सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 फरवरी 2025) को कहा कि बच्चों की शिक्षा के मामले में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और यह बात रोहिंग्या के बच्चों पर भी लागू होती है। दरअसल, ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सुविधाओं की माँग की है। इनमें बच्चों की मुफ्त शिक्षा भी शामिल है। वहीं, पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने रोहिंग्या मुस्लिमों को नागरिकता देने की माँग की है।
पप्पू यादव ने कहा कि देश में रोहिंग्या-रोहिंग्या होते रहता है। पूरी दुनिया में इनकी संख्या सिर्फ 17 लाख है। उन्होंने कहा कि जो लोग भारत में लंबे समय से रह रहे हैं, उन्हें भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स बिल 2025 पर पप्पू यादव ने कहा, “मैं इमिग्रेशन बिल का समर्थन करता हूँ, लेकिन पिछले 10-12 सालों में क्या वे यह पता लगा पाए हैं कि हमारे देश में कितने अप्रवासी हैं? वे सिर्फ़ वोट बैंक के लिए रोहिंग्याओं की बात करते हैं… सरकार को उन लोगों को नागरिकता देनी चाहिए जो लंबे समय से यहां रह रहे हैं…।”
#WATCH | Delhi: On Immigration and Foreigners Bill 2025, Independent MP from Purnea Pappu Yadav, says, "… I support the government for the Immigration Bill, but in the last 10-12 years, have they been able to find out how many immigrants are there in our country? They only talk… pic.twitter.com/kmFAQPspvS
— ANI (@ANI) February 13, 2025
रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा दायर याचिका में कोर्ट से ये निर्देश देने की माँग की गई थी कि रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश और सरकारी लाभ दिया जाए। इसके लिए आधार कार्ड अनिवार्यता और उनकी नागरिकता की स्थिति की परवाह ना की जाए। इस मामले पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने की।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने पीठ के समक्ष कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी एक निराशाजनक स्थिति का सामना कर रहे हैं। इस पर न्यायालय ने कहा, “हमें छात्रों और उनके माता-पिता के बारे में बताएँ। वे कहां रह रहे हैं? हमें घर का नंबर, परिवारों की सूची, उनके रहने के सबूत दें। हमें पंजीकरण संख्या आदि दिखाएँ। हम देखेंगे कि क्या किया जा सकता है।”
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ को निर्देश दिया था कि वह कोर्ट को बताए कि दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थी कहाँ-कहाँ बसे हुए हैं और उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ मिली हुई हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ को स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश से वंचित रखा जाता है, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है।
कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, “वे शरणार्थी हैं, जिनके पास UNHCR (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) कार्ड हैं और इसलिए उनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकते। लेकिन, आधार कार्ड के अभाव में उन्हें सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि रोहिंग्या शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में झुग्गियों में और खजूरी खास में किराए के मकानों में रह रहे हैं।
बता दें कि इस एनजीओ द्वारा दायर याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकारों को निर्देश देने की माँग की गई है कि वे रोहिंग्या बच्चों को आधार कार्ड या भारतीय नागरिकता न होने के बावजूद मुफ्त शिक्षा दें। जनहित याचिका में आगे माँग की गई थी कि इन रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ को सरकार द्वारा पहचान पत्र माँगे बिना कक्षा 10, 12 और स्नातक सहित सभी परीक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए।