Monday, November 10, 2025
Homeविचारकोई सवाल नहीं, केवल सरेंडर… यही चाहते हैं इस्लामी कट्टरपंथी: AltNews वाले प्रतीक सिन्हा...

कोई सवाल नहीं, केवल सरेंडर… यही चाहते हैं इस्लामी कट्टरपंथी: AltNews वाले प्रतीक सिन्हा ने तालिबान और ‘तहजीब’ पर खोला मुँह तो ‘डिजिटल पत्थरों’ से कूच दिया

दिलचस्प बात यह है कि Alt News और उसके सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद ज़ुबैर को इस्लामी कट्टरपंथियों की नाराजगी का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा गढ़ी गई 'भगवा लव ट्रैप' साजिश थ्योरी पर रिपोर्टिंग की।

‘हमने रणनीति बदली है, विचारधारा नहीं।’ भारत के इस्लामी कट्टरपंथियों को अपनी वैचारिक और मजहबी सीमाओं की जितनी साफ समझ है, शायद ही किसी और को हो। उन्होंने दिखावे के तौर पर लिबरल्स और वामपंथियों को गले लगाया ताकि उन्हें अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए ‘यूजफुल इडियट्स’ की तरह इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन जैसे ही कोई इनके बिना सवाल किए सरेंडर वाले अनकहे नियमों से जरा भी हटता है, तभी ये लोग तुरंत उन्हें किनारे कर देते हैं, नकार देते हैं और उनकी बेइज्जती करने लगते हैं।

इसी सिलसिले में एक नया मामला ‘लिबरल्स भी संघियों से अलग नहीं है’ सामने आया है। इस्लामी कट्टरपंथी Alt News जैसे वामपंथी झुकाव वाले पोर्टल को फंड न देने की माँग कर रहे हैं क्योंकि इसके फाउंडर प्रतीक सिन्हा ने भारत के इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना कर दी। उन्होंने तालिबान को गले लगाने और अफगानिस्तान वाले ‘इस्लामी मॉडल’ को सही ठहराने पर सवाल उठाया था।

ये सब शुरू हुआ 12 अक्टूबर 2025 को, जब ‘प्रोफेसर नूरुल’ नाम के एक चर्चित इस्लामी कट्टरपंथी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट की। पोस्ट में एक शेर था, “तेरी तहजीब ने उतारा है तेरे सर से हिजाब, मेरी तहजीब ने मेरी नजरों को झुका कर रखा है।”

इसमें एक तस्वीर शामिल थी, जिसमें तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी पांरपरिक पोशाक और तालिबानी हेडगियर में नजर आ रहे थे। उनके सामने एक महिला पत्रकार गुलाबी ब्लेजर और पैंट्स में खुले बालों के साथ (यानी बिना हिजाब के) उनसे सवाल पूछ रही थी। यह तस्वीर साल 2022 में एंटाल्या डिप्लोमेसी फोरम के दौरान ली गई थी।

यह पोस्ट उस समय सामने आई जब मुत्ताकी भारत के दौरे पर थे। इस दौरान मुत्ताकी उत्तर प्रदेश के देवबंद भी पहुँचे थे, जो तालिबान की विचारधारा का स्थान है।

इस पोस्ट पर Alt News के को-फाउंडर प्रतीक सिन्हा ने इस्लाम के इस प्रतिगामी संस के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने इस कट्टरपंथी इस्लामी सोच की तुलना हिंदुत्व से की और लिखा, “जो लोग इस इस्लाम के संस्करण को मानते हैं और तालिबानी को गले लगाने में खुश हैं। वे उतने ही खतरनाक है, जितना हिंदुत्व ब्रिगेड।”

प्रोफेसर नूरुल/इलाहाबादी ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि प्रतीक सिन्हा जैसे नास्तिकों को किसी की मजहबी भावनाओं पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने अपने हममजहब लोगों से अपील की कि Alt News को फंड देना बंद करें क्योंकि उनके मुताबिक सिन्हा जैसे लोग ‘संघियों से भी ज्यादा जहरीले’ हैं।

उन्होंने लिखा, “तुम जैसे नास्तिक जो ना हिंदू धर्म में विश्वास करते हैं और ना इस्लाम में। ऐसे लोगों की किसी भी धार्मिक भावनाओं पर लिखने का कोई अधिकार नहीं है। मुस्लिमों आप लोग फैक्ट चेक के नाम पर इसको 13 लाख देते हो और अंदर से संघियों से भी ज्यादा जहरीला है। आप लोग जुबैर को टैग कर दें।”

