Friday, May 3, 2024
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शुरू से एक्शन लेती रही सरकार, फिर भी राजनीति की गंगा में बहे पहलवान: बृजभूषण बनाम हुड्डा की लड़ाई में मेडल भी दाँव पर लगाया, खेल संघों में दखल नहीं दे सकता मंत्रालय

दीपेंद्र सिंह हुड्डा को हटा कर रोहतास सिंह को हरियाणा कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनाया गया। हर राज्य का कोटा तय होने और नई सिलेक्शन नीति बनने से हरियाणा के कुछ पहलवान नाराज़ हो गए।

भारत में पहलवानों के एक वर्ग द्वारा चलाया जा रहा कथित आंदोलन के लिए ज़्यादा से ज़्यादा सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश तेज़ हो गई हैं। पहले तो नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन उस तरफ मार्च करने की कोशिश की गई, विफल होने पर गंगा दशहरा के दिन हरिद्वार में मेडल्स बहाने की कोशिश की। आंदोलन ये कह कर किया जा रहा है कि ‘भारतीय कुश्ती संघ (WFI)’ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने महिला पहलवानों का यौन शोषण किया।

कोई व्यक्ति अगर एक भी महिला का यौन शोषण करता है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए और उसे सज़ा दिलाने के लिए पुलिस से लेकर अदालत तक को देर नहीं करनी चाहिए। पुलिस की जाँच में अगर भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह दोषी पाए जाते हैं तो वो कार्रवाई से नहीं बचेंगे। लेकिन, यौन शोषण के आरोप को राजनीति का मुद्दा बनाना भी ठीक नहीं है। ऐसे गंभीर मसले को जंतर-मंतर से नहीं, बल्कि कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा देखा जाता है।

इस मुद्दे को राजनीति का मसला बना कर केंद्र सरकार के खिलाफ बयान देना ये बताता है कि पहलवानों के एक समूह को देश की व्यवस्था में भरोसा ही नहीं है। उन्हें तय कानूनी प्रक्रिया में कोई विश्वास ही नहीं है। खिलाड़ियों ने इस आंदोलन को एकदम राजनीतिक रंग दे दिया है, ऊपर से ‘किसान आंदोलन’ वाले राकेश टिकैत ने भी इनके पक्ष में धरना दे दिया। प्रियंका गाँधी से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पप्पू यादव तक को पहलवानों के मंच पर जाकर राजनीतिक बयानबाजी करने का मौका दिया गया।

पहलवानों का आंदोलन: केंद्रीय खेल मंत्रालय ने लिया हरसंभव एक्शन

आइए, आगे बढ़ने से पहले बात कर लेते हैं कि ये सब कब से शुरू हुआ। 18 जनवरी, 2023 को पहलवान पहली बार जंतर-मंतर पर जुटे। विनेश फोगाट ने तो WFI अधिकारियों द्वारा हत्या की धमकी मिलने तक की बात कर डाली। उन्होंने तो WFI को भंग करने की माँग करते हुए ये तक कह दिया कि सारे राष्ट्रीय कोच मिले हुए हैं। ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, बल्कि हर आरोप को गंभीरता से लिया गया।

अनुराग ठाकुर के केंद्रीय खेल मंत्रालय ने WFI से 72 घंटे में जवाब तलब किया। अगले ही दिन पहलवानों की केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ उनके आवास पर 5 घंटे तक बैठक हुई। बैठक के बाद बजरंग पूनिया ने कहा भी कि सरकार ने हमारे बातें सुनी है। उसी दिन पहलवान से नेता बनीं बबीता फोगाट ने भी प्रदर्शनकारियों से मुलाकात कर सरकार तक उनकी बात पहुँचाने का आश्वासन दिया। 20 जनवरी को ‘भारतीय ओलंपिक संघ (IOA)’ की अध्यक्ष PT उषा को पत्र लिखा गया।

