भारत में भी कोरोना वायरस को लेकर अन्य देशों की तरह शुरू में डर का माहौल था, क्योंकि किसी को इस बारे में ज्यादा कुछ पता ही नहीं था। लेकिन, चरणबद्ध तरीके से केंद्र सरकार द्वारा किए गए प्रयासों और इसके प्रति जनता के धीरे-धीरे जागरूक होने के कारण हम सही समय पर इस वैश्विक महामारी से उबरे। अभी तक भारत में 1 करोड़ से अधिक कोरोना मामले आ चुके हैं और लगभग 97 लाख लोग स्वस्थ हो चुके हैं। यहाँ हम कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई की पूरी टाइमलाइन को देखेंगे और जानेंगे कि इसकी शुरुआत से अब तक भारत इस महामारी से कैसे जूझकर उबर रहा है।
ऐसे में, आइए एक नजर इस पर डालते हैं कि 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में आखिर ये सब कैसे संभव हुआ, जब भारत से चार गुना कम जनसंख्या और वाले अमेरिका में इतनी तबाही मची कि वो अब भी कुल सक्रिय मामलों में नंबर एक पर बना हुआ है। वो भी तब, जब विकास और संसाधन के मामले में भारत तो दूर, वो दुनिया के किसी भी देश से आगे है। जबकि भारत अब शीर्ष 10 से लगभग बाहर हो चुका है।
जहाँ सितम्बर में भारत में प्रतिदिन लगभग 1 लाख कोरोना मामले आ रहे थे, अब ये आँकड़ा 20,000 के रेंज में पहुँच चुका है। इससे भी बड़ी बात है ज्यादा से ज्यादा लोगों का ठीक होना। यहाँ हम एयरपोर्ट्स स्क्रीनिंग से लेकर सही समय पर लगे लॉकडाउन और सरकारी की मशीनरी की सक्रियता का विश्लेषण करते हुए आपको शुरू से लेकर अब तक की कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई कैसी रही, इस बारे में बताएँगे।
कोरोना टाइमलाइन: जब भारत सरकार की सजगता का विपक्ष बना रहा था मजाक
दिसंबर 2019 के अंत में चीन ने कोरोना वायरस को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन को रिपोर्ट दी, जिसके बाद WHO ने इसके खतरों को लेकर दुनिया के अन्य देशों को अवगत कराया। जनवरी 30, 2020 को भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का पहला केरल से मामला सामने आया। फ़रवरी 3, 2020 को ये संख्या बढ़ कर 3 हो गई। लेकिन, ये सभी चीन के वुहान से लौटे छात्र थे, जो कोरोना वायरस का हब था।
जब इसकी चर्चा हो रही है तो उससे पहले हमें एयर इंडिया के वुहान मिशन की बात करनी होगी, जहाँ से भारत के एक-एक छात्र को सुरक्षित निकाला गया। 70 सालों के इतिहास में एयर इंडिया का ये पहला ‘मेडिकल Evacuation’ था। कोरोना वायरस संक्रमण के हब से एक-दो नहीं बल्कि 647 भारतीयों को सकुशल वापस लाया गया। क्रू को होम क्वारंटाइन करने से लेकर यात्रियों को मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों से अवगत कराने तक, हर चीज का ख्याल रखा गया।
यहाँ तक कि इन फ्लाइट्स के साथ डॉक्टर्स भी भेजे गए। इराक, जॉर्डन और कुवैत से भारतीय नागरिकों को निकाल कर वापस लाने में अहम किरदार निभाने वाले कैप्टन अमिताभ सिंह को इसकी पूरी जिम्मेदारी दी गई थी। मार्च शुरू होते-होते भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा होने लगा और इसमें अधिकतर विदेश से लौटे लोग थे। सऊदी अरब से लौटे एक 76 वर्षीय बुजुर्ग के रूप में भारत में कोरोना के कारण पहली मौत हुई।
मार्च 4 को जो 22 मामले सामने आए, उसमें से 14 इटली से लौटे 14 सदस्यीय पर्यटन दल शामिल था। जर्मनी और इटली से लौटे एक सिख उपदेशक को ‘सुपर स्प्रेडर’ माना गया क्योंकि उसने आनंदपुर साहिब में एक कार्यक्रम अटेंड किया था और कुल 27 मामले अकेले उसके कारण आए थे। हालाँकि, भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे बड़ा फैलाव तबलीगी जमात के रूप में आया, लेकिन उससे पहले हम भारत सरकार कि दूरदर्शिता की बात करते हैं।
जनवरी में जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को लेकर उतनी सजगता नहीं थी, तभी भारत ने एयरपोर्ट्स पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। सबसे पहले चीन से आने वाले यात्रियों की कोरोना टेस्टिंग की व्यवस्था की गई। पहले तो ये 7 एयरपोर्ट्स तक ही सीमित था, लेकिन बाद में देश के 20 एयरपोर्ट्स पर ये व्यवस्था की गई। इतना सब कुछ जनवरी में ही कर लिया गया था। फरवरी में थाईलैंड और सिंगापुर सहित 9 देशों के यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग होने लगी।
फरवरी खत्म होते-होते भारत सरकार की समझ में या गया कि अब सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला है क्योंकि तब पूरी दुनिया में ये वायरस तेजी से पाँव पसार रहा था। हालाँकि, भारत में बाकी विपक्षी नेता तब ये कह रहे थे कि पीएम मोदी जानबूझ कर कोरोना का हौव्वा बना रहे हैं, क्योंकि वो CAA से ध्यान बँटाना चाहते हैं। उन नेताओं में ममता बनर्जी भी शामिल थीं, जिनका राज्य आज सक्रिय संक्रमितों की संख्या में शीर्ष 5 में है। ममता बनर्जी का कहना था कि दिल्ली दंगों से ध्यान भटकाने के लिए न्यूज़ चैनल्स कोरोना की खबरें दिखा रहे हैं।
मार्च शुरू होते ही भारत सरकार के 7 मंत्रालयों ने क्वारंटाइन फैसिलिटी की व्यवस्था करनी शुरू की। सरकार को पता था कि संक्रमितों के रहने और भोजन-पानी व सैनिटाइजेशन के लिए उचित जगह की व्यवस्था होनी चाहिए, इसीलिए पहले से ही प्रयास शुरू कर दिए गए। 7 मंत्रालयों ने मिल कर कंटेन्मेंट प्लान पर काम करना शुरू किया। प्रोटेक्टिव और मेडिकल मटेरियल के लिए टेक्सटाइल मंत्रालय तक को तैयार रहने को कह दिया गया।
भारत के हर राज्य में हेल्पलाइन नंबर्स सेट किए गए, ताकि कोई भी कोरोना संक्रमित होने या इसके शक होने पर सूचना दे सके। साथ ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रखने के लिए एक टास्क फोर्स भी बनाया गया। इस दौरान भी विपक्षी नेता लगातार शाहीन बाग और CAA पर अटके रहे, लेकिन पीएम मोदी की सक्रियता के बाद उन्होंने कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे प्रभाव को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया।
