बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले भारत का चुनाव आयोग (ECI) वोटर लिस्ट को ठीक करने का एक बड़ा काम कर रहा है। इसे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कहते हैं। इस काम में बूथ लेवल अधिकारी (BLO) यानी वो लोग जो हर गाँव और मोहल्ले में वोटिंग का काम देखते हैं, घर-घर जाकर ये जाँच रहे हैं कि वोटर लिस्ट में कौन-कौन का नाम सही है। मतलब जिन लोगों को वोट डालने का हक है, उनका नाम लिस्ट में रहे और जिनका नहीं होना चाहिए, जैसे कि जिनकी मृत्यु हो गई है या जो कहीं और चले गए हैं, उनका नाम हट जाए।
चुनाव आयोग का कहना है कि ये सब इसलिए हो रहा है ताकि वोटिंग में कोई गड़बड़ न हो। बिहार में अभी 7.89 करोड़ लोग वोटर हैं और इस जाँच से ये सुनिश्चित होगा कि सिर्फ़ सही लोग ही वोट डालें। इसके लिए 1.5 लाख से ज़्यादा बूथ लेवल एजेंट (BLA) लगाए गए हैं, जो सभी पार्टियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
प्रेस विज्ञप्ति
— Chief Electoral Officer, Bihar (@CEOBihar) June 30, 2025
30.06.2025 pic.twitter.com/K1h5vwcTTS
हालाँकि विपक्षी पार्टियाँ जैसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD), AIMIM, तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) जैसी पार्टियाँ और तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी, सागरिका घोष जैसे नेता इस काम को NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि ये सब बीजेपी और NDA की साजिश है, ताकि गरीब, दलित, पिछड़े और मुस्लिम लोगों को वोटर लिस्ट से हटाया जा सके। आइए इस पूरे मामले को समझते हैं कि ये काम क्या है, कैसे हो रहा है, क्यों हो रहा है और विपक्ष क्यों चिल्ला रहा है।
कैसे हो रहा है ये काम?
चुनाव आयोग ने 25 जून 2025 से ये जाँच शुरू की है, जो 26 जुलाई तक चलेगी। इसके बाद 30 सितंबर को नई और सही वोटर लिस्ट छपेगी। इस काम में बूथ लेवल अधिकारी (BLO) हर घर में जा रहे हैं। उनके पास एक फॉर्म होता है, जो आधा भरा होता है। वो उस फॉर्म को लोगों को देते हैं और उनसे कुछ जानकारी माँगते हैं, जैसे कि नाम, पता और कुछ कागजात। ये कागजात इसलिए चाहिए ताकि ये पक्का हो सके कि वो व्यक्ति वोट डालने का हकदार है।
अगर आपका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है (जब बिहार में आखिरी बार ऐसा बड़ा काम हुआ था), तो आपको बस अपनी जानकारी की पुष्टि करनी है। अगर आपके मम्मी-पापा का नाम उस लिस्ट में है, तो आपको कोई अतिरिक्त कागज देने की जरूरत नहीं। लेकिन अगर आपका या आपके मम्मी-पापा का नाम उस पुरानी लिस्ट में नहीं है, तो आपको कुछ कागज, जैसे जन्म प्रमाणपत्र या दूसरा कोई दस्तावेज़ देना पड़ सकता है।

BLO ये सारी जानकारी को एक मोबाइल ऐप (ECIनेट) में अपलोड करते हैं। साथ ही आपको एक रसीद भी देते हैं कि आपने फॉर्म भरा है। आयोग ने ये भी कहा है कि इस काम में बुजुर्गों, बीमार लोगों या दिव्यांग लोगों को परेशान नहीं करना है। बिहार में 2003 की वोटर लिस्ट में 4.96 करोड़ लोगों के नाम थे और आयोग का कहना है कि इन लोगों और इनके बच्चों को कोई खास कागज देने की जरूरत नहीं। यानी करीब 60% लोगों को आसानी होगी।
#Bihar SIR: 2003 Electoral Rolls Uploaded on #ECI Website
— Election Commission of India (@ECISVEEP) June 30, 2025
✅ 4.96 crore electors do not need to submit any documents
✅ Children of these 4.96 crore electors need not submit any other document relating to their parents
Read more : https://t.co/Sz2COY3TAB pic.twitter.com/IjGDLZzj9H
क्यों हो रहा है ये काम?
