केरल मॉडल का ढिंढोरा पीटने वाले वामपंथियों के राज में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। केरल में हर साल बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के हजारों मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में केरल की एक दलित लड़की का मामला सामने आया, जिससे पाँच साल के भीतर 60 से अधिक लोगों ने रेप किया। यह राज्य में यौन शोषण जैसी घटनाओं की भयावहता का केवल एक उदाहरण है। सरकारी आँकड़े ही बता रहे हैं कि 2016 से 2024 के बीच केरल में 29000 से अधिक बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हो चुके हैं। छेड़छाड़ के मामलों की संख्या कहीं बड़ी है।
POCSO के 8 साल में 29 हजार से ज्यादा मामले
बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लाए गए कानून के तहत दर्ज किए गए मामलों में केरल 2016 के बाद से खुद के ही रिकॉर्ड तोड़ रहा है। 2016 ही वह साल है जब राज्य में वामपंथियों को सत्ता वापस मिली थी। केरल के स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) के अनुसार, 2016 में केरल में POCSO के मामले 2131 थे जो 2023 में बढ़ कर 4641 हो गए।
साल 2024 के 11 महीनों में ही यह आँकड़ा 4100 के पार पहुँच चुका था। अंतिम आँकड़े में केरल के नया शर्मनाक रिकॉर्ड बनाने की आशंका है। चिंता जताई गई है कि यह संख्या 4500 के पार होगी। नीचे ग्राफ से समझा सा सकता है कि स्थिति कितनी भयावह है।

केरल में बच्चों के यौन उत्पीड़न में कई मामलों में उनके घरवाले ही अपराधी हैं। हाल ही केरल की एक अदालत ने एक ऐसे मामले में सजा सुनाई जहाँ एक अब्बा ने ही अपनी 13 साल की बच्ची का जबरन कई महीने तक रेप किया और उसे गर्भवती करके खाड़ी देश को भाग गया।
बच्ची की अम्मी ने पहले उसका साथ दिया लेकिन बाद में वह भी अपने शौहर के साथ हो गई। इस पीड़िता को गर्भपात और मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ा। इस मामले में अदालत ने दोषी पिता को उम्रकैद की दो सजा सुनाई और लाखों का जुर्माना भी लगाया।
कई मामलों में ट्यूशन, कॉलेज और बाकी शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से भी नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न और रेप की घटनाएँ सामने आती हैं। वामपंथी सरकार में कानून व्यवस्था लगातार बिगड़ती गई है। एक रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ नाबालिग लड़कियाँ ही नहीं बल्कि लड़के भी यौन उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
केरल में प्रवासियों के बच्चों के साथ भी ऐसी घटनाएँ हो रही हैं। जुलाई, 2023 में ऐसे ही एक मामले में अशफाक आलम नाम के एक युवक ने एक बच्ची का अपहरण करके उसका रेप किया था और हत्या करके शव नाले में फेंक दिया था।
बच्चों के खिलाफ बाकी अपराधों में भी बढ़ोतरी
केरल में बच्चों के साथ सिर्फ यौन उत्पीड़न ही नहीं बाकी अपराधों में भी बढ़त हुई है। SCRB के आँकड़ों के अनुसार, 2016 में बच्चों के खिलाफ केरल में कुल 2879 अपराध हुए थे। 2024 आते-आते इनकी संख्या 4727 हो चुकी थी।
2016 में केरल के भीतर नाबालिगों के अगवा किए जाने या फिर अपहरण होने की 154 घटनाएँ हुई थीं। यह संख्या 2019 तक 260 पहुँच गई। 2024 में यह आँकड़ा कुछ नीचे आया है। 2016-24 के बीच राज्य में 1793 बच्चों के अपहरण के मामले सामने आ चुके हैं।
छेड़खानी-रेप के मामले भी बढ़ना जारी
केरल में सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि महिलाएँ भी नहीं सुरक्षित हैं। इसकी गवाही भी SCRB आँकड़े दे रहे हैं। 2016 से 2024 के बीच केरल में रेप के मामलों में 62% की बढ़ोत्तरी हुई है। 2016 में केरल में रेप के 1656 मामले सामने आए थे।
यह संख्या 2024 के 11 महीनों में ही 2636 हो चुकी है। साल दर साल इन मामलों में होती बढ़ोतरी ये दिखाती है कि राज्य में महिला सुरक्षा की क्या स्थिति है और अपराधियों में पुलिस का कितना इकबाल है।

केरल में रेप की समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि हाल ही में यहाँ की फिल्म इंडस्ट्री को लेकर भी एक रिपोर्ट ने सबको चौंकाया था। इस रिपोर्ट के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के नामों पर यौन शोषण के आरोप लगे थे। इनमें डायरेक्टर, एक्टर और फिल्म प्रोड्यूसर समेत तमाम लोग बेनकाब हुए थे।
यह समस्या केरल में सिर्फ एक वर्ग की नहीं है। कुछ मामले ऐसे भी हुए हैं, जहाँ सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों ने ही बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। केरल में सिर्फ यही एक समस्या नहीं है। आँकड़े के अनुसार, 2016-2024 के बीच छेड़खानी के भी 39 हजार से अधिक मामले राज्य में सामने आए।
केरल बाल संरक्षण आयोग क्या बोला?
केरल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (KESCPCR) बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को दूसरे नजरिये से देखता है। आयोग की सदस्य N सुनंदा ने ऑपइंडिया से बातचीत में दावा किया कि राज्य में POCSO के मामलों की रिपोर्टिंग तेजी से बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि POCSO के मामले को रिपोर्ट करना जरूरी है और हम यह लागू कर रहे हैं, इसलिए ही मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने यह भी दावा किया कि घर से नाबालिगों के भागने के मामले भी POCSO में आते हैं, ऐसे में यह भी आँकड़ा बढ़ाते हैं।
N सुनंदा ने कहा कि आजकल लोग परिवार के झगड़ों में भी इस कानून का इस्तेमाल कर रहे हैं, यह भी एक कारण आँकड़ा बढ़ने का हो सकता है। आयोग यह मामले कम करने के लिए क्या कर रहा है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि वह लोग ऐसे बच्चों और परिवारों का एक डाटाबेस तैयार कर रहे हैं, जो यौन अपराधों का शिकार हो सकते हैं।
उनके इस रुख का समर्थन राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा की प्रदेश महिला मोर्चा की मुखिया निवेदिता सुब्रमण्यम नहीं करती। ऑपइंडिया से बात करते हुए सुब्रमण्यम ने कहा कि अगर व्यवस्थाएँ इतनी ही ठीक हैं तो लगातार जघन्य मामले क्यों आते जा रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसे मामलों में उन्हीं लोगों की सुनवाई होती है, जो सत्ताधारी कम्युनिस्टों के नजदीकी हैं।
उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि अगर ज्यादा मामले अच्छी रिपोर्टिंग की वजह से सामने आ रहे हैं, तो फिर उनमें कार्रवाई क्या हो रही है और कितने लोग जेल भेजे जा रहे हैं। निवेदिता सुब्रमण्यम ने यह भी आरोप लगाया कि जिन मामलों में कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े लोग आरोपित होते हैं, उनमें समझौते का दबाव बनाया जाता है।