Monday, September 30, 2024
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कश्मीर ही नहीं सिक्किम पर भी नेहरू की नीति अस्पष्ट थी: विकिलीक्स

विकिलीक्स के एक केबल को खँगालने से पता चलता है कि जवाहर लाल नेहरू की सिर्फ़ कश्मीर नीति ही नहीं, बल्कि सिक्किम को लेकर भी उनकी रणनीति अस्पष्ट थी। बता दें कि 15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब सिक्किम भारतीय गणराज्य का हिस्सा नहीं था। सिक्किम को भारत के आज़ाद होने के 28 सालों बाद भारतीय गणराज्य में शामिल किया गया था जिसके बाद यह भारत का 22वाँ राज्य बना।

इसकी पूरी कहानी भी बहुत ही रोचक है। और जानने लायक बात यह भी है कि इस पूरी प्रक्रिया पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका नज़र बनाए हुआ था। जैसा कि सब जानते हैं, अमेरिका का दुनिया के सभी देशों चल रहे महत्वपूर्ण घटनक्रमों पर अपनी नज़र बनाए रखने का पुराना इतिहास रहा है। दशकों से अपने-आप को विश्व में बिग-ब्रदर की तरह पेश करने वाले अमेरिका की भारतीय सिक्किम नीति पर भी पूरी तरह से नजर थी और इस बारे में वो पल-पल की जानकारी हासिल कर रहा था।

हम विकिलीक्स के जिस केबल की बात करने जा रहे हैं उससे पता चलता है कि दिल्ली, कोलकाता, हॉन्गकॉन्ग, लंदन, काठमांडू और न्यूयॉर्क में स्थित अमेरिकी प्रतिनिधिगण इस मामले को लेकर आपस में काफ़ी बातचीत कर रहे थे। अर्थात ये, कि इन घटनाक्रमों पर उनकी पैनी नजर थी और वो इस मामले से जुड़ी हर जानकारी आपस में साझा कर रहे थे।

शुरुआत में अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि सिक्किम हमेशा भारत द्वारा संरक्षित राज्य बना रहेगा और भारत कभी उसे अपने गणराज्य में शामिल करने की कोशिश नही करेगा। इस केबल से यह भी ख़ुलासा होता है कि अमेरिका इस बात पर विचार कर रहा था कि भारत द्वारा सिक्किम को अपना हिस्सा बनाने की प्रक्रिया पर सार्वजनिक तौर पर कोई बयान दिया जाए या नहीं, या फिर इस पर कोई एक्शन लिया जाए या नहीं।

नेहरू और पटेल: 3 साल बनाम 17 साल

जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति को लेकर अक्सर तरह-तरह की बातें होती रही है और कहा जाता रहा है कि कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले कर जाना नेहरू की बड़ी भूल थी। ये एक ऐसी भूल थी जिसकी सज़ा आज तक भारत भुगत रहा है। देश में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन कश्मीर मसला ज्यों का त्यों बना रहा। वहीं, आज़ादी के बाद भारत के सैकड़ों रियासतों को एक करने वाले सरदार पटेल ने जिस भी मसले को अपने हाथ में लिया, उन्होंने उसे पूरा किया। सरदार पटेल ने जूनागढ़, त्रवनकोर और हैदराबाद सहित कई तत्कालीन रियासतों को भारत का अंग बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज ये सभी भारत के अभिन्न अंग हैं और कश्मीर जैसी समस्या भारत के किसी अन्य क्षेत्र में देखने को नहीं मिलती। बता दें कि अपने 17 सालों के प्रधानमंत्रीत्व में जवाहर लाल नेहरू ने विदेश मंत्रालय भी अपने पास ही रखा था।

सिक्किम की कहानी वैसे तो भारत की आजादी के बाद ही शुरू हो जाती है लेकिन इसे भारतीय गणराज्य में मिलाने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श 1962 में हुए युद्ध के बाद शुरू किया गया। भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत को मिली हार का एक कारण उत्तर-पूर्व में भारतीय सेना के पहुँचने में हो रही कठिनाइयों को भी माना गया। सिक्किम के राजा चोग्याल का चीन की तरफ ज्यादा झुकाव था और अपने विस्तारवादी चरित्र के कारण जाना जाने वाला ड्रैगन अपनी सीमा से सटे भारत के हर एक राज्य को हथियाना चाहता था। आज भी चीन की वही नीति है जिसके कारण अक्सर डोकलाम जैसे विवाद खड़े हो जाते हैं। इसे पंडित नेहरू की अदूरदर्शिता कहें या फिर उनके निर्णय लेने की क्षमता को सवालों के घेड़े में खड़ा किया जाए, उन्होंने अपनी उत्तर-पूर्व नीति अस्पष्ट रखी।

562 छोटी-बड़ी रियासतों को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाने वाले सरदार पटेल की दिसंबर 1950 में मृत्यु हो गई। आज़ादी के बाद सिर्फ साढ़े तीन सालों में उन्होंने देश के भूगोल को इस तरह से बदल दिया था जिस से भारत की एकता और अखंडता अनंतकाल तक बनी रहे। लेकिन कुछ ऐसे राज्य भी थे जिन्हे देश के प्रथम गृह मंत्री पटेल की मृत्यु के बाद भारत का हिस्सा बनाया गया। पुर्तग़ालियों के कब्ज़े वाला गोवा, फ्रांस के नियंत्रण वाले पुड्डूचेरी और चोग्याल शासित सिक्किम उन राज्यों में से एक थे। गोवा और पुड्डूचेरी समुद्र के किनारे स्थित थे और इनकी भौगोलिक स्थित ऐसी थी कि इन्हे अंततः भारत का अंग ही बनना था। लेकिन दूसरी तरफ अगर सिक्किम की बात करें तो उसका महत्व समझने के लिए हमें उसके भूगोल को समझना होगा।

