लोकसभा में बुधवार (2 अप्रैल, 2025) को 12 घंटे से भी अधिक चली बहस के बाद आखिरकार पारित कर दिया गया। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी दिनभर संसद से गायब थे, लेकिन वोटिंग के वक़्त वो सदन में पहुँचे। जहाँ वक़्फ़ संशोधन विधेयक के पक्ष में 288 वोट पड़े, वहीं इसके विरोध में 232 वोट पड़े। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी व कॉन्ग्रेस नेता KC वेणुगोपाल द्वारा सुझाए गए संशोधनों को भी लोकसभा ने ध्वनिमत से खारिज कर दिया।
ये विधेयक 1995 के वक़्फ़ एक्ट को संशोधित करता है। वहीं 1923 के मुसलमान वक़्फ़ एक्ट को ये पूरी तरह रद्द कर देता है। बता दें कि सरकार ने लोकसभा में 2 बिल पेश किए थे। पहला, वक़्फ़ संशोधन विधेयक, 2025 और दूसरा, मुसलमान वक़्फ़ रिपील बिल, 2024. भाजपा के सहयोगी दलों जदयू, TDP और लोजपा ने इस बिल के समर्थन में वोट किया। इसके साथ ही वक़्फ़ एक्ट की उस धारा-40 को भी हटा दिया गया है, जिसके तहत वक़्फ़ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करने का अधिकार था।
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— SansadTV (@sansad_tv) April 2, 2025
साथ ही अब सेन्ट्रल वक़्फ़ काउंसिल में 2 ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त करने का रास्ता भी साफ़ हो गया है। मोदी सरकार ने स्पष्ट कहा कि वक़्फ़ बोर्ड कोई मजहबी संस्था नहीं है। साथ ही ये प्रावधान भी किया गया है कि कोई मुस्लिम शख्स अगर वक़्फ़ को संपत्ति दान में देता है, इसके लिए ज़रूरी है कि वो कम से कम 5 वर्षों से इस्लाम मजहब की प्रैक्टिस कर रहा हो। केंद्र ने ये भी साफ़ किया है कि राज्य सरकारों को पूर्ण अधिकार दिए जा रहे हैं, हर राज्य के वक़्फ़ बोर्ड्स हैं।
अब गुरुवार को इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। वहाँ भी NDA बहुमत में है, ऐसे में बिल को पास कराने के लिए सरकार कोई ख़ास जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। ये इसीलिए भी ख़ास है क्योंकि भाजपा केंद्र में अभी अपने दम पर पूर्ण बहुमत में नहीं है और JDU व TDP जैसी पार्टियाँ उसकी साथी हैं जो ‘सेक्युलर’ कही जाती रही हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने बार-बार समझाया है कि इस बिल का मजहब से कोई लेना-देना नहीं है, ये संपत्तियों का मामला है।
भाजपा का बार-बार यही कहना रहा कि ये बिल अल्पसंख्यकों के हित में है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस केवल अल्पसंख्यकों की बातें करती रही। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में शाहबानो नामक महिला को अधिकार न मिले और मुल्ले-मौलवी ख़ुश हों इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलट दिया गया था। राज्यसभा में भी इस बिल को लेकर लंबी बहस होगी। बता दें कि इस बिल को संसदीय समिति JPC के पास भेजा गया था, फिर वापस लोकसभा में पेश किया गया।