करते हुए विदेश पहुँचकर भारत को भुला देते हैं। ऐसे लोगों के लिए रुपेश श्रीवास्तव नाम के ये व्यक्ति एक प्रेरणा की तरह हैं।

हाल ही में रुपेश ने एक ऐसी ऐप को बनाया किया है, जिससे काशी विश्वनाथ मंदिर को देखने की इच्छा रखने वाले कई श्रद्धालु घर बैठे ही पूरे मंदिर के दर्शन कर पाएँगे। इस ऐप का इस्तेमाल करने के लिए आपको सिर्फ इस ऐप को डाउनलोड करना है और थ्री डी चश्मे की मदद से इसका आनंद उठाना शुरू कर देना है।

एक तरफ जहाँ काशी विश्वनाथ में होने वाली आरती, पूजा-पाठ के दर्शन करने के लिए लोगों की लंबी लाइन लगती हैं, वहीं इस ऐप की मदद से लोग आसानी से लाइव पूजा आरती को सुन और देख पाएँगे।

वर्चुअल स्पेस द्वारा मिलने वाले इस मंदिर के दर्शन को योगी आदित्यनाथ ने प्रवासी भारतीय दिवस के दिन सोमवार (21 जनवरी, 2019) को लांच किया है। बता दें कि कुम्भ में इसकी प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी।

मिशिगन में यंगसॉफ्ट इंक (Youngsoft Inc) के सीईओ रुपेश श्रीवास्तव ने इस ऐप को बनाया है। श्रीवास्तव इस मुकाम पर पहुँचने के बाद कहते हैं कि लगभग 25 साल पहले वो बतौर टाटा स्टील के कर्मचारी बनकर यूएस की तरफ मुड़ गए थे और अब वो वतन को कुछ देना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने इस ऐप का निर्माण किया है, ताकि वो अपने देश को कुछ लौटा सकें।

व्यापम घोटाला: पूर्व BJP नेता सहित 8 को CBI की क्लीन-चिट

CBI ने परिवहन आरक्षक भर्ती घोटाला मामले में 26 आरोपितों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दाख़िल कर दिया है। जाँच एजेंसी ने इस मामले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार में शिक्षा मंत्री रहे लक्ष्मीकांत शर्मा और 7 अन्य को क्लीन-चिट दे दी है। 2014 में इस स्कैम के सामने आने के बाद स्पेशल टास्क फ़ोर्स ने शर्मा को गिरफ़्तार भी किया था। घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था।

CBI ने जो आरोप-पत्र तैयार किया है, उसमें लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा उनके ओएसडी रहे ओमप्रकाश शुक्ला, आईजी स्टाम्प इंद्रजीत कुमार जैन, तरंग शर्मा, भरत मिश्रा, मोहन सिंह ठाकुर, सुरेंद्र कुमार पटेल और संतोष सिंह उर्फ राजा तोमर को क्लीन-चिट दी गई है। विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की अदालत में पेश किए गए चार्जशीट में CBI ने आरोपितों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत न मिलने क्लीन-चिट देने की वजह बताई।

बता दें कि 2012 में मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मण्डल (MPPEB) द्वारा आयोजित परीक्षाओं में घोटाले की बात सामने आई थी, जिसके बाद इसकी जाँच CBI को सौंप दी गई थी। इस परीक्षा में 56,000 से भी अधिक छात्र शामिल हुए थे। इस घोटाले के सामने आने के बाद इसका नाम प्रोफेशनल एग्ज़ामिनेशन बोर्ड (Professional Examination Board) रख दिया गया था।

सीबीआई द्वारा जिन 26 आरोपितों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर की गई है, उन पर जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र, भ्रष्टाचार निरोधक कानून, आईटी कानून और अन्य सम्बद्ध धाराएँ लगाई गई हैं। मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल को शॉर्ट में व्यापम के नाम से जाना जाता है।