सिक्किम और उत्तर-पूर्व में भारत की नाजुक भौगोलिक स्थिति

भारत का उत्तर उत्तर-पूर्वी हिस्सा सामरिक और रणनीतिक रूप से देश का एक महत्वपूर्ण अंग है। यहाँ अभी भारत के आठ राज्य स्थित हैं- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय व सिक्किम। सिक्किम के उत्तर और उत्तर-पूर्व में तिब्बत स्थित है जिस पर चीन अपना कब्ज़ा जताता रहा है। राज्य के पूर्व में भूटान है जो भारत का मित्र राष्ट्र है लेकिन चीन उसे लुभाने की पूरी कोशिश करता रहा है। सिक्किम के पश्चिम में नेपाल है जहाँ के सत्ताधारियों का झुकाव समय के हिसाब से कभी भारत तो कभी चीन की तरफ रहता है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की सीमा भी सिक्किम से लगती है। इस तरह से हम देखें तो सिक्किम की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिस पर अगर चीन का नियंत्रण होता तो भारत सामरिक रूप से दक्षिण एशिया में अलग-थलग पड़ चुका होता।

शेष भारत को उत्तर-पूर्वी भारत से जो हिस्सा जोड़ता है उसे हम सिल्लीगुड़ी नेक कहते हैं। सबसे संकीर्ण स्थिति में इसकी चौड़ाई सिर्फ 17 किलोमीटर रह जाती है। भारत जैसे एक बड़े देश के लिए ये एक बहुत ही छोटा क्षेत्र है और इसे संभालना उस से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। सिल्लीगुड़ी नेक को ‘चिकेन्स नेक’ भी कहते हैं। सिक्किम के चीन की तरफ झुकाव और भारतीय गणराज्य का हिस्सा न होने कारण चुम्बी घाटी के पश्चिम में भारत की स्थिति काफ़ी कमज़ोर थी जिसका परिणाम उसे 1965 के भारत-चीन युद्ध में भगतना पड़ा।

इसके बाद ही जवाहर लाल नेहरू नीत केंद्र सरकार को इसका महत्व समझ में आया और उन्होंने सिक्किम के भारत में विलय पर विचार-विमर्श शुरू किया। लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी और युद्ध में हार के कारण देश को ख़ासा नुकसान भी उठाना पड़ा था। प्रधानमंत्री नेहरू ने इस पर सोचा तो ज़रूर लेकिन वो अपनी ज़िंदगी में सिक्किम को भारतीय गणराज्य का हिस्सा नहीं बना पाए।

नेहरू ने ठुकराई पटेल की सलाह?

अब सवाल ये उठता है कि क्या पंडित नेहरू ने सिक्किम के लोगों के मनोभाव के अनुसार निर्णय न ले कर राज्य को भारत को विलय कराने का मौक़ा गँवा दिया? ये सवाल ही हमें विकिलीक्स के उस ख़ुलासे की तरफ ले जाता है जिसकी बात हम यहाँ करने वाले हैं। गुप्त सूचनाओं को सार्वजनिक कर उसका खुलासा करने वाली NGO विकिलीक्स विश्व की एक प्रसिद्ध संस्था है जिसके खुलासों के कारण अमेरिका तक में भी राजैनितक उथल-पुथल मच चुकी है। विकिलीक्स के इस केबल के अनुसार भारत में स्थित अमेरिकी राजनयिकों ने USA के स्टेट डिपार्टमेंट को भेजी गई एक जानकारी में कहा कि अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल की बात मान ली होती हो सिक्किम 25 साल पहले ही भारत का अंग बन चुका होता।

कम से कम अमेरिका का तो यही मानना है कि अगर नेहरू ने, भावना के अनुकूल, सरदार पटेल के कहे अनुसार सिक्किम को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया होता तो सिक्किम 1975 की बजाय 1950 में ही भारत का अंग बन चुका होता। ये भी संभावना थी कि अगर 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान सिक्किम भारत का हिस्सा होता तो शायद तस्वीर कुछ और भी हो सकती थी।

इसके अलावा अमेरिका का ये भी मानना था कि भारत ने सिक्किम के विलय (annexation) के लिए कुछ ख़ास नहीं किया बल्कि वो तो सिक्किम की जनता थी जिसने उचित निर्णय लिया और भारत ने सिर्फ ‘परिस्थिति’ का फायदा उठाया। ये सूचनाएँ भारत में स्थित अमेरिकी राजनयिकों द्वारा अपने देश में तब भेजी गई थी जब इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने ये फ़ैसला ले लिया था कि सिक्किम में सेना भेजी जाएगी। ये पूरा घटनाक्रम भी काफ़ी रोचक है और इसमें कई ट्विस्ट्स और टर्न्स हैं।

उत्तर-पूर्वी भारत के लिए नेहरू के ढुलमुल रवैये को लेकर सरदार पटेल ने उन्हें कई बार आगाह किया था। दूरदर्शी पटेल ने नवंबर 7, 1950 को नेहरू को लिखे पत्र में कहा था;

“आइए हम संभावित उपद्रवी सीमा की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करें। हमारे उत्तरी और उत्तर-पूर्वी दृष्टिकोण में नेपाल, भूटान, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम के आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं। संचार की दृष्टि से ये एक बहुत ही कमजोर स्पॉट है। यहाँ निरंतर रक्षात्मक पंक्ति उपस्थित नहीं है। घुसपैठ की भी असीमित गुंजाइश है।”

अपने इस पत्र में सरदार पटेल ने उत्तर-पूर्वी सीमा के लिए “potentially troublesome” शब्द का प्रयोग किया है जिस से यह पता चलता है कि उन्हें कहीं न कहीं इस बात का अंदाज़ा था कि इस सीमा पर आगे चल कर मुश्किलें खड़ी हो सकती है। साथ ही उन्होंने वहाँ संचार व्यवस्था तगड़ी करने की भी सलाह दी थी। इस से पता चलता है कि पटेल उस क्षेत्र में सड़कों और इंफ़्रास्ट्रक्चर का विकास करना चाहते थे ताकि उत्तर-पूर्व के राज्य शेष भारत से कटे नहीं रहें और सुरक्षाबलों को भी आवागमन में किसी भी प्रकार की मुश्किलों का सामना न करना पड़े।

