Sunday, November 24, 2024
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हिंदू पुरुष से किया विवाह, पर हिंदू परंपराओं का उड़ाती थी मजाक… नहीं करती थी पूजा: जानिए हाई कोर्ट ने पति की धार्मिक मान्यताओं को क्यों माना तलाक का आधार

डिवीजन बेंच ने कहा कि महाभारत और रामायण में ही नहीं, बल्कि मनु स्मृति में भी कहा गया है कि पत्नी के बिना कोई भी यज्ञ अधूरा है। धार्मिक कर्म में पत्नी अपने पति के साथ बराबर की भागीदार होती है। कोर्ट ने आगे कहा कि पति अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा है। ऐसे में उसे परिवार के सदस्यों के लिए धार्मिक अनुष्ठान करना होता है। इसके बाद हाई कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज कर दी।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर पत्नी अपने पति की धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाती है तो पति उससे तलाक लेने का हकदार है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने हिंदू धर्म के एक पति को ईसाई धर्म की पत्नी से तलाक को सही ठहराया और फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके साथ ही निचली अदालत के फैसले को खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की जज रजनी दुबे और जस्टिस संजय जायसवाल की डिवीजन बेंच ने तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए पति-पत्नी के रिश्तों पर रामायण और महाभारत सहित विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में वर्णित मान्यताओं का हवाला दिया। इस आधार पर पति को तलाक की मंजूरी वाली फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इस फैसले को पत्नी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पत्नी ने खुद स्वीकार किया है कि पत्नी ने वह पिछले 10 सालों से किसी भी हिंदू धार्मिक अनुष्ठान में शामिल नहीं हुई। पूजा-पाठ के बजाय उन्होंने चर्च जाना शुरू कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह दो अलग-अलग धर्म के लोगों के बीच विवाह का मामला नहीं है, जहाँ धार्मिक प्रथाओं में आपसी समझ की अपेक्षा की जाती है।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पति ने बताया कि पत्नी ने बार-बार उसकी धार्मिक मान्यताओं को अपमानित किया। उसके देवी-देवताओं का अपमान किया। बेंच ने आगे कहा कि कोर्ट के विचार में पत्नी, जिसे ‘सहधर्मिणी’ होने की उम्मीद की जाती है, उससे ऐसा व्यवहार एक धर्मनिष्ठ हिंदू पति के प्रति मानसिक क्रूरता है। ऐसे में पति तलाक पाने का हकदार है। इस दौरान कोर्ट ने धार्मिक ग्रंथों का भी हवाला दिया।

डिवीजन बेंच ने कहा कि महाभारत और रामायण में ही नहीं, बल्कि मनु स्मृति में भी कहा गया है कि पत्नी के बिना कोई भी यज्ञ अधूरा है। धार्मिक कर्म में पत्नी अपने पति के साथ बराबर की भागीदार होती है। कोर्ट ने आगे कहा कि पति अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा है। ऐसे में उसे परिवार के सदस्यों के लिए धार्मिक अनुष्ठान करना होता है। इसके बाद हाई कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज कर दी।

दरअसल, मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के करंजिया निवासी नेहा ईसाई धर्म का पालन करती हैं। उन्होंने 7 फरवरी 2016 को बिलासपुर के रहने वाले विकास चंद्र से हिंदू रीति-रिवाज से विवाह किया था। विकास दिल्ली में नौकरी करते थे। नेहा कुछ दिन अपने पति विकास के साथ दिल्ली में रही। उसके बाद वह बिलासपुर लौट आई। इस दौरान नेहा ने ईसाई धर्म अपना लिया और चर्च जाना शुरू कर दिया।

ईसाई धर्म अपनाने के बाद नेहा हिंदू धार्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। विकास ने नेहा को कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी। आखिरकार पत्नी के इस व्यवहार से परेशान होकर विकास ने तलाक लेने का निर्णय किया और फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी। सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने विकास के पक्ष में फैसला दिया।

 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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