ओडिशा हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की का लगातार रेप करने वाले एक शख्स को अंतरिम जमानत दे दी है। आरोपित ने लड़की को 2 बार प्रेग्नेंट भी कर दिया था। उसका जबरदस्ती गर्भपात भी करवाया गया। अब कोर्ट ने पीड़िता से निकाह करने के लिए ही आरोपित को अंतरिम जमानत दी है।
ओडिशा हाई कोर्ट में ने 26 साल के आरोपित युवक हामिद को एक महीने के लिए यह अंतरिम जमानत दी है। ओडिशा हाई ने कहा है कि दोनों का रिश्ता किसी दबाव से नहीं बल्कि आपसी सहमति से बना था। हाई कोर्ट ने कहा है कि निकाह करने और जमानत खत्म होने के बाद हामिद को वापस लौटना होगा।
कोर्ट का कहना है कि दोनों के परिवार वाले उनकी शादी के लिए राजी हैं, इसलिए उसको जमानत दी जा रही है। ओडिशा हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस दौरान लड़की के लगाए आरोपों पर जाँच चलती रहेगी।
ओडिशा हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाने के दौरान किशोरों के प्रेम संबंध को लेकर टिप्पणियाँ भी की और POCSO के मामलों के विषय में भी बताया। हाँलाकि मामले की गंभीरता को समझते हुए जाँच लगातार जारी रहेगी।
क्या था मामला?
आरोपित को POCSO एक्ट के तहत 2023 में गिरफ्तार किया गया था। महिला का आरोप था कि 2019 में उसने शादी का वादा किया था और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। महिला ने बताया कि 2020 और 2022 में वह दो बार प्रेग्नेंट भी हुई थी, लेकिन उसने जबरदस्ती उसका गर्भपात करा दिया।
आरोपित के खिलाफ इसके बाद POCSO का मामला दर्ज हुआ था। आरोपित ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि पीड़िता से शादी करने से इंकार करने के बाद उसे झूठे केस में फँसाया जा रहा है। कुछ दिनों पहले आरोपित ने अंतरिम जमानत के लिए कोर्ट में अर्जी देते हुए कहा कि उसके और पीड़िता के परिवार वाले चाहते हैं कि उसकी शादी हो जाए।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
ओडिशा हाई कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान जमानत देते हुए कहा कि POCSO अधिनियम का उद्देश्य किशोरों की आपसी सहमति से बने प्रेम संबंधों को अपराध बनाना नहीं, बल्कि उसका उद्देश्य नाबालिगों की सुरक्षा और यौन शोषण पर रोक लगाना है।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही ने कहा कि इस मामले में कानून को मशीनी तरीके से ना लागू किया जाए बल्कि सही दृष्टिकोण अपनाया जाए। हाई कोर्ट ने यह इस आधार पर कहा क्योंकि पीड़िता और आरोपित की उम्र आस-पास है और उनके बीच संबंध आपसी सहमति से बना था।
ओडिशा हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में कभी कभार परिवार इसलिए केस दर्ज करवाते हैं क्योंकि उन्हें सामाजिक मूल्यों का भय होता है ना कि असल में अपने बच्चे की चिंता। हाई कोर्ट ने कहा कि कानून कभी-कभार परिवारों की लड़ाई का हथियार बन जाता है।