सरदार पटेल ने इस पत्र में उस क्षेत्र में कम्युनिकेशन को मजबूत करने की सलाह दी थी। सरदार पटेल ने जिस घुसपैठ का डर इस पत्र में जताया था, उसके परिणाम हमें डोकालाम के रूप में देखने को मिले। तभी देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि सरदार पटेल को इस बात का 1950 में ही अंदाज़ा लग गया था कि इस सीमा पर आगे चल कर कुछ गड़बड़ हो सकती है। पटेल जैसे अनुभवी, दूरदर्शी और क्षमतावान नेता का ये डर जायज़ भी था।

सिक्किम के बौद्ध शासक चोग्याल ने एक अमरीकी महिला से शादी की थी जो अपने रहस्यमयी व्यवहार के कारण जानी जाती थी। वो काफ़ी महत्वाकांक्षी थीं और चोग्याल ने उनके प्रभाव में आकर ही भारत से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। 70 के दशक के शुरूआती दौर में ही सिक्किम में वहाँ के शासकों के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध प्रदर्शनों की गति काफ़ी तेज हो गई थी जिसके बाद राज्य की लोकतंत्र समर्थक पार्टियों ने भारत से हस्तक्षेप की माँग की। आख़िरकार अप्रैल 1975 में भारतीय सेना ने चोग्याल के राजमहल पर दस्तक दी और भारत सरकार ने सिक्किम में एक जनमत संग्रह कराया जिसमे 97.5 प्रतिशत लोगों ने भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनने के लिए हामी भरी। अगले ही महीने सिक्किम औपचारिक रूप से भारत का 22वाँ राज्य बन गया।

फ़ैक्ट चेक: कुंभ में कंडोम बाँटे जाएँगे? वायरल ख़बर का पोस्टमॉर्टम

इन दिनों सोशल मीडिया में एक अख़बार की कटिंग वायरल हो रही है। वायरल होती अख़बार की इस कटिंग की हेडिंग कुछ इस तरह है – कुंभ मेले में पाँच लाख कंडोम बाँटेगी सरकार। मुहम्मद अब्दुल्लाह नाम के एक फ़ेसबुक यूजर की आईडी से शेयर की गई अख़बार की यह तस्वीर हमारे फ़ेसबुक वॉल पर दिखी।

इस कटिंग को देखने के बाद ‘कुंभ में कंडोम’ टाइप करके हमने फ़ेसबुक ओर गूगल पर सर्च किया। फेसबुक पर सबसे पहले किरण यादव नाम के एक यूजर द्वारा शेयर की गई पोस्ट दिखी। अपने पोस्ट में किरण यादव नाम के इस महिला ने लिखा, “उत्तर प्रदेश की जनता की टैक्स की पैसे अरबों रूपये कुंभ के नाम पर र…ओं की अय्याशी में खर्च की जा रही है। इतने पैसे से करोड़ों उत्तर प्रदेश की नागरिक की गरीबी दूर हो सकती थी।” किरण के इस पोस्ट को करीब 420 लोगों ने शेयर किया है, जबकि 2000 से ज्यादा लोगों ने इस पोस्ट को लाइक किया है।

फेसबुक पर 91 हज़ार से ज्यादा लोग इस किरण यादव के फ़ॉलोवर हैं

आइए करते हैं इस खबर की पड़ताल

इस तरह की ख़बर को देखते ही ऑपइंडिया टीम ने सबसे पहले गूगल की मदद से खब़र को खंगालने की कोशिश की। गूगल पर इस खबर को सर्च करने पर “आजाद सिपाही” और “द वॉइस” नाम की दो वेबसाइट को हमने खोज निकाला, जिसने इस तरह की हेडिंग के साथ खबर को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। इसके अलावा मुख्यधारा की किसी भी बड़े मीडिया हाउस ने अपनी वेबसाइट पर इस तरह की खबर को अपलोड नहीं किया है। यही नहीं, आजाद सिपाही नाम के इस अखबार की कटिंग और वेबसाइट पर हेडिंग, इंट्रो से लेकर बॉडी की ख़बर सब एक ही है।

http://www.azadsipahi.com/ – यह इस वेबसाइट का लिंक है
https://thevoices.in/ – यह इनका वेबसाइट लिंक है


क्या सच में यह ख़बर सही है?

इस वायरल ख़बर की पड़ताल के लिए हमने कुंभ के सूचना निदेशक श्री शिशिर से फ़ोन पर बात की। सवाल पूछते ही सूचना निदेशक ने कहा कि यह एक झूठी खबर है। ऐसी कोई बात उनकी जानकारी में नहीं है। यह कुंभ की पवित्रता को बदनाम करने की कोशिश है।

निष्कर्ष में हमारी टीम ने यह पाया

हमारी टीम ने अपनी इस पड़ताल में पाया कि कुंभ की पवित्रता को कुछ लोगों द्वारा बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। यह महज एक अफ़वाह है। सरकार की तरफ़ से कुंभ के दौरान कंडोम बांटने की किसी भी तरह की घोषणा नहीं की गई है।

3 पूर्व CM को BJP उपाध्यक्ष का पद, अमित शाह का मास्टरस्ट्रोक!

लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं। इस समय में हर राजनीतिक पार्टी अपने किसी भी कदम को बड़ी सूझ-बूझ के साथ उठा रही है। शायद इसलिए राष्ट्रीय परिषद की बैठक से एक दिन ही पहले BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का एक बड़ा फैसला सामने आया है।

अमित शाह ने गुरुवार (जनवरी 10, 2019) को अपनी पार्टी के 3 पूर्व मुख़्यमंत्रियों को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। ये पूर्व मुख्यमंत्री हैं – शिवराज़ सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमण सिंह। ये तीनों ही भाजपा के बहुत बड़े चेहरे भी हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा का यह बहुत बड़ा कदम माना जाएगा। इस फैसले से मालूम पड़ता है कि भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा नेतृत्व करने वाले लोगों के लिए जगह तैयार की जा रही है।

जैसा कि हम जानते हैं कि हाल ही में तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) के आए चुनावी नतीज़ों में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमण सिंह को हार का मुँह देखना पड़ा था।

