मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने चीफ जस्टिस के बंगले में बने हनुमान मंदिर को तोड़े जाने के आरोप नकारे हैं। हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने कहा है कि मीडिया में चलाई जा रही खबरें मनगढ़ंत हैं और इन पर अवमानना की कार्रवाई हो सकती है। MP हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने कहा है कि लोक निर्माण विभाग (PWD) के अनुसार इस बंगले में कोई मंदिर था ही नहीं। हाई कोर्ट ने कहा है कि यह खबरें न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम करने के उद्देश्य से चलाई गई हैं। बार काउंसिल का आरोप था कि जस्टिस सुरेश कुमार कैत के आने के बाद यह मंदिर तोड़ा गया।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धरमिंदर सिंह ने हनुमान मंदिर तोड़े जाने के आरोपों को लेकर कहा, ” हाई कोर्ट के संज्ञान में यह बात आई है कि माननीय चीफ जस्टिस के बंगले से भगवान हनुमान के मंदिर को हटाने का आरोप लगाते हुए कुछ रिपोर्ट चलाई की जा रही हैं। ये रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी, भ्रामक और निराधार हैं। मैं इन दावों को स्पष्ट तौर पर नकारता हूँ और और उनका खंडन करता हूँ। PWD ने भी मामले में स्पष्टीकरण दिया है कि इस बंगले में कभी कोई मंदिर मौजूद ही नहीं था।”
रजिस्ट्रार जनरल ने आगे अपने बयान में कहा, “मीडिया में प्रसारित किए जा रहे आरोप पूरी तौर पर मनगढ़ंत हैं और ऐसा लगता है कि यह जनता को गुमराह करने और न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बदनाम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।” रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि ऐसी खबरों पर अवमानना की कार्रवाई हो रही है।
उन्होंने आगे कहा, “रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय इन निराधार आरोपों की निंदा करता है और मजबूती से कहता है कि मंदिर तोड़े जाने की यह रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी हैं और हमारी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बदनाम करने के अलावा कोई और उद्देश्य पूरा नहीं करतीं। न्यायपालिका निष्पक्षता के साथ न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध है।”
बार काउंसिल ने क्या आरोप लगाए थे?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिख कर शिकायत की थी और जाँच तथा कार्रवाई की माँग भी की थी। बार एसोसिएशन के पत्र के अनुसार, जबलपुर के पचपेड़ी में बने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के बंगले में एक पुराना हनुमान मंदिर था। एसोसिएशन ने कहा था कि इस मंदिर में जस्टिस बोबडे,जस्टिस खानविलकर समेत बाकी पूर्व चीफ जस्टिस पूजा किया करते थे। एसोसिएशन ने बताया था कि इस मंदिर में उनके स्टाफ भी पूजा करते थे जिससे किसी को कोई परेशानी नहीं थी।
पत्र में कहा गया था कि यहाँ जस्टिस रफत आलम और जस्टिस रफीक अहमद भी अपने कार्यकाल के दौरान रहे, उन्होंने भी कभी इस मंदिर पर कोई आपत्ति नहीं जताई। एसोसिएशन की शिकायत में कहा गया था कि यह मंदिर सरकारी था और इसकी समय-समय पर मरम्मत भी सरकारी पैसे से करवाई जाती रही थी। शिकायत के अनुसार, जस्टिस सुरेश कुमार कैत के यहाँ आने के बाद इस मंदिर को तोड़ दिया गया और मूर्तियाँ हटा दी गईं। यह कार्रवाई बिना किसी सरकारी या न्यायिक आदेश के की गई।
पत्र में कहा गया था कि इस कृत्य से हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों की भावनाओं का अपमान हुआ है तथा सरकारी सम्पत्ति का भी नुकसान हुआ है। एसोसिएशन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना से माँग की है कि वह जाँच करवाएँ और दोषियों पर कार्रवाई करें। अभी जस्टिस कैत का पक्ष सामने नहीं आया है।
बार काउंसिल के अध्यक्ष ने भी की जाँच की माँग
इस मामले में ऑपइंडिया ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट धन्य कुमार जैन से बात की थी। धन्य कुमार जैन ने बताया था,”यह मंदिर यहाँ चीफ जस्टिस का बँगला बनने से पहले से था। यह एक नीम के पेड़ के पास बना था। बाद में यह बंगले में शामिल हो गया। इसमें समय के साथ छोटा-मोटा निर्माण भी करवाया गया। मंदिर लगभग 5×6 फीट के साइज का था, इसमें हनुमान जी और शिवलिंग स्थापित थे। यहाँ पूर्व में रहे चीफ जस्टिस पूजा करते थे, उनके स्टाफ भी यहाँ पूजा करते थे।”
सीनियर एडवोकेट जैन ने बताया था, “यहाँ तक कि जस्टिस पटनायक यहाँ रोज सुबह धोती पहन कर पूजा करने आते थे चीफ जस्टिस रहे रफत आलम साहब ने इसका जीर्णोद्धार तक करवाया था। वह इसके सामने चप्पल उतार देते थे। किसी को इससे आपत्ति नहीं थी। लेकिन तीन महीने पहले यहाँ जस्टिस कैत आए और इसके बाद इस मंदिर को तोड़ दिया गया। अब कहा जा रहा है कि यहाँ कुछ था ही नहीं। संविधान में सभी धर्मों को आजादी दी गई है, लेकिन जब न्यायपालिका से जुड़े लोग मंदिर हटवा देंगे तो संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कौन करेगा।”
उन्होंने इस मामले में जाँच करवाने की माँग की थी और कहा था कि यदि संभव हो तो सुप्रीम कोर्ट जस्टिस कैत का ट्रांसफर किसी दूसरे हाई कोर्ट में करे। उन्होंने मंदिर का निर्माण दोबारा करवाए जाने की माँग की थी। गौरतलब है कि इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन को एक वकील रवीन्द्र नाथ त्रिपाठी की तरफ से शिकायत मिली थी। जिसके बाद यह यह पत्र लिखा गया था। वकील त्रिपाठी ने माँग की थी कि जस्टिस कैत के खिलाफ आरोप सिद्ध होने पर आपराधिक कार्रवाई भी चालू की जाए।