21 जनवरी को पहलवानों की अनुराग ठाकुर के साथ फिर बैठक हुई और आंदोलन को खत्म करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद सरकार ने न सिर्फ WFI को सारी गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया, बल्कि संस्था के अस्सिस्टेंट सेक्रेटरी विनोद तोमर को भी पद से हटा दिया। WFI ने मंत्रालय को अपना जवाब भी सौंपा। 23 जनवरी को कमिटी गठित कर दी गई और बॉक्सर मैरी कॉम को इसका अध्यक्ष बनाया गया।

इस समिति में पहलवान बबीता फोगाट और योगेश्वर दत्त भी शामिल थे। इन्हें 4 हफ़्तों में जाँच रिपोर्ट सबमिट करने को कहा गया। अब प्रदर्शनकारी पहलवान कहने लगे कि जाँच समिति भी उनके हिसाब से होनी चाहिए। यानी, सरकार जाँच करने के लिए किन लोगों को चुने ये भी वही तय करेंगे। उधर 23 फरवरी को जाँच समिति को 2 हफ़्तों का समय और दिया गया। इधर 23 अप्रैल को पहलवानों ने अपना प्रदर्शन जंतर-मंतर पर फिर से शुरू कर दिया।

केंद्रीय खेल मंत्रालय इस दौरान भी पहलवानों के आरोपों पर गौर कर के कार्रवाई करता रहा। IOA को कहा गया कि वो WFI को चलाए और अगला चुनाव कराए। साथ ही WFI के आंतरिक चुनाव को भी रद्द कर दिया गया। इस बीच देश भर से कई विपक्षी नेता आंदोलन में पहुँच कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देते रहे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर FIR भी दर्ज हो गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी पहलवानों को लौटा दिया।

अब सवाल उठता है कि इन सबके बावजूद आंदोलनकारी पहलवानों ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह को बाधित करने और हरिद्वार में गंगा नदी में मेडल बहाने की योजना क्यों बनाई? इससे तो हमें ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’ की याद आने लगी। कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा नवाजे गए कई तथाकथित बुद्धिजीवियों ने 2016 में अवॉर्ड लौटाने शुरू कर दिया थे। नौटंकी इतनी बढ़ गई थी कि टीवी न्यूज़ शो में अवॉर्ड लौटाए जाने लगे थे।

WFI की चुनावी राजनीति: दीपेंद्र हुड्डा बनाम बृजभूषण शरण सिंह

WFI की चुनावी राजनीति की बात करनी भी यहाँ ज़रूरी है। आपने प्रदर्शनकारी पहलवानों का वो वीडियो देखा होगा, जिसमें वो कहते हैं कि वो नेशनल्स नहीं खेलेंगे बल्कि सीधा ओलंपिक में जाएँगे। साथ ही आपने भूपेंद्र हुड्डा को भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते देखा होगा। 2011 में हुए संस्था के चुनाव में जम्मू कश्मीर के दुष्यंत सिंह अध्यक्ष बने थे, लेकिन हरियाणा की कुश्ती संघ ने इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी और फिर से चुनाव हुए।

इस बार कॉन्ग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा (तब रोहतक से सांसद, अब राज्यसभा MP) और तब समाजवादी पार्टी के सांसद रहे सांसद बृजभूषण शरण सिंह के बीच मुख्य लड़ाई थी। अंततः हुड्डा को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा और बरिसजभूषण शरण सिंह तब से लेकर अब तक लगातार 3 बार संस्था के अध्यक्ष बन चुके हैं। वो 6 बार सांसद भी रह चुके हैं। उनका एक बेटा भी विधायक हैं। उनकी पत्नी भी एक बार सांसद रह चुकी हैं।

उधर 2011, 2015 और 2019 में दीपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनते रहे। बृजभूषण शरण सिंह के कार्यकाल में कई मेडल भारतीय पहलवानों को मिले। उधर दीपेंद्र सिंह हुड्डा को हटा कर रोहतास सिंह को हरियाणा कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनाया गया। हर राज्य का कोटा तय होने और नई सिलेक्शन नीति बनने से हरियाणा के कुछ पहलवान नाराज़ हो गए। हरियाणा में अगले साल ही विधानसभा चुनाव भी होने हैं, ऐसे में इस आंदोलन को लेकर राज्य में राजनीति और तेज हो जाए तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