इन विधानसभा चुनावों में 13 साल से मध्य प्रदेश की कुर्सी पर आसित शिवराज सिंह चौहान और 15 साल से सीएम की कुर्सी संभालने वाले रमण सिंह और एक टर्म वाली वसुंधरा राजे की कुर्सी चली गई थी। इसके बाद भाजपा के इन नामी शख़्सियतों को केंद्र में लाने का बड़ा फैसला किया गया है।

इस बात की जानकारी बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरूण सिंह ने ट्वीट के ज़रिए दी। इसमें उन्होंने बताया कि शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमण सिंह को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया है।

अमित शाह द्वारा लिए गए फैसले से खुश होकर शिवराज सिंह चौहान और रमण सिंह ने ट्वीट करके अमित शाह और प्रधानमंत्री का आभार भी जताया है।

बॉलीवुड के रामभक्त मिले मोदी से, सेकुलर मोदी ने सर पर ‘जय श्री राम’ बाँधने से किया इनकार

कुछ समय पहले बॉलीवुड के कई आला लोग प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात करने गए थे। मीडिया में बात फैली कि ये लोग बॉलीवुड की समस्यायों पर बात करने गए थे, लेकिन गुप्त और सुषुप्त सूत्रों से पता चला है कि मोदी ने उन्हें राम मंदिर निर्माण हेतु चंदा माँगने एवं श्री राम भगवान के जीवन चरित्र पर लगातार कई फ़िल्में बनाने की बात कही थी।

इसी कारण कल शाम मीडिया और सोशल मीडिया में एक तस्वीर घूमती नज़र आई, जिसमें मोदी जी के साथ बॉलीवुड के दिग्गज लोग खड़े थे, और कामपंथी माओवंशी गिरोह की उम्मीदों के विपरीत सारे लोग ख़ुश नज़र आ रहे थे। लोगों को पिछली मुलाक़ात से इसका संबंध बिठाने में बहुत समस्या हो रही है लेकिन गुप्त सूत्रों की ख़बर को याद किया जाए तो ये मुलाक़ात और इसके पीछे की ‘सच्ची तस्वीर’ सामने आ जाती है।

मोदी और बॉलीवुड के लोगों की फोटोशॉप्ड तस्वीर
मोदी और बॉलीवुड के लोगों की फोटोशॉप्ड तस्वीर, असली तस्वीर ऊपर है

आपलोग जो तस्वीर लगातार देख रहे हैं वो चर्च द्वारा फ़ंड पानेवाले वामपंथियों की साज़िश है, जो भले ही हर जगह से जनता द्वारा लतियाकर सत्ता से बाहर किए जा रहे हैं, लेकिन अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे। इनके आईटी सेल के कामरेड प्रकाश ने सबसे पहले सारे रामभक्तों के सर से ‘जय श्री राम’ की चुन्नी फोटोशॉप के ज़रिए मिटा दी है।

लेकिन सत्य को बहुत ज़्यादा दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता। ट्विटर यूज़र कृष्णा ने भगवान कृष्ण की तरह रीवर्स इमेज मैनिपुलेशन के ज़रिए असली तस्वीर मीडिया का सामने ला दी, जो कि आप सबसे ऊपर देख सकते हैं। जब से यह तस्वीर सामने आई है, तब से दोनों ही पक्ष की मीडिया – निष्कच्छ एवं निष्पक्ष – ने इसे अपने तरीके से बताना शुरू कर दिया।

सबसे पहले तो छद्म नारीवादियों ने ‘राम’ का मुद्दा दरकिनार करते हुए महिलाओं की गिनती शुरू कर दी और उसकी कमी पर दोबारा प्रश्न उठाया। महिलाओं को पुरुषों के साथ खड़े होने की जगह, उन्हें एक साइड में ‘रख देना’ भी पितृसत्तात्मक सोच और ऑब्जेक्टिफ़िकेशन का नमूना है। हमारे संवाददाता ने जब इनसे राहुल गाँधी की रक्षामंत्री पर की गई टिप्पणी पर बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा, “अरे याँर, उसके डिम्पल कितने क्यूट पड़ते हैं नाँ!”

ट्विटर पर तो इस तस्वीर का इतना पोस्टमार्टम हो रहा है कि लोग भ्रम में हैं कि असली तस्वीर है कौन। वैसे वामपंथी चिरकुटों में लगातार अविश्वास दिखानेवाली जनता को सत्य तक पहुँचने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि अगर कृष्ण नाम का व्यक्ति कुछ कह रहा है तो उसे सच मान लेना चाहिए।

छद्मनारीवादियों के बाद राहुल (सुरक्षा कारणों से बदला हुआ नाम) नाम के विशुद्ध वामपंथी व्यक्ति ने कहा कि नरेंद्र मोदी को छोड़कर बाक़ी हर व्यक्ति के बाल काले हैं जिसका सीधा अर्थ यह है कि वे लोग वहाँ मोदी की नीतियों का विरोध करने गए थे। फिर किसी ने यह पूछा कि वो सब ‘जय श्री राम’ और ‘बोल बम’ की चुन्नियाँ सर पर बाँधे, दाँत निपोड़कर सेल्फ़ी क्यों ले रहे हैं? राहुल ने बताया कि उनके पास माओ द्वारा सत्यापित वामपंथी सर्टिफ़िकेट है और वो माओ की कसम खाकर झूठ नहीं बोलते, “भैया, जब एसपीजी के लोग चारों तरफ़ से एके सैंतालीस ताने खड़े हों, तो आदमी क्या, पेड़-पौधे भी मुस्कुराते हैं।”

इसी तस्वीर पर चर्चा आगे बढ़ाते हुए नाराजदीप नामक पत्रकार ने कहा कि उन्हें इसी तस्वीर में मौजूद किसी एक्टर ने फोन करके बताया कि ‘जय श्री राम’ की चुन्नी तो करन जौहर ने ले जाने को कहा था क्योंकि अमित शाह बिना चुन्नी देखे और ₹151 का चंदा लिए मोदी जी से मिलने नहीं देते। उसी एक्टर के हवाले से नाराजदीप ने आगे बताया कि उस एक्टर ने एहतियात के तौर पर एक चुन्नी एक्सट्रा रख ली थी कि कहीं खो गया तो इस्तेमाल कर लेंगे।

