Thursday, May 2, 2024
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‘विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता’: भगत सिंह ने लिखा था, समझाया भी था… काश उनकी टीशर्ट पहने लोग, ‘लाल-सलाम’ वाली भीड़ इसे पढ़ लेते!

“इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने सर्व-महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी राष्ट्र सेवा एवं समर्पण है, राष्ट्रीय त्याग के अंतिम क्षणों में नौजवानों को क्रांति का यह संदेश, देश के कोने-कोने में पहुँचाना है।”

“सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे न भीरुत्वम्।
तं भुवन त्रयतिलकं जनयति जननी सुतं विरलम्।।”
-हितोपदेश-सुभाषित-श्लोकाः- १.३४

अर्थात: जिसको सुख सम्पत्ति में प्रसन्नता न हो, संकट विपत्ति में दु:ख न हो, युद्ध में भय अथवा कायरता न हो, तीनों लोकों में महान ऐसे किसी पुत्र को माता कभी-कभी ही जन्म देती है।

उक्त श्लोक को चरितार्थ करते हुए 28 सितंबर 1907, पंजाब के जिला लायलपुर, बंगा गाँव (वर्तमान पाकिस्तान) में एक राष्ट्रभक्त सिख परिवार में उत्कृष्ट देशभक्त सरदार भगत सिंह के रूप में वीर बालक का जन्म हुआ। उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई अपितु मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर 23 मार्च 1931 को मात्र 23 वर्ष 6 माह की अल्पायु में ही शहीद होकर सदा सर्वदा के लिए अमर हो गए।

युवता के योग्यतम प्रतीक सरदार भगत सिंह के इस महान बलिदान और त्याग ने देश के जन मानस में आजादी की ऐसी तड़प पैदा कर दी, एक ऐसी क्रांति की अलख जगा दी कि परिणाम स्वरूप देश का हर व्यक्ति आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए, बलिदान होने के लिए स्वेच्छा से आगे आने लगा। भगत सिंह केवल एक नाम ही नहीं अपितु एक श्रेष्ठ विचारधारा हैं, जिसने विभिन्नता वाले इस विशाल भारत देश को संगठित कर डाला। भारत माँ के इस सच्चे सपूत को ‘भारत रत्न’ पुरस्कार भले न मिला हो परन्तु वे अपने आप में ही किसी अनमोल रत्न से कम भी नहीं। उनकी क्रांति की ज्वाला की तपिश आज भी हर भारतवासी के हृदय में कायम है।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भगत सिंह एक अप्रतिम लेखक, पत्रकार, वक्ता, दार्शनिक, कुशल रणनीतिकार और भारतीय क्रांति के दार्शनिक भी थे। ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ रूपी ऊर्जावान उद्घोष के जनक ने अपने एक पत्र में क्रांति के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया था:

“क्रांति का अर्थ अनिवार्य रूप से स्वतंत्र आंदोलन नहीं होता है, विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता यद्यपि यह हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो।”

22 अक्टूबर 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ भगत सिंह संयुक्त रूप से लाहौर के विद्यार्थियों के नाम लिखते हैं, “इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने सर्व-महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी राष्ट्र सेवा एवं समर्पण है, राष्ट्रीय त्याग के अंतिम क्षणों में नौजवानों को क्रांति का यह संदेश, देश के कोने-कोने में पहुँचाना है।”

उनके इस पत्र के माध्यम से देश भर में चल रहे जन आंदोलनों के प्रति उनके विचार स्पष्ट हो जाते हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य था कि कल-कारखानों से लेकर झुग्गी-झोपड़ियों तक क्रांति की ज्वाला भड़क उठे, जिससे अंग्रेज़ी हुकूमत की जड़ें हिल जाएँ और कोई भी अंग्रेज किसी भी रूप में भारतीयों का शोषण ना कर पाए।

मनुष्य स्वयं ही अपना भाग्य निर्माता

“मानवः स्वयस्य भाग्यस्य विधाता स्वयमेव हि। तथ्यमेतद् विजानन्ति ये ते तु निज चिंतनम्।”
प्रज्ञा पुराण २/४०

