Sunday, October 27, 2024
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जो वकील मुस्लिमों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का पैरोकार, उस पर लगा जुर्माना सुप्रीम कोर्ट ने रोका: हाई कोर्ट ने ‘व्यवहार’ में पाया था खोट

महमूद प्राचा वही व्यक्ति है, जिसने विभिन्न मस्जिदों में मुस्लिमों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए कैंप लगाने की भी वकालत की थी। उसने मस्जिदों में मार्शल आर्ट्स से लेकर हर फिजिकल ट्रेनिंग की बात करते हुए कहा था कि आज देश के SC/ST और मुस्लिमों के पास यही एकमात्र विकल्प बचा है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (25 अक्टूबर 2024) को अधिवक्ता महमूद प्राचा के खिलाफ दिए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर रोक लगा दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महमूद प्राचा पर फोरम शॉपिंग करने और व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता होने के बावजूद वकील की पोशाक और बैंड पहनकर इस मामले पर बहस करने पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की खंडपीठ ने कहा, “सीमित उद्देश्य के लिए नोटिस जारी करें कि याचिकाकर्ता के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों को क्यों न हटा दिया जाए और जुर्माना लगाने वाले आदेश को क्यों न रद्द कर दिया जाए। इस पर 09.12.2024 को जवाब दिया जाना चाहिए। इस बीच, जुर्माना लगाने की दिनांक 10.09.2024 के विवादित आदेश पर रोक रहेगी।”

दरअसल, प्राचा ने रामपुर लोकसभा सीट की पूरी चुनावी प्रक्रिया के वीडियो के सत्यापन की माँग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। उन्होंने साल 2024 के आम चुनावों के दौरान एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष उनकी याचिका के आधार पर भारत के चुनाव आयोग द्वारा उन्हें ये वीडियो उपलब्ध कराए गए थे।

इस मामले पर 10 सितम्बर 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर बी सर्राफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की बेंच ने प्राचा की एक याचिका पर सुनवाई की। हाई कोर्ट ने कहा था कि इसी मामले प्राचा दो याचिकाएँ दिल्ली हाई कोर्ट में पहले ही डाल चुके हैं और वहाँ उनकी इच्छा के अनुसार निर्देश भी कोर्ट दे चुका है। प्राचा ने दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णयों से संतुष्टि भी जताई थी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि इसके बावजूद प्राचा ने फिर इसी मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका ठोंक दी। हाई कोर्ट ने कहा था कि जब उनकी समस्या दिल्ली हाई कोर्ट से हल हो चुकी है तो आखिर वह इलाहाबाद में वैसी ही याचिका लेकर क्यों आए। कोर्ट ने कहा कि वह इसके पीछे का कारण समझ नहीं पा रहा कि एक ही विषय पर दो अलग अलग हाई कोर्ट में याचिका क्यों डाली गई।

कोर्ट ने कहा था, “यह अदालत याचिकाकर्ता द्वारा किए जा रहे इस बदलाव को समझ नहीं पा रही, जब याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रिकॉर्ड में कहा था कि उसकी चिंता का समाधान हो चुका है। याचिकाकर्ता बीच रास्ते में कूद नहीं सकता नहीं ही अपना मन बदल सकता है, वह अपने मन से अपनी पसंद का मंच नहीं चुन सकता। अगर उन्हें समस्या थी तो वह एक बार फिर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते थे क्योंकि मामला तो वही है।”

हाई कोर्ट ने समय खराब करने के अलावा प्राचा के व्यवहार पर भी सवाल उठाए। हाई कोर्ट ने कहा कि उसे फैसला सुनाने के बाद पता चला कि प्राचा खुद ही इस मामले में पेश हो रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने अपने एक वकील के माध्यम से यह याचिका दायर की थी, ऐसे में वह खुद इस मामले में बहस नहीं कर सकते थे। इसके लिए उन्हें अपने वकील का नाम हटाना पड़ता, लेकिन उन्होंने ऐसा किए बिना ही बहस करना चालू कर दिया।

हाई कोर्ट ने कहा था कि प्राचा ने अपना कोट पर पहने जाने वाला बैंड बिना हटाए बहस की, जो सही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें डेकोरम बना कर रखना चाहिए था। हाई कोर्ट ने प्राचा की याचिका इस सुनवाई के बाद खारिज कर दी और उन पर ₹1 लाख का जुर्माना भी लगा दिया। प्राचा को आगे उनके व्यवहार के लिए चेतावनी भी दी गई है।

कौन है महमूद प्राचा?

