हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडली बॉर्डर पर दलित लखबीर सिंह की निर्मम हत्या ने एक बार फिर किसानों के प्रदर्शन पर सवाल खड़ा कर दिया है। जिस तरह लखबीर को मारा गया वो साफ दर्शाता है कि कितनी हिंसक प्रवृत्ति के लोग इस प्रदर्शन का हिस्सा हैं जो गाहे-बगाहे आमजन पर अपनी क्रूरता दिखाते रहते हैं। बात चाहे 26 जनवरी पर हुए उपद्रव की हो या फिर किसी सामान्य दिन में व्यक्ति को जिंदा जला डालने की… ऐसा कुछ नहीं है जो पिछले एक साल से चल रहे इस प्रदर्शन से न निकला हो।
कल (15 अक्टूबर) जैसे ही लखबीर की हत्या की खबर मीडिया में आई, चारों ओर सनसनी फैल गई। ऐसे में किसान प्रदर्शन को समर्थन देने वालों ने मौन साधे रखा और दूसरी ओर राकेश टिकैत जैसे किसान नेताओं ने इस घटना से पूरी तरह अपना हाथ खींच लिया। शाम को जाकर एक निहंग सिख सरबजीत की गिरफ्तारी हुई। वो भी आस-पास ऐसे नारे लगाए गए जैसे किसी क्रांतिकारी के लिए लगते हैं।
बात चाहे घटना के समय जारी की गई वीडियो की हो…या फिर घटना के बाद रिकॉर्ड की गई वीडियो की…हर जगह निहंग सिखों में सिर्फ और सिर्फ लखबीर को काटकर मार डालने का गर्व है और उसकी खुशी है कि उन्होंने मौके पर ही अपराधी को अंजाम दे दिया। इनकी क्रूरता का अंदाजा लखबीर की आखिरी क्षणों की वीडियो से भी लगता है जिसमें वो निहंगों से दो मिनट उतार देने की अपील कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जवाब दिया जाता है- तू तड़प-तड़प के मर बस।
किसान प्रदर्शनस्थल पर हुए हमलों और विवादों की लिस्ट
मालूम हो कि किसान प्रदर्शनस्थल के आसपास ये पहली बर्बर घटना नहीं है जहाँ निहंगों ने तलवार का इस्तेमाल आम जन के ऊपर किया हो। इसी साल अप्रैल में एक और व्यक्ति का हाथ काटा गया था। वो घटना भी हरियाणा के सोनीपत के कुंडली बॉर्डर की थी।
शेखर नामक युवक की गलती बस इतनी थी कि वो प्याऊ मनियारी के कट से एचएसआईआईडीसी की तरफ जा रहा था। मगर, जब वह किसानों के टेंटों के साथ से निकलने लगा तो उसका एक निहंग सिख के साथ झगड़ हो गया। इसके बाद निहंग ने युवक के हाथ पर हमला कर दिया।
17 जून 2021 की तड़के 3 बजे किसानों के प्रदर्शनस्थल टिकरी बॉर्डर पर मुकेश कसार को जिंदा जलाकर मार डाला गया था। रिपोर्ट के अनुसार, मुकेश को पहले शराब पिलाई गई थी। उसे शहीद बताकर पेट्रोल छिड़क कर उस पर आग लगाई गई थी
21 जनवरी को निहंगों की हिंसक प्रवृत्ति नजर आई थी। अलीपुर में प्रदर्शन के दौरान निहंगों के साथ रहने वाले युवक रंजीत सिंह ने एसएचओ प्रदीप पालीवाल पर तलवार से हमला किया था, अधिकारी की गर्दन बाल-बाल बची थी। लेकिन हाथ चोटिल हो गया था।
16 फरवरी को सिंघु बॉर्डर के पास अलीपुर में निहंग सिख हरप्रीत सिंह ने पुलिस की कार छीनकर भागने की कोशिश की थी। 7 किमी दूर जाकर उसे पकड़ा गया था। जहाँ उसने आशीष दुबे पर तलवार चला दी थी। उस समय आशीष की गर्दन में चोट आई थी।
मालूम हो कि ये केवल चुनिंदा घटनाएँ है। ऐसे तमाम मामले हैं जब किसानों का प्रदर्शन न केवल दागदार हुआ बल्कि इसकी मंशा पर भी सवाल उठे। मई माह में ही एक बंगाल की युवती के साथ रेप के खुलासे ने तमाम किसान प्रदर्शनकारियों पर सवाल खड़े कर दिए थे।
26 जनवरी पर हुई हिंसा तो शायद ही किसी के जहन से निकलें, जहाँ सैंकड़ों किसान प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली की सड़क पर उपद्रव मचाया था और निहंग सिख खुली तलवार लेकर घूमते दिखाई पड़े थे। इसके बाद मई के माह में एक बंगाल की लड़की से रेप की घटना ने सबको झकझोर दिया था। उससे पूर्व महिला पत्रकारों से हुई बदसलूकी ने इस प्रदर्शन में मौजूद तत्वों की पुष्टि की थी। इन सबके साथ इस प्रदर्शन की सबसे विवादस्पद चीजों में देश विरोधी नारे और शरजील इमाम और उमर खालिद के पोस्ट का प्रदर्शन भी शामिल है।