Friday, November 22, 2024
Homeदेश-समाजखुला के तहत मुस्लिम महिलाओं को तलाक देने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार:...

खुला के तहत मुस्लिम महिलाओं को तलाक देने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार: केरल हाई कोर्ट के फैसले को दी गई है चुनौती

खुला के तहत अगर बीवी अपने शौहर से अलग होती है तो उसे अपने शौहर से उसकी जायदाद लौटानी पड़ेगी। पर यह जरूरी है कि दोनों इसके लिए रजामंद हों। उल्लेखनीय है कि खुला की पहल केवल बीवी ही कर सकती है। कुरान और हदीस मे इसका जिक्र है।

सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम महिलाओं को शरीयत के तहत मिले ‘खुला’ के अधिकार के तहत अपने शौहर को तलाक देने की वैधता पर विचार करेगा। दरअसल, केरल हाई कोर्ट ने एक फैसले में मुस्लिम महिलाओं को खुला के तहत तलाक देने का अधिकार दिया गया था। अब हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिस पर सुनवाई करने लिए शीर्ष न्यायालय तैयार हो गया है।

न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने केरल मुस्लिम जमात और एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को लेकर केरल उच्च न्यायालय को नोटिस भी जारी किया है। केरल हाई कोर्ट में मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम (Dissolution of Muslim Marriages Act) के तहत मुस्लिम महिला द्वारा अपने शौहर से ‘खुला’ के तहत अलग होने को चुनौती दी गई थी।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने माना था कि विवाह समाप्त करने का अधिकार मुस्लिम बीवी का पूर्ण अधिकार है, जो उसे कुरान द्वारा दिया गया है। यह उसके शौहर की स्वीकृति या इच्छा के अधीन नहीं है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि ‘फस्ख’ को छोड़कर शरीयत अधिनियम की धारा 2 में उल्लेखित सभी प्रकार के तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए भी उपलब्ध हैं।

इसके बाद शौहर ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की। कोर्ट ने इसे 20222 में खारिज करते हुए कहा था कि बीवी की इच्छा उस शौहर की इच्छा से संबंधित नहीं हो सकती, जो तलाक के लिए सहमत नहीं है। अदालत ने कहा कि ‘खुला’ का अधिकार मुस्लिम महिला को कुरान से मिला है। यदि यह अधिकार शौहर की इच्छा के अधीन होगा तो अप्रभावी हो जाएगा।

केरल उच्च न्यायालय ने केसी मोईन बनाम नफीसा मामले में 49 साल पुराने उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट से अलग हटकर अपनाए जाने वाले तरीकों का सहारा लेने से रोक दिया था। कोर्ट ने कहा था कि धर्मनिरपेक्ष कानून की अनुपस्थिति में खुला वैध होगा, अगर तीन शर्तें पूरी की जाती हों।

ये तीन शर्तें हैं- (i) पत्नी द्वारा विवाह को अस्वीकार करने या समाप्त करने की घोषणा। (ii) वैवाहिक बंधन के दौरान उसे प्राप्त मेहर या कोई अन्य भौतिक लाभ वापस करने का प्रस्ताव। (iii) खुला की घोषणा से पहले सुलह का प्रभावी प्रयास किया गया।” दरअसल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि शौहर अपनी बीवी द्वारा खुला की माँग को खारिज कर सकता है।

क्या है खुला?

खुला भी तलाक का ही एक रूप होता है, लेकिन इसके इस्तेमाल का हक सिर्फ पत्नी के पास ही होता है। खुला के तहत अगर बीवी अपने शौहर से अलग होती है तो उसे अपने शौहर से उसकी जायदाद लौटानी पड़ेगी, पर यह जरूरी है कि दोनों इसके लिए रजामंद हों। उल्लेखनीय है कि खुला की पहल केवल बीवी ही कर सकती है। कुरान और हदीस मे इसका जिक्र है।