चुनाव आयोग का कहना है कि वोटर लिस्ट को समय-समय पर ठीक करना जरूरी है, क्योंकि बहुत कुछ बदल जाता है। जैसे-
शहरीकरण: बिहार में लोग अब गाँवों से शहरों की तरफ जा रहे हैं।
पलायन: बहुत से लोग नौकरी या दूसरी वजहों से बिहार से बाहर चले गए हैं।
नए वोटर: 18 साल के हो रहे युवाओं के नाम लिस्ट में जोड़ने हैं।
मृत्यु: कुछ लोग जिनकी मौत हो गई, लेकिन उनका नाम लिस्ट में अब भी है।
अवैध लोग: कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं, जो भारत के नागरिक नहीं हैं लेकिन लिस्ट में नाम डलवाए हैं।
आयोग का कहना है कि ये सब ठीक करने से वोटर लिस्ट साफ-सुथरी होगी। भारत के संविधान में अनुच्छेद 326 कहता है कि सिर्फ़ भारतीय नागरिक, जो 18 साल से बड़े हों और उस इलाके में रहते हों, वोटर बन सकते हैं। इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 के नियमों का पालन हो रहा है। आयोग का मकसद है कि कोई भी सही वोटर छूटे नहीं और कोई गलत व्यक्ति लिस्ट में न रहे।
विपक्ष क्यों कर रहा है हंगामा?
विपक्षी पार्टियाँ और कुछ लोग इस काम को लेकर बहुत शोर मचा रहे हैं। उनका कहना है कि ये जाँच सिर्फ़ एक बहाना है और इसके जरिए बीजेपी गरीब, दलित, पिछड़े और मुस्लिम लोगों को वोटर लिस्ट से हटाना चाहती है।
तेजस्वी यादव (RJD): बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे “संदिग्ध और चिंताजनक” बताया। उनका कहना है कि बीजेपी और RSS इस जाँच के बहाने बिहार के गरीब लोगों का वोटिंग का हक छीनना चाहते हैं। उन्होंने ट्वीट किया कि आयोग ने अचानक सारी वोटर लिस्ट को रद्द करने का फैसला क्यों लिया? साथ ही, उन्होंने ये भी सवाल उठाया कि आधार कार्ड को इस जाँच में क्यों नहीं लिया जा रहा, जबकि वोटर लिस्ट को आधार से जोड़ने की बात हो रही थी।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा अचानक विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा अत्यंत ही संदेहास्पद और चिंताजनक है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 27, 2025
निर्वाचन आयोग ने आदेश दिया है कि सभी वर्तमान मतदाता सूची को रद्द करते हुए हर नागरिक को अपने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए नए सिरे से आवेदन देना… pic.twitter.com/H7b8AbHeya
असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM): AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे ‘बिहार में चुपके से NRC लागू करना’ बताया। उनका कहना है कि इस जाँच से गरीब लोगों को लिस्ट से हटाया जाएगा, क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाणपत्र जैसे कागज नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 2000 में सिर्फ़ 3.5% लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र था। ओवैसी ने आयोग को चिट्ठी लिखकर इस पर आपत्ति जताई है।
The Bihar backdoor NRC will exclude genuine voters and citizens, making them vulnerable to constant harassment. The Election Commission requires Biharis to prove their and their parents’ place and date of birth with one of 11 documents. In 2000, only 3.5% of people had birth… https://t.co/04oyMncUxE
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) July 1, 2025
सागरिका घोष (TMC): तृणमूल कॉन्ग्रेस की सागरिका घोष ने कहा कि ये जाँच बहुत सख्त है, क्योंकि इसमें मम्मी-पापा के जन्म प्रमाणपत्र माँगे जा रहे हैं। उनका कहना है कि आम लोग, खासकर गरीब, इतने पुराने कागज कहाँ से लाएँगे? TMC का बिहार में कोई खास आधार नहीं है, फिर भी वो इस मुद्दे पर बोल रही है।
The @ECISVEEP’s new revision process of electoral rolls — the Special Intensive Revision ( SIR) —risks disenfranchising lakhs of voters because of the impractical proofs of identity required , particularly birth certificates of parents. Where will Indian voters find date & place… pic.twitter.com/r14kL7I6oR
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) June 28, 2025
मनोज झा: RJD सांसद मनोज झा ने पूछा कि क्या एक महीने में 8 करोड़ लोगों की जाँच हो सकती है? उन्होंने कहा कि इससे गरीब और कमजोर लोग वोटिंग से वंचित हो सकते हैं।
पत्रकार रवीश कुमार ने उनके ट्वीट को शेयर करके इस बात को और बढ़ावा दिया।

रविश कुमार : रविश कुमार खुलेआम सरकार, संवैधानिक संस्थाओं, राष्ट्रवादी तत्वों के खिलाफ लोगों को भड़कर व्यूज बटोरने में आगे रहे हैं। इस मुद्दे पर चुप कैसे रहते? उन्होंने बाकायदा वीडियो बनाकर तेजस्वी यादव की बातों को आगे बढ़ाने और आम लोगों को भड़काने की कोशिश की है।
इस बीच, कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि अगर आयोग विपक्ष की बात नहीं मानेगा, तो ‘इंडिया’ गठबंधन कोर्ट जाएगा। उनका इल्ज़ाम है कि ये जाँच गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों को वोटर लिस्ट से हटाने की कोशिश है।
NDA का जवाब क्या है?
