मई 2019 में एक कोरियन फ़िल्म आई थी, जिसका अंग्रेजी शीर्षक था – ‘पैरासाइट’। जिन्होंने प्राथमिक स्तर की भी शिक्षा ली है, वो Parasite का अर्थ जानते हैं। ऐसे जीवाणु जो किसी अन्य जीव के शरीर में रहते हैं और उसी शरीर से न्यूट्रिएंट्स ग्रहण कर उसे नुकसान पहुँचाते हैं, वो होते हैं पैरासाइट्स – रोगाणु या विषाणु। मानव शरीर में रहकर दाना-पानी पाते हैं, फिर उसे रोगी बना देते हैं। हिंदी में एक कहावत भी है – जिस थाली में खाना, उसी थाली में छेद करना। ये सब गद्दारी के लक्षण हैं।
‘पैरासाइट’ फ़िल्म, पहलगाम आतंकी हमला और ‘ऑपरेशन सिंदूर’
92वें एकेडमी अवॉर्ड्स समरोह के दौरान ‘पैरासाइट्स’ को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का ऑस्कर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। फ़िल्म की कहानी एक ऐसे युवक की है, जो एक अमीर परिवार में नौकरी करने के लिए हायर किया जाता है। बाद में उसके पिता, माँ और बहन सभी उस परिवार में किसी न किसी रूप में नौकरी कर रहे होते हैं। किम इंग्लिश ट्यूटर, उसकी बहन आर्ट थेरेपिस्ट, इनके पिता ड्राइवर और इनकी माँ हाउसकीपर बनकर उस परिवार में नौकरी कर रहे होते हैं। चारों एक-दूसरे को न जानने का दिखावा भी करते हैं।
खैर, ये तो थी फिल्म की कहानी। अब आते हैं वास्तविकता पर। 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान पोषित आतंकियों ने 26 पर्यटकों को निशाना बनाया। धर्म पूछ-पूछकर हिन्दुओं को मारा गया। पैंट खोल-खोलकर चेक किया गया कि खतना हुआ है या नहीं। घटना के 13 दिन बाद भारत ने पाकिस्तान के 9 ठिकानों पर हमला कर आतंकियों को नेस्तनाबूत किया। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत उन महिलाओं के सिंदूर उजाड़ने का बदला लिया गया, जिनके पतियों को मारने के बाद आतंकियों ने कहा था – “मोदी को जाकर बता देना।”
भारत ने किसी भी नागरिक ठिकानों रिहायशी इलाक़ों को निशाना नहीं बनाया, केवल उन्हीं आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया जिन्होंने 2001 में दिल्ली के संसद भवन से लेकर 2016 में पठानकोट, 2019 में पुलवामा और 2025 में पहलगाम को दहलाया। मौलाना मसूद अज़हर के परिवार के 14 लोग मारे गए। इसी मसूद अज़हर को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 1999 में एक पूरा का पूरा विमान हाईजैक कर लिया था। इस तरह की कार्रवाई से कोई भारतीय ख़ुश ही होगा।
लेकिन, कुछ ऐसे लोग हैं जो इससे दुःखी हैं। कॉन्ग्रेस नेता राशिद अल्वी ने तंज कसने के अंदाज़ में पूछा कि क्या चुन-चुनकर आतंकियों को निशाना बनाया गया है। इसी तरह कॉन्ग्रेस के सांसद इमरान मसूद ने दावा कर दिया कि इससे पहले जो सर्जिकल व एयर स्ट्राइक्स हुई थीं उनसे भारत की दुनिया भर में खिल्ली उड़ी, केवल चील-कौवे ही मरे। जब कॉन्ग्रेस नेता मीडिया के सामने आए तो उनके चेहरे उतरे हुए थे। इन सबसे पता चलता है कि भारत को बाहर के दुश्मनों की आवश्यकता नहीं है, दिवंगत जनरल विपिन रावत ने ठीक कहा था कि देश ढाई मोर्चे पर लड़ रहा है (पाकिस्तान, चीन और आधा मोर्चा देश के भीतर)।
