Thursday, May 2, 2024
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हिंदी नहीं आती, बेल दीजिए: बॉम्बे हाई कोर्ट का इनकार, कहा- हिंदी राष्ट्रभाषा; कॉन्ट्राबैंड के साथ पकड़ा गया था

एंटी नारकोटिक्स सेल ने मुंबई से गिरफ्तार करने के बाद आरोपित को उसके वैधानिक अधिकारों के बारे में हिंदी में बताया था, लेकिन उसने खुद को तेलुगु भाषी बताते हुए राहत की गुहार लगाई थी।

हैदराबाद के एक तेलुगु भाषी व्यक्ति ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका देकर पूछा कि क्या हिंदी राष्ट्रभाषा है? हाई कोर्ट ने जवाब ‘हाँ’ में देते हुए उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद याचिकाकर्ता गंगम सुधीर कुमार रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रूख किया है।  

याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दलील दी थी कि एंटी नारकोटिक्स सेल ने उसे उसके अधिकारों के बारे में हिंदी में बताया, जबकि वह सिर्फ तेलुगु जानता है। कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी खारिज करते हुए तर्क दिया कि टूर और ट्रैवल का कारोबार करने वाले को राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान होना चाहिए।

जानकारी के मुताबिक हैदराबाद के गंगम सुधीर कुमार रेड्डी का टूर और ट्रैवल का कारोबार है। एंटी नारकोटिक्स सेल ने उसे मुंबई से गिरफ्तार किया था। उसकी कार में पर्याप्त मात्रा से ‘कॉन्ट्राबैंड’ बरामद हुई थी। एंटी नारकोटिक्स सेल ने उसके वैधानिक अधिकारों के बारे में हिंदी में बताया, जबकि रेड्डी का कहना था कि उसे सिर्फ तेलुगु ही समझ आती है। 

रेड्डी की दलील थी कि उसके मामले में एनडीपीएस कानून की धारा 50 का पालन नहीं हुआ। अर्जी खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, “दलीलें यह दर्शाती हैं कि आवेदक को हिंदी में धारा 50 के तहत उसके वैधानिक अधिकारों के बारे में बताया गया था। हालाँकि उसने यह तर्क दिया है कि वह हिंदी नहीं समझता है। एक बार जब आवेदक ने यह दावा किया है कि वह टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस कर रहा है तो ऐसे बिजनेस को करने वाले व्यक्ति के लिए राष्ट्रीय भाषा और कम्युनिकेशन स्किल से परिचित होना बुनियादी आवश्यकता है। आवेदक को हिंदी में उसके अधिकार के बारे में बताया गया था जो कि राष्ट्रीय भाषा है।” अब रेड्‌डी ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसमें कहा गया है कि हाई कोर्ट यह नहीं मान रहा कि हिंदी एक राष्ट्रभाषा नहीं है।  

याचिका में दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को आधार बनाया गया था, जिसमें कहा गया था कि हिरासत में रखे गए व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत इसका आधार जानने का मौलिक अधिकार है और संबंधित व्यक्ति को इससे जुड़ी जानकारी उसी भाषा में उपलब्ध करानी होगी, जिसे वह समझता है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि केवल इसलिए कि एक कैदी अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में दस्तखत करने या कुछ शब्द लिखने में सक्षम है, यह नहीं समझा जाना चाहिए कि वह संबंधित भाषा से वाकिफ है। इस बात का आकलन करना जरूरी है कि कैदी को संबंधित भाषा की ‘पर्याप्त जानकारी’ है या नहीं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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