देश में पहले जब भी कोई जघन्य अपराध होता था तो कुछ समय के लिए वह मामला खबरों की सुर्खियाँ बनता था। लोग प्रदर्शन करते थे। न्याय माँगते थे। आगे उस घटना से सबक लेते थे या फिर उसे भूल जाते थे। लेकिन, अब सोशल मीडिया के जमाने में चीजें ऐसी नहीं है। यहाँ कोई भी मामला ज्यादा उछलता है तो पहले उससे वायरल होने वाला कंटेंट तैयार होता है बाकी चरण बाद के हैं। इस कंटेंट बनाने की होड़ में क्रिएटर्स भूल जाते हैं कि जो वो परोस रहे हैं उसका समाज पर क्या असर पड़ेगा।
बात को समझने का सबसे ताजा उदाहरण मेरठ हत्याकांड का है। एक महिला मुस्कान ने प्रेमी साहिल संग मिलकर अपने पति सौरभ की निर्मम हत्या की और उसके बाद शव को नीले ड्रम में छिपा दिया। मामले का खुलासा हुआ तो लोग पत्नी की हैवानियत सुन सिहर गए। मगर, कुछ ही दिन बाद देखा गया कि इस संवेदनशील घटना पर मीम और रील बनने लगी। बीमार मानसिकता का लोग इसका मजाक बनाने लगे। हद्द तो तब हुई जब इस घटना पर गाना तक तैयार हो गया।
यह संवेदना की मौत नहीं तो और क्या है ? सोशल मीडिया की ताकत तो किसी से छिपी नहीं है। लेकिन जब किसी गंभीर अपराध को भी लोग सिर्फ मज़े लेने के नजरिए से देखने लगें तो सवाल उठते हैं।
सोशल मीडिया पर निर्भर हमारी ‘सोच’
अब हमारी सोच सोशल मीडिया पर निर्भर हो गई है। हत्या होने के बाद संवेदनाएँ जताने के बजाए मीम्स बना रहे हैं। पहले अपराध होने पर ‘जागो’ कहा जाता था। अब ‘हँस लो और भूल जाओ’ वाला ट्रेंड है।
इस अपराधिक मामले में खास बात यह थी कि महिला ने पति को मार डाला। लेकिन इससे भी चौंकाने वाली बात सामने आई थी कि हत्या के बाद जिस ड्रम में शव को सीमेंट डालकर रखा गया। वही ड्रम अब सोशल मीडिया पर मीम्स और कॉमेडी वीडियो का विषय बन गया। इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स, फेसबुक पोस्ट्स जैसे प्लैटफॉर्म पर लोग इस ड्रम का मज़ाक बनाने लगे।
मृत व्यक्ति के बारे में न सोचकर ड्रम को बड़ा मुद्दा बना दिया गया है। कुछ मीडिया संस्थान भी इसे ‘ड्रम मर्डर केस’ बताकर रिपोर्ट कर रहे हैं। जहाँ अपराध खबर नहीं बल्कि मनोरंजन बन जाता है। हमें अपराध के मुख्य कारणों पर बात करनी चाहिए। न कि इसे मजाक बनाना चाहिए।
मेरठ मर्डर केस पर जो प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर दिखीं। वह हमारे समाज के एक वर्ग की मानसिकता को उजागर करती हैं। कैसे हम दूसरों का दुख हमारे लिए मज़े का साधन बन गई हैं। घर में झगड़ा हो, हत्या हो या कोई सड़क हादसा। लोग पहले मोबाइल निकालते हैं, वीडियो बनाते हैं, अपलोड करते हैं और फिर वायरल होने की खुशी मनाते हैं।
भोजपुरी में ‘ड्रम में राजा’ हुआ रिलीज
भोजपुरी सिनेमा ने तो ड्रम पर गाना ही निकाल दिया। Born Music Bhojpuri नाम के प्रोडक्शन हाउस ने यूट्यूब पर ‘ड्रम में राजा’ गाने को रिलीज किया। गाने के बोल में प्रेमिका अपने प्रेमी को उसकी बात न मानने पर ड्रम में डालने की धमकी दे रही है। जिसके बाद से विरोध तेज़ हो गया। वीडियो का कमेंट सेक्शन अभद्र टिप्पणियों से भर गया। गाने के मेकर्स पर हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप लगे। जिसके बाद गाने के ऑडियो को हटा दिया गया।
