Thursday, January 23, 2025
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झुंड बनाकर आए इस्लामी शासक, फिर भी भारी पड़ा विजयनगर; लेकिन मुस्लिम कमांडरों की गद्दारी ने बदल दिया ‘तालीकोटा युद्ध’ का परिणाम: मंदिरों-भव्य इमारतों की जमीन बन गई बंजर

आज भी हम्पी को कन्नड़ में 'हालूहम्पी' (बर्बाद हम्पी) के नाम से जाना जाता है। अपनी पुस्तक ‘द फॉरगॉटेन एम्पायर‘ में रॉबर्ट सेवेल ने लिखा है, “आग और तलवार के साथ वे (मुस्लिम) विनाश को अंजाम दे रहे थे। शायद दुनिया के इतिहास में ऐसा कहर कभी नहीं ढाया गया। इस तरह एक समृद्ध शहर का लूटने के बाद नष्ट कर दिया गया और वहाँ के लोगों का बर्बर तरीके से नरसंहार कर दिया गया।”

भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान, परंपरा और विपुल धन संपदा के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध रहा है। यही कारण है कि धन के लोभी और उन्नत संस्कृति से घृणा करने वाले कबायलियों की नजरों में भारत अक्सर खटकता रहा और उन्होंने यहाँ कई हमले भी किए। इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ भारत की धन-संपदा को लूटा, बल्कि यहाँ की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को भी रौंदने की कोशिश की।

हालाँकि, उन्हें भारतीय शासकों की ओर से बड़ी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण भारत में आज भी सनातन अपनी प्राचीन परंपरा एवं वैभव के साथ जिंदा है। भारतीय राजा-महाराजा युद्ध भूमि में अपने धर्मशास्त्रों में वर्णित आचरण का पालन करते हुए युद्ध लड़ते, जिनमें रात्रि में हमला नहीं करना, निहत्थों को नहीं मारना, भागते हुए दुश्मन का पीछा नहीं करना, स्त्रियों-बच्चों एवं आम लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाना शामिल था।

वहीं, इस्लामी आक्रमणकारी युद्ध भूमि में मानवीय मूल्यों को ताक पर रखते थे। इसके कारण वे भारत के हिस्सों को जीतने में समय-समय पर कामयाब भी रहे। इस्लामी हमलावर आम लोगों में दहशत फैलाने के लिए नरसंहार को अंजाम देते और महिलाओं एवं बच्चों को बंधक बनाकर खरीद-फरोख्त का भी काम करते थे। इन बर्बरता के बावजूद भारत मजबूती से लड़ा और वह इस्लामी मुल्क नहीं बन पाया।

ऐसी ही एक लड़ाई दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य द्वारा लड़ी गई। 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के मंत्री राम राय के खिलाफ अहमदनगर, बरार, बीदर, बीजापुर और गोलकुंडा के मुस्लिमों के शासकों ने संघ बनाकर हमला किया। इसमें राम राय के भरोसेमंद कमांडरों- गिलानी भाइयों ने उनकी मदद की। युद्ध में राम राय की मृत्यु हो गई और विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया।

‘तालीकोटा (तालिकोटा) का युद्ध’ या ‘राक्षसी-तांगड़ी का युद्ध’ के नाम से प्रसिद्ध यह लड़ाई 1565 ईस्वी में तालीकोटा और राक्षसी-तांगड़ी गाँव के पास लड़ी गई थी। ये उत्तरी कर्नाटक में स्थित है। तालीकोटा नाम का शहर बीजापुर शहर से 80 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इस युद्ध में 23 जनवरी 1565 को राम राय की मृत्यु हो गई। इसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों ने लगभग पाँच महीनों तक विजयनगर को लूटा और उसे नष्ट कर दिया। कर्नाटक में हम्पी का खंडहर इसका उदाहरण है।

मंत्री राम राय (साभार: Notes on Indian History)

विजयनगर देश के दक्षिणी भाग का सबसे उन्नत एवं वैभवशाली साम्राज्य था और हम्पी उसकी राजधानी थी। इस साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने की थी। उनके पिता का नाम संगम था और उसी के आधार पर यह संगम वंश कहलाया। इस साम्राज्य के पहले राजा हरिहर हुए। इसी साम्राज्य में आगे चलकर राजा कृष्णदेव राय जैसे प्रभावशाली शासक भी हुए।