मंदाना करीमी: भारत ने दी पहचान और कमाई
अब हम आपको ऐसी ही एक ‘पैरासाइट’ के बारे में बताने जा रहे हैं। ईरान मूल की एक अभिनेत्री व मॉडल हैं – मंदाना करीमी। 2015 में फिल्म ‘भाग जॉनी’ और रियलिटी शो ‘बिग बॉस 9’ से सुर्ख़ियों में आईं मंदाना करीमी तेहरान में पली-बढ़ी हैं, एयर होस्टेस से लेकर उन्होंने यहाँ तक का सफर तय किया है। 2018 में ‘इशकबाज’ के जरिए उन्हें छोटे पर्दे के दर्शकों ने जाना और 2022 में कंगना रनौत के शो ‘लॉक अप’ से डिजिटल की दुनिया ने उन्हें देखा। यानी, मंदाना करीमी भारतीय मनोरंजन की दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम बन गईं।
स्पष्ट है, मंदना करीमी ने भारत के दर्शकों से कमाई की। वरना, आज भी वो एक एयर होस्टेस ही होतीं, सेलेब्रिटी नहीं। 2017 में उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड गौरव गुप्ता के साथ हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह किया। ये भी ख़बर आई कि उन्होंने इस्लाम मजहब छोड़कर हिन्दू धर्म अपना लिया है। उसी साल अचानक से इन दोनों का रिश्ता बिगड़ गया और उन्होंने अपने पति के विरुद्ध घरेलू हिंसा का केस कर दिया। बाद में उन्होंने सेटलमेंट के लिए मामला वापस ले लिया। फिर 2022 में दोनों का तलाक़ हो गया।
ऐसा लगता है, तलाक़ के साथ ही मंदाना करीमी ने वापस इस्लामी कट्टरपंथी सोच को अपना लिया है और भारत से घृणा करने लगी हैं। या फिर हो सकता है कि भारत में अब काम न मिलने की वजह से वो वापस भागकर ईरान में काम चाह रही होंगी, वो ईरान जहाँ और मुल्ला का शासन है, जहाँ सुप्रीम लीडर मौलवी होता है। ऐसा सुप्रीम लीडर जो महिलाओं की आज़ादी का विरोधी है। जहाँ हिजाब न पहनने पर महासा अमीनी नामक महिला को मार डाला जाता है, लाखों महिलाएँ सड़क पर उतरती हैं फिर भी इस्लामी मुल्क़ अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को नहीं छोड़ता।
पाकिस्तान का एजेंडा चलातीं मंदाना करीमी
अब ईरान के मुल्लाओं को ख़ुश करने और वहाँ काम के लिए भारत को गाली देने का उपक्रम शुरू कर पड़ेगा न। तो मंदाना करीमी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक स्टोरी साझा किया। इस स्टोरी में उन्होंने न्यूयॉर्क की कट्टर इस्लामी लेखिका हेब जमाल का एक पोस्ट साझा किया। सवाल ये है कि उस पोस्ट में क्या था, तो आइए बताते हैं। उस पोस्ट में लिखा था कि दुनिया जल रही है और भारत ने पाकिस्तान में बमबारी करके महिलाओं-बच्चों की जान ले ली है।
उस पोस्ट में आगे लिखा है, “इज़रायल ने खान यूनिस में एक पूरे परिवार को मार डाला। अमेरिका ने यमन पर हमला कर आम नागरिकों को निशाना बनाया। ये सारी हत्याएँ उन सामूहिक विनाशकारी शक्तियों की देन हैं जिन्होंने एक-दूसरे से यह सीख लिया है कि अगर तुम शक्तिशाली हो तो युद्ध अपराध करके भी बच सकते हो — क्योंकि दुनिया चुप्पी साध लेती है। चाहे वो ज़ायोनिज़्म हो, हिंदुत्वा फ़ासीवाद हो या अमेरिकी श्रेष्ठतावाद — सभी रूपों में साम्राज्यवाद फैलता जा रहा है और जो भी उसके रास्ते में आता है, उसे खाक कर देता है।”