लॉकडाउन का भी विरोध हुआ। राहुल गाँधी पूछने लगे कि बिना किसी नोटिस का लॉकडाउन क्यों लगाया गया? वो रोजमर्रा की चीजे बेचने वाले दुकानदारों और कारोबारियों की पीठ पर बन्दूक रख कर हमला करने लगे। साथ ही सरकार को उस न्याय योजना को लागू करने की सलाह देने लगे, जिसे देश की जनता ने 2019 लोकसभा चुनाव में ही नकार दिया था। वीडियो बना कर वो पैकेज की बात करने लगे। बाद में पैकेज आया तो उसमें भी खामियाँ निकाली गईं।
जनता कर्फ्यू: जब PM मोदी ने जनता को कोरोना के खिलाफ बड़ी लड़ाई के लिए तैयार किया
अब आते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस कदम की, जिसकी प्रशंसा देश-विदेश में हर जगह हुई। पीएम मोदी चाहते थे कि अचानक से सरकार के कोई कड़े फैसले लेने के कारण जनता पैनिक मोड में न चली जाए, इसीलिए उन्हें कोरोना के खिलाफ खतरे से आगाह करने के लिए और इस लड़ाई से उन्हें सीधे जोड़ने के लिए उन्होंने खुद पहल की और मार्च 22, 2020 को रविवार को ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान किया।
उन्होंने जनता से कहा कि वो स्वेच्छा से एक दिन घर में रहें और बाहर न निकलें। साथ ही शाम को थाली बजाने व दीपक जलाने की भी अपील की। असर ये हुआ कि बच्चों-बूढ़ों से लेकर महिलाओं तक, हर कोई कोरोना के खतरों से आगाह हो गया और पीएम मोदी की अपील पर थाली व घंटा बजा कर मेडिकल कर्मचारियों व कोरोना वॉरियर्स का धन्यवाद किया गया। मुश्किल परिस्थितियों में भी देश भर में उस दिन एक अलग ही नजारा मिलने को मिला।
लेकिन, मार्च में ‘जनता कर्फ्यू’ और फिर उसके बाद सम्पूर्ण लॉकडाउन के बीच दिल्ली में तबलीगी जमात का मुख्यालय दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज संक्रमण का एक ऐसा हॉटस्पॉट बन कर उभरा, जहाँ सरकारी दिशानिर्देशों और मेडिकल सलाहों की जम कर धज्जियाँ उड़ाई गईं। मौलाना साद के नेतृत्व में वहाँ जमे 2500 लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखा और कोरोना को लेकर जम कर दुष्प्रचार फैलाया।
तबलीगी जमात: कोरोना के खिलाफ लड़ाई में रोड़ा बना मरकज
दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित मरकज़ में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हजारों लोग शरीक हुए और इसके सदस्यों और उनके प्राइमरी संपर्कों को मिला दें तो कुल 9000 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था। इन सबके लिए जिम्मेदार था मौलाना साद, जिसने मरकज में मुस्लिमों से कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण से लोगों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। उसने ये भी कहा कि डॉक्टरों की सलाह भी मानने की जरूरत नहीं है।
उसने इस्लाम में सोशल डिस्टेंसिंग के हराम होने की भी बात कही। साथ ही डॉक्टरों की सलाहों को इस्लाम में पाबंदी की बात करते हुए न मानने की सलाह दी। मरकज में रोज इस तरह मजमा लगता था और खासकर जुमे के बाद इसी तरह की बातें की जाती थीं। पुलिस ने वहाँ से जो लैपटॉप जब्त किया, उसमें उसके 350 ऑडियो क्लिप्स मिले। यहाँ तक कि यूट्यूब पर भी ये ऑडियो और वीडियो अपलोड कर के भ्रम फैलाया जाता था। मीडिया फिर भी उसका बचाव करता रहा।
इसके अलावा सबसे खतरनाक बात ये थी कि जहाँ भी तबलीगी जमात व उसके संपर्कों को ट्रेस करने के लिए पुलिस पर कई राज्यों में मुस्लिम बहुल इलाकों में हमले हुए। यहाँ तक कि मेडिकल कर्मचारियों तक को नहीं बख्शा गया। बिहार के दरभंगा और मधुबनी और चंपारण में ऐसे हमले हुए। इंदौर के मुस्लिम बहुल इलाके में डॉक्टरों की टीम पर हमला किया गया। यूपी के मुरादाबाद में मेडिकल टीम के कई लोगों को मार-मार कर घायल कर दिया गया।
इसी तरह राँची का हिंदपीढ़ी कोरोना हॉटस्पॉट बना और वहाँ भी कुर्बान चौक पर मेडिकल टीम पर हमला हुआ। इंदौर में मुस्लिम भीड़ ने मेडिकल टीम को निशाना बनाया। इसके अलावा अजमेर दरगाह क्षेत्र का मुस्लिम बहुल मोची मोहल्ला कोरोना हॉटस्पॉट बना। जयपुर के रामगंज में रहमानिया मस्जिद वाला क्षेत्र कोरोना हॉटस्पॉट बना। ये सघन मुस्लिम बहुल इलाका था, जहाँ ओमान से एक युवक के आने के बाद स्थिति काफी बिगड़ने लगी।
#AmitShahOnRepublic | Whoever is guilty, no matter who they are or how big, they will be taken to task: Union Home Minister @AmitShah being asked about Maulana Saad https://t.co/jghcajZuXf pic.twitter.com/7x5zMCNg9L
— Republic (@republic) May 31, 2020
तबलीगी जमात के मामले में ये सबसे बड़ी समस्या थी कि वो लोग यहाँ कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज करा-करा कर और मरकज में रह कर अपने-अपने मुस्लिम बहुल इलाकों में लौट गए थे। दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी कि इनमें 1300 से भी अधिक विदेशी नागरिक थे, जो जमात का प्रचार-प्रसार करने के लिए दुनिया भर में घूमते हैं। वो विभिन्न मस्जिदों में ठहरे हुए थे। वहाँ से निकाल-निकाल कर उन्हें क्वारंटाइन करना और उनके सम्पर्क में आए लोगों को ट्रेस करना खासा मुश्किल था।
मौलाना साद को बचाने के लिए लिबरल गिरोह ने भी तमाम तिकड़म भिड़ाई। जमात ने कहा कि मौलाना के ऑडियो और वीडियो के साथ छेड़छाड़ किया है। कई पत्रकारों ने इसे हिन्दू कार्यकर्ताओं की साजिश बताया। कुछ ने तो मंदिरों में भीड़ की पुरानी तस्वीरें शेयर कर के इससे तुलना की। वैष्णो देवी में यात्रियों के कोरोना पॉजिटिव होने की फेक न्यूज़ फैलाई गई। कई विपक्षी नेताओं ने मुस्लिमों को बदनाम करने का आरोप लगाया। दिल्ली में एक ऐसा समय भी था जब 669 में 430 मामले अकेले जमातियों के थे।
भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई: सही समय पर लगा लॉकडाउन, WHO ने भी की थी तारीफ
बाकी देशों और भारत के बीच कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में एक अंतर ये रहा कि लॉकडाउन काफी सही समय पर लगाया गया। जैसा कि हमने ऊपर बताया, पहले पीएम मोदी ने ‘जनता कर्फ्यू’ के जरिए इसमें जन भागीदारी सुनिश्चित कर जनता को इसके लिए तैयार और जागरूक किया। सबसे पहले तो मार्च 24 को पीएम मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए 21 दिनों के सम्पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान किया।