अर्थात: मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं ही होता है, जो इस तथ्य को समझते हैं, वे अपने चिंतन और प्रयास को श्रेष्ठ उद्देश्यों में ही नियोजित करते हैं।

यदि सरदार भगत सिंह चाह लेते तो कभी भी अंग्रेजों के हाथ न आते। परन्तु आजादी के मतवाले ने पूर्व नियोजित योजना के प्रतिकूल, राष्ट्रहित में स्वयं को उत्सर्ग करना ही श्रेयस्कर समझा। भारत को दासता की बेड़ियों से मुक्त करवाना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। उन्होंने अंग्रेजों के अमानुषिक अत्याचार सहे, अनगिनत यंत्रणाएं झेली! किन्तु न धन का लोभ, न परिवार का मोह ही उन्हें कभी अपने लक्ष्य से डिगा पाया।

भारतवर्ष की आज़ादी का उनका दृढ़ संकल्प अटूट था और यही कारण था कि जिनका आधिपत्य दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर था, एक ऐसा साम्राज्य, जिसके बारे में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता, इतनी शक्तिशाली हुकूमत, मात्र 23 वर्ष के एक नौजवान से भयभीत हो गई थी। आज का आधुनिक युवा वर्ग जो छोटी से छोटी समस्याओं में भी हताश हो जाता है, मनोविकार से घिर जाता, जिसे थोड़े से संघर्ष से डिप्रेशन होने लगता है, उस युवा वर्ग को भगत सिंह के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने अपने एक पत्र में लिखा था:

“जो नौजवान दुनिया में तरक्की करना चाहते हैं, उन्हें वर्तमान युग में महान और उच्च विचारों का अध्ययन करना चाहिए।” (भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज, अराजकतावाद-1)

साम्राज्यवाद का विरोध

तत्कालीन भारतीय समाज तमाम अंध-विश्वास, कुरीतियों, छूत-अछूत, ऊँच-नीच जैसे संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित था। ऐसी सामाजिक व्यवस्था उत्पन्न कर दी गई थी कि समाज में अकारण ही असमानता व्याप्त हो गई थी। धनिक वर्ग मासूमों का शोषण कर रहा था। अंग्रेजों के पश्चात इन काले अंग्रेजों से मुक्ति दिलवाना ही भगत सिंह का दूसरा मुख्य उद्देश्य था।

उनके सिद्धांतों के अनुसार क्रान्ति का अर्थ अंततोगत्वा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना से है, जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य होगा। जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण, जिसे साम्राज्यवाद कहते हैं, समाप्त नहीं कर दिया जाता, तब तक मानवता शर्मसार होती ही रहेगी। वे कहते थे, “क्रांति से हमारा अभिप्राय अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन है।”

63 दिनों का अनशन

यह जेल के दौरान एक अभूतपूर्व घटना है। यद्यपि अनशन पर गाँधीजी की सत्ता स्वीकारी जाती है तथापि भगत सिंह ने भी जेल में निरंतर 63 दिनों तक अनशन किया था। उन्हें असेंबली बम कांड में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। इधर जतीन्द्रनाथ दास सहित कई और क्रांतिकारियों को भी हिरासत में लिया गया! जेल में उन्हें बहुत खराब (सड़ा) भोजन दिया जाता था। जेलों में राजनीतिक कैदियों के साथ बेहतर व्यवहार, साफ़ जगह, अच्छे भोजन, पढ़ने के लिए अखबार एवं किताबों के लिए यह भूख हड़ताल आरम्भ हुई। जेल के अधिकारियों ने सबके अनशन तुड़वाने के लिए तरह-तरह के पशुवत व्यवहार किए और अशोभनीय हथकंडे अपनाए।

क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ के शरीर में जबरन रबड़ की नली से दूध डालने का प्रयास किया गया, इस प्रयास में दूध उनके फेफड़ों में चला गया! वह पीड़ा से भर उठे! मगर उन्होंने हार नहीं मानी! अनशन के 63वें दिन वे शहीद हो गए और अंग्रेज़ी सरकार ने जन आक्रोश से बचने के लिए क्रान्तिकारी दल की सभी माँगे मान ली और इस घटना के पश्चात राजनीतिक कैदियों के साथ भविष्य में उचित व्यवहार किए गए। अपने व्यक्तिगत सुख की परवाह न कर साथियों के हित के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने की तीव्र समर्पण भावना वास्तव में किसी महान नायक के व्यक्तित्व में ही समाहित हो सकती है।