इस बहस में को आगे बढ़ाते हुए प्रतीक सिन्हा ने एक बार फिर हिंदुत्ववादियों की तुलना इस्लामी कट्टरपंथियों से की और कहा, तुम लोग हिंदुत्व ब्रिगेड से अलग नहीं हो, उनकी रणनीति भी बिल्कुल यही होती है और वे भी पूछते हैं कि हिंदू Alt News को डोनेट क्यों कर रहे हैं। तुम उसी सिक्के के दूसरे पहलू हो। अगर तुम सोचते हो कि सिर्फ मुस्लिम ही Alt News को डोनेट करते हैं तो तुम भी उतने ही गलतफहमी मे हो। Alt News को हर तबके के लोग डोनेट करते हैं।”

इसके जवाब में नूरुल ने आरोप लगाया कि सिन्हा लगातार मुस्लिमों को इस्लाम से दूर करने की कोशिश करते हैं और बीच-बीच में कुछ हिंदू कट्टरपंथियों को उजागर करना उनका एक ‘बैलेंसिंग एक्ट’ है।

वहीं एक और इस्लामी कट्टरपंथी आसिफ खान भी इस बहस में कूद पड़े और इशारा किया कि सिन्हा इस्लामी कट्टरपंथियों की पिछड़ी ‘तहजीब’ को महिमामंडित करने वालों की आलोचना करके लगभग पूरे ‘मुस्लिम-विरोधी’ हो गए हैं।

आसिफ खान ने लिखा, “ऐ पैगंबर! ईमान वाले मर्दों से कह दीजिए कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी पवित्रता की रक्षा करें। यही उनके लिए ज्यादा पवित्र है, निस्संदेह अल्लाह उनसे वाकिफ है, जो वे करते हैं। और ईमान वाली औरतों से कह दीजिए कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी पवित्रता की रक्षा करें और अपने शृंगार को केवल वही दिखाएँ जो सामान्य रूप से दिखाई देते हैं।”

उन्होंने आगे लिखा, “~ क़ुरान (24:30-31) यह क़ुरान की एक आयत है… एक ऐसी किताब जिस पर एक अरब से ज़्यादा लोग विश्वास करते हैं। और प्रतीक सिन्हा ने इन अरबों मुस्लिमों की तुलना मुस्लिमों की लिंचिंग और उन पर अत्याचार करने वाली हिंदुत्व ब्रिगेड से की है। मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह का स्तर इतना ज्यादा है कि आप उन्हें सिर्फ इसलिए ‘खतरनाक’ कहते हैं क्योंकि वे आस्था रखते हैं।”

जवाब में प्रतीक सिन्हा ने शर्मनाक तरीके से तालिबान और मुस्लिम कट्टरपंथियों की तुलना हिंदुत्व ब्रिगेड से कर दी जबकि दोनों में दूर-दूर तक कोई समानता नहीं है। जहाँ तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा और अफगान महिलाओं की नौकरी करने, महरम या परिवार के पुरुषों के बिना सार्वजनिक स्थानों पर घूमने की आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं तथाकथित हिंदुत्व ब्रिगेड महिलाओं पर ऐसी कोई प्रतिगामी प्रथा लागू नहीं करती और महिला सशक्तिकरण का जश्न मनाती है।

इसके अलावा, तालिबान ने भूकंप के मलबे से महिलाओं को बचाने तक की कोशिश नहीं की क्योंकि उनकी शरीयत मान्यताओं के अनुसार पुरुषों को अपनी बीवी के अलावा किसी भी महिला को छूना मना है। इसके उलट, RSS और ‘हिंदुत्व ब्रिगेड’ हमेशा संकट के समय सबसे पहले आगे आकर पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की मदद करते रहे हैं।

प्रतीक सिन्हा ने लिखा, “असल जिंदगी में जितने भी मुस्लिम पुरुषों को मैं जानता हूँ, वे महिलाओं से बात करते समय अपनी नजरें नहीं झुकाते। साफ है कि वे कुरान को शब्द दर शब्द नहीं मानते। धर्मों का गठन मध्यकाल में हुआ था और उनमें से बहुत कुछ अब अप्रासंगिक हो चुका है, जिसे छोड़ देना चाहिए। आधुनिक देश धर्म के नियमों से नहीं, कानून के शासन से चलते हैं। और यही वजह है कि वर्तमान सरकार में जिस तरह कानून का शासन कमजोर किया जा रहा है, उसके खिलाफ लड़ाई जरूरी है। हाँ, कुछ मुस्लिम पुरुष मजहब कट्टरपंथी होते हैं और मैं उनकी तुलना हिंदुत्व ब्रिगेड से कर रहा हूँ। शायद समझने के लिए कुछ क्लासेस जरूरी हैं, आसिफ।”