ये बताना ज़रूरी है कि जब देश में लॉकडाउन लगाया गया, तब तक यहाँ कोरोना के खुल 500 संक्रमित मामले थे। विशेषज्ञों ने माना कि सही समय पर लॉकडाउन लगाने से कोरोना संक्रमण की वृद्धि दर में काफी कमी आई और अगर ये नहीं लगाया गया होता तो इसके मामले इससे कई गुना ज्यादा होते। पहले लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद सभी राज्य (व केंद्र शासित प्रदेशों) की सरकारों ने इसे बढ़ाने का सुझाव दिया।
इन सबके दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार सभी मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठकें की और उनके सुझावों को सुना, उन्हें सलाह दी। अप्रैल 14 को पीएम मोदी ने 1 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान किया। मई 17 को फिर से इसे महीने की अंतिम तारीख तक बढ़ा दिया गया। इसके बाद घोषणा की गई कि अब देश धीरे-धीरे खुलने के लिए तैयार हो रहा है और इसके लिए क्रमबद्ध तरीके से दिशानिर्देश जारी किए गए।
हाँ, कई राज्यों ने जरूर इस बीच लॉकडाउन को संक्रमितों की संख्या के हिसाब से जारी रखा। महाराष्ट्र में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे। दिल्ली में भी यही हाल था। इसके बाद पुणे नया हॉटस्पॉट बन कर उभरा। जून में अनलॉक के नियमों के तहत केंद्र सरकार ने ढील देनी शुरू की। पर कन्टेनमेंट जोन्स को चिह्नित कर के वहाँ पाबंदियाँ यथावत रखी गईं। उत्तर प्रदेश में ये काम काफी मुस्तैदी के साथ किया गया, खासकर आगरा जैसे शहरों में।
लॉकडाउन में सबसे बड़ी समस्या थी – लोगों तक जरूरत के समान पहुँचाना। खासकर खाद्य पदार्थों को उन तक पहुँचाना। इसके बाद सरकार ने सभी इ-कॉमर्स वेबसाइटों के साथ बैठक की और प्रोडक्ट्स की निर्बाध सप्लाई सुनिश्चित की, ताकि लोगों को बाहर न निकलना पड़े। इधर खुद पीएम मोदी को लोगों से अपील करनी पड़ी कि कोरोना के फ्रंटलाइन वर्कर्स जैसे मेडिकल और सुरक्षा कर्मचारियों के साथ भेदभाव न किया जाए। पुलिस व डॉक्टरों के साथ बदसलूकी की 25 खबरें हमनें कम्पाइल कर के प्रकाशित की।
लॉकडाउन के दौरान घरेलू समाग्रियों की दुकानों, जिनसे खरीददारी के बिना लोगों का काम नहीं चल सकता था – उन्हें खुली रखने के लिए समयसीमा तय की। जनता के ‘Panic Buying’ से बचने के लिए ऐसा किया गया। सरकार ने ‘डोर टू डोर डिलीवरी सिस्टम’ की व्यवस्था की। पुलिस से कहा गया कि वो डिलीवरी एजेंट्स को न रोकें। इन सबके बीच Evacuation कार्य जारी रहा। इरान से 277 भारतीयों को रेस्क्यू किया गया।
अप्रैल में WHO ने भी भारत के लॉकडाउन को ‘कड़ा और सामयिक’ बताया। संस्था ने कहा कि प्रभावी सोशल डिस्टेंसिंग नियमों, जनता तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाने में सक्रियता और ट्रेसिंग व आइसोलेशन की समुचित व्यवस्था होने के कारण वायरस को रोकने के रास्ते में भारत निकल पड़ा है। WHO ने कहा कि कई विशाल चुनौतियों के बावजूद भारत विश्वमारी के खिलाफ इस लड़ाई में गजब की प्रतिबद्धता दिखाई है।
इन सबके बीच सितम्बर में एक ऐसा मौका भी आया जब कोरोना वायरस संक्रमण भारत में अपने चरम पर पहुँच गया, लेकिन सरकार और सरकारी संस्थाओं ने हार नहीं मानी और अपने काम में लगे रहे। जब 1 दिन में 1 लाख के करीब मामले आ रहे थे, तब टेस्टिंग की संख्या बढ़ाने पर पूरा जोर दिया गया। टेस्ट्स की संख्या बढ़ने से मरीजों और उनके सम्पर्कों को ट्रेस कर के क्वारंटाइन या होम क्वारंटाइन करने में सुविधा हुई। नतीजा ये निकला कि सितम्बर के बाद से ही संक्रमितों की संख्या वाला ग्राफ गिरने लगा।
सरकार के हर कदम की निंदा करता रहा मीडिया का एक वर्ग
भारत सरकार के इन सभी प्रयासों के बीच मीडिया का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था, जो लगातार सरकार के हर कदम की आलोचना में लगा हुआ था। मीडिया के इस वर्ग ने लॉकडाउन न लगने पर सवाल उठाया कि भारत सरकार कुछ कर क्यों नहीं रही है और जब सरकार सक्रिय हुई तो उसने हर फैसले की आलोचना शुरू कर दी। ‘जनता कर्फ्यू’ को लेकर खूब मजाक किया गया और पूछा गया कि क्या थाली बजाने से कोरोना भाग जाएगा?
उसी दिन मुरादाबाद के ईदगाह मैदान में हजारों लोग सीएए और एनआरसी के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने के लिए जुट गए। आयोजकों ने एक साजिश के तहत 21 मार्च की रात से ही मैसेज वायरल कर हजारों लोगों को इकट्ठा किया। इसके बाद सुबह जहाँ पूरा शहर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए घरों में कैद था, वहीं ईदगाह मैदान में प्रदर्शनकारी धरने पर थे। लखनऊ स्थित घंटाघर के नीचे कई महिलाओं ने धरना देकर पीएम मोदी की इस अपील का मखौल उड़ाया।
‘जनता कर्फ्यू’ का मजाक उड़ाते हुए लिबरल गिरोह ने कहा कि जहाँ पूरा देश कोरोना की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक उपायों में लगा हुआ है, पीएम मोदी यहाँ लोगों से थाली बजवा रहे हैं। जबकि न तो सरकार, न ही पीएम ने कभी कहा कि थाली बजाने और दिए जलाने से कोरोना भाग जाएगा। ये सब कोरोना वारियर्स के सम्मान में किया गया। जनता को सम्पूर्ण लॉकडाउन के लिए तैयार करने के लिए किया गया। उन्हें जागरूक करने के लिए, हिम्मत देने के लिए।
मीडिया ने ये भी भ्रम फैलाया कि कोरोना संक्रमण के बीच जब फलाँ देश शिक्षा को लेकर डिजिटल हो रहे हैं, भारत सरकार ऐसा कुछ नहीं कर रही। ये सब इसके बावजूद कहा गया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पहले ही 30 से अधिक डेडिकेटेड चैनल्स सिर्फ पठन-पाठन के काम में लगाए हुए थे। पूरे कोर्स और इससे जुड़े वीडियोज को ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया। एप के जरिए शिक्षा की व्यवस्था की गई।
टीवी चैनलों के अलावा, कोविड-19 महामारी के बाद, एनआईओएस द्वारा स्वयं प्रभा डीटीएच चैनल पाणिणी (#27), एनआईओएस चैनल शारदा (#28) एवं एनसीईआरटी के चैनल किशोर मंच (#31), के माध्यम से केवीएस, एनवीएस और सीबीएसई तथा एनसीईआरटी के सहयोग से स्काइप के जरिए लाइव सेशन के प्रसारण की शानदार अनूठी पहल की गई। स्वयंप्रभा उनके लिए लर्निंग का एक प्रभावी टूल है, जिनके घरों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
