नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश पीलीभीत जिले में करीब 22 हजार सिख रहते हैं। सिख संगठनों की शिकायत के बाद आशंका जताई जा रही है कि धर्मांतरण के लिए विदेशों से फंडिंग हुई है। रिपोर्टों के अनुसार सिखों का धर्मांतरण करने के लिए पादरी नेपाल से आए थे। साथ ही धर्मांतरित लोगों के घरों में दक्षिण कोरिया के कैलेंडर मिले हैं। उल्लेखनीय है कि पीलीभीत के ग्रामीण इलाके नेपाल की खुली सीमा से सटे हैं।
दैनिक भास्कर ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया है सबसे पहले जिस सिख को ईसाई बनाया गया था, उसका नाम सतनाम सिंह है। वह चरस की तस्करी करता था। टाटरगंज गाँव के रहले वाले सतननाम सिंह को पास्टर बनाया गया। उसने लालच देकर आसपास के गाँवों में ईसाई धर्मांतरण के इस रैकेट को आगे बढ़ाया।
पीलीभीत के बेल्हा गाँव के गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 150 घरों पर क्रॉस के निशान बने हुए हैं। कुछ घरों में प्रार्थना गतिविधियाँ भी हो रही है। उन्होंने बताया है कि शिकायत के बाद प्रशासन ने घरों के बाहर लगे क्रॉस निशान हटवाने का अभियान शुरू किया है। साथ ही करीब 100 घरों में विशेष तरह के कैलेंडर मिलने की बात कहते हुए धर्मांतरण के लिए दक्षिण कोरिया से पैसा आने की आशंका जताई है।
बेल्हा गाँव के गुरुद्वारे में 9 परिवारों की एक सूची भी लगाई है। इन परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करते हुए अपने नाम से सिंह हटाने को कहा गया है। स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरदयाल सिंह के अनुसार 2002 में विदेशी पादरियों ने टाटरगंज के 2 लोगों का लालच देकर धर्मांतरण कराया था। इसके बाद से यही 2 लोग पूरा सिंडिकेट चला रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि ईसाई धर्मांतरण को लेकर पहली FIR 13 मई 2025 को पीलीभीत के हजारा थाने में दर्ज कराई गई थी। टाटरगंज की मनजीत कौर ने 2 लाख रुपए और मकान का लालच देकर ईसाई बनाने का दबाव डालने का आरोप लगाया है। इस एफआईआर में भी सतनाम सिंह का नाम है।
गौरतलब है कि 3000 से अधिक सिखों को ईसाई बनाने का मामला ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल ने उजागर किया था। उसके बाद अन्य सिख संगठन और प्रशासन हरकत में आया। पिछले दिनों करीब 500 सिखों की घर वापसी भी कराई गई थी। सीमा से सटे इलाकों में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जागरुकता अभियान भी चला रही है।