इसी बीच ‘मुस्लिम पीड़ित’ नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए फेक न्यूज फैलाने वाले मोहम्मद शादाब खान नाम का एक शख्स ने प्रतीक सिन्हा की तुलना बीजेपी के पूर्व फायरब्रांड नेता टाइगर राजा सिंह से कर दी। शादाब खान ने लिखा, “इनको मुस्लिमों से नफरत है, इस्लाम से नफरत है। बस 19-20 का ही फर्क है।”

यहाँ एक और चर्चित इस्लामी कट्टरपंथी वसीम अकरम त्यागी ने भी प्रतीक सिन्हा पर निशाना साधा और लिखा, “बहुत सारे ‘फ्री थिंकर’ इस तस्वीर की आलोचना कर रहे हैं। आलोचना की वजह बस यह है कि महिला पत्रकार के सामने तालिबान सरकार के विदेश मंत्री नजर नीचा करके बात कर रहे हैं, वो उस महिला पत्रकार की आँखों में आँखें डालकर बात क्यों नहीं कर रहे हैं। कमाल है! वो आँखों में आँखें डालकर बात करें तो भी बवाल, और ना करें तब भी बवाल। अगर वो आँखों में आँखें डालकर बात करेंगे तब यही ‘फ्री थिंकर’ उस पर चटखारे लेकर फब्तियाँ कसेंगे! लेकिन अब इसे ‘खतरनाक’ बता रहे हैं।”

दिलचस्प बात यह है कि Alt News और उसके सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद ज़ुबैर को इस्लामी कट्टरपंथियों की नाराजगी का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा गढ़ी गई ‘भगवा लव ट्रैप’ साजिश थ्योरी पर रिपोर्टिंग की। वही इस्लामी कट्टरपंथी जो असली और दर्ज लव जिहाद और ग्रूमिंग जिहाद के मामलों को ‘झूठा’ बताकर खारिज कर देते हैं या कभी-कभी उनका जश्न भी मनाते हैं। उन्होंने Alt News की उस रिपोर्टिंग की आलोचना की, जिसमें मुस्लिम भीड़ द्वारा हिंदू लड़कों और उनकी मुस्लिम महिला दोस्तों या पार्टनर्स पर हमले की घटनाओं को कवर किया गया था और इन हमलों को ‘भगवा लव ट्रैप’ कहकर जायज ठहराया गया।

प्रतीक सिन्हा की बार-बार तालिबान की आलोचना को ‘संतुलित’ दिखाने के लिए जबरन हिंदुत्व को घसीटने की कोशिशें किसी काम नहीं आईं।

मजे की बात यह है कि मजबी कट्टरता और महिला विरोधी सोच का बचाव करते हुए पुरुष इस्लामी कट्टरपंथी मुस्लिम महिलाओं को भी नहीं बख्शते। इसी संदर्भ में जब RJ सायमा, जो अक्सर मुस्लिम विक्टिम कार्ड खेलने और अपने हिंदू-विरोधी सोशल मीडिया बयानों को लेकर आलोचना झेलती हैं, उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसी महिला से नजरें झुकाकर बात करना तालिबान मंत्री के महिलाओं पर किए गए अत्याचारों को माफ कर देता है?

उन्होंने लिखा, “जो लोग औरतों पर ज़ुल्म की सारी हदें पार कर चुके हैं, क्या उन्हें लगता है कि किसी से नजरें झुकाकर बात करने से उनके गुनाह माफ हो जाएँगे? क्या वे अब अच्छे किरदार वाले लोग बन गए हैं? वाकई, वसीम?”

इसके जवाब में वसीम अकरम त्यागी ने न सिर्फ तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों पर लगाए गए कट्टरपंथी प्रतिबंधों और उनके शासन में महिलाओं को झेलनी पड़ी तमाम ज़्यादतियों को हल्के में लिया बल्कि तालिबान की महिला-विरोधी नीतियों की तुलना उन देशों से कर दी जो ‘आधुनिक’ संस्कृति के दावे करते हैं।

इस्लामी कट्टरपंथी पूरी तरीके से समर्पण चाहते हैं, आलोचना नहीं

हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब सेक्युलर लिबरल्स को इस्लामो-लेफ्टिस्ट ‘प्रोग्रेसिव’ इकोसिस्टम से बाहर कर दिया गया हो, उन्हें ‘संघी’ कहकर बदनाम किया गया हो या पूरी तरह से किनारे कर दिया गया हो। इसी साल सितंबर में केरल की एक यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम को लेकर बवाल मच गया था, जहाँ हिजाब पहनी मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों से अलग बैठाया गया, वो भी बिल्कुल तालिबानी अंदाज में।

