Sunday, November 3, 2024
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‘मुस्लिमों का सबसे बड़ा दुश्मन’, शिव के भक्त: ‘आदिवराह’ के सामने अरबों ने भी टेक दिए थे घुटने, 50 साल तक किया राज

नेपाल की भी बाहरी आक्रमणों से रक्षा की। वहीं काबुल में ब्राह्मण राजाओं को उन्होंने संरक्षण दिया और इस्लामी आक्रांताओं से उनकी सुरक्षा की। शिव के उपासक थे, लेकिन पदवी उन्हें विष्णु अवतार 'आदिवराह के नाम पर मिली।'

उत्तर प्रदेश के दादरी में बुधवार (22 सितंबर, 2021) को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं। उससे पहले इस बात को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है कि वो गुर्जर थे या राजपूत? दोनों जातियों के संगठन आमने-सामने हैं, लेकिन यहाँ हम इस विवाद पर बात नहीं करेंगे। गुर्जर और राजपूत, दोनों उन्हें अपना मानते हैं। लेकिन, सम्राट मिहिर भोज एक शिवभक्त हिन्दू थे, जिन्होंने तुर्क-अरब के मुस्लिम आक्रान्ताओं से भारत को बचाया।

आज हम उन्हीं हिन्दू सम्राट के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। हाल की बात करें तो जहाँ वीर गुर्जर महासभा ने सम्राट मिहिर भोज को अपने समुदाय का बताते हुए गर्व जताया है तो कुछ राजपूत संगठनों ने उन्हें गुर्जर समुदाय से जोड़े जाने को इतिहास के साथ छेड़छाड़ करार दिया। मध्य प्रदेश के सतना स्थित नागौद के किले में रहने वाले सम्राट मिहिर भोज के वंशजों के हवाले से उन्हें राजपूत बताया जा रहा है। वहीं गुर्जर साम्राज्य के विस्तार की बात करते हुए ये समाज उन्हें अपना बता रहा है।

इन घटनाओं के बीच सम्राट मिहिर भोज का योगदान कहीं छिप न जाए, इसके हमें ध्यान रखने की जरूरत है। हिन्दू धर्म व भारत देश के प्रति उनके प्रेम और कर्तव्यों को सम्मान देने की जरूरत है। आइए, हम सम्राट मिहिर भोज के संक्षिप्त परिचय से शुरू करते हैं, जिसके बाद हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को खँगालेंगे। 836 ईस्वी से 885 ईस्वी तक शासन करने वाले मिहिर भोज का शासनकाल 49 वर्षों का था।

इन 5 दशकों में भारतीय उप-महाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा उनके मार्गदर्शन में काफी फला-फूला। उनका साम्राज्य मुल्तान से पश्चिम बंगाल में गुर्जरपुर तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला हुआ था। ये वो समय था, जब अरब के इस्लामी कट्टरपंथियों ने साम्राज्य विस्तार शुरू कर दिया था और उनकी नजर सिंधु के पार भारतवर्ष पर थी। उनके पूर्वज नागभट्ट ने ‘गुर्जर देश’ पर विजय प्राप्त की थी, जो राजस्थान व गुजरात के इलाके हैं।

आज का जो अफगानिस्तान है, वहाँ तब ब्रह्मणशाही का शासन हुआ करता था। राजा दाहिर को हराने के बाद अरब-तुर्क मुस्लिम आक्रांताओं ने सोच कि भारत के लिए उनके दरवाजे खुल गए हैं, लेकिन सम्राट मिहिर भोज ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी सेना को मजबूत और विशाल बनाया, ताकि वो आक्रमणकारियों का मुकाबला कर सके। आज के राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, गुजरात, हिमाचल – ये सभी उनके साम्राज्य का हिस्सा थे।

कन्नौज को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया था और वहीं से शासन चलाया करते थे। कृषि और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियाँ लाने वाले मिहिर भोज के राज में प्रजा खुशहाल थी। कन्नौज तो इतना समृद्ध शहर था कि वहाँ 7 किलों के अलावा 10 हजार की संख्या में मंदिर थे। धन-वैभव से सम्पन्न उनके राज्य में सोने-चाँदी के सिक्कों से व्यापार होता था। अपराधियों को उचित दंड दिया जाता था।

यहाँ तक कि उस दौर के अरब यात्री सुलेमान ने भी अपनी पुस्तक में उनका जिक्र किया है और तारीफ की है। सुलेमान ने लिखा है कि किस तरह सम्राट मिहिर भोज की सेना में बड़ी संख्या में ऊँट, हाथी और घोड़े शामिल थे। उसने ‘सिलसिला-उत-तारिका’ में लिखा है कि मिहिर भोज के राज में चोर-डाकुओं का भी नहीं रहता था। उनकी सीमाएँ दक्षिण में राष्ट्रकूट और बंगाल में पालवंश के अलावा मुल्तान में इस्लामी शासकों से सटी हुई थीं।