इन सबके बीच सबसे बड़ी बात थी कि गरीबों का क्या? मीडिया की तमाम आलोचनाओं के बीच सरकार ने गरीबों के लिए राशन की व्यवस्था को अपना सर्वोपरि ध्येय बनाया। अप्रैल-जून के बीच तीन महीनों में 20 करोड़ गरीब परिवारों के जनधन खातों में सीधे 31 हजार करोड़ रुपए जमा करवाए गए। इस दौरान 9 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपए जमा हुए। अभी हाल ही में दिसंबर में किसानों को दूसरी क़िस्त भी मिली।
कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में गरीबों को भारत सरकार ने दी सबसे ज्यादा प्राथमिकता
80 करोड़ से ज्यादा लोगों को 3 महीने का राशन, यानी परिवार के हर सदस्य को 5 किलो गेहूँ या चावल मुफ्त दिया गया। इसके अतिरिक्त प्रति परिवार हर महीने एक किलो दाल भी मुफ्त दी गई। पीएम ने एक बार कहा भी था कि एक तरह से देखें तो, अमेरिका की कुल जनसंख्या से ढाई गुना अधिक लोगों को, ब्रिटेन की जनसंख्या से 12 गुना अधिक लोगों को, और यूरोपियन यूनियन की आबादी से लगभग दोगुने से ज्यादा लोगों को सरकार ने मुफ्त अनाज दिया।
त्यौहारों के समय में जब दशहरा और दीपावली-छठ आने वाला था, तब सरकार ने इन योजनाओं को 3 महीने के लिए फिर से बढ़ाया। जब गरीबों के लिए इतना सब कुछ किया जा रहा था, तब मीडिया का यही वर्ग अर्थव्यवस्था का रोना रोने लगा। अगर लोगों की जान बचानी थी तो अर्थव्यवस्था का इस कोरोना काल में गिरना स्वाभाविक था। पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा था। लेकिन, भ्रम ऐसे फैलाया गया जैसे सिर्फ भारत में ही इसका असर हो रहा हो।
अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज का ऐलान
इसी बीच भारत सरकार एक ऐसा इकोनॉमिक पैकेज लेकर आई, जिससे न सिर्फ अर्थव्यवस्था को नया जीवन मिला, बल्कि उद्योग-धंधों और कारोबारों को भी फिर से खड़ा होने का संबल मिला। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत नाबार्ड के माध्यम से किसानों के लिए अतिरिक्त इमरजेंसी वर्किंग कैपिटल फंडिंग के 30,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। भारत सरकार ने कुल 20 लाख करोड़ (भारत की GDP का 10%) के इकनोमिक पैकेज का ऐलान कर न सिर्फ इसके खर्चों का हिसाब दिया, बल्कि इसकी प्रगति रिपोर्ट भी जनता के समक्ष पेश की।
यदि GDP के आँकड़ों को वार्षिक क्वॉर्टर आन क्वॉर्टर में देखा जाता है, तो भारत के प्रदर्शन में आपको सुधार दिखेगा। उदाहरण के लिए, क्वॉर्टर आन क्वॉर्टर आधार पर, पहली तिमाही में भारत की गिरावट -29.3% थी। यह संख्या दक्षिण अफ्रीका के लिए -51%, अमेरिका के लिए -31.7% और जापान के लिए -27.8% थी। इस तरह से भारत ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी तुलनात्मक रूप से बहुत बुरा प्रदर्शन नहीं किया।
भारत की मृत्यु दर 31 अगस्त को 1.78% थी जबकि अमेरिका में 3.04%, यूके में 12.35%, फ्रांस में 10.09%, जापान में 1.89% और इटली में 13.18% थी। 1.70 लाख करोड़ रुपए के PMGKP (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज) के एक हिस्से के रूप में सरकार ने मुफ्त खाद्यान्न के वितरण, महिलाओं एवं गरीब वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को नकद भुगतान दिया गया। राज्यों द्वारा 84 लाख मीट्रिक टन अनाज उठाया गया है और साथ ही 3.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक दालें विभिन्न राज्यों में भेजी गईं।
मनरेगा के तहत अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ, जिससे मानसून के मौसम में वापस लौट रहे प्रवासियों समेत ज्यादा काम की जरूरत को संबोधित करते हुए इससे कुल 300 करोड़ मानव दिवस का रोजगार पैदा करने में सहायता मिली। 2020-21 के लिए राज्यों की उधार की सीमा 3% से बढ़ाकर 5% करने का फैसला किया गया, जिससे राज्यों को 4.28 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त संसाधन प्राप्त हुए।
ऐसी कठिन परिस्थिति में सार्वजनिक और निजी बैंक लोगों को कर्ज दे सकें, ये भी सरकार ने सुनिश्चित की। सितंबर 2020 तक 42,01,576 कर्जदारों को 1,63,226.49 करोड़ रुपए की अतिरिक्त ऋण राशि मंजूर की गई। महीने की शुरुआत में ही 25,01,999 कर्जदारों को 1,18,138.64 करोड़ रुपए की ऋण राशि बैंकों के माध्यम से वितरित की गई। 27.55 लाख से ज्यादा करदाताओं को 1,01,308 करोड़ रुपए से भी अधिक के रिफंड जारी किए गए।
PPE किट्स और सैनिटाइजर की उपलब्धता: सस्ता और सुलभ
कोरोना काल में कुछ नई चीजों के नाम आपने सुने जिनके बारे में पहले न के बराबर ही चर्चा होती है – PPE किट्स और हैंड सैनिटाइजर। भारत में कोरोना काल से पहले PPE किट्स का निर्माण लगभग शून्य था। कोविड के पहले बोतल डिस्पेंसरों/पम्पों की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन लगभग 5 लाख थी, जबकि कोरोना काल में डिमांड 50 लाख हो गई। इसके बाद डिस्पेंसर बनाने में भारत आत्मनिर्भर बना और प्रतिदिन 40 लाख बोतल का आज उत्पादन हो रहा है।
इतना ही नहीं, इसे सर्वसुलभ कराने के लिए सरकार ने कम दाम पर भी इसे उपलब्ध कराया और सुनिश्चित किया कि निजी कम्पनियाँ भी मनमानी न करे। परिणाम ये हुए कि अप्रैल-मई 2020 के लगभग 30 रुपए मूल्य की तुलना में कीमत घटकर 5.50 रुपए हो गई। इसी तरह PPE सूट्स और मास्क के विनिर्माण में अक्टूबर तक खासी बढ़ोतरी हुई और इस दौरान घरेलू स्तर पर 6 करोड़ PPE किट्स का निर्माण किया गया।
इनमें से 2 करोड़ पीपीई सूट्स का निर्यात किया गया था। 15 करोड़ से ज्यादा एन-95 मास्क का निर्माण किया गया, जिनमें से 4 करोड़ मास्क का निर्यात किया गया था। आज देश में 1,100 से ज्यादा PPE सूट्स कंपनियाँ और 200 से ज्यादा एन-95 मास्क की कंपनियाँ निर्माण कार्य में लगी हुई है। केंद्रीय वस्र मंत्री स्मृति ईरानी ने भी कहा था कि भारत ने मात्र 60 दिन में ऐसे उद्योग को स्थापित कर दिया, जो शून्य से शुरू किया गया था।
Under PM @narendramodi Ji’s decisive leadership, we are the only Nation in the world to have established a Rs. 7,000 crore PPE industry providing sustainable direct employment to 5 lakh people during the pandemic – a glorious chapter in our journey towards #AatmaNirbharBharat.