इस Profcon नाम के इवेंट की जो तस्वीरें और वीडियो ऑनलाइन सामने आए, उन पर प्रतिक्रिया देते हुए रुचिका शर्मा, जो खुद को ‘इतिहासकार’ बताती हैं और जिनका मानना है कि इस्लामी आक्रांताओं के हिंदू-विरोधी अपराधों को सफेदपोश बनाना उनका मिशन है, उन्होंने लिखा, “सिर्फ हिजाब काफी नहीं है, महिलाओं को अलग बैठाओ, पीछे बैठाओ, पर्दे के पीछे रखो। यानी उन्हें सिर्फ औरत होने की सजा दो और इसे ‘उनकी पसंद’ कहकर पेश करो।”

मुस्लिम महिलाओं को जानबूझकर अदृश्य करने की इस आलोचना पर वही इस्लामी कट्टरपंथी, जो रुचिका शर्मा की तारीफ करते नहीं थकते थे, उन्हें ‘ईमानदार’ और ‘बहादुर’ इतिहासकार कहते थे क्योंकि उन्होंने औरंगजेब जैसे मध्यकालीन इस्लामी शासकों के अत्याचारों को हल्का करके पेश किया। अब वही लोग उन्हें ‘इस्लामोफोब’ कहने लगे।

यहाँ तक कि शर्मा को इस्लामोफोब कहने वाले भूल गए कि उन्होंने खुद एक बार यह स्वीकार किया था कि उन्होंने अपने मुस्लिम अब्यूजर का नाम सिर्फ इसलिए नहीं लिया था ताकि ‘संघी’ लोग उस घटना का इस्तेमाल अपने ‘इस्लामोफोबिक सांप्रदायिक एजेंडे’ के लिए न कर सकें।

ठीक इसी तरह, जब इस्लामो-लेफ्टिस्ट प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ से जुड़ी अर्फा खानम शेरवानी ने रुचिका शर्मा की राय का समर्थन किया तो वे भी इस्लामी कट्टरपंथियों के गुस्से से नहीं बच सकीं। उन्हें यह समझाया गया कि इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं का आपस में खुलकर मेल-जोल रखना जायज नहीं है।

दरअसल, इस्लामी कट्टरता और मजहब आधारित महिला-विरोधी सोच से कोई भी सुरक्षित नहीं है। इसका असर ऑनलाइन नाराजगी, ‘संघी’ कहकर लेबलिंग, तालिबानी महिला-विरोधी नीतियों और बड़े मामलों में ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारों तक में देखा जा सकता है। इस्लामी कट्टरपंथी न सिर्फ अपने लिबरल सहयोगियों को जरा सी असहमति पर खारिज कर देते हैं बल्कि अपने ही हममजहब लोगों को भी इसलिए निशाना बनाते हैं क्योंकि वे उनके तय किए गए ‘मुस्लिम होने के मानकों’ पर खरे नहीं उतरते।

(मूलरूप से यह खबर अंग्रेजी में श्रद्धा पांडे ने लिखी है, जिसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

'द वायर' जैसे राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोधी वेबसाइट्स को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Shraddha Pandey
Shraddha Pandey
Shraddha Pandey is a Senior Sub-Editor at OpIndia, where she has been sharpening her edge on truth and narrative. With three years in experience in journalism, she is passionate about Hindu rights, Indian politics, geopolitics and India’s rise. When not dissecting and debunking propaganda, books, movies, music and cricket interest her. Email: [email protected]

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जूनागढ़ के भारत में विलय का इतिहास: सेना और देशी रियासतों ने दिखाया साहस, हिंदुओं पर हुआ ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ जैसा अत्याचार; पढ़ें पूरी...

भारत में विलय के बाद जूनागढ़ को सौराष्ट्र राज्य में स्थान दिया गया लेकिन इसके विलय की प्रक्रिया चुनौतियों से भरी रही। इसका पूरा इतिहास हिंदुओं के खून से सना हुआ था।

‘लोगों के जीवन की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है’: सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक जगहों और हाईवे से आवारा कुत्तों को हटाने के दिए निर्देश, जानें...

सुप्रीम कोर्ट ने 07 नवंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, खेल परिसर, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन और सरकारी इमारतों से सभी आवारा कुत्तों को हटाएँ।
- विज्ञापन -