आरोप-पत्र में उन लोगों के नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने उम्मीदवारों और व्यापम अधिकारियों के बीच बिचौलियों की भूमिका निभाई थी। इनके अलावा ऐसे कई नाम शामिल हैं, जो वास्तविक उम्मीदवारों के बदले फ़र्जी उम्मीदवार बन कर परीक्षा में शामिल हुए थे। व्यापम के पूर्व प्रमुख अधिकारी रहे पंकज त्रिवेदी सहित मण्डल के कई बड़े नाम भी इसमें शामिल हैं।

CBI द्वारा चार्जशीट दायर करने के साथ ही अब पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को अदालत से बरी करने की बस औपचारिकता बाकी रह गई है।

प्रोग्रेसिव कामरेडों की वैज्ञानिक सोच का सच

उनका प्रिय सवाल आपने न सुना हो, ऐसा तो नहीं हो सकता! चाहे आप किसी भी क्षेत्र में प्रगति की बातें कर लें, ये नारेबाज गिरोह का प्रिय सवाल आएगा ही। आप मंगलयान कहेंगे तो वो पूछेंगे, इससे ग़रीब को रोटी मिलेगी क्या? आप शिक्षा के क्षेत्र में नए विषयों को जोड़े जाने की बात करें तो वो पूछेंगे, इससे ग़रीब को रोटी मिलेगी क्या? आप बुलेट ट्रेन कहें, सड़कों का निर्माण कहें, उत्तर-पूर्व में कोई पुल बनने की बात करें, कुछ भी कह लें वो हर बार पूछेंगे, इससे ग़रीब को रोटी मिलेगी क्या? उनके आपसी झगड़े भी देखेंगे तो वो सरकार के किसी फ़ैसले के समर्थन में एक भी शब्द कह बैठे अपने ही साथी को फ़ौरन ‘टुकड़ाखोर’ बुलाना शुरू कर देते हैं।

ऐसे में जब नारेबाज गिरोहों की ‘वैज्ञानिक सोच’ की बात होगी तो ज़ाहिर है कि रोटी जहाँ से आती है, उस कृषि पर ही चर्चा होगी। भारत तो वैसे भी कृषि प्रधान देश माना जाता है, इसलिए भी कृषि पर हुए ‘वैज्ञानिक शोध’ की चर्चा होनी चाहिए। हमारा ये किस्सा हमें पिछली शताब्दी के शुरुआत के दौर में आज से करीब सौ साल पहले ले जाता है। ये दौर रूस में कम्युनिस्ट शासन का ‘लाल काल’ कहा जा सकता है। इस काल में, स्टालिन के नेतृत्व में, कम्युनिस्ट शासन (शोषण) के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले हज़ारों लोग गुलाग (नाज़ी कंसंट्रेशन कैंप जैसी जेलों) में फिंकवा दिए गए। मारे गए लोगों की गिनती भी लाखों में की जाती है।

इसी दौर में एक अज्ञात से तथाकथित कृषि वैज्ञानिक हुए जिनका नाम था ट्रोफिम ल्यिसेंको (Trofim Lysenko)। इन्होंने 1928 में गेहूँ उपजाने की एक नई विधि ढूँढने का दावा किया। उनका कहना था कि इस विधि से खेती करने पर उपज तीन से चार गुना तक बढ़ाई जा सकती है। इस विधि में कम तापमान और अधिक आर्द्रता वाले माहौल में गेहूँ उपजाना था। खेती से थोड़ा बहुत भी वास्ता रखने वाले जानते हैं कि नवम्बर में जब गेहूँ बोया जाता है, तब जाड़ा आना शुरू ही होता है। मार्च के अंत में इसकी फसल काटने तक, ठण्ड और आर्द्रता वाला मौसम ही होता है। ल्यिसेंको का दावा था कि ठण्ड और आर्द्रता के एक ख़ास अनुपात से पैदावार कई गुना बढ़ेगी।

