न्यूयॉर्क सिटी के मेयर उम्मीदवार जोहरान ममदानी के हिंदू विरोधी बयानों को वॉशिंगटन पोस्ट ने बेशर्मी से ‘मोदी की कड़ी आलोचना’ बताकर पर्दा डालने की कोशिश की। गुरुवार (26 अप्रैल) को छपे एक लेख में इस अमेरिकी अखबार ने ममदानी के नफरत भरे बयानों को हल्का दिखाने की साजिश रची, ताकि उनके हिंदू विरोधी प्रचार को ‘राजनीतिक असहमति’ का जामा पहनाकर लोगों का ब्रेनवॉश किया जा सके।
ये कोई पहली बार नहीं है कि वॉशिंगटन पोस्ट ने हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले बयानों को नरम करके पेश किया हो। आइए, इस पूरी साजिश को बेनकाब करते हैं।
हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलने वाला चेहरा है जोहरान ममदानी
भारतीय-युगांडा मूल का जोहरान ममदानी न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली का सदस्य है और अब मेयर पद की रेस में है। प्रोग्रेसिव और सत्ता-विरोधी हलकों में उसकी तारीफ होती है, लेकिन भारत में उसके बयान आग की तरह सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे। एक बयान में ममदानी ने पीएम नरेंद्र मोदी को ‘युद्ध अपराधी’ और ‘मुसलमानों के नरसंहार’ का जिम्मेदार ठहराया। ये सिर्फ मोदी पर हमला नहीं, बल्कि हिंदू धर्म और संस्कृति को निशाना बनाने की साफ कोशिश है। लेकिन वॉशिंगटन पोस्ट ने इसे ‘मोदी की आलोचना’ का लेबल चिपकाकर ममदानी को बचाने की कोशिश की।
बीते माह एक फोरम में ममदानी ने मोदी की तुलना इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से की और दोनों को ‘युद्ध अपराधी’ करार दिया था। उसने 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए, उस वक्त के सीएम रहे मोदी को मुसलमानों की मौतों का जिम्मेदार ठहराया। ये बयान सिर्फ सियासी नहीं, बल्कि हिंदुओं के खिलाफ गहरी नफरत से भरे हैं। ममदानी की ये नफरत सिर्फ मोदी तक सीमित नहीं है; वो हिंदू धर्म को ही निशाना बनाता है।
राम मंदिर पर जहर और हिंदुओं का अपमान
जोहरान ममदानी ने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को ‘मस्जिद के विध्वंस का उत्सव’ और ‘उत्पीड़न का हथियार’ कहा था। न्यूयॉर्क में दिया उसका ये बयान भारत के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पूरी तरह नजरअंदाज करता है, जो दशकों की कानूनी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बाद आया। राम मंदिर हिंदुओं के लिए आस्था का प्रतीक है, न कि कोई सियासी हथियार। ममदानी का ये बयान दुनिया भर के लाखों हिंदुओं का अपमान करता है, जो इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर की बहाली मानते हैं। लेकिन वॉशिंगटन पोस्ट ने इस गंभीर हमले को भी ‘मोदी विरोध’ का रंग देकर हल्का कर दिया।
जनवरी 2024 में ममदानी ने न्यूयॉर्क में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के खिलाफ प्रदर्शनों का समर्थन किया और इसे ‘हिंदुत्व उग्रवाद’ करार दिया। उसने मंदिर को ‘फासीवाद’ और हिंदू आकांक्षाओं को ‘हिंसक बहुसंख्यकवाद’ से जोड़ा। ये सिर्फ आलोचना नहीं, बल्कि हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को कुचलने की कोशिश है। अगस्त 2022 में टाइम्स स्क्वायर पर ममदानी को एक नफरत भरी भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया, जो ‘हिंदू कौन हैं… ह@$#मी’ जैसे अपमानजनक नारे लगा रही थी। ममदानी ने इस अमानवीय बर्ताव पर चुप्पी साधी और राम मंदिर के खिलाफ जहर उगलता रहा।