सत्तारूढ़ NDA गठबंधन इस जाँच का समर्थन कर रहा है। उनके नेताओं का कहना है कि विपक्ष हार के डर से बहाने बना रहा है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि वोटर लिस्ट को ठीक करना कानून का हिस्सा है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में लिखा है कि समय-समय पर लिस्ट को अपडेट करना जरूरी है। इससे गड़बड़ियाँ, जैसे मृत लोगों के नाम या गलत लोग, हटाए जा सकते हैं।
वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि कुछ जगहों पर 20,000 तक फर्जी वोटर हैं। ये जाँच उनको हटाएगी, जिससे विपक्ष को नुकसान होगा। इसलिए वो शोर मचा रहे हैं। NDA का कहना है कि ये जाँच पारदर्शिता लाएगी और सही वोटरों को फायदा होगा।
पहले भी हुआ है ऐसा काम
ये कोई नया काम नहीं है। आज़ादी के बाद से कई बार वोटर लिस्ट को ठीक करने के लिए ऐसे अभियान चले हैं।
- 1952-56: पहले आम चुनाव के बाद हर साल कुछ इलाकों की लिस्ट को गहन जाँच के साथ ठीक किया गया।
- 1956: शहरों, मज़दूरों वाले इलाकों और जहाँ लोग ज़्यादा इधर-उधर जाते थे, वहाँ खास जाँच हुई।
- 1962-66: लोकसभा चुनावों के बाद कुछ सालों में पूरे देश में गहन और छोटी जाँच हुई।
- 1983-88: गाँवों और शहरों में गहन जाँच हुई।
- 1995-2002: 1995 और 2002 में भी बड़े स्तर पर लिस्ट ठीक की गई।
बिहार में आखिरी बार 2002 में ऐसी जाँच हुई थी और 2003 में नई लिस्ट छपी थी। उस वक्त किसी ने इसे NRC से नहीं जोड़ा था। लेकिन अब, क्योंकि चुनाव नज़दीक हैं, विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना रहा है।
वोटर लिस्ट की जाँच कई तरह से होती है-
- गहन जाँच: पुरानी लिस्ट को बिना देखे, नए सिरे से जाँच होती है।
- सारांश जाँच: सिर्फ़ अपडेट किया जाता है, घर-घर नहीं जाते।
- विशेष जाँच: अगर कहीं गड़बड़ दिखे, तो खास जाँच होती है।
- मिश्रित जाँच: पुरानी लिस्ट को देखकर और घर-घर जाकर जाँच होती है।
बिहार में अभी मिश्रित जाँच हो रही है, जिसमें 2003 की लिस्ट को आधार बनाया गया है।
विपक्ष का वही पुराना राग
विपक्ष का ये हंगामा कोई नई बात नहीं है। हर बड़े चुनाव से पहले वो कुछ न कुछ मुद्दा उठाते हैं। कभी EVM पर सवाल उठाते हैं, कभी वोटर लिस्ट पर और कभी चुनाव आयोग को बीजेपी का साथी बताते हैं। लेकिन जब विपक्षी पार्टी चुनाव जीत जाती है जैसे पश्चिम बंगाल या तमिलनाडु में.. तो ये सारे सवाल गायब हो जाते हैं। हारने पर फिर वही इल्ज़ाम शुरू हो जाते हैं, जैसे महाराष्ट्र चुनाव में मिली हार के भूत का पीछा करते हुए अब भी कॉन्ग्रेस हल्ला मचा रही है, जबकि उसे चुनाव आयोग से लेकर हाई कोर्ट तक करारी हार मिल चुकी है।