जन्नत का दृश्य है, 130 फ़ीट की 72 हूरों के साथ वो लोग बैठे हुए हैं जिनकी इस्लाम में सबसे ज़्यादा इज्जत है, वो जन्नत में बहने वाली दारू की नदी में से दारू निकाल कर ‘दारू पर चर्चा’ कर रहे हैं। सबका मजाक बनाया जा रहा है। आतंकवाद पर चर्चा हो रही है, ‘सर तन से जुदा’ पर चर्चा हो रही है। क्या आपने कभी किसी यूट्यूब चैनल पर ऐसा ‘व्यंग्य’ वाला वीडियो देखा? नहीं देखा ना? हम पूरी बात समझेंगे, लेकिन पहले शुरू से शुरू करते हैं।
‘झबड़ा’ कहे जाने वाले अभिनंदन शेखरी कप्रोपगैंडा प्लेटफॉर्म Newslaundry एक वीडियो बनाता है। वीडियो में व्यंग्य के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं और पौराणिक किरदारों का मज़ाक बनाया जाता है। महान स्वतंत्रता सेनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर का अपमान किया जाता है। शुरू में एक फालतू डिस्क्लेमर लगा दिया जाता है, जिसे व्यंग्य की शैली में रखने के चक्कर में उसकी ऐसी की तैसी कर दी गई है। जिस वीडियो की हम बात कर रहे, उसमें पत्रकार अतुल चौरसिया ने राम मंदिर पर प्रलाप किया है।
उस वीडियो में पत्रकार अमीश देवगन को ब्रह्मर्षि नारद की भूमिका में दिखाया गया है। साथ ही अंजना ओम कश्यप को एक साध्वी की वेशभूषा में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी प्राचीन शासक की वेशभूषा में दिखाया गया है। इस वीडियो में वीर सावरकर और अटल बिहारी वाजपेयी को भी दिखाया गया है। दिखाया गया है कि स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के मौजूदा घटनाक्रम से दुःखी हैं।
संक्षेप में बताएँ तो इस वीडियो के जरिए जहाँ इस बात पर चिंता जताई गई है कि 500 वर्षों के संघर्ष और बलिदानों के बाद अवैध कब्जे से मुक्त हुई रामजन्मभूमि पर बन रहे मंदिर को मीडिया कवरेज क्यों मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल और कॉन्ग्रेस का बचाव किया गया है और उन्हें सीख दी गई है कि आगे क्या करना चाहिए। वीडियो में आज के भारत पर चिंता जताते हुए वीर सावरकर पर दोष मढ़ दिया गया है। यहाँ तक कि सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन को लेकर नेहरू ने डॉ प्रसाद को वहाँ न जाने की सलाह दी थी, उसका भी बचाव किया गया है।
अब वापस आते हैं डिस्क्लेमर पर। इसमें लिखा है, “यह बात समझ से परे है कि किसी मृत व्यक्ति की भावना को कैसे ठेस पहुँच सकती है, लेकिन अगर आत्मा ज़िंदा रहती है और आत्मा में भावनाएँ हैं तो हम नहीं चाहते कि उस आत्मा की भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुँचाना सकते।” यहाँ बड़ी चालाकी से हिन्दू देवी-देवताओं, साधु-संतों और पौराणिक पात्रों पर टिप्पणियों को लेकर खुद को ही NOC सर्टिफिकेट दे दिया गया है। यानी, उनका कहना है कि वो हिन्दुओं की भावनाएँ आहत करेंगे और किसी को विरोध करने का अधिकार नहीं है।
ठीक है, चलिए मान लेते हैं। किसी को आहत होने का अधिकार नहीं है। Newslaundry को पत्रकारिता का सबसे बड़ा झंडाबरदार भी मान लेते हैं। अतुल चौरसिया को श्रीलाल शुक्ल से भी अव्वल दर्जा का व्यंग्यकार का दर्जा दे देते हैं। तो क्या अब ‘न्यूजलॉन्ड्री’ के यूट्यूब चैनल पर स्वर्ग की जगह जन्नत का वीडियो आएगा, जिसमें हिन्दू धर्म नहीं बल्कि इस्लाम मजहब वाले जिनकी इबादत करते हैं, जिन्हें महापुरुष मानते हैं – उन्हें लेकर व्यंग्य किया जाएगा? क्या ये संभव है?