खेल संघों में दखल नहीं दे सकती केंद्र सरकार, उनका अपना प्रबंधन

अब सवाल ये उठता है कि आखिर केंद्र सरकार WFI में कितना दखल दे सकती है? देश भर के 27 प्रदेशों में WFI से सम्बद्ध संस्थाएँ हैं। इसे केंद्रीय खेल मंत्रालय और IOA की मान्यता प्राप्त है। संस्था ने ‘प्रो रेसलिंग लीग’ की भी शुरुआत की, जिससे भारत में इस खेल को लेकर लोकप्रियता बढ़ी। WFI पहलवानों के लिए देश-विदेश से कोच की व्यवस्था करता है। TATA मोटर्स संस्था की स्पॉन्सर है। WFI को ‘समिति रजिस्ट्रेशन अधिनियम’ के तहत मान्यता मिली हुई है, जिसके तहत चैरिटेबल और अव्यवसायिक संस्थाएँ पंजीकृत की जाती हैं।

सबसे पहले तो आप ये जान लीजिए कि खेल संघों के प्रबंधन में केंद्र सरकार का कोई दखल नहीं होता है। वो स्वतंत्र होते हैं। वो देश भर में टूर्नामेंट आयोजित करते हैं और पुरस्कार देते हैं। जैसे क्रिकेट का काम BCCI देखता है, वैसे ही बाकी ऐसे संघ भी गैर-सरकारी स्वायत्त निकाय हैं। इनमें नेशनल और स्टेट फेडरेशंस होते हैं। किसी संघ को निलंबित कर देने से घाटा खिलाड़ियों का है, क्योंकि फिर वो भारत के झंडे के तले नहीं खेल पाएँगे।

सरकार ज़्यादा से ज़्यादा इन संघों को फंडिंग और सहायता रोक सकती है, लेकिन इससे भी खिलाड़ियों को ही नुकसान होगा। कोई भी खेल संघ बना सकता है, बशर्ते वो उस खेल की अंतरराष्ट्रीय संस्था से संबद्ध हो। अधिकतर खेल ‘इंटरनेशनल ओलंपिक संघ (IOC)’ से जुड़े हैं, ऐसे में उसकी मान्यता ज़रूरी होती है। ऐसे में पहलवान ये माँगें क्यों कर रहे हैं कि WFI को भंग कर दिया जाए? केंद्र सरकार अपनी शक्तियों से बाहर जाकर ये सब कैसे कर सकती है?

ऐसे में पहलवानों को IOC के पास जाना चाहिए और उन्हें कहना चाहिए कि वो WFI की मान्यता रद्द कर दे। केंद्र सरकार से ये सब माँगें करने का कोई फायदा नहीं है। उदाहरण के लिए, भारतीय मुक्केबाजी महासंघ को साल 2012 में उसके अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने निलंबित कर दिया था। वहीं, IOA ने साल 2008 में भारतीय हॉकी महासंघ को निलंबित कर दिया था। सरकार खेलों के लिए नियम-कानून बना सकती है। अमेरिका में तो कोई खेल मंत्रालय ही नहीं है, भारत में भी 1982 से पहले नहीं था।

जो पहलवान आज आंदोलन में लगे हुए हैं, उनमें से अधिकतर ने बृजभूषण शरण सिंह की पहले तारीफ की थी। 2022 के एक वीडियो में साक्षी मलिक को मेडल जीतने के बाद बृजभूषण शरण सिंह की तारीफ़ करते हुए देखा गया। विनेश फोगाट ने 2018 में कहा था कि उनके खेल में किसी प्रकार के यौन शोषण की उन्हें कोई जानकरी नहीं है। साक्षी मलिक ने बृजभूषण शरण सिंह को 2017 में अपने शादी समारोह में भी आमंत्रित किया था और परिवार के साथ तस्वीरें क्लिक करवाई थीं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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