छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक ईसाई का अंतिम संस्कार हिन्दुओं के श्मशान में करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच बंट गई। जस्टिस नागरत्ना ने जहाँ मृतक के बेटे को इस बात की अनुमति ना दिए जाने को संविधान के खिलाफ बताया तो वहीं जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने सरकार के फैसले को सही करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 जनवरी, 2025) को इस संबंध में दायर याचिका पर फैसला सुनाया। दो जजों की बेंच ने इस मामले में बंटी हुई राय दी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई व्यक्ति को उसके गाँव से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक ईसाई कब्रिस्तान में दफनाए जाने का आदेश दिया।
बेंच बंटने के बावजूद यह फैसला बड़ी बेंच के पास नहीं भेजा गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि अलग-अलग कोर्ट में मामला लंबित होने के चलते पिछले 20 दिन से पादरी की मृत देह मोर्चरी में रखी हुई थी। कोर्ट ने कहा है कि राज्य को ईसाई पादरी के अंतिम संस्कार के लिए व्यवस्था भी करे।
जस्टिस नागरत्ना ने क्या कहा?
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि गाँव के श्मशान में पादरी को दफनाने की अनुमति से मना करने से ग्राम पंचायत ने अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं निभाई। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर उसने अपना काम ढंग से किया होता तो मामला 24 घंटे के भीतर सुलझ जाता। जस्टिस नागरत्ना ने गाँव के श्मशान में ईसाई के अंतिम संस्कार की अनुमति ना देने को संविधान का उल्लंघन बताया।
उन्होंने ASP बस्तर के हलफनामे को धार्मिक स्वतंत्रता की बात करने वाले अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताया है। ASP बस्तर ने कहा था कि ईसाइयत में धर्मांतरित हुए व्यक्ति को गाँव के श्मशान में नहीं दफनाया जा सकता। जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि आखिर ASP किस आधार पर यह बात कह दी।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “स्थानीय अधिकारियों की ओर से, चाहे वे गाँव स्तर पर हों या ऊँचे स्तर पर, इस तरह का रवैया सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों और हमारे देश की गौरवशाली परंपराओं के साथ विश्वासघात का संकेत है, जो ‘सर्व धर्म समन्वय/सर्व धर्म समभाव’ में विश्वास करता है, जो सेक्युलरिज्म का सार है।
जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि मृतक को उसकी कृषि भूमि पर दफनाने की अनुमति दी जाए। इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया था कि यदि मृतक को उसकी जमीन में दफनाया जाता है तो वह पवित्र श्रेणी में आ जाएगी और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
उन्होंने यह भी आदेश दिया कि छत्तीसगढ़ 2 महीने के भीतर ईसाइयों के लिए कब्रिस्तानों की व्यवस्था राज्य भर में करे। जस्टिस नागरत्ना का फैसला हालाँकि, प्रभावी नहीं हुआ क्योंकि दोनों ने बाद में मृतक ईसाई को पास के ईसाई कब्रिस्तान में दफनाने का आदेश दिया।
जस्टिस शर्मा क्या बोले?
जस्टिस सतीश चन्द्र शर्मा ने इस मामले में जस्टिस नागरत्ना के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा, “इस मामले में छत्तीसगढ़ राज्य ने हमें बताया है कि 20-25 किलोमीटर दूर ही ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान है जो कि 20-25 किलोमीटर दूर करकापाल गाँव में स्थित है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि आखिर याचिकाकर्ता को किसी एक ही स्थान पर उसके पिता को दफनाने की अनुमति क्यों मिलनी चाहिए।”
जस्टिस शर्मा ने कहा कि किसी का धार्मिक अधिकार इतना नहीं हो सकता कि वह मनपसंद जगह अंतिम संस्कार के लिए चुने। उन्होंने कहा कि ऐसे में मामलों में कानून व्यवस्था का भी ख्याल रखा जाना चाहिए और प्रशासन ने यही किया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम सही हैं। उन्होंने निर्देश दिया कि मृतक का अंतिम संस्कार 20 किलोमीटर दूर ईसाइयों के कब्रिस्तान में किया जाए, जिसके लिए प्रशासन व्यवस्थाएँ उपलब्ध करवाए।
क्या था मामला?
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के रहने वाले रमेश बघेल के पिता सुभाष बघेल की मौत 7 जनवरी, 2025 को हो गई थी। रमेश बघेल एक ईसाई है और उसके दादा हिन्दुओं की महरा जाति से ईसाई बन गए थे। मृतक सुभाष बघेल एक ईसाई पादरी भी रहा था।
सुभाष बघेल की मौत के बाद बेटे रमेश बघेल ने गाँव के श्मशान में उसका ईसाई रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करना चाहा था। यहाँ रहने वाले हिन्दुओं और बाकी समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया। हिन्दुओं ने रमेश बघेल से कहा कि वह अपने पिता का अंतिम संस्कार 20 किलोमीटर दूर एक ईसाई श्मशान में करें।
मामले में घटनास्थल पर पहुँची पुलिस ने भी रमेश बघेल से कहा कि वह बिना विवाद के ईसाइयों के श्मशान में अपने पिता का अंतिम संस्कार कर दें। हालाँकि, रमेश बघेल इस बात पर अड़ गया कि उसे इस जनजातीय श्मशान में ही अपने पिता का अंतिम संस्कार करना है।
वह इस मामले में याचिका लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट पहुँच गया। उसने माँग की कि हाई कोर्ट पुलिस और प्रशासन को आदेश दे कि वह इसी जनजातीय श्मशान में अंतिम संस्कार करवाएँ। हाई कोर्ट ने उसको यह राहत नहीं दी थी जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया था।