Saturday, November 16, 2024

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आतंकियों को मानवीय बनाने की कोशिश करने वालो, बेहयाई थोड़ी कम कर लो

ऐसी हर बेहयाई के केन्द्र में ये यूजूअल सस्पैक्ट्स आते हैं, भारतीय पत्रकारिता के समुदाय विशेष, उन्हें अलग एंगल चाहिए कि बाकी लोग जवानों के परिवार से मिल रहे हैं, हम आतंकियों के घरवालों से मिल लेते हैं! उसके बाद क्या? उसके बाद यह कहना कि दोनों के माँ-बाप एक ही तरह के दुःख से गुजर रहे हैं?

सोनू और कंगना का ‘सेकुलरों’ पर तंज: ‘विपक्ष वाले फ़र्ज़ी शोक न मनाएँ’, ‘उन्हें गधे पर बिठाकर थप्पड़ मारो’

फ़िल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा, “अब जो भी शांति और अहिंसा की बात करेगा उस पर कालिख पोत कर, गधे पर बैठा कर चौराहे पर खड़ा कर देना चाहिए ताकि जो भी आए थप्पड़ मार कर जाए।”

वो तो अपना काम कर गए, तुमने देश के लिए कुछ करना शुरू किया है?

जो मासूम ये तर्क देते पाए जाते हैं कि “हिंसा का इलाज हिंसा नहीं हो सकता”, वो क्यूट लोग अक्सर भूल जाते हैं कि हिटलर को रोकने के लिए हिंसा का ही इस्तेमाल करना पड़ा था।

आतंकी हमले पर माओवंशी गिरोह सक्रिय: ‘मोदी ने कराया होगा’ से लेकर जवानों की जाति तक पहुँचे

बसु चाहती हैं कि लोग यह मानें कि भारतीय सशस्त्र बलों ने नरेंद्र मोदी के इशारे पर अपने ही सैनिकों की हत्या कर दी है। और सोचने वाली बात यह है कि बसु ने यह ट्वीट जैश-ए-मुहम्मद द्वारा हमले के लिए जिम्मेदारी का दावा करने के लंबे समय बाद पोस्ट किया है।

भीख का कटोरा लेकर घूमने वाले पाक के लिए सेना को समय, स्थान, योजना तय करने की पूरी छूटः मोदी

उन्होंने कहा कि हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, "हर नुकसान का हिसाब पाकिस्तान को देना पड़ेगा, उसे इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी होगी।"

कश्मीर में जिहाद को रोकने के लिए अपनाने होंगे ‘out of the box’ विकल्प

भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री लाना, उसे वाहन पर असेम्बल करना, कई दिन पहले से इलाके की रेकी करना और पूरा प्लान बनाने में अच्छा-खासा समय लगता है। यह स्थानीय सहायता के बिना संभव ही नहीं है।

भारत नहीं, हिन्दू है आतंकियों का निशाना; हिन्दूफोबिया हर जगह विकृत रूप में दिख रहा है

आतंकियों के हमले का निशाना अब 'भारत देश' की जगह 'गोमूत्र पीने वाले हिन्दू' हो चुके हैं। अमरनाथ यात्रा, संकटमोचन मंदिर पर हुए हमले की यादें भी ताजा ही होंगी। इन्हें पढ़कर 'हिन्दूफोबिया' किसी को नज़र नहीं आता।

2014 में मसूद अज़हर की वापसी और आतंक की स्क्रिप्ट का पुनर्लेखन

आतंकियों को पाकिस्तानी सत्ता के संरक्षण का जीता-जागता उदाहरण। 5 साल पीछे। मसूद अज़हर की वो रैली जहाँ से पठानकोट और पुलवामा हमले की पटकथा का लिखा जाना शुरू हो गया था।

उरी से पुलवामा तक… संसद से पठानकोट तक… सब का ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान

लगातार धर्म की आड़ में आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान को अच्छे से यह बात मालूम है कि जो आतंक का बीज़ वो अपनी धरती पर लगाता है, उसकी जड़ें भी बनेंगी और वो फैलेंगी भी।

फैक्ट चेक: क्या जाँच एजेंसियों के इनपुट होने के बावजूद पुलवामा सुरक्षा में कोताही बरती गई?

आम जनता के सुविधाओं के लिए वन वे रास्ता लोगों के लिए छोड़ दिया गया, आतंकी आदिल अहमद ने उसका गलत फायदा उठाकर घटना को अंजाम दिया।

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