Sunday, June 22, 2025
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‘सक्रिय राजनीति में आना चाहता था, लेकिन…’: CJI रमना ने ‘जजों पर हमलों’ को लेकर जताई चिंता, कहा – लोग करते हैं लंबित मामलों की शिकायत

इस दौरान उन्होंने कहा कि इन दिनों न्यायाधीशों पर शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं। बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के जजों को उसी समाज में रहना होगा, जिस समाज में उन्होंने लोगों को दोषी ठहराया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार(23 जुलाई 2022) को अपने बारे में एक अहम खुलासा किया। उन्होंने बताया कि वह सक्रिय राजनीति में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उनकी नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था।

उन्होंने कहा, “मैं सक्रिय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक था, लेकिन मेरी नियतिमें कुछ और ही लिखा था। जिस चीज के लिए मैंने इतनी मेहनत की थी, उसे छोड़ने का फैसला बिल्कुल भी आसान नहीं था।” CJI ने कहा कि इन वर्षों में, उन्होंने अपना करियर और जीवन लोगों के इर्द-गिर्द रखा। लेकिन बेंच में शामिल होने के बाद अपने सामाजिक संबंधों को पीछे छोड़ना पड़ता है।

हालाँकि CJI ने यह भी कहा कि उन्हें जज होने का कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने कहा कि जज के तौर पर काम करने अवसर काफी चुनौतियों के साथ आया लेकिन इसके लिए उन्हें एक दिन भी खेद नहीं हुआ। उनका कहना है कि यह केवल एक सेवा नहीं, बल्कि आह्वान है। उन्होंने नेशनल यूनिवर्सिटी आफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, राँची द्वारा आयोजित ‘जस्टिस एस बी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर’ पर ‘एक जज का जीवन’ पर उद्घाटन भाषण देते हुए यह बातें कही।

इस दौरान उन्होंने कहा कि इन दिनों न्यायाधीशों पर शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं। बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के जजों को उसी समाज में रहना होगा, जिस समाज में उन्होंने लोगों को दोषी ठहराया है। सीजेआइ एनवी रमना बोले राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को अक्सर उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी सुरक्षा प्रदान की जाती है। विडंबना यह है कि न्यायाधीशों को समान सुरक्षा नहीं दी जाती है। 

न्यायाधीश ने कहा कि कई मौकों पर, उन्होंने लंबित रहने वाले मुद्दों को उजागर किया है। वह जजों को उनकी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के बुनियादी ढाँचे में सुधार की आवश्यकता की पुरजोर वकालत करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जजों के नेतृत्व वाले कथित आसान जीवन के बारे में झूठे नेरेटिव बनाए जाते हैं, जिसे सहन करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रणाली के सभी स्तरों पर लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। जज तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, लेकिन इसे कमजोरी या लाचारी न समझें। जब स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाता है, तो उनके क्षेत्र में बाहरी प्रतिबंधों की कोई आवश्यकता नहीं होती।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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