मनीषा रानी ने आवाज़ उठाई
बिग बॉस ओटीटी फेम एक्ट्रेस मनीषा रानी ने मेरठ मर्डर केस पर मजाकिया कंटेन्ट बनाने वाले पर नाराजगी जताई। हाल ही में एक वीडियो शेयर कर लिखा, “इतने सेंसिटिव टॉपिक को ऐसे डील करते हैं?” वीडियो में उन्होंने कहा, “आपको सीरियस विषय पर ऐसा वीडियो बनाने पर शर्म आनी चाहिए। कोई इसके कारण मर गया है और आप उसका मजाक उड़ा रहे हैं। यहाँ तक कि कंटेंट क्रिएटर ऐसे पोस्ट भी बना रहे हैं।”
रिश्तो की टूटती डोर में ‘ड्रम की धमकी’
मेरठ में सौरभ की हत्या के बाद पति को प्रताड़ित करने के मामले लगातार सामने आने लगे। जो कि आज के दौर में टूटते रिश्तों को दर्शाता है। कैसे अब पति-पत्नी का पवित्र रिश्ता ड्रम की धमकी के बाद खबरें बन जाता है। गोंडा में इंजीनियर की पत्नी ने मारपीट के बाद पति को हत्या कर ड्रम में भरने की धमकी दे डाली। गुरुग्राम में पति ने पत्नी को प्रेमी संग पकड़ा। फिर विरोध जताया तो टुकड़े कर ड्रम में भरने की धमकी मिल गई। ‘नीले ड्रम’ ने समाज में अपराध करने के तरीके का ट्रेन्ड चला दिया है।
अपराधी का कोई जेंडर नहीं
सोशल मीडिया पर लोगों की ऐसी असंवेदनशीलता पहली बार उजागर नहीं हुई है। बस ये है कि इस बार टारगेट पर महिलाएँ हैं। लगातार महिलाओं का मजाक इस तरह उड़ाया जा रहा है जैसे समाज में होते अपराधों की असली दोषी वही हैं। लेकिन, हकीकत तो ये है कि एक तरफ अगर मुस्कान जैसी लड़कियाँ हैं तो दूसरी तरफ श्रद्धा वॉकर- प्रिया-अलका जैसी भी लड़कियाँ भी हैं जिनके साथ जो हुआ वो सोचा भी नहीं जा सकता।
सोशल मीडिया का क्या है वो दोनों मामलों में मजाक उड़ाएगा, अपना कंटेंट निकालेगा। मगर, हमें आभासी दुनिया से निकलकर वास्तविकता में ये नहीं भूलना है कि अपराधियों का कोई जेंडर नहीं होता।
इन मामलों में महिलाएँ भले अपराधी हैं लेकिन इसका ये अर्थ नहीं इससे हर महिला को संदेह की दृष्टि से देखा जाए। ऐसा करके हम सिर्फ उस सच से आँख मूंद रहे हैं जहाँ महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध अब भी चिंता का विषय होने चाहिए। महिलाओं के खिलाफ दुष्प्रचार करने से पहले ये याद रखने की जरूरत है कि आज भी महिलाओं के साथ रोजाना बलात्कार, यौन शोषण और मारपीट की खबरें आती हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ग्रेजुएशन की छात्रा के साथ लगातार सात दिन तक 23 लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म का मामला झकझोरने वाला है। तो क्या अब ये कहा जाए कि अपराध सिर्फ महिला के साथ होता है। नहीं बल्कि अपराधी की मानसिकता एक समान होती है। सौरभ की हत्या का मुद्दा मज़ाक बना लेकिन पुरुष है इसीलिए मज़ाक बनाया जाए। ये भी गलत है।
अगर हम सोशल मीडिया पर ऐसा माहौल बनाएँगे तो जाहिर हैं लोगों की संवेदनाएँ अस मुद्दों को लेकर खत्म होती जाएँगी। लोग अपराध को एक मजाक समझेंगे और पीड़ित को सिर्फ तमाशा।