वॉशिंगटन पोस्ट ने हिंदू विरोध को पहनाया ‘मोदी विरोध’ का जामा
वॉशिंगटन पोस्ट ने ममदानी के इन खतरनाक बयानों को ‘मोदी की कड़ी आलोचना’ बताकर हिंदू समुदाय की चिंताओं को पूरी तरह अनदेखा किया। अखबार ने अभिषेक मनु सिंघवी के हवाले से ट्वीट किया कि ‘हिंदू-बहुल भारत और मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान के बीच दशकों की दुश्मनी’ है। ये दावा न सिर्फ गलत है, बल्कि भारत के आंतरिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाने वाला है। ये साफ दिखाता है कि वॉशिंगटन पोस्ट का मकसद सिर्फ मोदी को निशाना बनाना नहीं, बल्कि हिंदू विरोधी प्रचार को धर्मनिरपेक्षता की आड़ में बढ़ावा देना है।
2008 में महाराष्ट्र के मालेगाँव बम धमाके की खबर में वॉशिंगटन पोस्ट ने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल किया था। इस हमले में दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई थी और अखबार ने इसे हिंदू समुदाय को बदनाम करने का मौका बनाया। ममदानी का इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) जैसे संगठनों से भी कनेक्शन है, जो बिना सबूत हिंदू समूहों पर ‘हिंदुत्व आतंक’ का आरोप लगाकर भारतीय-अमेरिकी हिंदुओं के खिलाफ डर और अविश्वास का माहौल बनाते हैं।
ममदानी की सच्चाई आ चुकी है सामने
एक्स पर एक भारतीय ने लिखा, “ममदानी की मेयर प्राइमरी जीत गर्व का पल हो सकती थी, लेकिन भारत के बारे में झूठ फैलाने, जैसे ‘गुजरात में कोई मुस्लिम नहीं बचा’ कहकर वो समर्थन नहीं पा सकता।”
फर्स्टपोस्ट के संपादक श्रीमॉय तालुकदार ने ममदानी को ‘आतंक समर्थक’ और ‘हिंदुओं से नफरत करने वाला कट्टरपंथी’ बताया। ये प्रतिक्रियाएँ दिखाती हैं कि ममदानी के बयान सिर्फ सियासी आलोचना नहीं, बल्कि हिंदू धर्म को निशाना बनाने की सुनियोजित कोशिश हैं।
वॉशिंगटन पोस्ट का दोगलापन उजागर
वॉशिंगटन पोस्ट जैसे पश्चिमी मीडिया हाउस भारत की सामाजिक-धार्मिक जटिलताओं को अपनी वैचारिक सुविधा के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। ममदानी के हिंदू विरोधी बयानों को ‘मोदी विरोध’ बताकर वो हिंदुओं की चिंताओं को खारिज करते हैं और नफरत को ‘राजनीतिक असहमति’ का लेबल देकर जायज ठहराते हैं। ये न सिर्फ हिंदुओं के जीवित अनुभवों का अपमान है, बल्कि ऐसी आवाजों को बढ़ावा देता है जो हिंदू पहचान को चरमपंथ से जोड़ती हैं।
लोकतंत्र में आलोचना की जगह है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को कुचला जाए। वॉशिंगटन पोस्ट की ये कवरेज हिंदुओं के खिलाफ पक्षपात और उनकी चिंताओं को दबाने की कोशिश है। जिम्मेदार पत्रकारिता का काम सच को साफ और निष्पक्ष तरीके से दिखाना है, न कि किसी समुदाय को बदनाम करने या नफरत फैलाने वालों का बचाव करना। ममदानी जैसे लोग और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया हाउस मिलकर हिंदू विरोधी प्रचार को हवा दे रहे हैं, और इसे ‘मोदी विरोध’ का नाम देकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।