मान लीजिए, जन्नत का दृश्य है। वहाँ मुल्ले-मौलवी जमा हैं। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे का ‘सर तन से जुदा’ किए जाने पर बहस हो रही है। जिस तरह अतुल चौरसिया ने इस वीडियो में धर्मराज युधिष्ठिर को लेकर व्यंग्य किया है, क्या वो इस्लाम के ____ को लेकर व्यंग्य कर सकता है? नूपुर शर्मा ने जब हदीथ से लेकर एक तथ्य का जिक्र कर दिया तो क्या हुआ ये बताने की ज़रूरत नहीं है। वो डेढ़ वर्षों से घर में कैद हैं, बाहर निकलती भी हैं तो काफी सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत पड़ती है।
उसके बाद ‘सर तन से जुदा’ का सिलसिला चला, देश भर में भीड़ जुटा कर नारेबाजी हुई, इस बयान का समर्थन करने वालों पर हमले हुए, क़तर से लेकर अन्य इस्लामी मुल्कों से बयान दिलवाए गए और पूरे देश में डर का माहौल बना दिया गया। जब तथ्य कहने पर इतना सब कुछ हो गया, व्यंग्य पर क्या कुछ होगा ये सोच से भी परे है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास इसका उदाहरण मौजूद नहीं है। फ्रांस में एक ऐसे ही व्यंग्य के कारण कुछ ऐसा हो गया था जिसने पूरे यूरोप को हिला दिया था।
जनवरी 2015 में फ्रांस में ‘शार्ली हेब्दो’ पत्रिका के दफ्तर पर हमला बोल दिया गया। कारण – उसने पैगंबर मुहम्मद का कार्टून प्रकाशित किया था। पत्रिका के दफ्तर और एक सुपरमार्केट पर हुए हमलों में 17 लोग मारे गए। मृतकों में 5 कार्टूनिस्ट थे, इमारत के बाहर तैनात एक पुलिस अधिकारी थी। अगले दिन एक सुपरमार्ट पर हमला कर के एक कर्मचारी और 3 ग्राहकों को इन्हीं हमलावरों में मार डाला। अक्टूबर 2020 में फ्रांस में ही एक शिक्षक सैमुअल पैंटी को उनके ही छात्र ने मार डाला, क्योंकि उन्होंने क्लासरूम में ये कार्टून दिखाया था।
नूपुर शर्मा और ‘शार्ली हेब्दो’ वाली घटनाएँ सिर्फ एक उदाहरण हैं उस चीज का, जो सदियों से होता आ रहा है। अगर ‘न्यूजलॉन्ड्री’ की हिम्मत है तो वो इसी तरह का वीडियो बनाए। इस्लाम छोड़िए, ईसाई मजहब या जीसस क्राइस्ट को लेकर ही कोई व्यंग्य बना कर दिखाए। फरिश्तों, 72 हूरों और जन्नत में शराब की नदी पर क्या कभी ‘न्यूजलॉन्ड्री’ व्यंग्य बनाएगा? नहीं बनाएगा, क्योंकि इसका सारा डिस्क्लेमर सिर्फ हिन्दुओं के लिए है, अगर कहीं एक मुस्लिम भी नाराज़ हो गया तो ये मीडिया संस्थान बिना किसी व्यंग्य के माफीनामा जारी कर देगा।
‘न्यूजलॉन्ड्री’ ‘जन्नत में दारू की टपरी’ पर 72 हूरों के साथ चर्चा करते हुए मुल्ले-मौलवियों का भी वीडियो आएगा? अलकाय, ISIS, बोको हराम, तालिबान और जैश-ए-मुहम्मद द्वारा की जा रही हत्याओं पर चर्चा सुनने को मिलेगी? बिना किसी बात के ‘संविधान की हत्या’ का रट्टा मारने वाला अतुल चौरसिया सचमुच में हो रही हत्याओं पर कुछ बोलेगा? सचमुच की हत्याएँ, यानी जहाँ हथियार का इस्तेमाल किया जाता है, खून निकलता है, अस्पताल में पोस्टमॉर्टम होता है, परिवार वाले रोते हैं।
ये ‘संविधान की हत्या’ क्या होती है? ‘न्यूजलॉन्ड्री’ कहता है कि मीडिया मर गया है। क्या भारत भूमि के आराध्य श्रीराम से जुड़ी खबरें दिखाने की मनाही है संविधान में? कहाँ लिखा है, किसने लिखा है? संविधान में तो राम, सीता और लक्ष्मण के वन-गमन की तस्वीर अंकित है। राम-राज्य की अवधारणा तो महात्मा गाँधी की थी, जिनका इस वीडियो में इस्तेमाल वीर सावरकर को नीचा दिखाने के लिए किया गया है। वो वीर सावरकर, जिन्हें अंग्रेजी ने दो-दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई, कालापानी की कैद में कोल्हू में बैल की जगह जोता।
वहीं वीर सावरकर, जिनके बिना 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को हम अंग्रेजों के नज़रिए से साधारण ‘सिपाही विद्रोह’ ही समझ कर पढ़ रहे होंगे, रानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कई शूरवीर इतिहास के पन्नों में गुम रहते। इसीलिए, ‘न्यूजलॉन्ड्री’ ज़रा अपने डिस्क्लेमर के हिसाब से चलते हुए कभी जन्नत की टपरी पर दारू पर चर्चा वाला भी वीडियो बनाए, उसमें इस्लाम मजहब में जिन लोगों का नाम तक लेने पर ‘सर तन से जुदा’ हो जाता है उन्हें लेकर व्यंग्य कर के दिखाए। क्या लगता है, होगा?