फिर जो हुआ, वो अप्रत्याशित था। एक्टर ने मोदी जी को सेल्फ़ी लेने से पहले चुन्नी सर पर बाँधने के लिए दी तो मोदी जी ने वैसे ही लौटा दी जैसे वो समुदाय विशेष की ‘मजहबी टोपी’ को पहनने से इनकार कर देते हैं। पत्रकार शिरोमणि ने इस बात का सीधा मतलब यह बताया कि चुनावों से पहले मोदी अपनी पैठ समुदाय विशेष में बनाना चाहते हैं और यही कारण है कि वो सेकुलर छवि बनाने के चक्कर में मन मसोसकर इस तस्वीर में मुस्कुरा रहे हैं।

‘तीन तलाक़’ जैसे चुनावी जुमलों के बाद ‘जय श्री राम’ की चुन्नी ना बाँधना मुस्लिमों को मूर्ख बनाने की एक नाकाम कोशिश है। जब पूछा गया कि ‘तीन तलाक़’ चुनावी जुमला क्यों है तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एडिटर्स गिल्ड में ये फ़ैसला लिया गया है कि मोदी की हर बात पर ‘चुनावी जुमला’ कह देना उनका सम्पादकीय धर्म है।

वहीं मीडिया के दूसरे हिस्से ने इस तस्वीर को देखकर माननीय मोदी जी को एक ‘कम्प्लीट स्टेट्समैन’ कहते हुए कहा कि मोदी ने लगातार दिल लूटते हुए पीएमओ के ‘हार्ट बैंक’ में कई लाख दिल और जमा करा लिए हैं, जिसका ट्रान्सप्लांट हेतु इस्तेमाल किया जाएगा। इस हिस्से की मीडिया का कहना है कि मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद तमाम धार्मिक बातों से दूरी बनाई है क्योंकि ‘मोदी’ भले ही हिन्दू हो सकता है, लेकिन ‘प्रधानमंत्री मोदी’ एक सेकुलर व्यक्ति है। प्रधानमंत्री का बिना ‘जय श्री राम’ बाँधे तस्वीर में मुस्कुराना बताता है कि वो सभी मतों का सम्मान करते हैं, और सुप्रीम कोर्ट जजमेंट आने के बाद ही, इस पर कोई फ़ैसला लेंगे।

कौन जात कुमार ने इसको अपने प्राइम टाइम में कवर करते हुए सतहत्तर मिनट के इंट्रो में मोदी की आँखों की काली पुतली के ओरिएंटेशन पर ध्यान दिलाते हुए कहा है कि उनके दिल में तो ‘जय श्री राम’ था ही क्योंकि पुतलियाँ इस बार कैमरे से ज़्यादा चुन्नियों की तरफ़ थी, लेकिन कैमरामैन (जिस पर डिसअप्रूव लाठी नामक यूट्यूब यूज़र के मुताबिक़ साढ़े तीन करोड़ का ख़र्च करती है पीएमओ) को सख़्त निर्देश थे कि मोदी की भटकती पुतलियों के बीच वो ऐसा शॉट ले ले, जिसमें वो सीधा देख रहे हों।

इस पर हर बात के विशेषज्ञ अभय ले डूबे ने कहा, “इस तरह से सत्ता का गलत इस्तेमाल बताता है कि देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है। कैमरामैन को ऐसे धमकाकर काम करवाना किसी भी तरह से ‘अच्छे दिन’ जैसा तो नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ मोदी इस बार कैमरे में तो नहीं ही देख रहे थे। ये तस्वीर पीएमओ द्वारा फोटोशॉप की गई है और फोटोशॉप एक्सपर्ट की कोई वैकेंसी भी नहीं निकली। वहाँ मोदी ने किसी अपने व्यक्ति को नौकरी दे रखी होगी और क्या!” इसके बाद भी वो बहुत कुछ बोले जिसका मतलब निकालने में लेखक नाकाम रहा।

‘कुछ नया एंगल ढूँढो’ सम्पादक समूह एवम् एडिटर्स गिल्ड के मुखिया गुप्ता जी ने आधिकारिक बयान ज़ारी करते हुए कहा कि मोदी और भाजपा ने मीडिया का गला घोंटा है और सारे सदस्य एक मत में इसक कृत्य की भर्त्सना करते हैं। हालाँकि, इसमें मीडिया कहाँ से आई, इस बात पर ‘द मिस्प्रिंट’ नामक अख़बार ने अपने सारे सब-एडिटर्स को काम पर लगा दिया है। ख़बर लिखे जाने तक ‘मिस्प्रिंट’ की तरफ से कोई रिस्पॉन्स नहीं आया है।

मीडिया की कई बड़ी हस्तियों ने ट्विटर पर इसे अमित शाह का मास्टरस्ट्रोक कहा है भले ही वो तस्वीर में कहीं भी नज़र नहीं आ रहे। तीन-चार लोगों को हमने डीएम करके पूछा तो उन्होंने कहा कि मोदी जी या भाजपा कुछ भी करती है तो उसे मास्टरस्ट्रोक ही कहा जाना चाहिए क्योंकि अमित शाह भारतीय राजनीति के आधुनिक चाणक्य हैं।

बॉस के ‘ख़ौफ़’ से आज़ादी: मोदी सरकार ने पास किया ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2018’

निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए राहत की एक बड़ी ख़बर सामने आई है। इसका सीधा संबंध कर्मचारियों को व्यक्तिगत रूप से ‘अच्छे दिन’ का एहसास कराएगा। मोदी सरकार ने लोकसभा में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए एक ऐसा बिल पास किया है, जिसके मुताबिक़ कार्यालय समय के बाद अब अपने बॉस के फ़ोन कॉल और ईमेल का जवाब देने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए यह एक अच्छी ख़बर है। लोकसभा ने ऑफ़िस टाइम के बाद कार्य संबंधी कॉल या ईमेल को डिस्कनेक्ट करने का बिल पास कर दिया गया।

