अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दावा कर रहे हैं कि भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच गोलीबारी रुकवाने का श्रेय उन्हें मिलना चाहिए। लेकिन उनका यह दावा पूरी तरह गलत और आत्ममुग्धता से भरा है। भारत ने साफ कर दिया है कि ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़े फैसले पूरी तरह उसके अपने थे, न कि अमेरिका की मध्यस्थता से। भारत ने यह भी बताया कि कोई औपचारिक युद्धविराम हुआ ही नहीं। ऑपरेशन को रोकना भारत का रणनीतिक फैसला था, जो उसकी शर्तों पर लिया गया। अगर पाकिस्तान कोई गलती करता है, तो यह समझौता तुरंत खत्म भी हो सकता है।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों (DGMO) के बीच पहले से बातचीत चल रही थी, और उसी के तहत यह कदम उठाया गया। ऐसे में ट्रंप का दावा कि उन्होंने गोलीबारी रुकवाई, सरासर गलत है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों और स्वतंत्र नीति के आधार पर यह फैसला लिया, न कि अमेरिकी दबाव में।
ट्रंप ने परमाणु युद्ध रोकने का किया फर्जी दावा, भारत ने किया खारिज
ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को युद्ध से रोका और एक संभावित परमाणु संघर्ष टाल दिया। अपने बयानों में वह खुद को शांति का ऐसा मसीहा बताते हैं, जिसने अपने शांतिपूर्ण नेतृत्व से एशियाई देशों को राह दिखाई और दुनिया को परमाणु युद्ध बचा लिया। लेकिन यह दावा न सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर किया गया, बल्कि हकीकत से कोसों दूर है।
Full comments by US President Donald Trump on India Pakistan understanding of 10 May
— Sidhant Sibal (@sidhant) May 13, 2025
"Let us not trade nuclear missiles, let us trade" goods
"India, Pakistan are getting along, & they can have a nice dinner 🍽️"
"Millions of people could have died due to the conflict" pic.twitter.com/9u0Ijx8dJb
सऊदी अरब में एक कार्यक्रम में ट्रंप ने फिर यही दावा दोहराया। उन्होंने कहा कि उनके व्यापारिक प्रभाव और शर्तों की वजह से दोनों देश समझौते के लिए तैयार हुए। उनके स्टाफ ने तालियाँ बजाकर और सिर हिलाकर उनका समर्थन किया। ट्रंप यहीं नहीं रुके, उन्होंने तो यह भी कह दिया कि भारत और पाकिस्तान अब इतने अच्छे दोस्त हो गए हैं कि उन्हें जल्द डिनर करना चाहिए। यह बयान भी उनकी उसी पुरानी रणनीति का हिस्सा था, जिसमें वे खुद को वैश्विक संकटों का समाधानकर्ता देखते रहते हैं।
लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने 13 मई 2025 को ट्रंप के दावों को खारिज कर दिया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पाकिस्तान को शत्रुता छोड़ने और बातचीत की मेज पर आने के लिए भारत की सैन्य ताकत और सख्त रवैये ने मजबूर किया, न कि किसी विदेशी मध्यस्थता ने। उन्होंने साफ कहा कि भारत अपने फैसले खुद लेता है और अपने हितों के हिसाब से चलता है।
India also dismissed mediation claims by Trump. MEA Spox said, that it was 'it was of force of Indian arms that compelled Pakistan to stop its firing' & not mediation.
— Sidhant Sibal (@sidhant) May 13, 2025
Full comments:pic.twitter.com/Zis855daBq
ट्रंप का यह दावा कि उन्होंने व्यापार का इस्तेमाल करके भारत-पाकिस्तान को राजी किया, भी पूरी तरह निराधार है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत-अमेरिका के बीच हुई किसी भी बातचीत में व्यापार का जिक्र तक नहीं हुआ। उन्होंने दो टूक कहा कि यह दावा पूरी तरह निराधार है। उन्होंने कहा कि भारत ने अपने सभी फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीति के आधार पर लिए, न कि किसी व्यापारिक सौदेबाजी के तहत।
India also dismissed mediation claims by Trump. MEA Spox said, that it was 'it was of force of Indian arms that compelled Pakistan to stop its firing' & not mediation.
