Monday, April 21, 2025
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जैन, बौद्ध, सिख… सब पर लागू है हिंदू मैरिज एक्ट, इसके तहत ही मिलेगा तलाक: MP हाई कोर्ट, कहा- ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ मिलने से नहीं हो जाते बाहर

जैन दंपती को हिंदू फैमिली एक्ट के तहत तलाक देने से फैमिली कोर्ट ने इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया है। कहा है कि यह कानून जैन, बौद्ध, सिख सब पर लागू हैं।

हिंदू मैरिज एक्ट जैन, बौद्ध और सिखों पर भी लागू होता है। इनसे जुड़े विवाह और तलाक के मामले में भी इसी कानून के दायरे में आते हैं। ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ मिलने के कारण ये इस अधिनियम के दायरे से बाहर नहीं होते। यह बात मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक फैसले में कही है।

जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और संजीव एस कलगाँवकर की बेंच ने सोमवार (24 मार्च, 2025) को एक जैन दंपति के तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की शादी 2017 में हुई थी। बाद में दंपति अलग रहने लगे। उन्होंने तलाक के लिए हिंदू मैरिज एक्ट के तहत फैमिली कोर्ट में आवेदन दिया।

उनकी याचिका पर 8 फरवरी को इंदौर फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई की। उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक देने की अर्जी को अस्वीकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि जैन एक अल्पसंख्यक समुदाय में आता है। इस धर्म से जुड़े किसी व्यक्ति को विपरीत मान्यता रखने वाले धर्म के कानून का लाभ देना उचित नहीं है।

गौरतलब है कि जैन समुदाय को 2014 से ही अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 खंड सी की शक्तियों के अनुसार जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया है। लेकिन इसके तहत जैन समुदाय के सदस्यों को किसी भी वर्तमान कानून के दायरे से बाहर करने का संशोधन नहीं किया गया है।

इसके बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने हाई कोर्ट में अपील की और तर्क दिया कि उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। उनकी इस अपील पर जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और संजीव एस कलगाँवकर की पीठ ने सुनवाई करते हुए माना कि जैन भी हिंदू मैरिज एक्ट के दायरे में आते हैं।

पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट के जज ने यह कहकर गंभीर गलती की है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के प्रावधान जैन समुदाय पर लागू नहीं होते। यह आदेश विवादित है। लिहाजा इसे रद्द किया जाता है। हाई कोर्ट ने 13-बी के तहत दायर याचिका को वापस कर फैमिली कोर्ट अधिनियम धारा 7 के तहत प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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