इतिहासकार हरमन कुलके और डाइटमार रॉदरमंड ने ‘हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ के नाम से भारतीय इतिहास का सर्वेक्षण लिखा था। इसमें इन दोनों इतिहासकारों ने लिखा है कि आलिया (दामाद) राम राय के नेतृत्व में विजयनगर साम्राज्य तालीकोट की लड़ाई जीत रहा था, लेकिन अचानक विजयनगर सेना के दो मुस्लिम सेनापतियों ने अपना पक्ष बदल लिया और वे मुस्लिम सुल्तानों के संघ में जा मिले।

युद्ध के पीछे कोई सांप्रदायिक मंशा नहीं: ‘इतिहासकारों’ का तर्क

तालीकोटा युद्ध को लेकर रिचर्ड ईटन, मुजफ्फर आलम और संजय सुब्रह्मण्यम जैसे इतिहासकारों का कहना कि युद्ध के पीछे कोई सांप्रदायिक इरादे नहीं थे। यह अहमदनगर के निज़ामों के खिलाफ़ राजा राम राय के पुराने युद्ध के कारण शुरू हुआ था। युद्ध के मैदान में विजयनगर के दो मुस्लिम सेनापतियों के मुस्लिम सुल्तानों के साथ मिल जाने को भी वे सांप्रदायिक रूप से नहीं देखते और उसे उचित ठहराने की कोशिश करते हैं।

इन इतिहासकारों का मानना है कि सल्तनतों द्वारा अचानक दिखाई गई एकता का सबसे प्रमुख कारण राम राय की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं, विशेष रूप से कल्याण को नियंत्रित करने की उनकी इच्छा थी। कल्याण उत्तरी दक्कन में एक पुराना शहर था, जो 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य साम्राज्य की राजधानी थी। बता दें कि चालुक्य सोलंकी वंश के क्षत्रिय (राजपूत) से संबंधित थे।

तालीकोटा का युद्ध

16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य पर कृष्णदेवराय का शासन था। वे एक योग्य प्रशासक और कुशल कूटनीतिज्ञ थे। राम राय उनके दामाद (जिन्हें स्थानीय भाषा में आलिया कहा जाता है) थे। वे एक बहादुर सेनापति और एक चतुर योद्धा थे। उनके नेतृत्व में कई सैन्य अभियानों को सफलता से अंजाम दिया गया था। राजा कृष्णदेवराय की मृत्यु के बाद विजयनगर की गद्दी उनके भाई अच्युतदेव राय को सौंप दी गई।

राजा अच्युतदेव राय की सन 1542 में मृत्यु हो गई। आगे चलकर इस गद्दी पर अच्युतदेव राय के बेटे एवं कृष्णदेव राय के भतीजे सदाशिव राय बैठे। उस समय वे नाबालिग थे। इसलिए राम राय उनके संरक्षक की भूमिका में थे। मंत्री के तौर पर राम राय ने अपने भरोसेमंद लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। उस दौरान विजयनगर साम्राज्य आस-पड़ोस के निजामों की आँखों में खटक रहा था।

कहा जाता है कि धर्म के प्रति राम राय का दृष्टिकोण व्यापक और उदार था। उन्होंने अपनी सेना में बहुत से मुस्लिम सैनिकों को भर्ती किया था। राम राय ने बीजापुर के निजाम आदिल शाह द्वारा हटाए गए कई लोगों को अपने साम्राज्य में शरण दी थी। दरअसल, राम राय की रणनीति में राज्य का विस्तार करना और कूटनीतिक निर्णय लेना शामिल था, क्योंकि विजयनगर साम्राज्य पाँच मुस्लिम शासकों से घिरा हुआ था।

मुस्लिम बहमनी शासकों का विजयनगर के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया था। राजा राम अपनी कूटनीति की वजह से इन पाँचों मुस्लिम शासकों में दो को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिए थे। राम राय ने बीजापुर के निजाम आदिल शाह के अनुरोध पर अहमदनगर पर हमला किया। इसके बाद आदिल शाह को सबक सिखाने के लिए अहमदनगर के निज़ाम और गोलकुंडा के निजाम कुतुब शाह की सहायता की।

इस तरह राम राय लगातार मुस्लिम सल्तनतों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देकर विजयनगर के साम्राज्य की रक्षा कर रहे थे। हालाँकि, यह रणनीति लंबे समय तक काम नहीं आई, क्योंकि पाँचों मुस्लिम सल्तनत के निजामों को एहसास हो गया कि राम राय उन्हें आपस में लड़ा रहे हैं और उन पाँचों का साझा दुश्मन एक ही है और वह है विजयनगर साम्राज्य। इनमें से कुछ निजाम आपस में रिश्तेदार भी थे।

अहमदनगर के निज़ाम की बेटी चाँद बीबी का निकाह बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह से हुई और आदिल शाह की बहन का निकाह निज़ाम के बेटे से हुई थी। निकाह समारोह में इस्लामी सल्तनत एकजुट हुए और समारोह के बाद विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने का फैसला किया। आदिल शाह ने राम राय के पास एक दूत भेजा और विजयनगर के दो प्रमुख किलों- रायचूर और मुदगल की माँग की।

हालाँकि, राम राय ने आदिल शाह के दूत को मना कर दिया। उसके बाद कई अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया। इसके बाद दक्कन की पाँचों सल्तनत की सेनाएँ विजयनगर की ओर बढ़ीं और तालीकोटा में आकर रूकी। यह आज के राक्षसी-तांगड़ी कहलाती है। इधर राम राय ने विजयनगर में सैनिकों को इकट्ठा कर युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी। सेना में एक लाख घुड़सवार और पाँच लाख पैदल सैनिक शामिल थे।

इन लोगों को सल्तनत की सेना को कृष्णा नदी में प्रवेश करने से रोकने का काम सौंपा गया था। हालाँकि, सेना आगे बढ़ गई। राम राय को पाँचों सल्तनतों को इकट्ठा होने की उम्मीद नहीं थी। इसलिए उन्होंने पहले से इसकी तैयारी नहीं की थी। इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने अपनी सेना को सल्तनत पर सीधे हमले करने का आदेश दिया और कहा, “हम इस तुच्छ युद्ध से डरने वाले कायर नहीं हैं! आगे बढ़ो, लड़ो।”

आखिरकार यह रणनीति कारगर साबित नहीं हुई, क्योंकि बड़ी संख्या में हिंदू सैनिक मरने लगे। हालाँकि, बाकी लोग पूरे धैर्य के साथ युद्ध लड़ते रहे। विजयनगर की इस सेना ने ने बहमनी सल्तनतों के बाएँ हिस्से की पूरी सेना को मार गिराया। इससे सल्तनत शासकों में चिंता पैदा हो गई। इनमें से कुछ ने अपने शिविरों के सामने ‘रहतानात’ (इस्लामी शपथ कि जिहाद में मरने पर जन्नत होगी) के बोर्ड भी लगा दिए।

हालाँकि निजाम शाह, कुतुब शाह, आदिल शाह और अली बरीद की संयुक्त सेना ने हिम्मत जुटाई और हिंदू सैनिकों पर हमला कर दिया। अली आदिल शाह ने राम राय के भाई तिरुमाला राय पर हमला किया, जबकि अन्य ने राम राय के अन्य महत्वपूर्ण सैनिकों पर हमला किया। बाद में आदिल शाह ने राम राय पर हमला किया और निजाम शाह और कुतुब शाह को सीधे उसका सामना करने दिया।

विजयनगर के मुस्लिम सेनापतियों ने पाला बदल लिया

इस बीच विजयनगर साम्राज्य के कई मुस्लिम सैनिकों ने राम राय के लिए लड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने या तो अपने हथियार डाल दिए या राम राय के खिलाफ सल्तनत में शामिल हो गए। उन्होंने हिंदू राजा की तरफ से लड़ने से साफ इनकार कर दिया। उल्लेखनीय है कि उनकी यह कार्रवाई गिलानी भाइयों द्वारा निर्देशित थी, जो राम राय के दो भरोसेमंद सेनापति थे।

इसके बाद सल्तनत ने विजयनगर सेना पर दो तोपें चलाईं, जिसमें अधिकांश सैनिक मारे गए। एक गोली उस हाथी पर मारी गई, जिस पर राम राय बैठे थे। वे घायल हो गए। इसके बाद उन्हें निज़ाम के पास ले जाया गया। निजाम शाह ने राम राय का सिर काट दिया और विजयनगर जैसे विशाल हिंदू साम्राज्य का पतन हो गया। इसके बाद जिहादी सेना बचे हुए सैनिकों का पीछा किया और उन्हें मार डाला।