915 ईस्वी में भारत भ्रमण पर आये बगदाद के इतिहासकार अल मसूदी ने भी ‘मिराजुल-जहाब’ नामक पुस्तक में लिखा है कि मिहिर भोज की सेनाएँ काफी शक्तिशाली व पराक्रमी है। उसने लिखा है कि लाखों की संख्या में ये सेना चारों दिशाओं में फैली हुई है। 873 ईस्वी में जन्मे मिहिर भोज की गाथा स्कंद पुराण के ‘प्रभास खंड’ में भी वर्णित है। कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने भी अपनी पुस्तक ‘राज तरंगिणी’ में उनकी वीरता का जिक्र किया है।

काबुल के ललिया शाही राजा, कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवंतीवर्मन, नेपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा – ये सभी मिहिर भोज के मित्र हुआ करते थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े। उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में मिलाया। अरब शासक इमरान बिन मूसा को धूल चटा कर सिंध को वापस भारतवर्ष का हिस्सा बनाया। काबुल से राँची और हिमालय से आंध्र तक उनकी सीमाएँ विस्तारित हो गई थीं।

उनके सेनापति कनकपाल परमार गुर्जर ने नेपाल की भी बाहरी आक्रमणों से रक्षा की। वहीं काबुल में हिन्दू राजाओं को उन्होंने संरक्षण दिया और इस्लामी आक्रांताओं से उनकी सुरक्षा की। उज्जैन में स्थापित महाकाल के अनन्य भक्त मिहिर भोज की सेना भगवान विष्णु के भी जयकारे लगाती थी। उन्होंने ‘आदिवाराह’ की पदवी भी धारण की, जो उस काल के सिक्कों से पता चलता है। 888 ईस्वी में 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था।

सम्राट मिहिर भोज के काल के जो सिक्के मिले हैं, उसमें यज्ञ वेदी से लेकर रक्षक की आकृतियाँ भी बनी हुई हैं। विष्णु अवतार वराह और सूर्य चक्र की आकृतियाँ भी उनके सिक्कों पर उकेरी जाती थीं। महान सम्राट हर्षवर्धन के काल से ही कन्नौज उनकी राजधानी रही थी और इसीलिए ये एक महत्वपूर्ण नगर था। उनके निधन के बाद गुर्जर-प्रतिहार वंश का शासन प्रारंभ हुआ। इसी वंश के नगभट्ट (725-40 ईस्वी) के नेतृत्व में इस्लामी आक्रांताओं को भगाया गया था।

नगभट्ट के वंश में ही मिहिर भोज का जन्म हुआ और लगभग हार राज्य ने साम्राज्य का विस्तार किया। मिहिर भोज न सिर्फ एक बड़े योद्धा थे, बल्कि वो कला को संरक्षण देना भी भलीभाँति जानते थे। उनके बेटे महेन्द्रपाल ने भी पिता की तरह साम्राज्य की प्रतिष्ठा को बरकरार रखा, लेकिन उसके बाद ये राजवंश कमजोर होता चला गया। 1018 में महमूद गजनी ने कन्नौज में तबाही मचाई। हालाँकि, इसके बाद प्रतिहारों ने कन्नौज को वापस मिलाया, लेकिन तब तक वो काफी कमजोर हो चुके थे। 1090 ईस्वी के बाद वहाँ राठौड़ वंश का शासन था।

उनके प्रतिनिधि अलखाना ने काबुल के ब्रह्मणशाहियों को पूर्व संरक्षण दिया। अलखाना के सेनापति खटाणा के समर्थन से ही ललिया देव ने काबुल को स्वतंत्र कराया था। उन्होंने ही कश्मीर में उत्पलवंशी अवन्तीवर्मन को वहाँ का शासक बनाया, जब 850 ईस्वी आते-आते ललितादित्य मुक्तापीड़ का कर्कोट वंश 850 ईस्वी आते-आते पतन को प्राप्त हो गया था। जिस प्रकार विष्णु अवतार वराह ने पृथ्वी को स्वतंत्र कराया था, उसी तरह म्लेच्छों का विनाश कर मिहिर भोज ने देश को बचाए रखा।

सम्राट मिहिर भोज का विवाह सौराष्ट्र में ही हुआ था और भगवान सोमनाथ के प्रति उनकी बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने खुद अपने बेटे महेंद्र पाल के हाथ में शासन सौंप कर खुद वान्यप्रस्थ आश्रम अपनाया था। अरब यात्री सुलेमान ने तो उन्हें ‘भारत में मुस्लिमों का सबसे बड़ा दुश्मन’ तक करार दिया था। उनके कारण ही भारत में घुसने में मुस्लिम शासकों को 300 वर्ष और लग गए। प्रतिहार वंश ने सहस्रबाहु मंदिर, बटेश्वर मंदिर, कुचामल किला, मिहिर किला, पडावली मंदिर और गुर्जर बावड़ी के अलावा चौंसठ योगिनी मंदिर का भी निर्माण कराया

5 दशकों तक राज करने वाले मिहिर भोज के साम्रज्य के विस्तार को बस इससे समझ लीजिए कि उत्तर-पश्चिम में सतलज नदी से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक उनका ही शासन था। वो विद्वान थे और विद्वानों का आदर करते थे। राज शेखर नाम के एक बड़े कवि उनके दरबार का हिस्सा थे। भारतीय इतिहास के महान राजाओं में से एक मिहिर भोज ने शांति से 50 वर्षों तक शांति से शासन चलाया और आक्रांताओं को दूर रखा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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