वहीं, भारत में मुस्लिमों के बीच मान्य पुस्तक फतवा-ए-आलमगीरी में कहा गया है कि जब निकाह के बाद शौहर-बीवी इस बात पर राज़ी हैं कि अब वे साथ नहीं रह सकते तो तो पत्नी कुछ संपत्ति पति को वापस करके स्वयं को उसके बंधन से मुक्त कर सकती है। जायदाद में बीवी अपनी मेहर की रकम छोड़ सकती है या फिर कोई अन्य रकम/संपत्ति दे सकती है।

खुला को लेकर मुस्लिमों की आपत्ति

‘खुला’ को लेकर हनफी सहित कुछ तबके के उलेमाओं का कहना है कि इसके तहत मुस्लिम महिला तभी तलाक ले सकती है, जब उसका शौहर तैयार हो। अगर शौहर मना कर दे तो महिला के पास मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के प्रावधानों के तहत अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साल 2021 में ‘खुला’ के संबंध में कहा था कि इस प्रक्रिया में पति की स्वीकृति एक शर्त है। वहीं, अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि कुरान एक मुस्लिम पत्नी को एक प्रक्रिया निर्धारित किए बिना उसकी निकाह को रद्द करने के लिए ‘खुला’ का अधिकार देता है।

मुस्लिम महिलाओं को तलाक का अधिकार

इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं को भी अपने शौहर से तलाक लेने का प्रावधान है। यदि मुस्लिम महिला अपने पति से खुश नहीं है या किसी अन्य वजह से उसके साथ रहना नहीं चाहती है तो वह निकाह को तोड़ सकती है। मुस्लिम महिला तलाक-ए-ताफवीज, मुबारत, ‘खुला’, लिएन या फिर मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 के तहत अपने शौहर से अलग हो सकती है।

मुस्लिम महिला तलाक-ए-ताफवीज़ के तहत तलाक ले सकती है। ताफवीज एक ऐसा अनुबंध है, जिसमें मुस्लिम पुरुष अनुबंध के जरिए निकाह को खत्म करने का अपना अधिकार महिला को सौंपता है। बफातन बनाम शेख मेमूना बीवी AIR (1995) कोलकाता (304) और महराम अली बनाम आयशा खातून इसका प्रमुख उदाहरण है।

मुबारत के जरिए भी शौहर-बीवी अलग हो सकते हैं। मुबारत का शाब्दिक अर्थ होता है पारस्परिक छुटकारा। मुबारत में अलग होने का प्रस्ताव चाहे पत्नी की ओर से आए या पति की ओर से, उसकी स्वीकृति से तलाक हो जाता है। इसके बाद पत्नी को इद्दत का पालन करना अनिवार्य हो जाता है।

लिएन वह प्रक्रिया है, जब कोई मुस्लिम शौहर अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, लेकिन वह आरोप झूठा हो जाता है तो बीवी को तलाक लेने का अधिकार मिल जाता है।

मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के तहत भी मुस्लिम महिला को तलाक लेने का अधिकार है। इस अधिनियम की धारा 2 के तहत मुस्लिम महिलाओं को शौहर की अनुपस्थिति (चार साल से अधिक), बीवी की भरण पोषण करने में असफलता (शौहर अगर 2 साल से उसका भरण-पोषण नहीं दे रहा है), शौहर को कारावास (कम से कम 7 साल), शौहर द्वारा वैवाहिक दायित्व पालन में असफलता (कम से कम 2 साल से), शौहर की नपुंसकता, शौहर को पागलपन या कुष्ठ-एड्स जैसे संक्रामक रोग होना, बीवी द्वारा निकाह अस्वीकार करना और शौहर की क्रूरता की स्थिति में तलाक लेने का अधिकार है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

सालों तक मर्जी से रिश्ते में रही लड़की, नहीं बनता रेप का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की FIR: कहा- सिर्फ ब्रेक अप हो...

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में शादी के झूठे वादे के आधार पर किए गए रेप की FIR को खारिज कर दिया और आरोपित को राहत दे दी।

AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए निकाली पहली लिस्ट, आधे से ज्यादा बाहरी नाम, 3 दिन पहले वाले को भी टिकट: 2 पर...

AAP ने आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 11 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है। इनमें से 6 उम्मीदवार भाजपा और कॉन्ग्रेस से आए हुए हैं।
- विज्ञापन -