— Sidhant Sibal (@sidhant) May 13, 2025
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डोनाल्ड ट्रंप के परमाणु युद्ध रोकने के दावे को भी भारत ने खारिज कर दिया। जायसवाल ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “देखिए, हमारी तरफ से सैन्य कार्रवाई पूरी तरह से पारंपरिक दायरे में थी। कल रक्षा ब्रीफिंग में भी यह साफ तौर पर कहा गया था, जहाँ संबंधित सवालों पर चर्चा की गई थी। हालाँकि, ऐसी खबरें थीं कि पाकिस्तान की नेशनल कमांड अथॉरिटी 10 मई को बैठक करेगी, जो हमने देखी। लेकिन बाद में उन्होंने इसका खंडन किया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने खुद सार्वजनिक रूप से किसी भी परमाणु पहलू से इनकार किया है।”
Watch: MEA Spokesperson Randhir Jaiswal says, "See, the military action from our side was entirely within the conventional domain. This was also clearly stated in the defence briefing yesterday, where related questions were addressed. However, there were reports that Pakistan’s… pic.twitter.com/H3eQI0Vw9X
— IANS (@ians_india) May 13, 2025
तो सवाल यह है कि ट्रंप यह दावा क्यों कर रहे हैं? क्या वे अपने MAGA समर्थकों को खुश करने के लिए खुद को दुनिया का उद्धारक दिखाना चाहते हैं? या उनके सहयोगी उन्हें गलत जानकारी देकर खुश रखना चाहते हैं? ट्रंप के बयान न सिर्फ गलत हैं, बल्कि भारत-पाकिस्तान जैसे जटिल संघर्ष को बेहद सरल और गलत तरीके से पेश करते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने इस संघर्ष की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करते हुए ट्रंप ने इसे ऐसे पेश किया मानो यह उनके हस्तक्षेप से अचानक सुलझ गया हो, जो कि न तो कूटनीतिक रूप से सही है, न ही वास्तविकता के करीब है।
भारत अपने दुश्मन को जानता है, उसे कब और क्या निशाना बनाना है
ट्रंप के बयान कई वजहों से चिंता पैदा करते हैं। उन्होंने भारत और पाकिस्तान को ऐसे दो बेवकूफ देशों की तरह दिखाने की कोशिश की, जो बिना वजह लड़ रहे हैं। यह न सिर्फ अपमानजनक है, बल्कि इस क्षेत्र के संघर्ष की वास्तविक ऐतिहासिक और राजनीतिक जटिलताओं को भी नजरअंदाज करता है।
हैरानी की बात है कि अगर कोई देश बिना ठोस कारण के युद्ध, बमबारी, प्रतिबंध और धमकियों से दुनिया में तनाव बढ़ाता रहा है, तो वह अमेरिका खुद है, खासकर ट्रंप के पिछले कार्यकाल में।
भले ही ट्रंप ने शांति की बातें की हों और व्यापार को प्राथमिकता देने का दावा किया हो, इससे उन्हें भारत की सैन्य रणनीति या कूटनीति को दिशा देने का कोई नैतिक या राजनीतिक अधिकार नहीं मिल जाता। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़े सभी निर्णय अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा प्राथमिकताओं के आधार पर लिए थे, न कि किसी बाहरी दबाव या मध्यस्थता के तहत।
भारत पिछले 75 वर्षों से पाकिस्तान के साथ जटिल और चुनौतीपूर्ण संबंधों को संभाल रहा है। इन दशकों में भारत ने पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़े हैं, कई दौर की बातचीत की है, कूटनीतिक प्रयास किए हैं और सीमित व्यापार भी किया है, और यह सब अमेरिका की वजह से नहीं, बल्कि उसके बावजूद किया है।
आज भारत एक सैन्य और रणनीतिक महाशक्ति बन चुका है। उसे ट्रंप और रुबियो जैसे नेताओं से यह सीखने की जरूरत नहीं कि पाकिस्तान से कैसे निपटना है। भारत अच्छे से जानता है कि उसका दुश्मन कौन है, उसे कब और कैसे निशाना बनाना है, और कब रुकना है।