लोकसभा में ‘राइट टू डिसकनेक्ट बिल 2018’ को एनसीपी (राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी) सांसद सुप्रिया सुले द्वारा पेश किया गया। इस बिल के क़ानून बनने के बाद कर्मचारियों को काम के घंटों से परे कार्य संबंधी कॉल को डिस्कनेक्ट करने या ईमेल का ज़वाब नहीं देने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। यहाँ तक कि छुट्टियों पर भी, कर्मचारियों को फ़ोन कॉल का जवाब देने की किसी भी प्रकार की बाध्यता नहीं रहेगी।

सुप्रिया सुले ने कहा है कि इस बिल के माध्यम से कोई भी कंपनी किसी भी कर्मचारी पर अतिरिक्त कार्यभार नहीं थोप सकेगी। साथ ही उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इस क़ानून के बाद कर्मचारियों के तनाव में कमी आएगी, जिससे उनके व्यक्तिगत जीवन में बेहतर स्थिरता आएगी।

हालाँकि, यह बिल अभी लोकसभा से पास हुआ है और क़ानून बनने की राह में अभी राज्यसभा की मंज़ूरी मिलनी बाक़ी है।

आइए आपको यह भी बताते चलें कि इस बिल के तहत किन-किन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे किसी भी प्रकार की भ्रम की स्थिति न पैदा हो सके। इस बिल की धारा-7 के अनुसार कुछ ऐसे तथ्य भी शामिल हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

काम के घंटों के बाद यदि कोई कर्मचारी (महिला/ पुरुष) चाहे तो बॉस के कॉल को डिस्कनेक्ट कर सकता/ सकती है। हालाँकि बॉस के अलावा सहयोगी कर्मचारी अन्य कर्मचारी से समपर्क कर सकता है।

काम के घंटों के दौरान यानि ऑफ़िस टाइम में ऑफ़िशियल कॉल डिस्कनेक्ट और ईमेल का जवाब न देने जैसी गतिविधियाँ इस बिल का हिस्सा नहीं होंगी। जिसका सीधा सा मतलब है कि यदि कोई कर्मचारी इस प्रकार की अनुशासनहीनता का आचरण करता है, तो वो कर्मचारी निजी कंपनी द्वारा तय नियमों के अनुसार दंड का अधिकारी होगा।

इस विधेयक के तहत, एक कल्याण प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होंगे। संचार मंत्रालय के साथ-साथ श्रम व रोजगार मंत्रालय के राज्य मंत्री इसके उपाध्यक्ष होंगे।

साथ ही, इस बिल के तहत एक चार्टर भी तैयार किया जाएगा। इस चार्टर के तहत, जिन कंपनियों के पास 10 से अधिक कर्मचारी हैं, उन्हें अपने कर्मचारियों से बात करनी होगी और इसमें शामिल करना होगा कि वे चार्टर में क्या चाहते हैं, उसके बाद ही रिपोर्ट बनाई जाएगी।

‘IAS फ़ैसल का इस्तीफ़ा विश्वास की कमी का संकेत’

भारतीय प्रशासनिक सेवा के टॉपर रहे शाह फ़ैसल के इस्तीफ़े ने सियासी माहौल में हलचल पैदा कर दी। फ़ैसल के इस्तीफ़ा दिए जाने के बाद से ही बयानबाज़ी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। ज़ाहिर सी बात है कि एक आईएएस टॉपर का यह क़दम उठाना किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है, जिसपर सियासत होना लाज़मी है।

इस मुद्दे पर अब तक कई बयान सामने आ चुके हैं। इनमें पी चिदंबरम और उमर अब्दुल्ला जैसे बड़े नाम शामिल हैं। राजनीति से परे केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शाह फ़ैसल के इस्तीफ़े की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि फ़ैसल द्वारा इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला उनके मज़बूत इरादों की कमी का संकेत है। यह इस्तीफ़ा, देश के प्रति उनके अविश्वास को व्यक्त करता है।

इसके अलावा उन्होंने कहा कि अगर विश्वास में कमी ना होती तो फ़ैसल इस तरह के फ़ैसले का रुख़ कभी ना करते बल्कि आतंकी गतिविधियों का पुरज़ोर विरोध करते। ऐसा संभव नहीं है कि देश आतंकी गतिविधियों से आपका बचाव भी करे और आप आतंकी को आतंकी कहने से परहेज़ करें।

सिंह के मुताबिक़ भारत देश एक सहिष्णु देश है, जो सभी नागरिकों को एकसमान अधिकार देता है, जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी भी शामिल है। लोग भारत जैसे देश को एक सॉफ्ट टारगेट पाते हैं, शायद इसीलिए इस तरह की गतिविधियाँ फलीभूत होती हैं।

बता दें कि कश्मीर में हो रही मौतों के चलते आईएएस शाह फ़ैसल ने बुधवार (जनवरी 10, 2019) को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। साथ ही यह बेतुका आरोप भी लगाया था कि क़रीब 20 करोड़ भारतीय मुस्लिम हिन्दुवादी ताक़तों के हाथों ग़ायब हो गए, हाशिये पर पहुँच गए और दोयम दर्ज़े के नागरिक बनकर रह गए।

फ़ैसल के इस्तीफ़ा देने के बाद से ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि वो उमर अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। उमर अबदुल्ला ने ट्विटर के ज़रिये फ़ैसल के इस्तीफ़े का स्वागत भी किया है।

‘नमो ऐप’ का जादू: 5 महीने में 5 करोड़ रुपए से ज्यादा का बिका सामान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शुरू किया गया ‘नमो ऐप’ आज एक बहुत बड़ा रूप ले चुका है। इसका विस्तार इतना हो गया है कि इस ऐप के ज़रिए 5 करोड़ से ज्यादा के उत्पाद बिक गए हैं।

नमो ऐप से बिक्री में आने वाला ये उछाल महज़ 5 महीनों के भीतर इतना बढ़ा है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अभी तक इस ऐप के ज़रिए लगभग 15.75 लाख यूनिट उत्पाद बेचा जा चुका है।

