Friday, April 19, 2024
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नूपुर शर्मा ने किताब का दिया हवाला, लीना ने माँ काली को सिगरेट पीते दिखाया: एक को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा, दूसरे की गिरफ्तारी से रोका

लीना पर भी लगभग वही आरोप है, जो भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) पर था। हालाँकि, नूपुर ने जो कहा था कि वह इस्लाम के दीनी किताब हदीस में उसका वर्णन किया गया था, लेकिन लीना के मामले में ऐसा नहीं है। मोहम्मद जुोबैर के मामले में भी कोर्ट उदार रहा।

हिंदुओं की आराध्य माता काली (Kaali) को आपत्तिजनक स्थिति में दिखाने वाली फिल्ममेकर लीना मणिमेकलाई (Leena Manimekalai) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत मिल गई है। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने लीला के खिलाफ दर्ज सभी मामलों में गिरफ्तारी पर भी रोक लगा दी है।

लीला ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में माँ काली को LGBTQ वाला झंडा लिए और सिगरेट पीते हुए दिखाया था। इसको लेकर देश भर में हंगामा मच गया था। उसके बाद लीला के खिलाफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में कई मामले दर्ज किए गए थे।

इस मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड ने इन सभी राज्यों को नोटिस भी जारी किया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फिल्म निर्माता के खिलाफ पहले से दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर या किसी भी प्राथमिकी के आधार पर कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।

लीना की ओर से कोर्ट में पेश वकील कामिनी जायसवाल ने कहा कि उनके मुवक्किल का इरादा किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था। उन्होंने कहा कि वह देवी की एक समावेशी छवि दिखाना चाहती थीं। वकील ने दावा किया कि उनकी फिल्म देवी के व्यापक विचारों को दर्शाती है।

इस पर CJI ने आदेश में कहा, “सुश्री जायसवाल ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता कनाडा में यॉर्क विश्वविद्यालय में स्नातक की छात्रा है। उन्होंने देवी को चित्रित करते हुए एक लघु फिल्म काली का निर्माण किया है। इसमें किसी की धार्मिक भावनाएँ आहत करने का कोई इरादा नहीं है। फिल्म का उद्देश्य देवी को एक समावेशी अर्थ में चित्रित करना था।”

कामिनी जायसवाल ने कहा कि लीना एक प्रसिद्ध फिल्ममेकर और उनके खिलाफ 6 मुकदमे दर्ज हैं। इसके साथ ही लुकआउट सर्कुलर भी जारी किया गया है। लीना के वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि कहना था कि इस फिल्म के पोस्टर को ट्वीट करने के बाद उन्हें जाने से मारने की धमकी दी गई थी।

वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि उनके खिलाफ अलग-अलग राज्यों में दर्ज मामलों को रद्द कर दिया जाए या उन्हें एक कर दिया जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस माँग राज्यों से जवाब माँगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 फरवरी 2023 को होगी।

नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की थी तीखी टिप्पणी

याद रहे, लीना पर भी लगभग वही आरोप है, जो भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) पर था। हालाँकि, नूपुर ने जो कहा था कि वह इस्लाम के दीनी किताब हदीस में उसका वर्णन किया गया था, लेकिन लीना के मामले में ऐसा नहीं है। मोहम्मद जुोबैर के मामले में भी कोर्ट उदार रहा।

दोनों महिलाओं पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगा और कई राज्यों में FIR दर्ज की गई। दोनों ही सुप्रीम कोर्ट भी पहुँचीं लेकिन दोनों मामले में देश के सर्वोच्च न्यायालय का नजरिया अलग-अलग दिखा।

जहाँ लीना के मामले में सुप्रीम कोर्ट बेहद उदार नजर आया, वहीं नूपुर के मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें देश भर में बवाल के लिए जिम्मेदार ठहराया। नूपुर शर्मा के खिलाफ सभी मामलों को क्लब करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उन पर बेहद तीखी टिप्पणी की थी।

उस समय सु्प्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह सारे देश में आग लगाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में राहत के लिए आ रही हैं। कोर्ट ने देश में उस वक्त जो हुआ, उसके लिए नूपुर शर्मा को अकेला जिम्मेदार थीं। यहाँ तक कि कोर्ट ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा तक बता दिया।

कोर्ट ने नूपुर शर्मा को बदजुबान, अड़ियल और अहंकारी बताते हुए उन्हें अपनी टिप्पणी के लिए पूरे देश से माफी माँगने के लिए कहा था। हालाँकि, लीना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी टिप्पणी के उन्हें राहत दे दी।

जुबैर के मामले में भी कोर्ट था उदार

लीना ही नहीं, मोहम्मद जुबैर क मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने उदार रूख अपनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर के मामले कहा था कि उन्हें टिप्पणी करने की जरूरत क्या थी। वहीं, जुबैर के मामले में उसी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जुबैर को ट्वीट करने से रोका नहीं जा सकता। यहाँ जानना जरूरी है कि नूपुर शर्मा ने जो हदीस में बातें लिखी गई हैं, उसे टीवी में बहस के दौरान बताया था, जिसे ईशनिंदा करार दिया गया था। वहीं, जुबैर पर हिंदू धर्म के लोगों की भावनाएँ आहत करने का आरोप है।

नूपुर शर्मा के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उनका बयान लोगों (मुस्लिमों) को भड़काने के लिए दिया गया था। वहीं, जुबैर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अप्रत्याशित रूप से रोक नहीं लगाई जा सकती।

उसी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा की याचिका में अहंकार की बू आ रही है, जबकि जुबैर मामले में यह पुलिस द्वारा उचित एवं निष्पक्ष जाँच का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया था कि देश में जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ नूपुर शर्मा जिम्मेदार हैं। वहीं, जुबैर मामले में उसी कोर्ट ने कहा कि उसे लगातार हिरासत में रखना उचित नहीं है।

शिव अरूर ने अपने शो में आगे बताया था कि सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल की गला काटकर हत्या के लिए नूपुर शर्मा को जिम्मेदार बताया था, जबकि जुबैर के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे स्वतंत्रता से वंचित रहने का कोई कारण नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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