भारत ने लगभग आठ दशकों तक इस पड़ोसी देश के साथ काम किया है। टकराव, संवाद और सामरिक संतुलन के जरिये। सच तो यह है कि पाकिस्तान को भारत से बेहतर कोई नहीं समझता, न अमेरिका, न उसके नेता।
ऑपरेशन सिंदूर का मकसद अपने लक्ष्य को सटीकता से भेदना और रणनीतिक जीत हासिल करना था। मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि अब किसी भी आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा। भारत ने पाकिस्तान की पुरानी ‘परमाणु धमकी’ की रणनीति को भी बेअसर कर दिया है।
भारत ने दुनिया को बता दिया कि अब पाकिस्तान यह बहाना नहीं बना सकता कि आतंकी संगठनों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। हर आतंकी हमले के लिए न सिर्फ आतंकी संगठन, बल्कि पाकिस्तान सरकार और उसकी व्यवस्था भी जिम्मेदार होगी। यह भारत की नई रणनीतिक सोच और सख्त सुरक्षा नीति का हिस्सा है, जो निर्णायक कार्रवाई और स्पष्ट जवाबदेही पर आधारित है।
अगर ट्रंप वाकई स्थिति को समझते, तो उन्हें पता होता कि भारत अपनी जरूरत और रणनीति के हिसाब से पाकिस्तान में लक्ष्यों को निशाना बना सकता है। इसके लिए उसे वाशिंगटन या किसी बाहरी दबाव की जरूरत नहीं।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिलताओं को समझने का दिखावा करना, खासकर जब ट्रंप ‘व्यापार’ को एक लालच के तौर पर पेश करते हैं, यह पश्चिमी शक्तियों की उथली और अहंकारी मानसिकता को दर्शाता है। भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक फैसले पूरी तरह से उसकी स्वायत्तता, रणनीतिक समझ और राष्ट्रीय हितों पर आधारित हैं, न कि किसी विदेशी दबाव या मध्यस्थता से।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिल गतिशीलता को समझने का केवल दिखावा करना, और यह मान लेना कि दोनों देश किसी बाहरी नेता के इशारे पर नाच सकते हैं। वह भी ‘व्यापार’ जैसे लालच के माध्यम से पश्चिमी शक्तियों की हल्की-फुलकी और घमंडी सोच को उजागर करता है।
व्यापार एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है, न कि कोई परोपकारी कदम। भारत, जिसकी आबादी 1.4 अरब है, आज एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। अमेरिका भारत के साथ व्यापार इसलिए करता है क्योंकि इससे उसे आर्थिक रूप से लाभ होता है, न कि भारत पर किसी दबाव या एहसान के तहत।
ट्रंप का यह दावा कि उन्होंने व्यापार का लालच देकर भारत को सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए मजबूर किया, पूरी तरह हास्यास्पद है। ऑपरेशन सिंदूर भारत की एक सफल और निर्णायक कार्रवाई थी। इसके बाद जो भी समझौता हुआ, वह पाकिस्तान के अनुरोध पर और भारत की शर्तों पर हुआ, न कि किसी बाहरी दबाव या व्यापार के लिए।
दुनिया को नियंत्रित करने का भव्य भ्रम, एक खोखले दावे से दूसरे तक चलता हुआ।
यह वही डोनाल्ड ट्रंप हैं जिन्होंने कई बार बड़े दावे किए थे कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को एक ही दिन में खत्म कर देंगे। लेकिन अब उनके दोबारा पदभार संभाले करीब पाँच महीने हो चुके हैं, और युद्ध अभी भी पूरी ताकत से जारी है। उनके दावे एक बार फिर हकीकत से कोसों दूर साबित हुए हैं।
यह वही डोनाल्ड ट्रंप हैं जिन्होंने दावा किया था कि वे हमास को एक ही बार में सभी इज़रायली बंधकों को रिहा करने के लिए मजबूर कर देंगे, और यह भी कहा था कि हमास उनकी ताकत और श्रेष्ठता से काँप रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि इज़रायल द्वारा ग़ाज़ा पर लगातार सैन्य हमलों, व्यापक तबाही और हर तरह के कूटनीतिक और सैन्य दबाव के बावजूद, कई बंधक अब भी हमास की हिरासत में हैं। ट्रंप के दावे एक बार फिर ज़मीनी सच्चाई से दूर और खोखले साबित हुए हैं।