प्रखर लेखक और पत्रकार

भगत सिंह हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बांग्ला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया। अपने ज्वलंत विचारों को लेखनी के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया। उनके लिए पत्रकारिता एक मिशन थी, वे लेख लिखते थे, ताकि लोगों को जागृत किया जा सके, उन्हें यह बताया जा सके कि अंग्रेजों के खिलाफ यदि संगठित नहीं हुए तो ताउम्र कुचले जाते रहेंगे।

भगत सिंह ने आखिरी सांस तक अपने अंदर के पत्रकार और लेखक को मरने नहीं दिया। जेल में बैठकर भी वे लगातार लिखते और पढ़ते रहे थे। शहीद-ए-आजम ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से आजादी की लड़ाई में भाग लिया। एक तरफ जहाँ वे क्रांतिकारी भावना से ओतप्रोत अपने भाषणों से नौजवानों की रगो में दौड़ रहे खून को खौलने पर विवश किया करते थे। वहीं दूसरी तरफ अलग-अलग नामों से लेख लिखकर अपनी बातों को क्षेत्रीय सीमाओं के बंधन से मुक्त रखते थे।

परतंत्रता के उस अत्यंत ही पीड़ादायक और घोर यातनाओं के दौर में, भगत सिंह के अलावा भी अनगिनत देशभक्तों ने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दे दी। उन पूज्य हुतात्माओं के अथक परिश्रम, निरंतर प्रयास, त्याग, तपस्या और बलिदान का ही परिणाम है कि हम स्वतंत्र संवैधानिक राष्ट्र में स्वाँस ले पा रहे हैं। परन्तु आज के आधुनिक दौर में हम कहीं न कहीं उनके महत्वपूर्ण बलिदानों का मोल समझ पाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं। आज जब हमारी वाणी और चेतना, सबकुछ स्वतंत्र है तो हम राष्ट्र को अधिक से अधिक देने की भावना से कोसों दूर बस ‘मैं और मेरा’ के प्रपंच में उलझ कर, अपने मूल कर्त्तव्यों से विमुख होते चले जा रहे हैं।

आज का आधुनिक समाज परिवर्तनशील है। परिवर्तन की इस बेला में आज प्राचीन विचारों एवं आदर्शों के समन्वय की महती आवश्यकता है ताकि भारत का पुनरुत्थान हो सके। हमारे समाज को न सिर्फ एक शहीद भगत सिंह अपितु ऐसे अनेक ऐतिहासिक एवं प्रेरणात्मक व्यक्तित्व से शिक्षा ग्रहण कर, नवीन एवं प्राणवान प्रतिभाओं को एकत्र कर सर्वसामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए नए भारत के निर्माण की अत्यन्त आवश्यकता है।

अंत में इस महान युवा क्रांतिकारी का संदेश आज के युवाओं के नाम:

“किसी ने सच ही कहा है, सुधार वृद्ध नहीं कर सकते। वे तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं, वे हमारा उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। सुधार तो होते हैं युवाओं के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं।”

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Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay
Shubhangi Upadhyay is a Research Scholar in Hindi Literature, Department of Hindi, University of Calcutta. She obtained Graduation in Hindi (Hons) from Vidyasagar College for Women, University of Calcutta. She persuaded Masters in Hindi & M.Phil in Hindi from Department of Hindi, University of Calcutta. She holds a degree in French Language from School of Languages & Computer Education, Ramakrishna Mission Swami Vivekananda's Ancestral House & Cultural Centre. She had also obtained Post Graduation Diploma in Translation from IGNOU, Regional Centre, Bhubaneswar. She is associated with Vivekananda Kendra Kanyakumari & other nationalist organisations. She has been writing in several national dailies, anchored and conducted many Youth Oriented Leadership Development programs. She had delivered lectures at Kendriya Vidyalaya Sangathan, Ramakrishna Mission, Swacch Bharat Radio, Navi Mumbai, The Heritage Group of Instituitions and several colleges of University of Calcutta.

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