महमूद प्राचा दिल्ली दंगा में ‘पीड़ितों’ का केस मुफ्त में लड़ने का दावा करता है और भारत में अघोषित आपातकाल के नैरेटिव को आगे बढ़ाता है। न सिर्फ कोर्ट में, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से भी वो इस्लामी प्रोपेगंडा फैलाने में दक्ष है। दिल्ली दंगों में ये आरोपित मुस्लिम दंगाइयों का वकील है।

NDA के सत्ता में आने से पहले महमूद प्राचा की ऐसी तूती बोलती थी कि वो राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, दिल्ली सफाई कर्मचारी कमीशन और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक (FSSAI) जैसी सरकारी संस्थाओं के लिए कोर्ट में पेश को चुका है। वो सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा का एडिशनल अधिवक्ता रहा है। साथ ही AIIMS दिल्ली का स्टैंडिंग काउंसल और दिल्ली लॉ स्कूल के छात्र संघ का अध्यक्ष रहा है।

जमात उलेमा-ए-हिन्द ने महमूद प्राचा को कई आतंकवादियों का केस लड़ने के लिए हायर किया था। वकील महमूद प्राचा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दिल्ली ब्रांच का सदस्य है। साउथ एशिया माइनॉरिटी लॉयर्स एसोसिएशन का वो अध्यक्ष है। जुलाई 2017 से वो अमेरिका के ‘ब्लैक लाइव्स मैटर्स’ की तर्ज पर भारत में ‘दलित, माइनॉरिटी एंड ट्राइबल लाइव्स मैटर्स’ नामक अभियान चला रहा है।

उसने 2004 में जम्मू कश्मीर के मसले में अमेरिका की मध्यस्तथा की माँग की थी, जबकि ये भारत का आंतरिक मामला है। महमूद प्राचा ‘भीम आर्मी’ से तो जुड़ा ही हुआ है, साथ ही ‘रावण’ को दरियागंज में हुई हिंसा के मामले में कोर्ट में डिफेंड भी कर चुका है। उसने मेवात के मुस्लिम बहुल इलाके में जाकर भड़काऊ भाषण दिया था और CAA विरोधी आंदोलन को हवा दी थी। उसने तब खुलासा किया था कि पूरे बिहार में 1500 शाहीन बाग़ चल रहे हैं और इसमें मुस्लिम महिलाओं का सबसे ज्यादा योगदान है।

दिल्ली हाईकोर्ट में कपिल मिश्रा सहित अन्य भाजपा व संघ नेताओं के खिलाफ केस करने में उसका सबसे बड़ा हाथ था। साथ ही उसे NPR के खिलाफ भी मुस्लिमों को भड़काया था। उसने दावा किया कि असम में ‘बाहरी’ मारवाड़ियों ने पूरे व्यापार पर कब्जा कर रखा था, इसीलिए NRC लाई गई। उसने बड़े उद्योगपतियों पर RSS को लोन देने का आरोप लगाया और यहाँ तक दावा कर बैठा कि जिनका नाम NRC में नहीं आएगा, उनके बैंक एकाउंट्स के रुपए सरकार खा जाएगी।

उसने मुस्लिम बहुल इलाकों में घूम-घूम कर लाइसेंसी हथियारों की खरीद-बिक्री करने की सलाह दी थी और उन्हें ‘आत्मरक्षा’ के लिए हथियार रखने को कहा था। उसने मुस्लिमों को यहाँ तक सलाह दी थी कि भले ही उनकी संपत्ति बिक जाए, वो बन्दूक जरूर रखें।

महमूद प्राचा ने विभिन्न मस्जिदों में मुस्लिमों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए कैंप लगाने की भी वकालत की थी। उसने मस्जिदों में मार्शल आर्ट्स से लेकर हर फिजिकल ट्रेनिंग की बात करते हुए कहा था कि आज देश के SC/ST और मुस्लिमों के पास यही एकमात्र विकल्प बचा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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