यह वही डोनाल्ड ट्रंप हैं जिन्होंने बड़े-बड़े वादे किए थे। कि वे जेफरी एपस्टीन से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करेंगे, अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तुरंत सुपर-तेज़ विकास के रास्ते पर ले जाएंगे, और एक जादुई छड़ी की तरह अवैध आव्रजन और देश में बढ़ते हिंसक अपराधों को रोक देंगे। लेकिन हकीकत यह है कि ऐसे मुद्दे बेहद जटिल होते हैं, और इनका समाधान किसी घमंडी राजनेता की सनक या दावे भर से नहीं होता। जमीनी समस्याएँ भाषणों या दिखावे से नहीं, ठोस नीति और गंभीर प्रयासों से हल होती हैं, जो अब तक देखने को नहीं मिले हैं।
जहाँ तक रूस-यूक्रेन युद्ध का सवाल है, यह तय करना पूरी तरह उन देशों के संबंधित नेताओं यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का अधिकार है कि युद्ध को कैसे आगे बढ़ाना है, बातचीत कब और कैसे करनी है, तनाव को कैसे कम करना है और युद्ध को कैसे समाप्त करना है। अमेरिका चाहें तो मध्यस्थता की पेशकश कर सकता है या वार्ता में सहयोग दे सकता है, लेकिन व्लादिमीर पुतिन उसके आदेश मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस संघर्ष का समाधान केवल संबंधित पक्षों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और कूटनीतिक प्रयासों से ही संभव है, न कि बाहरी दबाव या दावों से।
भारत की नीति या सैन्य रणनीति वाशिंगटन पर नहीं है निर्भर
अमेरिका और व्यापक रूप से पूरे पश्चिमी जगत को अक्सर दुनिया को उपदेश देने की आदत है। एक प्रकार का औपनिवेशिक हैंगओवर, जो उन्हें यह भ्रम देता है कि पूरी दुनिया, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण, अब भी उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य है, जैसे 1800 के दशक में हुआ करता था।
लेकिन भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है, जिसने आज़ादी के बाद से लगातार जटिल भू-राजनीतिक और सैन्य चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी नीति और रणनीति स्वयं तय की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत और भी अधिक मुखर और आत्मविश्वासी हुआ है, विशेष रूप से अपनी सामरिक क्षमताओं को लेकर।
भारतीय नौसेना आज हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति बन चुकी है, चाहे वह सोमालिया के तटों पर समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना हो या बांग्लादेश के जल क्षेत्रों में प्रभाव बनाए रखना।
भारत क्षेत्रीय और वैश्विक मंच पर अपने हितों की रक्षा करने को तैयार है, बिना किसी बाहरी दबाव के। भारत अमेरिका के साथ दोस्ती और व्यापार का स्वागत करता है, लेकिन यह रिश्ता बराबरी और आपसी सम्मान पर आधारित होना चाहिए, न कि एकतरफा निर्देशों पर।
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़े फैसलों से साबित कर दिया कि वह अपनी सुरक्षा और रणनीति के मामले में पूरी तरह स्वतंत्र है। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को समझने में अमेरिका या उसके नेताओं की कोई जरूरत नहीं। भारत अपनी ताकत और समझ से हर चुनौती का सामना करने को तैयार है।
(यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में संघमित्रा ने लिखी है, इसका हिंदी अनुवाद विवेकानंद मिश्रा ने किया है)