इस्लामी सैनिकों ने विजयनगर को खूब लूटा

पाँचों मुस्लिम राज्यों के सुल्तानों ने इसे अल्लाह की जीत बताते हुए जीत वाली जगह पर 20 दिनों तक रहकर जश्न मनाते रहे। कहा जाता है कि लगभग बीस मील का क्षेत्र शवों से अटा पड़ा था। धरती खून से लथपथ थी। कहा जाता है कि 10 लाख लोग मारे गए थे। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, युद्ध के मैदान में पड़े शवों की संख्या गिनने में 12 दिन का समय लगा था।

जब इस्लामी सैनिकों को घाव भर गए तो वे बदला लेने की कसम खाते हुए राजधानी हम्पी की ओर बढ़े। उन्होंने सभी ऊँची, भव्य इमारतों, मंदिरों को लूटा और जला कर उसे ध्वस्त कर दिया। इस्लामी सेना वहाँ 6 महीने तक डेरा डाले रही और 20 मील दायरे के हर घर, मंदिर, इमारत और बस्ती लूटा और जला दिया। इस्लामी सेना ने हम्पी को बंजर भूमि और खंडहर में तब्दील कर दिया।

आज भी हम्पी को कन्नड़ में ‘हालूहम्पी’ (बर्बाद हम्पी) के नाम से जाना जाता है। अपनी पुस्तक ‘द फॉरगॉटेन एम्पायर‘ में रॉबर्ट सेवेल ने लिखा है, “आग और तलवार के साथ वे (मुस्लिम) विनाश को अंजाम दे रहे थे। शायद दुनिया के इतिहास में ऐसा कहर कभी नहीं ढाया गया। इस तरह एक समृद्ध शहर का लूटने के बाद नष्ट कर दिया गया और वहाँ के लोगों का बर्बर तरीके से नरसंहार कर दिया गया।”

हम्पी का हजारों साल पुराना इतिहास

विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी को कभी ‘मंदिरों का नगर’ (City of Temple) कहा जाता था, आज इसे ‘खंडहरों का शहर’ (City of Ruins) कहा जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची (UNESCO World Heritage Sites) में शामिल इस स्थान को देखकर इसके अतीत के वैभव का अंदाजा लग सकता है। इस शहर का हजारों वर्ष पुराना इतिहास है।

हम्पी का वर्णन रामायण और पुराणों में ‘पम्पा देवी तीर्थ क्षेत्र’ के रूप में किया गया है। इसे ‘किष्किंधा’ भी कहा गया है। यहाँ ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के अशोक महान के समय के भी प्रमाण मिल चुके हैं। तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा हम्पी आज 1,600 से अधिक जीवंत अवशेषों का साक्षी है, जिनमें दुर्ग, राजमहल, राजप्रासाद, मंदिर, स्तंभ, मंडप, स्मारक, जल संरचनाएँ आदि शामिल हैं। 

विजयनगर साम्राज्य में वर्तमान के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के भूभाग आते थे। हम्पी राजधानी के अलावा विजयनगर साम्राज्य का प्रमुख व्यापारिक एवं धार्मिक केंद्र भी था। यहाँ रोम से लेकर पुर्तगाल के व्यापारी आते थे। कहा जाता है कि विजयनगर साम्राज्य में हम्पी अपने वैभव के चरमोत्कर्ष पर था और उसे रोम से भी सुंदर शहर कहा जाता था।

रोम से भी सुंदर थी राजधानी हम्पी

15वीं शताब्दी में विजयनगर का दौरा करने वाले फ़ारसी यात्री अब्दुर रज्जाक ने अपने संस्मरणों में हम्पी और विजयनगर का वर्णन किया है। रज्जाक ने लिखा है, “यह देश इतनी आबादी वाला है कि एक इसके बारे में एक विचार व्यक्त करना असंभव है। राजा के खजाने में कई कक्ष हैं, जिनमें पिघलाए हुए सोने भरे हए हैं। देश के सभी निवासी, चाहे उच्च हों या नीच, पूरे तन पर आभूषण पहनते हैं।”

अब्दुर रज्जाक ने राजधानी की भव्यता को लेकर कहा था, “विजयनगर के समान दुनिया में कोई शहर नहीं है। यह ऐसा है कि आँख की पुतली ने कभी इस तरह की जगह नहीं देखी और ना ही बुद्धि के कान को कभी यह सूचित गया है कि पूरी दुनिया में इसके बराबर भी कुछ मौजूद है।” यहाँ 1600 से अधिक हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिर थे। यहाँ का विट्ठल मंदिर और विरुपाक्ष मंदिर विश्व प्रसिद्ध है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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