— Smriti Z Irani (@smritiirani) December 11, 2020
भारत को जुलाई 2020 तक 2 करोड़ से ज्यादा PPE किट और 4 करोड़ एन-95 मास्क की जरूरत थी। भारत ने महज 60 दिनों के भीतर PPE फैब्रिक निर्माता कंपनियों का एक स्वदेशी नेटवर्क विकसित कर दिया। मई के मध्य तक, भारत ने प्रति दिन 4.5 लाख बॉडी कवरऑल और 2.5 लाख एन-95 मास्क के विनिर्माण की क्षमता विकसित कर ली थी। भारत ने अमेरिका, यूके, सेनेगल, स्लोवेनिया और यूएई को PPE का निर्यात भी किया। आज एन-95 के विनिर्माण की क्षमता 200 कंपनियों के साथ 32 लाख इकाइयों तक पहुँच गई है।
जब विपक्ष प्रवासी मजदूरों को भड़का रहा था, तब रेलवे उन्हें विशेष रेलों से घर पहुँचा रही थी
भारत में लॉकडाउन लगने के बाद सबसे बड़ा खेल शुरू हुआ मुंबई और दिल्ली में, जहाँ के मजदूरों के बीच जम कर ये भ्रम फैलाया गया कि अब उनका यहाँ कुछ नहीं हो सकता और उन्हें घर चले जाना चाहिए। दिल्ली में यहाँ तक आरोप लगे कि सरकारी बसों से मजदूरों को गाजियाबाद सीमा पर ले जाकर छोड़ दिया गया। मजदूरों को भड़काया गया, ताकि देश में अराजकता फैलाई जा सके। मुंबई के बांद्रा में इसी तरह हजारों मजदूर जुटे।
नतीजा ये हुआ कि हजारों मजदूर दिल्ली और मुंबई से पैदल ही यूपी-बिहार और झारखण्ड जैसे राज्यों के लिए निकलने लगे, जहाँ उनका घर था। इन सबके बीच सोनू सूद की खूब चर्चा हुई और बताया गया कि उन्होंने हर ट्वीट और मदद की अपील का संज्ञान लेकर काफी को घर पहुँचाया। सीरम योगी ने मुफ्त में इन मजदूरों के लिए बस, क्वारंटाइन और भोजन सेवा मुहैया कराने के साथ-साथ पुलिस को आदेश दिया कि मजदूरों के साथ कोई कड़ाई नहीं हो।
मीडिया भी चुन-चुन कर इन मजदूरों की तस्वीरें अपलोड कर के और उनकी कहानियाँ सुना कर ये बताने लगी कि कैसे सरकार का लॉकडाउन पूरी तरह फेल हो गया है और ये गरीब विरोधी है। पूरे देश में सोनू सूद ही एक मसीहा है, ऐसा प्रचारित किया जाने लगा। कहीं पुलिस ने अगर मजदूरों को रोका तो इसके वीडियो निकाल कर लाए गए। मोदी सरकार को CAA के समय जैसे मुस्लिम विरोधी बताया गया, वैसे ही अब मजदूरों का इस्तेमाल हुआ।
जबकि, इसकी असली वजह ये थी कि महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकारें किसी अन्य राज्य के गरीब नागरिकों का भार अपने ऊपर नहीं लेना चाहती थी। ऐसे समय में सीएम खट्टर जैसे नेता भी थे, जिन्होंने बिहार के मजदूरों का ख्याल भी रखा और बिहार से रुपए भी नहीं लिए। लेकिन, AAP और MVA की सरकारें ऐसी नहीं थीं। मजदूरों के इन राज्यों से घर लौटने पर उलटा उन्होंने राहत की ही साँस ली। उनके साथ सौतेला व्यवहार किया।
लेकिन, अगर बात किसी की नहीं हुई तो भारतीय रेलवे की। इस कठिन समय में जब महामारी के वक़्त दुष्प्रचार कर के राजनीति चमकाई जा रही थी, भारतीय रेलवे ने उन लाखों मजदूरों को अपने घर वापस पहुँचाने का बीड़ा उठाया और वो भी निःशुल्क। लेकिन, किसी ने भी केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ये ये संभव कर दिखाने वाले सैकड़ों रेल कर्मचारियों की तारीफ नहीं की, जिन्होंने फ्रंटलाइन वारियर्स की तरह कार्य किया।
Indian Railways at the forefront in combating Coronavirus:
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) December 26, 2020
🚆 Ran 4,621 Shramik Special Trains, ferried 63.1 lakh migrant workers
🚃 Converted 5601 coaches to COVID care centres
🛤️ Maintained supply chain of essentials
😷 Started production of PPEs & sanitiser pic.twitter.com/9QhE9Qsbyc
जून 2020 तक लगभग 60 लाख लोगों को उनके गंतव्य राज्यों तक पहुँचाने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा 4347 से ज्यादा श्रमिक स्पेशल ट्रेने चलाई जा चुकी थीं। इसके बाद भी इन श्रमिक ट्रेनों की सेवा जारी ही रखी गई, क्योंकि राज्यों का ऐसा अनुरोध था। राज्यों से अनुरोध प्राप्त होने पर 24 घंटे के भीतर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को उपलब्ध कराया जाता था। सभी राज्यों के प्रधान सचिवों को पत्र लिख कर इस बाबत बता दिया गया था।
मई 2020 के ख़त्म होने तक के आँकड़ों की बात करें तो ये शीर्ष 5 राज्य थे, जहाँ से सबसे ज्यादा ट्रेनें रवाना हुईं- गुजरात (1026 ट्रेन), महाराष्ट्र (802 ट्रेन), पंजाब (416 ट्रेन), उत्तर प्रदेश (294 ट्रेन) और बिहार (294 ट्रेन)। वहीं गंतव्य राज्यों में ट्रेनों ट्रेनों की संख्या कुछ यूँ थी – उत्तर प्रदेश (1682 ट्रेन), बिहार (1495 ट्रेन), झारखंड (197 ट्रेन), ओडिशा (187 ट्रेन), पश्चिम बंगाल (156 ट्रेन)। इनके अलावा 15 जोड़ी राजधानी जैसी ट्रेनें भी संचालित की जाती थीं।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में तकनीक बना हथियार
लॉकडाउन के बाद जब अनलॉक का फेज शुरू हुआ था, तब भी सरकार ने उन क्षेत्रों पर विशेष नजर बनाई हुई थी, जहाँ कोरोना मामलों की संख्या ज्यादा थी। उन इलाकों को ‘रेड जोन’ में रखा गया और वहाँ ज्यादा कड़ाई की गई। कई चरणों में हुए अनलॉक के दौरान कन्टेनमेंट जोन्स में सावधानी पूर्ववत ही रखी गई। सितम्बर के अंत में जब अनलॉक 4 लागू था, तब भी कन्टेनमेंट जोन्स में सिनेमा हॉल या स्विंग पूल वगैरह खोलने की अनुमति नहीं थी।
ब्लूटूथ पर आधारित किसी से संपर्क साधने, संभावित हॉटस्पॉट्स का पता लगाने और कोविड-19 के बारे में प्रासंगिक जानकारी के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार ने ‘आरोग्य सेतु‘ नामक एप बनाया और तकनीक को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपना हथियार बनाया। पूरे देश में 16 करोड़ से अधिक लोगों ने इसे डाउनलोड किया और इसका प्रयोग किया। मई 2020 तक ही ‘आरोग्य सेतु’ 3500 से अधिक हॉटस्पॉट्स की पहचान कर चुका था।
