कश्मीर घाटी के शोपियाँ जिले में नदीमर्ग गाँव के अर्धनारीश्वर मंदिर में 20 साल के लंबे अंतराल के बाद कश्मीरी पंडितों ने पूजा-अर्चना की। शनिवार (05 अक्टूबर 2024) को हुई इस पूजा के दौरान मंदिर में मूर्ति स्थापना भी की गई। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक घटना है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस मौके पर दूर-दराज के इलाकों से भी लोग आए और पुरानी परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
शोपियाँ के उपायुक्त (डीसी) मोहम्मद शाहिद सलीम डार ने खुद अर्धनारीश्वर मंदिर का दौरा किया। उन्होंने इस मौके को एक नए युग की शुरुआत बताया, जो शांति और समृद्धि की दिशा में एक बड़ा कदम है। डीसी ने मंदिर परिसर में पूजा करने आए श्रद्धालुओं से बातचीत की और उनकी समस्याओं को सुना। इसमें सामुदायिक भवन या यात्रा भवन की स्थापना की माँग प्रमुख रही। इस पर डीसी ने शीघ्र कार्रवाई का आश्वासन दिया, ताकि भविष्य में भी श्रद्धालुओं को उचित सुविधाएँ मिल सकें।
पूजा के दौरान, जिला प्रशासन ने सुरक्षा के साथ-साथ अन्य आवश्यक सेवाओं का भी खास ध्यान रखा। स्थानीय अधिकारियों और अन्य विभागों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि सभी श्रद्धालुओं को सभी सुविधाएँ मिलें और किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो।
इस पूजा आयोजन के दौरान डीसी मोहम्मद शाहिद सलीम डार ने नदीमर्ग गाँव में उन घरों का भी दौरा किया जो कश्मीरी पंडितों के हैं और लंबे समय से खाली पड़े हुए हैं। यह कदम प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस बात की ओर संकेत करता है कि प्रशासन इस समुदाय के पुनर्वास और उनके कल्याण के लिए गंभीर है। इन घरों के दौरे से प्रशासनिक अधिकारियों ने कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है।
20 साल बाद लौटी परंपरा
यह पूजा आयोजन इसलिए खास है क्योंकि नदीमर्ग के अर्धनारीश्वर मंदिर में पिछले 20 सालों से कोई धार्मिक क्रियाकलाप नहीं हुआ था। घाटी में आतंकवाद और तनाव के कारण कश्मीरी पंडितों का इस क्षेत्र से पलायन हुआ, और उनके मंदिर वीरान हो गए थे। लेकिन अब, इस आयोजन ने यह साबित किया है कि धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही है और पंडित समुदाय अपने सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों को पुनः प्राप्त कर रहा है।
कश्मीरी पंडितों का इस तरह से अपने मंदिरों में लौटना और पूजा करना घाटी में नए उम्मीदों और संभावनाओं को जन्म देता है। यह केवल धार्मिक क्रियाकलाप नहीं है, बल्कि यह उस सांस्कृतिक विरासत की पुनर्प्राप्ति है, जो दशकों से खोई हुई थी।