ऐसे दावे करते वक्त उन्होंने विज्ञान और अनुवांशिकता सम्बन्धी जो नियम बीजों और खेती पर लागू होते, उन्हें ताक पर रख दिया। इस अनूठी सोच के विरोधियों को उन्होंने कम्युनिस्ट विचारधारा (अगर इस नाम की कोई चीज़ होती हो तो) का शत्रु घोषित करना शुरू कर दिया। अपने विरोधियों की तुलना वो साझा खेती का विरोध कर रहे किसानों से भी करने लगे। सन् 1930 के दौर में रूस खेती के नियमों को जबरन बदलने की कोशिशों के कारण खाद्य संकट के दौर से गुजर रहा था। सन् 1935 में जब ल्यिसेंको ने अपने तरीके के विरोधियों को मार्क्सवाद का विरोधी बताया तो स्टालिन भी वो भाषण सुन रहे थे। भाषण ख़त्म होते ही स्टालिन उठ खड़े हुए तो ‘वाह कॉमरेड वाह’ कहते ताली बजाने लगे।

इसके बाद तो ल्यिसेंको के तरीकों पर सवाल उठाना जैसे कुफ्र हो गया! वैसे तो ‘वैज्ञानिक सोच’ का मतलब सवालों को सुनना और विरोधी तर्कों को परखना होता है, लेकिन वैसा कुछ गिरोहों की “वैज्ञानिक सोच” में नहीं होता। लेनिन अकैडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज ने 7 अगस्त 1948 को घोषणा कर दी कि ‘ल्यिसेंकोइज्म’ को ही ‘इकलौते सही तरीके’ के तौर पर पढ़ाया जाएगा। बाकी सभी सिद्धांतों को बुर्जुआ वर्ग का और फासीवादी विचारों का कहते हुए हटा दिया गया। 1934 से 1940 के बीच कई वैज्ञानिकों को स्टालिन की सहमति से, ल्यिसेंकोइज्म का विरोधी होने के कारण मरवा दिया गया, या जेलों में फेंक दिया गया।

निकोलाई वाविलोव को 1940 में गिरफ़्तार किया गया था और कम्युनिस्ट कंसंट्रेशन कैंप में ही उनकी 1943 में मौत हो गई। गिरफ़्तार किए गए या कंसंट्रेशन कैंप में डालकर मरवा दिए गए वैज्ञानिकों में आइजेक अगोल, सोलोमन लेविट भी थे। हरमन जोसफ मुलर को अनुवांशिकता (जेनेटिक्स) पर बातचीत जारी रखने के कारण भागना पड़ा और वो स्पेन के रास्ते अमेरिका चले गए। 1948 में ही अनुवांशिकता (जेनेटिक्स) को रूस ने सरकारी तौर पर बुर्जुआ वर्ग की (फासीवादी) सोच घोषित करते हुए, ‘फ़र्ज़ी विज्ञान’ (सूडो-साइंस) घोषित कर दिया। जो भी अनुवांशिकता पर शोध कर रहे वैज्ञानिक थे, उन्हें नौकरियों से निकाल दिया गया।

इस पूरे प्रकरण में 3000 से ज्यादा वैज्ञानिकों को गिरफ़्तार किया या मार डाला गया था। उनकी नौकरियाँ छीन ली गईं और कइयों को देश से भागने पर मजबूर होना पड़ा। कहने की ज़रूरत नहीं है कि कृषि की दुर्दशा ऐसे फ़र्ज़ी विज्ञान से पूरे ल्यिनकोइज्म के दौर में जारी रही। ये सब 1953 में स्टालिन की मौत होने तक जारी रहा था। बाकी और दूसरी चीज़ों की तरह ही ‘वैज्ञानिक सोच’ के मामले में भी होता है। ‘कॉमरेड की वैज्ञानिक सोच’ का हाल काफी कुछ भस्मासुर से छू देने जैसा है। जिस चीज़ को वो छू दें, उसका समूल नाश होना तय ही है।