लेकिन, मीडिया का एक हिस्सा इसे लेकर भी प्रपंच फैलाता रहा। अफवाह फैलाई गई कि सरकार व्यक्तिगत डेटा इकठ्ठा कर के इसे सार्वजनिक कर रही है। सरकार ने इसके बाद एप के सोर्स कोड को ही सार्वजनिक कर दिया, जिसके बाद कोई भी इसे देख सकता था और विशेषज्ञ सरकार की मदद भी कर सकते थे। सरकार द्वारा ऐसी पारदर्शिता दिखाने के बाद इसका विरोध करने वाले फुस्स हो गए।
अर्थव्यवस्था के ऊपर लोगों की जान बचाने को दी गई तरजीह
जहाँ तक भारत की GDP की बात है, पीएम मोदी खुद कई बार कह चुके हैं कि सरकार ने लोगों की जान बचाने को आर्थिक विकास से ज्यादा प्राथमिकता दी। कोरोना संक्रमण से पहले ही पूरी दुनिया में मंदी का माहौल था और भारत भी इससे अछूता नहीं था। परिणाम ये हुआ कि जनवरी-मार्च के बीच भारत की GDP 3.1% रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में अर्थव्यवस्था 5.2% की गति से बढ़ी थी। वहीं अगर जनवरी-जून तक के आँकड़ों की बात करें तो GDP में पिछले वर्ष के मुकाबले 23.9% की गिरावट आई।
ये सब कुछ उद्योग-धंधों और फैक्ट्रियों के बंद रहने के कारण हुआ। लॉकडाउन का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना ही था। आँकड़े देखें तो सबसे बड़ी गिरावट मैन्युफैक्चरिंग (39.3%) और कंस्ट्रक्शन (50.3%) में देखने को मिली। ये दोनों ही कार्य अधिकतर मानव संसाधन और परिवहन पर निर्भर हैं, जबकि ये दोनों ही लॉकडाउन के दौरान उपलब्ध नहीं थे। लेकिन, विशेषज्ञों ने ये भी माना कि अनलॉक के बाद भारत की अर्थव्यवस्था V ग्राफिकल आकर में आगे बढ़ी।
वहीं Moody ने भी भारत की अर्थव्यवस्था में संकुचन की जो उम्मीद जताई थी, उसमें सुधार किया। अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 2020 में 8.9% संकुचित होगी, जबकि पहले यही 9.6% संकुचन की आशंका जता रही थी। इतना ही नहीं, 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था अब 8.6% ऊपर जाएगी, ऐसा संस्था ने अनुमान लगाया है। जबकि पहले उसने मात्र 8.1% ऊपर जाने की बात कही थी।
संस्था का कहना है कि सितम्बर के बाद जिस तरह से भारत में संक्रमण के मामले कम होते गए और चीजें धीरे-धीरे खुलती चली गईं, उससे अर्थव्यवस्था ने सकारात्मक रूप से रफ़्तार पकड़ी। संस्था ने कहा है कि अगला वर्ष वैक्सीन की उपलब्धता और सफलता पर निर्भर होगा। लेकिन, इन सबके बावजूद मीडिया का एक बड़ा वर्ग ये चिल्लाता रहा कि भारत की GDP सरकार की कमियों के कारण नीचे जा रही है। ऐसे दिखाया गया जैसे सिर्फ यहीं ऐसा हो रहा हो।
इन सबके बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना मामलों का जिक्र करना आवश्यक है, जहाँ दो-दो बार केंद्र सरकार को चीजें संभालने के लिए मोर्चा बुलंद करना पड़ा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रोज-रोज बैठ कर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे, मीडिया में लगातार छाए रहे और इधर कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते रहे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद जमीन पर उतरे, तब जाकर कहीं दिल्ली में कोरोना के मामले कम होने शुरू हुए।
दिल्ली में कोरोना टाइमलाइन: जब अमित शाह ने राजधानी में बिगड़ती स्थिति को संभाला
जून 2020 में अमित शाह ने दिल्ली सीएम समेत गृह मंत्रालय और दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक कर संक्रमण को नियंत्रित करने की रूपरेखा पर चर्चा की। त्वरित रूप से दिल्ली सरकार को 500 रेल कोच मुहैया कराए, जिनका इस्तेमाल आइसोलेशन और क्वारंटाइन वार्ड्स के रूप में किया गया। इनकी उपलब्धता के साथ ही राजधानी में मरीजों के लिए 8000 अतिरिक्त बेड्स की व्यवस्था हो गई और ये सब केंद्र की पहल पर हुआ।
कॉन्टैक्ट मैपिंग के लिए दिल्ली के सारे कन्टेनमेंट जोन्स में हाउस टू हाउस सर्वे किए गए और एक सप्ताह के भीतर इसकी सर्वे रिपोर्ट तैयार कर के भेजी गई। जून 2020 के मध्य में हुई इस बैठक के अगले 2 दिनों में ही टेस्टिंग की दर दोगुनी कर दी गई और उसके अगले सप्ताह में ये तिगुनी हो गई। AIIMS के एक डॉक्टरों का पैनल बनाया गया, जिसने निचले स्तर तक जाकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई को लेकर सलाह दी।
अमित शाह ने अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए और उन पर नजर रखने के लिए CCTV कैमरे लगवाए। 500 ऑक्सीजन सिलिंडर, 440 वेंटिलेटर्स, 10,000 ऑक्सी-मीटर्स और बड़ी संख्या में एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई। मृतकों का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किए जाने का निर्देश दिया गया। अन्य राज्यों से अच्छा तालमेल हो, इसीलिए यूपी के अधिकारियों के साथ बैठक हुई। सबकी जिम्मेदारी तय की गई।
ये वो समय था जब दिल्ली में कोरोना की आड़ में प्राइवेट अस्पतालों ने मरीजों को लूटना शुरू कर दिया था लेकिन अमित शाह ने टेस्टिंग और ट्रीटमेंट के लिए शुक्ल फिक्स किया। साथ ही नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई, जिसने सुनिश्चित किया कि दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में 60% बेड्स कम दर पर उपलब्ध हों। सभी अस्पतालों की समीक्षा हुई। NCC और NSS कैडेट्स की मदद ली गई।
आइए, आँकड़ों के जरिए देखते हैं कि कैसे दिल्ली में अमित शाह के मोर्चा संभालने के बाद से सुधार हुआ। मार्च 25 से जून 14 तक (82 दिनों में) वहाँ मात्र 2,41,000 टेस्ट्स हुए थे, जबकि इसके अगले 11 दिनों में 1,75,141 टेस्ट्स हुए। इसीलिए, अगर कोरोना के मामले ज्यादा टेस्टिंग के कारण पकड़ में आए भी तो उन्हें आइसोलेट किया गया। वहीं जहाँ पहले एक टेस्ट के लिए 5000 रुपए लगते थे, वहीं ये शुल्क इसके बाद 2400 रुपए हो गया।
जून 14 तक पूरी दिल्ली में मरीजों के लिए 9937 बेड्स उपलब्ध थे, जबकि अगले 16 दिनों में जून 30 तक इनकी संख्या बढ़ कर 30,000 हो गई। DRDO ने 250 ICU के साथ 1000 बेड्स का अस्पताल बना कर तैयार कर दिया, जिसका पूरा प्रबंधन सशस्त्र बलों के मेडिकल प्रोफेशनल्स ने संभाला। इसी तरह राधा स्वामी आश्रम में ITBP द्वारा 10,000 बेड्स का अस्पताल तैयार किया गया। ये सब 15 दिनों के भीतर ही हो गया था।