इन उत्पादों में टोपी, नोटबुक, कॉफी मग, की-चेन जैसी चीज़ें शामिल हैं। इन्हीं चीज़ों की बिक्री से क्रमश: 2.64 करोड़, 56 लाख, 43 लाख, 37 लाख, 32 लाख और 38 लाख रुपए तक की कमाई हुई है। इस रिपोर्ट में अनुमान के तौर पर कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव आने की वज़ह से इस ऐप के ज़रिए बिक्री में तेज़ी आई है।

‘नमो ऐप’ से बिकने वाले उत्पादों में सबसे ज्यादा संख्या टी-शर्ट की है। बताया गया है कि इस खरीदारी में तेज़ी उस समय देखने को मिली, जब बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर ने लोगों को ‘हुडी चैलेंज’ दिया। इस चैलेंज के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उत्तर प्रदेश के सीएम ने योगी आदित्यनाथ ने भी चुनौती को स्वीकारा और बढ़-चढ़ कर लोगों से अपील की कि वे ‘नमो ऐप’ का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें और नमो ऐप के ज़रिए प्रोडक्ट खरीदने की भी अपील की।

आपको बता दें कि मोदी ऐप के सारे उत्पाद मुख्य रूप से तीन तरह से बाज़ारों में बेचे जा रहे हैं। पहला तरीका नमो ऐप है, दूसरा पेटीएम और अमेज़न के ज़रिए और तीसरा बीजेपी के दफ्तर से सीधा खरीदा जा सकता है। ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर मोदी के उत्पाद फ्लाईकार्ट के ज़रिए पहुँचाए जा रहे हैं। इस प्लैटफॉर्म के ज़रिए सामानों का उत्पादन करने का लाइसेंस भाजपा के ही पास है।

80 वर्षीय शीला दीक्षित को मिली दिल्ली कॉन्ग्रेस की कमान

लगातार 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दक्षित को दिल्ली कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। शीला इस पद पर अजय माकन की जगह लेंगी, जिन्होंने कुछ दिनों पहले इस्तीफ़ा दे दिया था। कहा जा रहा है कि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफ़ा दिया था। विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में कॉन्ग्रेस पार्टी चेहरे के आभाव से जूझ रही है, जिसके कारण नेतृत्व की सूई रह-सह कर शीला की तरफ़ ही घूम जाती है। शीला दीक्षित को दिल्ली प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी (DPCC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनकी उम्र और सेहत की स्थिति को देखते हुए चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए गए हैं। डॉ. योगानंद शास्त्री, देवेन्द्र यादव, हारून यूसुफ़ और राजेश लिलोठिया को DPCC का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है।

शीला की ताजपोशी के साथ ही राजनीतिक गलियारों में ये बहस तेज हो गई है कि आखिर दिल्ली में कॉन्ग्रेस की रणनीति क्या रहेगी। विश्लेषकों का मानना है कि शीला दीक्षित को पूर्वांचल का होने के कारण ये पद दिया गया है। उनका ब्राह्मण होना भी उनके पक्ष में जाता है। बता दें कि दिल्ली भाजपा की कमान संभाल रहे मनोज तिवारी भी पूर्वांचल से हैं और ब्राह्मण हैं। शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि उनके चेहरे का इस्तेमाल कर कॉन्ग्रेस दिल्ली ईकाई में चल रहे राजनीतिक कलह को शांत करना चाहती है।

दिल्ली कॉन्ग्रेस में चल रहे कलह का आलम यह है कि अध्यक्ष पद के लिए कम से कम बीस दावेदार थे, जिनमें कई पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री और अन्य बड़े नेता शामिल थे। दिल्ली की कद्दावर नेता शीला दीक्षित के सर्वमान्य चेहरे की ताजपोशी कर पार्टी ने इन सब पर लगाम लगा दिया है। कॉन्ग्रेस पार्टी अभी राज्य में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बाद तीसरे नंबर पर है। राज्य में पार्टी का ना तो एक भी लोकसभा सांसद है और ना ही एक भी विधायक। ऐसे में, शीला दीक्षित के कंधे पर एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में राज्य ईकाई के सारे नेता मिल कर काम करेंगे।

भाजपा के पास मनोज तिवारी के रूप में एक बड़े चेहरे के काट के तौर पर महाबल मिश्रा के नाम पर भी विचार चल रहा था। साथ ही दलित चेहरे के रूप में योगेश लालोठिया भी दावेदारी ठोक रहे थे। पंजाबी चेहरे के रूप में अरविंदर सिंह लवली और जाट चेहरे के रूप में योगानंद शास्त्री की भी इस पद पर नज़र थी लेकिन शीला दीक्षित का कद इन सब पर भारी पड़ गया। अनुभवी शीला दीक्षित देश में एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने लगातार तीन बार किसी राज्य की सत्ता संभाली है। उसके बाद दीक्षित केरल की राज्यपाल भी रहीं।

कुछ महीनों पहले ही फ्रांस में शीला दीक्षित की हार्ट सर्जरी हुई थी और वो काफ़ी दिनों से बीमार भी थीं। बीते अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उनका हालचाल लेने उनके निवास पर भी पहुंचे थे। वहीं अजय माकन के इस्तीफ़े के बाद ही शीला ने अपनी महत्वाकांक्षा ज़ाहिर करते हुए कहा था कि अगर आलाकमान उन्हें जिम्मेदारी सौंपता है, तो वह उसे निभाने के लिए तैयार हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि अगर आलाकमान का आदेश हो तो वह अपने प्रतिद्वंद्वी अरविन्द केरीवाल के लिए भी प्रचार करने को तैयार हैं।

IIT-M के वैज्ञानिकों ने बेहद कम तापमान और दबाव पर पता लगाया भविष्य के ईंधन का स्रोत

आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी खोज की है। प्रोफेसर थलप्पिल प्रदीप और डॉ रजनीश कुमार के मार्गदर्शन में शोधकर्ताओं के समूह ने पता लगाया है कि मीथेन गैस क्लैथरेट हाइड्रेट के रूप में बेहद कम तापमान और दबाव की परिस्थिति में भी मौजूद हो सकती है। क्लैथरेट हाइड्रेट कार्बन डाइऑक्साइड या मीथेन जैसे तत्वों के अणु होते हैं जो कि जल के अणुओं के बीच क्रिस्टल के रूप में विद्यमान होते हैं।

ये उच्च दबाव और कम तापमान वाले स्थान जैसे साइबेरिया के ग्लेशियर में या समुद्रतल से सैकड़ों मीटर नीचे पाए जाते हैं। इस प्रकार के हाइड्रेट पदार्थ विशेष रूप से मीथेन के हाइड्रेट को भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है। कई राष्ट्र महासागरों की तलहटी से हाइड्रेट निकालने की तकनीक विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं।

आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने क्लैथरेट हाइड्रेट को निर्वात में, एक ट्रिलियन गुना कम वायुमंडलीय दबाव पर, माइनस 263 डिग्री तापमान पर लेबोरेटरी में निर्मित किया है। ऐसी परिस्थितियाँ सुदूर अंतरिक्ष में पाई जाती हैं। मीथेन अपने हाइड्रेट स्वरूप में ज्वलनशील गैसों का उत्पादन कर सकता है जिनका प्रयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

बेहद कम दबाव और लगभग शून्य केल्विन तापमान जैसी परिस्थितियों में हाइड्रेट का निर्माण होना एकदम अप्रत्याशित है। ऐसे में आईआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा यह खोज करना उल्लेखनीय है। यह खोज अमेरिका के प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुई है।

बेहद कम दबाव और लगभग शून्य केल्विन तापमान जैसी परिस्थितियों में हाइड्रेट का निर्माण होना एकदम अप्रत्याशित है। ऐसे में आईआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा यह खोज करना उल्लेखनीय है। यह खोज अमेरिका के प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुई है।

यह प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिकों ने लेबोरेटरी उपकरणों में ‘अल्ट्रा हाई वैक्यूम’ वातावरण निर्मित किया। अल्ट्रा हाई वैक्यूम वह स्थिति होती है जब चैम्बर में सौ नैनो पास्कल (दबाव की इकाई) से कम का दबाव बनाया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में स्पेक्ट्रोस्कोपी का अध्ययन किया जाता है। स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा हाइड्रेट का अध्ययन किया जाता है।

प्रोफेसर प्रदीप ने ऑपइंडिया से साझा किए अपने आधिकारिक बयान में इस खोज में बारे में विस्तार से लिखते हुए बताया कि सामान्य परिस्थितियों में स्पेक्ट्रोस्कोपिक परिवर्तन कुछ मिनटों अथवा घंटों के लिए ही देखा जाता है।

ज्वलनशील गैस हाइड्रेट पदार्थ

किन्तु इस प्रयोग में उन्होंने कई दिनों तक प्रतीक्षा की और प्रयोग को मॉनिटर करते रहे क्योंकि अंतरिक्ष में भी बर्फ और मीथेन लाखों करोड़ों वर्षों से छिपे हुए हैं। प्रयोग करने के तीन दिन बाद वैज्ञानिकों को सफलता मिली। डॉ रजनीश कुमार ने बताया कि हाइड्रेट के अणुओं के बीच कार्बन डाइऑक्साइड फँस जाती है और यदि हम ऐसी तकनीक विकसित कर पाए कि समुद्र की तलहटी में मौजूद हाइड्रेट कार्बन डाइऑक्साइड को सोख ले तो ग्लोबल वार्मिंग से निजात पाई जा सकती है।

आयुष्मान भारत योजना से ममता बनर्जी ने खींचे हाथ, बंगाल के गरीबों के लिए बड़ा झटका!

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने समाज के वंचितों के लिए कई सारे महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की। इन्हीं योजनाओं में से एक आयुष्मान भारत योजना भी है। मोदी सरकार ने इस योजना को पंडित दिनदयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर 2018 को देश भर में लागू किया था।

इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य देश के 10 करोड़ परिवार को 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा देना है। इस योजना को केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों की मदद से चलाने की बात कही गई है। आयुष्मान भारत योजना में 40% राशि राज्य सरकार की तरफ से दिए जाने की बात कही गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयुष्मान भारत योजना में यह रकम देने से इनकार कर दिया है।

ममता बनर्जी ने कहा, “पश्चिम बंगाल सरकार आयुष्मान भारत योजना में 40% की राशि नहीं देगी। यदि केंद्र सरकार इस योजना को बंगाल में लागू करना चाहती है तो स्कीम को चलाने के लिए पूरी राशि उन्हीं को देना होगा।”

ममता के इस फ़ैसले का सीधा असर बंगाल के गरीब लोगों पर पड़ेगा। यदि आयुष्मान भारत जैसी महत्वपूर्ण योजना बंगाल में नहीं लागू होती है तो वहां की आम जनता 5 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का लाभ नहीं उठा पाएँगे।  

कॉन्ग्रेस ने आयुष्मान भारत योजना को बताया था जुमला

याद होना चाहिए कि आयुष्मान भारत को लेकर सरकार को काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसे एक जुमला बताया था। तमाम आलोचनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना यानि आयुष्मान भारत की सफलता से यह पता चलता है कि जैसे-जैसे लोगों में इस योजना को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है।

इस योजना के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों की सूची में आधे से ज्यादा निजी अस्पतालों का होना यह बताता है कि ये योजना सिर्फ सरकारी अस्पतालों तक ही सीमित नहीं है। किसी भी जन कल्याणकारी योजना का जब तक अच्छे से प्रचार-प्रसार नहीं किया जाए और जनता तक उसकी पूरी जानकारी नहीं पहुंचाई जाए, तब तक उस योजना के सफल होने की उम्मीद नहीं रहती।

अब जब लोग आयुष्मान भारत को अपना रहे हैं तब ये कहा जा सकता है कि सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के सही असर दिखने शुरू हो गए हैं। यह एक लॉन्ग टर्म प्लान के आधार पर काम कर रहा है और अभी कई राज्यों में लागू भी नहीं हो पाया है।