यानी, जिस मंदाना करीमी ने कुछ वर्षों पहले ही हिन्दू धर्म अपनाया था और हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह किया था, उनके लिए अब हिन्दू धर्म फासीवाद और साम्राज्यवाद हो गया है। उनके लिए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया जाना महिलाओं-बच्चों को निशाना बनाए जाने के समान है। ये वो मंदाना करीमी कह रही हैं, जिन्हें 6 फ़िल्में, 3 रियलिटी शो, एक सीरियल और एक वेब सीरीज मिली। जिन्हें यहाँ के बड़े अभिनेताओं के साथ विज्ञापन मिला, जिन्हें मॉडलिंग के कई बड़े काम भी इसी भारत में मिले।
क्या मंदाना करीमी को ये नहीं दिखाई दिया कि कैसे पाकिस्तान ने भारत के गुरुद्वारों को निशाना बनाया है? कैसे बच्चों की जान ले ली गई। उन बच्चों की लाशों की तस्वीरें सोशल मीडिया में तैर रही हैं। इसका बदला लेने के लिए भारत फिर कुछ आतंकियों को मरेगा तो मंदाना करीमी जैसों का फिर से पोस्ट आ जाएगा। 15 से अधिक लोग सीमा पार से हुई गोलीबारी में मारे गए हैं, सरे मासूम नागरिक हैं। पहलगाम में जो 26 मारे गए, सब हमारे निर्दोष लोग थे। मंदाना करीमी को तब समस्या नहीं हुई। अब हो रही है।
बॉलीवुड नहीं बन पाया भारत का ‘सॉफ्ट पॉवर’
आज जब वही मंदाना करीमी पाकिस्तान के विरोधी में दुश्मन मुल्क़ पाकिस्तान का एजेंडा चलाती हैं तो अनायास ही ‘पैरासाइट’ फिल्म की याद आ ही जाती है। वैसे भी जिस बॉलीवुड को भारत का ‘सॉफ्ट पॉवर’ होना चाहिए था, हमेशा से उसका पूरा ज़ोर भारत के दुश्मनों को ख़ुश करने में ही रहा। फराह खान द्वारा निर्देशित और शाहरुख़ खान अभिनीत ‘मैं हूँ ना’ (2004) में दिखाया गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच समस्या का एक ही कारण है – एक ‘हिन्दू आतंकवादी’। अगर ये एक किरदार हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा, दुनिया ठीक से चलने लगेगी।
अमेरिका ने किस तरह से हॉलीवुड के जरिए देश-दुनिया में अपने एजेंडे का प्रयास किया, किस तरह शीत युद्ध के ज़माने में सोवियत रूस ने हॉलीवुड फिल्मों को बैन कर दिया – उससे पता चलता है कि बॉलीवुड इन सब मामलों में पीछे रहा। हालाँकि, थोड़ा बदलाव आया है और अब वही बॉलीवुड हमारे ऐतिहासिक नायकों पर ‘छावा’ जैसी फ़िल्में बना रहा है, कश्मीरी पंडितों का नरसंहार दिखा रहा है और सर्जिकल स्ट्राइक पर फिल्म बना रहा है। पहले ऐसा नहीं था। मंदाना करीमी बॉलीवुड की उसी पौध का DNA धारण करती हैं और ये उनकी मानसिकता में दिखाई दे रहा है।
अंत में, ये भी जान लीजिए कि केवल राजनीति या मनोरंजन की इंडस्ट्री में ही ऐसे ‘पैरासाइट’ नहीं हैं। पत्रकारिता की दुनिया में भी कई ऐसे हैं, जो बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। आरफा खानम शेरवानी को ही ले लीजिए, जिन्होंने ‘The Wire’ पर पाकिस्तान का एजेंडा चलाते हुए कहा कि भारत ने आम नागरिकों को मारा है। मंदाना करीमी भी यही कह रही हैं। अब समय आ गया है जब ऐसे-ऐसों को दाना-पानी देना बंद होना चाहिए, पैरासाइट हटाने वाले एंटीबायोटिक्स का इंतजाम किया जाना चाहिए।