वहीं दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में आइसोलेशन बेड, बिना वेंटीलेटर के बेड और वेंटिलेटर बेड का चार्ज क्रमशः 24000-25000, 34000-43000 और 44000-54000 रुपए था। अमित शाह ने मोर्चा संभालने के बाद से ये शुल्क क्रमशः 8000-10000, 13000-15000 और 15000-18000 रुपए हो गया। सबसे बड़ी बात कि इसी शुल्क में PPE किट्स और दवाएँ भी शामिल थीं, जिनके लिए पहले अतिरिक्त चार्ज देना होता था।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई: दुनिया के मुकाबले भारत ने किया बेहतर प्रदर्शन
पूरे देश में केंद्र सरकार के प्रयासों का नतीजा ये हुआ कि आधा 2020 ख़त्म होने पर जहाँ दुनिया भर में कोरोना की मृत्यु दर (प्रति 10 लाख जनसंख्या) 63.2 थी, भारत में ये मात्र 11 थी। ये आँकड़े अमेरिका में 383, ब्रिटेन में 637, 259 और रूस में 60 था। वहीं दुनिया भर में जहाँ प्रति 10 लाख 1250 लोग संक्रमित थे, भारत में ये आँकड़ा महज 357 था। दुनिया के मुकाबले भारत का प्रदर्शन बेहतर होता चला गया।
बाकी देशों में तो स्थिति और भी भयावह थी। अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील और रूस में ये दर क्रमशः 7569, 4537, 5802 और 4254 था। उस समय तक 4594 ट्रेनों से 63 लाख प्रवासी मजदूरों को घर पहुँचाया जा चुका था। परिवहन के अन्य साधनों को मिला दें तो कुल 1.20 करोड़ लोगों ने आवागमन किया। एक तरफ जहाँ आर्थिक सुधार और आत्मनिर्भर भारत की पटकथा लिखी जा रही थी, दूसरी तरफ गरीबों को मदद दी जा रही थी।
इन सबका परिणाम ये हुआ कि नवंबर आते-आते भारत में कुल कोरोना पॉजिटिव मामलों का 6.97% ही सक्रिय रह गया। सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में इलाज के लिए गुणवत्ता का मानक स्थापित करने के कारण भी मामलों में गिरावट आई। भारत में प्रति मिलियन मामले दुनिया में सबसे कम हो गए, जो 1 नवंबर तक 5930 था। उस समय तक भारत की प्रति मिलियन जनसंख्या में मौत दुनिया में सबसे कम 88 पर पहुँच गई।
इन सबके दौरान जहाँ दिल्ली में केंद्र के हस्तक्षेप के बाद स्थिति सुधरी, महाराष्ट्र में ये बिगड़ती ही चली गई। पुणे एक ऐसा हॉटस्पॉट बन कर उभरा, जहाँ सक्रिय मामलों की संख्या अब तक पौने 4 लाख के आँकड़े के पास पहुँच गई है। इनमें से 15 हजार मामले अब भी सक्रिय हैं। कुछ यही हाल मुंबई का रहा। वहाँ कोरोना के मामलों की संख्या 3 लाख के पास पहुँच गई। इसी तरह ठाणे में ये आँकड़ा ढाई लाख है।
कोरोना टाइमलाइन: महाराष्ट्र में स्थिति बिगड़ी, फेल हुआ वामपंथियों का केरल मॉडल
इस तरह से देश भर में कोरोना के जितने भी मामले आए, उनमें से 19% अकेले महाराष्ट्र में रहे। इसी तरह से वामपंथियों ने ‘केरल मॉडल’ का हंगामा मचाया। केरल सरकार से केंद्र व पूरे देश को सीख लेने की सलाह दी गई। ‘गोमूत्र जोक्स’ के साथ केरल की सरकार को वैज्ञानिक ढंग से काम करते हुए प्रदर्शित किया गया। जबकि सच्चाई ये है कि केरल के प्रदर्शन सबसे बेकार में से एक रहा और मात्र साढ़े 3 करोड़ की जनसंख्या वाले इस राज्य में कोरोना के साढ़े 7 लाख मामले सामने आ चुके हैं।
जब इससे पाँच गुना से भी अधिक जनसंख्या वाले राज्य में कोरोना के इससे 2 लाख मामले कम आए। आज सक्रिय कोरोना मामलों की संख्या में केरल पूरे देश के राज्यों में शीर्ष पर बैठा हुआ है और यहाँ 65,000 से भी अधिक केसेज हैं। इसके बाद 59,000 मामलों के साथ महाराष्ट्र का नंबर आता है। उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर ज़रूर है, लेकिन यहाँ कोरोना के सक्रिय मामलों की संख्या मात्र 15,000 ही बची हुई है।
इस तरह शीर्ष 5 सक्रिय मामलों वाले राज्यों (केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़) में से 4 ऐसे राज्य हैं, जहाँ भाजपा के विपक्षी दलों की सरकारें हैं। एक उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, लेकिन वहाँ देश की सबसे बड़ी आबादी रही है और तुलनात्मक रूप से आँकड़े सकारात्मक हैं। इन सबके बावजूद मोदी सरकार पर निशाना साधने वाले उद्धव, विजयन और ममता जैसे मुख्यमंत्रियों की आलोचना नहीं करते।
मध्यम वर्ग को सरकार ने दी सहूलियत
आखिर ये संभव कैसे हुआ कि भारत आज कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में शीर्ष 10 देशों की सूची से लगभग बाहर हो गया है? इसका कारण था कि मोदी सरकार ने स्वास्थ्य और आर्थिक, दोनों ही मोर्चों पर इससे लड़ाई लड़ी। गरीबों का ख्याल रखा गया। शुरू में ही तेल मंत्रालय ने घोषणा कर दी कि 5 कईलोग गैस सिलिंडर का प्रयोग करने वाले परिवार 8 बार मुफ्त में गैस भरवा सकेंगे। 14.2 किलो वालों के लिए 3 बार ये सुविधा दी गई।
बाद में इन सुविधाओं की अवधि को आगे भी बढ़ाया गया। 8.3 करोड़ महिलाओं को 3 महीने के लिए ‘उज्ज्वला योजना’ के तहत गैस सिलिंडर मुफ्त में दिए गए। सेल्फ-हेल्प ग्रुप की महिलाओं के लिए कोलैटरल फ्री लोन की रकम दोगुनी बढ़ा कर 20 लाख रुपए कर दी गई। रेहड़ी-पटरी वालों के बिजनेस फिर से शुरू करने के लिए उन्हें 10,000 रुपए दिए गए। इससे गरीबों को नई शुरुआत करने में मदद मिली।
कर्मचारियों को ‘Employees’ Provident Fund (EPF)’ से अगले 3 महीने की सैलरी एक साथ उठाने की सुविधा प्रदान की गई। इस पर से सर्विस चार्ज भी हटा लिया गया। 2.82 करोड़ बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों के लिए 1400 करोड़ रुपए का सोशल अस्सिस्टेंस प्रोग्राम शुरू में ही तैयार कर लिया गया था। इनकम टैक्स पे करने के लिए समयसीमा आगे बढ़ाई गई। इसमें देरी होने पर लगने वाले अतिरिक्त शुल्क को 12% से 9% किया गया।
‘बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स फंड’ के तहत 2 करोड़ कंस्ट्रक्शन वर्करों को 3066 करोड़ रुपए की सहायता दी गई। 20 करोड़ जन-धन खातों में 500 रुपए डाले गए, जिसमें 9930 करोड़ रुपए खर्च हुए। 3 महीने तक ये धनराशि मिलती रही। महिलाओं के खातों में रुपए डाले गए। स्वास्थ्य कर्मचारियों को 50 लाख के एमडीकल इन्शुरन्स की सुविधा दी गई। ये सब तभी हो गया था, जब कोरोना के मामले 10,000 भी नहीं थे।
PM Cares फण्ड: कॉन्ग्रेस रोती रही, सरकार ने दिया पाई-पाई का हिसाब
इतना सब कुछ अप्रैल की शुरुआत में ही कर लिया गया था। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए पीएम केयर्स फण्ड की स्थापना की गई, जिसके खिलाफ दुष्प्रचार के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी ने हर हथकंडा अपनाया, क्योंकि इसमें पीएम रिलीफ फण्ड की तरह कॉन्ग्रेस के किसी नेता को ट्रस्टी नहीं बनाया गया था। पीएम केयर्स फण्ड में लोगों ने जम कर योगदान दिया। PMO ने भी देश की जनता को इसके खर्च के पाई-पाई का हिसाब दिया।
आरोप लगे कि यूपीए के वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) राजीव गाँधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था और सार्वजनिक धन परिवार के खातों में डाइवर्ट कर दिया गया था। सवाल उठे कि PMNRF का पैसा संकट के समय लोगों की मदद के लिए होता है लेकिन यूपीए के दौर में राजीव गाँधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था। फाउंडेशन को चीन से भी 3 बार वित्तीय सहायता मिली थी।
पीएम केयर्स (प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन्स) फंड ट्रस्ट ने कोविड-19 के खिलाफ जंग के लिए मई 2020 के मध्य में 3100 करोड़ रूपए का आवंटन किया गया। इसमें से 2000 करोड़ रुपए की धनराशि वेंटिलेटर्स की खरीद के लिए निश्चित की गई। 1000 करोड़ रुपए की राशि का उपयोग प्रवासी कामगारों की देखरेख के लिए किया गया। उन्हें विभिन्न योजनाओं का लाभ दिया गया।
इन सबके अलावा 100 करोड़ रुपए की राशि वैक्सीन के विकास में सहायता के लिए दी गई। हाल ही में हमने देखा कि किस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद जाकर तीनों जगह लैब्स में बन रही कोरोना वैक्सीन के बारे में जाना और स्थिति की समीक्षा की। वहाँ के अधिकारियों तक ने भी कहा कि प्रधानमंत्री को पूरी प्रक्रिया की अच्छी समझ है और उन्हें हर बारीकी की जानकारी भी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने PM Cares Fund में 2.25 लाख का दान दिया
— Political Kida (@PoliticalKida) September 19, 2020
भिक्षुक कालीदेवी ने फंड में 5 हजार रुपये का दान दिया
देश के हर वर्ग ने अपना योगदान दिया pic.twitter.com/oIYaxJI3Rj
पीएम केयर्स फण्ड से कुल 50000 ‘मेड इन इंडिया’ वेंटिलेटर्स की खरीद की गई। ध्यान दीजिए कि पिछले 70 वर्षों में 48,000 वेंटिलेटर्स ही थे। इन वेंटिलेटर्स को राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा संचालित अस्पतालों में फिट किया गया। प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के निरीक्षण में वैक्सीन के लिए जारी की गई धनराशि का उपयोग किया गया। भारतीय शैक्षिक समुदाय, युवाओं के स्टार्टअप्स और बड़े उद्योगों, सभी को वैक्सीन निर्माण के लिए प्रेरित किया गया।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चला भारत
इन सबके दौरान भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद में भी हाथ पीछे नहीं खींचे। यहाँ तक कि फरवरी में चीन को भी 15 टन मास्क और ग्लव्स सहित अन्य मेडिकल उपकरणों की मदद की गई। इनमें 1 लाख मास्क्स, 5 लाख ग्लव्स, 75 इन्फ्यूजन पम्प्स और 30 इंटरनल फीडिंग पम्प्स शामिल थे। SAARC देशों की मदद के लिए भारत ने 74 करोड़ रुपए दिए और उन्हें कोरोना के खिलाफ लड़ाई में चर्चा की। सलाहों का आदान-प्रदान हुआ।
कुवैत में 15 डॉक्टरों की टीम भेजी गई। इसके बाद भारत ने 108 देशों में 8.5 करोड़ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन टेबलेट्स, और 50 करोड़ पेरासिटामोल टेबलेट्स की खेप भेजी। मालदीव्स, मॉरीशस, मडागास्कर और कैमरून जैसे देशों में INS केसरी के माध्यम से मदद की खेप पहुँचाई गई। गल्फ देशों की भी मदद की गई। भारत ने हर देश के साथ समन्वय बना कर जाना कि वो कोरोना से कैसे लड़ रहे हैं और कौन सी तकनीक अपना रहे हैं।
सबसे बड़ी बात तो ये कि भारत की जनता के साथ सीधे संवाद करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी राष्ट्र को सम्बोधित कर के तो कभी ‘मन की बात’ के जरिए लगातार जागरूकता फैलाने का काम जारी रखा और लोगों को सतर्कता और सावधानी से जुड़ी एक-एक बात समझाई। उन्होंने सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देने के लिए राष्ट्र को सम्बोधित किया। किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने इतनी सक्रियता नहीं दिखाई।
हाँ, इस दौरान सरकार ने विकास कार्यों को ठप्प नहीं होने दिया। वाराणसी से लेकर गुजरात और मध्य प्रदेश से लेकर पूर्वोत्तर तक लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कार्य होते रहे और पीएम मोदी इन परियोजनाओं के उद्घाटन व शिलान्यास में व्यस्त रहे। अपने हर भाषण में उन्होंने जनता को कोरोना को लेकर जागरूक किया। इसी दौरान सादगी के साथ राम मंदिर का भूमिपूजन भी हुआ, जिसमें पीएम मोदी भी शरीक हुए। जनता ने टीवी पर ये कार्यक्रम देखा।
सरकार इस दौरान पूरी पारदर्शिता बरतते हुए आँकड़ों को भी जारी करती रही। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रधान सचिव नियमित रूप से प्रतिदिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर संक्रमण के आँकड़ों और इससे निपटने के लिए होने वाले उपायों की जानकारी देते रहे। सरकारी वेबसाइटों पर आँकड़े लगातार अपडेट किए जाते रहे। विपक्ष शाहीन बाग़ से शुरू होकर हाथरस तक, अराजकता में ही मशगूल रहा। सरकार काम करती रही।